Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003907 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-८ |
Translated Chapter : |
शतक-८ |
Section : | उद्देशक-६ प्रासुक आहारादि | Translated Section : | उद्देशक-६ प्रासुक आहारादि |
Sutra Number : | 407 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] निग्गंथेण य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविट्ठेणं अन्नयरेसु अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवति– इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि, पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, विउट्टामि, विसोहेमि, अकरणयाए अब्भुट्ठेमि, अहारियं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जामि, तओ पच्छा थेराणं अंतियं आलोएस्सामि जाव तवोकम्मं पडिवज्जिस्सामि। १. से य संपट्ठिए असंपत्ते, थेरा य पुव्वामेव अमुहा सिया। से णं भंते! किं आराहए? विराहए? गोयमा! आराहए, नो विराहए। २. से य संपट्ठिए असंपत्ते, अप्पणा य पुव्वामेव अमुहे सिया। से णं भंते! किं आराहए? विराहए? गोयमा! आराहए, नो विराहए। ३. से य संपट्ठिए असंपत्ते, थेरा य कालं करेज्जा। से णं भंते! किं आराहए? विराहए? गोयमा! आराहए, नो विराहए। ४. से य संपट्ठिए असंपत्ते, अप्पणा य पुव्वामेव कालं करेज्जा। से णं भंते! किं आराहए? विराहए? गोयमा! आराहए, नो विराहए। ५. से य संपट्ठिए संपत्ते, थेरा य अमुहा सिया। से णं भंते! किं आराहए? विराहए? गोयमा! आराहए, नो विराहए। ६. से य संपट्ठिए संपत्ते अप्पणा य अमुहे सिया। से णं भंते! किं आराहए? विराहए? गोयमा! आराहए, नो विराहए। ७. से य संपट्ठिए संपत्ते, थेरा य कालं करेज्जा। से णं भंते! किं आराहए? विराहए? गोयमा! आराहए, नो विराहए। ८. से य संपट्ठिए संपत्ते अप्पणा य कालं करेज्जा। से णं भंते! किं आराहए? विराहए? गोयमा! आराहए, नो विराहए। निग्गंथेण य बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा निक्खंतेणं अन्नयरेसु अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवति–इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि–एवं एत्थ वि ते चेव अट्ठ आलावगा भाणियव्वा जाव नो विराहए। निग्गंथेण य गामानुगामं दूइज्जमाणेणं अन्नयरेसु अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवइ–इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि–एवं एत्थ वि ते चेव अट्ठ आलावगा भाणियव्वा जाव नो विराहए। निग्गंथीए य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अनुपविट्ठाए अन्नयरेसु अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तीसे णं एवं भवइ– इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि जाव तवोकम्मं पडिवज्जामि; तओ पच्छा पवत्तिणीए अंतियं आलोएस्सामि जाव तवोकम्मं पडिवज्जिस्सामि। सा य संपट्ठिया असंपत्ता, पवत्तिणी य अमुहा सिया। सा णं भंते! किं आराहिया? विराहिया? गोयमा! आराहिया, नो विराहिया। सा य संपट्ठिया जहा निग्गंथस्स तिन्नि गमा भणिया एवं निग्गंथीए वि तिन्नि आलावगा भाणियव्वा जाव आराहिया, नो विराहिया। से केणट्ठेण भंते! एवं वुच्चइ–आराहए? नो विराहए? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे एगं महं उण्णालोमं वा, गयलोमं वा, सणलोमं वा, कप्पासलोमं वा, तणसूयं वा दुहा वा तिहा वा संखेज्जहा वा छिंदित्ता अगनिकायंसि पक्खिवेज्जा, से नूनं गोयमा! छिज्जमाणे छिन्ने, पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते, दज्झमाणे दड्ढे त्ति वत्तव्वं सिया? हंता भगवं! छिज्जमाणे छिण्णे, पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते, दज्झमाणे दड्ढे त्ति वत्तव्वं सिया। से जहा वा केइ पुरिसे वत्थं अहतं वा, धोतं वा, तंतुग्गयं वा मंजिट्ठदोणीए पक्खिवेज्जा, से नूनं गोयमा! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते, पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते, रज्जमाणे रत्ते त्ति वत्तव्वं सिया? हंता भगवं! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते, पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते, रज्जमाणे रत्ते त्ति वत्तव्वं सिया। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–आराहए, नो विराहए। | ||
Sutra Meaning : | गृहस्थ के घर आहार ग्रहण करने की बुद्धि से प्रविष्ट निर्ग्रन्थ द्वारा किसी अकृत्य स्थान का प्रतिसेवन हो गया हो और तत्क्षण उसके मन में ऐसा विचार हो कि प्रथम मैं यहीं इस अकृत्यस्थान की आलोचना, प्रतिक्रमण, निन्दा और गर्हा करूँ; (उसके अनुबन्ध का) छेदन करूँ, इस (पाप – दोष से) विशुद्ध बनूँ, पुनः ऐसा अकृत्य न करने के लिए अभ्युद्यत होऊं और यथोचित प्रायश्चित्तरूप तपःकर्म स्वीकार कर लूँ। तत्पश्चात् स्थविरों के पास जाकर आलोचना करूँगा, यावत् प्रायश्चित्तरूप तपःकर्म स्वीकार कर लूँगा, (ऐसा सोच के) वह निर्ग्रन्थ, स्थविर मुनियों के पास जाने के लिए रवाना हुआ; किन्तु स्थविर मुनियों के पास पहुँचने से पहले ही वे स्थविर मूक हो जाएं तो हे भगवन् ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है या विराधक ? गौतम ! वह (निर्ग्रन्थ) आराधक है, विराधक नहीं। यावत् उनके पास पहुँचने से पूर्व ही वह निर्ग्रन्थ स्वयं मूक हो जाए, तो हे भगवन् ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है या विराधक ? गौतम वह (निर्ग्रन्थ) आराधक है, विराधक नहीं। (उपर्युक्त अकृत्यसेवी) निर्ग्रन्थ स्थविर मुनियों के पास आलोचनादि के लिए रवाना हुआ, किन्तु उसके पहुँचने से पूर्व ही वे स्थविर मुनि काल कर जाएं, तो हे भगवन् ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है या विराधक ? गौतम ! वह आराधक है, विराधक नहीं। भगवन् ! (उपर्युक्त अकृत्य – सेवन करके) वह निर्ग्रन्थ स्थविरों के पास आलोच – नादि करने के लिए नीकला, किन्तु वहाँ पहुँचा नहीं, उससे पूर्व ही स्वयं काल कर जाए तो हे भगवन् ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है या विराधक ? गौतम ! वह आराधक है, विराधक नहीं। उपर्युक्त अकृत्यसेवी निर्ग्रन्थ ने तत्क्षण आलोचनादि करके स्थविर मुनिवरों के पास आलोचनादि करने हेतु प्रस्थान किया, वह स्थविरों के पास पहुँच गया, तत्पश्चात् वे स्थविर मुनि मूक हो जाएं, तो हे भगवन् ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है या विराधक ? गौतम ! वह (निर्ग्रन्थ) आराधक है, विराधक नहीं। (उपर्युक्त अकृत्यसेवी मुनि) स्वयं आलोचनादि करके स्थविरों की सेवा में पहुँचते ही स्वयं मूक हो जाए, जिस प्रकार स्थविरों के पास न पहुँचे हुए निर्ग्रन्थ के चार आलापक कहे गए हैं, उसी प्रकार सम्प्राप्त निर्ग्रन्थ के भी चार आलापक कहना। बाहर विचारभूमि (स्थण्डिलभूमि) अथवा विहारभूमि (स्वाध्यायभूमि) की ओर नीकले हुए निर्ग्रन्थ द्वारा किसी अकृत्यस्थान का प्रतिसेवन हो गया हो, तत्क्षण उसके मन में ऐसा विचार हो कि ‘पहले मैं स्वयं यहीं इस अकृत्य की आलोचनादि करूँ, इत्यादि पूर्ववत्। यहाँ भी पूर्वोक्त प्रकार से असम्प्राप्त और सम्प्राप्त दोनों के आठ आलापक कहने चाहिए। यावत् वह निर्ग्रन्थ आराधक है, विराधक नहीं; ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए किसी निर्ग्रन्थ द्वारा किसी अकृत्यस्थान का प्रतिसेवन हो गया हो और तत्काल उसके मन में यह विचार स्फुरित हो कि ‘पहले मैं यहीं इस अकृत्य की आलोचनादि करूँ; इत्यादि सारा वर्णन पूर्ववत्। यहाँ भी पूर्ववत् आठ आलापक कहना, यावत् वह आराधक है, विराधक नहीं। गृहस्थ के घर में आहार ग्रहण करने की बुद्धि से प्रविष्ट किसी निर्ग्रन्थी (साध्वी) ने किसी अकृत्यस्थान का प्रतिसेवन कर लिया, किन्तु तत्काल उसको ऐसा विचार स्फुरित हुआ कि मैं स्वयमेव पहले यहीं इस अकृत्यस्थान की आलोचना कर लूँ, यावत् प्रायश्चित्तरूप तपःकर्म स्वीकार कर लूँ। तत्पश्चात् प्रवर्तिनी के पास आलोचना कर लूँगी यावत् तपःकर्म स्वीकार कर लूँगी। ऐसा विचार कर उस साध्वी ने प्रवर्तिनी के पास जाने के लिए प्रस्थान किया, प्रवर्तिनी के पास पहुँचने से पूर्व ही वह प्रवर्तिनी मूक हो गई, तो हे भगवन् ! वह साध्वी आराधिका है या विराधिका ? गौतम ! वह साध्वी आराधिका है, विराधिका नहीं। जिस प्रकार संप्रस्थित निर्ग्रन्थ के तीन पाठ हैं उसी प्रकार सम्प्रस्थित साध्वी के भी तीन पाठ कहने चाहिए और वह साध्वी आराधिका है, विराधिका नहीं। भगवन् ! किस कारण से आप कहते हैं, वे आराधक है, विराधक नहीं ? गौतम ! जैसे कोई पुरुष एक बड़े ऊन के बाल के या हाथी के रोम के अथवा सण के रेशे के या कपास के रेशे के अथवा तृण के अग्रभाग के दो, तीन या संख्यात टुकड़े करके अग्निकाय में डाले तो हे गौतम ! काटे जाते हुए वे (टुकड़े) काटे गए, अग्नि में डाले जाते हुए को डाले गए या जलते हुए को जल गए, इस प्रकार कहा जा सकता है ? हाँ, भगवन् ! काटे जाते हुए काटे गए अग्नि में डाले जाते हुए डाले गए और जलते हुए जल गए; यों कहा जा सकता है। भगवान का कथन – अथवा जैसे कोई पुरुष बिलकुल नये, या धोये हुए, अथवा तंत्र से तुरंत ऊतरे हुए वस्त्र को मजीठ के पात्र में डाले तो हे गौतम ! उठाते हुए वह वस्त्र उठाया गया, डालते हुए डाला गया, अथवा रंगते हुए रंगा गया, यों कहा जा सकता है ? (गौतम स्वामी – ) हाँ, भगवन् ! उठाते हुए वह वस्त्र उठाया गया, यावत् रंगते हुए रंगा गया, इस प्रकार कहा जा सकता है। (भगवान – ) इसी कारण से हे गौतम ! यों कहा जाता है कि (आराधना के लिए उद्यत साध्वी) आराधक है, विराधक नहीं है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] niggamthena ya gahavaikulam pimdavayapadiyae pavitthenam annayaresu akichchatthane padisevie, tassa nam evam bhavati– iheva tava aham eyassa thanassa aloemi, padikkamami, nimdami, garihami, viuttami, visohemi, akaranayae abbhutthemi, ahariyam payachchhittam tavokammam padivajjami, tao pachchha theranam amtiyam aloessami java tavokammam padivajjissami. 1. Se ya sampatthie asampatte, thera ya puvvameva amuha siya. Se nam bhamte! Kim arahae? Virahae? Goyama! Arahae, no virahae. 2. Se ya sampatthie asampatte, appana ya puvvameva amuhe siya. Se nam bhamte! Kim arahae? Virahae? Goyama! Arahae, no virahae. 3. Se ya sampatthie asampatte, thera ya kalam karejja. Se nam bhamte! Kim arahae? Virahae? Goyama! Arahae, no virahae. 4. Se ya sampatthie asampatte, appana ya puvvameva kalam karejja. Se nam bhamte! Kim arahae? Virahae? Goyama! Arahae, no virahae. 5. Se ya sampatthie sampatte, thera ya amuha siya. Se nam bhamte! Kim arahae? Virahae? Goyama! Arahae, no virahae. 6. Se ya sampatthie sampatte appana ya amuhe siya. Se nam bhamte! Kim arahae? Virahae? Goyama! Arahae, no virahae. 7. Se ya sampatthie sampatte, thera ya kalam karejja. Se nam bhamte! Kim arahae? Virahae? Goyama! Arahae, no virahae. 8. Se ya sampatthie sampatte appana ya kalam karejja. Se nam bhamte! Kim arahae? Virahae? Goyama! Arahae, no virahae. Niggamthena ya bahiya viyarabhumim va viharabhumim va nikkhamtenam annayaresu akichchatthane padisevie, tassa nam evam bhavati–iheva tava aham eyassa thanassa aloemi–evam ettha vi te cheva attha alavaga bhaniyavva java no virahae. Niggamthena ya gamanugamam duijjamanenam annayaresu akichchatthane padisevie, tassa nam evam bhavai–iheva tava aham eyassa thanassa aloemi–evam ettha vi te cheva attha alavaga bhaniyavva java no virahae. Niggamthie ya gahavaikulam pimdavayapadiyae anupavitthae annayaresu akichchatthane padisevie, tise nam evam bhavai– iheva tava aham eyassa thanassa aloemi java tavokammam padivajjami; tao pachchha pavattinie amtiyam aloessami java tavokammam padivajjissami. Sa ya sampatthiya asampatta, pavattini ya amuha siya. Sa nam bhamte! Kim arahiya? Virahiya? Goyama! Arahiya, no virahiya. Sa ya sampatthiya jaha niggamthassa tinni gama bhaniya evam niggamthie vi tinni alavaga bhaniyavva java arahiya, no virahiya. Se kenatthena bhamte! Evam vuchchai–arahae? No virahae? Goyama! Se jahanamae kei purise egam maham unnalomam va, gayalomam va, sanalomam va, kappasalomam va, tanasuyam va duha va tiha va samkhejjaha va chhimditta aganikayamsi pakkhivejja, se nunam goyama! Chhijjamane chhinne, pakkhippamane pakkhitte, dajjhamane daddhe tti vattavvam siya? Hamta bhagavam! Chhijjamane chhinne, pakkhippamane pakkhitte, dajjhamane daddhe tti vattavvam siya. Se jaha va kei purise vattham ahatam va, dhotam va, tamtuggayam va mamjitthadonie pakkhivejja, se nunam goyama! Ukkhippamane ukkhitte, pakkhippamane pakkhitte, rajjamane ratte tti vattavvam siya? Hamta bhagavam! Ukkhippamane ukkhitte, pakkhippamane pakkhitte, rajjamane ratte tti vattavvam siya. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–arahae, no virahae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Grihastha ke ghara ahara grahana karane ki buddhi se pravishta nirgrantha dvara kisi akritya sthana ka pratisevana ho gaya ho aura tatkshana usake mana mem aisa vichara ho ki prathama maim yahim isa akrityasthana ki alochana, pratikramana, ninda aura garha karum; (usake anubandha ka) chhedana karum, isa (papa – dosha se) vishuddha banum, punah aisa akritya na karane ke lie abhyudyata houm aura yathochita prayashchittarupa tapahkarma svikara kara lum. Tatpashchat sthavirom ke pasa jakara alochana karumga, yavat prayashchittarupa tapahkarma svikara kara lumga, (aisa socha ke) vaha nirgrantha, sthavira muniyom ke pasa jane ke lie ravana hua; kintu sthavira muniyom ke pasa pahumchane se pahale hi ve sthavira muka ho jaem to he bhagavan ! Vaha nirgrantha aradhaka hai ya viradhaka\? Gautama ! Vaha (nirgrantha) aradhaka hai, viradhaka nahim. Yavat unake pasa pahumchane se purva hi vaha nirgrantha svayam muka ho jae, to he bhagavan ! Vaha nirgrantha aradhaka hai ya viradhaka\? Gautama vaha (nirgrantha) aradhaka hai, viradhaka nahim. (uparyukta akrityasevi) nirgrantha sthavira muniyom ke pasa alochanadi ke lie ravana hua, kintu usake pahumchane se purva hi ve sthavira muni kala kara jaem, to he bhagavan ! Vaha nirgrantha aradhaka hai ya viradhaka\? Gautama ! Vaha aradhaka hai, viradhaka nahim. Bhagavan ! (uparyukta akritya – sevana karake) vaha nirgrantha sthavirom ke pasa alocha – nadi karane ke lie nikala, kintu vaham pahumcha nahim, usase purva hi svayam kala kara jae to he bhagavan ! Vaha nirgrantha aradhaka hai ya viradhaka\? Gautama ! Vaha aradhaka hai, viradhaka nahim. Uparyukta akrityasevi nirgrantha ne tatkshana alochanadi karake sthavira munivarom ke pasa alochanadi karane hetu prasthana kiya, vaha sthavirom ke pasa pahumcha gaya, tatpashchat ve sthavira muni muka ho jaem, to he bhagavan ! Vaha nirgrantha aradhaka hai ya viradhaka\? Gautama ! Vaha (nirgrantha) aradhaka hai, viradhaka nahim. (uparyukta akrityasevi muni) svayam alochanadi karake sthavirom ki seva mem pahumchate hi svayam muka ho jae, jisa prakara sthavirom ke pasa na pahumche hue nirgrantha ke chara alapaka kahe gae haim, usi prakara samprapta nirgrantha ke bhi chara alapaka kahana. Bahara vicharabhumi (sthandilabhumi) athava viharabhumi (svadhyayabhumi) ki ora nikale hue nirgrantha dvara kisi akrityasthana ka pratisevana ho gaya ho, tatkshana usake mana mem aisa vichara ho ki ‘pahale maim svayam yahim isa akritya ki alochanadi karum, ityadi purvavat. Yaham bhi purvokta prakara se asamprapta aura samprapta donom ke atha alapaka kahane chahie. Yavat vaha nirgrantha aradhaka hai, viradhaka nahim; gramanugrama vicharana karate hue kisi nirgrantha dvara kisi akrityasthana ka pratisevana ho gaya ho aura tatkala usake mana mem yaha vichara sphurita ho ki ‘pahale maim yahim isa akritya ki alochanadi karum; ityadi sara varnana purvavat. Yaham bhi purvavat atha alapaka kahana, yavat vaha aradhaka hai, viradhaka nahim. Grihastha ke ghara mem ahara grahana karane ki buddhi se pravishta kisi nirgranthi (sadhvi) ne kisi akrityasthana ka pratisevana kara liya, kintu tatkala usako aisa vichara sphurita hua ki maim svayameva pahale yahim isa akrityasthana ki alochana kara lum, yavat prayashchittarupa tapahkarma svikara kara lum. Tatpashchat pravartini ke pasa alochana kara lumgi yavat tapahkarma svikara kara lumgi. Aisa vichara kara usa sadhvi ne pravartini ke pasa jane ke lie prasthana kiya, pravartini ke pasa pahumchane se purva hi vaha pravartini muka ho gai, to he bhagavan ! Vaha sadhvi aradhika hai ya viradhika\? Gautama ! Vaha sadhvi aradhika hai, viradhika nahim. Jisa prakara samprasthita nirgrantha ke tina patha haim usi prakara samprasthita sadhvi ke bhi tina patha kahane chahie aura vaha sadhvi aradhika hai, viradhika nahim. Bhagavan ! Kisa karana se apa kahate haim, ve aradhaka hai, viradhaka nahim\? Gautama ! Jaise koi purusha eka bare una ke bala ke ya hathi ke roma ke athava sana ke reshe ke ya kapasa ke reshe ke athava trina ke agrabhaga ke do, tina ya samkhyata tukare karake agnikaya mem dale to he gautama ! Kate jate hue ve (tukare) kate gae, agni mem dale jate hue ko dale gae ya jalate hue ko jala gae, isa prakara kaha ja sakata hai\? Ham, bhagavan ! Kate jate hue kate gae agni mem dale jate hue dale gae aura jalate hue jala gae; yom kaha ja sakata hai. Bhagavana ka kathana – athava jaise koi purusha bilakula naye, ya dhoye hue, athava tamtra se turamta utare hue vastra ko majitha ke patra mem dale to he gautama ! Uthate hue vaha vastra uthaya gaya, dalate hue dala gaya, athava ramgate hue ramga gaya, yom kaha ja sakata hai\? (gautama svami – ) ham, bhagavan ! Uthate hue vaha vastra uthaya gaya, yavat ramgate hue ramga gaya, isa prakara kaha ja sakata hai. (bhagavana – ) isi karana se he gautama ! Yom kaha jata hai ki (aradhana ke lie udyata sadhvi) aradhaka hai, viradhaka nahim hai. |