Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003726 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-५ |
Translated Chapter : |
शतक-५ |
Section : | उद्देशक-४ शब्द | Translated Section : | उद्देशक-४ शब्द |
Sutra Number : | 226 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनुस्से हसेज्ज वा? उस्सुयाएज्ज वा? हंता हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा। जहा णं भंते! छउमत्थे मनुस्से हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा, तहा णं केवली वि हसेज्ज वा? उस्सुयाएज्ज वा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जहा णं छउमत्थे मनुस्से हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा, नो णं तहा केवली हसेज्ज वा? उस्सुयाएज्ज वा? गोयमा! जं णं जीवा चरित्तमोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं हसंति वा, उस्सुयायंति वा। से णं केवलिस्स नत्थि। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जहा णं छउमत्थे मनुस्से हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा, नो णं तहा केवली हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा। जीवे णं भंते! हसमाणे वा, उस्सुयमाणे वा कइ कम्मपगडीओ बंधइ? गोयमा! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा। एवं जाव वेमाणिए। पोहत्तएहिं जीवेगिंदिय-वज्जो तियभंगो। छउमत्थे णं भंते! मनुस्से निद्दाएज्ज वा? पयलाएज्ज वा? हंता निद्दाएज्ज वा, पयलाएज्ज वा। जहा णं भंते! छउमत्थे मनुस्से निद्दाएज्ज वा, पयलाएज्ज वा, तहा णं केवली वि निद्दाएज्ज वा? पलयाएज्जा वा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जहा णं छउमत्थे मनुस्से निद्दाएज्ज वा, पयलाएज्ज वा, नो णं तहा केवली निद्दाएज्ज वा? पयलाएज्ज वा? गोयमा! जं णं जीवा दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं निद्दायंति वा, पयलायंति वा। से णं केवलिस्स नत्थि। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जहा णं छउमत्थे मनुस्से निद्दाएज्ज वा, पयलाएज्ज वा, नो णं तहा केवली निद्दाएज्ज वा, पयलाएज्ज वा। जीवे णं भंते! निद्दायमाणे वा, पयलायमाणे वा कह कम्मप्पगडीओ बंधइ? गोयमा! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा। एवं जाव वेमाणिए। पोहत्तिएसु जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य हँसता है तथा उत्सुक (उतावला) होता है ? गौतम ! हाँ, छद्मस्थ मनुष्य हँसता तथा उत्सुक होता है। भगवन् ! जैसे छद्मस्थ मनुष्य हँसता है तथा उत्सुक होता है, वैसे क्या केवली भी हँसता और उत्सुक होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि केवली मनुष्य न तो हँसता है और न उत्सुक होता है ? गौतम ! जीव, चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से हँसते हैं या उत्सुक होते हैं, किन्तु वह कर्म केवली भगवान के नहीं हैं; इस कारण से यह कहा जाता है कि जैसे छद्मस्थ मनुष्य हँसता है अथवा उत्सुक होता है, वैसे केवली मनुष्य न तो हँसता है और न ही उत्सुक होता है। भगवन् ! हँसता हुआ या उत्सुक होता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बाँधता है ? गौतम ! सात प्रकार अथवा आठ प्रकार के कर्मों को बाँधता है। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना। जब बहुत जीवों की अपेक्षा पूछा जाए, तो उसके उत्तर में समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर कर्मबन्ध से सम्बन्धित तीन भंग कहना। भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य निद्रा लेता हे अथवा प्रचला नामक निद्रा लेता है ? हाँ, गौतम ! छद्मस्थ मनुष्य निद्रा लेता है और प्रचला निद्रा भी लेता है। जिस प्रकार हँसने के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर बतलाए गए हैं, उसी प्रकार निद्रा और प्रचला – निद्रा के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर जान लेने चाहिए। विशेष यह है कि छद्मस्थ मनुष्य दर्शना – वरणीय कर्म के उदय से निद्रा अथवा प्रचला लेता है, जबकि केवली भगवान के वह दर्शनावरणीय कर्म नहीं है; इसलिए केवली न तो निद्रा लेता है, न ही प्रचलानिद्रा लेता है। शेष सब पूर्ववत् समझना। भगवन् ! निद्रा लेता हुआ अथवा प्रचलानिद्रा लेता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बाँधता है ? गौतम! निद्रा अथवा प्रचला – निद्रा लेता हुआ जीव सात अथवा आठ कर्मों की प्रकृतियों का बन्ध करता है। इसी तरह (एकवचन की अपेक्षा से) वैमानिक – पर्यन्त कहना चाहिए। जब उपर्युक्त प्रश्न बहुवचन की अपेक्षा से पूछा जाए, तब (समुच्चय) जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर कर्मबन्ध – सम्बन्धी तीन भंग कहना चाहिए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] chhaumatthe nam bhamte! Manusse hasejja va? Ussuyaejja va? Hamta hasejja va, ussuyaejja va. Jaha nam bhamte! Chhaumatthe manusse hasejja va, ussuyaejja va, taha nam kevali vi hasejja va? Ussuyaejja va? Goyama! No inatthe samatthe. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–jaha nam chhaumatthe manusse hasejja va, ussuyaejja va, no nam taha kevali hasejja va? Ussuyaejja va? Goyama! Jam nam jiva charittamohanijjassa kammassa udaenam hasamti va, ussuyayamti va. Se nam kevalissa natthi. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–jaha nam chhaumatthe manusse hasejja va, ussuyaejja va, no nam taha kevali hasejja va, ussuyaejja va. Jive nam bhamte! Hasamane va, ussuyamane va kai kammapagadio bamdhai? Goyama! Sattavihabamdhae va, atthavihabamdhae va. Evam java vemanie. Pohattaehim jivegimdiya-vajjo tiyabhamgo. Chhaumatthe nam bhamte! Manusse niddaejja va? Payalaejja va? Hamta niddaejja va, payalaejja va. Jaha nam bhamte! Chhaumatthe manusse niddaejja va, payalaejja va, taha nam kevali vi niddaejja va? Palayaejja va? Goyama! No inatthe samatthe. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–jaha nam chhaumatthe manusse niddaejja va, payalaejja va, no nam taha kevali niddaejja va? Payalaejja va? Goyama! Jam nam jiva darisanavaranijjassa kammassa udaenam niddayamti va, payalayamti va. Se nam kevalissa natthi. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–jaha nam chhaumatthe manusse niddaejja va, payalaejja va, no nam taha kevali niddaejja va, payalaejja va. Jive nam bhamte! Niddayamane va, payalayamane va kaha kammappagadio bamdhai? Goyama! Sattavihabamdhae va, atthavihabamdhae va. Evam java vemanie. Pohattiesu jivegimdiyavajjo tiyabhamgo. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Kya chhadmastha manushya hamsata hai tatha utsuka (utavala) hota hai\? Gautama ! Ham, chhadmastha manushya hamsata tatha utsuka hota hai. Bhagavan ! Jaise chhadmastha manushya hamsata hai tatha utsuka hota hai, vaise kya kevali bhi hamsata aura utsuka hota hai\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Bhagavan ! Kisa karana se aisa kaha jata hai ki kevali manushya na to hamsata hai aura na utsuka hota hai\? Gautama ! Jiva, charitramohaniya karma ke udaya se hamsate haim ya utsuka hote haim, kintu vaha karma kevali bhagavana ke nahim haim; isa karana se yaha kaha jata hai ki jaise chhadmastha manushya hamsata hai athava utsuka hota hai, vaise kevali manushya na to hamsata hai aura na hi utsuka hota hai. Bhagavan ! Hamsata hua ya utsuka hota hua jiva kitani karmaprakritiyom ko bamdhata hai\? Gautama ! Sata prakara athava atha prakara ke karmom ko bamdhata hai. Isi prakara vaimanika paryanta kahana. Jaba bahuta jivom ki apeksha puchha jae, to usake uttara mem samuchchaya jiva aura ekendriya ko chhorakara karmabandha se sambandhita tina bhamga kahana. Bhagavan ! Kya chhadmastha manushya nidra leta he athava prachala namaka nidra leta hai\? Ham, gautama ! Chhadmastha manushya nidra leta hai aura prachala nidra bhi leta hai. Jisa prakara hamsane ke sambandha mem prashnottara batalae gae haim, usi prakara nidra aura prachala – nidra ke sambandha mem prashnottara jana lene chahie. Vishesha yaha hai ki chhadmastha manushya darshana – varaniya karma ke udaya se nidra athava prachala leta hai, jabaki kevali bhagavana ke vaha darshanavaraniya karma nahim hai; isalie kevali na to nidra leta hai, na hi prachalanidra leta hai. Shesha saba purvavat samajhana. Bhagavan ! Nidra leta hua athava prachalanidra leta hua jiva kitani karmaprakritiyom ko bamdhata hai\? Gautama! Nidra athava prachala – nidra leta hua jiva sata athava atha karmom ki prakritiyom ka bandha karata hai. Isi taraha (ekavachana ki apeksha se) vaimanika – paryanta kahana chahie. Jaba uparyukta prashna bahuvachana ki apeksha se puchha jae, taba (samuchchaya) jiva aura ekendriya ko chhorakara karmabandha – sambandhi tina bhamga kahana chahie. |