Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003634
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-२

Translated Chapter :

शतक-२

Section : उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Translated Section : उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक
Sutra Number : 134 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव संखित्तविपुलतेयलेस्से छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए ज्झाणं ज्झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणवत्थाइं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणाइं पमज्जइ, पमज्जित्ता भायणाइं उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे छट्ठक्खमण पारणगंसि रायगिहे नगरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं। तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अतुरियमचवलम-संभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे-सोहेमाणे जेणेव रायगिहे नगरे तेणेव उवाग- च्छइ, उवागच्छित्ता रायगिहे नगरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडइ। तए णं भगवं गोयमे रायगिहे नगरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खा-यरियाए अडमाणे बहु-जणसद्दं निसामेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! तुंगियाए नयरीए बहिया पुप्फवइए चेइए पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो समणोवासएहिं इमाइं एयारूवाइं वागरणाइं पुच्छिया–संजमे णं भंते! किंफले? तवे किंफले? तए णं ते थेरा भगवंतो ते समणोवासए एवं वयासी–संजमे णं अज्जो! अणण्हयफले, तवे वोदाणफले तं चेव जाव पुव्वतवेणं, पुव्वसंजमेणं, कम्मियाए, संगियाए अज्जो! देवा देवलोएसु उववज्जंति। सच्चे णं एस मट्ठे, नो चेव णं आयभाववत्तव्वयाए। से कहमेयं मन्ने एवं। तए णं भगवं गोयमे इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे जायसड्ढे जाव समुप्पन्न कोउहल्ले अहापज्जत्तं समुदाणं गेण्हइ, गेण्हित्ता रायगिहाओ नयराओ पडिनिक्खमइ अतुरियं मचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे–सोहेमाणे जेणेव गुणसिलए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते गमणागमणाए पडिक्कमइ, पडिक्कमित्ता एसणमणेसणं आलोएइ, आलोएत्ता भत्तपाणं पडिदंसेइ, पडिदंसेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी– एवं खलु भंते! अहं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे रायगिहे नयरे उच्च-नीय-मज्झि-माणि कुलाणि घरसमुदानस्स भिक्खायरियाए अडमाणे बहुजणसद्दं निसामेमि–एवं खलु देवानुप्पिया! तुंगियाए नयरीए बहिया पुप्फवइए चेइए पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो समणोवासएहिं इमाइं एयारूवाइं वागरणाइं पुच्छिया–संजमे णं भंते! किंफले? तवे किंफले? तं चेव जाव सच्चे णं एस मट्ठे, नो चेव णं आयभाववत्तव्वयाए। तं पभू णं भंते! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाइं एयारूवाइं वागरणाइं वागरेत्तए? उदाहु अप्पभू? समिया णं भंते! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाइं एयारूवाइं वागरणाइं वागरेत्तए? उदाहु असमिया? आउज्जिया णं भंते! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाइं एयारूवाइं वागरणाइं वागरेत्तए? उदाहु अणाउज्जिया? पलिउज्जिया णं भंते! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाइं एयारूवाइं वागरणाइं वागरेत्तए? उदाहु अपलिउज्जिया? –पुव्वतवेणं अज्जो! देवा देवलोएसु उववज्जंति। पुव्वसंजमेणं, कम्मियाए, संगियाए अज्जो! देवा देवलोएसु उववज्जंति। सच्चे णं एस मट्ठे, नो चेव णं आयभाववत्त-व्वयाए। पभू णं गोयमा! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाइं एयारूवाइं वागरणाइं वागरेत्तए, नो चेव णं अप्पभू। समिया णं गोयमा! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाइं एयारूवाइं वागरणाइं वागरेत्तए। आउज्जिया णं गोयमा! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाइं एयारूवाइं वागरणाइं वागरेत्तए। पलिउज्जिया णं गोयमा! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाइं एयारूवाइं वागरणाइं वागरेत्तए–पुव्वतवेणं अज्जो! देवा देवलोएसु उववज्जंति पुव्वसंजमेणं, कम्मियाए, संगियाए अज्जो! देवा देवलोएसु उववज्जंति। सच्चे णं एस मट्ठे, नो चेव णं आयभाववत्तव्वयाए। अहं पि णं गोयमा! एवमाइक्खामि, भासामि, पन्नवेमि, परूवेमि–पुव्वतवेणं देवा देवलोएसु उववज्जंति। पुव्वसंजमेणं देवा देवलोएसु उववज्जंति। कम्मियाए देवा देवलोएसु उववज्जंति। संगियाए देवा देवलोएसु उववज्जंति। पुव्वतवेणं, पुव्वसंजमेणं, कम्मियाए, संगियाए अज्जो! देवा देवलोएसु उववज्जंति। सच्चे णं एस मट्ठे, नो चेव णं आयभाव-वत्तव्वयाए।
Sutra Meaning : उस काल, उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ (श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे। परीषद्‌ वन्दना करने गई यावत्‌ धर्मोपदेश सूनकर) परीषद्‌ वापस लौट गई। उस काल, उस समय में श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक अनगार थे। यावत्‌ वे विपुल तेजोलेश्या को अपने शरीर में संक्षिप्त करके रखते थे। वे निरन्तर छठ्ठ – छठ्ठ के तपश्चरण से तथा संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए यावत्‌ विचरते थे इसके पश्चात्‌ छठ्ठ के पारणे के दिन भगवान गौतमस्वामी ने प्रथम प्रहर में स्वाध्याय किया; द्वीतिय प्रहर में ध्यान ध्याया और तृतीय प्रहर में शारीरिक शीघ्रता – रहित, मानसिक चपलतारहित, आकुलता से रहित होकर मुख – वस्त्रिका की प्रतिलेखना की; फिर पात्रों और वस्त्रों की प्रतिलेखना की; तदनन्तर पात्रों का प्रमार्जन किया और फिर उन पात्रों को लेकर जहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी विराजमान थे, वहाँ आए। भगवान को वन्दन – नमस्कार किया और निवेदन किया – भगवन्‌ ! आज मेरे छठ्ठ तप के पारणे का दिन है। अतः आप से आज्ञा प्राप्त होने पर मैं राजगृह नगर में उच्च, नीच और मध्यम कुलों के गृहसमुदाय में भिक्षाचर्या की विधि के अनुसार, भिक्षाटन करना चाहता हूँ। हे देवानुप्रिय ! जिस प्रकार तुम्हें सुख हो, वैसे करो; किन्तु विलम्ब मत करो। भगवान की आज्ञा प्राप्त हो जाने के बाद भगवान गौतमस्वामी श्रमण भगवान महावीर के पास से तथा गुणशील चैत्य से नीकले। फिर वे त्वरा, चपलता और आकुलता से रहित होकर युगान्तर प्रमाण दूर तक की भूमि का अवलोकन करत हुए, अपनी दृष्टि से आगे – आगे के गमन मार्ग का शोधन करते हुए जहाँ राजगृह नगर था, वहाँ आए। ऊंच, नीच और मध्यम कुलों के गृह – समुदाय में विधिपूर्वक भिक्षाचरी के लिए पर्यटन करने लगे। उस समय राजगृह नगर में भिक्षाटन करते हुए भगवान गौतम ने बहुत – से लोगों के मुख से इस प्रकार के उद्‌गार सूने – हे देवानुप्रिय ! तुंगिका नगरी के बाहर पुष्पवतिक नामक उद्यान में भगवान पार्श्वनाथ के शिष्यानुशिष्य स्थविर भगवंत पधारे थे, उनसे वहाँ के श्रमणोपासकों ने प्रश्न पूछे थे कि भगवन्‌ ! संयम का क्या फल है, भगवन्‌ ! तप का क्या फल है ? तब उन स्थविर भगवंतों ने उन श्रमणोपासकों से कहा था – आर्यो ! संयम का फल संवर है, और तप का फल कर्मों का क्षय है। यावत्‌ – हे आर्यो ! पूर्वतप से, पूर्वसंयम से, कर्म शेष रहने से और संगिता (आसक्ति) से देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। यह बात सत्य है, इसलिए हमने कही है, हमने अपने आत्मभाव वश यह बात नहीं कही है। तो मैं यह बात कैसे मान लूँ ? इसके पश्चात्‌ श्रमण भगवान गौतम ने इस प्रकार की बात लोगों के मुख से सूनी तो उन्हें श्रद्धा उत्पन्न हुई, और यावत्‌ उनके मन में कुतूहल भी जागा। अतः भिक्षाविधिपूर्वक आवश्यकतानुसार भिक्षा लेकर वे राजगृहनगर से बाहर नीकले और अत्वरित गति से यावत्‌ ईर्या – शोधन करते हुए जहाँ गुणशीलक चैत्य था, और जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ उनके पास आए। गमनागमन सम्बन्धी प्रतिक्रमण किया, एषणादोषों की आलोचना की, फिर आहार – पानी भगवान को दिखाया। तत्पश्चात्‌ श्रीगौतमस्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से यावत्‌ निवेदन किया – भगवन्‌ ! मैं आपसे आज्ञा प्राप्त करके राजगृहनगर में उच्च, नीच और मध्यम कुलों में भिक्षा – चर्या की विधिपूर्वक भिक्षाटन कर रहा था, उस समय बहुत – से लोगों के मुख से इस प्रकार के उद्‌गार सूने कि तुंगिका नगरी के बाहर पुष्पवतिक नामक उद्यान में पार्श्वापत्यीय स्थविर भगवंत पधारे थे, उनसे वहाँ के श्रमणो – पासकों ने इस प्रकार के प्रश्न पूछे थे कि भगवन्‌ ! संयम का क्या फल है ? और तप का क्या फल है ? यावत्‌ यह बात सत्य है, इसलिए कही है, किन्तु हमने आत्मभाव के वश होकर नहीं कही। हे भगवन्‌ ! क्या वे स्थविर भगवंत उन श्रमणोपासकों के प्रश्नों के ये और इस प्रकार के उत्तर देनेमें समर्थ हैं, अथवा असमर्थ हैं ? भगवन्‌ ! उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देनेमें वे सम्यक्‌रूप से ज्ञानप्राप्त हैं, अथवा असम्पन्न या अनभ्यस्त हैं ? भगवन्‌ ! उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देनेमें वे उपयोगवाले हैं या उपयोगवाले नहीं हैं ? भगवन्‌ क्या वे स्थविर भगवंत उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देने में विशिष्ट ज्ञानवान्‌ हैं, अथवा विशेष ज्ञानी नहीं हैं कि आर्यो ! पूर्वतप से दवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, तथा पूर्वसंयम से, कर्मिता से और संगिता (आसक्ति) के कारण देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। यह बात सत्य है, इसलिए हम कहते हैं, किन्तु अपने अहंभाव वश नहीं कहते हैं ? हे गौतम ! वे स्थविर भगवंत उन श्रमणोपासकों को इस प्रकार के उत्तर देने में समर्थ हैं, असमर्थ नहीं; यावत्‌ वे सम्यक्‌ रूप से सम्पन्न हैं अथवा अभ्यस्त हैं; असम्पन्न या अनभ्यस्त नहीं; वे उपयोग वाले हैं, अनुपयोग वाले नहीं; वे विशिष्ट ज्ञानी हैं, सामान्य ज्ञानी नहीं। यह बात सत्य है, इसलिए उन स्थविरों ने कही है, किन्तु अपने अहंभाव के वश होकर नहीं कही। हे गौतम ! मैं भी इसी प्रकार कहता हूँ, भाषण करता हूँ, बताता हूँ और प्ररूपणा करता हूँ कि पूर्वतप के कारण से देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, पूर्वसंयम के कारण देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, कर्मिता से देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं तथा संगिता (आसक्ति) के कारण देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। आर्यो ! पूर्वतप से, पूर्वसंयम से, कर्मिता और संगिता से देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। यही बात सत्य है; इसलिए उन्होंने कही है, किन्तु अपनी अहंता प्रदर्शित करने के लिए नहीं कही।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tenam kalenam tenam samaenam rayagihe namam nagare hottha–sami samosadhe java parisa padigaya. Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa jetthe amtevasi imdabhui namam anagare java samkhittavipulateyalesse chhatthamchhatthenam anikkhittenam tavokammenam samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam bhagavam goyame chhatthakkhamanaparanagamsi padhamae porisie sajjhayam karei, biyae porisie jjhanam jjhiyai, taiyae porisie aturiyamachavalamasambhamte muhapottiyam padilehei, padilehetta bhayanavatthaim padilehei, padilehetta bhayanaim pamajjai, pamajjitta bhayanaim uggahei, uggahetta jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–ichchhami nam bhamte! Tubbhehim abbhanunnae samane chhatthakkhamana paranagamsi rayagihe nagare uchcha-niya-majjhimaim kulaim gharasamudanassa bhikkhayariyae adittae. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham. Tae nam bhagavam goyame samanenam bhagavaya mahavirenam abbhanunnae samane samanassa bhagavao mahavirassa amtiyao gunasilao cheiyao padinikkhamai, padinikkhamitta aturiyamachavalama-sambhamte jugamtarapaloyanae ditthie purao riyam sohemane-sohemane jeneva rayagihe nagare teneva uvaga- chchhai, uvagachchhitta rayagihe nagare uchcha-niya-majjhimaim kulaim gharasamudanassa bhikkhayariyam adai. Tae nam bhagavam goyame rayagihe nagare uchcha-niya-majjhimaim kulaim gharasamudanassa bhikkha-yariyae adamane bahu-janasaddam nisamei–evam khalu devanuppiya! Tumgiyae nayarie bahiya pupphavaie cheie pasavachchijja thera bhagavamto samanovasaehim imaim eyaruvaim vagaranaim puchchhiya–samjame nam bhamte! Kimphale? Tave kimphale? Tae nam te thera bhagavamto te samanovasae evam vayasi–samjame nam ajjo! Ananhayaphale, tave vodanaphale tam cheva java puvvatavenam, puvvasamjamenam, kammiyae, samgiyae ajjo! Deva devaloesu uvavajjamti. Sachche nam esa matthe, no cheva nam ayabhavavattavvayae. Se kahameyam manne evam. Tae nam bhagavam goyame imise kahae laddhatthe samane jayasaddhe java samuppanna kouhalle ahapajjattam samudanam genhai, genhitta rayagihao nayarao padinikkhamai aturiyam machavalamasambhamte jugamtarapaloyanae ditthie purao riyam sohemane–sohemane jeneva gunasilae cheie, jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanassa bhagavao mahavirassa adurasamamte gamanagamanae padikkamai, padikkamitta esanamanesanam aloei, aloetta bhattapanam padidamsei, padidamsetta samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vadasi– Evam khalu bhamte! Aham tubbhehim abbhanunnae samane rayagihe nayare uchcha-niya-majjhi-mani kulani gharasamudanassa bhikkhayariyae adamane bahujanasaddam nisamemi–evam khalu devanuppiya! Tumgiyae nayarie bahiya pupphavaie cheie pasavachchijja thera bhagavamto samanovasaehim imaim eyaruvaim vagaranaim puchchhiya–samjame nam bhamte! Kimphale? Tave kimphale? Tam cheva java sachche nam esa matthe, no cheva nam ayabhavavattavvayae. Tam pabhu nam bhamte! Te thera bhagavamto tesim samanovasayanam imaim eyaruvaim vagaranaim vagarettae? Udahu appabhu? Samiya nam bhamte! Te thera bhagavamto tesim samanovasayanam imaim eyaruvaim vagaranaim vagarettae? Udahu asamiya? Aujjiya nam bhamte! Te thera bhagavamto tesim samanovasayanam imaim eyaruvaim vagaranaim vagarettae? Udahu anaujjiya? Paliujjiya nam bhamte! Te thera bhagavamto tesim samanovasayanam imaim eyaruvaim vagaranaim vagarettae? Udahu apaliujjiya? –puvvatavenam ajjo! Deva devaloesu uvavajjamti. Puvvasamjamenam, kammiyae, samgiyae ajjo! Deva devaloesu uvavajjamti. Sachche nam esa matthe, no cheva nam ayabhavavatta-vvayae. Pabhu nam goyama! Te thera bhagavamto tesim samanovasayanam imaim eyaruvaim vagaranaim vagarettae, no cheva nam appabhu. Samiya nam goyama! Te thera bhagavamto tesim samanovasayanam imaim eyaruvaim vagaranaim vagarettae. Aujjiya nam goyama! Te thera bhagavamto tesim samanovasayanam imaim eyaruvaim vagaranaim vagarettae. Paliujjiya nam goyama! Te thera bhagavamto tesim samanovasayanam imaim eyaruvaim vagaranaim vagarettae–puvvatavenam ajjo! Deva devaloesu uvavajjamti puvvasamjamenam, kammiyae, samgiyae ajjo! Deva devaloesu uvavajjamti. Sachche nam esa matthe, no cheva nam ayabhavavattavvayae. Aham pi nam goyama! Evamaikkhami, bhasami, pannavemi, paruvemi–puvvatavenam deva devaloesu uvavajjamti. Puvvasamjamenam deva devaloesu uvavajjamti. Kammiyae deva devaloesu uvavajjamti. Samgiyae deva devaloesu uvavajjamti. Puvvatavenam, puvvasamjamenam, kammiyae, samgiyae ajjo! Deva devaloesu uvavajjamti. Sachche nam esa matthe, no cheva nam ayabhava-vattavvayae.
Sutra Meaning Transliteration : Usa kala, usa samaya mem rajagriha namaka nagara tha. Vaham (shramana bhagavana mahavira svami padhare. Parishad vandana karane gai yavat dharmopadesha sunakara) parishad vapasa lauta gai. Usa kala, usa samaya mem shramana bhagavana mahavira ke jyeshtha antevasi indrabhuti namaka anagara the. Yavat ve vipula tejoleshya ko apane sharira mem samkshipta karake rakhate the. Ve nirantara chhaththa – chhaththa ke tapashcharana se tatha samyama aura tapa se apani atma ko bhavita karate hue yavat vicharate the Isake pashchat chhaththa ke parane ke dina bhagavana gautamasvami ne prathama prahara mem svadhyaya kiya; dvitiya prahara mem dhyana dhyaya aura tritiya prahara mem sharirika shighrata – rahita, manasika chapalatarahita, akulata se rahita hokara mukha – vastrika ki pratilekhana ki; phira patrom aura vastrom ki pratilekhana ki; tadanantara patrom ka pramarjana kiya aura phira una patrom ko lekara jaham shramana bhagavana mahavira svami virajamana the, vaham ae. Bhagavana ko vandana – namaskara kiya aura nivedana kiya – bhagavan ! Aja mere chhaththa tapa ke parane ka dina hai. Atah apa se ajnya prapta hone para maim rajagriha nagara mem uchcha, nicha aura madhyama kulom ke grihasamudaya mem bhikshacharya ki vidhi ke anusara, bhikshatana karana chahata hum. He devanupriya ! Jisa prakara tumhem sukha ho, vaise karo; kintu vilamba mata karo. Bhagavana ki ajnya prapta ho jane ke bada bhagavana gautamasvami shramana bhagavana mahavira ke pasa se tatha gunashila chaitya se nikale. Phira ve tvara, chapalata aura akulata se rahita hokara yugantara pramana dura taka ki bhumi ka avalokana karata hue, apani drishti se age – age ke gamana marga ka shodhana karate hue jaham rajagriha nagara tha, vaham ae. Umcha, nicha aura madhyama kulom ke griha – samudaya mem vidhipurvaka bhikshachari ke lie paryatana karane lage. Usa samaya rajagriha nagara mem bhikshatana karate hue bhagavana gautama ne bahuta – se logom ke mukha se isa prakara ke udgara sune – he devanupriya ! Tumgika nagari ke bahara pushpavatika namaka udyana mem bhagavana parshvanatha ke shishyanushishya sthavira bhagavamta padhare the, unase vaham ke shramanopasakom ne prashna puchhe the ki bhagavan ! Samyama ka kya phala hai, bhagavan ! Tapa ka kya phala hai\? Taba una sthavira bhagavamtom ne una shramanopasakom se kaha tha – aryo ! Samyama ka phala samvara hai, aura tapa ka phala karmom ka kshaya hai. Yavat – he aryo ! Purvatapa se, purvasamyama se, karma shesha rahane se aura samgita (asakti) se devata devalokom mem utpanna hote haim. Yaha bata satya hai, isalie hamane kahi hai, hamane apane atmabhava vasha yaha bata nahim kahi hai. To maim yaha bata kaise mana lum\? Isake pashchat shramana bhagavana gautama ne isa prakara ki bata logom ke mukha se suni to unhem shraddha utpanna hui, aura yavat unake mana mem kutuhala bhi jaga. Atah bhikshavidhipurvaka avashyakatanusara bhiksha lekara ve rajagrihanagara se bahara nikale aura atvarita gati se yavat irya – shodhana karate hue jaham gunashilaka chaitya tha, aura jaham shramana bhagavana mahavira virajamana the, vaham unake pasa ae. Gamanagamana sambandhi pratikramana kiya, eshanadoshom ki alochana ki, phira ahara – pani bhagavana ko dikhaya. Tatpashchat shrigautamasvami ne shramana bhagavana mahavira se yavat nivedana kiya – bhagavan ! Maim apase ajnya prapta karake rajagrihanagara mem uchcha, nicha aura madhyama kulom mem bhiksha – charya ki vidhipurvaka bhikshatana kara raha tha, usa samaya bahuta – se logom ke mukha se isa prakara ke udgara sune ki tumgika nagari ke bahara pushpavatika namaka udyana mem parshvapatyiya sthavira bhagavamta padhare the, unase vaham ke shramano – pasakom ne isa prakara ke prashna puchhe the ki bhagavan ! Samyama ka kya phala hai\? Aura tapa ka kya phala hai\? Yavat yaha bata satya hai, isalie kahi hai, kintu hamane atmabhava ke vasha hokara nahim kahi. He bhagavan ! Kya ve sthavira bhagavamta una shramanopasakom ke prashnom ke ye aura isa prakara ke uttara denemem samartha haim, athava asamartha haim\? Bhagavan ! Una shramanopasakom ko aisa uttara denemem ve samyakrupa se jnyanaprapta haim, athava asampanna ya anabhyasta haim\? Bhagavan ! Una shramanopasakom ko aisa uttara denemem ve upayogavale haim ya upayogavale nahim haim\? Bhagavan kya ve sthavira bhagavamta una shramanopasakom ko aisa uttara dene mem vishishta jnyanavan haim, athava vishesha jnyani nahim haim ki aryo ! Purvatapa se davata devalokom mem utpanna hote haim, tatha purvasamyama se, karmita se aura samgita (asakti) ke karana devata devalokom mem utpanna hote haim. Yaha bata satya hai, isalie hama kahate haim, kintu apane ahambhava vasha nahim kahate haim\? He gautama ! Ve sthavira bhagavamta una shramanopasakom ko isa prakara ke uttara dene mem samartha haim, asamartha nahim; yavat ve samyak rupa se sampanna haim athava abhyasta haim; asampanna ya anabhyasta nahim; ve upayoga vale haim, anupayoga vale nahim; ve vishishta jnyani haim, samanya jnyani nahim. Yaha bata satya hai, isalie una sthavirom ne kahi hai, kintu apane ahambhava ke vasha hokara nahim kahi. He gautama ! Maim bhi isi prakara kahata hum, bhashana karata hum, batata hum aura prarupana karata hum ki purvatapa ke karana se devata devalokom mem utpanna hote haim, purvasamyama ke karana deva devalokom mem utpanna hote haim, karmita se deva devalokom mem utpanna hote haim tatha samgita (asakti) ke karana devata devalokom mem utpanna hote haim. Aryo ! Purvatapa se, purvasamyama se, karmita aura samgita se devata devalokom mem utpanna hote haim. Yahi bata satya hai; isalie unhomne kahi hai, kintu apani ahamta pradarshita karane ke lie nahim kahi.