Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004339
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-२४

Translated Chapter :

शतक-२४

Section : उद्देशक-१ नैरयिक Translated Section : उद्देशक-१ नैरयिक
Sutra Number : 839 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्ख- जोणिएहिंतो उववज्जंति? असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउय सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणि-एहिंतो उववज्जंति। जइ संखेज्जवासाउय-सण्णिपंचिंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं जलचरेहिंतो उववज्जंति–पुच्छा। गोयमा! जलचरेहिंतो उववज्जंति, जहा असण्णी जाव पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, नो अपज्जत्त-एहिंतो उववज्जंति। पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! कतिसु पुढवीसु उववज्जेज्जा? गोयमा! सत्तसु पुढवीसु उववज्जेज्जा, तं जहा–रयणप्पभाए जाव अहेसत्तमाए। पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए रयणप्पभा-पुढविनेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतियकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवासस हस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं सागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? जहेव असण्णी। तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरगा किंसंघयणी पन्नत्ता? गोयमा! छव्विसंघयणी पन्नत्ता, तं जहा–वइरोसभनारायसंघयणी, उसभनारायसंघयणी जाव छेवट्टसंघयणी। सरीरोगाहणा जहेव असण्णीणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं। तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरगा किंसंठिया पन्नत्ता? गोयमा! छव्विहसंठिया पन्नत्ता, तं जहा–समचउरंसा, निग्गोहा जाव हुंडा। तेसि णं भंते! जीवाण कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! छल्लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। दिट्ठी तिविहा वि। तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए। जोगो तिविहो वि। सेसं जहा असण्णीणं जाव अनुबंधो, नवरं–पंच समुग्घाया आदिल्लगा। वेदो तिविहो वि, अवसेसं तं चेव जाव– से णं भंते! पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए रयणप्पभाए जाव गतिरागतिं करेज्जा? गोयमा! भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतो-मुहुत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेण चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं पुव्व-कोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए जहन्नकाल ट्ठितीएसु रयणप्पभापुढविने-रइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतियकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेण वि दसवाससहस्सट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं सो चेव पढमो गमओ निरवसेसो भाणियव्वो जाव कालादेसेणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहि-याओ, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो जहन्नेणं सागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेण वि सागरोवम-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा अवसेसो परिणामादीओ भवादेसपज्जवसाणी सो चेव पढमगमो नेयव्वो जाव कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं अंतोमुहुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। जहन्नकालट्ठितीयपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए रयणप्पभपुढविनेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं सागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसो सो चेव गमओ, नवरं–इमाइं अट्ठ नाणत्ताइं– १. सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं २. लेस्साओ तिन्नि आदिल्लाओ ३. नो सम्मदिट्ठी, मिच्छा दिट्ठी, नो सम्मामिच्छदिट्ठी ४. नो नाणी, दो अन्नाणा नियमं ५. समुग्घाया आदिल्ला तिन्नि ६. आउं ७. अज्झवसाणा ८. अणुबंधो य जहेव असण्णीणं। अवसेसं जहा पढमगमए जाव कालादेसेणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्त-मब्भहियाइं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेण वि दसवाससहस्सट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं सो चेव चउत्थो गमयो निरवसेसो भाणियव्वो जाव कालादेसेणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं चत्तालीसं वाससहस्साइं चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो जहन्नेणं सागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेण वि सागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं सो चेव चउत्थो गमओ निरवसेसो भाणियव्वो जाव कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं अंतोमुहुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। उक्कोसकालट्ठितीयपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं सागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसो परिणामादीओ भवादेस-पज्जवसाणो सो चेव पढमगमओ नेयव्वो, नवर–ठिती जहन्नेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी। एवं अनुबंधो वि, सेसं तं चेव। कालादेसेणं जहन्नेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवे-ज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेण वि दसवाससहस्सट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? सो चेव सत्तमो गमओ निरवसेसो भाणियव्वो जाव भवा-देसो त्ति। कालादेसेणं जहन्नेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चत्तालीसाए वाससह-स्सेहिं अब्भहियाओ, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। उक्कोसकालट्ठितीयपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए उक्कोसकालट्ठितीएसु रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेण वि सागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? सो चेव सत्तमगमओ निरवसेसो भाणियव्वो जाव भवादेसो त्ति। कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं पुव्वकोडीए अब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं एते नव गमका। उक्खेव-निक्खेवओ नवसु वि जहेव असण्णीणं।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! यदि नैरयिक संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से ? गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, असंख्यात वर्ष की आयु वाले उत्पन्न नहीं होते हैं। भगवन्‌ ! यदि नैरयिक संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी – तिर्यंचपंचेन्द्रियों में से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे जलचरों, स्थलचरों अथवा खेचरों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे जलचरों में से आकर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि सब असंज्ञी के समान, यावत्‌ पर्याप्तकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तकों में से नही; भगवन्‌ ! पर्याप्त – संख्येयवर्षायुष्क – संज्ञीपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जो जीव, नरकपृथ्वीयों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वह कितनी नरकपृथ्वीयों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह सातों ही नरकपृथ्वीयों में उत्पन्न होता है, यथा – रत्नप्रभा, यावत्‌ अधःसप्तम पृथ्वी। भगवन्‌ ! पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, जो रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। भगवन्‌ ! वे जीव, एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! असंज्ञी के समान समझना। भगवन्‌ ! उन जीवों के शरीर किस संहनन वाले होते हैं ? गौतम ! छहों प्रकार के, यथा – वे वज्रऋषभनाराचसंहनन वाले, यावत्‌ सेवार्त्तसंहनन वाले होते हैं। शरीर की अव – गाहना, असंज्ञी के समान जानना। भगवन्‌ ! उन जीवों के शरीर किस संस्थान वाले होते हैं ? गौतम ! छहों प्रकार के, यथा – समचतुरस्र यावत्‌ हुण्डक संस्थान। भगवन्‌ ! उन जीवों के कितनी लेश्याएं कही गई हैं ? गौतम ! छहों लेश्याएं। यथा – कृष्णलेश्या यावत्‌ शुक्ललेश्या। (उनमें) दृष्टियाँ तीनों ही होती हैं। तीन ज्ञान तथा तीन अज्ञान भजना से होते हैं। योग तीनों ही होते हैं। शेष सब यावत्‌ अनुबन्ध तक असंज्ञी के समान समझना। विशेष यह है कि समुद्‌घात आदि के पाँच होते हैं तथा वेद तीनों ही होते हैं। शेष पूर्ववत्‌। यावत्‌ – भगवन्‌ ! वह पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीव, रत्नप्रभापृथ्वी में नारकरूप में उत्पन्न हो और यावत्‌ गमनागमन करता है ? गौतम ! भव की अपेक्षा जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव तक ग्रहण करता है तथा काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम काल तक। भगवन्‌ ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीव रत्नप्रभा – पृथ्वी में जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट दोनो दस हजार वर्ष की स्थिति वाले में उत्पन्न होता है। भगवन्‌ ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत्‌ प्रथम गमक पूरा, यावत्‌ काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि काल तक। यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न हो तो जघन्य और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले में उत्पन्न होता है। शेष परिमाणादि से लेकर भवादेश – पर्यन्त कथन उसी पूर्वोक्त प्रथम गमक के समान, यावत्‌ काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम काल तक। भगवन्‌ ! जघन्यकाल की स्थिति वाला, पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, जो रत्नप्रभा पृथ्वी में नैरयिकरूप में उत्पन्न होने वाला हो, तो वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले में उत्पन्न होता है। भगवन्‌ ! वे जीव (एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?) गौतम ! प्रथम गमक के समान विशेषता इन आठ विषयों में है, यथा – शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व की होती है। इनमें आदि की तीन लेश्याएं होती हैं। एकमात्र मिथ्यादृष्टि होते हैं। इनमें नियम से दो अज्ञान होते हैं। आदि के तीन समुद्‌घात होते हैं। आयुष्य, अध्यवसाय और अनुबन्ध का कथन असंज्ञी के समान। शेष सब प्रथम गमक के समान, यावत्‌ काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त्त अधिक चार सागरोपम काल। जघन्य काल की स्थिति वाला, वही जीव, जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले तथा उत्कृष्ट भी दस हजार वर्ष की स्थिति वालो में उत्पन्न होता है। भगवन्‌ ! वे जीव (एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?) इत्यादि प्रश्न। गौतम ! यहाँ सम्पूर्ण कथन चतुर्थ गमक समान, यावत्‌ – काल की अपेक्षा – जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक १०००० वर्ष तक और उत्कृष्ट चार अन्त – र्मुहूर्त्त अधिक ४०००० वर्ष तक कालयापन करते हैं। वही उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हों, तो जघन्य सागरोपम स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है और उत्कृष्ट भी सागरोपम स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। भगवन्‌ ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? यहाँ पूर्ववत्‌ सम्पूर्ण चतुर्थ गमक, यावत्‌ – काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त्त अधिक चार सागरोपम काल यावत्‌ गमनागमन करता है। भगवन्‌ ! उत्कृष्ट स्थिति वाला पर्याप्त – संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीव जो रत्नप्रभा – पृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्यतः दस हजार वर्ष की और उत्कृष्टतः एक सागरोपम की स्थिति वालों में। भगवन्‌ ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! परिमाण आदि से लेकर भवादेश तक की वक्तव्यता के लिए प्रथम गमक जानना। परन्तु विशेष यह है कि स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी जानना। शेष पूर्ववत्‌ तथा काल की अपेक्षा से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटिवर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम – । यदि वह (उत्कृष्ट० संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंच) जघन्य स्थिति वाले (रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों) में उत्पन्न हों, तो वह जघन्य और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। भगवन्‌ ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! सम्पूर्ण सप्तम गमक कहना। काल की अपेक्षा से, जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटिवर्ष और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटिवर्ष। भगवन्‌ ! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पर्याप्त यावत्‌ तिर्यंचयोनिक, जो उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वालों में। भगवन्‌ ! वे जीव (एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?) गौतम ! परिमाण से लेकर भवादेश तक के लिए वही पूर्वोक्त सप्तम गमक सम्पूर्ण कहना। काल की अपेक्षा से जघन्य पूर्वकोटि अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम काल। इस प्रकार ये नौ गमक होते हैं; और इन नौ ही गमकों का प्रारम्भ और उपसंहार असंज्ञी जीवों के समान है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] jai sannipamchimdiyatirikkhajoniehimto uvavajjamti kim samkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkha- joniehimto uvavajjamti? Asamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajoniehimto uvavajjamti? Goyama! Samkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajoniehimto uvavajjamti, no asamkhejjavasauya sannipamchimdiyatirikkhajoni-ehimto uvavajjamti. Jai samkhejjavasauya-sannipamchimdiya-tirikkhajoniehimto uvavajjamti– kim jalacharehimto uvavajjamti–puchchha. Goyama! Jalacharehimto uvavajjamti, jaha asanni java pajjattaehimto uvavajjamti, no apajjatta-ehimto uvavajjamti. Pajjattasamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie neraiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Katisu pudhavisu uvavajjejja? Goyama! Sattasu pudhavisu uvavajjejja, tam jaha–rayanappabhae java ahesattamae. Pajjattasamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie rayanappabha-pudhavineraiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatiyakalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam dasavasasa hassatthitiesu, ukkosenam sagarovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Jaheva asanni. Tesi nam bhamte! Jivanam sariraga kimsamghayani pannatta? Goyama! Chhavvisamghayani pannatta, tam jaha–vairosabhanarayasamghayani, usabhanarayasamghayani java chhevattasamghayani. Sarirogahana jaheva asanninam jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam joyanasahassam. Tesi nam bhamte! Jivanam sariraga kimsamthiya pannatta? Goyama! Chhavvihasamthiya pannatta, tam jaha–samachauramsa, niggoha java humda. Tesi nam bhamte! Jivana kati lessao pannattao? Goyama! Chhallessao pannattao, tam jaha–kanhalessa java sukkalessa. Ditthi tiviha vi. Tinni nana tinni annana bhayanae. Jogo tiviho vi. Sesam jaha asanninam java anubamdho, navaram–pamcha samugghaya adillaga. Vedo tiviho vi, avasesam tam cheva java– Se nam bhamte! Pajjattasamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie rayanappabhae java gatiragatim karejja? Goyama! Bhavadesenam jahannenam do bhavaggahanaim, ukkosenam attha bhavaggahanaim. Kaladesenam jahannenam dasavasasahassaim amto-muhuttamabbhahiyaim, ukkosena chattari sagarovamaim chauhim puvva-kodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Pajjattasamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie jahannakala tthitiesu rayanappabhapudhavine-raiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatiyakalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam dasavasasahassatthitiesu, ukkosena vi dasavasasahassatthitiesu uvavajjejja Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Evam so cheva padhamo gamao niravaseso bhaniyavvo java kaladesenam jahannenam dasavasasahassaim amtomuhuttamabbhahiyaim, ukkosenam chattari puvvakodio chattalisae vasasahassehim abbhahi-yao, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno jahannenam sagarovamatthitiesu, ukkosena vi sagarovama-tthitiesu uvavajjejja avaseso parinamadio bhavadesapajjavasani so cheva padhamagamo neyavvo java kaladesenam jahannenam sagarovamam amtomuhuttamabbhahiyam, ukkosenam chattari sagarovamaim chauhim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Jahannakalatthitiyapajjattasamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie rayanappabhapudhavineraiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam dasavasasahassatthitiesu, ukkosenam sagarovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Avaseso so cheva gamao, navaram–imaim attha nanattaim– 1. Sarirogahana jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam dhanupuhattam 2. Lessao tinni adillao 3. No sammaditthi, michchha ditthi, no sammamichchhaditthi 4. No nani, do annana niyamam 5. Samugghaya adilla tinni 6. Aum 7. Ajjhavasana 8. Anubamdho ya jaheva asanninam. Avasesam jaha padhamagamae java kaladesenam jahannenam dasavasasahassaim amtomuhutta-mabbhahiyaim, ukkosenam chattari sagarovamaim chauhim amtomuhuttehim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno jahannenam dasavasasahassatthitiesu, ukkosena vi dasavasasahassatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Evam so cheva chauttho gamayo niravaseso bhaniyavvo java kaladesenam jahannenam dasavasasahassaim amtomuhuttamabbhahiyaim, ukkosenam chattalisam vasasahassaim chauhim amtomuhuttehim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno jahannenam sagarovamatthitiesu, ukkosena vi sagarovamatthitiesu uvavajjejja Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Evam so cheva chauttho gamao niravaseso bhaniyavvo java kaladesenam jahannenam sagarovamam amtomuhuttamabbhahiyam, ukkosenam chattari sagarovamaim chauhim amtomuhuttehim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Ukkosakalatthitiyapajjattasamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie rayanappabhapudhavineraiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam dasavasasahassatthitiesu, ukkosenam sagarovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Avaseso parinamadio bhavadesa-pajjavasano so cheva padhamagamao neyavvo, navara–thiti jahannenam puvvakodi, ukkosena vi puvvakodi. Evam anubamdho vi, sesam tam cheva. Kaladesenam jahannenam puvvakodi dasahim vasasahassehim abbhahiya, ukkosenam chattari sagarovamaim chauhim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam seve-jja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno jahannenam dasavasasahassatthitiesu, ukkosena vi dasavasasahassatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? So cheva sattamo gamao niravaseso bhaniyavvo java bhava-deso tti. Kaladesenam jahannenam puvvakodi dasahim vasasahassehim abbhahiya, ukkosenam chattari puvvakodio chattalisae vasasaha-ssehim abbhahiyao, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Ukkosakalatthitiyapajjattasamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie ukkosakalatthitiesu rayanappabhapudhavineraiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam sagarovamatthitiesu, ukkosena vi sagarovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? So cheva sattamagamao niravaseso bhaniyavvo java bhavadeso tti. Kaladesenam jahannenam sagarovamam puvvakodie abbhahiyam, ukkosenam chattari sagarovamaim chauhim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Evam ete nava gamaka. Ukkheva-nikkhevao navasu vi jaheva asanninam.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Yadi nairayika samjnyi – pamchendriyatiryamchayonikom mem se akara utpanna hote haim, to kya ve samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi – pamchendriyatiryamchayonikom mem se akara utpanna hote haim, athava asamkhyata varsha ki ayu vale samjnyi – pamchendriyatiryamchayonikom mem se\? Gautama ! Ve samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi – pamchendriyatiryamchayonikom mem se akara utpanna hote haim, asamkhyata varsha ki ayu vale utpanna nahim hote haim. Bhagavan ! Yadi nairayika samkhyatavarsha ki ayu vale samjnyi – tiryamchapamchendriyom mem se akara utpanna hote haim to kya ve jalacharom, sthalacharom athava khecharom mem se akara utpanna hote haim\? Gautama ! Ve jalacharom mem se akara utpanna hote haim, ityadi saba asamjnyi ke samana, yavat paryaptakom mem se akara utpanna hote haim, aparyaptakom mem se nahi; bhagavan ! Paryapta – samkhyeyavarshayushka – samjnyipamchendriyatiryamchayonika jo jiva, narakaprithviyom mem utpanna hone yogya haim, vaha kitani narakaprithviyom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha satom hi narakaprithviyom mem utpanna hota hai, yatha – ratnaprabha, yavat adhahsaptama prithvi. Bhagavan ! Paryapta samkhyatavarshayushka samjnyi – pamchendriyatiryamchayonika, jo ratnaprabhaprithvi ke nairayikom mem utpanna hone yogya hai, vaha kitane kala ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanya dasa hajara varsha ki aura utkrishta eka sagaropama ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva, eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Gautama ! Asamjnyi ke samana samajhana. Bhagavan ! Una jivom ke sharira kisa samhanana vale hote haim\? Gautama ! Chhahom prakara ke, yatha – ve vajrarishabhanarachasamhanana vale, yavat sevarttasamhanana vale hote haim. Sharira ki ava – gahana, asamjnyi ke samana janana. Bhagavan ! Una jivom ke sharira kisa samsthana vale hote haim\? Gautama ! Chhahom prakara ke, yatha – samachaturasra yavat hundaka samsthana. Bhagavan ! Una jivom ke kitani leshyaem kahi gai haim\? Gautama ! Chhahom leshyaem. Yatha – krishnaleshya yavat shuklaleshya. (unamem) drishtiyam tinom hi hoti haim. Tina jnyana tatha tina ajnyana bhajana se hote haim. Yoga tinom hi hote haim. Shesha saba yavat anubandha taka asamjnyi ke samana samajhana. Vishesha yaha hai ki samudghata adi ke pamcha hote haim tatha veda tinom hi hote haim. Shesha purvavat. Yavat – Bhagavan ! Vaha paryapta samkhyeyavarshayushka samjnyi – pamchendriyatiryamchayonika jiva, ratnaprabhaprithvi mem narakarupa mem utpanna ho aura yavat gamanagamana karata hai\? Gautama ! Bhava ki apeksha jaghanya do bhava aura utkrishta atha bhava taka grahana karata hai tatha kala ki apeksha se jaghanya antarmuhurtta adhika dasa hajara varsha aura utkrishta chara purvakoti adhika chara sagaropama kala taka. Bhagavan ! Paryapta samkhyeyavarshayushka samjnyi – pamchendriyatiryamchayonika jiva ratnaprabha – prithvi mem jaghanya sthiti vale nairayikom mem utpanna ho, to kitane kala ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanya aura utkrishta dono dasa hajara varsha ki sthiti vale mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Gautama ! Purvavat prathama gamaka pura, yavat kala ki apeksha jaghanya antarmuhurtta adhika dasa hajara varsha aura utkrishta chalisa hajara varsha adhika chara purvakoti kala taka. Yadi vaha utkrishta kala ki sthiti mem utpanna ho to jaghanya aura utkrishta eka sagaropama ki sthiti vale mem utpanna hota hai. Shesha parimanadi se lekara bhavadesha – paryanta kathana usi purvokta prathama gamaka ke samana, yavat kala ki apeksha se jaghanya antarmuhurtta adhika sagaropama aura utkrishta chara purvakoti adhika chara sagaropama kala taka. Bhagavan ! Jaghanyakala ki sthiti vala, paryapta samkhyeyavarshayushka samjnyi – pamchendriyatiryamchayonika, jo ratnaprabha prithvi mem nairayikarupa mem utpanna hone vala ho, to vaha kitane kala ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya dasa hajara varsha aura utkrishta eka sagaropama ki sthiti vale mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva (eka samaya mem kitane utpanna hote haim\?) gautama ! Prathama gamaka ke samana visheshata ina atha vishayom mem hai, yatha – sharira ki avagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga ki aura utkrishta dhanushaprithaktva ki hoti hai. Inamem adi ki tina leshyaem hoti haim. Ekamatra mithyadrishti hote haim. Inamem niyama se do ajnyana hote haim. Adi ke tina samudghata hote haim. Ayushya, adhyavasaya aura anubandha ka kathana asamjnyi ke samana. Shesha saba prathama gamaka ke samana, yavat kala ki apeksha jaghanya antarmuhurtta adhika dasa hajara varsha aura utkrishta chara antarmuhurtta adhika chara sagaropama kala. Jaghanya kala ki sthiti vala, vahi jiva, jaghanya dasa hajara varsha ki sthiti vale tatha utkrishta bhi dasa hajara varsha ki sthiti valo mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva (eka samaya mem kitane utpanna hote haim\?) ityadi prashna. Gautama ! Yaham sampurna kathana chaturtha gamaka samana, yavat – kala ki apeksha – jaghanya antarmuhurtta adhika 10000 varsha taka aura utkrishta chara anta – rmuhurtta adhika 40000 varsha taka kalayapana karate haim. Vahi utkrishta sthiti vale nairayikom mem utpanna hom, to jaghanya sagaropama sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai aura utkrishta bhi sagaropama sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Yaham purvavat sampurna chaturtha gamaka, yavat – kala ki apeksha se jaghanya antarmuhurtta adhika sagaropama aura utkrishta chara antarmuhurtta adhika chara sagaropama kala yavat gamanagamana karata hai. Bhagavan ! Utkrishta sthiti vala paryapta – samkhyeyavarshayushka samjnyi – pamchendriyatiryamchayonika jiva jo ratnaprabha – prithvi ke nairayikom mem utpanna hone yogya hai, vaha kitane kala ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanyatah dasa hajara varsha ki aura utkrishtatah eka sagaropama ki sthiti valom mem. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Gautama ! Parimana adi se lekara bhavadesha taka ki vaktavyata ke lie prathama gamaka janana. Parantu vishesha yaha hai ki sthiti jaghanya aura utkrishta purvakoti varsha ki hai. Isi prakara anubandha bhi janana. Shesha purvavat tatha kala ki apeksha se jaghanya dasa hajara varsha adhika purvakotivarsha aura utkrishta chara purvakoti adhika chara sagaropama –\. Yadi vaha (utkrishta0 samjnyi – pamchendriyatiryamcha) jaghanya sthiti vale (ratnaprabhaprithvi ke nairayikom) mem utpanna hom, to vaha jaghanya aura utkrishta dasa hajara varsha ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Gautama ! Sampurna saptama gamaka kahana. Kala ki apeksha se, jaghanya dasa hajara varsha adhika purvakotivarsha aura utkrishta chalisa hajara varsha adhika purvakotivarsha. Bhagavan ! Utkrishta kala ki sthiti vala paryapta yavat tiryamchayonika, jo utkrishta sthiti vale nairayikom mem utpanna hone yogya hai, vaha kitane kala ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya aura utkrishta eka sagaropama ki sthiti valom mem. Bhagavan ! Ve jiva (eka samaya mem kitane utpanna hote haim\?) gautama ! Parimana se lekara bhavadesha taka ke lie vahi purvokta saptama gamaka sampurna kahana. Kala ki apeksha se jaghanya purvakoti adhika sagaropama aura utkrishta chara purvakoti adhika chara sagaropama kala. Isa prakara ye nau gamaka hote haim; aura ina nau hi gamakom ka prarambha aura upasamhara asamjnyi jivom ke samana hai.