Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003689
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-३

Translated Chapter :

शतक-३

Section : उद्देशक-५ स्त्री Translated Section : उद्देशक-५ स्त्री
Sutra Number : 189 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगं महं इत्थीरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगं महं इत्थीरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए? हंता पभू। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा केवइआइं पभू इत्थिरूवाइं विउव्वित्तए? गोयमा! से जहानामए–जुवइं जुवाणे हत्थेणं हत्थंसि गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव अणवारे वि भाविअप्पा वेउव्वियससमुग्घाएणं समोहण्णइ जाव पभू णं गोयमा! अनगारे णं भाविअप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं इत्थि-रूवेहिं आइण्णं वितिकिण्णं उवत्थडं संथडं फुडं अवगाढावगाढं करेत्तए। एस णं गोयमा! अनगारस्स भाविअप्पणो अयमेयारूवे विसए, विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विउव्विंसु वा, विउव्वति वा, विउव्विस्सति वा। एवं परिवाडीए नेयव्वं जाव संदमाणिया। से जहानामए केइ पुरिसे असिचम्मपायं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे वि भाविअप्पा असिचम्मपायहत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? हंता उप्पएज्जा। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा केवइयाइं पभू असिचम्म (पाय?) हत्थकिच्चगयाइं रूवाइं विउव्वित्तए? गोयमा! से जहानामए– जुवइं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, तं चेव जाव विउव्विंसु वा, विउव्वति वा, विउव्विस्सति वा। से जहानामए केइ पुरिसे एगओपडागं काउं गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे वि भाविअप्पा एगओ-पडागाहत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? हंता उप्पएज्जा। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा केवइयाइं पभू एगओपडागाहत्थकिच्चगयाइं रूवाइं विकुव्वित्तए? एवं चेव जाव विकुव्विंसु वा, विकुव्वति वा, विकुव्विस्सति वा। एवं दुहओपडागं पि। से जहानामए केइ पुरिसे एगओजण्णोवइतं काउं गच्छेज्जा, एवामेव अनगारे वि भाविअप्पा एगओजण्णोवइत-किच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? हंता उप्पएज्जा। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा केवइयाइं पभू एगओजण्णोवइतकिच्चगयाइं रूवाइं विकुव्वित्तए? तं चेव जाव विकुव्विंसु वा, विकुव्वति वा, विकुव्विस्सति वा। एवं दुहओजण्णोवइयं पि। से जहानामए केइ पुरिसे एगओपल्हत्थियं काउं चिट्ठेज्जा, एवामेव अनगारे वि भाविअप्पा एगओपल्हत्थिय किच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? तं चेव जाव विकुव्विंसु वा, विकुव्वति वा, विकुव्विस्सति वा। एवं दुहओपल्हत्थियं पि। से जहानामए केइ पुरिसे एगओपलियंकं काउं चिट्ठेज्जा, एवामेव अनगारे वि भावियप्पा एगओपलियंककिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पएज्जा? तं चेव जाव विकुव्विंसु वा, विकुव्वति वा, विकुव्विस्सति वा। एवं दुहओपलियंकं पि। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगं महं आसरूवं वा हत्थिरूवं वा सोहरूवं वा विग्घरूवं वा विगरूवं वा दीवियरूवं वा अच्छरूवं वा तरच्छरूवं वा परासररूवं वा अभिजुंजित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरिए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगं महं आसरूवं वा हत्थिरूवं वा सीहरूवं वा वग्घरूवं वा विगरूवं वा दीवियरूवं वा अच्छरूवं वा तरच्छरूवं वा परासररूवं वा अभिजुंजित्तए? हंता पभू। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा पभू एगं महं आसरूवं वा अभिजुंजित्ता अनेगाइं जोयणाइं गमित्तए? हंता पभू। से भंते! किं आइड्ढीए गच्छइ? परिड्ढीए गच्छइ? गोयमा! आइड्ढीए गच्छइ, नो परिड्ढीए गच्छइ। से भंते! किं आयकम्मुणा गच्छइ? परकम्मुणा गच्छइ? गोयमा! आयकम्मुणा गच्छइ, नो परकम्मुणा गच्छइ। से भंते! किं आयप्पयोगेणं गच्छइ? परप्पयोगेणं गच्छइ? गोयमा! आयप्पयोगेणं गच्छइ, नो परप्पयोगेणं गच्छइ। से भंते! किं ऊसिओदयं गच्छइ? पतोदयं गच्छइ? गोयमा! ऊसिओदयं पि गच्छइ, पतोदयं पि गच्छइ। से णं भंते! किं अनगारे? आसे? गोयमा! अनगारे णं से, नो खलु से आसे। एवं जाव परासररूवं वा। से भंते! किं मायी विकुव्वइ? अमायी विकुव्वइ? गोयमा! मायी विकुव्वइ, नो अमायी विकुव्वइ। मायी णं भंते! तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंते कालं करेइ, कहिं उववज्जइ? गोयमा! अन्नयरेसु सु आभियोगिएसु देवलोगेसु देवत्ताए उववज्जइ। अमायी णं भंते! तस्स ठाणस्स आलोइय-पडिक्कंते कालं करेइ, कहिं उववज्जइ? गोयमा! अन्नयरेसु सु अणाभियोगिएसु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जइ। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण किए बिना एक बड़े स्त्रीरूप यावत्‌ स्यन्द – मानिका रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण करके क्या एक बड़े स्त्रीरूप की यावत्‌ स्यन्दमानिका रूप की विकुर्वणा कर सकता है ? हाँ, गौतम ! वह वैसा कर सकता है। भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार, कितने स्त्रीरूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? हे गौतम ! जैसे कोई युवक, अपने हाथ से युवती के हाथ को पकड़ लेता है, अथवा जैसे चक्र की धुरी आरों से व्याप्त होती है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी वैक्रिय समुद्‌घात से समवहत होकर सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को, बहुत – से स्त्रीरूपों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण यावत्‌ कर सकता है; हे गौतम ! भावितात्मा अनगार का यह विषय है, विषयमान है; उसने इतनी वैक्रियशक्ति सम्प्राप्त होने पर भी कभी इतनी विक्रिया की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। इस प्रकार से यावत्‌ स्यन्दमानिका – रूपविकुर्वणा करने तक कहना। (हे भगवन्‌ !) जैसे कोई पुरुष तलवार और चर्मपात्र (हाथ में) लेकर जाता है, क्या उसी प्रकार कोई भावितात्मा अनगार की तलवार और ढाल हाथ में लिए हुए किसी कार्यवश स्वयं आकाश में ऊपर उड़ सकता है ? हाँ, (गौतम !) वह ऊपर उड़ सकता है। भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार कार्यवश तलवार एवं ढ़ाल हाथ में लिए हुए पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? गौतम ! जैसे कोई युवक अपने हाथ से युवती के हाथ को पकड़ लेता है, यावत्‌ (वैक्रियकृत रूपों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को ठसाठस भर सकता है;) किन्तु कभी इतने वैक्रियकृत रूप बनाये नहीं, बनाता नहीं और बनायेगा भी नहीं। जैसे कोई पुरुष एक पताका लेकर गमन करता है, इसी प्रकार क्या भावितात्मा अनगार भी कार्यवश हाथ में एक पताका लेकर स्वयं ऊपर आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! वह आकाश में उड़ सकता है। भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार, कार्यवश हाथ में एक पताका लेकर चलने वाले पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? गौतम ! यहाँ सब पहले की तरह कहना चाहिए, परन्तु कदापि इतने रूपों की विकुर्वणा की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। इसी तरह दोनों ओर पताका लिए हुए पुरुष के जैसे रूपों की विकुर्वणा के सम्बन्ध में कहना चाहिए। भगवन्‌ ! जैसे कोई पुरुष एक तरफ यज्ञोपवित धारण करके चलता है, उसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी कार्यवश एक तरफ यज्ञोपवित धारण किये हुए पुरुष की तरह स्वयं ऊपर आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! उड़ सकता है। भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार कार्यवश एक तरफ यज्ञोपवित धारण किये हुए पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? गौतम ! पहले कहे अनुसार जान लेना चाहिए। परन्तु इतने रूपों की विकुर्वणा कभी की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। इसी तरह दोनों ओर यज्ञोपवित धारण किये हुए पुरुष की तरह रूपों की विकुर्वणा करने के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए। भगवन्‌ ! जैसे कोई पुरुष, एक तरफ पल्हथी (पालथी) मार कर बैठे, इसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी रूप बनाकर स्वयं आकाश में उड़ सकता है ? हे गौतम ! पूर्ववत्‌ जानना। यावत्‌ – इतने विकुर्वितरूप कभी बनाए नहीं, बनाता नहीं और बनायेगा भी नहीं। इसी तरह दोनों तरफ पल्हथी लगानेवाले पुरुष के समान रूप – विकुर्वणा जानना भगवन्‌ ! जैसे कोई पुरुष एक तरफ पर्यंकासन करके बैठे, उसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी उस पुरुष के समान रूप – विकुर्वणा करके आकाश में उड़ सकता है ? (गौतम !) पहले कहे अनुसार जानना चाहिए। यावत्‌ – इतने रूप कभी विकुर्वित किये नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। इसी तरह दोनों तरफ पर्यंकासन करके बैठे हुए पुरुष के समान रूप – विकुर्वणा करने के सम्बन्ध में जान लेना चाहिए। भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण किये बिना एक बड़े अश्व के रूप को, हाथी के रूप को, सिंह, बाघ, भेड़िये, चीते, रींछ, छोटे व्याघ्र अथवा पराशर के रूप का अभियोग करने में समर्थ है ? गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। वह बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण करके (पूर्वोक्त रूपों का अभियोग करने में) समर्थ है। भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार, एक बड़े अश्व के रूप का अभियोजन करके अनेक योजन तक जा सकता है ? हाँ, गौतम ! वह वैसा करने में समर्थ है। भगवन्‌ ! क्या वह (इतने योजन तक) आत्मऋद्धि से जाता है या पर – ऋद्धि से जाता है ? गौतम ! वह आत्मऋद्धि से जाता है, परऋद्धि से नहीं जाता। इसी प्रकार वह अपनी क्रिया (स्वकर्म) से जाता है, परकर्म से नहीं; आत्मप्रयोग से जाता है, किन्तु परप्रयोग से नहीं। वह उच्छितोदय (सीधे खड़े) रूप भी जा सकता है और पतितोदय (पड़े हुए) रूप में भी जा सकता है। वह अश्वरूपधारी भावितात्मा अनगार, क्या अश्व है ? गौतम ! वह अनगार है, अश्व नहीं। इसी प्रकार पराशर तक के रूपों के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। भगवन्‌ ! क्या मायी अनगार, विकुर्वणा करता है, या अमायी अनगार करता है ? गौतम ! मायी अनगार विकुर्वणा करता है, अमायी अनगार विकुर्वणा नहीं करता। मायी अनगार उस – उस प्रकार की विकुर्वणा करने के पश्चात्‌ उस स्थान की आलोचना एवं प्रतिक्रमण किये बिना ही काल करता है, इस प्रकार वह मृत्यु पाकर आभि – योगिक देवलोकों में से किसी एक देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होता है। किन्तु अमायी अनगार उस प्रकार की विकुर्वणाक्रिया करने के पश्चात्‌ पश्चात्तापपूर्वक उक्त प्रमादरूप दोष – स्थान का आलोचन – प्रतिक्रमण करके काल करता है, और वह मरकर अनाभियोगिक देवलोकों में से किसी देवलोक में देवरूप से उत्पन्न होता है। हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] anagare nam bhamte! Bhaviappa bahirae poggale apariyaitta pabhu egam maham itthiruvam va java samdamaniyaruvam va viuvvittae? No inatthe samatthe. Anagare nam bhamte! Bhaviappa bahirae poggale pariyaitta pabhu egam maham itthiruvam va java samdamaniyaruvam va viuvvittae? Hamta pabhu. Anagare nam bhamte! Bhaviappa kevaiaim pabhu itthiruvaim viuvvittae? Goyama! Se jahanamae–juvaim juvane hatthenam hatthamsi genhejja, chakkassa va nabhi aragautta siya, evameva anavare vi bhaviappa veuvviyasasamugghaenam samohannai java pabhu nam goyama! Anagare nam bhaviappa kevalakappam jambuddivam divam bahuhim itthi-ruvehim ainnam vitikinnam uvatthadam samthadam phudam avagadhavagadham karettae. Esa nam goyama! Anagarassa bhaviappano ayameyaruve visae, visayamette buie, no cheva nam sampattie viuvvimsu va, viuvvati va, viuvvissati va. Evam parivadie neyavvam java samdamaniya. Se jahanamae kei purise asichammapayam gahaya gachchhejja, evameva anagare vi bhaviappa asichammapayahatthakichchagaenam appanenam uddham vehasam uppaejja? Hamta uppaejja. Anagare nam bhamte! Bhaviappa kevaiyaim pabhu asichamma (paya?) hatthakichchagayaim ruvaim viuvvittae? Goyama! Se jahanamae– juvaim juvane hatthenam hatthe genhejja, tam cheva java viuvvimsu va, viuvvati va, viuvvissati va. Se jahanamae kei purise egaopadagam kaum gachchhejja, evameva anagare vi bhaviappa egao-padagahatthakichchagaenam appanenam uddham vehasam uppaejja? Hamta uppaejja. Anagare nam bhamte! Bhaviappa kevaiyaim pabhu egaopadagahatthakichchagayaim ruvaim vikuvvittae? Evam cheva java vikuvvimsu va, vikuvvati va, vikuvvissati va. Evam duhaopadagam pi. Se jahanamae kei purise egaojannovaitam kaum gachchhejja, evameva anagare vi bhaviappa egaojannovaita-kichchagaenam appanenam uddham vehasam uppaejja? Hamta uppaejja. Anagare nam bhamte! Bhaviappa kevaiyaim pabhu egaojannovaitakichchagayaim ruvaim vikuvvittae? Tam cheva java vikuvvimsu va, vikuvvati va, vikuvvissati va. Evam duhaojannovaiyam pi. Se jahanamae kei purise egaopalhatthiyam kaum chitthejja, evameva anagare vi bhaviappa egaopalhatthiya kichchagaenam appanenam uddham vehasam uppaejja? Tam cheva java vikuvvimsu va, vikuvvati va, vikuvvissati va. Evam duhaopalhatthiyam pi. Se jahanamae kei purise egaopaliyamkam kaum chitthejja, evameva anagare vi bhaviyappa egaopaliyamkakichchagaenam appanenam uddham vehasam uppaejja? Tam cheva java vikuvvimsu va, vikuvvati va, vikuvvissati va. Evam duhaopaliyamkam pi. Anagare nam bhamte! Bhaviappa bahirae poggale apariyaitta pabhu egam maham asaruvam va hatthiruvam va soharuvam va viggharuvam va vigaruvam va diviyaruvam va achchharuvam va tarachchharuvam va parasararuvam va abhijumjittae? No inatthe samatthe. Anagare nam bhamte! Bhaviappa bahirie poggale pariyaitta pabhu egam maham asaruvam va hatthiruvam va siharuvam va vaggharuvam va vigaruvam va diviyaruvam va achchharuvam va tarachchharuvam va parasararuvam va abhijumjittae? Hamta pabhu. Anagare nam bhamte! Bhaviappa pabhu egam maham asaruvam va abhijumjitta anegaim joyanaim gamittae? Hamta pabhu. Se bhamte! Kim aiddhie gachchhai? Pariddhie gachchhai? Goyama! Aiddhie gachchhai, no pariddhie gachchhai. Se bhamte! Kim ayakammuna gachchhai? Parakammuna gachchhai? Goyama! Ayakammuna gachchhai, no parakammuna gachchhai. Se bhamte! Kim ayappayogenam gachchhai? Parappayogenam gachchhai? Goyama! Ayappayogenam gachchhai, no parappayogenam gachchhai. Se bhamte! Kim usiodayam gachchhai? Patodayam gachchhai? Goyama! Usiodayam pi gachchhai, patodayam pi gachchhai. Se nam bhamte! Kim anagare? Ase? Goyama! Anagare nam se, no khalu se ase. Evam java parasararuvam va. Se bhamte! Kim mayi vikuvvai? Amayi vikuvvai? Goyama! Mayi vikuvvai, no amayi vikuvvai. Mayi nam bhamte! Tassa thanassa analoiyapadikkamte kalam karei, kahim uvavajjai? Goyama! Annayaresu su abhiyogiesu devalogesu devattae uvavajjai. Amayi nam bhamte! Tassa thanassa aloiya-padikkamte kalam karei, kahim uvavajjai? Goyama! Annayaresu su anabhiyogiesu devaloesu devattae uvavajjai. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Kya bhavitatma anagara, bahara ke pudgalom ko grahana kie bina eka bare strirupa yavat syanda – manika rupa ki vikurvana karane mem samartha hai\? Bhagavan ! Bhavitatma anagara, bahara ke pudgalom ko grahana karake kya eka bare strirupa ki yavat syandamanika rupa ki vikurvana kara sakata hai\? Ham, gautama ! Vaha vaisa kara sakata hai. Bhagavan ! Bhavitatma anagara, kitane strirupom ki vikurvana karane mem samartha hai\? He gautama ! Jaise koi yuvaka, apane hatha se yuvati ke hatha ko pakara leta hai, athava jaise chakra ki dhuri arom se vyapta hoti hai, isi prakara bhavitatma anagara bhi vaikriya samudghata se samavahata hokara sampurna jambudvipa ko, bahuta – se strirupom se akirna, vyatikirna yavat kara sakata hai; he gautama ! Bhavitatma anagara ka yaha vishaya hai, vishayamana hai; usane itani vaikriyashakti samprapta hone para bhi kabhi itani vikriya ki nahim, karata nahim aura karega bhi nahim. Isa prakara se yavat syandamanika – rupavikurvana karane taka kahana. (he bhagavan !) jaise koi purusha talavara aura charmapatra (hatha mem) lekara jata hai, kya usi prakara koi bhavitatma anagara ki talavara aura dhala hatha mem lie hue kisi karyavasha svayam akasha mem upara ura sakata hai\? Ham, (gautama !) vaha upara ura sakata hai. Bhagavan ! Bhavitatma anagara karyavasha talavara evam rhala hatha mem lie hue purusha ke jaise kitane rupom ki vikurvana kara sakata hai\? Gautama ! Jaise koi yuvaka apane hatha se yuvati ke hatha ko pakara leta hai, yavat (vaikriyakrita rupom se sampurna jambudvipa ko thasathasa bhara sakata hai;) kintu kabhi itane vaikriyakrita rupa banaye nahim, banata nahim aura banayega bhi nahim. Jaise koi purusha eka pataka lekara gamana karata hai, isi prakara kya bhavitatma anagara bhi karyavasha hatha mem eka pataka lekara svayam upara akasha mem ura sakata hai\? Ham, gautama ! Vaha akasha mem ura sakata hai. Bhagavan ! Bhavitatma anagara, karyavasha hatha mem eka pataka lekara chalane vale purusha ke jaise kitane rupom ki vikurvana kara sakata hai\? Gautama ! Yaham saba pahale ki taraha kahana chahie, parantu kadapi itane rupom ki vikurvana ki nahim, karata nahim aura karega bhi nahim. Isi taraha donom ora pataka lie hue purusha ke jaise rupom ki vikurvana ke sambandha mem kahana chahie. Bhagavan ! Jaise koi purusha eka tarapha yajnyopavita dharana karake chalata hai, usi taraha kya bhavitatma anagara bhi karyavasha eka tarapha yajnyopavita dharana kiye hue purusha ki taraha svayam upara akasha mem ura sakata hai\? Ham, gautama ! Ura sakata hai. Bhagavan ! Bhavitatma anagara karyavasha eka tarapha yajnyopavita dharana kiye hue purusha ke jaise kitane rupom ki vikurvana kara sakata hai\? Gautama ! Pahale kahe anusara jana lena chahie. Parantu itane rupom ki vikurvana kabhi ki nahim, karata nahim aura karega bhi nahim. Isi taraha donom ora yajnyopavita dharana kiye hue purusha ki taraha rupom ki vikurvana karane ke sambandha mem bhi jana lena chahie. Bhagavan ! Jaise koi purusha, eka tarapha palhathi (palathi) mara kara baithe, isi taraha kya bhavitatma anagara bhi rupa banakara svayam akasha mem ura sakata hai\? He gautama ! Purvavat janana. Yavat – itane vikurvitarupa kabhi banae nahim, banata nahim aura banayega bhi nahim. Isi taraha donom tarapha palhathi laganevale purusha ke samana rupa – vikurvana janana Bhagavan ! Jaise koi purusha eka tarapha paryamkasana karake baithe, usi taraha kya bhavitatma anagara bhi usa purusha ke samana rupa – vikurvana karake akasha mem ura sakata hai\? (gautama !) pahale kahe anusara janana chahie. Yavat – itane rupa kabhi vikurvita kiye nahim, karata nahim aura karega bhi nahim. Isi taraha donom tarapha paryamkasana karake baithe hue purusha ke samana rupa – vikurvana karane ke sambandha mem jana lena chahie. Bhagavan ! Bhavitatma anagara, bahara ke pudgalom ko grahana kiye bina eka bare ashva ke rupa ko, hathi ke rupa ko, simha, bagha, bheriye, chite, rimchha, chhote vyaghra athava parashara ke rupa ka abhiyoga karane mem samartha hai\? Gautama! Yaha artha samartha nahim hai. Vaha bahara ke pudgalom ko grahana karake (purvokta rupom ka abhiyoga karane mem) samartha hai. Bhagavan ! Bhavitatma anagara, eka bare ashva ke rupa ka abhiyojana karake aneka yojana taka ja sakata hai\? Ham, gautama ! Vaha vaisa karane mem samartha hai. Bhagavan ! Kya vaha (itane yojana taka) atmariddhi se jata hai ya para – riddhi se jata hai\? Gautama ! Vaha atmariddhi se jata hai, parariddhi se nahim jata. Isi prakara vaha apani kriya (svakarma) se jata hai, parakarma se nahim; atmaprayoga se jata hai, kintu paraprayoga se nahim. Vaha uchchhitodaya (sidhe khare) rupa bhi ja sakata hai aura patitodaya (pare hue) rupa mem bhi ja sakata hai. Vaha ashvarupadhari bhavitatma anagara, kya ashva hai\? Gautama ! Vaha anagara hai, ashva nahim. Isi prakara parashara taka ke rupom ke sambandha mem bhi kahana chahie. Bhagavan ! Kya mayi anagara, vikurvana karata hai, ya amayi anagara karata hai\? Gautama ! Mayi anagara vikurvana karata hai, amayi anagara vikurvana nahim karata. Mayi anagara usa – usa prakara ki vikurvana karane ke pashchat usa sthana ki alochana evam pratikramana kiye bina hi kala karata hai, isa prakara vaha mrityu pakara abhi – yogika devalokom mem se kisi eka devaloka mem devarupa mem utpanna hota hai. Kintu amayi anagara usa prakara ki vikurvanakriya karane ke pashchat pashchattapapurvaka ukta pramadarupa dosha – sthana ka alochana – pratikramana karake kala karata hai, aura vaha marakara anabhiyogika devalokom mem se kisi devaloka mem devarupa se utpanna hota hai. He bhagavan ! Yaha isi prakara hai.