Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004341
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-२४

Translated Chapter :

शतक-२४

Section : उद्देशक-१ नैरयिक Translated Section : उद्देशक-१ नैरयिक
Sutra Number : 841 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं सण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति। जइ सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउयसण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति। जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो अपज्जत्तसंखेज्ज-वासाउय-सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति। पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! कतिसु पुढवीसु उववज्जेज्जा? गोयमा! सत्तसु पुढवीसु उववज्जेज्जा, तं जहा–रयणप्पभाए जाव अहेसत्तमाए। पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवास-सहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं सागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जंति। संघयणा छ, सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुल-पुहत्तं, उक्कोसेणं पंचधनुसयाइं। एवं सेसं जहा सण्णिपंचिंदिय-तिरिक्खजोणियाणं जाव भवादेसो त्ति, नवरं–चत्तारि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए। छ समुग्घाया केवलिवज्जा। ठिती अनुबंधो य जहन्नेणं मासपुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी, सेसं तं चेव। काला देसेणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं मासपुहत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–कालादेसेणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं मासपुहत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं मासपुहत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–इमाइं पंच नाणत्ताइं–१. सरीरोगाहणा जह-ण्णेणं अंगुलपुहत्तं, उक्कोसेण वि अंगुलपुहत्तं २. तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए ३. पंच समुग्घाया आदिल्ला ४-५. ठिती अनुबंधो य जहन्नेणं मासपुहत्तं, उक्कोसेण वि मासपुहत्तं, सेसं तं चेव जाव भवादेसोत्ति। कालादेसेणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं मासपुहत्त-मब्भहियाइं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं मासपुहत्तेहिं अब्भहियाइं एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गति-रागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया चउत्थगमगसरिसा, नवरं–कालादेसेणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं मासपुहत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं चत्तालीसं वाससहस्साइं चउहिं मासपुहत्तेहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव गमगो, नवरं–कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं मासपुहत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं मासपुहत्तेहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, सो चेव पढमगमओ नेयव्वो, नवरं–सरीरोगाहणा जहन्नेणं पंचधनुसयाइं, उक्कोसेण वि पंचधनुसयाइं। ठिती जहन्नेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी। एवं अनुबंधो वि। कालादेसेणं जहन्नेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, सच्चेव सत्तमगमगवत्तव्वया, नवरं–कालादेसेणं जहन्नेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चत्तालीसाए वास-सहस्सेहिं अब्भहियाओ, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो, सच्चेव सत्तमगमगवत्तव्वया, नवरं–कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं पुव्वकोडीए अब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! यदि वह नैरयिक मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह संज्ञी – मनुष्यों में से या असंज्ञी – मनुष्यों में से उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह संज्ञी – मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, असंज्ञी मनुष्यों में से उत्पन्न नहीं होता है। भगवन्‌ ! यदि वह संज्ञी – मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है तो क्या संख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी – मनुष्यों में से अथवा असंख्येय वर्ष की आयु वाले से ? गौतम ! वह संख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी – मनुष्यों में से उत्पन्न होता है। भगवन्‌ ! यदि वह संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह पर्याप्त संख्येयवर्षा – युष्क संज्ञी – मनुष्यों में से या अपर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – मनुष्यों में से ? गौतम ! वह पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, अपर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – मनुष्यों में से उत्पन्न नहीं होता है। भगवन्‌ ! संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त मनुष्य, जो नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितनी नरकपृथ्वीयों में उत्पन्न होता है ? वह सातों ही नरकपृथ्वीयों में उत्पन्न होता है। भगवन्‌ ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – मनुष्य जो रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। भगवन्‌ ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे जीव जघन्य एक, दो या तीन उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। उनमें छहों संहनन होते हैं। उनके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल – पृथक्त्व की और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष की होती है। शेष सब कथन यावत्‌ भवादेश तक, संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों के समान है। विशेष यह है कि उनमें चार ज्ञान तथा तीन अज्ञान विकल्प से होते हैं। केवलिसमुद्‌घात को छोड़कर शेष छह समुद्‌घात होते हैं। उनकी स्थिति और अनुबन्ध जघन्य मासपृथक्त्व उत्कृष्ट पूर्वकोटि होता है। शेष सब पूर्ववत्‌। संवेधकाल की अपेक्षा से जघन्य मासपृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम तक गमनागमन करता है। यदि वह मनुष्य जघन्यकाल की स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो तो उपर्युक्त सर्व वक्तव्यता कहना। विशेष यह कि काल की अपेक्षा से – जघन्य मासपृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चालीस हजार वर्ष। यदि वह मनुष्य, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त सर्व वक्तव्यता जाननी। विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से – जघन्य मासपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम। यदि वह मनुष्य स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो उसके विषय में भी यही वक्तव्यता कहनी। इसमें इन पाँच बातों में विशेषता है – उनके शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल – पृथक्त्व होती है। उनके तीन ज्ञान और तीन अज्ञान विकल्प से होते हैं। उनके आदि के पाँच समुद्‌घात होते हैं, उनकी स्थिति और अनुबन्ध जघन्य मासपृथक्त्व और उत्कृष्ट मासपृथक्त्व होता है। शेष सब भवादेश तक पूर्ववत्‌। काल की अपेक्षा से – जघन्य मास – पृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार मासपृथक्त्व अधिक चार सागरोपम; इतने काल। यदि वह मनुष्य स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त चतुर्थगमक के समान इसकी वक्तव्यता समझना। विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से – जघन्य मासपृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार मासपृथक्त्व अधिक चालीस हजार वर्ष काल। यदि वह जघन्य कालस्थिति वाला मनुष्य, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हों, तो पूर्वोक्त गमक के समान जानना। विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से – जघन्य मासपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार मासपृथक्त्व अधिक चार सागरोपम; इतने काल यावत्‌ गमनागमन करता है। यदि वह मनुष्य स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो और उत्पन्न हो, तो उसके विषय में प्रथम गमक के समान समझना। विशेषता यह है कि उसके शरीर की अवगाहना जघन्य पाँच सौ धनुष और उत्कृष्ट भी पाँच सौ धनुष की होती है। स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की होती है एवं अनुबन्ध भी उसी प्रकार जानना। काल की अपेक्षा से – जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम। यदि वही मनुष्य, जघन्य काल की स्थिति वाले (रत्नप्रभा) में उत्पन्न हो, तो उसकी वक्तव्यता सप्तम गमक के समान जानना। विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि। यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला मनुष्य, उत्कृष्ट स्थिति वाले में उत्पन्न हो तो उसी पूर्वोक्त सप्तम गमक के समान वक्तव्यता जानना। विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से – जघन्य पूर्वकोटि अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम; इतने काल यावत्‌ गमनागमन करता है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] jai manussehimto uvavajjamti– kim sanni-manussehimto uvavajjamti? Asanni-manussehimto uvavajjamti? Goyama! Sannimanussehimto uvavajjamti, no asannimanussehimto uvavajjamti. Jai sannimanussehimto uvavajjamti–kim samkhejjavasauyasannimanussehimto uvavajjamti? Asamkhejjavasauyasannimanussehimto uvavajjamti? Goyama! Samkhejjavasauyasannimanussehimto uvavajjamti, no asamkhejjavasauyasanni-manussehimto uvavajjamti. Jai samkhejjavasauyasannimanussehimto uvavajjamti– kim pajjattasamkhejjavasauyasanni-manussehimto uvavajjamti? Apajjattasamkhejjavasauyasannimanussehimto uvavajjamti? Goyama! Pajjattasamkhejjavasauyasannimanussehimto uvavajjamti, no apajjattasamkhejja-vasauya-sannimanussehimto uvavajjamti. Pajjattasamkhejjavasauyasannimanusse nam bhamte! Je bhavie neraiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Katisu pudhavisu uvavajjejja? Goyama! Sattasu pudhavisu uvavajjejja, tam jaha–rayanappabhae java ahesattamae. Pajjattasamkhejjavasauyasannimanusse nam bhamte! Je bhavie rayanappabhae pudhavie neraiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam dasavasa-sahassatthitiesu, ukkosenam sagarovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Goyama! Jahannenam ekko va do va tinni va, ukkosenam samkhejja uvavajjamti. Samghayana chha, sarirogahana jahannenam amgula-puhattam, ukkosenam pamchadhanusayaim. Evam sesam jaha sannipamchimdiya-tirikkhajoniyanam java bhavadeso tti, navaram–chattari nana tinni annana bhayanae. Chha samugghaya kevalivajja. Thiti anubamdho ya jahannenam masapuhattam, ukkosenam puvvakodi, sesam tam cheva. Kala desenam jahannenam dasavasasahassaim masapuhattamabbhahiyaim, ukkosenam chattari sagarovamaim chauhim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno, esa cheva vattavvaya, navaram–kaladesenam jahannenam dasavasasahassaim masapuhattamabbhahiyaim, ukkosenam chattari puvvakodio chattalisae vasasahassehim abbhahiyao, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno, esa cheva vattavvaya, navaram–kaladesenam jahannenam sagarovamam masapuhattamabbhahiyam, ukkosenam chattari sagarovamaim chauhim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva appana jahannakalatthitio jao, esa cheva vattavvaya, navaram–imaim pamcha nanattaim–1. Sarirogahana jaha-nnenam amgulapuhattam, ukkosena vi amgulapuhattam 2. Tinni nana tinni annanaim bhayanae 3. Pamcha samugghaya adilla 4-5. Thiti anubamdho ya jahannenam masapuhattam, ukkosena vi masapuhattam, sesam tam cheva java bhavadesotti. Kaladesenam jahannenam dasavasasahassaim masapuhatta-mabbhahiyaim, ukkosenam chattari sagarovamaim chauhim masapuhattehim abbhahiyaim evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gati-ragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno, esa cheva vattavvaya chautthagamagasarisa, navaram–kaladesenam jahannenam dasavasasahassaim masapuhattamabbhahiyaim, ukkosenam chattalisam vasasahassaim chauhim masapuhattehim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno, esa cheva gamago, navaram–kaladesenam jahannenam sagarovamam masapuhattamabbhahiyam, ukkosenam chattari sagarovamaim chauhim masapuhattehim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva appana ukkosakalatthitio jao, so cheva padhamagamao neyavvo, navaram–sarirogahana jahannenam pamchadhanusayaim, ukkosena vi pamchadhanusayaim. Thiti jahannenam puvvakodi, ukkosena vi puvvakodi. Evam anubamdho vi. Kaladesenam jahannenam puvvakodi dasahim vasasahassehim abbhahiya, ukkosenam chattari sagarovamaim chauhim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno, sachcheva sattamagamagavattavvaya, navaram–kaladesenam jahannenam puvvakodi dasahim vasasahassehim abbhahiya, ukkosenam chattari puvvakodio chattalisae vasa-sahassehim abbhahiyao, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno, sachcheva sattamagamagavattavvaya, navaram–kaladesenam jahannenam sagarovamam puvvakodie abbhahiyam, ukkosenam chattari sagarovamaim chauhim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Yadi vaha nairayika manushyom mem se akara utpanna hota hai, to kya vaha samjnyi – manushyom mem se ya asamjnyi – manushyom mem se utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha samjnyi – manushyom mem se utpanna hota hai, asamjnyi manushyom mem se utpanna nahim hota hai. Bhagavan ! Yadi vaha samjnyi – manushyom mem se akara utpanna hota hai to kya samkhyeya varsha ki ayu vale samjnyi – manushyom mem se athava asamkhyeya varsha ki ayu vale se\? Gautama ! Vaha samkhyeya varsha ki ayu vale samjnyi – manushyom mem se utpanna hota hai. Bhagavan ! Yadi vaha samkhyeyavarshayushka samjnyi – manushyom mem se akara utpanna hota hai, to kya vaha paryapta samkhyeyavarsha – yushka samjnyi – manushyom mem se ya aparyapta samkhyeyavarshayushka samjnyi – manushyom mem se\? Gautama ! Vaha paryapta samkhyeyavarshayushka samjnyi – manushyom mem se utpanna hota hai, aparyapta samkhyeyavarshayushka samjnyi – manushyom mem se utpanna nahim hota hai. Bhagavan ! Samkhyata varsha ki ayu vala paryapta manushya, jo nairayikom mem utpanna hone yogya hai, vaha kitani narakaprithviyom mem utpanna hota hai\? Vaha satom hi narakaprithviyom mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Paryapta samkhyeyavarshayushka samjnyi – manushya jo ratnaprabhaprithvi ke nairayikom mem utpanna hone yogya hai, vaha kitane kala ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya dasa hajara varsha ki aura utkrishta eka sagaropama ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Gautama ! Ve jiva jaghanya eka, do ya tina utkrishta samkhyata utpanna hote haim. Unamem chhahom samhanana hote haim. Unake sharira ki avagahana jaghanya amgula – prithaktva ki aura utkrishta pamcha sau dhanusha ki hoti hai. Shesha saba kathana yavat bhavadesha taka, samjnyi – pamchendriyatiryamchayonikom ke samana hai. Vishesha yaha hai ki unamem chara jnyana tatha tina ajnyana vikalpa se hote haim. Kevalisamudghata ko chhorakara shesha chhaha samudghata hote haim. Unaki sthiti aura anubandha jaghanya masaprithaktva utkrishta purvakoti hota hai. Shesha saba purvavat. Samvedhakala ki apeksha se jaghanya masaprithaktva adhika dasa hajara varsha aura utkrishta chara purvakoti adhika chara sagaropama taka gamanagamana karata hai. Yadi vaha manushya jaghanyakala ki sthiti vale ratnaprabhaprithvi ke nairayikom mem utpanna ho to uparyukta sarva vaktavyata kahana. Vishesha yaha ki kala ki apeksha se – jaghanya masaprithaktva adhika dasa hajara varsha aura utkrishta chara purvakoti adhika chalisa hajara varsha. Yadi vaha manushya, utkrishta kala ki sthiti vale ratnaprabhaprithvi ke nairayikom mem utpanna ho, to purvokta sarva vaktavyata janani. Vishesha yaha hai ki kala ki apeksha se – jaghanya masaprithaktva adhika eka sagaropama aura utkrishta chara purvakoti adhika chara sagaropama. Yadi vaha manushya svayam jaghanya kala ki sthiti vala ho aura ratnaprabhaprithvi ke nairayikom mem utpanna ho, to usake vishaya mem bhi yahi vaktavyata kahani. Isamem ina pamcha batom mem visheshata hai – unake sharira ki avagahana jaghanya aura utkrishta amgula – prithaktva hoti hai. Unake tina jnyana aura tina ajnyana vikalpa se hote haim. Unake adi ke pamcha samudghata hote haim, unaki sthiti aura anubandha jaghanya masaprithaktva aura utkrishta masaprithaktva hota hai. Shesha saba bhavadesha taka purvavat. Kala ki apeksha se – jaghanya masa – prithaktva adhika dasa hajara varsha aura utkrishta chara masaprithaktva adhika chara sagaropama; itane kala. Yadi vaha manushya svayam jaghanya kala ki sthiti vala ho aura ratnaprabhaprithvi ke nairayikom mem utpanna ho, to purvokta chaturthagamaka ke samana isaki vaktavyata samajhana. Vishesha yaha hai ki kala ki apeksha se – jaghanya masaprithaktva adhika dasa hajara varsha aura utkrishta chara masaprithaktva adhika chalisa hajara varsha kala. Yadi vaha jaghanya kalasthiti vala manushya, utkrishta kala ki sthiti vale ratnaprabhaprithvi ke nairayikom mem utpanna hom, to purvokta gamaka ke samana janana. Vishesha yaha hai ki kala ki apeksha se – jaghanya masaprithaktva adhika eka sagaropama aura utkrishta chara masaprithaktva adhika chara sagaropama; itane kala yavat gamanagamana karata hai. Yadi vaha manushya svayam utkrishta kala ki sthiti vala ho aura utpanna ho, to usake vishaya mem prathama gamaka ke samana samajhana. Visheshata yaha hai ki usake sharira ki avagahana jaghanya pamcha sau dhanusha aura utkrishta bhi pamcha sau dhanusha ki hoti hai. Sthiti jaghanya aura utkrishta purvakotivarsha ki hoti hai evam anubandha bhi usi prakara janana. Kala ki apeksha se – jaghanya dasa hajara varsha adhika purvakoti aura utkrishta chara purvakoti adhika chara sagaropama. Yadi vahi manushya, jaghanya kala ki sthiti vale (ratnaprabha) mem utpanna ho, to usaki vaktavyata saptama gamaka ke samana janana. Vishesha yaha hai ki kala ki apeksha se jaghanya dasa hajara varsha adhika purvakoti aura utkrishta chalisa hajara varsha adhika chara purvakoti. Yadi vaha utkrishta kala ki sthiti vala manushya, utkrishta sthiti vale mem utpanna ho to usi purvokta saptama gamaka ke samana vaktavyata janana. Vishesha yaha hai ki kala ki apeksha se – jaghanya purvakoti adhika eka sagaropama aura utkrishta chara purvakoti adhika chara sagaropama; itane kala yavat gamanagamana karata hai.