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Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-९ Hindi 384 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा, ‘समाणे वा, वसमाणे वा’, गामाणुगामं वा दूइज्जमाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, निगमं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, रायहाणिं वा। इमंसि खलु गामंसि वा, नगरंसि वा, खेडंसि वा, कव्वडंसि वा, मडंबंसि वा, पट्टणंसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, निगमंसि वा, आसमंसि वा, सन्निवेसंसि वा, रायहाणिंसि वा– संतेगइयस्स भिक्खुस्स पुरेसंथुया वा, पच्छासंथुया वा परिवसंति, तं जहा–गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा। तहप्पगाराइं

Translated Sutra: एक ही स्थान पर स्थिरवास करनेवाले या ग्रामानुग्राम विचरण करनेवाले साधु या साध्वी किसी ग्राम में यावत्‌ राजधानीमें भिक्षाचर्या के लिए जब गृहस्थों के यहाँ जाने लगे, तब यदि वे जान जाए कि इस गाँव यावत्‌ राजधानी में किसी भिक्षु के पूर्व – परिचित या पश्चात्‌ – परिचित गृहस्थ, गृहस्थपत्नी, उसके पुत्र – पुत्री, पुत्रवधू,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१० Hindi 392 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–अंतरुच्छुयं वा, उच्छु-गंडियं वा, उच्छु-चोयगं वा, उच्छु-मेरुगं वा, उच्छु-सालगं वा, उच्छु-डगलं वा, सिंबलिं वा, सिंबलि-थालगं वा। अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि, अप्पे सिया भोयणजाए, बहुउज्झियधम्मिए। तहप्पगारं अंतरुच्छुयं वा जाव सिंबलि-थालगं वा– अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–बहु- अट्ठियं वा मंसं, मच्छं वा बहु कंटगं। अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि, अप्पेसिया भोयणजाए, बहु-उज्झियधम्मिए।

Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ ईक्ष के पर्व का मध्य भाग है, पर्वसहित इक्षुखण्ड है, पेरे हुए ईख के छिलके हैं, छिला हुआ अग्रभाग है, ईख की बड़ी शाखाएं हैं, छोटी डालियाँ हैं, मूँग आदि की तोड़ी हुई फली तथा चौले की फलियाँ पकी हुई हैं, परन्तु इनके ग्रहण करने पर इनमें खाने योग्य भाग बहुत थोड़ा और फेंकने योग्य भाग बहुत अधिक
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१० Hindi 393 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सिया से परो अभिहट्टु अंतोपडिग्गहए बिलं वा लोणं, उब्भियं वा लोणं परिभाएत्ता नीहट्टु दलएज्जा, तहप्पगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा, परपायंसि वा–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से आहच्च पडिग्गाहिए सिया, तं च नाइदूरगए जाणेज्जा, से त्तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छेत्ता पुव्वामेव आलोएज्जा–आउसो! त्ति वा भइणि! त्ति वा ‘इमं ते किं जाणया दिन्नं? उदाहु अजाणया’? सो य भणेज्जा– नो खलु मे जाणया दिन्नं, अजाणया। कामं खलु आउसो! इदाणिं णिसिरामि। तं भुंजह च णं परिभाएह च णं। तं परेहिं समणुण्णायं

Translated Sutra: साधु या साध्वी को यदि गृहस्थ बीमार साधु के लिए खांड आदि की याचना करने पर अपने घर के भीतर रखे हुए बर्तन में से बिड़ – लवण या उद्‌भिज – लवण को विभक्त करके उसमें से कुछ अंश नीकालकर, देने लगे तो वैसे लवण को जब वह गृहस्थ के पात्र में या हाथ में हो तभी उसे अप्रासुक, अनैषणीय समझकर लेने से मना कर दे। कदाचित्‌ सहसा उस नमक को
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-११ Hindi 394 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खागा नामेगे एवमाहंसु समाणे वा, वसमाणे वा, गामाणुगामं ‘वा दूइज्जमाणे’ मणुण्णं भोयण-जायं लभित्ता ‘से भिक्खू गिलाइ, से हंदह णं तस्साहरह। से य भिक्खू णोभुंजेज्जा। तुमं चेव णं भुंजेज्जासि।’ से एगइओ भोक्खामित्ति कट्टु पलिउंचिय-पलिउंचिय आलोएज्जा, तं जहा– इमे पिंडे, इमे लोए, इमे तित्तए, इमे कडुयए, इमे कसाए, इमे अंबिले, इमे महुरे, नो खलु एत्तो किंचि गिलाणस्स सयति त्ति। माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेज्जा। तहाठियं आलो-एज्जा, जहाठियं गिलाणस्स सदति–तं तित्तयं तित्तएत्ति वा, कडुयं कडुएत्ति वा, कसायं कसाएत्ति वा, अंबिलं अंबिलेत्ति वा, महुरं महुरेत्ति वा।

Translated Sutra: स्थिरवासी सम – समाचारी वाले साधु अथवा ग्रामानुग्राम विचरण करनेवाले साधु भिक्षामें मनोज्ञ भोजन प्राप्त होने पर कहते हैं – जो भिक्षु ग्लान है, उसके लिए तुम यह मनोज्ञ आहार ले लो और उसे दे दो। अगर वह रोगी भिक्षु न खाए तो तुम खा लेना। उस भिक्षुने उनसे वह आहार को अच्छी तरह छिपाकर रोगी भिक्षु को दूसरा आहार दिखलाते
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-११ Hindi 395 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खागा नामेगे एवमाहंसु समाणे वा, वसमाणे वा, गामाणुगामं दूइज्जमाणे मणुण्णं भोयण-जायं लभित्ता ‘से भिक्खू गिलाइ, से हंदह णं तस्साहरह। से य भिक्खू णोभुंजेज्जा। आहरेज्जासि णं।’ नो खलु मे अंतराए आहरिस्सामि। इच्चेयाइं आयतणाइं उवाइकम्म।

Translated Sutra: यदि समनोज्ञ स्थिरवासी साधु अथवा ग्रामानुग्राम विचरण करने वाले साधुओं को मनोज्ञ भोजन प्राप्त होने पर यों कहे कि ‘जो भिक्षु रोगी है, उसके लिए यह मनोज्ञ आहार ले जाओ, अगर वह रोगी भिक्षु इसे न खाए तो यह आहार वापस हमारे पास ले आना, क्योंकि हमारे यहाँ भी रोगी साधु है। इस पर आहार लेने वाला वह साधु उनसे कहे कि यदि मुझे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-११ Hindi 396 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भिक्खू जाणेज्जा सत्त पिंडेसणाओ, सत्त पाणेसणाओ। तत्थ खलु इमा पढमा पिंडेसणा–असंसट्ठे हत्थे असंसट्ठे मत्ते–तहप्पगारेण असंसट्ठेण हत्थेण वा, मत्तेण वा असणं वा [पाणं वा] खाइमं वा साइमं वा सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा– फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–पढमा पिंडेसणा। अहावरा दोच्चा पिंडेसणा–संसट्ठे हत्थे संसट्ठे मत्ते–तहप्पगारेण संसट्ठेण हत्थेण वा, मत्तेण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–दोच्चा पिंडेसणा। अहावरा तच्चा पिंडेसणा–इह खलु पाईणं वा, पडीणं

Translated Sutra: अब संयमशील साधु को सात पिण्डैषणाएं और सात पानैषणाएं जान लेनी चाहिए। (१) पहली पिण्डैषणा – असंसृष्ट हाथ और असंसृष्ट पात्र। हाथ और बर्तन (सचित्त) वस्तु से असंसृष्ट हो तो उनसे अशनादि आहार की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ दे तो उसे प्रासुक जानकर ग्रहण कर ले। यह पहली पिण्डैषणा है। (२) दूसरी पिण्डैषणा है – संसृष्ट हाथ
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-११ Hindi 397 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: इच्चेयासिं सत्तण्हं पिंडेसणाणं, सत्तण्हं पाणेसणाणं अन्नतरं पडिमं पडिवज्जमाणे नो एवं वएज्जा–मिच्छा पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्मं पडिवन्ने। जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि, सव्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्ठिया, अन्नोन्नसमाहीए एवं च णं विहरंति। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जए।

Translated Sutra: इन सात पिण्डैषणाओं तथा सात पानैषणाओं में से किसी एक प्रतिमा को स्वीकार करने वाला साधु इस प्रकार न कहे कि ‘इन सब साधु – भदन्तों ने मिथ्यारूप से प्रतिमाएं स्वीकार की हैं, एकमात्र मैंने ही प्रतिमाओं को सम्यक्‌ प्रकार से स्वीकार किया है।’ (अपितु कहे) जो यह साधु – भगवंत इन प्रतिमाओं को स्वीकार करके विचरण करते हैं,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-१ Hindi 398 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा उवस्सयं एसित्तए, अणुपविसित्ता गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कब्बडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, निगमं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, रायहाणिं वा, सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणयं। तहप्पगारे उवस्सए नो ‘ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा’। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं। तहप्पगारे उवस्सए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं

Translated Sutra: साधु या साध्वी उपाश्रय की गवेषणा करना चाहे तो ग्राम या नगर यावत्‌ राजधानी में प्रवेश करके साधु के योग्य उपाश्रय का अन्वेषण करते हुए यदि यह जाने कि वह उपाश्रय अंडों से यावत्‌ मकड़ी के जालों से युक्त है तो वैसे उपाश्रय में वह साधु या साध्वी स्थान, शय्या और निषीधिका न करे। वह साधु या साध्वी जिस उपाश्रय को अंडों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-२ Hindi 407 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयाणमेयं भिक्खूस्स गाहावईहिं सद्धिं संवसमाणस्स–इह खलु गाहावइस्स अप्पनो सअट्ठाए विरू-वरूवे भोयण-जाए उवक्खडिए सिया, अह पच्छा भिक्खु-पडियाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडेज्ज वा, उवकरेज्ज वा, तं च भिक्खू अभिकंखेज्जा भोत्तए वा, पायए वा, वियट्टित्तए वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थों के साथ में निवास करने वाले साधु के लिए वह कर्मबन्ध का कारण हो सकता है, क्योंकि वहाँ गृहस्थ ने अपने लिए नाना प्रकार के भोजन तैयार किये होंगे, उसके पश्चात्‌ वह साधुओं के लिए अशनादि चतुर्विध आहार तैयार करेगा। उस आहार को साधु भी खाना या पीना चाहेगा या उस आहार में आसक्त होकर वहीं रहना चाहेगा। इसलिए भिक्षुओं
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-२ Hindi 408 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावइणा सद्धिं संवसमाणस्स–इह खलु गाहावइस्स अप्पनो सयट्ठाए विरूवरूवाइं दारुयाइं भिन्न-पुव्वाइं भवंति, अह पच्छा भिक्खु-पडियाए विरूवरूवाइं दारुयाइं भिंदेज्ज वा, किणेज्ज वा, पामिच्चेज्ज वा, दारुणा वा दारुपरिणामं कट्टु अगणिकायं उज्जालेज्ज वा, पज्जालेज्ज वा। तत्थ भिक्खू अभिकंखेज्जा आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा, वियट्टित्तए वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थ के साथ ठहरने वाले साधु के लिए वह कर्मबन्ध का कारण हो सकता है, क्योंकि वहीं गृहस्थ अपने स्वयं के लिए पहले नाना प्रकार के काष्ठ – ईंधन को काटेगा, उसके पश्चात्‌ वह साधु के लिए भी विभिन्न प्रकार के ईंधन को काटेगा, खरीदेगा या किसी से उधार लेगा और काष्ठ से काष्ठ का घर्षण करके अग्निकाय को उज्ज्वलित एवं प्रज्वलित
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-२ Hindi 411 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा अभिक्खणं-अभिक्खणं साहम्मिएहिं ओवयमाणेहिं नो वएज्जा।

Translated Sutra: पथिकशालाओं में, उद्यान में निर्मित विश्रामगृहों में, गृहस्थ के घरों में, या तापसों के मठों आदि में जहाँ ( – अन्य सम्प्रदाय के) साधु बार – बार आते – जाते हों, वहाँ निर्ग्रन्थ साधुओं को मासकल्प आदि नहीं करना चाहिए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-२ Hindi 414 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु पाईण वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा–गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा। तेसिं च णं आयारे-गोयरे नो सुणिसंते भवइ। तं सद्दहमाणेहिं, तं पत्तियमाणेहिं, तं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेतिताइं भवंति, तं जहा–आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा पवाओ वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाण-सालाओ वा, सुहाकम्मंताणि वा, दब्भ-कम्मंताणि वा, बद्ध-कम्मंताणि वा, वक्क-कम्मंताणि वा,

Translated Sutra: आयुष्मन्‌ ! इस संसार में पूर्व, पश्चिम, दक्षिण अथवा उत्तर दिशा में कईं श्रद्धालु हैं जैसे कि गृहस्वामी, गृह – पत्नी, उसकी पुत्र – पुत्रियाँ, पुत्रवधूएं, धायमाताएं, दास – दासियाँ या नौकर – नौकरानियाँ आदि; उन्होंने निर्ग्रन्थ साधुओं के आचार – व्यवहार के विषय में तो सम्यक्‌तया नहीं सूना है, किन्तु उन्होंने यह सून
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-२ Hindi 415 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा–गाहावई वा जाव कम्म-करीओ वा। तेसिं च णं आयार-गोयरे नो सुणिसंते भवइ। तं सद्दहमाणेहिं, तं पत्तियमाणेहिं, तं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहि-किविण-वणीमए समुद्दिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेतिआइं भवंति, तं जहा–आएसणाणि वा जाव भवनगिहाणि वा। जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवनगिहाणि वा तेहिं अणोवयमाणेहिं ओवयंति, अयमाउसो! अनभिक्कंत-किरिया वि भवति।

Translated Sutra: हे आयुष्मन्‌ ! इस संसार में पूर्वादि दिशाओं में अनेक श्रद्धालु होते हैं, जैसे कि गृहपति यावत्‌ नौकरानियाँ। निर्ग्रन्थ साधुओं के आचार से अनभिज्ञ इन लोगों ने श्रद्धा, प्रतीति और अभिरुचि से प्रेरित होकर बहुत से श्रमण, ब्राह्मण आदि के उद्देश्य से विशाल मकान बनवाए हैं, जैसे कि लोहकारशाला यावत्‌ भूमिगृह। ऐसे लोहकारशाला
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श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-२ Hindi 417 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु पाईणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा–गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा। तेसिं च णं आयार-गोयरे नो सुणिसंते भवइ। तं सद्दहमाणेहिं, तं पत्तियमाणेहिं, तं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेतिताइं भवंति, तं जहा–आएसणाणि वा भवनगिहाणि वा। जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवनगिहाणि वा उवागच्छंति, उवागच्छित्ता इतरेतरेहिं पाहुडेहिं वट्टंति, अयमाउसो! महावज्ज-किरिया वि भवइ।

Translated Sutra: इस संसार में पूर्वादि दिशाओं में कईं श्रद्धालुजन होते हैं, जैसे कि गृहपति, यावत्‌ दासियाँ आदि। वे उनके आचार – व्यवहार से तो अनभिज्ञ होते हैं, लेकिन वे श्रद्धा, प्रतीति और रुचि से प्रेरित होकर बहुत से श्रमण, ब्राह्मण यावत्‌ भिक्षाचरों को गिन – गिन कर उनके उद्देश्य से जहाँ – तहाँ लोहकारशाला यावत्‌ भूमिगृह आदि
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-२ Hindi 418 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा–गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा। तेसिं च णं आयार-गोयरे नो सुणिसंते भवइ। तं सद्दहमाणेहिं, तं पत्तियमाणेहिं, तं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेतिआइं भवंति, तं जहा–आएसणाणि वा जाव भवनगिहाणि वा। जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भव-णगिहाणि वा उवागच्छंति, उवागच्छित्ता इतरेतरेहिं पाहुडेहिं वट्टंति, अयमाउसो! सावज्ज-किरिया वि भवइ।

Translated Sutra: इस संसार में पूर्वादि दिशाओं में कईं श्रद्धालु व्यक्ति होते हैं, जैसे कि – गृहपति, उसकी पत्नी यावत्‌ नौकरानियाँ आदि। वे उनके आचार – व्यवहार से तो अज्ञात होते हैं, लेकिन श्रमणों के प्रति श्रद्धा, प्रतीति और रुचि से युक्त होकर सब प्रकार के श्रमणों के उद्देश्य से लोहकारशाला यावत्‌ भूमिगृह बनवाते हैं। सभी श्रमणों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 422 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–खुड्डियाओ, खुड्ड-दुवारियाओ, निइयाओ संनिरुद्धाओ भवंति। तहप्पगारे उवस्सए राओ वा, विआले वा निक्खममाणे वा, पविसमाणे वा, पुरा हत्थेण पच्छा पाएण तओ संजयामेव निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा। केवली बूया आयाणमेयं–जे तत्थ समनाण वा, माहनाण वा, छत्तए वा, मत्तए वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, ‘नालिया वा, चेलं वा’, चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्म-छेदणए वा–दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अनिकंपे चलाचले–भिक्खू य राओ वा वियाले वा निक्खममाणे वा, पविसमाणे वा पयलेज्ज वा, पवडेज्ज वा। से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा, पायं वा,

Translated Sutra: वह साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने, जो छोटा है, या छोटे द्वारों वाला है, तथा नीचा है, या नित्य जिसके द्वार बंध रहते हैं, तथा चरक आदि परिव्राजकों से भरा हुआ है। इस प्रकार के उपाश्रय में वह रात्रि में या विकाल में भीतर से बाहर नीकलता हुआ या भीतर प्रवेश करता हुआ पहले हाथ से टटोल ले, फिर पैर से संयम पूर्वक नीकले
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 433 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा संथारगं एसित्तए। सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–सअंडं सबीअं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं संथारगं-अफासुयं अनेसणिज्जं त्ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पाणं अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, गरुयं, तहप्पगारं संथारगं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीअं अप्पहरियं

Translated Sutra: कोई साधु या साध्वी संस्तारक की गवेषणा करना चाहे और वह जिस संस्तारक को जाने कि वह अण्डों से यावत्‌ मकड़ी के जालों से युक्त है तो ऐसे संस्तारक को मिलने पर भी ग्रहण न करे। जिस संस्तारक को जाने कि वह अण्डों यावत्‌ मकड़ी के जालों से तो रहित है, किन्तु भारी है, वैसे संस्तारक को भी मिलने पर ग्रहण न करे। वह साधु या साध्वी,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 434 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेयाइं आयतणाइं उवाइक्कम्म अह भिक्खू जाणेज्जा, इमाहिं चउहिं पडिमाहिं संथारगं एसित्तए। तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय-उद्दिसिय संथारगं जाएज्जा, तं जहा–इक्कडं वा, कढिणं वा, जंतुयं वा, परगं वा, मोरगं वा, तणं वा, कुसं वा, कुच्चगं वा, पिप्पलगं वा, पलालगं वा। से पुव्वामेव आलोएज्जा–आउसो! त्ति वा भगिनि! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अन्नयरं संथारगं? तहप्पगारं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा– फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–पढमा पडिमा।

Translated Sutra: इन दोषों के आयतनों को छोड़कर साधु इन चार प्रतिमाओं से संस्तारक की एषणा करना जान ले – पहली प्रतिमा यह है – साधु – साध्वी अपने संस्तरण के लिए आवश्यक और योग्य वस्तुओं का नामोल्लेख कर – कर के संस्तारक की याचना करे, जैसे इक्कड, कढिणक, जंतुक, परक, सभी प्रकार का तृण, कुश, कूर्चक, वर्वक नामक तृण विशेष, या पराल आदि। साधु पहले
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 438 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तिए। सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीअं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं संथारगं नो पच्चप्पिणेज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी यदि संस्तारक वापस लौटाना चाहे, उस समय यदि उस संस्तारक को अण्डों यावत्‌ मकड़ी के जालों से युक्त जाने तो इस प्रकार का संस्तारक (उस समय) वापस न लौटाए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 439 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तए। सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं संथारगं पडिलेहिय-पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय, आयाविय-आयाविय, विणिद्धणिय-विणिद्धणिय तओ संजयामेव पच्चप्पिणेज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी यदि संस्तारक वापस सौंपना चाहे, उस समय उस संस्तारक को अण्डों यावत्‌ मकड़ी के जालों से रहित जाने तो, उस प्रकार के संस्तारक को बार – बार प्रतिलेखन तथा प्रमार्जन करके, सूर्य की धूप देकर एवं यतनापूर्वक झाड़कर गृहस्थ को संयत्नपूर्वक वापस सौंपे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 440 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा समाणे वा, वसमाणे वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे वा पुव्वामेव णं पण्णस्स उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेज्जा। केवली बूया आयाणमेवं–अपडिलेहियाए उच्चारपासवणभूमीए, भिक्खू वा भिक्खुणी वा राओ वा विआले वा उच्चारपासवणं परिट्ठवेमाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा। से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा पायं वा बाहुं वा, ऊरुं वा, उदरं वा, सीसं वा अन्नयरं वा कायंसि इंदिय-जायं लूसेज्ज वा पाणाणि वा भूयाणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघंसेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा, जीविआओ वव-रोवेज्ज वा। अह

Translated Sutra: जो साधु या साध्वी स्थिरवास कर रहा हो, या उपाश्रय में रहा हुआ हो, अथवा ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ आकर ठहरा हो, उस प्रज्ञावान, साधु को चाहिए कि वह पहले ही उसके परिपार्श्व में उच्चार – प्रस्रवण – विसर्जन भूमि को अच्छी तरह देख ले। केवली भगवान ने कहा है – यह अप्रतिलेखित उच्चार – प्रस्रवण – भूमि कर्मबन्ध का कारण है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 441 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा सेज्जा-संथारग-भूमिं पडिलेहित्तए, नन्नत्थ आयरिएण वा, उवज्झाएण वा, पवत्तीए वा, थेरेण वा, गणिणा वा, गणहरेण वा, गनावच्छेइएण वा, बालेण वा, बुड्ढेण वा, सेहेण वा, गिलाणेण वा, आएसेण वा, अंतेण वा, मज्झेण वा, समेण वा, विसमेण वा, पवाएण वा, णिवाएण वा ‘तओ संजयामेव’ पडिलेहिय-पडिलेहिय पमज्जिय-पमज्जिय बहु-फासुयं सेज्जा-संथारगं संथरेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी शय्या – संस्तारकभूमि की प्रतिलेखना करना चाहे, वह आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गणी, गणधर, गणावच्छेदक, बालक, वृद्ध, शैक्ष, ग्लान एवं अतिथि साधु के द्वारा स्वीकृत भूमि को छोड़कर उपाश्रय के अन्दर, मध्य स्थान में या सम और विषम स्थान में, अथवा वातयुक्त और निर्वातस्थान में भूमि का बार – बार प्रतिलेखन
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 442 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुयं सेज्जा-संथारगं संथरेत्ता अभिकंखेज्जा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए दुरुहित्तए से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए दुरुहमाणे, से पुव्वामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जिय-पमज्जिय तओ संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारगे दुरुहेज्जा, दुरुहेत्ता तओ संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारए सएज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी अत्यन्त प्रासुक शय्या – संस्तारक बिछाकर उस शय्या – संस्तारक पर चढ़ना चाहे तो उस पर चढ़ने से पूर्व मस्तक सहित शरीर के ऊपरी भाग से लेकर पैरों तक भली – भाँति प्रमार्जन करके फिर यतनापूर्वक उस शय्यासंस्तारक पर आरूढ़ हो। उस अतिप्रासुक शय्यासंस्तारक पर आरूढ़ होकर यतनापूर्वक उस पर शयन करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 444 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा– समा वेगया सेज्जा भवेज्जा, विसमा वेगया सेज्जा भवेज्जा, पवाता वेगया सेज्जा भवेज्जा, णिवाता वेगया सेज्जा भवेज्जा, ससरक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अप्प-ससरक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सदंस-मसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अप्प-दंस-मसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सउवसग्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा, निरुवसग्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा–तहप्पगाराहिं सेज्जाहिं संविज्जमाणाहिं पग्गहिततरागं विहारं विह-रेज्जा, नो किंचिवि गिलाएज्जा। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी को किसी समय सम शय्या मिले या विषम मिले, कभी हवादार निवास – स्थान प्राप्त हो या निर्वात हो, किसी दिन धूल से भरा उपाश्रय मिले या स्वच्छ मिले, कदाचित्‌ उपसर्गयुक्त शय्या मिले या उपसर्ग रहित मिले। इन सब प्रकार की शय्याओं के प्राप्त होने पर जैसी भी सम – विषम आदि शय्या मिली, उसमें समचित्त होकर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 445 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अब्भुवगए खलु वासावासे अभिपवुट्ठे, बहवे पाणा अभिसंभूया, बहवे बीया अहुणुब्भिन्ना, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया बहुहरिया बहु-ओसा बहु-उदया बहु-उत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगा, अणभिक्कंता पंथा, नो विण्णाया मग्गा, सेवं नच्चा नो गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, तओ संजयामेव वासावासं उवल्लिएज्जा।

Translated Sutra: वर्षाकाल आ जाने पर वर्षा हो जाने से बहुत – से प्राणी उत्पन्न हो जाते हैं, बहुत – से बीज अंकुरित हो जाते हैं, मार्गों में बहुत – से प्राणी, बहुत – से बीज उत्पन्न हो जाते हैं, बहुत हरियाली हो जाती है, ओस और पानी बहुत स्थानों में भर जाते हैं, पाँच वर्ण की काई, लीलण – फूलण आदि हो जाती है, बहुत – से स्थानों में कीचड़ या पानी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 446 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा–गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, निगमं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, रायहाणिं वा। इमंसि खलु गामंसि वा, नगरंसि वा, खेडंसि वा, कव्वडंसि वा, मडंबंसि वा, पट्टणंसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, निगमंसि वा, आसमंसि वा, सन्निवेसंसि वा, रायहाणिसि वा– नो महती विहारभूमी, नो महती वियारभूमी, नो सुलभे पीढ-फलग-सेज्जा-संथारए, नो सुलभे फासुए उंछे अहेस-णिज्जे, बहवे जत्थ समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य, अच्चाइण्णा वित्ती– नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेहधम्माणुओग-

Translated Sutra: वर्षावास करने वाले साधु या साध्वी को उस ग्राम, नगर, खेड़, कर्बट, मडम्ब, पट्टण, द्रोणमुख, आकर, निगम, आश्रम, सन्निवेश या राजधानी की स्थिति भलीभाँति जान लेनी चाहिए। जिस ग्राम, नगर यावत्‌ राजधानी में एकान्त में स्वाध्याय करने के लिए विशाल भूमि न हो, मलमूत्र त्याग के लिए योग्य विशाल भूमि न हो, पीठ, फलक, शय्या एवं संस्तारक
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 450 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्धरज्जाणि वा सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्ज गमणाए। केवली बूया आयाणमेयं– ते णं बाला ‘अयं तेणे’ ‘अयं उवचरए’ ‘अयं तओ आगए’ त्ति कट्टु तं भिक्खुं अक्कोसेज्ज वा, बंधेज्ज वा, रुंभेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा। वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं अच्छिंदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा– एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं नो तहप्पगाराणि अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि

Translated Sutra: साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए मार्ग में यह जाने कि ये अराजक प्रदेश है, या यहाँ केवल युवराज का शासन है, जो कि अभी राजा नहीं बना है, अथवा दो राजाओं का शासन है, या परस्पर शत्रु दो राजाओं का राज्याधिकार है, या धर्मादि – विरोधी राजा का शासन है, ऐसी स्थिति में विहार के योग्य अन्य आर्य जनपदों के होते, इस प्रकार
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 452 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से नावासंतारिमे उदए सिया। सेज्जं पुण नावं जाणेज्जा– अस्संजए भिक्खु-पडियाए किणेज्ज वा, पामिच्चेज्ज वा, नावाए वा नाव-परिणामं कट्टु थलाओ वा नावं जलंसि ओगाहेज्जा, जलाओ वा नावं थलंसि उक्कसेज्जा, पुण्णं वा नावं उस्सिंचेज्जा, सण्णं वा नाव उप्पीलावेज्जा। तहप्पगारं नावं उड्ढगामिणिं वा, अहेगामिणिं वा, तिरिय-गामिणिं वा, परं जोयणमेराए अद्धजोयणमेराए वा अप्पतरो वा भुज्जतरो वा नो दुरुहेज्ज गमणाए। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुव्वामेव तिरिच्छ-संपातिमं नावं जाणेज्जा, जानेत्ता से त्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी यह जाने कि मार्ग में नौका द्वारा पार कर सकने योग्य जलमार्ग है; परन्तु यदि वह यह जाने कि नौका असंयत के निमित्त मूल्य देकर खरीद कर रहा है, या उधार ले रहा है, या नौका की अदला – बदली कर रहा है, या नाविक नौका को स्थल से जल में लाता है, अथवा जल से उसे स्थल में खींच ले जाता है, नौका
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-२ Hindi 455 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से णं परो नावा-गए नावा-गयं वदेज्जा–आउसंतो! एस णं समणे नावाए भंडभारिए भवइ। से णं बाहाए गहाय नावाओ उदगंसि पक्खिवह। एतप्पगारं निग्घोसं सोच्चा निसम्म से य चीवरधारी सिया, खिप्पामेव चीवराणि उव्वेड्ढिज्ज वा, णिव्वेड्ढिज्ज वा, उप्फेसं वा करेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा–अभिक्कंत-कूरकम्मा खलु बाला बाहाहिं गहाय नावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा। से पुव्वामेव वएज्जा–आउसंतो! गाहावइ! मा मेत्तो बाहाए गहाय नावाओ उदगंसि पक्खिवह, सयं चेव णं अहं नावातो उदगंसि ओगाहिस्सामि। से णेवं वयंतं परो सहसा बलसा बाहाहिं गहाय नावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा, तं नो सुमणे सिया, नो दुम्मणे सिया, नो उच्चावयं

Translated Sutra: यदि कोई नौकारूढ़ व्यक्ति नौका पर बैठे हुए किसी अन्य गृहस्थ से इस प्रकार कहे – ‘आयुष्मन्‌ गृहस्थ ! यह श्रमण जड़ वस्तुओं की तरह नौका पर केवल भारभूत है, अतः इसकी बाँहें पकड़कर नौका से बाहर जलमें फेंक दो।’ इस प्रकार की बात सूनकर और हृदय में धारण करके यदि वह मुनि वस्त्रधारी है तो शीघ्र ही फटे – पुराने वस्त्रों को खोलकर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-२ Hindi 456 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे नो हत्थेण हत्थं, पाएण पायं, काएण कायं, आसाएज्जा। ‘से अणासायमाणे’ तओ संजयामेव उदगंसि पवेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे नो उम्मग्ग-निमग्गियं करेज्जा। मामेयं उदगं कण्णेसु वा, अच्छीसु वा, नक्कंसि वा, मुहंसि वा परियावज्जेज्जा, तओ संजयामेव उदगंसि पवेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे दोब्बलियं पाउणेज्जा। खिप्पामेव उवहिं विगिंचेज्ज वा, विसोहेज्ज वा, नो चेव णं सातिज्जेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा–पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए तओ संजयामेव उदउल्लेण वा, ससिणिद्धेण वा काएण उदगतीरे चिट्ठेज्जा। से भिक्खू वा

Translated Sutra: जलमें डूबते समय साधु – साध्वी अपने एक हाथ से दूसरे हाथ का, एक पैर से दूसरे पैर का, तथा शरीर के अन्य अंगोंपांगों का भी परस्पर स्पर्श न करे। वह परस्पर स्पर्श न करता हुआ इसी तरह यतनापूर्वक जलमें बहता चला जाए। साधु या साध्वी जल में बहते समय उन्मज्जन – निमज्जन भी न करे और न इस बात का विचार करे कि यह पानी मेरे कानों में,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-२ Hindi 458 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से जंघासंतारिमे उदए सिया। से पुव्वामेव ससीसोव-रियं कायं पादे य पमज्जेज्जा, पमज्जेत्ता सागारं भत्तं पच्चक्खाएज्जा, पच्चक्खाएत्ता एगं पायं जले किच्चा, एगं पायं थले किच्चा, तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जंघासंतारिमे उदगे अहारियं रीयमाणे, णो‘हत्थेण हत्थं’ पाएण पायं, काएण कायं, आसाएज्जा। ‘से अणासायमाणे’ तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएज्जा। से भिक्खु वा भिक्खुणी वा जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीयमाणे नो साय-वडियाए, नो परदाह-वडियाए, महइ-महालयंसि उदगंसि कायं

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में जंघा – प्रमाण जल पड़ता हो तो उसे पार करने के लिए वह पहले सिर सहित शरीर के ऊपरी भाग से लेकर पैर तक प्रमार्जन करे। इस प्रकार सिर से पैर तक का प्रमार्जन करके वह एक पैर को जल में और एक पैर को स्थल में रखकर यतनापूर्वक जल को, भगवान के द्वारा कथित ईर्यासमिति की विधि
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-२ Hindi 459 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे नो मट्टियामएहिं पाएहिं हरियाणि छिंदिय-छिंदिय, विकुज्जिय-विकुज्जिय, विफालिय-विफालिय, उम्मग्गेणं हरिय-वहाए गच्छेज्जा। ‘जहेयं’ पाएहिं मट्टियं खिप्पामेव हरियाणि अवहरंतु’। माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेज्जा। से पुव्वामेव अप्पहरियं मग्गं पडिलेहेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा। सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा। केवली बूया आयाणमेयं

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी गीली मिट्टी एवं कीचड़ से भरे हुए अपने पैरों से हरितकाय का बार – बार छेदन करके तथा हरे पत्तों को मोड़ – मोड़ कर या दबा कर एवं उन्हें चीर – चीर कर मसलता हुआ मिट्टी न उतारे और न हरितकाय की हिंसा करने के लिए उन्मार्ग में इस अभिप्राय से जाए कि ‘पैरों पर लगी हुई इस कीचड़ और गीली
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-२ Hindi 460 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा। तेणं पाडिपहिया एवं वदेज्जा–आउसंतो! समणा! केवइए एस गामे वा, नगरे वा, खेडे वा, कव्वडे वा, मडंबे वा, पट्टणे वा, दोणमुहे वा, आगरे वा, निगमे वा, आसमे वा, सन्निवेसे वा, रायहाणी वा? केवइया एत्थ आसा हत्थी गाम-पिंडोलगा मणुस्सा परिवसंति? से बहुभत्ते बहुउदए बहुजणे बहुजवसे? से अप्पभत्ते अप्पुदए अप्पजणे अप्पजवसे? ‘एयप्पगाराणि पसिणाणि पुट्ठो नो आइक्खेज्जा, एयप्पगाराणि पसिणाणि णोपुच्छेज्जा’। एवं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि।

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में सामने से आते हुए पथिक मिले और वे साधु से पूछे ‘‘यह गाँव कितना बड़ा या कैसा है ? यावत्‌ यह राजधानी कैसी है ? यहाँ पर कितने घोड़े, हाथी तथा भिखारी हैं, कितने मनुष्य निवास करते हैं ? क्या इस गाँव यावत्‌ राजधानी में प्रचुर आहार, पानी, मनुष्य एवं धान्य हैं, अथवा थोड़े
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-३ Hindi 464 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से गोणं वियालं पडिपहे पेहाए, महिसं वियालं पडिपहे पेहाए, एवं– मणुस्सं, आसं, हत्थिं, सीहं, वग्घं, विगं, दीवियं, अच्छं, तरच्छं, परिसरं, सियालं, विरालं, सुणयं, कोल-सुणयं, कोकंतियं, चित्ताचिल्लडं–वियालं पडिपहे पेहाए, नो तेसिं भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, नो मग्गाओ मग्गं संकमेज्जा, नो गहणं वा, वनं वा, दुग्गं वा अणुपविसेज्जा, नो रुक्खंसि दुरुहेज्जा, नो महइमहालयंसि उदयंसि कायं विउसेज्जा, नो वाडं वा, सरणं वा, सेणं वा, सत्थं वा कंखेज्जा, अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। से

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में मदोन्मत्त साँड़, विषैला साँप, यावत्‌ चित्ते, आदि हिंसक पशुओं को सम्मुख – पथ से आते देखकर उनसे भयभीत होकर उन्मार्ग से नहीं जाना चाहिए, और न ही एक मार्ग से दूसरे मार्ग पर संक्रमण करना चाहिए, न तो गहन वन एवं दुर्गम स्थान में प्रवेश करना चाहिए, न ही वृक्ष पर चढ़ना
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-३ Hindi 465 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से आमोसगा संपिंडिया गच्छेज्जा। ते णं आमोसगा एवं वदेज्जा–आउसंतो! समणा! ‘आहर एयं’ वत्थं वा, पायं वा, कंबलं वा, पायपुंछणं वा–देहि, णिक्खिवाहि। तं नो देज्जा, नो णिक्खिवेज्जा, नो वंदिय-वंदिय जाएज्जा, नो अंजलिं कट्टु जाएज्जा, नो कलुण-पडियाए जाएज्जा, धम्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुसिणीय-भावेण वा उवेहेज्जा। ते णं आमोसगा ‘सयं करणिज्जं’ ति कट्टु अक्कोसंति वा, बंधंति वा, रुंभंति वा, उद्दवंति वा। वत्थं वा, पायं वा, कंबलं वा, पायपुंछणं वा अच्छिंदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। तं नो गामसंसारियं कुज्जा, नो रायसंसारियं कुज्जा,

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु के पास यदि मार्ग में चोर संगठित होकर आ जाएं और वे कहें कि ‘‘ये वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादप्रोंछन आदि लाओ, हमें दे दो, या यहाँ पर रख दो।’ इस प्रकार कहने पर साधु उन्हें वे न दे, और न नीकाल कर भूमि पर रखे। अगर वे बलपूर्वक लेने लगे तो उन्हें पुनः लेने के लिए उनकी स्तुति करके हाथ जोड़कर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-१ वचन विभक्ति Hindi 466 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इमाइं वइ-आयाराइं सोच्चा निसम्म इमाइं अणायाराइं अनायरियपुव्वाइं जाणेज्जा–जे कोहा वा वायं विउंजंति, जे माणा वा वायं विउंजंति, जे मायाए वा वायं विउंजंति, जे लोभा वा वायं विउंजंति, जाणओ वा फरुसं वयंति, अजाणओ वा फरुसं वयंति, सव्वमेयं सावज्जं वज्जेज्जा विवेगमायाए। धुवं चेयं जाणेज्जा, अधुवं चेयं जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा लभिय णोलभिय, भुंजिय णोभुंजिय, अदुवा आगए अदुवा णोआगए, अदुवा एइ अदुवा नो एइ, अदुवा एहिति अदुवा नो एहिति, एत्थवि आगए एत्थवि नो आगए, एत्थवि एइ एत्थवि नो एइ, एत्थवि एहिति एत्थवि नो एहिति। अणुवीइ निट्ठाभासी, समियाए

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी इन वचन (भाषा) के आचारों को सूनकर, हृदयंगम करके, पूर्व – मुनियों द्वारा अनाचरित भाषा – सम्बन्धी अनाचारों को जाने। जो क्रोध से वाणी का प्रयोग करते हैं, जो अभिमानपूर्वक, जो छल – कपट सहित, अथवा जो लोभ से प्रेरित होकर वाणी का प्रयोग करते हैं, जानबूझकर कठोर बोलते हैं, या अनजाने में कठोर वचन कह देते
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-१ वचन विभक्ति Hindi 467 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा– पुव्वं भासा अभासा, भासिज्जमाणी भासा भासा, भासासमयविइक्कंता भासिया भासा अभासा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा–जा य भासा सच्चा, जा य भासा मोसा, जा य भासा सच्चामोसा, जा य भासा असच्चामोसा, तहप्पगारं भासं सावज्जं सकिरियं कक्कसं कडुयं निट्ठुरं फरुसं अण्हयकरिं छेयणकरिं भेयणकरिं परितावनकरिं उद्दवनकरिं भूतोवघाइयं अभिकंख ‘नो भासेज्जा’। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा–जा य भासा सच्चा सुहुमा, जा य भासा असच्चामोसा, तहप्पगारं भासं असावज्जं अकिरियं अकक्कसं अकडुयं अनिट्ठुरं अफरुसं अणण्हयकरिं अछेय-णकरिं

Translated Sutra: संयमशील साधु – साध्वी को भाषा के सम्बन्ध में यह भी जान लेना चाहिए कि बोलने से पूर्व भाषा अभाषा होती है, बोलते समय भाषा भाषा कहलाती है और बोलने के पश्चात्‌ बोली हुई भाषा अभाषा हो जाती है। जो भाषा सत्या है, जो भाषा मृषा है, जो भाषा सत्यामृषा है अथवा जो भाषा असत्यामृषा है, इन चारों भाषाओं में से (केवल सत्या और असत्यामृषा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-१ वचन विभक्ति Hindi 468 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुमं आमंतेमाणे आमंतिए वा अपडिसुणेमाणे एवं वएज्जा–अमुगे ति वा, आउसो ति वा, आउसंतो ति वा, सावगे ति वा, उपासगे ति वा, धम्मिए ति वा, धम्मपिये ति वा–एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोव-घाइयं अभिकंख भासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थिं आमंतेमाणे आमंतिए य अपडिसुणेमाणी नो एवं वएज्जा–होले ति वा, गोले ति वा, वसुले ति वा, कुपक्खे ति वा, घडदासी ति वा, साणे ति वा, तेणे ति वा, चारिए ति वा, माई ति वा, मुसावाई ति वा, इच्चे-याइं तुमं एयाइं ते जणगा वा–एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख णोभासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थियं आमंतेमाणे आमंतिए

Translated Sutra: साधु या साध्वी किसी पुरुष को आमंत्रित कर रहे हों और आमंत्रित करने पर भी वह न सूने तो उसे इस प्रकार न कहे – अरे होल रे गोले ! या हे गोल ! अय वृषल ! हे कुपक्ष ! अरे घटदास ! या ओ कुत्ते ! ओ चोर ! अरे गुप्तचर अरे झूठे ! ऐसे ही तुम हो, ऐसे ही तुम्हारे माता – पिता हैं। साधु इस प्रकार की सावद्य, सक्रिय यावत्‌ जीवोपघातिनी भाषा न बोले। संयमशील
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-२ क्रोधादि उत्पत्तिवर्जन Hindi 470 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाइं रूवाइं पासेज्जा तहावि ताइं नो एवं वएज्जा, तं जहा–गंडी गंडी ति वा, कुट्ठी कुट्ठी ति वा, रायंसी रायंसी ति वा, अवमारियं अवमारिए ति वा, काणियं काणिए ति वा, ज्झिमियं ज्झिमिए ति वा, कुणियं कुणिए ति वा, खुज्जियं खुज्जिए ति वा, उदरी उदरी ति वा, मूयं भूए ति वा, सूणियं सूणिए ति वा, गिलासिणी गिलासिणी ति वा, वेवई वेवई ति वा, पीढसप्पी पीढसप्पी ति वा, सिलिवयं सिलिवए ति वाव, महुमेहणी महुमेहणी ति वा, हत्थछिन्नं हत्थछिन्ने ति वा, पादछिन्नं पादछिन्ने ति वा, नक्कछिन्नं नक्कछिन्ने ति वा, कण्णछिन्नं कण्णछिन्ने ति वा, ओट्ठछिन्नं ओट्ठछिन्ने ति वा जे यावण्णे

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी यद्यपि अनेक रूपों को देखते हैं तथापि उन्हें देखकर इस प्रकार न कहे। जैसे कि गण्डी माला रोग से ग्रस्त या जिसका पैर सूझ गया हो को गण्डी, कुष्ठ – रोग से पीड़ित को कोढ़िया, यावत्‌ मधुमेह से पीड़ित रोगी को मधुमेही कहकर पुकारना, अथवा जिसका हाथ कटा हुआ है उसे हाथकटा, पैरकटे को पैरकटा, नाक कटा हुआ हो
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-२ क्रोधादि उत्पत्तिवर्जन Hindi 471 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडियं पेहाए तहावि तं नो एवं वएज्जा तं जहा–सुकडे ति वा, सुट्ठुकडे ति वा, साहुकडे ति वा, कल्लाणे ति वा, करणिज्जे ति वा–एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख नो भासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडियं पेहाए एवं वएज्जा, तं जहा–आरंभकडे ति वा, सावज्जकडे ति वा, पयत्तकडे ति वा, भद्दयं भद्दए ति वा, ऊसढं ऊसढे ति वा, रसियं रसिए ति वा, मणुण्णं मणुण्णे ति वा– एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकंख भासेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी अशनादि चतुर्विध आहार को देखकर भी इस प्रकार न कहे जैसे कि यह आहारादि पदार्थ अच्छा बना है, या सुन्दर बना है, अच्छी तरह तैयार किया गया है, या कल्याणकारी है और अवश्य करने योग्य है। इस प्रकार की भाषा साधु या साध्वी सावद्य यावत्‌ जीवोपघातक जानकर न बोले। इस प्रकार कह सकते हैं, जैसे कि यह आहारादि पदार्थ
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-२ क्रोधादि उत्पत्तिवर्जन Hindi 472 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा, गोणं वा, महिसं वा, मिगं वा, पसुं वा, पक्खिं वा, सरीसिवं वा, जलयरं वा, से त्तं परिवूढकायं पेहाए नो एवं वएज्जा–थूले ति वा, पमेइले ति वा, वट्टे ति वा, वज्झे ति वा, पाइमे ति वा– एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख नो भासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा, गोणं वा, महिसं वा, मिगं वा, पसुं वा, पक्खिं वा, सरीसिवं वा, जल-यरं वा, से त्तं परिवूढकायं पेहाए एवं वएज्जा, तं जहा– परिवूढकाए ति वा, उवचियकाए ति वा, थिरसंघयणे ति वा, चियमंससो-णिए ति वा, बहुपडिपुण्णइंदिए ति वा– एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकंख भासेज्जा। से भिक्खू

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी परिपुष्ट शरीर वाले किसी मनुष्य, बैल, यावत्‌ किसी भी विशालकाय प्राणी को देखकर ऐसे कह सकता है कि यह पुष्ट शरीर वाला है, उपचितकाय है, दृढ़ संहनन वाला है, या इसके शरीर में रक्त – माँस संचित हो गया है, इसकी सभी इन्द्रियाँ परिपूर्ण हैं। इस प्रकार की असावद्य यावत्‌ जीवोपघात से रहित भाषा बोले। साधु
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-२ क्रोधादि उत्पत्तिवर्जन Hindi 473 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाइं सद्दाइं सुणेज्जा, तहावि ताइं नो एवं वएज्जा, तं जहा–सुसद्दे ति वा, ‘दुसद्दे ति वा’–एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख नो भासेज्जा। ‘से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाइं सद्दाइं सुणेज्जा’, ताइं एवं वएज्जा, तं जहा–सुसद्दं सुसद्दे ति वा, ‘दुसद्दं दुसद्दे ति वा’–एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकंख भासेज्जा। एवं रूवाइं–कण्हे ति वा, नीले ति वा, लोहिए ति वा, हालिद्दे ति वा, सुकिल्ले ति वा, गंधाइं–सुब्भिगंधे ति वा, दुब्भिगंधे ति वा, रसाइं–तित्ताणि वा, कडुयाणि वा, कसायाणि वा, अंबिलाणि वा, महुराणि वा, फासाइं–कक्खडाणि

Translated Sutra: साधु या साध्वी कईं शब्दों को सूनते हैं, तथापि यों न कहे, जैसे कि – यह मांगलिक शब्द है, या यह अमांगलिक शब्द है। इस प्रकार की सावद्य यावत्‌ जीवोपघातक भाषा न बोले। कभी बोलना हो तो सुशब्द को ‘यह सुशब्द है’ और दुःशब्द को ‘यह दुःशब्द है’ ऐसी निरवद्य यावत्‌ जीवोपघातरहित भाषा बोले। इसी प्रकार रूपों के विषय में – कृष्ण
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-२ क्रोधादि उत्पत्तिवर्जन Hindi 474 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा वंता ‘कोहं च माणं च मायं च लोभं च’, अणुवीइ निट्ठाभासो निसम्मभासी अतुरियभासो विवेगभासी समियाए संजए भासं भासेज्जा। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि।

Translated Sutra: साधु या साध्वी क्रोध, मान, माया और लोभ का वमन करके विचारपूर्वक निष्ठाभासी हो, सून – समझकर बोले, अत्वरितभाषा एवं विवेकपूर्वक बोलने वाला हो और भाषासमिति से युक्त संयत भाषा का प्रयोग करे। यही वास्तव में साधु – साध्वी के आचार का सामर्थ्य है, जिसमें वह सभी ज्ञानादि अर्थों से युक्त होकर सदा प्रयत्नशील रहे। – ऐसा मैं
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 475 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा वत्थं एसित्तए, सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा, तं जहा–जंगियं वा, भंगियं वा, साणयं वा, पोत्तगं वा, खोमियं वा, तूलकडं वा, तहप्पगारं वत्थं– जे निग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे, से एगं वत्थं धारेज्जा, नो बितियं। जा णिग्गंथो, सा चत्तारि संघाडीओ धारेज्जा–एगं दुहत्थवित्थारं, दो तिहत्थवित्थाराओ, एगं चउत्थ वित्थारं, तहप्पगारेहिं वत्थेहिं असंविज्जमाणेहिं अह पच्छा एगमेगं संसीवेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी वस्त्र की गवेषणा करना चाहते हैं, तो उन्हें वस्त्रों के सम्बन्ध में जानना चाहिए। वे इस प्रकार हैं – जांगमिक, भांगिक, सानिक, पोत्रक, लोमिक और तूलकृत। तथा इसी प्रकार के अन्य वस्त्र को भी मुनि ग्रहण कर सकता है। जो निर्ग्रन्थ मुनि तरुण है, समय के उपद्रव से रहित है, बलवान, रोगरहित और स्थिर संहनन है, वह
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 476 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण-मेराए वत्थ-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए।

Translated Sutra: साधु – साध्वी को वस्त्र – ग्रहण करने के लिए आधे योजन से आगे जाने का विचार करना नहीं चाहिए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 477 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा–अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएति। तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया नीहडं वा अनीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अनासेवियं वा– अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा–अस्सिंपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं

Translated Sutra: साधु या साध्वी को यदि वस्त्र के सम्बन्ध में ज्ञात हो जाए कि कोई भावुक गृहस्थ धन के ममत्व से रहित निर्ग्रन्थ साधु को देने की प्रतिज्ञा करके किसी एक साधर्मिक साधु का उद्देश्य रखकर प्राणी, भूत, जीव और सत्त्वों का समारम्भ करके यावत्‌ (पिण्डैषणा समान) अनैषणीय समझकर मिलने पर भी न ले। तथा पिण्डैषणा अध्ययन में जैसे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 478 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा–असंजए भिक्खु-पडियाए कीयं वा, धोयं वा, रत्तं वा, घट्ठं वा, मट्ठं वा, संमट्ठं वा, संपधूमियं वा, तहप्पगारं वत्थं अपुरिसंतरकडं, अबहिया नीहडं, अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं, अनासेवितं –अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा–पुरिसंतरकडं, बहिया नीहडं, अत्तट्ठियं, परिभुत्तं, आसेवियं–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि किसी वस्त्र के विषय में यह जान जाए कि असंयमी गृहस्थ ने साधु के निमित्त से उसे खरीदा है, धोया है, रंगा है, घिस कर साफ किया है, चिकना या मुलायम बनाया है, संस्कारित किया है, सुवासित किया है और ऐसा वह वस्त्र अभी पुरुषान्तरकृत यावत्‌ दाता द्वारा आसेवित नहीं हुआ है, तो ग्रहण न करे। यदि साधु या साध्वी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 480 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेयाइं आयतणाइं उवाइकम्म, अह भिक्खू जाणेज्जा चउहिं पडिमाहिं वत्थं एसित्तए। तत्थ खलु इमा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय-उद्दिसिय वत्थं जाएज्जा, तं जहा–जंगियं वा, भंगियं वा, साणयं वा, पोत्तयं वा, खोमियं वा, तूलकडं वा–तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–पढमा पडिमा। अहावरा दोच्चा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए वत्थं जाएज्जा, तं जहा–गाहावइं वा, गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिनिं वा, गाहावइ-पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाइं वा, दासं वा, दासिं वा, कम्मकरं वा, कम्मकरिं वा। से पुव्वामेव

Translated Sutra: इन दोषों के आयतनों को छोड़कर चार प्रतिमाओं से वस्त्रैषणा करनी चाहिए। पहली प्रतिमा – वह साधु या साध्वी मन में पहले संकल्प किये हुए वस्त्र की याचना करे, जैसे कि – जांगमिक, भांगिक, सानज, पोत्रक, क्षौमिक या तूलनिर्मित वस्त्र, उस प्रकार के वस्त्र की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ स्वयं दे तो प्रासुक और एषणीय होने पर ग्रहण
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 481 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदय सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं वत्थं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, अणलं अथिरं अधुवं अधारणिज्जं, रोइज्जंतं न रुच्चइ, तहप्पगारं वत्थं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं

Translated Sutra: साधु – साध्वी यदि ऐसे वस्त्र को जाने जो कि अंडों से यावत्‌ मकड़ी के जालों से युक्त हैं तो उस प्रकार के वस्त्र को अप्रासुक एवं अनैषणीय मानकर प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे। साधु या साध्वी यदि जाने के यह वस्त्र अंडों से यावत्‌ मकड़ी के जालों से तो रहित है, किन्तु अभीष्ट कार्य करने में असमर्थ है, अस्थिर है, या जीर्ण
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 482 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा वत्थं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा, तहप्पगारं वत्थं नो अनंतरहियाए पुढवीए, नो ससणिद्धाए पुढवीए, नो ससरक्खाए पुढवीए, नो चित्तमंताए सिलाए, नो चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए असंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणए आयावेज्ज वा, पयावेज्ज वा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा वत्थं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा, तहप्पगारं वत्थं थूणंसि वा, गिहेलुगंसि वा, उसुयालंसि वा, कामजलंसि वा, अन्नयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अनिकंपे चलाचले नो आयावेज्ज वा, नो पयावेज्ज

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी वस्त्र को धूप में कम या अधिक सूखाना चाहे तो वह वैसे वस्त्र को सचित्त पृथ्वी पर, स्निग्ध पृथ्वी पर, तथा ऊपर से सचित्त मिट्टी गिरती हो, तथा ऐसी पृथ्वी पर, सचित्त शिला पर, सचित्त मिट्टी के ढेले पर, जिसमें धुन या दीमक का निवास हो ऐसी जीवाधिष्ठित लकड़ी पर प्राणी, अण्डे, बीज, मकड़ी के जाले आदि जीवजन्तु
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