Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1003791 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-६ |
Translated Chapter : |
शतक-६ |
Section : | उद्देशक-५ तमस्काय | Translated Section : | उद्देशक-५ तमस्काय |
Sutra Number : | 291 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] किमियं भंते! तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? किं पुढवी तमुक्काए त्ति पव्वच्चति? आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? गोयमा! नो पुढवि तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति, आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति। से केणट्ठेणं? गोयमा! पुढविकाए णं अत्थेगइए सुभे देसं पकासेइ, अत्थेगइए देसं नो पकासेइ। से तेणट्ठेणं। तमुक्काए णं भंते! कहिं समुट्ठिए? कहिं संनिट्ठिए? गोयमा! जंबूदीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता, अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढीए–एत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए। सत्तरस-एक्कवीसे जोयणसए उड्ढं उप्पइत्ता तओ पच्छा तिरियं पवित्थरमाणे-पवित्थरमाणे सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंदे चत्तारि वि कप्पे आवरित्ता णं उड्ढं पि य णं जाव बंभलोगे कप्पे रिट्ठविमानपत्थडं संपत्ते–एत्थ णं तमुक्काए संनिट्ठिए। तमुक्काए णं भंते! किसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! अहे मल्लग-मूलसंठिए, उप्पिं कुक्कुडग-पंजरगसंठिए पन्नत्ते। तमुक्काए णं भंते! केवतियं विक्खंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–संखेज्जवित्थडे य, असंखेज्जवित्थडे य। तत्थ णं जे से संखेज्जवित्थडे, से णं संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं पन्नत्ते। तत्थ णं जे से असंखेज्जवित्थडे, से णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं पन्नत्ते। तमुक्काए णं भंते! केमहालए पन्नत्ते? गोयमा! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव-समुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिन्नि जो-यणसयसहस्साइं सोलससहस्साइं दोन्निय सत्तावीसे जोयणसए तिन्नि य कोसे अट्ठावीसं च धनुसयं तेरस अंगुलाइं अद्धंगुलगं च किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ते। देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभावे इणामेव-इणामेवत्ति कट्टु केवलकप्पं जंबूदीवं दीवं तिहिं अच्छरानिवाएहिं तिसत्तक्खुत्तो अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छिज्जा, से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जाव एकाहं वा, दुयाहं वा, तियाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे वीईवएज्जा, अत्थेगतियं तमुक्कायं वीईवएज्जा अत्थे-गतियं तमुक्कायं नो वीईवएज्जा। एमहालए णं गोयमा! तमुक्काए पन्नत्ते। अत्थि णं भंते! तमुक्काए गेहा इ वा? गेहावणा इ वा? नो तिणट्ठे समट्ठे। अत्थि णं भंते! तमुक्काए गामा इ वा? जाव सन्निवेसा इ वा? नो तिणट्ठे समट्ठे। अत्थि णं भंते! तमुक्काए ओराला बलाहया संसेयंति? सम्मुच्छंति? वासं वासंति? हंता अत्थि। तं भंते! किं देवो पकरेति? असुरो पकरेति? नागो पकरेति? गोयमा! देवो वि पकरेति, असुरो वि पकरेति, नागो वि पकरेति। अत्थि णं भंते! तमुक्काए बादरे थणियसद्दे? बादरे विज्जुयारे? हंता अत्थि। तं भंते! किं देवो पकरेति? असुरो पकरेति? नागो पकरेति? तिन्नि वि पकरेंति। अत्थि णं भंते! तमुक्काए बादरे पुढविकाए? बादरे अगनिकाए? नो तिणट्ठे समट्ठे, नन्नत्थ विग्गहगतिसमावन्नएणं। अत्थि णं भंते! तमुक्काए चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा? नो तिणट्ठे समट्ठे, पलियस्सओ पुण अत्थि। अत्थि णं भंते! तमुक्काए चंदाभा ति वा? सूराभा ति वा? नो तिणट्ठे समट्ठे, कादूसणिया पुण सा। तमुक्काए णं भंते! केरिसए वण्णएणं पन्नत्ते? गोयमा! काले कालोभासे गंभीरे लोमहरिसजणणे भीमे उत्तासणए परमकिण्हे वण्णेणं पन्नत्ते। देवे वि णं अत्थेगतिए जे णं तप्पढमयाए पासित्ता णं खुभाएज्जा, अहेणं अभिसमागच्छेज्जा तओ पच्छा सीहं-सीहं तुरियं-तुरियं खिप्पामेव वीतीवएज्जा। तमुक्कायस्स णं भंते! कति नामधेज्जा पन्नत्ता? गोयमा! तेरस नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा–तमे इ वा, तमुक्काए इ वा, अंधकारे इ वा, महंधकारे इ वा, लोगंधकारे इ वा, लोगतमिसे इ वा, देवंधकारे इ वा, देवतमिसे इ वा, देवरण्णे इ वा, देववूहे इ वा, देवफलिहे इ वा, देवपडिक्खोभे इ वा, अरुणोदए इ वा समुद्दे। तमुक्काए णं भंते! किं पुढविपरिणामे? आउपरिणामे? जीवपरिणामे? पोग्गलपरिणामे? गोयमा! नो पुढविपरिणामे, आउपरिणामे वि, जीवपरिणामे वि, पोग्गलपरिणामे वि। तमुक्काए णं भंते! सव्वे पाणा भूया जीवा सत्ता पुढवीकाइयत्ताए जाव तसकाइयत्ताए उववन्नपुव्वा? हंता गोयमा! असतिं अदुवा अनंतक्खत्तो, नो चेव णं बादरपुढविकाइयत्ताए, बादरअगनिकाइयत्ताए वा। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! ‘तमस्काय’ किसे कहा जाता है ? क्या ‘तमस्काय’ पृथ्वी को कहते हैं या पानी को ? गौतम ! पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, किन्तु पानी ‘तमस्काय’ कहलाता है। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! कोई पृथ्वीकाय ऐसा शुभ है, जो देश को प्रकाशित करता है और कोई पृथ्वीकाय ऐसा है, जो देश को प्रकाशित नहीं करता इस कारण से पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, पानी ही तमस्काय कहलाता है। भगवन् ! तमस्काय कहाँ से उत्पन्न होता है और कहाँ जाकर स्थित होता है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के बाहर तीरछे असंख्यात द्वीप – समुद्रों को लांघने के बाद अरुणवरद्वीप की बाहरी वेदिका के अन्त से अरुणो – दयसमुद्र में ४२,००० योजन अवगाहन करने (जाने) पर वहाँ के ऊपरी जलान्त से एक प्रदेश वाली श्रेणी आती है, यहीं से तमस्काय प्रादुर्भूत हुआ है। वहाँ से १७२१ योजन ऊंचा जाने के बाद तीरछा विस्तृत – से – विस्तृत होता हुआ, सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार और माहेन्द्र, इन चार देवलोकों को आवृत करके उनसे भी ऊपर पंचम कल्प के रिष्ट विमान प्रस्तट तक पहुँचा है और यहीं संस्थित हुआ है। भगवन् ! तमस्काय का संस्थान (आकार) किस प्रकार का है ? गौतम ! तमस्काय नीचे तो मल्लक के मूल के आकार का है और ऊपर कुक्कुटपंजरक आकार का है। भगवन् ! तमस्काय का विष्कम्भ और परिक्षेप कितना कहा गया है ? गौतम ! तमस्काय दो प्रकार का कहा गया है – एक तो संख्येयविस्तृत और दूसरा असंख्येयविस्तृत। इनमें से जो संख्येयविस्तृत है, उसका विष्कम्भ संख्येय हजार योजन है और परिक्षेप असंख्येय हजार योजन है। जो तमस्काय असंख्येयविस्तृत है, उसका विष्कम्भ असंख्येय हजार योजन है और परिक्षेप भी असंख्येय हजार योजन है। भगवन् ! तमस्काय कितना बड़ा कहा गया है ? गौतम ! समस्त द्वीप – समुद्रों के सर्वाभ्यन्तर यह जम्बूद्वीप है, यावत् यह एक लाख योजन का लम्बा – चौड़ा है। इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। कोई महाऋद्धि यावत् महानुभाव वाला देव – ‘यह चला, यह चला’ यों करके तीन चुटकी बजाए, उतने समय में सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को इक्कीस बार परिक्रमा करके शीघ्र वापस आ जाए, इस प्रकार की उत्कृष्ट और त्वरायुक्त यावत् देव की गति से चलता हुआ देव यावत् एक दिन, दो दिन, तीन दन चले, यावत् उत्कृष्ट छह महीने तक चले तब जाकर कुछ तमस्काय को उल्लंघन कर पाता है, और कुछ तमस्काय को उल्लंघन नहीं कर पाता। हे गौतम ! तमस्काय इतना बड़ा है। भगवन् ! तमस्काय में गृह है अथवा गृहापण है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! तमस्काय में ग्राम है यावत् अथवा सन्निवेश है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! क्या तमस्काय में उदार मेघ संस्वेद को प्राप्त होते हैं, सम्मूर्च्छित होते हैं और वर्षा बरसाते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा है। भगवन् ! क्या उसे देव करता है, असुर करता है या नाग करता है ? गौतम ! देव भी, असुर भी, और नाग भी करता है। भगवन् ! तमस्काय में क्या बादर स्तनित शब्द है, क्या बादर विद्युत है ? हाँ, गौतम ! है। भगवन् ! क्या उसे देव, असुर या नाग करता है ? गौतम ! तीनों ही करते हैं। भगवन् ! क्या तमस्काय में बादर पृथ्वीकाय है और बादर अग्निकाय है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। वह निषेध विग्रहगतिसमापन्न के सिवाय समझना। भगवन् ! क्या तमस्काय में चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, किन्तु वे (चन्द्रादि) तमस्काय के आसपास हैं। भगवन् ! क्या तमस्काय में चन्द्रमा की आभा या सूर्य की आभा है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है; किन्तु तमस्काय में (जो प्रभा है, वह) अपनी आत्मा को दूषित करने वाली है। भगवन् ! तमस्काय वर्ण से कैसा है ? गौतम ! तमस्काय वर्ण से काला, काली कान्ति वाला, गम्भीर, रोमहर्षक, भीम, उत्त्रासजनक और परमकृष्ण कहा गया है। कोई देव भी उस तमस्काय को देखते ही सर्वप्रथम क्षुब्ध हो जाता है। कदाचित् कोई देव तमस्काय में (प्रवेश) करे तो प्रवेश करने के पश्चात् वह शीघ्रातीशीघ्र त्वरित गति से झटपट उसे पार कर जाता है। भगवन् ! तमस्काय के कितने नाम कहे गए हैं ? गौतम ! तमस्काय के तेरह नाम कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – तम, तमस्काय, अन्धकार, महान्धकार, लोकान्धकार, लोकतमिस्र, देवान्धकार, देवतमिस्र, देवारण्य, देवव्यूह, देवपरिघ, देवप्रतिक्षोभ और अरुणोदकसमुद्र। भगवन् ! क्या तमस्काय पृथ्वी का परिणाम है, जीव का परिणाम है अथवा पुद्गल का परिणाम है ? गौतम ! तमस्काय पृथ्वी का परिणाम नहीं है, किन्तु जल का परिणाम है, जीव का परिणाम भी है और पुद्गल का परिणाम भी है। भगवन् ! क्या तमस्काय में सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व पृथ्वीकायिक रूप में यावत् त्रस – कायिक रूप में पहले उत्पन्न हो चूके हैं ? हाँ, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चूके हैं, किन्तु बादर पृथ्वीकायिक रूप में या बादर अग्निकायिक रूप में उत्पन्न नहीं हुए हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] kimiyam bhamte! Tamukkae tti pavvuchchati? Kim pudhavi tamukkae tti pavvachchati? Au tamukkae tti pavvuchchati? Goyama! No pudhavi tamukkae tti pavvuchchati, au tamukkae tti pavvuchchati. Se kenatthenam? Goyama! Pudhavikae nam atthegaie subhe desam pakasei, atthegaie desam no pakasei. Se tenatthenam. Tamukkae nam bhamte! Kahim samutthie? Kahim samnitthie? Goyama! Jambudivassa divassa bahiya tiriyamasamkhejje diva-samudde viivaitta, arunavarassa divassa bahirillao veiyamtao arunodayam samuddam bayalisam joyanasahassani ogahitta uvarillao jalamtao egapaesiyae sedhie–ettha nam tamukkae samutthie. Sattarasa-ekkavise joyanasae uddham uppaitta tao pachchha tiriyam pavittharamane-pavittharamane sohammisana-sanamkumara-mahimde chattari vi kappe avaritta nam uddham pi ya nam java bambhaloge kappe ritthavimanapatthadam sampatte–ettha nam tamukkae samnitthie. Tamukkae nam bhamte! Kisamthie pannatte? Goyama! Ahe mallaga-mulasamthie, uppim kukkudaga-pamjaragasamthie pannatte. Tamukkae nam bhamte! Kevatiyam vikkhambhenam, kevatiyam parikkhevenam pannatte? Goyama! Duvihe pannatte, tam jaha–samkhejjavitthade ya, asamkhejjavitthade ya. Tattha nam je se samkhejjavitthade, se nam samkhejjaim joyanasahassaim vikkhambhenam, asamkhejjaim joyanasahassaim parikkhevenam pannatte. Tattha nam je se asamkhejjavitthade, se nam asamkhejjaim joyanasahassaim vikkhambhenam, asamkhejjaim joyanasahassaim parikkhevenam pannatte. Tamukkae nam bhamte! Kemahalae pannatte? Goyama! Ayannam jambuddive dive savvadiva-samuddanam savvabbhamtarae java egam joyanasayasahassam ayama-vikkhambhenam, tinni jo-yanasayasahassaim solasasahassaim donniya sattavise joyanasae tinni ya kose atthavisam cha dhanusayam terasa amgulaim addhamgulagam cha kimchivisesahie parikkhevenam pannatte. Deve nam mahiddhie java mahanubhave inameva-inamevatti kattu kevalakappam jambudivam divam tihim achchharanivaehim tisattakkhutto anupariyattitta nam havvamagachchhijja, se nam deve tae ukkitthae turiyae java divvae devagaie viivayamane-viivayamane java ekaham va, duyaham va, tiyaham va, ukkosenam chhammase viivaejja, atthegatiyam tamukkayam viivaejja atthe-gatiyam tamukkayam no viivaejja. Emahalae nam goyama! Tamukkae pannatte. Atthi nam bhamte! Tamukkae geha i va? Gehavana i va? No tinatthe samatthe. Atthi nam bhamte! Tamukkae gama i va? Java sannivesa i va? No tinatthe samatthe. Atthi nam bhamte! Tamukkae orala balahaya samseyamti? Sammuchchhamti? Vasam vasamti? Hamta atthi. Tam bhamte! Kim devo pakareti? Asuro pakareti? Nago pakareti? Goyama! Devo vi pakareti, asuro vi pakareti, nago vi pakareti. Atthi nam bhamte! Tamukkae badare thaniyasadde? Badare vijjuyare? Hamta atthi. Tam bhamte! Kim devo pakareti? Asuro pakareti? Nago pakareti? Tinni vi pakaremti. Atthi nam bhamte! Tamukkae badare pudhavikae? Badare aganikae? No tinatthe samatthe, nannattha viggahagatisamavannaenam. Atthi nam bhamte! Tamukkae chamdima-suriya-gahagana-nakkhatta-tararuva? No tinatthe samatthe, paliyassao puna atthi. Atthi nam bhamte! Tamukkae chamdabha ti va? Surabha ti va? No tinatthe samatthe, kadusaniya puna sa. Tamukkae nam bhamte! Kerisae vannaenam pannatte? Goyama! Kale kalobhase gambhire lomaharisajanane bhime uttasanae paramakinhe vannenam pannatte. Deve vi nam atthegatie je nam tappadhamayae pasitta nam khubhaejja, ahenam abhisamagachchhejja tao pachchha siham-siham turiyam-turiyam khippameva vitivaejja. Tamukkayassa nam bhamte! Kati namadhejja pannatta? Goyama! Terasa namadhejja pannatta, tam jaha–tame i va, tamukkae i va, amdhakare i va, mahamdhakare i va, logamdhakare i va, logatamise i va, devamdhakare i va, devatamise i va, devaranne i va, devavuhe i va, devaphalihe i va, devapadikkhobhe i va, arunodae i va samudde. Tamukkae nam bhamte! Kim pudhavipariname? Aupariname? Jivapariname? Poggalapariname? Goyama! No pudhavipariname, aupariname vi, jivapariname vi, poggalapariname vi. Tamukkae nam bhamte! Savve pana bhuya jiva satta pudhavikaiyattae java tasakaiyattae uvavannapuvva? Hamta goyama! Asatim aduva anamtakkhatto, no cheva nam badarapudhavikaiyattae, badaraaganikaiyattae va. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! ‘tamaskaya’ kise kaha jata hai\? Kya ‘tamaskaya’ prithvi ko kahate haim ya pani ko\? Gautama ! Prithvi tamaskaya nahim kahalati, kintu pani ‘tamaskaya’ kahalata hai. Bhagavan ! Kisa karana se aisa kaha hai\? Gautama ! Koi prithvikaya aisa shubha hai, jo desha ko prakashita karata hai aura koi prithvikaya aisa hai, jo desha ko prakashita nahim karata isa karana se prithvi tamaskaya nahim kahalati, pani hi tamaskaya kahalata hai. Bhagavan ! Tamaskaya kaham se utpanna hota hai aura kaham jakara sthita hota hai\? Gautama ! Jambudvipa namaka dvipa ke bahara tirachhe asamkhyata dvipa – samudrom ko lamghane ke bada arunavaradvipa ki bahari vedika ke anta se aruno – dayasamudra mem 42,000 yojana avagahana karane (jane) para vaham ke upari jalanta se eka pradesha vali shreni ati hai, yahim se tamaskaya pradurbhuta hua hai. Vaham se 1721 yojana umcha jane ke bada tirachha vistrita – se – vistrita hota hua, saudharma, ishana, sanatkumara aura mahendra, ina chara devalokom ko avrita karake unase bhi upara pamchama kalpa ke rishta vimana prastata taka pahumcha hai aura yahim samsthita hua hai. Bhagavan ! Tamaskaya ka samsthana (akara) kisa prakara ka hai\? Gautama ! Tamaskaya niche to mallaka ke mula ke akara ka hai aura upara kukkutapamjaraka akara ka hai. Bhagavan ! Tamaskaya ka vishkambha aura parikshepa kitana kaha gaya hai\? Gautama ! Tamaskaya do prakara ka kaha gaya hai – eka to samkhyeyavistrita aura dusara asamkhyeyavistrita. Inamem se jo samkhyeyavistrita hai, usaka vishkambha samkhyeya hajara yojana hai aura parikshepa asamkhyeya hajara yojana hai. Jo tamaskaya asamkhyeyavistrita hai, usaka vishkambha asamkhyeya hajara yojana hai aura parikshepa bhi asamkhyeya hajara yojana hai. Bhagavan ! Tamaskaya kitana bara kaha gaya hai\? Gautama ! Samasta dvipa – samudrom ke sarvabhyantara yaha jambudvipa hai, yavat yaha eka lakha yojana ka lamba – chaura hai. Isaki paridhi tina lakha solaha hajara do sau sattaisa yojana, tina kosa, eka sau atthaisa dhanusha aura sarhe teraha amgula se kuchha adhika hai. Koi mahariddhi yavat mahanubhava vala deva – ‘yaha chala, yaha chala’ yom karake tina chutaki bajae, utane samaya mem sampurna jambudvipa ko ikkisa bara parikrama karake shighra vapasa a jae, isa prakara ki utkrishta aura tvarayukta yavat deva ki gati se chalata hua deva yavat eka dina, do dina, tina dana chale, yavat utkrishta chhaha mahine taka chale taba jakara kuchha tamaskaya ko ullamghana kara pata hai, aura kuchha tamaskaya ko ullamghana nahim kara pata. He gautama ! Tamaskaya itana bara hai. Bhagavan ! Tamaskaya mem griha hai athava grihapana hai\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Bhagavan ! Tamaskaya mem grama hai yavat athava sannivesha hai\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Bhagavan ! Kya tamaskaya mem udara megha samsveda ko prapta hote haim, sammurchchhita hote haim aura varsha barasate haim\? Ham, gautama ! Aisa hai. Bhagavan ! Kya use deva karata hai, asura karata hai ya naga karata hai\? Gautama ! Deva bhi, asura bhi, aura naga bhi karata hai. Bhagavan ! Tamaskaya mem kya badara stanita shabda hai, kya badara vidyuta hai\? Ham, gautama ! Hai. Bhagavan ! Kya use deva, asura ya naga karata hai\? Gautama ! Tinom hi karate haim. Bhagavan ! Kya tamaskaya mem badara prithvikaya hai aura badara agnikaya hai\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Vaha nishedha vigrahagatisamapanna ke sivaya samajhana. Bhagavan ! Kya tamaskaya mem chandrama, surya, grahagana, nakshatra aura tararupa haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai, kintu ve (chandradi) tamaskaya ke asapasa haim. Bhagavan ! Kya tamaskaya mem chandrama ki abha ya surya ki abha hai\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai; kintu tamaskaya mem (jo prabha hai, vaha) apani atma ko dushita karane vali hai. Bhagavan ! Tamaskaya varna se kaisa hai\? Gautama ! Tamaskaya varna se kala, kali kanti vala, gambhira, romaharshaka, bhima, uttrasajanaka aura paramakrishna kaha gaya hai. Koi deva bhi usa tamaskaya ko dekhate hi sarvaprathama kshubdha ho jata hai. Kadachit koi deva tamaskaya mem (pravesha) kare to pravesha karane ke pashchat vaha shighratishighra tvarita gati se jhatapata use para kara jata hai. Bhagavan ! Tamaskaya ke kitane nama kahe gae haim\? Gautama ! Tamaskaya ke teraha nama kahe gae haim. Ve isa prakara haim – tama, tamaskaya, andhakara, mahandhakara, lokandhakara, lokatamisra, devandhakara, devatamisra, devaranya, devavyuha, devaparigha, devapratikshobha aura arunodakasamudra. Bhagavan ! Kya tamaskaya prithvi ka parinama hai, jiva ka parinama hai athava pudgala ka parinama hai\? Gautama ! Tamaskaya prithvi ka parinama nahim hai, kintu jala ka parinama hai, jiva ka parinama bhi hai aura pudgala ka parinama bhi hai. Bhagavan ! Kya tamaskaya mem sarva prana, bhuta, jiva aura sattva prithvikayika rupa mem yavat trasa – kayika rupa mem pahale utpanna ho chuke haim\? Ham, gautama ! Aneka bara athava ananta bara pahale utpanna ho chuke haim, kintu badara prithvikayika rupa mem ya badara agnikayika rupa mem utpanna nahim hue haim. |