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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 48 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था। पुन्नभद्दे चेइए।
तत्थ णं चंपाए नयरीए कोणिए राया–वन्नओ।
तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रन्नो भज्जा, कोणियस्स रन्नो चुल्लमाउया, काली नामं देवी होत्था–वन्नओ। जहा नंदा जाव सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ। बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विविहेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ।
तए णं सा काली अज्जा अन्नया कयाइ जेणेव अज्जचंदना अज्जा Translated Sutra: ‘‘भगवन् ! यदि आठवें वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त महावीर ने क्या अर्थ कहा है ?’’ ‘‘हे जंबू ! उस काल और उस समय चम्पा नामकी नगरी थी। वहाँ पूर्णभद्र चैत्य था। वहाँ कोणिक राजा था। श्रेणिक राजा की रानी और महाराजा कोणिक की छोटी माता काली देवी थी। (वर्णन)। नन्दा देवी के समान | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 50 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा काली अज्जा रयणावली-तवोकम्मं पंचहिं संवच्छरेहिं दोहि य मासेहिं अट्ठावीसाए य दिवसेहिं अहासुत्तं जाव आराहेत्ता जेणेव अज्जचंदना अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जचंदनं अज्जं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं चउत्थ जाव अप्पाणं भावेमाणी विहरइ।
तए णं सा काली अज्जा तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएण उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महानुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठिचम्मावणद्धा किडिकिडियाभूया किसाधमनिसंतया जाया यावि होत्था जीवंजीवेण गच्छइ जाव सुहयहुयासणेइव भासरासिपलिच्छण्णा Translated Sutra: इस भाँति काली आर्या ने रत्नावली तप की पाँच वर्ष दो मास और अट्ठाईस दिनों में सूत्रानुसार यावत् आराधना पूर्ण करके जहाँ आर्या चन्दना थीं वहाँ आई और आर्या चन्दना को वंदना – नमस्कार किया। तदनन्तर बहुत से उपवास, बेला, तेला, चार, पाँच आदि अनशन तप से अपनी आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। तत्पश्चात् काली आर्या | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 51 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी। पुन्नभद्दे चेइए। कोणिए राया।
तत्थ णं सेणियस्स रन्नो भज्जा, कोणियस्स रन्नो चुल्लमाउया, सुकाली नामं देवी होत्था। जहा काली तहा सुकाली वि निक्खंता जाव बहूहिं जाव तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ।
तए णं सा सुकाली अज्जा अन्नया कयाइ जेणेव अज्जचंदना अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं अज्जाओ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणी कनगावली-तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। एवं जहा रयणावली तहा कनगावली वि, नवरं–तिसु ठाणेसु अट्ठमाइं करेइ, जहिं रयणावलीए छट्ठाइं।
एक्काए परिवाडीए संवच्छरो पंच मासा बारस य अहोरत्ता। Translated Sutra: उस काल और उस समय में चम्पा नामकी नगरी थी। पूर्णभद्र चैत्य था, कोणिक राजा था। श्रेणिक राजा की रानी और कोणिक राजा की छोटी माता सुकाली नाम की रानी थी। काली की तरह सुकाली भी प्रव्रजित हुई और बहुत से उपवास आदि तपों से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। फिर वह सुकाली आर्या अन्यदा किसी दिन आर्या – चन्दना आर्या के | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 54 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–सुकण्हा वि, नवरं–सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ।
पढमे सत्तए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स।
दोच्चे सत्तए दो-दो भोयणस्स दो-दो पाणयस्स पडिगाहेइ।
तच्चे सत्तए तिन्नि-तिन्नि दत्तीओ भोयणस्स, तिन्नि-तिन्नि दत्तीओ पाणयस्स।
चउत्थे सत्तए चत्तारि-चत्तारि दत्तीओ भोयणस्स, चत्तारि-चत्तारि दत्तीओ पाणयस्स।
पंचमे सत्तए पंच-पंच दत्तीओ भोयणस्स, पंच-पंच दत्तीओ पाणयस्स।
छट्ठे सत्तए छ-छ दत्तीओ भोयणस्स, छ-छ दत्तीओ पाणयस्स।
सत्तमे सत्तए सत्त-सत्त दत्तीओ भोयणस्स, सत्त-सत्त दत्तीओ पाणयस्स पडिगाहेइ।
एवं खलु एयं सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं Translated Sutra: काली आर्या की तरह आर्या सुकृष्णा ने भी दीक्षा ग्रहण की। विशेष यह कि वह सप्त – सप्तमिका भिक्षु – प्रतिमा ग्रहण करके विचरने लगी, जो इस प्रकार है – प्रथम सप्तक में एक दत्ति भोजन की और एक दत्ति पानी की ग्रहण की। द्वितीय सप्तक में दो दत्ति भोजन की और दो दत्ति पानी। तृतीय सप्तक में तीन दत्ति भोजन की और तीन दत्ति पानी। | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Hindi | 59 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–महासेनकण्हा वि, नवरं–आयंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा–
आयंबिलं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
बे आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
तिन्नि आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
चत्तारि आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
पंच आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
छ आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
एवं एक्कुत्तरियाए वड्ढीए आयंबिलाइं वड्ढंति चउत्थंतरियाइं जाव आयंबिलसयं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा आयंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं चोद्दसहिं वासेहिं तिहि य मासेहिं वीसहि य अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव आराहेत्ता Translated Sutra: इसी प्रकार महासेनकृष्णा का वृत्तान्त भी समझना। विशेष यह कि इन्होंने वर्द्धमान आयंबिल तप अंगीकार किया जो इस प्रकार है – एक आयंबिल किया, करके उपवास किया, करके दो आयंबिल किये, करके उपवास किया, करके तीन आयंबिल किये, करके उपवास किया, करके चार आयंबिल किये, करके उपवास किया, करके पाँच आयंबिल किये, करके उपवास किया। ऐसे | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 48 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था। पुन्नभद्दे चेइए।
तत्थ णं चंपाए नयरीए कोणिए राया–वन्नओ।
तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रन्नो भज्जा, कोणियस्स रन्नो चुल्लमाउया, काली नामं देवी होत्था–वन्नओ। जहा नंदा जाव सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ। बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विविहेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ।
तए णं सा काली अज्जा अन्नया कयाइ जेणेव अज्जचंदना अज्जा Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૮. ભંતે! જો ભગવંત મહાવીરે આઠમાં વર્ગના – તેર અધ્યયનો કહ્યા છે, તો પહેલા અધ્યયનનો ભગવંત મહાવીરે શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે તે સમયે ચંપા નામે નગરી હતી, પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય હતું. તે ચંપાનગરીમાં કોણિક રાજા હતો. તે ચંપાનગરીના શ્રેણિક રાજાની પત્ની અને કોણિક રાજાની લઘુમાતા ‘કાલી’ નામે રાણી હતી. નંદારાણી | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 50 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा काली अज्जा रयणावली-तवोकम्मं पंचहिं संवच्छरेहिं दोहि य मासेहिं अट्ठावीसाए य दिवसेहिं अहासुत्तं जाव आराहेत्ता जेणेव अज्जचंदना अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जचंदनं अज्जं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं चउत्थ जाव अप्पाणं भावेमाणी विहरइ।
तए णं सा काली अज्जा तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएण उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महानुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठिचम्मावणद्धा किडिकिडियाभूया किसाधमनिसंतया जाया यावि होत्था जीवंजीवेण गच्छइ जाव सुहयहुयासणेइव भासरासिपलिच्छण्णा Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૮ | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 51 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी। पुन्नभद्दे चेइए। कोणिए राया।
तत्थ णं सेणियस्स रन्नो भज्जा, कोणियस्स रन्नो चुल्लमाउया, सुकाली नामं देवी होत्था। जहा काली तहा सुकाली वि निक्खंता जाव बहूहिं जाव तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ।
तए णं सा सुकाली अज्जा अन्नया कयाइ जेणेव अज्जचंदना अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं अज्जाओ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणी कनगावली-तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। एवं जहा रयणावली तहा कनगावली वि, नवरं–तिसु ठाणेसु अट्ठमाइं करेइ, जहिं रयणावलीए छट्ठाइं।
एक्काए परिवाडीए संवच्छरो पंच मासा बारस य अहोरत्ता। Translated Sutra: તે કાળે તે સમયે ચંપા નામે નગરી હતી, પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય હતું, કોણિક નામે રાજા હતો. ત્યાં રાજા શ્રેણિકની પત્ની અને કોણિકની લઘુમાતા સુકાલી દેવી હતા. કાલીદેવીની માફક દીક્ષા લીધી, યાવત્ ઘણા ઉપવાસ યાવત્ ભાવતા વિચરે છે. તે સુકાલી આર્યા અન્ય કોઈ દિને, ચંદના આર્યા પાસે આવીને કહ્યું કે – આપની અનુજ્ઞા પામીને કનકાવલી તપ | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 54 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–सुकण्हा वि, नवरं–सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ।
पढमे सत्तए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स।
दोच्चे सत्तए दो-दो भोयणस्स दो-दो पाणयस्स पडिगाहेइ।
तच्चे सत्तए तिन्नि-तिन्नि दत्तीओ भोयणस्स, तिन्नि-तिन्नि दत्तीओ पाणयस्स।
चउत्थे सत्तए चत्तारि-चत्तारि दत्तीओ भोयणस्स, चत्तारि-चत्तारि दत्तीओ पाणयस्स।
पंचमे सत्तए पंच-पंच दत्तीओ भोयणस्स, पंच-पंच दत्तीओ पाणयस्स।
छट्ठे सत्तए छ-छ दत्तीओ भोयणस्स, छ-छ दत्तीओ पाणयस्स।
सत्तमे सत्तए सत्त-सत्त दत्तीओ भोयणस्स, सत्त-सत्त दत्तीओ पाणयस्स पडिगाहेइ।
एवं खलु एयं सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं Translated Sutra: એ પ્રમાણે સુકૃષ્ણા રાણી પણ જાણવા. વિશેષ એ કે – તેઓ સપ્ત સપ્તમિકા નામક ભિક્ષુપ્રતિમા સ્વીકારી વિચરે છે. પહેલા સપ્તકમાં એક – એક ભોજનની દત્તિ, એક – એક પાણીની દત્તિ ગ્રહણ કરાય છે. બીજા સપ્તકમાં બંનેની બબ્બે દત્તિ ગ્રહણ કરાય છે. ત્રીજા સપ્તકમાં બંનેની ત્રણ – ત્રણ દત્તિ ગ્રહણ કરાય છે યાવત્ સાતમાં સપ્તકમાં ભોજનની | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-८ कालि आदि अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 59 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–महासेनकण्हा वि, नवरं–आयंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा–
आयंबिलं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
बे आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
तिन्नि आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
चत्तारि आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
पंच आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
छ आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
एवं एक्कुत्तरियाए वड्ढीए आयंबिलाइं वड्ढंति चउत्थंतरियाइं जाव आयंबिलसयं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ।
तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा आयंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं चोद्दसहिं वासेहिं तिहि य मासेहिं वीसहि य अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव आराहेत्ता Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૯. એ પ્રમાણે મહાસેનકૃષ્ણા રાણી પણ જાણવા. વિશેષ એ કે – વર્ધમાન આયંબિલ તપ કરતા વિચરે છે, તે આ પ્રમાણે – એક આયંબિલ, પછી ઉપવાસ કરે. પછી બે આયંબિલ કરીને ઉપવાસ કરે. એ રીતે એક – એક આયંબિલ વધતા – વધતા છેલ્લે ૧૦૦ – આયંબિલ કરીને એક ઉપવાસ કરે. ત્યારે આર્યા મહાસેન કૃષ્ણા આ તપને ૧૪ – વર્ષ, ૩ – માસ, ૨૦ – અહોરાત્ર વડે સૂત્ર | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 4 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एक्के असोगवरपायवे पन्नत्ते–कुस विकुस विसुद्ध रुक्खमूले मूल मंते कंदमंते खंधमंते तयामंते सालमंते पवालमंते पत्तमंते पुप्फमंते फलमंते बीयमंते अणुपुव्व सुजाय रुइल वट्टभावपरिणए अनेगसाह प्पसाह विडिमे अनेगनरवाम सुप्पसारिय अग्गेज्झ घन विउल बद्ध वट्टखंधे अच्छिद्दपत्ते अविरलपत्ते अवाईणपत्ते अणईइपत्ते निद्धूय जरढ पंडुपत्ते नवहरियभिसंत पत्तभारंधयार गंभीरदरिसणिज्जे उवनिग्गय नव तरुण पत्त पल्लव कोमलउज्जल-चलंतकिसलय सुकुमालपवाल सोहियवरंकुरग्गसिहरे निच्चं कुसुमिए निच्चं माइए निच्चं लवइए निच्चं थवइए निच्चं गुलइए Translated Sutra: उस वन – खण्ड के ठीक बीच के भाग में एक विशाल एवं सुन्दर अशोक वृक्ष था। उसकी जड़ें डाभ तथा दूसरे प्रकार के तृणों से विशुद्ध थी। वह वृक्ष उत्तम मूल यावत् रमणीय, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप था। वह उत्तम अशोक वृक्ष तिलक, लकुच, क्षत्रोप, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोघ्र, धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कटुज, कदम्ब, सव्य, पनस, दाड़िम, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 22 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरकुमारा देवा अंतियं पाउब्भवित्थाकालमहानीलसरिस नीलगुलिय गवल अयसिकुसुमप्पगासा वियसिय सयवत्तमिव पत्तल निम्मल ईसीसियरत्ततंबनयणा गरुलायत उज्जुतुंगणासा ओयविय सिल प्पवाल बिंबफलसन्निभाहरोट्ठा पंडुर ससिसयल विमल निम्मल संख गोखीर फेण दगरय मुणालिया धव-लदंतसेढी हुयवह निद्धंत धोय तत्त तवणिज्ज रत्ततलतालुजीहा अंजण घण कसिण रुयग रमणिज्ज निद्धकेसा वामेगकुंडलधरा अद्द चंदनानुलित्तगत्ता ईसीसिलिंध पुप्फप्पगासाइं असंकिलिट्ठाइं सुहुमाइं वत्थाइं पवरपरिहिया वयं च पढमं समइक्कंता बिइयं च असंपत्ता भद्दे जोव्वणे Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के पास अनेक असुरकुमार देव प्रादुर्भुत हुए। काले महा – नीलमणि, नीलमणि, नील की गुटका, भैंसे के सींग तथा अलसी के पुष्प जैसा उसका काला वर्ण तथा दीप्ति थी। उनके नेत्र खिले हुए कमल सदृश थे। नेत्रों की भौहें निर्मल थीं। उनके नेत्रों का वर्ण कुछ – कुछ सफेद, लाल तथा ताम्र जैसा था। उनकी | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 4 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एक्के असोगवरपायवे पन्नत्ते–कुस विकुस विसुद्ध रुक्खमूले मूल मंते कंदमंते खंधमंते तयामंते सालमंते पवालमंते पत्तमंते पुप्फमंते फलमंते बीयमंते अणुपुव्व सुजाय रुइल वट्टभावपरिणए अनेगसाह प्पसाह विडिमे अनेगनरवाम सुप्पसारिय अग्गेज्झ घन विउल बद्ध वट्टखंधे अच्छिद्दपत्ते अविरलपत्ते अवाईणपत्ते अणईइपत्ते निद्धूय जरढ पंडुपत्ते नवहरियभिसंत पत्तभारंधयार गंभीरदरिसणिज्जे उवनिग्गय नव तरुण पत्त पल्लव कोमलउज्जल-चलंतकिसलय सुकुमालपवाल सोहियवरंकुरग्गसिहरे निच्चं कुसुमिए निच्चं माइए निच्चं लवइए निच्चं थवइए निच्चं गुलइए Translated Sutra: [૧] તે વનખંડના બહુમધ્ય દેશભાગમાં એક મોટું ઉત્તમ એવું અશોકવૃક્ષ હતું. તેનું મૂળ ડાભ અને તૃણોથી રહિત હતું. તે વૃક્ષ ઉત્તમ મૂળ, કંદ યાવત્ પર્યાપ્ત સ્થાનવાળું, સુરમ્ય – પ્રાસાદીય – દર્શનીય – અભિરૂપ અને પ્રતિરૂપ હતું. [૨] તે ઉત્તમ અશોકવૃક્ષ, બીજા પણ ઘણા તિલક, લકુચ, ક્ષત્રોપ, શિરીષ, સપ્તવર્ણ, દધિપર્ણ, લોઘ્ર, ધવ, ચંદન, | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 22 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरकुमारा देवा अंतियं पाउब्भवित्थाकालमहानीलसरिस नीलगुलिय गवल अयसिकुसुमप्पगासा वियसिय सयवत्तमिव पत्तल निम्मल ईसीसियरत्ततंबनयणा गरुलायत उज्जुतुंगणासा ओयविय सिल प्पवाल बिंबफलसन्निभाहरोट्ठा पंडुर ससिसयल विमल निम्मल संख गोखीर फेण दगरय मुणालिया धव-लदंतसेढी हुयवह निद्धंत धोय तत्त तवणिज्ज रत्ततलतालुजीहा अंजण घण कसिण रुयग रमणिज्ज निद्धकेसा वामेगकुंडलधरा अद्द चंदनानुलित्तगत्ता ईसीसिलिंध पुप्फप्पगासाइं असंकिलिट्ठाइं सुहुमाइं वत्थाइं पवरपरिहिया वयं च पढमं समइक्कंता बिइयं च असंपत्ता भद्दे जोव्वणे Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર સમીપે ઘણા અસુરકુમાર દેવો પ્રગટ થયા. કાળા મહાનીલમણિ, નીલમણિ, નીલગુટિકા, ભેંસના શીંગડા તથા અળસીના પુષ્પ જેવા કાળા વર્ણ તથા દીપ્તિ હતા. તેમના નેત્ર ખીલેલા કમળ સદૃશ હતા, નેત્રોની ભંવર નિર્મળ હતી. તેમના નેત્રોનો વર્ણ કંઈક સફેદ – લાલ – તામ્ર જેવો હતો. તેની નાસિકા ગરુડ સદૃશ લાંબી, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Hindi | 462 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे उसभदत्तस्स माहणस्स देवानंदाए माहणीए तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अनेगसयाए अनेगसयवंदाए अनेगसयवंद-परियालाए ओहबले अइबले महब्बले अपरिमिय-बल-वीरिय-तेय-माहप्प-कंति-जुत्ते सारय-नवत्थणिय-महुरगंभीर-कोंचनिग्घोस-दुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए सुव्वत्तक्खर-सण्णिवाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासाणुगामिणीए सरस्सईए जोयणणीहारिणा सरेणं अद्ध-मागहाए भासाए भासइ–धम्मं परिकहेइ जाव परिसा पडिगया।
तए णं से उसभदत्ते माहणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे Translated Sutra: तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर ने ऋषभदत्तब्राह्मण और देवानन्दा तथ उस अत्यन्त बड़ी ऋषिपरिषद् को धर्मकथा कही; यावत् परिषद् वापर चली गई। इसके पश्चात वह ऋषभदत्त ब्राह्मण, श्रमण भगवान् महावीर के पास धर्म – श्रमण कर और उसे हृदय में धारण करके हर्षित और सन्तुष्ट होकर खड़ा हुआ। उसने श्रमण भगवान् महावीर की तीन बार आदक्षिण | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-९ शिवराजर्षि | Hindi | 506 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणापुरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं हत्थिणापुरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे, एत्थ णं सहसंबवने नामं उज्जाणे होत्था–सव्वोउय-पुप्फ-फलसमिद्धे रम्मे नंदनवनसन्निभप्पगासे सुहसीतलच्छाए मनोरमे सादुप्फले अकंटए, पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे सिवे नामं राया होत्था–महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे–वण्णओ। तस्स णं सिवस्स रन्नो धारिणी नामं देवी होत्था–सुकुमालपाणिपाया–वण्णओ। तस्स णं सिवस्स रन्नो पुत्ते धारिणीए अत्तए सिवभद्दे नामं कुमारे होत्था–सुकुमालपाणिपाए, जहा सूरियकंते जाव रज्जं Translated Sutra: उस काल और उस समय में हस्तिनापुर नाम का नगर था। उस हस्तिनापुर नगर के बाहर ईशानकोण में सहस्राम्रवन नामक उद्यान था। वह सभी ऋतुओं के पुष्पों और फलों से समृद्ध था। रम्य था, नन्दनवन के समान सुशोभित था। उसकी छाया सुखद और शीतल थी। वह मनोरम, स्वादिष्ट फलयुक्त, कण्टकरहित प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला यावत् प्रतिरूप | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Gujarati | 462 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे उसभदत्तस्स माहणस्स देवानंदाए माहणीए तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अनेगसयाए अनेगसयवंदाए अनेगसयवंद-परियालाए ओहबले अइबले महब्बले अपरिमिय-बल-वीरिय-तेय-माहप्प-कंति-जुत्ते सारय-नवत्थणिय-महुरगंभीर-कोंचनिग्घोस-दुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए सुव्वत्तक्खर-सण्णिवाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासाणुगामिणीए सरस्सईए जोयणणीहारिणा सरेणं अद्ध-मागहाए भासाए भासइ–धम्मं परिकहेइ जाव परिसा पडिगया।
तए णं से उसभदत्ते माहणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૬૦ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 99 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया भिंभिसारे जानसालियस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवा-गच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता अनेगवायाम-जोग्ग-वग्गण-वामद्दणमल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते सयपागसहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विंहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भिंगेहिं अब्भिंगिए समाणे तेल्ल-चम्मंसि पडिपुण्ण-पाणि-पाय-सुउमाल-कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं Translated Sutra: श्रेणिक राजा बिंबिसार यानचालक से पूर्वोक्त बात सूनकर हर्षित तुष्टित हुआ। स्नानगृह में प्रविष्ट हुआ। यावत् कल्पवृक्ष समान अलंकृत एवं विभूषित होकर वह श्रेणिक नरेन्द्र, यावत् स्नानगृह से नीकला। चेल्लणादेवी के पास आया और चेल्लणा देवी को कहा – हे देवानुप्रिये ! श्रमण भगवान महावीर यावत् गुणशील चैत्य में | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 99 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया भिंभिसारे जानसालियस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवा-गच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता अनेगवायाम-जोग्ग-वग्गण-वामद्दणमल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते सयपागसहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विंहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भिंगेहिं अब्भिंगिए समाणे तेल्ल-चम्मंसि पडिपुण्ण-पाणि-पाय-सुउमाल-कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं Translated Sutra: ત્યારે શ્રેણિક રાજા ભિંભિસાર યાનચાલક પાસે આ વૃત્તાંત સાંભળી હર્ષિત યાવત્ સંતુષ્ટ થયો. તે શ્રેણિક રાજા સ્નાનગૃહમાં પ્રવેશ્યો – યાવત્ – ત્યાંથી કલ્પવૃક્ષ સમાન અલંકૃત અને વિભૂષિત થયેલો તે શ્રેણિક નરેન્દ્ર સ્નાનગૃહથી બહાર નીકળ્યો. ત્યારપછી રાજા શ્રેણિક જ્યાં ચેલ્લણા દેવી હતા ત્યાં આવ્યો. આવીને ચેલ્લણા | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 56 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स भरहस्स रन्नो अन्नया कयाइ आउहघरसालाए दिव्वे चक्करयणे समुप्पज्जित्था।
तए णं से आउहघरिए भरहस्स रन्नो आउहघरसालाए दिव्वं चक्करयणं समुप्पन्नं पासाइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणामेव से दिव्वे चक्करयणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं० कट्टु चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणामेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणामेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं Translated Sutra: एक दिन राजा भरत की आयुधशाला में दिव्य चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। आयुधशाला के अधिकारी ने देखा। वह हर्षित एवं परितुष्ट हुआ, चित्त में आनन्द तथा प्रसन्नता का अनुभव करता हुआ अत्यन्त सौम्य मानसिक भाव और हर्षातिरेक से विकसित हृदय हो उठा। दिव्य चक्र – रत्न को तीन बार आदक्षिण – प्रदक्षिणा की, हाथ जोड़ते हुए चक्ररत्न को | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 44 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए।
जप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अनुलोमा वा। तत्थ पडिलोमा–वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अनुलोमा–वंदेज्ज वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्मानेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ।
तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए Translated Sutra: कौशलिक अर्हत् ऋषभ कुछ अधिक एक वर्ष पर्यन्त वस्त्रधारी रहे, तत्पश्चात् निर्वस्त्र। जब से वे प्रव्रजित हुए, वे कायिक परिकर्म रहित, दैहिक ममता से अतीत, देवकृत् यावत् जो उपसर्ग आते, उन्हें वे सम्यक् भाव से सहते, प्रतिकूल अथवा अनुकूल परिषह को भी अनासक्त भाव से सहते, क्षमाशील रहते, अविचल रहते। भगवान् ऐसे उत्तम | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 125 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया अन्नया कयाइ जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाण-मंडवंसि नानामणि रयण भत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहनिसन्ने सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहिं य पुण्णे कल्लाणगपवरमज्जनविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणग-पवरमज्जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलूहियंगे सरससुरहिगोसीसचंदनानुलित्तगत्ते अहय-सुमहग्घदूसरयणसुसंवुए सुइमाला वण्णग विलेवने आविद्ध-मणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहार तिसरय पालंबपलंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहे Translated Sutra: किसी दिन राजा भरत ने स्नान किया। देखने में प्रिय एवं सुन्दर लगनेवाला राजा स्नानघर से बाहर निकला। जहाँ आदर्शगृह में, जहाँ सिंहासन था, वहाँ आया। पूर्व की और मुँह किये सिंहासन पर बैठा। शीशों पर पड़ते अपने प्रतिबिम्ब को बार बार देखता था। शुभ परिणाम, प्रशस्त – अध्यवसाय, विशुद्ध होती हुई लेश्याओं, विशुद्धिक्रम | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 44 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए।
जप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अनुलोमा वा। तत्थ पडिलोमा–वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अनुलोमा–वंदेज्ज वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्मानेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ।
तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए Translated Sutra: કૌશલિક ઋષભ અરહંત સાધિક એક વર્ષ વસ્ત્રધારી રહ્યા. ત્યારપછી અચેલક થયા. જ્યારથી કૌશલિક ઋષભ અરહંત મુંડ થઈને ગૃહવાસત્યાગી નિર્ગ્રન્થ પ્રવ્રજ્યા લીધી, ત્યારથી કૌશલિક ઋષભ અરહંત નિત્ય કાયાને વોસિરાવીને, દેહ મમત્ત્વ ત્યજીને, જે કોઈ ઉપસર્ગો ઉપજે છે, તે આ પ્રમાણે – દેવે કરેલ યાવત્ પ્રતિકૂળ કે અનુકૂળ ઉપસર્ગોને સહે | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Gujarati | 56 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स भरहस्स रन्नो अन्नया कयाइ आउहघरसालाए दिव्वे चक्करयणे समुप्पज्जित्था।
तए णं से आउहघरिए भरहस्स रन्नो आउहघरसालाए दिव्वं चक्करयणं समुप्पन्नं पासाइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणामेव से दिव्वे चक्करयणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं० कट्टु चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणामेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणामेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૬. ત્યારપછી રાજા ભરતની આયુધધરશાળામાં કોઈ દિવસે દિવ્ય ચક્રરત્ન ઉત્પન્ન થયું. ત્યારે તે આયુધ ગૃહિકે ભરત રાજાના આયુધ શાળામાં દ્યિવ્ય ચક્રરત્ન ઉત્પન્ન થયું જોયું, જોઈને હર્ષિત, સંતુષ્ટ, આનંદિત ચિત્ત, નંદિત, પ્રીતિમાન, પરમ સૌમનસ્યિક અને હર્ષના વશથી વિકસિત હૃદય થઈ જ્યાં દિવ્ય ચક્રરત્ન છે, ત્યાં આવે છે. | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Gujarati | 125 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया अन्नया कयाइ जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाण-मंडवंसि नानामणि रयण भत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहनिसन्ने सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहिं य पुण्णे कल्लाणगपवरमज्जनविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणग-पवरमज्जणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलूहियंगे सरससुरहिगोसीसचंदनानुलित्तगत्ते अहय-सुमहग्घदूसरयणसुसंवुए सुइमाला वण्णग विलेवने आविद्ध-मणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहार तिसरय पालंबपलंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहे Translated Sutra: ત્યારે તે ભરતરાજા અન્ય કોઈ દિવસે જ્યાં સ્નાનગૃહ છે, ત્યાં આવે છે, આવીને યાવત્ ચંદ્ર સદૃશ પ્રિયદર્શન નરપતિ સ્નાનગૃહથી નીકળે છે, નીકળીને જ્યાં આદર્શગૃહ છે, જ્યાં સિંહાસન છે, ત્યાં આવે છે, આવીને શ્રેષ્ઠ સિંહાસન ઉપર પૂર્વાભિમુખ બેઠો, બેસીને આદર્શગૃહમાં પોતાના પ્રતિબિંબને જોતો – જોતો રહે છે. ત્યારે તે ભરતરાજા | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 185 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं नीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा नाम कुरा पन्नत्ता–पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्ध-चंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसते दोन्नि य एक्कोनवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में, नीलवंत पर्वत के दक्षिणमें, मालवंतवक्षस्कार पर्वत के पश्चिममें एवं गन्धमादन वक्षस्कारपर्वत के पूर्वमें उत्तरकुरा क्षेत्र। वह पूर्व पश्चिम लम्बा और उत्तर – दक्षिण चौड़ा है, अष्टमी के चाँद की तरह अर्ध | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Gujarati | 185 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं नीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा नाम कुरा पन्नत्ता–पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्ध-चंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसते दोन्नि य एक्कोनवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, Translated Sutra: હે ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ, જંબૂદ્વીપ કેમ કહેવાય છે ? ગૌતમ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં મેરુ પર્વતની ઉત્તરે, નીલવંતની દક્ષિણે માલ્યવંત વક્ષસ્કાર પર્વતની પશ્ચિમે, ગંધમાદન વક્ષસ્કાર પર્વતની પૂર્વે ઉત્તરકુરા નામે કુરા ક્ષેત્ર છે. તે પૂર્વ – પશ્ચિમ લાંબું અને ઉત્તર – દક્ષિણ પહોળું, અર્દ્ધ ચંદ્ર સંસ્થાન સંસ્થિત, વિષ્કંભથી | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 533 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुविसाल-सुवित्थिन्ने पए पए पेच्छियव्वय-सिरीए।
मघ-मघ-मघेंत-डज्झंत-अगलु-कप्पूर-चंदनामोए॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५३१ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 779 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दिन-दिक्खियस्स दमगस्स अभिमुहा अज्ज चंदना अज्जा।
नेच्छइ आसन-गहणं सो विनओ सव्व-अज्जाणं॥ Translated Sutra: एक ही दिन के दीक्षित द्रमक साधु की सन्मुख चिरदीक्षित आर्या चंदनबाला साध्वी खड़ी होकर उसका सन्मान विनय करे और आसन पर न बैठे वो सब आर्या का विनय है। सौ साल के पर्यायवाले दीक्षित साध्वी हो और साधु आज से एक दिन का दीक्षित हो तो भी भक्ति पूर्ण हृदययुक्त विनय से साधु साध्वी को पूज्य है। सूत्र – ७७९, ७८० | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Gujarati | 779 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दिन-दिक्खियस्स दमगस्स अभिमुहा अज्ज चंदना अज्जा।
नेच्छइ आसन-गहणं सो विनओ सव्व-अज्जाणं॥ Translated Sutra: એક જ દિવસના દીક્ષિત દ્રમક સાધુ સન્મુખ ચિરદીક્ષિત આર્યા ચંદનાએ ઊભા થઈ તેમનું સન્માન – વિનય કર્યો અને આસને ન બેઠા, તે સર્વે આર્યાનો વિનય છે. ૧૦૦ વર્ષ પર્યાયવાળા દીક્ષિત સાધ્વી હોય અને સાધુ એક દિવસના દીક્ષિત હોય તો પણ ભક્તિપૂર્ણ હૃદયે વંદનરૂપ વિનયથી પૂજ્ય છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૭૭૯, ૭૮૦ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Gujarati | 533 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुविसाल-सुवित्थिन्ने पए पए पेच्छियव्वय-सिरीए।
मघ-मघ-मघेंत-डज्झंत-अगलु-कप्पूर-चंदनामोए॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૩૧ | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 205 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चूडामणिमउडरयण-भूसणणागफडगरुलवइरं-पुण्णकलसंकिउप्फेस सीह-हयवर-गयअंक-मगर-वद्धमाण निज्जुत्तचित्तचिंधगता सुरूवा महिड्ढीया महज्जुतीया महायसा महब्बला महानुभागा महासोक्खा हारविराइयवच्छा कडयतुडियथंभियभुया अंगद-कुंडल-मट्ठगंड तलकण्णपीडधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमालामउलिमउडा कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवरमल्ला-णुलेवणधरा भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघयणेणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुत्तीए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ Translated Sutra: इनके मुकुट या आभूषणों में अंकित चिह्न क्रमशः इस प्रकार हैं – चूडामणि, नाग का फन, गरुड़, वज्र, पूर्णकलश, सिंह, मकर, हस्ती, अश्व और वर्द्धमानक इनसे युक्त विचित्र चिह्नोंवाले, सुरूप, महर्द्धिक, महाद्युतिवाले, महाबलशाली, महायशस्वी, महाअनुभाग वाले, महासुखवाले, हार से सुशोभित वक्षस्थल वाले, कड़ों और बाजूबन्दों से स्तम्भित | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Gujarati | 205 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चूडामणिमउडरयण-भूसणणागफडगरुलवइरं-पुण्णकलसंकिउप्फेस सीह-हयवर-गयअंक-मगर-वद्धमाण निज्जुत्तचित्तचिंधगता सुरूवा महिड्ढीया महज्जुतीया महायसा महब्बला महानुभागा महासोक्खा हारविराइयवच्छा कडयतुडियथंभियभुया अंगद-कुंडल-मट्ठगंड तलकण्णपीडधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमालामउलिमउडा कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवरमल्ला-णुलेवणधरा भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघयणेणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुत्तीए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૦૩ | |||||||||
Pushpika | पूष्पिका | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ थी १० |
Hindi | 11 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं दत्ते ७, सिवे ८, बले ९, अनाढिए १०, सव्वे जहा पुण्णभद्दे देवे।
दो सागरोवमाइं ठिई।
विमाना देवसरिनामा।
पुव्वभवे दत्ते चंदनानामाए, सिवे मिहिलाए बले हत्थिपुरे नयरे, अनाढिए काकंदीए।
चेइयाइं–जहा संगहणीए। Translated Sutra: इसी प्रकार दत्त, शिव, बल और अनादृत, इन सभी देवों को पूर्णभद्र देव के समान जानना। सभी की दो – दो सागरोपम की स्थिति है। इन देवों के नाम के समान ही इनके विमानों के नाम हैं। पूर्वभव में दत्त चन्दना नगरी में, शिव मिथिला, बल हस्तिनापुर और अनादृत काकन्दी नगरी में जन्मे थे। | |||||||||
Pushpika | પૂષ્પિકા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ थी १० |
Gujarati | 11 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं दत्ते ७, सिवे ८, बले ९, अनाढिए १०, सव्वे जहा पुण्णभद्दे देवे।
दो सागरोवमाइं ठिई।
विमाना देवसरिनामा।
पुव्वभवे दत्ते चंदनानामाए, सिवे मिहिलाए बले हत्थिपुरे नयरे, अनाढिए काकंदीए।
चेइयाइं–जहा संगहणीए। Translated Sutra: એ પ્રમાણે દત્ત, શિવ, બલ, અનાદૃત એ ચારે પૂર્ણભદ્ર દેવની સમાન જાણવું. બધાની બે સાગરોપમ સ્થિતિ. વિમાનોના નામો દેવો સદૃશ છે. પૂર્વભવમાં દત્ત – ચંદનામાં, શિવ – મિથિલામાં, બલ – હસ્તિનાપુરમાં, અનાદૃત – કાકંદી નગરીમાં ઉત્પન્ન થયા. બધા મહાવિદેહે મોક્ષે જશે. | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
देहसंहननं आहारादि |
Hindi | 71 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आउसो! से जहानामए केइ पुरिसे ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल पायच्छित्ते सिरंसिण्हाए कंठेमालकडे आविद्धमणि-सुवण्णे अहय सुमहग्घवत्थपरिहिए चंदनोक्किण्णगायसरीरे सरससुरहि-गंधगोसीसचंदनानुलित्तगत्ते सुइमालावन्नगविलेवणे कप्पियहारऽद्धहार-तिसरय-पालंबपलंबमाण-कडिसुत्तयसुकयसोहे पिणद्धगेविज्जे अंगुलेज्जगललियंगयललियकयाभरणे नाना-मणि कनग रयणकडग तुडियथंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए कुंडलुज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए हारुच्छय सुकय रइयवच्छे पालंब-पलंबमाण सुकयपडउत्तरिज्जे मुद्दियापिंगलंगुलिए नानामणि कनग रयणविमल महरिह निउणोविय मिसिमिसिंत विरइय सुसिलिट्ठ विसिट्ठ Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! जो किसी भी नाम का पुरुष स्नान कर के, देवपूजा कर के, कौतुक मंगल और प्रायश्चित्त करके, सिर पर स्नान कर के, गलेमें माला पहनकर, मणी और सोने के आभूषण धारण करके, नए और कींमती वस्त्र पहनकर, चन्दन के लेपवाले शरीर से, शुद्ध माला और विलेपन युक्त, सुन्दर हार, अर्द्धहार – त्रिसरोहार, कन्दोरे से शोभायमान होकर, | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
देहसंहननं आहारादि |
Gujarati | 71 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आउसो! से जहानामए केइ पुरिसे ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल पायच्छित्ते सिरंसिण्हाए कंठेमालकडे आविद्धमणि-सुवण्णे अहय सुमहग्घवत्थपरिहिए चंदनोक्किण्णगायसरीरे सरससुरहि-गंधगोसीसचंदनानुलित्तगत्ते सुइमालावन्नगविलेवणे कप्पियहारऽद्धहार-तिसरय-पालंबपलंबमाण-कडिसुत्तयसुकयसोहे पिणद्धगेविज्जे अंगुलेज्जगललियंगयललियकयाभरणे नाना-मणि कनग रयणकडग तुडियथंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए कुंडलुज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए हारुच्छय सुकय रइयवच्छे पालंब-पलंबमाण सुकयपडउत्तरिज्जे मुद्दियापिंगलंगुलिए नानामणि कनग रयणविमल महरिह निउणोविय मिसिमिसिंत विरइय सुसिलिट्ठ विसिट्ठ Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૧. હે આયુષ્યમાન્ ! જેમ કોઈ પુરુષ સ્નાન કરી, બલિકર્મ કરી, કૌતુક – મંગલ – પ્રાયશ્ચિત્ત કરી, મસ્તકે ન્હાઈ, કંઠમાં માલા પહેરી, મણિ – સુવર્ણ પહેરી, અહત – સુમહાર્ધ વસ્ત્ર પહેરી, ચંદન વડે ઉત્કીર્ણ ગાત્ર શરીરી થઈ, સરસ સુરભિ ગંધ ગોશીર્ષ ચંદન વડે અનુલિપ્ત ગાત્રથી, શુચિમાલા વર્ણક વિલેપન, હાર – અર્ધહાર – ત્રિસરોહાર |