Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003910 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-८ |
Translated Chapter : |
शतक-८ |
Section : | उद्देशक-७ अदत्तादान | Translated Section : | उद्देशक-७ अदत्तादान |
Sutra Number : | 410 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे–वण्णओ, गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढवि-सिलावट्टओ। तस्स णं गुणसिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आदिगरे जाव समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना बलसंपन्ना विनयसंपन्ना नाणसंपन्ना दंसणसंपन्ना चारित्तसंपन्ना लज्जासंपन्ना लाघव-संपन्ना ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोभा जियनिद्दा जिइंदिया जियपरीसहा जीवियासमरणभयविप्पमुक्का समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरा ज्झाणकोट्ठोवगया संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। तए णं ते अन्नउत्थिया जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता ते थेरे भगवंते एवं वयासी– तुब्भे णं अज्जो तिविहं तिविहेणं अस्संजय-विरय-पडिहयं–पच्चक्खायपावकम्मा, सकिरिया, असंवुडा, अगंतदंडा एगंतबाला या वि भवह। तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी–केण कारणेणं अज्जो! अम्हे तिविहं तिविहेणं अस्संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मा, सकिरिया, असंवुडा, एगंतदंडा, एगंत-बाला या वि भवामो? तए णं ते अन्नउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी–तुब्भे णं अज्जो! अदिन्नं गेण्हह, अदिन्नं भुंजह, अदिन्नं साति ज्जह। तए णं ते तुब्भे अदिन्नं गेण्हमाणा, अदिन्नं भुंजमाणा, अदिन्नं सातिज्जमाणा तिविहं तिविहेणं अस्संजय-विरय-पडिहय-पच्च-क्खायपावकम्मा जाव एगंतबाला या वि भवह। तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी–केण कारणेणं अज्जो! अम्हे अदिन्नं गेण्हामो, अदिन्नं भुंजामो, अदिन्नं सातिज्जामो, जए णं अम्हे अदिन्नं गेण्हमाणा, अदिन्नं भुंजमाणा अदिन्नं सातिज्जमाणा तिविहं तिविहेणं अस्संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मा जाव एगंतबाला या वि भवामो? तए णं ते अन्नउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी– तुब्भण्णं अज्जो! दिज्जमाणे अदिन्ने, पडिग्गाहेज्जमाणे अपडिग्गाहिए, निस्सिरिज्जमाणे अनिसिट्ठे। तुब्भण्णं अज्जो! दिज्जमाणं पडिग्गहगं असंपत्तं एत्थ णं अंतरा केइ अवहरेज्जा गाहावइस्स णं तं, नो खलु तं तुब्भं, तए णं तुब्भे अदिन्नं गेण्हह, अदिन्नं भुंजह, अदिन्नं सातिज्जह। तए णं तुब्भे अदिन्नं गेण्हमाणा जाव एगंतबाला या वि भवह। तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी–नो खलु अज्जो! अम्हे अदिन्नं गेण्हामो, अदिन्नं भुंजामो, अदिन्नं सातिज्जामो। अम्हे णं अज्जो! दिन्नं गेण्हामो, दिन्नं भुंजामो, दिन्नं सातिज्जामो। तए णं अम्हे दिन्नं गेण्हमाणा, दिन्नं भुंज-माणा, दिन्नं सातिज्जमाणा तिविहं तिविहेणं संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मा, अकिरिया, संवुडा एगंतपंडिया या वि भवामो। तए णं ते अन्नउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी–केण कारणेणं अज्जो! तुम्हे दिन्नं गेण्हह, दिन्नं भुंजह, दिन्नं सातिज्जह, जए णं तुब्भे दिन्नं गेण्हमाणा जाव एगंतपंडिया या वि भवह? तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी–अम्हण्णं अज्जो! दिज्जमाणे दिन्ने, पडिग्गाहिज्जमाणे पडिग्गाहिए, निस्सिरिज्जमाणे निसिट्ठे। अम्हण्णं अज्जो! दिज्जमाणं पडिग्गहगं असंपत्तं एत्थ णं अंतरा केइ अवहरेज्जा, अम्हण्णं तं, नो खलु तं गाहावइस्स, तए णं अम्हे दिन्नं गेण्हामो, दिन्नं भुंजामो, दिन्नं सातिज्जामो तए णं अम्हे दिन्नं गेण्हमाणा, दिन्नं भुंजमाणा, दिन्नं सातिज्जमाणा तिविहं तिविहेणं संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मा जाव एगंतपंडिया या वि भवामो। तुब्भे णं अज्जो! अप्पणा चेव तिविहं तिविहेणं अस्संजय-विरयपडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मा जाव एगंतबाला या वि भवह। तए णं ते अन्नउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी– केण कारणेणं अज्जो! अम्हे तिविहं तिविहेणं अस्संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मा जाव एगंतबाला या वि भवामो? तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी–तुब्भे णं अज्जो! अदिन्नं गेण्हह, अदिन्नं भुंजह, अदिन्नं साति ज्जह, तए णं तुब्भे अदिन्नं गेण्हमाणा जाव एगंतबाला या वि भवह। तए णं ते अन्नउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी–केण कारणेणं अज्जो! अम्हे अदिन्नं गेण्हामो जाव एगंत-बाला या वि भवामो? तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी–तुब्भण्णं अज्जो! दिज्जमाणे अदिन्ने पडिग्गाहेज्जमाणे अपडिग्गाहिए, निस्सिरिज्जमाणे अनिसिट्ठे। तुब्भण्णं अज्जो! दिज्जमाणं पडिग्गहगं असंपत्तं एत्थ णं अंतरा केइ अवहरेज्जा, गाहावइस्स णं तं, नो खलु तं तुब्भं। तए णं तुब्भे अदिन्नं गेण्हह जाव एगंतबाला या वि भवह। तए णं ते अन्नउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी–तुब्भे णं अज्जो! तिविहं तिविहेणं अस्संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मा जाव एगंतबाला या वि भवह। तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी–केण कारणेणं अज्जो! अम्हे तिविहं तिविहेणं जाव एगंतबाला यावि भवामो? तए णं ते अन्नउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी–तुब्भे णं अज्जो! रीयं रीयमाणा पुढविं पेच्चेह अभिहणह वत्तेह लेसेह संघाएह संघट्टेह परितावेह किलामेह उद्दवेह, तए णं तुब्भे पुढविं पेच्चेमाणा अभिहणमाणा वत्तेमाणा लेसेमाणा संघाएमाणा संघट्टेमाणा परितावेमाणा किलामेमाणा उद्दवेमाणा तिविहं तिविहेणं अस्संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मा जाव एगंतबाला या वि भवह। तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी–नो खलु अज्जो! अम्हे रीयं रीयमाणा पुढविं पेच्चामो अभिहणामो जाव उद्दवेमो। अम्हे णं अज्जो! रीयं रीयमाणा कायं वा, जोयं वा, रियं वा पडुच्च देसं देसेणं वयामो, पदेसं पदेसेणं वयामो, तेणं अम्हे देसं देसेणं वयमाणा, पदेसं पदेसेणं वयमाणा नो पुढविं पेच्चेमो अभिहणामो जाव उद्दवेमो, तए णं अम्हे पुढविं अपेच्चेमाणा अणभिहणमाणा जाव अणोद्दवेमाणा तिविहं तिविहेणं संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मा जाव एगंतपंडिया या वि भवामो। तुब्भे णं अज्जो! अप्पणा चेव तिविहं तिविहेणं अस्संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मा जाव एगंतबाला या वि भवह। तए णं ते अन्नउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी–केण कारणेणं अज्जो! अम्हे तिविहं तिविहेणं जाव एगंत-बाला या वि भवामो? तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी– तुब्भे णं अज्जो! रीयं रीयमाणा पुढविं पेच्चेह जाव उद्दवेह, तए णं तुब्भे पुढविं पेच्चेमाणा जाव उद्दवेमाणा तिविहं तिविहेणं जाव एगंतबाला या वि भवह। तए णं ते अन्नउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी–तुब्भण्णं अज्जो! गम्ममाणे अगते, वीतिक्कमिज्जमाणे अवीतिक्कंते, रायगिहं नगरं संपाविउकामे असंपत्ते। तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी–नो खलु अज्जो! अम्हं गम्ममाणे अगते, वीतिक्कमिज्जमाणे अवीतिक्कंते, रायगिहं नगरं संपाविउकामे असंपत्ते। अम्हण्णं अज्जो! गम्ममाणे गए, वीतिक्कमिज्जमाणे वीतिक्कंते, रायगिहं नगरं संपाविउकामे संपत्ते। तुब्भण्णं अप्पणा चेव गम्ममाणे अगते, वीतिक्कमिज्जमाणे अवीतिक्कंते, रायगिहं नगरं संपाविउकामे असंपत्ते तए णं ते थेरा भगवंतो अन्नउत्थिए एवं पडिभणंति, पडिभणित्ता गइप्पवायं नाम अज्झयणं पण्णवइंसु। | ||
Sutra Meaning : | उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। वहाँ गुणशीलक चैत्य था। यावत् पृथ्वी शिलापट्टक था। उस गुणशीलक चैत्य के आसपास बहुत – से अन्यतीर्थिक रहते थे। उस काल और उस समय धर्मतीर्थ की आदि करने वाले श्रमण भगवान महावीर यावत् समवसृत हुए यावत् धर्मोपदेश सूनकर परीषद् वापिस चली गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के बहुत – से शिष्य स्थविर भगवंत जातिसम्पन्न, कुलसम्पन्न इत्यादि दूसरे शतक में वर्णित गुणों से युक्त यावत् जीवन की आशा और मरण के भय से विमुक्त थे। वे श्रमण भगवान महावीर से न अति दूर, न अति निकट ऊर्ध्वजानु, अधोशिरस्क ध्यानरूप कोष्ठ को प्राप्त होकर संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते थे। एक बार वे अन्यतीर्थिक जहाँ स्थविर भगवंत थे, वहाँ आए। वे स्थविर भगवंतों से यों कहने लगे – हे आर्यो! तुम त्रिविध – त्रिविध असंयत, अविरत, अप्रतिहत पापकर्म तथा पापकर्म का प्रत्याख्यान नहीं किये हुए हो; इत्यादि सातवें शतक के द्वीतिय उद्देशक अनुसार कहा; यावत् तुम एकान्त बाल भी हो। इस पर उन स्थविर भगवंतों ने उन अन्यतीर्थिकों से इस प्रकार पूछा – आर्यो ! किस कारण से हम त्रिविध – त्रिविध असंयत, यावत् एकान्तबाल हैं ? तदनन्तर उन अन्यतीर्थिकों ने स्थविर भगवंतों से इस प्रकार कहा – हे आर्यो ! तुम अदत्त पदार्थ ग्रहण करते हो, अदत्त का भोजन करते हो और अदत्त का स्वाद लेते हो, इस प्रकार अदत्त का ग्रहण करते हुए, अदत्त का भोजन करते हुए और अदत्त की अनुमति देते हुए तुम त्रिविध – त्रिविध असंयत, अविरत यावत् एकान्तबाल हो। तदनन्तर उन स्थविर भगवंतों ने उन अन्यतीर्थिकों से इस प्रकार पूछा – ‘आर्यो ! हम किस कारण से अदत्त का ग्रहण करते हैं, अदत्त का भोजन करते हैं और अदत्त की अनुमति देते हैं, जिससे कि हम अदत्त का ग्रहण करते हुए यावत् अदत्त की अनुमति देते हुए त्रिविध – त्रिविध असंयत, अविरत यावत् एकान्तबाल हैं ? इस पर उन अन्य – तीर्थिकों ने स्थविर भगवंतों से इस प्रकार कहा – हे आर्यो ! तुम्हारे मत में दिया जाता हुआ पदार्थ, ‘नहीं दिया गया’, ग्रहण किया जाता हुआ, ‘ग्रहण नहीं किया गया’, तथा डाला जाता हुआ पदार्थ, ‘नहीं डाला गया’, ऐसा कथन है; इसलिए हे आर्यो! तुमको दिया जाता हुआ पदार्थ, जब तक पात्र में नहीं पड़ा, तब तक बीच में से ही कोई उसका अपहरण कर ले तो तुम कहते हो – ‘वह उस गृहपति के पदार्थ का अपहरण हुआ’ ‘हमारे पदार्थ का अपहरण हुआ’ ऐसा तुम नहीं कहते। इस कारण से तुम अदत्त का ग्रहण करते हो, यावत् अदत्त की अनुमति देते हो; अतः तुम अदत्त का ग्रहण करते हुए यावत् एकान्तबाल हो। यह सूनकर उन स्थविर भगवंतों ने उन अन्यतीर्थिकों से कहा – ‘आर्यो ! हम अदत्त का ग्रहण नहीं करते, न अदत्त को खाते हैं और न ही अदत्त की अनुमति देते हैं। हे आर्यो ! हम तो दत्त पदार्थ को ग्रहण करते हैं, दत्त भोजन को खाते हैं और दत्त की अनुमति देते हैं। इसलिए हम त्रिविध – त्रिविध संयत, विरत, पापकर्म के प्रति – निरोधक, पापकर्म का प्रत्याख्यान किये हुए हैं। सप्तमशतक अनुसार हम यावत् एकान्तपण्डित हैं।’ तब उन अन्यतीर्थिकों ने उन स्थविर भगवंतों से कहा – ‘तुम किस कारण दत्त को ग्रहण करते हो, यावत् दत्त की अनुमति देते हो, जिससे दत्त का ग्रहण करते हुए यावत् तुम एकान्तपण्डित हो ?’ इस पर उन स्थविर भगवंतों ने उन अन्यतीर्थिकों से कहा – ‘आर्यो ! हमारे सिद्धान्तानुसार – दिया जाता हुआ पदार्थ, ‘दिया गया’; ग्रहण किया जाता हुआ पदार्थ ‘ग्रहण किया’ और पात्र में डाला जाता हुआ पदार्थ ‘डाला गया’ कहलाता है। इसीलिए हे आर्यो ! हमें दिया जाता हुआ पदार्थ हमारे पात्र में नहीं पहुँचा है, इसी बीच में कोई व्यक्ति उसका अपहरण कर ले तो ‘वह पदार्थ हमारा अपहृत हुआ’ कहलाता है, किन्तु ‘वह पदार्थ गृहस्थ का अपहृत हुआ,’ ऐसा नहीं कहलाता। इस कारण से हम दत्त को ग्रहण करते हैं, दत्त आहार करते हैं और दत्त की ही अनुमति देते हैं। इस प्रकार दत्त को ग्रहण करते हुए यावत् दत्त की अनुमति देते हुए हम त्रिविध – त्रिविध संयत, विरत यावत् एकान्तपण्डित हैं, प्रत्युत, हे आर्यो ! तुम स्वयं त्रिविध – त्रिविध असंयत, अविरत यावत् एकान्तबाल हो। तत्पश्चात् उन अन्यतीर्थिकों ने स्थविर भगवंतों से पूछा – आर्यो ! हम किस कारण से त्रिविध – त्रिविध यावत् एकान्त बाल हैं ? इस पर उन स्थविर भगवंतों ने उस अन्यतीर्थिकों से यों कहा – आर्यो ! तुम लोग अदत्त को ग्रहण करते हो, यावत् अदत्त की अनुमति देते हो; इसलिए हे आर्यो ! तुम अदत्त को ग्रहण करते हुए यावत् एकान्तबाल हो। तब उन अन्यतीर्थिकों ने उन स्थविर भगवंतों से पूछा – आर्यो ! हम कैसे अदत्त को ग्रहण करते हैं यावत् जिससे कि हम एकान्तबाल हैं ? यह सूनकर उन स्थविर भगवंतों ने उन अन्यतीर्थिकों से कहा – आर्यो ! तुम्हारे मत में दिया जाता हुआ पदार्थ ‘नहीं दिया गया’ इत्यादि कहलाता है, यावत् वह पदार्थ गृहस्थ का है, तुम्हारा नहीं; इसलिए तुम अदत्त का ग्रहण करते हो, यावत् पूर्वोक्त प्रकार से तुम एकान्तबाल हो। तत्पश्चात् उन अन्यतीर्थिकों ने उन स्थविर भगवंतों से कहा – आर्यो ! तुम ही त्रिविध – त्रिविध असंयत, अविरत यावत् एकान्तबाल हो। इस पर उन स्थविर भगवंतों ने उन अन्यतीर्थिकों से पूछा – आर्यो ! किस कारण से हम त्रिविध – त्रिविध यावत् एकान्तबाल हैं ? तब उन अन्यतीर्थिकों ने कहा – आर्यो ! तुम गमन करते हुए पृथ्वी – कायिक जीवों को दबाते हो, हनन करते हो, पादाभिघात करते हो, उन्हें भूमि के साथ श्लिष्ट करते हो, उन्हें एक दूसरे के ऊपर इकट्ठे करते हो, जोर से स्पर्श करते हो, उन्हें परितापित करते हो, उन्हें मारणान्तिक कर देते हो और उपद्रवित करते – मारते हो। इस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों को दबाते हुए यावत् मारते हुए तुम त्रिविध – त्रिविध असंयत, अविरत यावत् एकान्तबाल हो। तब उन स्थविरों ने कहा – आर्यो ! हम गमन करते हुए पृथ्वीकायिक जीवों को दबाते नहीं, हनते नहीं, यावत् मारते नहीं। हे आर्यो ! हम गमन करते हुए काय के लिए, योग के लिए, ऋत (संयम) के लिए एक देश से दूसरे देश में और एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जाते हैं। इस प्रकार एक स्थल से दूसरे स्थल में और एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जाते हुए हम पृथ्वीकायिक जीवों को दबाते नहीं, उनका हनन नहीं करते, यावत् उनको मारते नहीं। इसलिए हम त्रिविध – त्रिविध संयत, विरत यावत् एकान्तपण्डित हैं। किन्तु हे आर्यो ! तुम स्वयं त्रिविध – त्रिविध असंयत, अविरत यावत् एकान्तबाल हो। इस पर उन अन्यतीर्थिकों ने पूछा – आर्यो ! हम किस कारण त्रिविध – त्रिविध असंयत, अविरत, यावत् एकान्तबाल हैं ? तब स्थविर भगवंतों ने कहा – आर्यो ! तुम गमन करते हुए पृथ्वीकायिक जीवों को दबाते हो, यावत् मार देते हो। इसलिए पृथ्वीकायिक जीवों को दबाते हुए, यावत् मारते हुए तुम त्रिविध – त्रिविध असंयत, अविरत यावत् एकान्तबाल हो। इस पर वे अन्यतीर्थिक बोले – हे आर्यो ! तुम्हारे मत में जाता हुआ, नहीं गया कहलाता है; जो लाँघा जा रहा है, वह नहीं लाँघा गया कहलाता है, और राजगृह को प्राप्त करने की ईच्छा वाला पुरुष असम्प्राप्त कहलाता है। तत्पश्चात् उन स्थविर भगवंतों ने कहा – आर्यो ! हमारे मत में जाता हुआ नहीं गया नहीं कहलाता, व्यतिक्रम्यमाण अव्यतिक्रान्त नहीं कहलाता। इसी प्रकार राजगृह नगर को प्राप्त करने की ईच्छा वाला व्यक्ति असंप्राप्त नहीं कहलाता। हमारे मत में तो, आर्यो ! ‘गच्छन्’ ‘गत्’; ‘व्यतिक्रम्यमाण’ ‘व्यतिक्रान्त’ और राजगृह नगर को प्राप्त करने की ईच्छा वाला व्यक्ति सम्प्राप्त कहलाता है। हे आर्यो ! तुम्हारे ही मत में ‘गच्छन्’ ‘अगत’, ‘व्यतिक्रम्यमाण’ ‘अव्यतिक्रान्त’ और राजगृह नगर को प्राप्त करने की ईच्छा वाला असम्प्राप्त कहलाता है। उन स्थविर भगवंतों ने उन अन्यतीर्थिकों को निरुत्तर करके उन्होंने गतिप्रपात नामक अध्ययन प्ररूपित किया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam rayagihe nayare–vannao, gunasilae cheie–vannao java pudhavi-silavattao. Tassa nam gunasilassa cheiyassa adurasamamte bahave annautthiya parivasamti. Tenam kalenam tenam samaenam samane bhagavam mahavire adigare java samosadhe java parisa padigaya. Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa bahave amtevasi thera bhagavamto jatisampanna kulasampanna balasampanna vinayasampanna nanasampanna damsanasampanna charittasampanna lajjasampanna laghava-sampanna oyamsi teyamsi vachchamsi jasamsi jiyakoha jiyamana jiyamaya jiyalobha jiyanidda jiimdiya jiyaparisaha jiviyasamaranabhayavippamukka samanassa bhagavao mahavirassa adurasamamte uddhamjanu ahosira jjhanakotthovagaya samjamenam tavasa appanam bhavemana viharamti. Tae nam te annautthiya jeneva thera bhagavamto teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta te there bhagavamte evam vayasi– tubbhe nam ajjo tiviham tivihenam assamjaya-viraya-padihayam–pachchakkhayapavakamma, sakiriya, asamvuda, agamtadamda egamtabala ya vi bhavaha. Tae nam te thera bhagavamto te annautthie evam vayasi–kena karanenam ajjo! Amhe tiviham tivihenam assamjaya-viraya-padihaya-pachchakkhayapavakamma, sakiriya, asamvuda, egamtadamda, egamta-bala ya vi bhavamo? Tae nam te annautthiya te there bhagavamte evam vayasi–tubbhe nam ajjo! Adinnam genhaha, adinnam bhumjaha, adinnam sati jjaha. Tae nam te tubbhe adinnam genhamana, adinnam bhumjamana, adinnam satijjamana tiviham tivihenam assamjaya-viraya-padihaya-pachcha-kkhayapavakamma java egamtabala ya vi bhavaha. Tae nam te thera bhagavamto te annautthie evam vayasi–kena karanenam ajjo! Amhe adinnam genhamo, adinnam bhumjamo, adinnam satijjamo, jae nam amhe adinnam genhamana, adinnam bhumjamana adinnam satijjamana tiviham tivihenam assamjaya-viraya-padihaya-pachchakkhayapavakamma java egamtabala ya vi bhavamo? Tae nam te annautthiya te there bhagavamte evam vayasi– tubbhannam ajjo! Dijjamane adinne, padiggahejjamane apadiggahie, nissirijjamane anisitthe. Tubbhannam ajjo! Dijjamanam padiggahagam asampattam ettha nam amtara kei avaharejja gahavaissa nam tam, no khalu tam tubbham, tae nam tubbhe adinnam genhaha, adinnam bhumjaha, adinnam satijjaha. Tae nam tubbhe adinnam genhamana java egamtabala ya vi bhavaha. Tae nam te thera bhagavamto te annautthie evam vayasi–no khalu ajjo! Amhe adinnam genhamo, adinnam bhumjamo, adinnam satijjamo. Amhe nam ajjo! Dinnam genhamo, dinnam bhumjamo, dinnam satijjamo. Tae nam amhe dinnam genhamana, dinnam bhumja-mana, dinnam satijjamana tiviham tivihenam samjaya-viraya-padihaya-pachchakkhayapavakamma, akiriya, samvuda egamtapamdiya ya vi bhavamo. Tae nam te annautthiya te there bhagavamte evam vayasi–kena karanenam ajjo! Tumhe dinnam genhaha, dinnam bhumjaha, dinnam satijjaha, jae nam tubbhe dinnam genhamana java egamtapamdiya ya vi bhavaha? Tae nam te thera bhagavamto te annautthie evam vayasi–amhannam ajjo! Dijjamane dinne, padiggahijjamane padiggahie, nissirijjamane nisitthe. Amhannam ajjo! Dijjamanam padiggahagam asampattam ettha nam amtara kei avaharejja, amhannam tam, no khalu tam gahavaissa, tae nam amhe dinnam genhamo, dinnam bhumjamo, dinnam satijjamo tae nam amhe dinnam genhamana, dinnam bhumjamana, dinnam satijjamana tiviham tivihenam samjaya-viraya-padihaya-pachchakkhayapavakamma java egamtapamdiya ya vi bhavamo. Tubbhe nam ajjo! Appana cheva tiviham tivihenam assamjaya-virayapadihaya-pachchakkhaya-pavakamma java egamtabala ya vi bhavaha. Tae nam te annautthiya te there bhagavamte evam vayasi– kena karanenam ajjo! Amhe tiviham tivihenam assamjaya-viraya-padihaya-pachchakkhayapavakamma java egamtabala ya vi bhavamo? Tae nam te thera bhagavamto te annautthie evam vayasi–tubbhe nam ajjo! Adinnam genhaha, adinnam bhumjaha, adinnam sati jjaha, tae nam tubbhe adinnam genhamana java egamtabala ya vi bhavaha. Tae nam te annautthiya te there bhagavamte evam vayasi–kena karanenam ajjo! Amhe adinnam genhamo java egamta-bala ya vi bhavamo? Tae nam te thera bhagavamto te annautthie evam vayasi–tubbhannam ajjo! Dijjamane adinne padiggahejjamane apadiggahie, nissirijjamane anisitthe. Tubbhannam ajjo! Dijjamanam padiggahagam asampattam ettha nam amtara kei avaharejja, gahavaissa nam tam, no khalu tam tubbham. Tae nam tubbhe adinnam genhaha java egamtabala ya vi bhavaha. Tae nam te annautthiya te there bhagavamte evam vayasi–tubbhe nam ajjo! Tiviham tivihenam assamjaya-viraya-padihaya-pachchakkhayapavakamma java egamtabala ya vi bhavaha. Tae nam te thera bhagavamto te annautthie evam vayasi–kena karanenam ajjo! Amhe tiviham tivihenam java egamtabala yavi bhavamo? Tae nam te annautthiya te there bhagavamte evam vayasi–tubbhe nam ajjo! Riyam riyamana pudhavim pechcheha abhihanaha vatteha leseha samghaeha samghatteha paritaveha kilameha uddaveha, tae nam tubbhe pudhavim pechchemana abhihanamana vattemana lesemana samghaemana samghattemana paritavemana kilamemana uddavemana tiviham tivihenam assamjaya-viraya-padihaya-pachchakkhayapavakamma java egamtabala ya vi bhavaha. Tae nam te thera bhagavamto te annautthie evam vayasi–no khalu ajjo! Amhe riyam riyamana pudhavim pechchamo abhihanamo java uddavemo. Amhe nam ajjo! Riyam riyamana kayam va, joyam va, riyam va paduchcha desam desenam vayamo, padesam padesenam vayamo, tenam amhe desam desenam vayamana, padesam padesenam vayamana no pudhavim pechchemo abhihanamo java uddavemo, tae nam amhe pudhavim apechchemana anabhihanamana java anoddavemana tiviham tivihenam samjaya-viraya-padihaya-pachchakkhayapavakamma java egamtapamdiya ya vi bhavamo. Tubbhe nam ajjo! Appana cheva tiviham tivihenam assamjaya-viraya-padihaya-pachchakkhayapavakamma java egamtabala ya vi bhavaha. Tae nam te annautthiya te there bhagavamte evam vayasi–kena karanenam ajjo! Amhe tiviham tivihenam java egamta-bala ya vi bhavamo? Tae nam te thera bhagavamto te annautthie evam vayasi– tubbhe nam ajjo! Riyam riyamana pudhavim pechcheha java uddaveha, tae nam tubbhe pudhavim pechchemana java uddavemana tiviham tivihenam java egamtabala ya vi bhavaha. Tae nam te annautthiya te there bhagavamte evam vayasi–tubbhannam ajjo! Gammamane agate, vitikkamijjamane avitikkamte, rayagiham nagaram sampaviukame asampatte. Tae nam te thera bhagavamto te annautthie evam vayasi–no khalu ajjo! Amham gammamane agate, vitikkamijjamane avitikkamte, rayagiham nagaram sampaviukame asampatte. Amhannam ajjo! Gammamane gae, vitikkamijjamane vitikkamte, rayagiham nagaram sampaviukame sampatte. Tubbhannam appana cheva gammamane agate, vitikkamijjamane avitikkamte, rayagiham nagaram sampaviukame asampatte tae nam te thera bhagavamto annautthie evam padibhanamti, padibhanitta gaippavayam nama ajjhayanam pannavaimsu. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala aura usa samaya mem rajagriha nagara tha. Vaham gunashilaka chaitya tha. Yavat prithvi shilapattaka tha. Usa gunashilaka chaitya ke asapasa bahuta – se anyatirthika rahate the. Usa kala aura usa samaya dharmatirtha ki adi karane vale shramana bhagavana mahavira yavat samavasrita hue yavat dharmopadesha sunakara parishad vapisa chali gai. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira ke bahuta – se shishya sthavira bhagavamta jatisampanna, kulasampanna ityadi dusare shataka mem varnita gunom se yukta yavat jivana ki asha aura marana ke bhaya se vimukta the. Ve shramana bhagavana mahavira se na ati dura, na ati nikata urdhvajanu, adhoshiraska dhyanarupa koshtha ko prapta hokara samyama aura tapa se apani atma ko bhavita karate hue vicharana karate the. Eka bara ve anyatirthika jaham sthavira bhagavamta the, vaham ae. Ve sthavira bhagavamtom se yom kahane lage – he aryo! Tuma trividha – trividha asamyata, avirata, apratihata papakarma tatha papakarma ka pratyakhyana nahim kiye hue ho; ityadi satavem shataka ke dvitiya uddeshaka anusara kaha; yavat tuma ekanta bala bhi ho. Isa para una sthavira bhagavamtom ne una anyatirthikom se isa prakara puchha – aryo ! Kisa karana se hama trividha – trividha asamyata, yavat ekantabala haim\? Tadanantara una anyatirthikom ne sthavira bhagavamtom se isa prakara kaha – he aryo ! Tuma adatta padartha grahana karate ho, adatta ka bhojana karate ho aura adatta ka svada lete ho, isa prakara adatta ka grahana karate hue, adatta ka bhojana karate hue aura adatta ki anumati dete hue tuma trividha – trividha asamyata, avirata yavat ekantabala ho. Tadanantara una sthavira bhagavamtom ne una anyatirthikom se isa prakara puchha – ‘aryo ! Hama kisa karana se adatta ka grahana karate haim, adatta ka bhojana karate haim aura adatta ki anumati dete haim, jisase ki hama adatta ka grahana karate hue yavat adatta ki anumati dete hue trividha – trividha asamyata, avirata yavat ekantabala haim\? Isa para una anya – tirthikom ne sthavira bhagavamtom se isa prakara kaha – he aryo ! Tumhare mata mem diya jata hua padartha, ‘nahim diya gaya’, grahana kiya jata hua, ‘grahana nahim kiya gaya’, tatha dala jata hua padartha, ‘nahim dala gaya’, aisa kathana hai; isalie he aryo! Tumako diya jata hua padartha, jaba taka patra mem nahim para, taba taka bicha mem se hi koi usaka apaharana kara le to tuma kahate ho – ‘vaha usa grihapati ke padartha ka apaharana hua’ ‘hamare padartha ka apaharana hua’ aisa tuma nahim kahate. Isa karana se tuma adatta ka grahana karate ho, yavat adatta ki anumati dete ho; atah tuma adatta ka grahana karate hue yavat ekantabala ho. Yaha sunakara una sthavira bhagavamtom ne una anyatirthikom se kaha – ‘aryo ! Hama adatta ka grahana nahim karate, na adatta ko khate haim aura na hi adatta ki anumati dete haim. He aryo ! Hama to datta padartha ko grahana karate haim, datta bhojana ko khate haim aura datta ki anumati dete haim. Isalie hama trividha – trividha samyata, virata, papakarma ke prati – nirodhaka, papakarma ka pratyakhyana kiye hue haim. Saptamashataka anusara hama yavat ekantapandita haim.’ taba una anyatirthikom ne una sthavira bhagavamtom se kaha – ‘tuma kisa karana datta ko grahana karate ho, yavat datta ki anumati dete ho, jisase datta ka grahana karate hue yavat tuma ekantapandita ho\?’ Isa para una sthavira bhagavamtom ne una anyatirthikom se kaha – ‘aryo ! Hamare siddhantanusara – diya jata hua padartha, ‘diya gaya’; grahana kiya jata hua padartha ‘grahana kiya’ aura patra mem dala jata hua padartha ‘dala gaya’ kahalata hai. Isilie he aryo ! Hamem diya jata hua padartha hamare patra mem nahim pahumcha hai, isi bicha mem koi vyakti usaka apaharana kara le to ‘vaha padartha hamara apahrita hua’ kahalata hai, kintu ‘vaha padartha grihastha ka apahrita hua,’ aisa nahim kahalata. Isa karana se hama datta ko grahana karate haim, datta ahara karate haim aura datta ki hi anumati dete haim. Isa prakara datta ko grahana karate hue yavat datta ki anumati dete hue hama trividha – trividha samyata, virata yavat ekantapandita haim, pratyuta, he aryo ! Tuma svayam trividha – trividha asamyata, avirata yavat ekantabala ho. Tatpashchat una anyatirthikom ne sthavira bhagavamtom se puchha – aryo ! Hama kisa karana se trividha – trividha yavat ekanta bala haim\? Isa para una sthavira bhagavamtom ne usa anyatirthikom se yom kaha – aryo ! Tuma loga adatta ko grahana karate ho, yavat adatta ki anumati dete ho; isalie he aryo ! Tuma adatta ko grahana karate hue yavat ekantabala ho. Taba una anyatirthikom ne una sthavira bhagavamtom se puchha – aryo ! Hama kaise adatta ko grahana karate haim yavat jisase ki hama ekantabala haim\? Yaha sunakara una sthavira bhagavamtom ne una anyatirthikom se kaha – aryo ! Tumhare mata mem diya jata hua padartha ‘nahim diya gaya’ ityadi kahalata hai, yavat vaha padartha grihastha ka hai, tumhara nahim; isalie tuma adatta ka grahana karate ho, yavat purvokta prakara se tuma ekantabala ho. Tatpashchat una anyatirthikom ne una sthavira bhagavamtom se kaha – aryo ! Tuma hi trividha – trividha asamyata, avirata yavat ekantabala ho. Isa para una sthavira bhagavamtom ne una anyatirthikom se puchha – aryo ! Kisa karana se hama trividha – trividha yavat ekantabala haim\? Taba una anyatirthikom ne kaha – aryo ! Tuma gamana karate hue prithvi – kayika jivom ko dabate ho, hanana karate ho, padabhighata karate ho, unhem bhumi ke satha shlishta karate ho, unhem eka dusare ke upara ikatthe karate ho, jora se sparsha karate ho, unhem paritapita karate ho, unhem maranantika kara dete ho aura upadravita karate – marate ho. Isa prakara prithvikayika jivom ko dabate hue yavat marate hue tuma trividha – trividha asamyata, avirata yavat ekantabala ho. Taba una sthavirom ne kaha – aryo ! Hama gamana karate hue prithvikayika jivom ko dabate nahim, hanate nahim, yavat marate nahim. He aryo ! Hama gamana karate hue kaya ke lie, yoga ke lie, rita (samyama) ke lie eka desha se dusare desha mem aura eka pradesha se dusare pradesha mem jate haim. Isa prakara eka sthala se dusare sthala mem aura eka pradesha se dusare pradesha mem jate hue hama prithvikayika jivom ko dabate nahim, unaka hanana nahim karate, yavat unako marate nahim. Isalie hama trividha – trividha samyata, virata yavat ekantapandita haim. Kintu he aryo ! Tuma svayam trividha – trividha asamyata, avirata yavat ekantabala ho. Isa para una anyatirthikom ne puchha – aryo ! Hama kisa karana trividha – trividha asamyata, avirata, yavat ekantabala haim\? Taba sthavira bhagavamtom ne kaha – aryo ! Tuma gamana karate hue prithvikayika jivom ko dabate ho, yavat mara dete ho. Isalie prithvikayika jivom ko dabate hue, yavat marate hue tuma trividha – trividha asamyata, avirata yavat ekantabala ho. Isa para ve anyatirthika bole – he aryo ! Tumhare mata mem jata hua, nahim gaya kahalata hai; jo lamgha ja raha hai, vaha nahim lamgha gaya kahalata hai, aura rajagriha ko prapta karane ki ichchha vala purusha asamprapta kahalata hai. Tatpashchat una sthavira bhagavamtom ne kaha – aryo ! Hamare mata mem jata hua nahim gaya nahim kahalata, vyatikramyamana avyatikranta nahim kahalata. Isi prakara rajagriha nagara ko prapta karane ki ichchha vala vyakti asamprapta nahim kahalata. Hamare mata mem to, aryo ! ‘gachchhan’ ‘gat’; ‘vyatikramyamana’ ‘vyatikranta’ aura rajagriha nagara ko prapta karane ki ichchha vala vyakti samprapta kahalata hai. He aryo ! Tumhare hi mata mem ‘gachchhan’ ‘agata’, ‘vyatikramyamana’ ‘avyatikranta’ aura rajagriha nagara ko prapta karane ki ichchha vala asamprapta kahalata hai. Una sthavira bhagavamtom ne una anyatirthikom ko niruttara karake unhomne gatiprapata namaka adhyayana prarupita kiya. |