Sutra Navigation: Samavayang ( समवयांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003210 | ||
Scripture Name( English ): | Samavayang | Translated Scripture Name : | समवयांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
समवाय-३४ |
Translated Chapter : |
समवाय-३४ |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 110 | Category : | Ang-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] चोत्तीसं बुद्धाइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–१. अवट्ठिए केसमंसुरोमनहे। २. निरामया निरुवलेवा गायलट्ठी। ३. गोक्खीरपंडुरे मंससोणिए। ४. पउमुप्पलगंधिए उस्सासनिस्सासे। ५. पच्छन्ने आहारनीहारे, अद्दिस्से मंसचक्खुणा। ६. आगासगयं चक्कं। ७. आगासगयं छत्तं। ८. आगासियाओ सेयवर-चामराओ। ९. आगासफालियामयं सपायपीढं सीहासणं। १०. आगासगओ कुडभीसहस्सपरि-मंडिआभिरामो इंदज्झओ पुरओ गच्छइ। ११. जत्थ जत्थवि य णं अरहंता भगवंतो चिट्ठंति वा निसीयंति वा तत्थ तत्थवि य णं तक्खणादेव संछन्नपत्तपुप्फपल्लवसमाउलो सच्छत्तो सज्झओ सघंटो सपडागो असोगवरपायवो अभिसंजायइ। १२. ईसिं पिट्ठओ मउडठाणंमि तेयमंडलं अभिसंजायइ, अंधकारेवि य णं दस दिसाओ पभासेइ। १३. बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे । १४. अहोसिरा कंटया भवंति। १५. उडुविवरीया सुहफासा भवंति। १६. सीयलेणं सुहफासेणं सुरभिणा मारुएणं जोयणपरिमंडलं सव्वओ समंता संपमज्जिज्जति। १७. जुत्तफसिएण य मेहेण निहय-रयरेणुयं कज्जइ। १८. जल-थलय-भासुर-पभूतेणं बिंटट्ठाइणा दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं जानुस्सेह-प्पमाणमित्ते पुप्फोवयारे कज्जइ। १९. अमणुन्नाणं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाणं अवकरिसो भवइ। २०. मणुन्नाणं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाणं पाउब्भावो भवइ। २१. पच्चाहरओवि य णं हियय-गमणीओ जोयणनीहारी सरो। २२. भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खइ। २३. सावि य णं अद्धमागही भासा भासिज्जमाणी तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं दुप्पय-चउप्पय-मिय-पसु-पक्खि-सिरीसिवाणं अप्पणो हिय-सिव-सुहदाभासत्ताए परिणमइ। २४. पुव्वबद्धवेरावि य णं देवासुर-नाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किन्नर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगा अरहओ पायमूले पसंतचित्तमाणसा धम्मं निसामंति। २५. अन्नउत्थिय-पावयणियावि य ण मागया वंदंति। २६. आगया समाणा अरहओ पायमूले निप्पडिवयणा हवंति। २७. जओ जओवि य णं अरहंतो भगवंतो विहरंति तओ तओवि य णं जोयणपणवीसाएणं ईती न भवइ। २८. मारी न भवइ। २९. सचक्कं न भवइ। ३०. परचक्कं न भवइ। ३१. अइवुट्ठी न भवइ। ३२. अनावुट्ठी न भवइ। ३३. दुब्भिक्खं न भवइ। ३४. पुव्वुप्पन्नावि य णं उप्पाइया वाही खिप्पमिव उवसमंति। जंबुद्दीवे णं दीवे चउत्तीसं चक्कवट्टिविजया पन्नत्ता, तं जहा–बत्तीसं महाविदेहे, दो भरहेरवए। जंबुद्दीवे णं दीवे चोत्तीसं दीहवेयड्ढा पन्नत्ता। जंबुद्दीवे णं दीवे उक्कोसपए चोत्तीस तित्थंकरा समुप्पज्जंति। चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो चोत्तीसं भवणावाससयसहस्सा पन्नत्ता। पढमपंचमछट्ठीसत्तमासु–चउसु पुढवीसु चोत्तीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता। | ||
Sutra Meaning : | बुद्धों के अर्थात् तीर्थंकर भगवंतों के चौंतीस अतिशय कहे गए हैं। जैसे – १. नख और केश आदि का नहीं बढ़ना। २. रोगादि से रहित, मल रहित निर्मल देहलता होना। ३. रक्त और माँस का गाय के दूध के समान श्वेत वर्ण होना। ४. पद्मकमल के समान सुगन्धित उच्छ्वास निःश्वास होना। ५. माँस – चक्षु से अदृश्य प्रच्छन्न आहार और नीहार होना। ६. आकाश में धर्मचक्र का चलना। ७. आकाश में तीन छत्रों का घूमते हुए रहना। ८. आकाश में उत्तम श्वेत चामरों का ढोला जाना। ९. आकाश के समान निर्मल स्फटिक मय पादपीठयुक्त सिंहासन का होना। १०. आकाश में हजार लघु पताकाओं से युक्त इन्द्रध्वज का आगे – आगे चलना। ११. जहाँ – जहाँ भी अरहंत भगवंत ठहरते या बैठते हैं, वहाँ – वहाँ यक्ष देवों के द्वारा पत्र, पुष्प, पल्लवों से व्याप्त, छत्र, ध्वजा, घंटा और पताका से युक्त श्रेष्ठ अशोक वृक्ष का निर्मित होना। १२. मस्तक के कुछ पीछे तेजमंडल (भामंडल) का होना, जो अन्धकार में भी दशों दिशाओं को प्रकाशित करता है। १३. जहाँ भी तीर्थंकरों का विहार हो, उस भूमिभाग का बहुसम और रमणीय होना। १४. विहार – स्थल के काँटों का अधोमुख हो जाना। १५. सभी ऋतुओं का शरीर के अनुकूल सुखद स्पर्श वाली होना। १६. जहाँ तीर्थंकर बिराजते हैं, वहाँ की एक योजन भूमि का शीतल, सुखस्पर्श – युक्त सुगन्धित पवन से सर्व ओर संप्रमार्जन होना। १७. मन्द, सुगन्धित जल – बिन्दुओं से मेघ के द्वारा भूमि का धूलि – रहित होना। १८. जल और स्थल में खिलने वाले पाँच वर्ण के पुष्पों से घुटने प्रमाण भूमिभाग के पुष्पोपचार होना, अर्थात् आच्छादित किया जाना। १९. अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का अभाव होना। २०. मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का प्रादुर्भाव होना। २१. धर्मोपदेश के समय हृदय को प्रिय लगने वाला और एक योजन तक फैलने वाला स्वर होना। २२. अर्धमागधी भाषा में भगवान का धर्मोपदेश देना। २३. वह अर्धमागधी भाषा बोली जाती हुई सभी आर्य अनार्य पुरुषों के लिए तथा द्विपद पक्षी और चतुष्पद मृग, पशु आदि जानवरों के लिए और पेट के बल रेंगने वाले सर्पादि के लिए अपनी – अपनी हीतकर, शिवकर, सुखद भाषारूप से परिणत हो जाती है। २४. पूर्वबद्ध वैर वाले भी (मनुष्य) देव, असुर, नाग, सुपर्ण, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, गरुड़, गन्धर्व और महोरग भी अरहंतों के पादमूल में प्रशान्त चित्त होकर हर्षित मन से धर्म श्रवण करते हैं। २५. अन्य तीर्थिक प्रावचनिक पुरुष भी आकर भगवान की वन्दना करते हैं। २६. वे वादी लोग भी अरहंत के पादमूल में वचन – रहित (निरुत्तर) हो जाते हैं। २७. जहाँ – जहाँ से भी अरहंत भगवंत विहार करते हैं, वहाँ – वहाँ पच्चीस योजन तक ईति – भीति नहीं होती है। २८. मनुष्यों को मारने वाली मारी (प्लेग आदि भयंकर बीमारी) नहीं होती है। २९. स्वचक्र (अपने राज्य की सेना) का भय नहीं होता। ३०. परचक्र (शत्रु की सेना) का भय नहीं होता। ३१. अतिवृष्टि (भारी जलवर्षा) नहीं होती। ३२. अनावृष्टि नहीं होती। ३३. दुभिक्ष (दुष्काल) नहीं होता। ३४. भगवान के विहार से पूर्व उत्पन्न हुई व्याधियाँ भी शीघ्र ही शान्त हो जाती है और रक्त – वर्षा आदि उत्पात नहीं होते हैं। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में चक्रवर्ती के विजयक्षेत्र चौंतीस कहे गए हैं। जैसे – महाविदेह में बत्तीस, भारत क्षेत्र एक और ऐरवत क्षेत्र एक। (इसी प्रकार) जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में चौंतीस दीर्घ वैताढ्य कहे गए हैं। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में उत्कृष्ट रूप से चौंतीस तीर्थंकर (एक साथ) उत्पन्न होते हैं। असुरेन्द्र असुरराज चमर के चौंतीस लाख भवनावास कहे गए हैं। पहली, पाँचवी, छठी और सातवी इन चार पृथ्वीयों में चौंतीस लाख नारकावास कहे गए हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] chottisam buddhaisesa pannatta, tam jaha–1. Avatthie kesamamsuromanahe. 2. Niramaya niruvaleva gayalatthi. 3. Gokkhirapamdure mamsasonie. 4. Paumuppalagamdhie ussasanissase. 5. Pachchhanne aharanihare, addisse mamsachakkhuna. 6. Agasagayam chakkam. 7. Agasagayam chhattam. 8. Agasiyao seyavara-chamarao. 9. Agasaphaliyamayam sapayapidham sihasanam. 10. Agasagao kudabhisahassapari-mamdiabhiramo imdajjhao purao gachchhai. 11. Jattha jatthavi ya nam arahamta bhagavamto chitthamti va nisiyamti va tattha tatthavi ya nam takkhanadeva samchhannapattapupphapallavasamaulo sachchhatto sajjhao saghamto sapadago asogavarapayavo abhisamjayai. 12. Isim pitthao maudathanammi teyamamdalam abhisamjayai, amdhakarevi ya nam dasa disao pabhasei. 13. Bahusamaramanijje bhumibhage. 14. Ahosira kamtaya bhavamti. 15. Uduvivariya suhaphasa bhavamti. 16. Siyalenam suhaphasenam surabhina maruenam joyanaparimamdalam savvao samamta sampamajjijjati. 17. Juttaphasiena ya mehena nihaya-rayarenuyam kajjai. 18. Jala-thalaya-bhasura-pabhutenam bimtatthaina dasaddhavannenam kusumenam janusseha-ppamanamitte pupphovayare kajjai. 19. Amanunnanam sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdhanam avakariso bhavai. 20. Manunnanam sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdhanam paubbhavo bhavai. 21. Pachchaharaovi ya nam hiyaya-gamanio joyananihari saro. 22. Bhagavam cha nam addhamagahie bhasae dhammamaikkhai. 23. Savi ya nam addhamagahi bhasa bhasijjamani tesim savvesim ariyamanariyanam duppaya-chauppaya-miya-pasu-pakkhi-sirisivanam appano hiya-siva-suhadabhasattae parinamai. 24. Puvvabaddhaveravi ya nam devasura-naga-suvanna-jakkha-rakkhasa-kinnara-kimpurisa-garula-gamdhavva-mahoraga arahao payamule pasamtachittamanasa dhammam nisamamti. 25. Annautthiya-pavayaniyavi ya na magaya vamdamti. 26. Agaya samana arahao payamule nippadivayana havamti. 27. Jao jaovi ya nam arahamto bhagavamto viharamti tao taovi ya nam joyanapanavisaenam iti na bhavai. 28. Mari na bhavai. 29. Sachakkam na bhavai. 30. Parachakkam na bhavai. 31. Aivutthi na bhavai. 32. Anavutthi na bhavai. 33. Dubbhikkham na bhavai. 34. Puvvuppannavi ya nam uppaiya vahi khippamiva uvasamamti. Jambuddive nam dive chauttisam chakkavattivijaya pannatta, tam jaha–battisam mahavidehe, do bharaheravae. Jambuddive nam dive chottisam dihaveyaddha pannatta. Jambuddive nam dive ukkosapae chottisa titthamkara samuppajjamti. Chamarassa nam asurimdassa asuraranno chottisam bhavanavasasayasahassa pannatta. Padhamapamchamachhatthisattamasu–chausu pudhavisu chottisam nirayavasasayasahassa pannatta. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Buddhom ke arthat tirthamkara bhagavamtom ke chaumtisa atishaya kahe gae haim. Jaise – 1. Nakha aura kesha adi ka nahim barhana. 2. Rogadi se rahita, mala rahita nirmala dehalata hona. 3. Rakta aura mamsa ka gaya ke dudha ke samana shveta varna hona. 4. Padmakamala ke samana sugandhita uchchhvasa nihshvasa hona. 5. Mamsa – chakshu se adrishya prachchhanna ahara aura nihara hona. 6. Akasha mem dharmachakra ka chalana. 7. Akasha mem tina chhatrom ka ghumate hue rahana. 8. Akasha mem uttama shveta chamarom ka dhola jana. 9. Akasha ke samana nirmala sphatika maya padapithayukta simhasana ka hona. 10. Akasha mem hajara laghu patakaom se yukta indradhvaja ka age – age chalana. 11. Jaham – jaham bhi arahamta bhagavamta thaharate ya baithate haim, vaham – vaham yaksha devom ke dvara patra, pushpa, pallavom se vyapta, chhatra, dhvaja, ghamta aura pataka se yukta shreshtha ashoka vriksha ka nirmita hona. 12. Mastaka ke kuchha pichhe tejamamdala (bhamamdala) ka hona, jo andhakara mem bhi dashom dishaom ko prakashita karata hai. 13. Jaham bhi tirthamkarom ka vihara ho, usa bhumibhaga ka bahusama aura ramaniya hona. 14. Vihara – sthala ke kamtom ka adhomukha ho jana. 15. Sabhi rituom ka sharira ke anukula sukhada sparsha vali hona. 16. Jaham tirthamkara birajate haim, vaham ki eka yojana bhumi ka shitala, sukhasparsha – yukta sugandhita pavana se sarva ora sampramarjana hona. 17. Manda, sugandhita jala – binduom se megha ke dvara bhumi ka dhuli – rahita hona. 18. Jala aura sthala mem khilane vale pamcha varna ke pushpom se ghutane pramana bhumibhaga ke pushpopachara hona, arthat achchhadita kiya jana. 19. Amanojnya shabda, sparsha, rasa, rupa aura gandha ka abhava hona. 20. Manojnya shabda, sparsha, rasa, rupa aura gandha ka pradurbhava hona. 21. Dharmopadesha ke samaya hridaya ko priya lagane vala aura eka yojana taka phailane vala svara hona. 22. Ardhamagadhi bhasha mem bhagavana ka dharmopadesha dena. 23. Vaha ardhamagadhi bhasha boli jati hui sabhi arya anarya purushom ke lie tatha dvipada pakshi aura chatushpada mriga, pashu adi janavarom ke lie aura peta ke bala remgane vale sarpadi ke lie apani – apani hitakara, shivakara, sukhada bhasharupa se parinata ho jati hai. 24. Purvabaddha vaira vale bhi (manushya) deva, asura, naga, suparna, yaksha, rakshasa, kinnara, kimpurusha, garura, gandharva aura mahoraga bhi arahamtom ke padamula mem prashanta chitta hokara harshita mana se dharma shravana karate haim. 25. Anya tirthika pravachanika purusha bhi akara bhagavana ki vandana karate haim. 26. Ve vadi loga bhi arahamta ke padamula mem vachana – rahita (niruttara) ho jate haim. 27. Jaham – jaham se bhi arahamta bhagavamta vihara karate haim, vaham – vaham pachchisa yojana taka iti – bhiti nahim hoti hai. 28. Manushyom ko marane vali mari (plega adi bhayamkara bimari) nahim hoti hai. 29. Svachakra (apane rajya ki sena) ka bhaya nahim hota. 30. Parachakra (shatru ki sena) ka bhaya nahim hota. 31. Ativrishti (bhari jalavarsha) nahim hoti. 32. Anavrishti nahim hoti. 33. Dubhiksha (dushkala) nahim hota. 34. Bhagavana ke vihara se purva utpanna hui vyadhiyam bhi shighra hi shanta ho jati hai aura rakta – varsha adi utpata nahim hote haim. Jambudvipa namaka isa dvipa mem chakravarti ke vijayakshetra chaumtisa kahe gae haim. Jaise – mahavideha mem battisa, bharata kshetra eka aura airavata kshetra eka. (isi prakara) jambudvipa namaka isa dvipa mem chaumtisa dirgha vaitadhya kahe gae haim. Jambudvipa namaka dvipa mem utkrishta rupa se chaumtisa tirthamkara (eka satha) utpanna hote haim. Asurendra asuraraja chamara ke chaumtisa lakha bhavanavasa kahe gae haim. Pahali, pamchavi, chhathi aura satavi ina chara prithviyom mem chaumtisa lakha narakavasa kahe gae haim. |