Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003718 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-५ |
Translated Chapter : |
शतक-५ |
Section : | उद्देशक-१ सूर्य | Translated Section : | उद्देशक-१ सूर्य |
Sutra Number : | 218 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं अणं-तपुरक्खडे समयंसि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ? हंता गोयमा! जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तह चेव जाव पडिवज्जइ। जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं पच्चत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं अनंतरपच्छाकडसमयंसि वासाणं पढमे समए पडिवन्ने भवइ? हंता गोयमा! जया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं एवं चेव उच्चारेयव्वं जाव पडिवन्ने भवइ। एवं जहा समएणं अभिलावो भणिओ वासाणं तहा आवलियाएवि भाणियव्वो। आणापाणूणवि, थोवेणवि, लवे-णवि, मुहुत्तेणवि, अहोरत्तेणवि, पक्खेणवि, मासेणवि, उऊणवि। एएसिं सव्वेसिं जहा समयस्स अभिलावो तहा भाणियव्वो। जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणड्ढे हेमंताणं पढमे समए पडिवज्जइ, जहेव वासाणं अभि-लावो तहेव हेमंताण वि, गिम्हाण वि भाणियव्वो जाव उऊए। एवं तिन्नि वि। एएसिं तीसं आलावगा भाणियव्वा। जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणड्ढे पढमे अयणे पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि पढमे अयणे पडिवज्जइ, जहा समएणं अभिलावो तहेव अयणेण वि भाणियव्वो जाव अनंतरपच्छाकडसमयंसि पढमे अयणे पडिवन्ने भवइ। जहा अयणेणं अभिलावो तहा संवच्छरेण वि भाणियव्वो। जुएण वि, वाससएण वि, वाससहस्सेण वि, वाससय-सहस्सेण वि, पुव्वंगेण वि, पुव्वेण वि, तुडियंगेण वि, तुडिएण वि–एवं पुव्वंगे, पुव्वे, तुडियंगे, तुडिए, अडडंगे, अडडे, अववंगे, अववे, हूहूयंगे, हूहूए, उप्पलंगे, उप्पले, पउमंगे, पउमे, नलिणंगे, नलिणे, अत्थनिउरंगे, अत्थनिउरे, अउयंगे, अउए, नउयंगे, नउए, पउयंगे, पउए, चूलियंगे, चूलिया, सीसपहेलियंगे सीसपहेलिया–पलिओवमेण, सागरोवमेण वि भाणियव्वो। जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ; तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि उस्सप्पिणी, अवट्ठिए णं तत्थ काले पन्नत्ते समणाउसो? हंता गोयमा! तं चेव उच्चारेयव्वं जाव समणाउसो। जहा ओसप्पिणीए आलावओ भणिओ एवं उस्सप्पिणीए वि भाणियव्वो। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में वर्षाऋतु का प्रथम समय होता है, तब जम्बूद्वीप में मन्दर – पर्वत से पूर्व में वर्षाऋतु का प्रथम समय अनन्तर – पुरस्कृत समय में होता है ? हाँ, गौतम ! यह इसी तरह होता है। भगवन् ! जब जम्बूद्वीप में मन्दराचल से पूर्व में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है, तब पश्चिम में भी क्या वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है ? और जब पश्चिम में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है, तब, यावत् मन्दरपर्वत से उत्तर दक्षिण में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय अनन्तर – पश्चात्कृत् समय में होता है ? हाँ, गौतम ! इसी तरह होता है। इसी प्रकार यावत् – उत्तर दक्षिण में वर्षाऋतु का प्रथम समय अनन्तर – पश्चात्कृत् समय में होता है, इसी तरह सारा वक्तव्य कहना चाहिए। वर्षाऋतु के प्रथम समय के समान वर्षाऋतु के प्रारम्भ की प्रथम आवलिका के विषयमें भी कहना। इसी प्रकार आन – पान, स्तोक, लव, मुहूर्त्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, इन सबके विषय में भी समय के अभिलाप की तरह कहना चाहिए। भगवन् ! जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में हेमन्त ऋतु का प्रथम समय होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी हेमन्तऋतु का प्रथम समय होता है; और जब उत्तरार्द्ध में हेमन्त ऋतु का प्रथम समय होता है, तब क्या जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व – पश्चिम में हेमन्त ऋतु का प्रथम समय अनन्तर पुरस्कृत समय में होता है ? इत्यादि प्रश्न है। हे गौतम ! इस विषय का सारा वर्णन वर्षाऋतु के कथन के समान जान लेना। इसी तरह ग्रीष्मऋतु का भी वर्णन कह देना। हेमन्तऋतु और ग्रीष्मऋतु के प्रथम समय की तरह उनकी प्रथम आवलिका, यावत् ऋतुपर्यन्त सारा वर्णन कहना। इस प्रकार वर्षाऋतु, हेमन्तऋतु और ग्रीष्मऋतु; इन तीनों का एक सरीखा वर्णन है। इसलिए इन तीनों के तीस आलापक होते हैं। भगवन् ! जम्बूद्वीप के मन्दरपर्वत से दक्षिणार्द्ध में जब प्रथम ‘अयन’ होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी प्रथम ‘अयन’ होता है ? गौतम ! ‘समय’ के आलापक समान ‘अयन’ के विषय में भी कहना चाहिए, यावत् उसका प्रथम समय अनन्तर पश्चात्कृत समय में होता है, इत्यादि। ‘अयन’ के समान संवत्सर के विषय में भी कहना। तथैव युग, वर्षशत, वर्षसहस्त्र, वर्षशतसहस्त्र, पूर्वांग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट, अववांग, अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनूपुरांग, अर्थनूपुर, अयुतांग, अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका, पल्योपम और सागरोपम; के सम्बन्ध में भी कहना। भगवन् ! जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्धमें प्रथम अवसर्पिणी होती है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अवसर्पिणी होती है? और जब उत्तरार्द्धमें प्रथम अवसर्पिणी होती है, तब क्या जम्बूद्वीप के मन्दरपर्वत के पूर्व पश्चिममें अवसर्पिणी नहीं होती ? उत्सर्पिणी नहीं होती ? किन्तु हे आयुष्मान् श्रमणपुंगव ! क्या वहाँ अवस्थित काल कहा गया है ? हाँ, गौतम! इसी तरह होता है। यावत् पूर्ववत् सारा वर्णन। अवसर्पिणी आलापक समान उत्सर्पिणी के विषयमें भी कहना | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jaya nam bhamte! Jambuddive dive dahinaddhe vasanam padhame samae padivajjai, taya nam uttaraddhe vi vasanam padhame samae padivajjai; jaya nam uttaraddhe vasanam padhame samae padivajjai, taya nam jambuddive dive mamdarassa pavvayassa puratthima-pachchatthime nam anam-tapurakkhade samayamsi vasanam padhame samae padivajjai? Hamta goyama! Jaya nam jambuddive dive dahinaddhe vasanam padhame samae padivajjai, taha cheva java padivajjai. Jaya nam bhamte! Jambuddive dive mamdarassa pavvayassa puratthime nam vasanam padhame samae padivajjai, taya nam pachchatthime na vi vasanam padhame samae padivajjai; jaya nam pachchatthime nam vasanam padhame samae padivajjai, taya nam jambuddive dive mamdarassa pavvayassa uttara-dahine nam anamtarapachchhakadasamayamsi vasanam padhame samae padivanne bhavai? Hamta goyama! Jaya nam jambuddive dive mamdarassa pavvayassa puratthime nam evam cheva uchchareyavvam java padivanne bhavai. Evam jaha samaenam abhilavo bhanio vasanam taha avaliyaevi bhaniyavvo. Anapanunavi, thovenavi, lave-navi, muhuttenavi, ahorattenavi, pakkhenavi, masenavi, uunavi. Eesim savvesim jaha samayassa abhilavo taha bhaniyavvo. Jaya nam bhamte! Jambuddive dive mamdarassa pavvayassa dahinaddhe hemamtanam padhame samae padivajjai, jaheva vasanam abhi-lavo taheva hemamtana vi, gimhana vi bhaniyavvo java uue. Evam tinni vi. Eesim tisam alavaga bhaniyavva. Jaya nam bhamte! Jambuddive dive mamdarassa pavvayassa dahinaddhe padhame ayane padivajjai, taya nam uttaraddhe vi padhame ayane padivajjai, jaha samaenam abhilavo taheva ayanena vi bhaniyavvo java anamtarapachchhakadasamayamsi padhame ayane padivanne bhavai. Jaha ayanenam abhilavo taha samvachchharena vi bhaniyavvo. Juena vi, vasasaena vi, vasasahassena vi, vasasaya-sahassena vi, puvvamgena vi, puvvena vi, tudiyamgena vi, tudiena vi–evam puvvamge, puvve, tudiyamge, tudie, adadamge, adade, avavamge, avave, huhuyamge, huhue, uppalamge, uppale, paumamge, paume, nalinamge, naline, atthaniuramge, atthaniure, auyamge, aue, nauyamge, naue, pauyamge, paue, chuliyamge, chuliya, sisapaheliyamge sisapaheliya–paliovamena, sagarovamena vi bhaniyavvo. Jaya nam bhamte! Jambuddive dive mamdarassa pavvayassa dahinaddhe padhama osappini padivajjai, taya nam uttaraddhe vi padhama osappini padivajjai; jaya nam uttaraddhe padhama osappini padivajjai; taya nam jambuddive dive mamdarassa pavvayassa puratthima-pachchatthime nam nevatthi osappini, nevatthi ussappini, avatthie nam tattha kale pannatte samanauso? Hamta goyama! Tam cheva uchchareyavvam java samanauso. Jaha osappinie alavao bhanio evam ussappinie vi bhaniyavvo. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Jaba jambudvipa ke dakshinarddha mem varsha (ritu) ka prathama samaya hota hai, taba kya uttararddha mem bhi varsha (ritu) ka prathama samaya hota hai\? Aura jaba uttararddha mem varsharitu ka prathama samaya hota hai, taba jambudvipa mem mandara – parvata se purva mem varsharitu ka prathama samaya anantara – puraskrita samaya mem hota hai\? Ham, gautama ! Yaha isi taraha hota hai. Bhagavan ! Jaba jambudvipa mem mandarachala se purva mem varsha (ritu) ka prathama samaya hota hai, taba pashchima mem bhi kya varsha (ritu) ka prathama samaya hota hai\? Aura jaba pashchima mem varsha (ritu) ka prathama samaya hota hai, taba, yavat mandaraparvata se uttara dakshina mem varsha (ritu) ka prathama samaya anantara – pashchatkrit samaya mem hota hai\? Ham, gautama ! Isi taraha hota hai. Isi prakara yavat – uttara dakshina mem varsharitu ka prathama samaya anantara – pashchatkrit samaya mem hota hai, isi taraha sara vaktavya kahana chahie. Varsharitu ke prathama samaya ke samana varsharitu ke prarambha ki prathama avalika ke vishayamem bhi kahana. Isi prakara ana – pana, stoka, lava, muhurtta, ahoratra, paksha, masa, ritu, ina sabake vishaya mem bhi samaya ke abhilapa ki taraha kahana chahie. Bhagavan ! Jaba jambudvipa ke dakshinarddha mem hemanta ritu ka prathama samaya hota hai, taba kya uttararddha mem bhi hemantaritu ka prathama samaya hota hai; aura jaba uttararddha mem hemanta ritu ka prathama samaya hota hai, taba kya jambudvipa ke meruparvata se purva – pashchima mem hemanta ritu ka prathama samaya anantara puraskrita samaya mem hota hai\? Ityadi prashna hai. He gautama ! Isa vishaya ka sara varnana varsharitu ke kathana ke samana jana lena. Isi taraha grishmaritu ka bhi varnana kaha dena. Hemantaritu aura grishmaritu ke prathama samaya ki taraha unaki prathama avalika, yavat rituparyanta sara varnana kahana. Isa prakara varsharitu, hemantaritu aura grishmaritu; ina tinom ka eka sarikha varnana hai. Isalie ina tinom ke tisa alapaka hote haim. Bhagavan ! Jambudvipa ke mandaraparvata se dakshinarddha mem jaba prathama ‘ayana’ hota hai, taba kya uttararddha mem bhi prathama ‘ayana’ hota hai\? Gautama ! ‘samaya’ ke alapaka samana ‘ayana’ ke vishaya mem bhi kahana chahie, yavat usaka prathama samaya anantara pashchatkrita samaya mem hota hai, ityadi. ‘ayana’ ke samana samvatsara ke vishaya mem bhi kahana. Tathaiva yuga, varshashata, varshasahastra, varshashatasahastra, purvamga, purva, trutitamga, trutita, atatamga, atata, avavamga, avava, huhukamga, huhuka, utpalamga, utpala, padmamga, padma, nalinamga, nalina, arthanupuramga, arthanupura, ayutamga, ayuta, nayutamga, nayuta, prayutamga, prayuta, chulikamga, chulika, shirshaprahelikamga, shirshaprahelika, palyopama aura sagaropama; ke sambandha mem bhi kahana. Bhagavan ! Jaba jambudvipa ke dakshinarddhamem prathama avasarpini hoti hai, taba kya uttararddha mem bhi prathama avasarpini hoti hai? Aura jaba uttararddhamem prathama avasarpini hoti hai, taba kya jambudvipa ke mandaraparvata ke purva pashchimamem avasarpini nahim hoti\? Utsarpini nahim hoti\? Kintu he ayushman shramanapumgava ! Kya vaham avasthita kala kaha gaya hai\? Ham, gautama! Isi taraha hota hai. Yavat purvavat sara varnana. Avasarpini alapaka samana utsarpini ke vishayamem bhi kahana |