Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004244 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१८ |
Translated Chapter : |
शतक-१८ |
Section : | उद्देशक-७ केवली | Translated Section : | उद्देशक-७ केवली |
Sutra Number : | 744 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुण सिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई। तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सण्णिसण्णाणं अय-मेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्ग-लत्थिकायं। तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, पोग्गलत्थिकायं। एगं च णं समणे नायपुत्ते जीवत्थिकायं अरूविकायं जीवकायं पन्नवेति। तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अरूविकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवत्थिकायं। एगं च णं समणे नायपुत्ते पोग्गलत्थिकायं रूविकायं अजीवकायं पन्नवेति। से कहमेयं मन्ने एवं? तत्थ णं रायगिहे नगरे मद्दुए नामं समणोवासए परिवसति–अड्ढे जाव बहुजणस्स अपरिभूए, अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कदायि पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहर-माणे जेणेव रायगिहे नगरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव समोसढे परिसा जाव पज्जुवासति। तए णं मद्दुए समणोवासए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए नंदिए पीईमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए ण्हाए जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पादविहा-रचारेणं रायगिहं नगरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छति, निग्गच्छित्ता तेसिं अन्नउत्थियाणं अदूरसामंतेणं वीईवयइ। तए णं ते अन्नउत्थिया मद्दुयं समणोवासयं अदूरसामंतेणं वीईवयमाणं पासंति, पासित्ता अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हं इमा कहा अविप्पकडा, इमं च णं मद्दुए समणोवासए अम्हं अदूरसामंतेणं वीईवयइ, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं मद्दुयं समणोवासयं एयमट्ठं पुच्छित्तए त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स अंतियं एयमट्ठं पडिसुणेति पडिसुणेत्ता जेणेव मद्दुए समणोवासए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मद्दुयं समणोवासयं एवं वदासी–एवं खलु मद्दुया! तव धम्मायरिए धम्मोवदेसए समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेइ, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्गलत्थिकायं। तं चेव जाव रूवि-कायं अजीवकायं पन्नवेइ। से कहमेयं मद्दुया! एवं? तए णं से मद्दुए समणोवासए ते अन्नउत्थिए एवं वयासी–जति कज्जं कज्जति जाणामो-पासामो, अहे कज्जं न कज्जति न जाणामो न पासामो। तए णं ते अन्नउत्थिया मद्दुयं समणोवासयं एवं वयासी–केस णं तुमं मद्दुया! समणोवासगाणं भवसि, जे णं तुमं एयमट्ठं न जाणसि न पाससि? तए णं से मद्दुए समणोवासए ते अन्नउत्थिए एवं वयासी– अत्थि णं आउसो! वाउयाए वाति? हंता अत्थि। तुब्भे णं आउसो! वाउयायस्स वायमाणस्स रूवं पासह? नो इणट्ठे समट्ठे। अत्थि णं आउसो! घाणसहगया पोग्गला? हंता अत्थि। तुब्भे णं आउसो! घाणसहगयाणं पोग्गलाणं रूवं पासह? नो इणट्ठे समट्ठे। अत्थि णं आउसो! अरणिसहगए अगनिकाए? हंता अत्थि। तुब्भे णं आउसो! अरणिसहगयस्स अगनिकायस्स रूवं पासह? नो इणट्ठे समट्ठे। अत्थि णं आउसो! समुद्दस्स पारगयाइं रूवाइं? हंता अत्थि। तुब्भे णं आउसो! समुद्दस्स पारगयाइं रूवाइं पासह? नो इणट्ठे समट्ठे। अत्थि णं आउसो! देवलोगगयाइं रूवाइं? हंता अत्थि। तुब्भे णं आउसो! देवलोगगयाइं रूवाइं पासह? नो इणट्ठे समट्ठे। एवामेव आउसो! अहं वा तुब्भे वा अन्नो वा छउमत्थो जइ जो जं न जाणइ न पासइ तं सव्वं न भवति, एवं भे सुबहुए लोए न भविस्सती ति कट्टु ते अन्नउत्थिए एवं पडिभणइ, पडिभणित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं जाव पज्जुवासति। मद्दुयादी! समणे भगवं महावीरे मद्दुयं समणोवासगं एवं वयासी–सुट्ठु णं मद्दुया! तुमं ते अन्नउत्थिए एवं वयासी, साहु णं मद्दुया! तुमं ते अन्नउत्थिए एवं वयासी, जे णं मद्दुया! अट्ठं वा हेउं वा पसिणं वा वागरणं वा अन्नायं अदिट्ठं अस्सुतं अमुयं अविण्णायं बहुजणमज्झे आघवेति पन्नवेति परूवेति दंसेति निदंसेति उवदंसेति, से णं अरहंताणं आसादणाए वट्टति, अरहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स आसादणाए वट्टति, केवलीणं आसादणाए वट्टति, केवलिपण्णत्तस्स धम्मस्स आसादणाए वट्टति, तं सुट्ठु णं तुमं मद्दुया! ते अन्नउत्थिए एवं वयासी, साहु णं तुमं मद्दुया! ते अन्नउत्थिए एवं वयासी। तए णं मद्दुए समणोवासए समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे नातिदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलियडे पज्जुवासइ। तए णं समणे भगवं महावीरे मद्दुयस्स समणोवासगस्स तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्मं परिकहेइ जाव परिसा पडिगया। तए णं मद्दुए समणोवासए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे पसिणाइं पुच्छति पुच्छित्ता अट्ठाइं परियादियति, परियादिइत्ता उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए। भंतेति! भगवं गोयमे समणे भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–पभू णं भंते! मद्दुए समणोवासए देवानुप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए? नो इणट्ठे समट्ठे। एवं जहेव संखे तहेव अरुणाभे जाव अंतं काहिति। | ||
Sutra Meaning : | उस काल उस समय राजगृह नामक नगर था। (वर्णन)। वहाँ गुणशील नामक उद्यान था। (वर्णन)। यावत् वहाँ एक पृथ्वीशिलापट्टक था। उस गुणशील उद्यान के समीप बहुत – से अन्यतीर्थिक रहते थे, यथा – कालोदायी, शैलोदायी इत्यादि समग्र वर्णन सातवें शतक के अन्यतीर्थिक उद्देशक के अनुसार, यावत् – ‘यह कैसे माना जा सकता है?’ यहाँ तक समझना चाहिए। उस राजगृह नगर में धनाढ्य यावत् किसी से पराभूत न होने वाला, तथा जीवाजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता, यावत् मद्रुक नामक श्रमणोपासक रहता था। तभी अन्यदा किसी दिन पूर्वानुपूर्वीक्रम से विचरण करते हुए श्रमण भगवान महावीर वहाँ पधारे। वे समवसरण में विराजमान हुए। परीषद् यावत् पर्युपासना करने लगी। मद्रुक श्रमणोपासक ने जब श्रमण भगवान महावीर के आगमन</em> का यह वृत्तान्त जाना तो वह हृदय में अतीव हर्षित एवं यावत् सन्तुष्ट हुआ। उसने स्नान किया, यावत् समस्त अलंकारों से विभूषित होकर अपने घर से नीकला। चलते – चलते वह उन अन्यतीर्थिकों के निकट से होकर जाने लगा। तभी उन अन्यतीर्थिकों ने मद्रुक श्रमणोपासक को अपने निकट से जाते हुए देखा। उसे देखते ही उन्होंने एक दूसरे को बुलाकर इस प्रकार कहा – देवानुप्रियो ! यह मद्रुक श्रमणोपासक हमारे निकट से होकर जा रहा है। हमें यह बात अविदित है; अतः देवानुप्रियो ! इस बात को मद्रुक श्रमणोपासक से पूछना हमारे लिए श्रेयस्कर है। फिर उन्होंने मद्रुक श्रमणोपासक से पूछा – हे मद्रुक ! बात ऐसी है कि तुम्हारे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र पाँच अस्तिकायों की प्ररूपणा करते हैं, इत्यादि सारा कथन सातवें शतक के अन्यतीर्थिक उद्देशक के समान समझना, यावत् – ‘हे मद्रुक ! यह बात कैसे मानी जाए ?’ यह सूनकर मद्रुकर श्रमणोपासक ने कहा – यदि वे धर्मा – स्तिकायादि कार्य करते हैं तभी उस पर से हम उन्हें जानते – देखते हैं; यदि वे कार्य न करते तो कारणरूप में हम उन्हें नहीं जानते – देखते। इस पर उन अन्यतीर्थिकों ने मद्रुक श्रमणोपासक से कहा कि – हे मद्रुक ! तू कैसा श्रमणो – पासक है कि तू इस तत्त्व को न जानता है और न प्रत्यक्ष देखता है। तभी मद्रुक श्रमणोपासक ने उन अन्यतीर्थिकों से इस प्रकार कहा – आयुष्मन् ! यह ठीक है न कि हवा बहती है ? हाँ, यह ठीक है। हे आयुष्मन् ! क्या तुम बहती हुई हवा का रूप देखते हो ? यह अर्थ शक्य नहीं है। आयुष्मन् ! नासिका के सहगत गन्ध के पुद्गल हैं न ? हाँ, हैं। आयुष्मन् ! क्या तुमने उन घ्राण सहगत गन्ध के पुद्गलों का रूप देखा है ? यह बात भी शक्य नहीं है। आयुष्मन् ! क्या अरणि की लकड़ी के साथ में रहा हुआ अग्निकाय है ? हाँ, है। आयुष्मन् ! क्या तुम अरणि की लकड़ी में रही हुई उस अग्नि का रूप देखते हो ? यह बात तो शक्य नहीं है। आयुष्मन् ! समुद्र के उस पार रूपी पदार्थ हैं न ? हाँ, हैं। आयुष्मन् ! क्या तुम समुद्र के उस पार रहे हुए पदार्थों के रूप को देखते हो ? यह देखना शक्य नहीं है। आयुष्मन् ! क्या देवलोकों में रूपी पदार्थ हैं ? हाँ, हैं। आयुष्मन् ! क्या तुम देवलोकगत पदार्थों के रूपों को देखते हो ? यह बात शक्य नहीं है। इसी तरह, हे आयुष्मन् ! यदि मैं, तुम, या अन्य कोई भी छद्मस्थ मनुष्य, जिन पदार्थों को नहीं जानता या नहीं देखता, उन सब का अस्तित्व नहीं होता, ऐसा माना जाए तो तुम्हारी मान्यतानुसार लोक में बहुत – से पदार्थों का अस्तित्व ही नहीं रहेगा, यों कहकर मद्रुक श्रमणोपासक ने उन अन्यतीर्थिकों को प्रतिहत कर दिया। उन्हें निरुत्तर करके वह गुणशील उद्यान में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के निकट आया और पाँच प्रकार के अभिगम से श्रमण भगवान महावीर की सेवा में पहुँचकर यावत् पर्युपासना करने लगा। श्रमण भगवान महावीर ने कहा – हे मद्रुक ! तुमने उन अन्यतीर्थिकों को जो उत्तर दिया, वह समीचीन है, मद्रुक तुमने उन अन्यतीर्थिकों को यथार्थ उत्तर दिया है। हे मद्रुक ! जो व्यक्ति बिना जाने, बिना देखे तथा बिना सूने किसी अज्ञात, अदृष्ट, अश्रुत, असम्मत एवं अविज्ञात अर्थ, हेतु, प्रश्न या विवेचन का उत्तर बहुत – से मनुष्यों के बीच में कहता है, बतलाता है यावत् उपदेश देता है, वह अरहन्त भगवंतों की आशातना में प्रवृत्त होता है, वह अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म की, केवलियों की तथा केवलि – प्ररूपित धर्म की भी आशातना करता है। हे मद्रुक ! तुमने उन अन्यतीर्थिकों को इस प्रकार का उत्तर देकर बहुत अच्छा कार्य किया है। मद्रुक ! तुमने बहुत उत्तम कार्य किया, यावत् इस प्रकार का उत्तर दिया। श्रमण भगवान महावीर के इस कथन को सूनकर हृष्ट – तुष्ट यावत् मद्रुक श्रमणोपासक ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना – नमस्कार किया और न अति निकट और न अति दूर बैठकर यावत् पर्युपासना करने लगा। तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर ने मद्रुक श्रमणोपासक तथा उस परीषद् को धर्मकथा कही। यावत् परीषद् लौट गई तत्पश्चात् मद्रुक श्रमणोपासक ने श्रमण भगवान महावीर से यावत् धर्मोपदेश सूना, और उसे अवधारण करके अतीव हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ। फिर उसने भगवान से प्रश्न पूछे, अर्थ जाने, और खड़े होकर श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया यावत् अपने घर लौट गया। गौतम स्वामी ने वन्दन – नमस्कार किया और पूछा – ‘भगवन् ! क्या मद्रुक – श्रमणोपासक आप देवानुप्रिय के पास मुण्डित होकर यावत् प्रव्रज्या ग्रहण करने में समर्थ है ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इत्यादि सब वर्णन शंख श्रमणोपासक के समान। यावत् – अरूणाभ विमान में देवरूप में उत्पन्न होकर, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam rayagihe namam nagare. Gunasilae cheie–vannao java pudhavisilapattao. Tassa nam guna silassa cheiyassa adurasamamte bahave annautthiya parivasamti, tam jaha–kalodai, selodai, sevalodai, udae, namudae, nammudae, annavalae, selavalae, samkhavalae, suhatthi gahavai. Tae nam tesim annautthiyanam annaya kayai egayao sahiyanam samuvagayanam sannivitthanam sannisannanam aya-meyaruve mihokahasamullave samuppajjittha–evam khalu samane nayaputte pamcha atthikae pannaveti, tam jaha–dhammatthikayam java pogga-latthikayam. Tattha nam samane nayaputte chattari atthikae ajivakae pannaveti, tam jaha–dhammatthikayam, adhammatthikayam, agasatthikayam, poggalatthikayam. Egam cha nam samane nayaputte jivatthikayam aruvikayam jivakayam pannaveti. Tattha nam samane nayaputte chattari atthikae aruvikae pannaveti, tam jaha–dhammatthikayam, adhammatthikayam, agasatthikayam, jivatthikayam. Egam cha nam samane nayaputte poggalatthikayam ruvikayam ajivakayam pannaveti. Se kahameyam manne evam? Tattha nam rayagihe nagare maddue namam samanovasae parivasati–addhe java bahujanassa aparibhue, abhigayajivajive java viharai. Tae nam samane bhagavam mahavire annaya kadayi puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane suhamsuhenam vihara-mane jeneva rayagihe nagare jeneva gunasilae cheie teneva samosadhe parisa java pajjuvasati. Tae nam maddue samanovasae imise kahae laddhatthe samane hatthatutthachittamanamdie namdie piimane paramasomanassie harisavasavisappamanahiyae nhae java appamahagghabharanalamkiyasarire sayao gihao padinikkhamai, padinikkhamitta padaviha-racharenam rayagiham nagaram majjhammajjhenam niggachchhati, niggachchhitta tesim annautthiyanam adurasamamtenam viivayai. Tae nam te annautthiya madduyam samanovasayam adurasamamtenam viivayamanam pasamti, pasitta annamannam saddavemti, saddavetta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Amham ima kaha avippakada, imam cha nam maddue samanovasae amham adurasamamtenam viivayai, tam seyam khalu devanuppiya! Amham madduyam samanovasayam eyamattham puchchhittae tti kattu annamannassa amtiyam eyamattham padisuneti padisunetta jeneva maddue samanovasae teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta madduyam samanovasayam evam vadasi–evam khalu madduya! Tava dhammayarie dhammovadesae samane nayaputte pamcha atthikae pannavei, tam jaha–dhammatthikayam java poggalatthikayam. Tam cheva java ruvi-kayam ajivakayam pannavei. Se kahameyam madduya! Evam? Tae nam se maddue samanovasae te annautthie evam vayasi–jati kajjam kajjati janamo-pasamo, ahe kajjam na kajjati na janamo na pasamo. Tae nam te annautthiya madduyam samanovasayam evam vayasi–kesa nam tumam madduya! Samanovasaganam bhavasi, je nam tumam eyamattham na janasi na pasasi? Tae nam se maddue samanovasae te annautthie evam vayasi– Atthi nam auso! Vauyae vati? Hamta atthi. Tubbhe nam auso! Vauyayassa vayamanassa ruvam pasaha? No inatthe samatthe. Atthi nam auso! Ghanasahagaya poggala? Hamta atthi. Tubbhe nam auso! Ghanasahagayanam poggalanam ruvam pasaha? No inatthe samatthe. Atthi nam auso! Aranisahagae aganikae? Hamta atthi. Tubbhe nam auso! Aranisahagayassa aganikayassa ruvam pasaha? No inatthe samatthe. Atthi nam auso! Samuddassa paragayaim ruvaim? Hamta atthi. Tubbhe nam auso! Samuddassa paragayaim ruvaim pasaha? No inatthe samatthe. Atthi nam auso! Devalogagayaim ruvaim? Hamta atthi. Tubbhe nam auso! Devalogagayaim ruvaim pasaha? No inatthe samatthe. Evameva auso! Aham va tubbhe va anno va chhaumattho jai jo jam na janai na pasai tam savvam na bhavati, evam bhe subahue loe na bhavissati ti kattu te annautthie evam padibhanai, padibhanitta jeneva gunasilae cheie, jeneva samane bhagavam mahavire, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram pamchavihenam abhigamenam java pajjuvasati. Madduyadi! Samane bhagavam mahavire madduyam samanovasagam evam vayasi–sutthu nam madduya! Tumam te annautthie evam vayasi, sahu nam madduya! Tumam te annautthie evam vayasi, je nam madduya! Attham va heum va pasinam va vagaranam va annayam adittham assutam amuyam avinnayam bahujanamajjhe aghaveti pannaveti paruveti damseti nidamseti uvadamseti, se nam arahamtanam asadanae vattati, arahamtapannattassa dhammassa asadanae vattati, kevalinam asadanae vattati, kevalipannattassa dhammassa asadanae vattati, tam sutthu nam tumam madduya! Te annautthie evam vayasi, sahu nam tumam madduya! Te annautthie evam vayasi. Tae nam maddue samanovasae samanenam bhagavaya mahavirenam evam vutte samane hatthatutthe samanam bhagavam mahaviram vamdati namamsati, vamditta namamsitta nachchasanne natidure sussusamane namamsamane abhimuhe vinaenam pamjaliyade pajjuvasai. Tae nam samane bhagavam mahavire madduyassa samanovasagassa tise ya mahatimahaliyae parisae dhammam parikahei java parisa padigaya. Tae nam maddue samanovasae samanassa bhagavao mahavirassa amtie dhammam sochcha nisamma hatthatutthe pasinaim puchchhati puchchhitta atthaim pariyadiyati, pariyadiitta utthae utthei, utthetta samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta jameva disam paubbhue tameva disam padigae. Bhamteti! Bhagavam goyame samane bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–pabhu nam bhamte! Maddue samanovasae devanuppiyanam amtiyam mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaittae? No inatthe samatthe. Evam jaheva samkhe taheva arunabhe java amtam kahiti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala usa samaya rajagriha namaka nagara tha. (varnana). Vaham gunashila namaka udyana tha. (varnana). Yavat vaham eka prithvishilapattaka tha. Usa gunashila udyana ke samipa bahuta – se anyatirthika rahate the, yatha – kalodayi, shailodayi ityadi samagra varnana satavem shataka ke anyatirthika uddeshaka ke anusara, yavat – ‘yaha kaise mana ja sakata hai?’ yaham taka samajhana chahie. Usa rajagriha nagara mem dhanadhya yavat kisi se parabhuta na hone vala, tatha jivajivadi tattvom ka jnyata, yavat madruka namaka shramanopasaka rahata tha. Tabhi anyada kisi dina purvanupurvikrama se vicharana karate hue shramana bhagavana mahavira vaham padhare. Ve samavasarana mem virajamana hue. Parishad yavat paryupasana karane lagi. Madruka shramanopasaka ne jaba shramana bhagavana mahavira ke agamana ka yaha vrittanta jana to vaha hridaya mem ativa harshita evam yavat santushta hua. Usane snana kiya, yavat samasta alamkarom se vibhushita hokara apane ghara se nikala. Chalate – chalate vaha una anyatirthikom ke nikata se hokara jane laga. Tabhi una anyatirthikom ne madruka shramanopasaka ko apane nikata se jate hue dekha. Use dekhate hi unhomne eka dusare ko bulakara isa prakara kaha – devanupriyo ! Yaha madruka shramanopasaka hamare nikata se hokara ja raha hai. Hamem yaha bata avidita hai; atah devanupriyo ! Isa bata ko madruka shramanopasaka se puchhana hamare lie shreyaskara hai. Phira unhomne madruka shramanopasaka se puchha – he madruka ! Bata aisi hai ki tumhare dharmacharya dharmopadeshaka shramana jnyataputra pamcha astikayom ki prarupana karate haim, ityadi sara kathana satavem shataka ke anyatirthika uddeshaka ke samana samajhana, yavat – ‘he madruka ! Yaha bata kaise mani jae\?’ yaha sunakara madrukara shramanopasaka ne kaha – yadi ve dharma – stikayadi karya karate haim tabhi usa para se hama unhem janate – dekhate haim; yadi ve karya na karate to karanarupa mem hama unhem nahim janate – dekhate. Isa para una anyatirthikom ne madruka shramanopasaka se kaha ki – he madruka ! Tu kaisa shramano – pasaka hai ki tu isa tattva ko na janata hai aura na pratyaksha dekhata hai. Tabhi madruka shramanopasaka ne una anyatirthikom se isa prakara kaha – ayushman ! Yaha thika hai na ki hava bahati hai\? Ham, yaha thika hai. He ayushman ! Kya tuma bahati hui hava ka rupa dekhate ho\? Yaha artha shakya nahim hai. Ayushman ! Nasika ke sahagata gandha ke pudgala haim na\? Ham, haim. Ayushman ! Kya tumane una ghrana sahagata gandha ke pudgalom ka rupa dekha hai\? Yaha bata bhi shakya nahim hai. Ayushman ! Kya arani ki lakari ke satha mem raha hua agnikaya hai\? Ham, hai. Ayushman ! Kya tuma arani ki lakari mem rahi hui usa agni ka rupa dekhate ho\? Yaha bata to shakya nahim hai. Ayushman ! Samudra ke usa para rupi padartha haim na\? Ham, haim. Ayushman ! Kya tuma samudra ke usa para rahe hue padarthom ke rupa ko dekhate ho\? Yaha dekhana shakya nahim hai. Ayushman ! Kya devalokom mem rupi padartha haim\? Ham, haim. Ayushman ! Kya tuma devalokagata padarthom ke rupom ko dekhate ho\? Yaha bata shakya nahim hai. Isi taraha, he ayushman ! Yadi maim, tuma, ya anya koi bhi chhadmastha manushya, jina padarthom ko nahim janata ya nahim dekhata, una saba ka astitva nahim hota, aisa mana jae to tumhari manyatanusara loka mem bahuta – se padarthom ka astitva hi nahim rahega, yom kahakara madruka shramanopasaka ne una anyatirthikom ko pratihata kara diya. Unhem niruttara karake vaha gunashila udyana mem shramana bhagavana mahavira svami ke nikata aya aura pamcha prakara ke abhigama se shramana bhagavana mahavira ki seva mem pahumchakara yavat paryupasana karane laga. Shramana bhagavana mahavira ne kaha – he madruka ! Tumane una anyatirthikom ko jo uttara diya, vaha samichina hai, madruka tumane una anyatirthikom ko yathartha uttara diya hai. He madruka ! Jo vyakti bina jane, bina dekhe tatha bina sune kisi ajnyata, adrishta, ashruta, asammata evam avijnyata artha, hetu, prashna ya vivechana ka uttara bahuta – se manushyom ke bicha mem kahata hai, batalata hai yavat upadesha deta hai, vaha arahanta bhagavamtom ki ashatana mem pravritta hota hai, vaha arhatprajnyapta dharma ki, kevaliyom ki tatha kevali – prarupita dharma ki bhi ashatana karata hai. He madruka ! Tumane una anyatirthikom ko isa prakara ka uttara dekara bahuta achchha karya kiya hai. Madruka ! Tumane bahuta uttama karya kiya, yavat isa prakara ka uttara diya. Shramana bhagavana mahavira ke isa kathana ko sunakara hrishta – tushta yavat madruka shramanopasaka ne shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya aura na ati nikata aura na ati dura baithakara yavat paryupasana karane laga. Tadanantara shramana bhagavana mahavira ne madruka shramanopasaka tatha usa parishad ko dharmakatha kahi. Yavat parishad lauta gai tatpashchat madruka shramanopasaka ne shramana bhagavana mahavira se yavat dharmopadesha suna, aura use avadharana karake ativa harshita evam santushta hua. Phira usane bhagavana se prashna puchhe, artha jane, aura khare hokara shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya yavat apane ghara lauta gaya. Gautama svami ne vandana – namaskara kiya aura puchha – ‘bhagavan ! Kya madruka – shramanopasaka apa devanupriya ke pasa mundita hokara yavat pravrajya grahana karane mem samartha hai\? He gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Ityadi saba varnana shamkha shramanopasaka ke samana. Yavat – arunabha vimana mem devarupa mem utpanna hokara, yavat sarva duhkhom ka anta karega |