Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003875 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-७ |
Translated Chapter : |
शतक-७ |
Section : | उद्देशक-९ असंवृत्त | Translated Section : | उद्देशक-९ असंवृत्त |
Sutra Number : | 375 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] बहुजणे णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ– एवं खलु बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं से बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–एवं खलु बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु सु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं वेसाली नामं नगरी होत्था–वण्णओ। तत्थ णं वेसालीए नगरीए वरुणे नामं नागनत्तुए परिवसइ–अड्ढे जाव अपरिभूए, समणोवासए, अभिगयजीवाजीवे जाव समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं ओसह-भेसज्जेणं पडिलाभेमाणे छट्ठंछट्ठेणं णं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरति। तए णं से वरुणे नागनत्तुए अन्नया कयाइ रायाभिओगेणं, गणाभिओगेणं, बलाभिओगेणं रहमुसले संगामे आणत्ते समाणे छट्ठभत्तिए अट्ठमभत्तं अणुवट्टेति, अणुवट्टेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठावेह, हय-गय-रह-पवर-जोहकलियं चाउरंगिणिं सेनं सण्णाहेह, सण्णाहेत्ता मम एयमा-णत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव सच्छत्तं सज्झयं जाव चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठा-वेंति, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेनं सण्णाहेंति, सण्णाहेत्ता जेणेव वरुणे नागनत्तुए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता जाव तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से वरुणे नागनत्तुए जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्तं सव्वालंकार-विभूसिए सण्णद्ध-बद्ध-वम्मियकवए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं, अनेगगणनायग-दंडनायग-राईसर-तलवर- माडंबिय-कोडुंबिय- इब्भ-सेट्ठि- सेनावइ-सत्थवाह- दूय-संधिपालसद्धिं संपरिवुडे मज्जणघराओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडे महयाभडचडगरविंदपरिक्खित्ते जेणेव रहमुसले संगामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहमुसलं संगामं ओयाए। तए णं से वरुणे नागनत्तुए रहमुसलं संगामं ओयाए समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ–कप्पति मे रहमुसलं संगामं संगामेमाणस्स जे पुव्विं पहणइ से पडिहणित्तए, अवसेसे नो कप्पतीति; अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ अभिगेण्हेत्ता रहमुसलं संगामं संगामेति। तए णं तस्स वरुणस्स नागनत्तुयस्स रहमुसलं संगामं संगामेमाणस्स एगे पुरिसे सरिसए सरित्तए सरिव्वए सरिसभंडमत्तोवगरणे रहेणं पडिरहं हव्वमागए। तए णं से पुरिसे वरुणं नागनत्तुयं एवं वदासी–पहण भो वरुणा! नागनत्तुया! पहण भो वरुणा! नागनत्तुया! तए णं से वरुणे नागनत्तुए तं पुरिसं एवं वदासी–नो खलु मे कप्पइ देवानुप्पिया! पुव्विं अहयस्स पहणित्तए, तुमं चेव णं पुव्विं पहणाहि। तए णं से पुरिसे वरुणेणं नागनत्तुएणं एवं वुत्ते समाणे आसुरत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे धणुं परामुसइ, परामुसित्ता उसुं परामुसइ, परामुसित्ता ठाणं ठाति, ठिच्चा आययकण्णाययं उसुं करेइ, करेत्ता वरुणं नागनत्तुयं गाढप्पहारी-करेइ। तए णं से वरुणे नागनत्तुए तेणं पुरिसेनं गाढप्पहारीकए समाणे आसुरुत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे धणुं परामुसइ, परामुसित्ता उसुं परामुसइ, परामुसित्ता आययकण्णाययं उसुं करेइ, करेत्ता तं पुरिसं एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवेइ। तए णं से वरुणे नागनत्तुए तेणं पुरिसेनं गाढप्पहारीकए समाणे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कट्टु तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं परावत्तेइ, परावत्तेत्ता रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्ख-मित्ता एगंतमंतं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता तुरए मोएइ, मोएत्ता तुरए विसज्जेइ, विसज्जेत्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसण्णे करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी– नमोत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आदिगरस्स जाव सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं सपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स, वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मे से भगवं तत्थगए इहगयं ति कट्टु वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– पुव्विं पि णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए, एवं जाव थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए जावज्जीवाए, इयाणिं पि णं अहं तस्सेव भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्च-क्खामि जावज्जीवाए जाव मिच्छादंसणसल्लं पच्चक्खामि जावज्जीवाए। सव्वं असन-पान-खाइम-साइमं–चउव्विहं पि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए। जं पि य इमं सरीरं इट्ठं कंतं पियं जाव मा णं वाइय-पित्तिय-सेंभिय-सण्णिवाइय विविहा रोगायंका परी-सहोवसग्गा फुसंतु त्ति कट्टु एयं पि णं चरिमेहिं ऊसास-नीसासेहिं वोसिरिस्सामि त्ति कट्टु सन्नाहपट्टं मुयइ, मुइत्ता सल्लुद्धरणं करेइ, करेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते आनुपुव्वीए कालगए। तए णं तस्स वरुणस्स नागनत्तुयस्स एगे पियबालवयंसए रहमुसलं संगामं संगामेमाणे एगेणं पुरिसेनं गाढप्पहारीकए समाणे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कट्टु वरुणं नागनत्तुयं रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खममाणं पासइ, पासित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता जहा वरुणे जाव तुरए विसज्जेति, पडसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता पुरत्था-भिमुहे संपलियंकनिसण्णे करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी– जाइ णं भंते! मम पियबालव-यंसस्स वरुणस्स नागनत्तुयस्स सीलाइं वयाइं गुणाइं वेरमणाइं पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं, ताइ णं ममं पि भवंतु त्ति कट्टु सन्नाहपट्टं मुयइ, मुइत्ता सल्लुद्धरणं करेइ, करेत्ता आनुपुव्वीए कालगए। तए णं तं वरुणं नागनत्तुयं कालगयं जाणित्ता अहासन्निहिएहिं वाणमंतरेहिं देवेहिं दिव्वे सुरभिगंधोदगवासे वुट्ठे, दसद्धवण्णे कुसुमे निवातिए, दिव्वे य गीय-गंधव्वनिनादे कए या वि होत्था। तए णं तस्स वरुणस्स नागनत्तुयस्स तं दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवज्जुतिं दिव्वं देवाणुभागं सुणित्ता य पासित्ता य बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु सु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! बहुत – से लोग परस्पर ऐसा कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि – अनेक प्रकार के छोटे – बड़े संग्रामों में से किसी भी संग्राम में सामना करते हुए आहत हुए एवं घायल हुए बहुत – से मनुष्य मृत्यु के समय मरकर किसी भी देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! ऐसा कैसे हो सकता है ? गौतम ! बहुत – से मनुष्य, जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि संग्राम में मारे गए मनुष्य देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, ऐसा कहने वाले मिथ्या कहते हैं। हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपणा करता हूँ – गौतम ! उस काल और उस समय में वैशाली नामकी नगरी थी। उस वैशाली नगरी में ‘वरुण’ नामक नागनप्तृक रहता था। वह धनाढ्य यावत् अपरिभूत व्यक्ति था। वह श्रमणोपासक था और जीवाजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता था, यावत् वह आहारादि द्वारा श्रमण निर्ग्रन्थों को प्रतिलाभित करता हुआ तथा निरन्तर छठ – छठ की तपस्या द्वारा अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरण करता था। एक बार राजा के अभियोग से, गण के अभियोग से तथा बल के अभियोग से वरुण नागनप्तृक को रथ – मूसलसंग्राम में जाने की आज्ञा दी गई। तब उसने षष्ठभक्त को बढ़ाकर अष्टभक्त तप कर लिया। तेले की तपस्या करके उसने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर इस प्रकार कहा – ‘हे देवानुप्रियो ! चार घण्टों वाला अश्वरथ, सामग्रीयुक्त तैयार करके शीघ्र उपस्थित करो। साथ ही अश्व, हाथी, रथ और प्रवर योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना को सुसज्जित करो, यावत् वह सब सुसज्जित करके मेरी आज्ञा मुझे वापस सौंपो। तदनन्तर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उसकी आज्ञा स्वीकार एवं शिरोधार्य करके यथाशीघ्र छत्रसहित एवं ध्वजासहित चार घण्टाओं वाला अश्वरथ, यावत् तैयार करके उपस्थित किया। साथ ही घोड़े, हाथी, रथ एवं प्रवर योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना को यावत् सुसज्जित किया और सुसज्जित करके यावत् वरुण नागनप्तृक को उसकी आज्ञा वापिस सौंपी। तत्पश्चात् वह वरुण नागनप्तृक, जहाँ स्नानगृह था, वहाँ आया। यावत् कौतुक और मंगलरूप प्रायश्चित्त किया, सर्व अलंकारों से विभूषित हुआ, कवच पहना, कोरंटपुष्पों की मालाओं से युक्त छत्र धारण किया, इत्यादि कूणिक राजा की तरह कहना चाहिए। फिर अनेक गणनायकों, दूतों और सन्धिपालों के साथ परिवृत्त होकर वह स्नानगृह से बाहर नीकलकर बाहर की उपस्थानशाला में आया और सुसज्जित चातुर्घण्ट अश्वरथ पर आरूढ होकर अश्व, गज, रथ और योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना के साथ, यावत् महान् सुभटों के समूह से परिवृत्त होकर जहाँ रथमूसल – संग्राम होने वाला था, वहाँ आया। रथमूसल – संग्राम में ऊतरा। उस समय रथमूसल – संग्राम में प्रवृत्त होने के साथ ही वरुण नागनप्तृक ने इस प्रकार का अभिग्रह किया – मेरे लिए यही कल्प्य है कि रथमूसल संग्राम में युद्ध करते हुए जो मुझ पर पहले प्रहार करेगा, उसे ही मुझे मारना है, (अन्य) व्यक्तियों को नहीं। यह अभिग्रह करके वह रथमूसल – संग्राम में प्रवृत्त हो गया। उसी समय रथमूसल – संग्राम में जूझते हुए वरुण नागनप्तृक के रथ के सामने प्रतिरथी के रूप में एक पुरुष शीघ्र ही आया, जो उसी के सदृश, उसी के समान त्वचा वाला था, उसी के समान उम्र का और उसी के समान अस्त्र – शस्त्रादि उपकरणों से युक्त था। तब उस पुरुष ने वरुण नागनप्तृक को इस प्रकार कहा – ‘हे वरुण नागनप्तृक ! मुझ पर प्रहार कर, अरे वरुण नागनप्तृक ! मुझ पर वार कर !’ इस पर वरुण नागनप्तृक ने उस पुरुष से यों कहा – ‘‘हे देवानुप्रिय ! जो मुझ पर प्रहार न करे, उस पर पहले प्रहार करने का मेरा कल्प (नियम) नहीं है। इसलिए तुम (चाहे तो) पहले मुझ पर प्रहार करो।’’ तदनन्तर वरुण नागनप्तृक के द्वारा ऐसा कहने पर उस पुरुष ने शीघ्र ही क्रोध से लाल – पीला होकर यावत् दाँत पीसते हुए अपना धनुष उठाया। फिर बाण उठाया फिर धनुष पर यथास्थान बाण चढ़ाया। फिर अमुक आसन से अमुक स्थान पर स्थित होकर धनुष को कान तक खींचा। ऐसा करके उसने वरुण नागनप्तृक पर गाढ़ प्रहार किया। गाढ़ प्रहार से घायल हुए वरुण नागनप्तृक ने शीघ्र कुपित होकर यावत् मिसमिसाते हुए धनुष उठाया। फिर उस पर बाण चढ़ाया और उस बाण को कान तक खींचकर उस पुरुष पर छोड़ा। जैसे एक ही जोरदार चोट से पत्थर के टुकड़े – टुकड़े हो जाते हैं, उसी प्रकार वरुण नागनप्तृक ने एक ही गाढ़ प्रहार से उस पुरुष को जीवन से रहित कर दिया उस पुरुष के गाढ़ प्रहार से सख्त घायल हुआ वरुण नागनप्तृक अशक्त, अबल, अवीर्य, पुरुषार्थ एवं पराक्रम से रहित हो गया। अतः ‘अब मेरा शरीर टिक नहीं सकेगा’ ऐसा समझकर उसने घोड़ों को रोका, रथ को वापिस फिराया और रथमूसलसंग्राम स्थल से बाहर नीकल गया। एकान्त स्थान में आकर रथ को खड़ा किया। फिर रथ से नीचे ऊतरकर उसने घोड़ों को छोड़कर विसर्जित कर दिया। फिर दर्भ का संथारा बिछाया और पूर्व दिशा की ओर मुँह करके दर्भ के संस्तारक पर पर्यकासन से बैठा और दोनों हाथ जोड़कर यावत् कहा – अरिहन्त भगवंतों को, यावत् जो सिद्धगति को प्राप्त हुए हैं, नमस्कार हो। मेरे धर्मगुरु, धर्माचार्य श्रमण भगवान महावीर को नमस्कार हो, जो धर्म की आदि करने वाले यावत् सिद्धगति प्राप्त करने के ईच्छुक हैं। यहाँ रहा हुआ मैं वहाँ रहे हुए भगवान को वन्दन करता हूँ। वहाँ रहे हुए भगवान मुझे देखें। इत्यादि कहकर यावत् वन्दन – नमस्कार करके कहा – पहले मैंने श्रमण भगवान महावीर के पास स्थूल प्राणातिपात का, यावत् स्थूल परिग्रह का जीवनपर्यन्त के लिए प्रत्याख्यान किया था, किन्तु अब मैं उन्हीं अरिहन्त भगवान महावीर के पास (साक्षी से) सर्व प्राणातिपात का जीवनपर्यन्त के लिए प्रत्याख्यान करता हूँ। इस प्रकार स्कन्दक की तरह (अठारह ही पापस्थानों का सर्वथा प्रत्या – ख्यान कर दिया।) फिर इस शरीर का भी अन्तिम श्वासोच्छ्वास के साथ व्युत्सर्ग करता हूँ, यों कहकर उसने कवच खोल दिया। लगे हुए बाण को बाहर खींचा। उसने आलोचना की, प्रतिक्रमण किया और समाधियुक्त होकर मरण प्राप्त किया। उस वरुण नागनप्तृक का एक प्रिय बालमित्र भी रथमूलसंग्राम में युद्ध कर रहा था। वह भी एक पुरुष द्वारा प्रबल प्रहार करने से घायल हो गया। इससे अशक्त, अबल, यावत् पुरुषार्थ – पराक्रम से रहित बने हुए उसने सोचा – अब मेरा शरीर टिक नहीं सकेगा। जब उसने वरुण नागनप्तृक को रथमूसलसंग्राम – स्थल से बाहर नीकलते हुए देखा, तो वह भी अपने रथ को वापिस फिराकर रथमूसलसंग्राम से बाहर नीकला, घोड़ों को रोका और जहाँ वरुण नागनप्तृक ने घोड़ों को रथ से खोलकर विसर्जित किया था, वहाँ उसने भी घोड़ों को विसर्जित कर दिया। फिर दर्भ के संस्तारक को बिछाकर उस पर बैठा। दर्भसंस्तारक पर बैठकर पूर्वदिशा की ओर मुख करके यावत् दोनों हाथ जोड़कर यों बोला – भगवन् ! मेरे प्रिय बालमित्र वरुण नागनप्तृक के जो शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास हैं, वे सब मेरे भी हों, इस प्रकार कहकर उसने कवच खोला। शरीर में लगे हुए बाण को बाहर नीकाला। वह भी क्रमशः समाधियुक्त होकर कालधर्म को प्राप्त हुआ। तदनन्तर उस वरुण नागनप्तृक को कालधर्म प्राप्त हुआ जानकर निकटवर्ती वाणव्यन्तर देवों ने उस पर सुगन्धित जल की वृष्टि की, पाँच वर्ण के फूल बरसाए और दिव्यगीत एवं गन्धर्व – निनाद भी किया। तब से उस वरुण नागनप्तृक की उस दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवद्युति और दिव्य देवप्रभाव को सूनकर और जानकर बहुत – से लोग परस्पर इस प्रकार कहने लगे, यावत् प्ररूपणा करने लगे – ‘देवानुप्रियो ! संग्राम करते हुए जो बहुत – से मनुष्य मरते हैं, यावत् देवलोकों में उत्पन्न होते हैं।’ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] bahujane nam bhamte! Annamannassa evamaikkhai java paruvei– evam khalu bahave manussa annayaresu uchchavaesu samgamesu abhimuha cheva pahaya samana kalamase kalam kichcha annayaresu devaloesu devattae uvavattaro bhavamti. Se kahameyam bhamte! Evam? Goyama! Jannam se bahujane annamannassa evamaikkhai java paruvei–evam khalu bahave manussa annayaresu su uchchavaesu samgamesu abhimuha cheva pahaya samana kalamase kalam kichcha annayaresu su devaloesu devattae uvavattaro bhavamti, je te evamahamsu michchham te evamahamsu. Aham puna goyama! Evamaikkhami java paruvemi–evam khalu goyama! Tenam kalenam tenam samaenam vesali namam nagari hottha–vannao. Tattha nam vesalie nagarie varune namam naganattue parivasai–addhe java aparibhue, samanovasae, abhigayajivajive java samane niggamthe phasu-esanijjenam asana-pana-khaima-saimenam vattha-padiggaha-kambala-payapumchhanenam pidha-phalaga-sejja-samtharaenam osaha-bhesajjenam padilabhemane chhatthamchhatthenam nam tavokammenam appanam bhavemane viharati. Tae nam se varune naganattue annaya kayai rayabhiogenam, ganabhiogenam, balabhiogenam rahamusale samgame anatte samane chhatthabhattie atthamabhattam anuvatteti, anuvattetta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Chaugghamtam asaraham juttameva uvatthaveha, haya-gaya-raha-pavara-johakaliyam chauramginim senam sannaheha, sannahetta mama eyama-nattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa java padisunetta khippameva sachchhattam sajjhayam java chaugghamtam asaraham juttameva uvattha-vemti, haya-gaya-raha-pavarajohakaliyam chauramginim senam sannahemti, sannahetta jeneva varune naganattue teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta java tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se varune naganattue jeneva majjanaghare teneva uvagachchhati, uvagachchhitta majjanagharam anuppavisai, anuppavisitta nhae kayabalikamme kayakouya-mamgala-payachchhittam savvalamkara-vibhusie sannaddha-baddha-vammiyakavae sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam, anegagananayaga-damdanayaga-raisara-talavara- madambiya-kodumbiya- ibbha-setthi- senavai-satthavaha- duya-samdhipalasaddhim samparivude majjanagharao padinikkhamati, padinikkhamitta jeneva bahiriya uvatthanasala, jeneva chaugghamte asarahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta chaugghamtam asaraham duruhai, duruhitta haya-gaya-raha-pavarajohakaliyae chauramginie senae saddhim samparivude mahayabhadachadagaravimdaparikkhitte jeneva rahamusale samgame teneva uvagachchhai, uvagachchhitta rahamusalam samgamam oyae. Tae nam se varune naganattue rahamusalam samgamam oyae samane ayameyaruvam abhiggaham abhigenhai–kappati me rahamusalam samgamam samgamemanassa je puvvim pahanai se padihanittae, avasese no kappatiti; ayameyaruvam abhiggaham abhigenhai abhigenhetta rahamusalam samgamam samgameti. Tae nam tassa varunassa naganattuyassa rahamusalam samgamam samgamemanassa ege purise sarisae sarittae sarivvae sarisabhamdamattovagarane rahenam padiraham havvamagae. Tae nam se purise varunam naganattuyam evam vadasi–pahana bho varuna! Naganattuya! Pahana bho varuna! Naganattuya! Tae nam se varune naganattue tam purisam evam vadasi–no khalu me kappai devanuppiya! Puvvim ahayassa pahanittae, tumam cheva nam puvvim pahanahi. Tae nam se purise varunenam naganattuenam evam vutte samane asuratte rutthe kuvie chamdikkie misimisemane dhanum paramusai, paramusitta usum paramusai, paramusitta thanam thati, thichcha ayayakannayayam usum karei, karetta varunam naganattuyam gadhappahari-karei. Tae nam se varune naganattue tenam purisenam gadhappaharikae samane asurutte rutthe kuvie chamdikkie misimisemane dhanum paramusai, paramusitta usum paramusai, paramusitta ayayakannayayam usum karei, karetta tam purisam egahachcham kudahachcham jiviyao vavarovei. Tae nam se varune naganattue tenam purisenam gadhappaharikae samane atthame abale avirie apurisakkaraparakkame adharanijjamiti kattu turae niginhai, niginhitta raham paravattei, paravattetta rahamusalao samgamao padinikkhamati, padinikkha-mitta egamtamamtam avakkamai, avakkamitta turae niginhai, niginhitta raham thavei, thavetta rahao pachchoruhai, pachchoruhitta turae moei, moetta turae visajjei, visajjetta dabbhasamtharagam samtharai, samtharitta dabbhasamtharagam duruhai, duruhitta puratthabhimuhe sampaliyamkanisanne karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi– Namotthu nam arahamtanam bhagavamtanam java siddhigatinamadheyam thanam sampattanam, namotthu nam samanassa bhagavao mahavirassa adigarassa java siddhigatinamadheyam thanam sapaviukamassa mama dhammayariyassa dhammovadesagassa, vamdami nam bhagavamtam tatthagayam ihagae, pasau me se bhagavam tatthagae ihagayam ti kattu vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– Puvvim pi nam mae samanassa bhagavao mahavirassa amtie thulae panaivae pachchakkhae javajjivae, evam java thulae pariggahe pachchakkhae javajjivae, iyanim pi nam aham tasseva bhagavao mahavirassa amtie savvam panaivayam pachcha-kkhami javajjivae java michchhadamsanasallam pachchakkhami javajjivae. Savvam asana-pana-khaima-saimam–chauvviham pi aharam pachchakkhami javajjivae. Jam pi ya imam sariram ittham kamtam piyam java ma nam vaiya-pittiya-sembhiya-sannivaiya viviha rogayamka pari-sahovasagga phusamtu tti kattu eyam pi nam charimehim usasa-nisasehim vosirissami tti kattu sannahapattam muyai, muitta salluddharanam karei, karetta aloiya-padikkamte samahipatte anupuvvie kalagae. Tae nam tassa varunassa naganattuyassa ege piyabalavayamsae rahamusalam samgamam samgamemane egenam purisenam gadhappaharikae samane atthame abale avirie apurisakkaraparakkame adharanijjamiti kattu varunam naganattuyam rahamusalao samgamao padinikkhamamanam pasai, pasitta turae niginhai, niginhitta jaha varune java turae visajjeti, padasamtharagam duruhai, duruhitta purattha-bhimuhe sampaliyamkanisanne karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi– Jai nam bhamte! Mama piyabalava-yamsassa varunassa naganattuyassa silaim vayaim gunaim veramanaim pachchakkhana-posahovavasaim, tai nam mamam pi bhavamtu tti kattu sannahapattam muyai, muitta salluddharanam karei, karetta anupuvvie kalagae. Tae nam tam varunam naganattuyam kalagayam janitta ahasannihiehim vanamamtarehim devehim divve surabhigamdhodagavase vutthe, dasaddhavanne kusume nivatie, divve ya giya-gamdhavvaninade kae ya vi hottha. Tae nam tassa varunassa naganattuyassa tam divvam deviddhim divvam devajjutim divvam devanubhagam sunitta ya pasitta ya bahujano annamannassa evamaikkhai java paruvei– Evam khalu devanuppiya! Bahave manussa annayaresu su uchchavaesu samgamesu abhimuha cheva pahaya samana kalamase kalam kichcha annayaresu su devaloesu devattae uvavattaro bhavamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Bahuta – se loga paraspara aisa kahate haim, yavat prarupana karate haim ki – aneka prakara ke chhote – bare samgramom mem se kisi bhi samgrama mem samana karate hue ahata hue evam ghayala hue bahuta – se manushya mrityu ke samaya marakara kisi bhi devaloka mem devarupa mem utpanna hote haim. Bhagavan ! Aisa kaise ho sakata hai\? Gautama ! Bahuta – se manushya, jo isa prakara kahate haim, yavat prarupana karate haim ki samgrama mem mare gae manushya devalokom mem utpanna hote haim, aisa kahane vale mithya kahate haim. He gautama ! Maim isa prakara kahata hum yavat prarupana karata hum – gautama ! Usa kala aura usa samaya mem vaishali namaki nagari thi. Usa vaishali nagari mem ‘varuna’ namaka naganaptrika rahata tha. Vaha dhanadhya yavat aparibhuta vyakti tha. Vaha shramanopasaka tha aura jivajivadi tattvom ka jnyata tha, yavat vaha aharadi dvara shramana nirgranthom ko pratilabhita karata hua tatha nirantara chhatha – chhatha ki tapasya dvara apani atma ko bhavita karata hua vicharana karata tha. Eka bara raja ke abhiyoga se, gana ke abhiyoga se tatha bala ke abhiyoga se varuna naganaptrika ko ratha – musalasamgrama mem jane ki ajnya di gai. Taba usane shashthabhakta ko barhakara ashtabhakta tapa kara liya. Tele ki tapasya karake usane apane kautumbika purushom ko bulaya aura bulakara isa prakara kaha – ‘he devanupriyo ! Chara ghantom vala ashvaratha, samagriyukta taiyara karake shighra upasthita karo. Satha hi ashva, hathi, ratha aura pravara yoddhaom se yukta chaturamgini sena ko susajjita karo, yavat vaha saba susajjita karake meri ajnya mujhe vapasa saumpo. Tadanantara una kautumbika purushom ne usaki ajnya svikara evam shirodharya karake yathashighra chhatrasahita evam dhvajasahita chara ghantaom vala ashvaratha, yavat taiyara karake upasthita kiya. Satha hi ghore, hathi, ratha evam pravara yoddhaom se yukta chaturamgini sena ko yavat susajjita kiya aura susajjita karake yavat varuna naganaptrika ko usaki ajnya vapisa saumpi. Tatpashchat vaha varuna naganaptrika, jaham snanagriha tha, vaham aya. Yavat kautuka aura mamgalarupa prayashchitta kiya, sarva alamkarom se vibhushita hua, kavacha pahana, koramtapushpom ki malaom se yukta chhatra dharana kiya, ityadi kunika raja ki taraha kahana chahie. Phira aneka gananayakom, dutom aura sandhipalom ke satha parivritta hokara vaha snanagriha se bahara nikalakara bahara ki upasthanashala mem aya aura susajjita chaturghanta ashvaratha para arudha hokara ashva, gaja, ratha aura yoddhaom se yukta chaturamgini sena ke satha, yavat mahan subhatom ke samuha se parivritta hokara jaham rathamusala – samgrama hone vala tha, vaham aya. Rathamusala – samgrama mem utara. Usa samaya rathamusala – samgrama mem pravritta hone ke satha hi varuna naganaptrika ne isa prakara ka abhigraha kiya – mere lie yahi kalpya hai ki rathamusala samgrama mem yuddha karate hue jo mujha para pahale prahara karega, use hi mujhe marana hai, (anya) vyaktiyom ko nahim. Yaha abhigraha karake vaha rathamusala – samgrama mem pravritta ho gaya. Usi samaya rathamusala – samgrama mem jujhate hue varuna naganaptrika ke ratha ke samane pratirathi ke rupa mem eka purusha shighra hi aya, jo usi ke sadrisha, usi ke samana tvacha vala tha, usi ke samana umra ka aura usi ke samana astra – shastradi upakaranom se yukta tha. Taba usa purusha ne varuna naganaptrika ko isa prakara kaha – ‘he varuna naganaptrika ! Mujha para prahara kara, are varuna naganaptrika ! Mujha para vara kara !’ isa para varuna naganaptrika ne usa purusha se yom kaha – ‘‘he devanupriya ! Jo mujha para prahara na kare, usa para pahale prahara karane ka mera kalpa (niyama) nahim hai. Isalie tuma (chahe to) pahale mujha para prahara karo.’’ Tadanantara varuna naganaptrika ke dvara aisa kahane para usa purusha ne shighra hi krodha se lala – pila hokara yavat damta pisate hue apana dhanusha uthaya. Phira bana uthaya phira dhanusha para yathasthana bana charhaya. Phira amuka asana se amuka sthana para sthita hokara dhanusha ko kana taka khimcha. Aisa karake usane varuna naganaptrika para garha prahara kiya. Garha prahara se ghayala hue varuna naganaptrika ne shighra kupita hokara yavat misamisate hue dhanusha uthaya. Phira usa para bana charhaya aura usa bana ko kana taka khimchakara usa purusha para chhora. Jaise eka hi joradara chota se patthara ke tukare – tukare ho jate haim, usi prakara varuna naganaptrika ne eka hi garha prahara se usa purusha ko jivana se rahita kara diya Usa purusha ke garha prahara se sakhta ghayala hua varuna naganaptrika ashakta, abala, avirya, purushartha evam parakrama se rahita ho gaya. Atah ‘aba mera sharira tika nahim sakega’ aisa samajhakara usane ghorom ko roka, ratha ko vapisa phiraya aura rathamusalasamgrama sthala se bahara nikala gaya. Ekanta sthana mem akara ratha ko khara kiya. Phira ratha se niche utarakara usane ghorom ko chhorakara visarjita kara diya. Phira darbha ka samthara bichhaya aura purva disha ki ora mumha karake darbha ke samstaraka para paryakasana se baitha aura donom hatha jorakara yavat kaha – arihanta bhagavamtom ko, yavat jo siddhagati ko prapta hue haim, namaskara ho. Mere dharmaguru, dharmacharya shramana bhagavana mahavira ko namaskara ho, jo dharma ki adi karane vale yavat siddhagati prapta karane ke ichchhuka haim. Yaham raha hua maim vaham rahe hue bhagavana ko vandana karata hum. Vaham rahe hue bhagavana mujhe dekhem. Ityadi kahakara yavat vandana – namaskara karake kaha – Pahale maimne shramana bhagavana mahavira ke pasa sthula pranatipata ka, yavat sthula parigraha ka jivanaparyanta ke lie pratyakhyana kiya tha, kintu aba maim unhim arihanta bhagavana mahavira ke pasa (sakshi se) sarva pranatipata ka jivanaparyanta ke lie pratyakhyana karata hum. Isa prakara skandaka ki taraha (atharaha hi papasthanom ka sarvatha pratya – khyana kara diya.) phira isa sharira ka bhi antima shvasochchhvasa ke satha vyutsarga karata hum, yom kahakara usane kavacha khola diya. Lage hue bana ko bahara khimcha. Usane alochana ki, pratikramana kiya aura samadhiyukta hokara marana prapta kiya. Usa varuna naganaptrika ka eka priya balamitra bhi rathamulasamgrama mem yuddha kara raha tha. Vaha bhi eka purusha dvara prabala prahara karane se ghayala ho gaya. Isase ashakta, abala, yavat purushartha – parakrama se rahita bane hue usane socha – aba mera sharira tika nahim sakega. Jaba usane varuna naganaptrika ko rathamusalasamgrama – sthala se bahara nikalate hue dekha, to vaha bhi apane ratha ko vapisa phirakara rathamusalasamgrama se bahara nikala, ghorom ko roka aura jaham varuna naganaptrika ne ghorom ko ratha se kholakara visarjita kiya tha, vaham usane bhi ghorom ko visarjita kara diya. Phira darbha ke samstaraka ko bichhakara usa para baitha. Darbhasamstaraka para baithakara purvadisha ki ora mukha karake yavat donom hatha jorakara yom bola – bhagavan ! Mere priya balamitra varuna naganaptrika ke jo shilavrata, gunavrata, viramanavrata, pratyakhyana aura paushadhopavasa haim, ve saba mere bhi hom, isa prakara kahakara usane kavacha khola. Sharira mem lage hue bana ko bahara nikala. Vaha bhi kramashah samadhiyukta hokara kaladharma ko prapta hua. Tadanantara usa varuna naganaptrika ko kaladharma prapta hua janakara nikatavarti vanavyantara devom ne usa para sugandhita jala ki vrishti ki, pamcha varna ke phula barasae aura divyagita evam gandharva – ninada bhi kiya. Taba se usa varuna naganaptrika ki usa divya devariddhi, divya devadyuti aura divya devaprabhava ko sunakara aura janakara bahuta – se loga paraspara isa prakara kahane lage, yavat prarupana karane lage – ‘devanupriyo ! Samgrama karate hue jo bahuta – se manushya marate haim, yavat devalokom mem utpanna hote haim.’ |