Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003906
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-८

Translated Chapter :

शतक-८

Section : उद्देशक-६ प्रासुक आहारादि Translated Section : उद्देशक-६ प्रासुक आहारादि
Sutra Number : 406 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] निग्गंथं च णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए, अनुप्पविट्ठं केइ दोहिं पिंडेहिं उवनिमंतेज्जा–एगं आउसो! अप्पणा भुंजाहि, एगं थेराणं दलयाहि। से य तं पडिग्गाहेज्जा, थेरा य से अनुगवेसियव्वा सिया। जत्थेव अनुगवेसमाणे थेरे पासिज्जा तत्थेव अनुप्पदायव्वे सिया, नो चेव णं अनुगवेसमाणे थेरे पासिज्जा तं नो अप्पणा भुंजेज्जा, नो अन्नेसिं दावए, एगंते अनावाए अचित्ते बहुफासुए थंडिल्ले पडिलेहेत्ता पमज्जित्ता परिट्ठावेयव्वे सिया। निग्गंथं च णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अनुप्पविट्ठं केइ तिहिं पिंडेहिं उवनिमंतेज्जा–एगं आउसो! अप्पणा भुंजाहि, दो थेराणं दलयाहि। से य ते पडिग्गाहेज्जा, थेरा य से अनुगवेसियव्वा सिया। जत्थेव अनुगवेसमाणे थेरे पासिज्जा तत्थेव अनुप्पदायव्वे सिया, नो चेव णं अनुगवेसमाणे थेरे पासिज्जा ते नो अप्पणा भुंजेज्जा, नो अन्नेसिं दावए, एगंते अनावाए अचित्ते बहुफासुए थंडिल्ले पडिलेहेत्ता पमज्जित्ता परिट्ठावेयव्वा सिया। एवं जाव दसहिं पिंडेहिं उवनिमंतेज्जा, नवरं–एगं आउसो! अप्पणा भुंजाहि, नव थेराणं दलयाहि। सेसं तं चेव जाव परिट्ठावेयव्वा सिया। निग्गंथं च णं गाहावइ कुलं पिंडवायपडियाए अनुप्पविट्ठं केइ दोहिं पडिग्गहेहिं उवनि-मंतेज्जा–एगं आउसो! अप्पणा पडिभुंजाहि, एगं थेराणं दलयाहि। से य तं पडिग्गाहेज्जा, थेरा य से अनुगवेसियव्वा सिया। जत्थेव अनुगवेसमाणे थेरे पासिज्जा तत्थेव अनुप्पदायव्वे सिया, नो चेव णं अनुगवेसमाणे थेरे पासिज्जा तं नो अप्पणा परिभुंजेज्जा, नो अन्नेसिं दावए, एगंते अनावाए अचित्ते बहुफासुए थंडिल्ले पडिलेहेत्ता पम्मज्जित्ता परिट्ठावेयव्वे सिया। एवं जाव दसहिं पडिग्गहेहिं। एवं जहा पडिग्गहवत्तव्वया भणिया, एवं गोच्छग-रयहरण-चोलपट्टग-कंबल-लट्ठि-संथारगवत्तव्वया य भाणियव्वा जाव दसहिं संथारएहिं उवनिमंतेज्जा जाव परिट्ठावेयव्वा सिया।
Sutra Meaning : गृहस्थ के घर में आहार ग्रहण करने की बुद्धि से प्रविष्ट निर्ग्रन्थ को कोई गृहस्थ दो पिण्ड ग्रहण करने के लिए उपनिमंत्रण करे – ‘आयुष्मन्‌ श्रमण ! इन दो पिण्डों में से एक पिण्ड आप स्वयं खाना और दूसरा पिण्ड स्थविर मुनियों को देना। वह निर्ग्रन्थ श्रमण उन दोनों पिण्डों को ग्रहण कर ले और स्थविरों की गवेषणा करे। गवेषणा करने पर उन स्थविर मुनियों को जहाँ देखे, वहीं वह पिण्ड उन्हें दे दे। यदि गवेषणा करने पर भी स्थविर मुनि कहीं न दिखाई दें तो वह पिण्ड स्वयं न खाए और न ही दूसरे किसी श्रमण को दे, किन्तु एकान्त, अनापात, अचित्त या बहुप्रासुक स्थण्डिल भूमि का प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके वहाँ परिष्ठापन करे। गृहस्थ के घर में आहार ग्रहण करने के विचार से प्रविष्ट निर्ग्रन्थ को कोई गृहस्थ तीन पिण्ड ग्रहण करने के लिए उपनिमंत्रण करे – ‘आयुष्मन्‌ श्रमण ! एक पिण्ड आप स्वयं खाना और दो पिण्ड स्थविर श्रमणों को देना।’ वह निर्ग्रन्थ उन तीनों पिण्डों को ग्रहण कर ले। तत्पश्चात्‌ वह स्थविरों की गवेषणा करे। शेष वर्णन पूर्ववत्‌। यावत्‌ स्वयं न खाए, परिष्ठापन करे। गृहस्थ के घर में प्रविष्ट निर्ग्रन्थ को यावत्‌ दस पिण्डों को ग्रहण करने के लिए कोई गृहस्थ उपनिमंत्रण दे – ‘आयुष्मन्‌ श्रमण ! इनमें से एक पिण्ड आप स्वयं खाना और शेष नौ पिण्ड स्थविरों को देना;’ इत्यादि वर्णन पूर्ववत्‌। निर्ग्रन्थ यावत्‌ गृहपति – कुल में प्रवेश करे और कोई गृहस्थ उसे दो पात्र ग्रहण करने के लिए उपनिमंत्रण करे – ‘आयुष्मन्‌ श्रमण ! एक पात्र का आप स्वयं उपयोग करना और दूसरा पात्र स्थविरों को दे देना।’ इस पर वह निर्ग्रन्थ उन दोनों पात्रों को ग्रहण कर ले। शेष वर्णन पूर्ववत्‌ यावत्‌ उस पात्र का न तो स्वयं उपयोग करे और न दूसरे साधुओं को दे; यावत्‌ उसे परठ दे। इसी प्रकार तीन, चार यावत्‌ दस पात्र तक का कथन पूर्वोक्त पिण्ड के समान कहना। पात्र के समान सम्बन्ध गुच्छक, रजोहरण, चोलपट्टक, कम्बल, लाठी, (दण्ड) और संस्तारक की वक्तव्यता कहना, यावत्‌ दस संस्तारक ग्रहण करने के लिए उपनिमंत्रण करे, यावत्‌ परठ दे।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] niggamtham cha nam gahavaikulam pimdavayapadiyae, anuppavittham kei dohim pimdehim uvanimamtejja–egam auso! Appana bhumjahi, egam theranam dalayahi. Se ya tam padiggahejja, thera ya se anugavesiyavva siya. Jattheva anugavesamane there pasijja tattheva anuppadayavve siya, no cheva nam anugavesamane there pasijja tam no appana bhumjejja, no annesim davae, egamte anavae achitte bahuphasue thamdille padilehetta pamajjitta paritthaveyavve siya. Niggamtham cha nam gahavaikulam pimdavayapadiyae anuppavittham kei tihim pimdehim uvanimamtejja–egam auso! Appana bhumjahi, do theranam dalayahi. Se ya te padiggahejja, thera ya se anugavesiyavva siya. Jattheva anugavesamane there pasijja tattheva anuppadayavve siya, no cheva nam anugavesamane there pasijja te no appana bhumjejja, no annesim davae, egamte anavae achitte bahuphasue thamdille padilehetta pamajjitta paritthaveyavva siya. Evam java dasahim pimdehim uvanimamtejja, navaram–egam auso! Appana bhumjahi, nava theranam dalayahi. Sesam tam cheva java paritthaveyavva siya. Niggamtham cha nam gahavai kulam pimdavayapadiyae anuppavittham kei dohim padiggahehim uvani-mamtejja–egam auso! Appana padibhumjahi, egam theranam dalayahi. Se ya tam padiggahejja, thera ya se anugavesiyavva siya. Jattheva anugavesamane there pasijja tattheva anuppadayavve siya, no cheva nam anugavesamane there pasijja tam no appana paribhumjejja, no annesim davae, egamte anavae achitte bahuphasue thamdille padilehetta pammajjitta paritthaveyavve siya. Evam java dasahim padiggahehim. Evam jaha padiggahavattavvaya bhaniya, evam gochchhaga-rayaharana-cholapattaga-kambala-latthi-samtharagavattavvaya ya bhaniyavva java dasahim samtharaehim uvanimamtejja java paritthaveyavva siya.
Sutra Meaning Transliteration : Grihastha ke ghara mem ahara grahana karane ki buddhi se pravishta nirgrantha ko koi grihastha do pinda grahana karane ke lie upanimamtrana kare – ‘ayushman shramana ! Ina do pindom mem se eka pinda apa svayam khana aura dusara pinda sthavira muniyom ko dena. Vaha nirgrantha shramana una donom pindom ko grahana kara le aura sthavirom ki gaveshana kare. Gaveshana karane para una sthavira muniyom ko jaham dekhe, vahim vaha pinda unhem de de. Yadi gaveshana karane para bhi sthavira muni kahim na dikhai dem to vaha pinda svayam na khae aura na hi dusare kisi shramana ko de, kintu ekanta, anapata, achitta ya bahuprasuka sthandila bhumi ka pratilekhana evam pramarjana karake vaham parishthapana kare. Grihastha ke ghara mem ahara grahana karane ke vichara se pravishta nirgrantha ko koi grihastha tina pinda grahana karane ke lie upanimamtrana kare – ‘ayushman shramana ! Eka pinda apa svayam khana aura do pinda sthavira shramanom ko dena.’ vaha nirgrantha una tinom pindom ko grahana kara le. Tatpashchat vaha sthavirom ki gaveshana kare. Shesha varnana purvavat. Yavat svayam na khae, parishthapana kare. Grihastha ke ghara mem pravishta nirgrantha ko yavat dasa pindom ko grahana karane ke lie koi grihastha upanimamtrana de – ‘ayushman shramana ! Inamem se eka pinda apa svayam khana aura shesha nau pinda sthavirom ko dena;’ ityadi varnana purvavat. Nirgrantha yavat grihapati – kula mem pravesha kare aura koi grihastha use do patra grahana karane ke lie upanimamtrana kare – ‘ayushman shramana ! Eka patra ka apa svayam upayoga karana aura dusara patra sthavirom ko de dena.’ isa para vaha nirgrantha una donom patrom ko grahana kara le. Shesha varnana purvavat yavat usa patra ka na to svayam upayoga kare aura na dusare sadhuom ko de; yavat use paratha de. Isi prakara tina, chara yavat dasa patra taka ka kathana purvokta pinda ke samana kahana. Patra ke samana sambandha guchchhaka, rajoharana, cholapattaka, kambala, lathi, (danda) aura samstaraka ki vaktavyata kahana, yavat dasa samstaraka grahana karane ke lie upanimamtrana kare, yavat paratha de.