Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004148
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-१५ गोशालक

Translated Chapter :

शतक-१५ गोशालक

Section : Translated Section :
Sutra Number : 648 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] जावं च णं आनंदे थेरे गोयमाईणं समणाणं निग्गंथाणं एयमट्ठं परिकहेइ, तावं च णं से गोसाले मंखलिपुत्ते हाला हलाए कुंभकारीए कुंभकारावणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता आजीविय-संघसंपरिवुडे महया अमरिसं वहमाणे सिग्घं तुरियं सावत्थिं नगरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवाग-च्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वदासी–सुट्ठु णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी, साहू णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी–गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी, गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी। जे णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तव धम्मंतेवासी से णं सुक्के सुक्काभिजाइए भवित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववन्ने, अहण्णं उदाई नामं कुंडियायणीए अज्जुणस्स गोयमपुत्तस्स सरीरगं विप्पजहामि, विप्पजहित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं अनुप्पविसामि, अनुप्पविसित्ता इमं सत्तमं पउट्टपरिहारं परिहरामि। जे वि आइं आउसो कासवा! अम्हं समयंसि केइ सिज्झिंसु वा सिज्झंति वा सिज्झिस्संति वा सव्वे ते चउरासीतिं महाकप्पस-यसहस्साइं, सत्त दिव्वे, सत्त संजूहे, सत्त सण्णिगब्भे, सत्त पउट्टपरिहारे, पंच कम्मणि सयसहस्साइं सट्ठिं च सहस्साइं छच्च सए तिन्नि य कम्मंसे अनुपुव्वेणं खवइत्ता तओ पच्छा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा। से जहा वा गंगा महानदी जओ पवूढा, जहिं वा पज्जुवत्थिया, एस णं अद्धा पंचजोयणसयाइं आयामेणं, अद्धजोयणं विक्खं-भेणं, पंच धनुसयाइं उव्वेहेणं। एएणं गंगापमाणेणं सत्त गंगाओ सा एगा महागंगा। सत्त महागगाआ सा एगा सादीणगंगा। सत्त-सादीनगंगाओ सा एगा मदुगंगा। सत्त मदुगंगाओ सा एगा लोहियगंगा। सत्त लोहियगंगाओ सा एगा आवतीगंगा। सत्त आवतीगंगाओ सा एगा परमावती। एवामेव सपुव्वावरेणं एगं गंगासयसहस्सं सत्तर सहस्सा छच्च अगुणपन्नं गंगासया भवंतीति मक्खाया। तासिं दुविहे उद्धारे पन्नत्ते, तं जहा–सुहुमबोंदिकलेवरे चेव, बायरबोंदिकलेवरे चेव। तत्थ णं जे से सुहुमबोंदिकलेवरे से ठप्पे। तत्थ णं जे से बायरबोंदिकलेवरे तओ णं वाससए गए, वाससए गए एगमेगं गंगाबालुयं अवहाय जावतिएणं कालेणं से कोट्ठे खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवति सेत्तं सरे सरप्पमाणे। एएणं सरप्पमाणेणं तिन्नि सरसयसाहस्सीओ से एगे महाकप्पे, चउरासीतिं महाकप्पसयसहस्साइं से एगे महामाणसे। १. अनंताओ संजूहाओ जीवे चयं चइत्ता उवरिल्ले माणसे संजूहे देवे उववज्जति। से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ, विहरित्ता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता पढमे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाति। २. से णं तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता मज्झिल्ले माणसे संजूहे देवे उववज्जइ। से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ, विहरित्ता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता दोच्चे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाति ३. से णं तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता हेट्ठिल्ले माणसे संजूहे देवे उववज्जइ। से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाइं जाव चइत्ता तच्चे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाति। ४. से णं तओहिंतो जाव उव्वट्टित्ता उवरिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जइ। से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाइं जाव चइत्ता चउत्थे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाति। ५. से णं तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता मज्झिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जइ। से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाइं जाव चइत्ता पंचमे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाति। ६. से णं तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता हिट्ठिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जइ। से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाइं जाव चइत्ता छट्ठे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाति। ७. से णं तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता–बंभलोगे नामं से कप्पे पन्नत्ते–पाईणपडीणायते उदीणदाहिणविच्छिण्णे, जहा ठाण-पदे जाव पंच वडेंसगा पन्नत्ता, तं जहा–असोगवडेंसए जाव पडिरूवा–से णं तत्थ देवे उववज्जइ। से णं तत्थ दस सागरोवमाइं दिव्वाइं भोगभोगाइं जाव चइत्ता सत्तमे सण्णिगब्भे जीवे पच्चायाति। से णं तत्थ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाणं राइंदियाणं वीतिक्कंताणं सुकुमाल-गभद्दलए मिउ-कुंडलकुंचिय-केसए मट्ठगंडतल-कण्णपीढए देवकुमारसप्पभए दारए पयाति। से णं अहं कासवा! तए णं अहं आउसो कासवा! कोमारियपव्वज्जाए कोमारएणं बंभचेरवासेनं अविद्धकण्णए चेव संखाणं पडिलभामि, पडिलभित्ता इमे सत्त पउट्टपरिहारे परिहरामि, तं जहा– १. एणेज्जस्स २. मल्लरामस्स ३. मंडियस्स ४. रोहस्स ५. भारद्दाइस्स ६. अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स ७. गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स। तत्थ णं जे से पढमे पउट्टपरिहारे से णं रायगिहस्स नगरस्स बहिया मंडिकुच्छिंसि चेइयंसि उदाइस्स कुंडियायणस्स सरीरं विप्पजहामि, विप्पजहित्ता एणेज्जगस्स सरीरगं अनुप्पविसामि, अनुप्पविसित्ता बावीसं वासाइं पढमं पउट्टपरिहारं परिहरामि। तत्थ णं जे से दोच्चे पउट्टपरिहारे से णं उद्दंडपुरस्स नगरस्स बहिया चंदोयरणंसि चेइयंसि एणेज्जगस्स सरीरगं विप्पजहामि, विप्पजहित्ता मल्लरामस्स सरीरगं अनुप्पविसामि, अनुप्प-विसित्ता एकवीसं वासाइं दोच्चं पउट्टपरिहारं परिहरामि। तत्थ णं जे से तच्चे पउट्टपरिहारे से णं चंपाए नगरीए बहिया अंगमंदिरंसि चेइयंसि मल्लरामस्स सरीरगं विप्पजहामि, विप्पजहित्ता मंडियस्स सरीरगं अनुप्पविसामि, अनुप्पविसित्ता वीसं वासाइं तच्चं पउट्टपरिहारं परिहरामि। तत्थ णं जे से चउत्थे पउट्टपरिहारे से णं वाणारसीए नगरीए बहिया काममहावणंसि चेइयंसि मंडियस्स सरीरगं विप्पजहामि, विप्पजहित्ता रोहस्स सरीरगं अनुप्पविसामि, अनुप्पविसित्ता एकूणवीसं वासाइं चउत्थं पउट्टपरिहारं परिहरामि। तत्थ णं जे से पंचमे पउट्टपरिहारे से णं आलभियाए नगरीए बहिया पत्तकालगंसि चेइयंसि रोहस्स सरीरगं विप्पजहामि, विप्पजहित्ता भारद्दाइस्स सरीरगं अनुप्पविसामि, अनुप्पविसित्ता अट्ठारस वासाइं पंचमं पउट्टपरिहारं परिहरामि। तत्थ णं जे से छट्ठे पउट्टपरिहारे से णं वेसालीए नगरीए बहिया कोंडियायणंसि चेइयंसि भारद्दाइस्स सरीरं विप्पजहामि, विप्प जहित्ता अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स सरीरगं अनुप्पविसामि, अनुप्पविसित्ता सत्तरस वासाइं छट्ठं पउट्टपरिहारं परिहरामि। तत्थ णं जे से सत्तमे पउट्टपरिहारे से णं इहेव सावत्थीए नगरीए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अज्जुणगस्स गोयम-पुत्तस्स सरीरगं विप्पजहामि, विप्पजहित्ता गोसालस्स मंखलि-पुत्तस्स सरीरगं अलं थिरं धुवं धारणिज्जं सीयसहं उण्हसहं खुहासहं विविहदंसमसगपरीसहो-वसग्गसहं थिरसंघयणं ति कट्टु तं अनुप्पविसामि, अनुप्पविसित्ता सोलस वासाइं इमं सत्तमं पउट्टपरिहारं परिहरामि। एवामेव आउसो कासवा! एगेणं तेत्तीसेनं वाससएणं सत्त पउट्टपरिहारा परिहरिया भवंतीति मक्खाया, तं सुट्ठु णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी–साहू णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी–गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी, गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी।
Sutra Meaning : जब आनन्द स्थविर, गौतम आदि श्रमणनिर्ग्रन्थों को भगवान का आदेश कह रहे थे, तभी मंखलिपुत्र गोशालक आजीवकसंघ से परिवृत्त होकर हालाहला कुम्भकारी की दुकान से नीकलकर अत्यन्त रोष धारण किए शीघ्र एवं त्वरित गति से श्रावस्ती नगरी के मध्य में होकर कोष्ठक उद्यान में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास आया। फिर श्रमण भगवान महावीर स्वामी से न अति दूर और न अति निकट खड़ा रहकर उन्हें इस प्रकार कहने लगा – आयुष्मन्‌ काश्यप ! तुम मेरे विषय में अच्छा कहते हो ! हे आयुष्मन्‌ ! तुम मेरे प्रति ठीक कहते हो कि मंखलिपुत्र गोशालक मेरा धर्मान्तेवासी है, गोशालक मंखलिपुत्र मेरा धर्म – शिष्य है। जो मंखलिपुत्र गोशालक तुम्हारा धर्मान्तेवासी था, वह तो शुक्ल और शुक्लाभिजात होकर काल के समय काल करके किसी देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हो चूका है। मैं तो कौण्डिन्यायन – गोत्रीय उदायी हूँ। मैंने गौतम पुत्र अर्जुन के शरीर का त्याग किया, फिर मंखलिपुत्र गोशालक के शरीर में प्रवेश किया। मंखलिपुत्र गोशालक के शरीर में प्रवेश करके मैंने यह सातवां परिवृत्त – परिहार किया है। हे आयुष्मन्‌ काश्यप ! हमारे सिद्धान्त के अनुसार जो भी सिद्ध हुए हैं, सिद्ध होते हैं, अथवा सिद्ध होंगे, वे सब (पहले) चौरासी लाख महाकल्प, सात दिव्य, सात संयूथनिकाय, सात संज्ञीगर्भ सात परिवृत्त – परिहार और पाँच लाख, साठ हजार छह – सौ तीन कर्मों के भेदों को अनुक्रम से क्षय करके तत्पश्चात्‌ सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, निर्वाण प्राप्त करते हैं और समस्त दुःखों का अन्त करते हैं। भूतकाल में ऐसा किया है, वर्तमान में करते हैं और भविष्य में ऐसा करेंगे। जिस प्रकारी गंगा महानदी जहाँ से नीकलती है, और जहाँ समाप्त होती है; उसका वह मार्ग लम्बाई में ५०० योजन है और चौड़ाई में आधा योजन है तथा गहराई में पाँच – सौ धनुष हैं। उस गंगा के प्रमाण वाली सात गंगाएं मिलकर एक महागंगा होती है। सात महागंगाएं मिलकर एक सादीनगंगा होती है। सात सादीन – गंगाएं मिलकर एक मृतगंगा होती है। सात मृतगंगाएं मिलकर एक लोहितगंगा होती है। सात लोहितगंगाएं मिल कर एक अवन्तीगंगा होती है। सात अवन्तीगंगाएं मिलकर परमावतीगंगा होती है। इस प्रकार पूर्वापर मिलकर कुल एक लाख, सत्रह हजार, छह सौ उनचास गंगा नदियाँ हैं। उन (गंगानदियों के बालुकाकण) का दो प्रकार का उद्धार कहा गया है। यथा – सूक्ष्मबोन्दिकलेवररूप और बादर – बोन्दि – कलेवररूप। उनमें से जो सूक्ष्मबोंदि – कलेवररूप उद्धार है, वह स्थाप्य है। उनमें से जो बादर – बोंदिक – लेवररूप उद्धार हैं, उनमें से सौ – सौ वर्षों में गंगा की बालू का एक – एक कण नीकाला जाए और जितने काल में वह गंगा – समूहरूप कोठा समाप्त हो जाए, रजरहित निर्लेप और निष्ठित हो जाए, तब एक ‘शरप्रमाण’ काल कहलाता है। इस प्रकार के तीन लाख शरप्रमाण काल द्वारा एक महाकल्प होता है। चौरासी लाख महाकल्पों का एक महामानस होता है। अनन्त संयूथ से जीव च्यवकर संयूथ – देवभव में उपरितन मानस द्वारा उत्पन्न होता है। वह वहाँ दिव्यभोगों का उपभोग करता रहता है। उस देवलोक का आयुष्य – क्षय, देवभव का क्षय और देवस्थिति का क्षय होने पर तुरन्त च्यवकर प्रथम संज्ञीगर्भ जीव में उत्पन्न होता है। फिर वह वहाँ से अन्तररहित मरकर मध्यम मानस द्वारा संयूथ देवनिकाय में उत्पन्न होता है। वह वहाँ दिव्य भोगों का उपभोग करता है। वहाँ से देवलोक का आयुष्य, भव और स्थिति का क्षय होने पर दूसरी बार फिर संज्ञीगर्भ में जन्म लेता है। वहाँ से तुरन्त मरकर अधस्तन मानस आयुष्य द्वारा संयूथ में उत्पन्न होता है। वह वहाँ दिव्य भोग भोगकर यावत्‌ वहाँ से च्यवकर तीसरे संज्ञीगर्भ में उत्पन्न होता है। फिर वह वहाँ से मरकर उपरितन मानसोत्तर आयुष्य द्वारा संयूथ देवनिकाय में उत्पन्न होता है। वहाँ वह दिव्यभोग भोगकर यावत्‌ चतुर्थ संज्ञीगर्भ में जन्म लेता है। वहाँ से मरकर तुरन्त मध्यम मानसोत्तर आयुष्य द्वारा संयूथ में उत्पन्न होता है वहाँ वह दिव्यभोगों का उपभोग कर यावत्‌ वहाँ से च्यवकर पाँचवें संज्ञीगर्भ में उत्पन्न होता है। वहाँ से मरकर तुरन्त अधस्तन मानसोत्तर आयुष्य द्वारा संयूथ – देव में उत्पन्न होता है। वह वहाँ दिव्य भोगों का उपभोग करके यावत्‌ च्यवकर छठे संज्ञीगर्भ जीव में जन्म लेता है। वह वहाँ से मरकर तुरन्त ब्रह्मलोक नामक कल्प में देवरूप में उत्पन्न होता है, वह पूर्व – पश्चिम में लम्बा है, उत्तर – दक्षिण में चाड़ा है। यावत्‌ – उसमें पाँच अवतंसक विमान कहे गए हैं। यथा – अशोकावतंसक, यावत्‌ वे प्रतिरूप हैं। इन्हीं अवतंसकों में वह देवरूप में उत्पन्न होता है। वह वहाँ दस सागरोपम तक दिव्य भोगों का उपभोग कर यावत्‌ वहाँ से च्यवकर सातवें संज्ञीगर्भ जीव में उत्पन्न होता है। वहाँ नौ मास और साढ़े सात रात्रि – दिवस यावत्‌ व्यतीत होने पर सुकुमाल, भद्र, मृदु तथा कुण्डल के समान कुंचित केश वाला, कान के आभूषणों से जिसके कपोलस्थल चमक रहे थे, ऐसे देवकुमारसम कान्ति वाले बालक को जन्म दिया। हे काश्यप ! वही मैं हूँ। कुमारावस्था में ली हुई प्रव्रज्या से, कुमारावस्था में ब्रह्मचर्यवास से जब मैं अविद्धकर्म था, तभी मुझे प्रव्रज्या ग्रहण करने की बुद्धि प्राप्त हुई। फिर मैंने सात परिवृत्त – परिहार में संचार किया, यथा – ऐणेयक, मल्लरामक, मण्डिक, रौह, भारद्वाज, गौतमपुत्र अर्जुनक और मंखलिपुत्र गोशालक के (शरीर में प्रवेश किया)। इनमें से जो प्रथम परिवृत्त – परिहार हुआ, वह राजगृह नगर के बाहर मंडिककुक्षि नामक उद्यान में, कुण्डि – यायण गोत्रीय उदायी के शरीर का त्याग करके ऐणेयक के शरीर में प्रवेश किया। वहाँ मैंने बाईस वर्ष तक प्रथम परिवृत्त – परिहार किया। इनमें से जो द्वीतिय परिवृत्त – परिहार हुआ, वह उद्दण्डपुर नगर के बाहर चन्द्रावतरण नामक उद्यान में मैंने ऐणेयक के शरीर का त्याग किया और मल्लरामक के शरीर में प्रवेश किया। वहाँ मैंने इक्कीस वर्ष तक दूसरे परिवृत्त – परिहार का उपभोग किया। इनमें से जो तृतीय परिवृत्त – परिहार हुआ, वह चम्पानगरी के बाहर अंगमंदिर नामक उद्यान में मल्लरामक के शरीर का परित्याग किया। फिर मैंने मण्डिक के शरीर में प्रवेश किया। वहाँ मैंने बीस वर्ष तक तृतीय परिवृत्त – परिहार का उपभोग किया। इनमें से जो चतुर्थ परिवृत्त – परिहार हुआ, वह वाराणसी नगरी के बाहर काम – महावन नामक उद्यान के मण्डिक के शरीर का मैंने त्याग किया और रोहक के शरीर में प्रवेश किया। वहाँ मैंने उन्नीस वर्ष तक चतुर्थ परिवृत्त – परिहार का उपभोग किया। उनमें से जो पंचम परिवृत्त – परिहार हुआ, वह आलभिका नगरी के बाहर प्राप्तकालक नाम के उद्यान में हुआ। उसमें मैं रोहक के शरीर का परित्याग करके भारद्वाज के शरीर में प्रविष्ट हुआ। वहाँ अठारह वर्ष तक पाँचवे परिवृत्त – परिहार का उपभोग किया। उनमें से जो छठा परिवृत्त – परिहार हुआ, उसमें मैंने वैशाली नगर के बाहर कुण्डियायन नामक उद्यान में भारद्वाज के शरीर का परित्याग किया और गौतमपुत्र अर्जुनक के शरीर में प्रवेश किया। वहाँ मैंने सत्रह वर्ष तक छठे परिवृत्त – परिहार का उपभोग किया। उनमें से जो सातवाँ परिवृत्त – परिहार हुआ, उसमें मैंने इसी श्रावस्ती नगरी में हालाहला कुम्भकारी की बर्तनों की दुकान में गौतमपुत्र अर्जुनक के शरीर का परित्याग किया। फिर मैंने समर्थ, स्थिर, ध्रुव, धारण करने योग्य, शीतसहिष्णु, उष्णसहिष्णु, क्षुधासहिष्णु, विविध दंश – मशकादिपरीषह – उपसर्ग – सहनशील, एवं स्थिर संहनन वाला जानकर, मंखलिपुत्र गोशालक के उस शरीर में प्रवेश किया। उसमें प्रवेश करके मैं सोलह वर्ष तक इस सातवे परिवृत्त – परिहार का उपभोग करता हूँ। इसी प्रकार हे आयुष्मन्‌ काश्यप ! इन १३३ वर्षों में मेरे ये सात परिवृत्त – परिहार हुए हैं, ऐसा मैंने कहा था। इसलिए आयुष्मन्‌ काश्यप ! तुम ठीक कहते हो कि मंखलिपुत्र गोशालक मेरा धर्मान्तेवासी है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] javam cha nam anamde there goyamainam samananam niggamthanam eyamattham parikahei, tavam cha nam se gosale mamkhaliputte hala halae kumbhakarie kumbhakaravanao padinikkhamai, padinikkhamitta ajiviya-samghasamparivude mahaya amarisam vahamane siggham turiyam savatthim nagarim majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva kotthae cheie, jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvaga-chchhitta samanassa bhagavao mahavirassa adurasamamte thichcha samanam bhagavam mahaviram evam vadasi–sutthu nam auso kasava! Mamam evam vayasi, sahu nam auso kasava! Mamam evam vayasi–gosale mamkhaliputte mamam dhammamtevasi, gosale mamkhaliputte mamam dhammamtevasi. Je nam se gosale mamkhaliputte tava dhammamtevasi se nam sukke sukkabhijaie bhavitta kalamase kalam kichcha annayaresu su devaloesu devattae uvavanne, ahannam udai namam kumdiyayanie ajjunassa goyamaputtassa sariragam vippajahami, vippajahitta gosalassa mamkhaliputtassa sariragam anuppavisami, anuppavisitta imam sattamam pauttapariharam pariharami. Je vi aim auso kasava! Amham samayamsi kei sijjhimsu va sijjhamti va sijjhissamti va savve te chaurasitim mahakappasa-yasahassaim, satta divve, satta samjuhe, satta sannigabbhe, satta pauttaparihare, pamcha kammani sayasahassaim satthim cha sahassaim chhachcha sae tinni ya kammamse anupuvvenam khavaitta tao pachchha sijjhamti bujjhamti muchchamti parinivvayamti savvadukkhanamamtam karemsu va karemti va karissamti va. Se jaha va gamga mahanadi jao pavudha, jahim va pajjuvatthiya, esa nam addha pamchajoyanasayaim ayamenam, addhajoyanam vikkham-bhenam, pamcha dhanusayaim uvvehenam. Eenam gamgapamanenam satta gamgao sa ega mahagamga. Satta mahagagaa sa ega sadinagamga. Satta-sadinagamgao sa ega madugamga. Satta madugamgao sa ega lohiyagamga. Satta lohiyagamgao sa ega avatigamga. Satta avatigamgao sa ega paramavati. Evameva sapuvvavarenam egam gamgasayasahassam sattara sahassa chhachcha agunapannam gamgasaya bhavamtiti makkhaya. Tasim duvihe uddhare pannatte, tam jaha–suhumabomdikalevare cheva, bayarabomdikalevare cheva. Tattha nam je se suhumabomdikalevare se thappe. Tattha nam je se bayarabomdikalevare tao nam vasasae gae, vasasae gae egamegam gamgabaluyam avahaya javatienam kalenam se kotthe khine nirae nilleve nitthie bhavati settam sare sarappamane. Eenam sarappamanenam tinni sarasayasahassio se ege mahakappe, chaurasitim mahakappasayasahassaim se ege mahamanase. 1. Anamtao samjuhao jive chayam chaitta uvarille manase samjuhe deve uvavajjati. Se nam tattha divvaim bhogabhogaim bhumjamane viharai, viharitta tao devalogao aukkhaenam bhavakkhaenam thiikkhaenam anamtaram chayam chaitta padhame sannigabbhe jive pachchayati. 2. Se nam taohimto anamtaram uvvattitta majjhille manase samjuhe deve uvavajjai. Se nam tattha divvaim bhogabhogaim bhumjamane viharai, viharitta tao devalogao aukkhaenam bhavakkhaenam thiikkhaenam anamtaram chayam chaitta dochche sannigabbhe jive pachchayati 3. Se nam taohimto anamtaram uvvattitta hetthille manase samjuhe deve uvavajjai. Se nam tattha divvaim bhogabhogaim java chaitta tachche sannigabbhe jive pachchayati. 4. Se nam taohimto java uvvattitta uvarille manusuttare samjuhe deve uvavajjai. Se nam tattha divvaim bhogabhogaim java chaitta chautthe sannigabbhe jive pachchayati. 5. Se nam taohimto anamtaram uvvattitta majjhille manusuttare samjuhe deve uvavajjai. Se nam tattha divvaim bhogabhogaim java chaitta pamchame sannigabbhe jive pachchayati. 6. Se nam taohimto anamtaram uvvattitta hitthille manusuttare samjuhe deve uvavajjai. Se nam tattha divvaim bhogabhogaim java chaitta chhatthe sannigabbhe jive pachchayati. 7. Se nam taohimto anamtaram uvvattitta–bambhaloge namam se kappe pannatte–painapadinayate udinadahinavichchhinne, jaha thana-pade java pamcha vademsaga pannatta, tam jaha–asogavademsae java padiruva–se nam tattha deve uvavajjai. Se nam tattha dasa sagarovamaim divvaim bhogabhogaim java chaitta sattame sannigabbhe jive pachchayati. Se nam tattha navanham masanam bahupadipunnanam addhatthamanam raimdiyanam vitikkamtanam sukumala-gabhaddalae miu-kumdalakumchiya-kesae matthagamdatala-kannapidhae devakumarasappabhae darae payati. Se nam aham kasava! Tae nam aham auso kasava! Komariyapavvajjae komaraenam bambhacheravasenam aviddhakannae cheva samkhanam padilabhami, padilabhitta ime satta pauttaparihare pariharami, tam jaha– 1. Enejjassa 2. Mallaramassa 3. Mamdiyassa 4. Rohassa 5. Bharaddaissa 6. Ajjunagassa goyamaputtassa 7. Gosalassa mamkhaliputtassa. Tattha nam je se padhame pauttaparihare se nam rayagihassa nagarassa bahiya mamdikuchchhimsi cheiyamsi udaissa kumdiyayanassa sariram vippajahami, vippajahitta enejjagassa sariragam anuppavisami, anuppavisitta bavisam vasaim padhamam pauttapariharam pariharami. Tattha nam je se dochche pauttaparihare se nam uddamdapurassa nagarassa bahiya chamdoyaranamsi cheiyamsi enejjagassa sariragam vippajahami, vippajahitta mallaramassa sariragam anuppavisami, anuppa-visitta ekavisam vasaim dochcham pauttapariharam pariharami. Tattha nam je se tachche pauttaparihare se nam champae nagarie bahiya amgamamdiramsi cheiyamsi mallaramassa sariragam vippajahami, vippajahitta mamdiyassa sariragam anuppavisami, anuppavisitta visam vasaim tachcham pauttapariharam pariharami. Tattha nam je se chautthe pauttaparihare se nam vanarasie nagarie bahiya kamamahavanamsi cheiyamsi mamdiyassa sariragam vippajahami, vippajahitta rohassa sariragam anuppavisami, anuppavisitta ekunavisam vasaim chauttham pauttapariharam pariharami. Tattha nam je se pamchame pauttaparihare se nam alabhiyae nagarie bahiya pattakalagamsi cheiyamsi rohassa sariragam vippajahami, vippajahitta bharaddaissa sariragam anuppavisami, anuppavisitta attharasa vasaim pamchamam pauttapariharam pariharami. Tattha nam je se chhatthe pauttaparihare se nam vesalie nagarie bahiya komdiyayanamsi cheiyamsi bharaddaissa sariram vippajahami, vippa jahitta ajjunagassa goyamaputtassa sariragam anuppavisami, anuppavisitta sattarasa vasaim chhattham pauttapariharam pariharami. Tattha nam je se sattame pauttaparihare se nam iheva savatthie nagarie halahalae kumbhakarie kumbhakaravanamsi ajjunagassa goyama-puttassa sariragam vippajahami, vippajahitta gosalassa mamkhali-puttassa sariragam alam thiram dhuvam dharanijjam siyasaham unhasaham khuhasaham vivihadamsamasagaparisaho-vasaggasaham thirasamghayanam ti kattu tam anuppavisami, anuppavisitta solasa vasaim imam sattamam pauttapariharam pariharami. Evameva auso kasava! Egenam tettisenam vasasaenam satta pauttaparihara parihariya bhavamtiti makkhaya, tam sutthu nam auso kasava! Mamam evam vayasi–sahu nam auso kasava! Mamam evam vayasi–gosale mamkhaliputte mamam dhammamtevasi, gosale mamkhaliputte mamam dhammamtevasi.
Sutra Meaning Transliteration : Jaba ananda sthavira, gautama adi shramananirgranthom ko bhagavana ka adesha kaha rahe the, tabhi mamkhaliputra goshalaka ajivakasamgha se parivritta hokara halahala kumbhakari ki dukana se nikalakara atyanta rosha dharana kie shighra evam tvarita gati se shravasti nagari ke madhya mem hokara koshthaka udyana mem shramana bhagavana mahavira svami ke pasa aya. Phira shramana bhagavana mahavira svami se na ati dura aura na ati nikata khara rahakara unhem isa prakara kahane laga – ayushman kashyapa ! Tuma mere vishaya mem achchha kahate ho ! He ayushman ! Tuma mere prati thika kahate ho ki mamkhaliputra goshalaka mera dharmantevasi hai, goshalaka mamkhaliputra mera dharma – shishya hai. Jo mamkhaliputra goshalaka tumhara dharmantevasi tha, vaha to shukla aura shuklabhijata hokara kala ke samaya kala karake kisi devaloka mem devarupa mem utpanna ho chuka hai. Maim to kaundinyayana – gotriya udayi hum. Maimne gautama putra arjuna ke sharira ka tyaga kiya, phira mamkhaliputra goshalaka ke sharira mem pravesha kiya. Mamkhaliputra goshalaka ke sharira mem pravesha karake maimne yaha satavam parivritta – parihara kiya hai. He ayushman kashyapa ! Hamare siddhanta ke anusara jo bhi siddha hue haim, siddha hote haim, athava siddha homge, ve saba (pahale) chaurasi lakha mahakalpa, sata divya, sata samyuthanikaya, sata samjnyigarbha sata parivritta – parihara aura pamcha lakha, satha hajara chhaha – sau tina karmom ke bhedom ko anukrama se kshaya karake tatpashchat siddha hote haim, buddha hote haim, mukta hote haim, nirvana prapta karate haim aura samasta duhkhom ka anta karate haim. Bhutakala mem aisa kiya hai, vartamana mem karate haim aura bhavishya mem aisa karemge. Jisa prakari gamga mahanadi jaham se nikalati hai, aura jaham samapta hoti hai; usaka vaha marga lambai mem 500 yojana hai aura chaurai mem adha yojana hai tatha gaharai mem pamcha – sau dhanusha haim. Usa gamga ke pramana vali sata gamgaem milakara eka mahagamga hoti hai. Sata mahagamgaem milakara eka sadinagamga hoti hai. Sata sadina – gamgaem milakara eka mritagamga hoti hai. Sata mritagamgaem milakara eka lohitagamga hoti hai. Sata lohitagamgaem mila kara eka avantigamga hoti hai. Sata avantigamgaem milakara paramavatigamga hoti hai. Isa prakara purvapara milakara kula eka lakha, satraha hajara, chhaha sau unachasa gamga nadiyam haim. Una (gamganadiyom ke balukakana) ka do prakara ka uddhara kaha gaya hai. Yatha – sukshmabondikalevararupa aura badara – bondi – kalevararupa. Unamem se jo sukshmabomdi – kalevararupa uddhara hai, vaha sthapya hai. Unamem se jo badara – bomdika – levararupa uddhara haim, unamem se sau – sau varshom mem gamga ki balu ka eka – eka kana nikala jae aura jitane kala mem vaha gamga – samuharupa kotha samapta ho jae, rajarahita nirlepa aura nishthita ho jae, taba eka ‘sharapramana’ kala kahalata hai. Isa prakara ke tina lakha sharapramana kala dvara eka mahakalpa hota hai. Chaurasi lakha mahakalpom ka eka mahamanasa hota hai. Ananta samyutha se jiva chyavakara samyutha – devabhava mem uparitana manasa dvara utpanna hota hai. Vaha vaham divyabhogom ka upabhoga karata rahata hai. Usa devaloka ka ayushya – kshaya, devabhava ka kshaya aura devasthiti ka kshaya hone para turanta chyavakara prathama samjnyigarbha jiva mem utpanna hota hai. Phira vaha vaham se antararahita marakara madhyama manasa dvara samyutha devanikaya mem utpanna hota hai. Vaha vaham divya bhogom ka upabhoga karata hai. Vaham se devaloka ka ayushya, bhava aura sthiti ka kshaya hone para dusari bara phira samjnyigarbha mem janma leta hai. Vaham se turanta marakara adhastana manasa ayushya dvara samyutha mem utpanna hota hai. Vaha vaham divya bhoga bhogakara yavat vaham se chyavakara tisare samjnyigarbha mem utpanna hota hai. Phira vaha vaham se marakara uparitana manasottara ayushya dvara samyutha devanikaya mem utpanna hota hai. Vaham vaha divyabhoga bhogakara yavat chaturtha samjnyigarbha mem janma leta hai. Vaham se marakara turanta madhyama manasottara ayushya dvara samyutha mem utpanna hota hai vaham vaha divyabhogom ka upabhoga kara yavat vaham se chyavakara pamchavem samjnyigarbha mem utpanna hota hai. Vaham se marakara turanta adhastana manasottara ayushya dvara samyutha – deva mem utpanna hota hai. Vaha vaham divya bhogom ka upabhoga karake yavat chyavakara chhathe samjnyigarbha jiva mem janma leta hai. Vaha vaham se marakara turanta brahmaloka namaka kalpa mem devarupa mem utpanna hota hai, vaha purva – pashchima mem lamba hai, uttara – dakshina mem chara hai. Yavat – usamem pamcha avatamsaka vimana kahe gae haim. Yatha – ashokavatamsaka, yavat ve pratirupa haim. Inhim avatamsakom mem vaha devarupa mem utpanna hota hai. Vaha vaham dasa sagaropama taka divya bhogom ka upabhoga kara yavat vaham se chyavakara satavem samjnyigarbha jiva mem utpanna hota hai. Vaham nau masa aura sarhe sata ratri – divasa yavat vyatita hone para sukumala, bhadra, mridu tatha kundala ke samana kumchita kesha vala, kana ke abhushanom se jisake kapolasthala chamaka rahe the, aise devakumarasama kanti vale balaka ko janma diya. He kashyapa ! Vahi maim hum. Kumaravastha mem li hui pravrajya se, kumaravastha mem brahmacharyavasa se jaba maim aviddhakarma tha, tabhi mujhe pravrajya grahana karane ki buddhi prapta hui. Phira maimne sata parivritta – parihara mem samchara kiya, yatha – aineyaka, mallaramaka, mandika, rauha, bharadvaja, gautamaputra arjunaka aura mamkhaliputra goshalaka ke (sharira mem pravesha kiya). Inamem se jo prathama parivritta – parihara hua, vaha rajagriha nagara ke bahara mamdikakukshi namaka udyana mem, kundi – yayana gotriya udayi ke sharira ka tyaga karake aineyaka ke sharira mem pravesha kiya. Vaham maimne baisa varsha taka prathama parivritta – parihara kiya. Inamem se jo dvitiya parivritta – parihara hua, vaha uddandapura nagara ke bahara chandravatarana namaka udyana mem maimne aineyaka ke sharira ka tyaga kiya aura mallaramaka ke sharira mem pravesha kiya. Vaham maimne ikkisa varsha taka dusare parivritta – parihara ka upabhoga kiya. Inamem se jo tritiya parivritta – parihara hua, vaha champanagari ke bahara amgamamdira namaka udyana mem mallaramaka ke sharira ka parityaga kiya. Phira maimne mandika ke sharira mem pravesha kiya. Vaham maimne bisa varsha taka tritiya parivritta – parihara ka upabhoga kiya. Inamem se jo chaturtha parivritta – parihara hua, vaha varanasi nagari ke bahara kama – mahavana namaka udyana ke mandika ke sharira ka maimne tyaga kiya aura rohaka ke sharira mem pravesha kiya. Vaham maimne unnisa varsha taka chaturtha parivritta – parihara ka upabhoga kiya. Unamem se jo pamchama parivritta – parihara hua, vaha alabhika nagari ke bahara praptakalaka nama ke udyana mem hua. Usamem maim rohaka ke sharira ka parityaga karake bharadvaja ke sharira mem pravishta hua. Vaham atharaha varsha taka pamchave parivritta – parihara ka upabhoga kiya. Unamem se jo chhatha parivritta – parihara hua, usamem maimne vaishali nagara ke bahara kundiyayana namaka udyana mem bharadvaja ke sharira ka parityaga kiya aura gautamaputra arjunaka ke sharira mem pravesha kiya. Vaham maimne satraha varsha taka chhathe parivritta – parihara ka upabhoga kiya. Unamem se jo satavam parivritta – parihara hua, usamem maimne isi shravasti nagari mem halahala kumbhakari ki bartanom ki dukana mem gautamaputra arjunaka ke sharira ka parityaga kiya. Phira maimne samartha, sthira, dhruva, dharana karane yogya, shitasahishnu, ushnasahishnu, kshudhasahishnu, vividha damsha – mashakadiparishaha – upasarga – sahanashila, evam sthira samhanana vala janakara, mamkhaliputra goshalaka ke usa sharira mem pravesha kiya. Usamem pravesha karake maim solaha varsha taka isa satave parivritta – parihara ka upabhoga karata hum. Isi prakara he ayushman kashyapa ! Ina 133 varshom mem mere ye sata parivritta – parihara hue haim, aisa maimne kaha tha. Isalie ayushman kashyapa ! Tuma thika kahate ho ki mamkhaliputra goshalaka mera dharmantevasi hai.