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Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 289 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। जहा पन्नवणाए ठिईपए सव्वसत्ताणं। से तं सुहुमे अद्धापलिओवमे। से तं अद्धापलिओवमे जाव जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखिज्जइभागो अंतोमुहुत्तो एत्थ एएसिं संगहणि गाहाओ भवंति तं जहा–

Translated Sutra: नैरयिक जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गोतम ! सामान्य रूप में जघन्य १०००० वर्ष की और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है। रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम की होती है। रत्नप्रभा पृथ्वी के अपर्याप्तक नारकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की होती है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 297 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सारस्सया देवा परिवसंति? गोयमा! अच्चिम्मि विमाने परिवसंति। कहि णं भंते! आइच्चा देवा परिवसंति? गोयमा! अच्चिमालिम्मि विमाने। एवं नेयव्वं जहाणुपुव्वीए जाव– कहि णं भंते! रिट्ठा देवा परिवसंति? गोयमा! रिट्ठम्मि विमाने। सारस्सयमाइच्चाणं भंते! देवाणं कति देवा, कति देवसया पन्नत्ता? गोयमा! सत्त देवा, सत्त देवसया परिवारो पन्नत्तो। वण्ही–वरुणाणं देवाणं चउद्दस देवा, चउद्दस देवसहस्सा परिवारो पन्नत्तो। गद्दतोय–तुसियाणं देवाणं सत्त देवा, सत्त देव-सहस्सा परिवारो पन्नत्तो। अवसेसाणं नव देवा, नव देवसया परिवारो पन्नत्तो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सारस्वत देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! सारस्वत देव अर्चि विमान में रहते हैं। भगवन्‌ ! आदित्य देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! आदित्य देव अर्चिमाली विमान में रहते हैं। इस प्रकार अनुक्रम से रिष्ट विमान तक जान लेना चाहिए। भगवन्‌ ! रिष्टदेव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! रिष्टदेव रिष्ट विमान में रहते हैं। भगवन्‌ ! सारस्वत और आदित्य,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 298 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पढम-जुगलम्मि सत्तओ, सयाणि बीयम्मि चउद्दससहस्सा । तइए सत्तसहस्सा, नव चेव सयाणि सेसेसु ॥

Translated Sutra: प्रथम युगल में ७००, दूसरे युगल में १४,००० तीसरे युगल में ७,००० और शेष तीन देवों के ९०० देवों का परिवार है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-९ देव Hindi 556 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भवियदव्वदेवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। नरदेवाणं–पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं सत्त वाससयाइं, उक्कोसेणं चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं। धम्मदेवाणं–पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। देवातिदेवाणं–पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं बावत्तरिं वासाइं, उक्कोसेणं चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं। भावदेवाणं–पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! भव्यद्रव्यदेवों की स्थिति कितने काल की कही है ? गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त की है और उत्कृष्टतः तीन पल्योपम की है। भगवन्‌ ! नरदेवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य ७०० वर्ष, उत्कृष्ट ८४लाख पूर्व है। भगवन्‌ ! धर्मदेवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्त – मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट देशोन
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 141 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठेव सयसहस्सा, तिन्नि सहस्साइं सत्त य सताइं । एगससी परिवारो तारागणकोडिकोडीणं ॥ [सोभं सोभेंसु वा सोभेंति वा सोभिस्संति वा]

Translated Sutra: उस लवणसमुद्र को धातकीखण्ड नामक वृत्त – वलयाकार यावत्‌ समचक्रवाल संस्थित द्वीप चारों और से घेर कर रहा हुआ है। यह धातकी खण्ड का चार लाख योजन चक्रवाल विष्कम्भ और ४११०९६१ परिधि है। धातकी खण्ड में बारह चंद्र प्रभासित होते थे – होते हैं और होंगे, बारह सूर्य इसको तापित करते थे – करते हैं और करेंगे, ३३६ नक्षत्र योग
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 144 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठेव सतसहस्सा, तिन्नि सहस्साइं सत्त य सताइं । धायईसंडे दीवे, तारागणकोडिकोडीणं ॥

Translated Sutra: १२ – चंद्र, १२ – सूर्य, ३३६ नक्षत्र एवं १०५६ नक्षत्र धातकीखण्ड में हैं। ८३०७०० कोड़ाकोड़ी तारागण धातकीखण्ड में हैं। सूत्र – १४४, १४५
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 162 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्कारस य सहस्सा, छप्पि य सोला महग्गहाणं तु । छच्च सत्ता छन्नउया, नक्खत्ता तिन्नि य सहस्सा ॥

Translated Sutra: सकल मनुष्यलोक को १३२ – चंद्र और १३२ – सूर्य प्रकाशित करके भ्रमण करते हैं। तथा – इसमें ११६१६ महाग्रह तथा ३६९६ नक्षत्र हैं। इसमें ८८४०७०० कोड़ाकोड़ी तारागण है। सूत्र – १६२–१६४
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

ज्योतिष्क अधिकार

Hindi 124 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बत्तीसं चंदसयं १३२, बत्तीसं चेव सूरियाण सयं १३२ । सयलं मनुस्सलोयं चरंति एए पयासिंता ॥

Translated Sutra: समस्त मानवलोक को १३२ चन्द्र, १३२ सूर्य, ११६१६ महाग्रह, ३६९६ नक्षत्र और ८८४०७०० कोड़ाकोड़ी तारागण प्रकाशित करते हैं। सूत्र – १२४–१२६
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

ज्योतिष्क अधिकार

Hindi 113 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चउवीसं ससि-रविणो, नक्खत्तसया य तिन्नि छत्तीसा । एक्कं च गहसहस्सं छप्पन्नं धायईसंडे ॥

Translated Sutra: घातकी खंड में १२ चन्द्र, १२ सूर्य, ३३६ नक्षत्र, १०५६ ग्रह और ८०३७०० कोड़ाकोड़ी तारागण होते हैं। कालोदधि समुद्र में तेजस्वी किरण से युक्त ४२ चन्द्र, ४२ सूर्य, ११७६ नक्षत्र, ३६९६ ग्रह और २८१२९५० कोड़ाकोड़ी तारागण होते हैं। सूत्र – ११३–११७
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

वैमानिक अधिकार

Hindi 241 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सत्तावीसं जोयणसयाइं पुढवीणं होइ बाहल्लं । सोहम्मीसानेसुं रयणविचित्ता य सा पुढवी ॥

Translated Sutra: सौधर्म और ईशान कल्प में पृथ्वी की चौड़ाई २७०० योजन है और वो रत्न से चित्रित जैसी है।
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

वैमानिक अधिकार

Hindi 258 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लोहिय हालिद्दा पुण सुक्किलवण्णा य ते विरायंति । सत्तसए उव्विद्धा पासाया तेसु कप्पेसु ॥

Translated Sutra: वहाँ लाल, पीले और श्वेत वर्णवाले ७०० ऊंचे प्रासाद शोभायमान हैं।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 230 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे देविंदे देवराया सूलपाणी वसभवाहणे सुरिंदे उत्तरड्ढलोगाहिवई अट्ठावीसविमनावाससयसहस्साहिवई अरयंबरवत्थधरे, एवं जहा सक्के, इमं नाणत्तं–महाघोसा घंटा, लहुपरक्कमो पायत्ताणियाहिवई, पुप्फओ विमानकारी, दक्खिणा निज्जाणभूमी, उत्तरपुरत्थिमिल्लो रइकरगपव्वओ, मंदरे समोसरिओ जाव पज्जुवासइ। एवं अवसिट्ठावि इंदा भाणियव्वा जाव अच्चुओ, इमं नाणत्तं–

Translated Sutra: उस काल, उस समय हाथ में त्रिशूल लिये, वृषभ पर सवार, सुरेन्द्र, उत्तरार्धलोकाधिपति, अठ्ठाईस लाख विमानों का स्वामी, निर्मल वस्त्र धारण किये देवेन्द्र, देवराज ईशान मन्दर पर्वत पर आता है। शेष वर्णन सौधर्मेन्द्र शक्र के सदृश है। अन्तर इतना है – घण्टा का नाम महाघोषा है। पदातिसेनाधिपति का नाम लघुपराक्रम है, विमानकारी
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 129 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं पउमद्दहस्स पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं गंगा महानई पवूढा समाणी पुरत्थाभिमुही पंच जोयणसयाइं पव्वएणं गंता गंगावत्तणकूडे आवत्ता समाणी पंच तेवीसे जोयणसए तिन्नि य एगून-वीसइभाए जोयणस्स दाहिनाभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ। गंगा महानई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पन्नत्ता। सा णं जिब्भिया अद्धजोयणं आयामेणं, छस्सकोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्टसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा। गंगा महानई जत्थ पवडइ, एत्थ णं महं एगे गंगप्पवायकुंडे नामं कुंडे पन्नत्ते–सट्ठिं

Translated Sutra: उस पद्मद्रह के पूर्वी तोरण – द्वार से गंगा महानदी निकलती है। वह पर्वत पर पाँच ५०० बहती है, गंगावर्त कूट के पास से वापस मुड़ती है, ५२३ – ३/१९ योजन दक्षिण की ओर बहती है। घड़े के मुँह से निकलते हुए पानी की ज्यों जोर से शब्द करती हुई वेगपूर्वक, मोतियों के बने हार के सदृश आकार में वह प्रपात – कुण्ड में गिरती है। उस समय
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 169 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उत्तरड्ढकच्छे नामं विजए पन्नत्ते? गोयमा! वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, निलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे दाहिणड्ढकच्छे नामं विजए पन्नत्ते जाव सिज्झंति, तहेव नेयव्वं सव्वं। कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उत्तरड्ढकच्छे विजए सिंधुकुंडे नामं कुंडे पन्नत्ते? गोयमा! माल-वंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, उसभकूडस्स पच्चत्थिमेणं, निलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले नितंबे, एत्थ णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्ध कच्छ कहाँ है ? गौतम ! वैताढ्य पर्वत के उत्तर में, नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, माल्यवान वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में तथा चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में है। अवशेष वर्णन पूर्ववत्‌। जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्धकच्छविजय में
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

मनुष्य उद्देशक Hindi 148 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयंसमुहाईणं पन्नरसेकासीए जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं एवं एतेणं कमेणं उव्वज्जिय नेयव्वा चत्तारि एगप्पमाणा नाणत्तं ओगाहे विक्खंभे परिक्खेवे पढम बितिय ततिय चउक्काणं ओग्गहो विक्खंभो परिक्खेवो व भणिओ चउत्थे चउक्के छ जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं अट्ठार सत्ताणउए जोयणसए परिक्खेवेणं पंचमचउक्के सत्त जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं बावीसं तेरसुत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं छट्ठचउक्के अट्ठ जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं पणवीसं अगुणतीसे जोयणसते परिक्खेवेणं सत्तमचउक्के नव जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं दो जोयणसहस्साइं अट्ठपन्नताले जोयणसए परिक्खेवेणं।

Translated Sutra: आदर्शमुख आदि की परिधि १५८१ योजन से कुछ अधिक है। इस प्रकार इस क्रम से चार – चार द्वीप एक समान प्रमाण वाले हैं। अवगाहन, विष्कम्भ और परिधि में अन्तर समझना। प्रथम – द्वितीय – तृतीय – चतुष्क का अवगाहन, विष्कम्भ और परिधि का कथन कर दिया गया है। चौथे चतुष्क में ६०० योजन का आयाम – विष्कम्भ और १८९७ योजन से कुछ अधिक परिधि
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Hindi 222 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! गोतित्थसंठिते नावासंठिते सिप्पिसंपुडसंठिते अस्सखंधसंठिते वलभिसंठिते वट्टे वलयागारसंठिते पन्नत्ते। लवणे णं भंते! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं? केवतियं उव्वेहेणं? केवतियं उस्से हेणं? केवतियं सव्वग्गेणं पन्नत्ते? गोयमा! लवणे णं समुद्दे दो जोयणसय-सहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, पन्नरस जोयणसतसहस्सं उव्वेधेणं, सोलस जोयणसहस्साइं उस्से-हेणं, सत्तरस जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पन्नत्ते।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! लवणसमुद्र का संस्थान कैसा है ? गौतम ! लवणसमुद्र गोतीर्थ के आकार का, नाव के आकार का, सीप के पुट के आकार का, घोड़े के स्कंध के आकार का, वलभीगृह के आकार का, वर्तुल और वलयाकार संस्थान वाला है। हे भगवन्‌ ! लवणसमुद्र का चक्रवाल – विष्कम्भ कितना है, उसकी परिधि कितनी है ? उसकी गहराई कितनी है, उसकी ऊंचाई कितनी है ? उसका
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Hindi 225 Gatha Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चउवीसं ससिरविणो, नक्खत्तसता य तिन्नि छत्तीसा । एगं च गहसहस्सं, छप्पन्नं धायईसंडे ॥

Translated Sutra: गौतम ! धातकीखण्डद्वीप में बारह चन्द्र उद्योत करते थे, करते हैं और करेंगे। बारह सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे। १३६ नक्षत्र योग करते थे, करते हैं, करेंगे। १०५६ महाग्रह चलते थे, चलते हैं और चलेंगे। ८०३७०० कोड़ाकोड़ी तारागण शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे। सूत्र – २२५–२२७
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप Hindi 250 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समयखेत्ते मनुस्सखेत्ते णं भंते! केवतियं आयामविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोन्नि य एऊणपण्णा जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ते। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–मनुस्सखेत्ते? मनुस्सखेत्ते? गोयमा! मनुस्सखेत्ते णं तिविधा मनुस्सा परिवसंति तं जहा–कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–मनुस्सखेत्ते, मनुस्सखेत्ते। अदुत्तरं च णं गोयमा! मनुस्सखेत्तस्स सासए नामधेज्जे जाव निच्चे। मनुस्सखेत्ते णं भंते! कति चंदा

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! समयक्षेत्र का आयाम – विष्कम्भ और परिधि कितनी है ? गौतम ! आयाम – विष्कम्भ से ४५ लाख योजन है और उसकी परिधि आभ्यन्तर पुष्करवरद्वीप समान है। हे भगवन्‌ ! मनुष्यक्षेत्र, मनुष्यक्षेत्र क्यों कहलाता है ? गौतम ! मनुष्यक्षेत्र में तीन प्रकार के मनुष्य रहते हैं – कर्मभूमक, अकर्मभूमक और अन्तर्द्वीपक। इसलिए।
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-१ Hindi 325 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तओ परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–समिता चंडा जाता, अब्भिंतरिया समिया, मज्झिमिया चंडा, बाहिरिया जाता। सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ? मज्झिमियाए परिसाए तहेव बाहिरियाए पुच्छा। गोयमा! सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ मज्झिमियाए परिसाए चोद्दस देव-साहस्सीओ पन्नत्ताओ, बाहिरियाए परिसाए सोलस देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ, तहा अब्भिंतरियाए परिसाए सत्त देवीसयाणि, मज्झिमियाए छच्च देवीसयाणि, बाहिरियाए पंच देवीसयाणि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देवेन्द्र देवराज शक्र की कितनी पर्षदाएं हैं ? गौतम ! तीन – समिता, चण्डा और जाया। आभ्यंतर पर्षदा को समिता, मध्य पर्षदा को चण्डा और बाह्य पर्षदा को जाया कहते हैं। देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यन्तर परिषद में १२००० देव, मध्यम परिषद में १४००० देव और बाह्य परिषद में १६००० देव हैं। आभ्यन्तर परिषद में ७०० देवियाँ
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-२ Hindi 327 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानकप्पेसु विमानपुढवी केवइयं बाहल्लेणं पन्नत्ता? गोयमा! सत्तावीसं जोयणसयाइं बाहल्लेणं पन्नत्ता। एवं पुच्छा–सणंकुमारमाहिंदेसु छव्वीसं जोयणसयाइं। बंभलंतएसु पंचवीसं। महासुक्क-सहस्सारेसु चउवीसं। आनयपाणयारणाच्चुएसु तेवीसं सयाइं। गेवेज्जविमाणपुढवी बावसं। अनुत्तर-विमानपुढवी एक्कवीसं जोयणसयाइं बाहल्लेणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सौधर्म और ईशान कल्प में विमानपृथ्वी कितनी मोटी है ? गौतम ! २७०० योजन मोटी है। सनत्कुमार और माहेन्द्र में विमानपृथ्वी २६०० योजन। ब्रह्मलोक और लांतक में २५०० योजन, महाशुक्र और सहस्रार में २४०० योजन, आणत प्राणत आरण और अच्युत कल्प में २३०० योजन, ग्रैवेयकों में २२०० योजन और अनुत्तर विमानों में विमानपृथ्वी
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-२ Hindi 328 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु विमाना केवइयं उड्ढं उच्चत्तेणं? गोयमा! पंचजोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं। सणंकुमारमाहिंदेसु छ जोयणसयाइं। बंभलंतएसु सत्त। महासुक्कसहस्सारेसु अट्ठ। आनयपानयारणाच्चुएसु नव। गेवेज्जविमानाणं भंते! केवइयं उड्ढं उच्चत्तेणं? गोयमा! दस जोयणसयाइं। अनुत्तरविमानाणं एक्कारस जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं।

Translated Sutra: भगवन्‌! सौधर्म – ईशानकल्पमें विमान कितने ऊंचे हैं? गौतम!५०० योजन ऊंचे हैं। सनत्कुमार और माहेन्द्र में ६०० योजन, ब्रह्मलोक और लान्तक में ७०० योजन, महाशुक्र और सहस्रार में ८००योजन, आणत प्राणत आरण और अच्युत में ९०० योजन, ग्रैवेयकविमानमें १००० योजन और अनुत्तरविमान ११०० योजन ऊंचे हैं।
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

षडविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 356 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बायरस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता एवं बायरतसकाइयस्सवि बायरपुढवीकाइयस्स बावीस वाससहस्साइं बायरआउस्स सत्तवाससहस्सं बायरतेउस्स तिन्नि राइंदिया बायरवाउस्स तिन्नि वाससहस्साइं बायरवण दस वाससहस्साइं एवं पत्तेयसरीरबादरस्सवि निओयस्स जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमु, एवं बायरनिओयस्सवि अपज्जत्तगाणं सव्वेसिं अंतोमुहुत्तं पज्जत्तगाणं उक्कोसिया ठिई अंतोमुहुत्तूणा कायव्वा सव्वेसिं, बादरपुढविकाइयस्स बावीसं वाससहस्साइं, बादरआउकाइयस्स सत्त वाससहस्साइं, बादरतेउकाइयस्स तिन्नि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बादर की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम। बादर त्रसकाय की भी यही स्थिति है। बादर पृथ्वीकाय की २२००० वर्ष की, बादर अप्कायिकों की ७००० वर्ष की, बादर तेजस्काय की तीन अहोरात्र की, बादर वायुकाय की ३००० वर्ष की और बादर वनस्पति की १०००० वर्ष की उत्कृष्ट स्थिति है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 699 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता गोयमेत्थ एवं ठियम्मि जइ दढ-चरित्त-गीयत्थे। गुरु-गुण-कलिए य गुरू भणेज्ज असइं इमं वयणं॥

Translated Sutra: तो हे गौतम ! यहाँ इस तरह के हालात होने से यदि दृढ़ चारित्रवाले गीतार्थ बड़े गुण से युक्त ऐसे गुरु हों और वो बार – बार इस प्रकार वचन कहे कि इस सर्प के मुख में ऊंगली डालकर उसका नाप बताए या उसके चोकठे में कितने दाँत हैं ? वो गिनकर कहे तो उसी के अनुसार ही करे वो ही कार्य को जानते हैं। सूत्र – ६९९, ७००
Nirayavalika निरयावलिकादि सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ काल

Hindi 18 Sutra Upang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते कालादीए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दा-वेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिते णं सेयनगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं हारं अंतेउरं सभंडं च गहाय चंपाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता वेसालिं अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं मए सेयनगस्स गंधहत्थिस्स अट्ठारसवंकस्स हारस्स अट्ठाए दूया पेसिया। ते य चेडएण रन्ना इमेणं कारणेणं पडिसेहित्ता अदुत्तरं च णं ममं तच्चे दूए असक्कारिए असम्माणिए अवद्दारेणं निच्छुहाविए, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं चेडगस्स रन्नो जुत्तं गिण्हित्तए। तए

Translated Sutra: तब कूणिक राजा ने उस दूत द्वारा चेटक के इस उत्तर को सूनकर और उसे अधिगत कर के क्रोधाभिभूत हो यावत्‌ दाँतों को मिसमिसाते हुए पुनः तीसरी बार दूत को बुलाया। उस से तुम वैशाली नगरी जाओ और बायें पैर से पादपीठ को ठोकर मारकर चेटक राजा को भाले की नोक से यह पत्र देना। पत्र दे कर क्रोधित यावत्‌ मिसमिसाते हुए भृकुटि तानकर
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-८७

Hindi 166 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। मंदरस्स णं पव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ चरिमंताओ दओभासस्स आवासपव्वयस्स उत्तरिल्ले चरिमंते, एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ संखस्स आवासपव्वयस्स पुरत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। मंदरस्स णं पव्वयस्स उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ दगसीमस्स आवासपव्वयस्स दाहिणिल्ले चरिमंते, एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे

Translated Sutra: मन्दर पर्वत के पूर्वी चरमान्त भाग से गोस्तुप आवास पर्वत का पश्चिमी चरमान्त भाग सतासी हजार योजन के अन्तर वाला है। मन्दर पर्वत के दक्षिणी चरमान्त भाग से दकभास आवास पर्वत का उत्तरी चरमान्त सतासी हजार योजन के अन्तर वाला है। इसी प्रकार मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से शंख आवास पर्वत का दक्षिणी चरमान्त भाग सतासी
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-९७

Hindi 176 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथुभस्स णं आवासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं सत्ताणउइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। एवं चउदिसिंपि। अट्ठण्हं कम्मपगडीणं सत्ताणउइं उत्तरपगडीओ पन्नत्ताओ। हरिसेणे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी देसूणाइं सत्ताणउइं वाससयाइं अगारमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारिअं पव्वइए।

Translated Sutra: मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग से गोस्तुभ आवास – पर्वत का पश्चिमी चरमान्त भाग सतानवे हजार योजन अन्तर वाला कहा गया है। इसी प्रकार चारों ही दिशाओं में जानना चाहिए। आठों कर्मों की उत्तर प्रकृतियाँ सतानवे कही गई हैं। चातुरन्त चक्रवर्ती हरिषेण राजा कुछ कम ९७०० वर्ष अगार – वास में रहकर मुण्डित हो अगार से अनगारिता
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 137 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठेव सयसहस्सा, तिन्नि सहस्साइं सत्त य सताइं । एगससी परिवारो तारागणकोडिकोडीणं ॥ [सोभं सोभेंसु वा सोभेंति वा सोभिस्संति वा]

Translated Sutra: धातकी खण्ड में ८,३०,७०० कोड़ाकोड़ी तारागण एक चंद्र का परिवार है। धातकी खण्ड परिक्षेप से किंचित्‌ न्यून ४११०९६१ योजन का है। १२ – चंद्र, १२ – सूर्य, ३३६ नक्षत्र एवं १०५६ नक्षत्र धातकीखण्ड में हैं। ८३०७०० कोड़ाकोड़ी तारागण धातकीखण्ड में हैं। सूत्र – १३७–१४०
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 157 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बत्तीसं चंदसतं, बत्तीसं चेव सूरियाण सतं । सयलं मानुसलोयं, चरंति एते पभासेंता ॥

Translated Sutra: सकल मनुष्यलोक को १३२ – चंद्र और १३२ – सूर्य प्रकाशित करके भ्रमण करते हैं। तथा – इसमें ११६१६ महाग्रह तथा ३६९६ नक्षत्र हैं। इसमें ८८४०७०० कोड़ाकोड़ी तारागण है। सूत्र – १५७–१५९
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

जीवस्यदशदशा

Hindi 19 Sutra Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तो पढमे मासे करिसूणं पलं जायइ १। बीए मासे पेसी संजायए घना २। तईए मासे माऊए डोहलं जणइ ३। चउत्थे मासे माऊए अंगाइं पीणेइ ४। पंचमे मासे पंच पिंडियाओ पाणिं पायं सिरं चेव निव्वत्तेइ ५। छट्ठे मासे पित्तसोणियं उवचिणेइ – अंगोवंगं च नव्वत्तेइ – ६। सत्तमे मासे सत्त सिरासयाइं पंच पेसीसयाइं नव धमणीओ नवनउयं च रोमकूवसयसहस्साइं ९९००००० निव्वत्तेइ विणा केस-मंसुणा, सह केस-मंसुणा अद्धुट्ठाओ रोमकूवकोडीओ निव्वत्तेइ ३५००००००, ७। अट्ठमे मासे वित्तीकप्पो हवइ ८।

Translated Sutra: उस के बाद पहले मास में वो फूले हुए माँस जैसा, दूसरे महिनेमें माँसपिंड़ जैसा घनीभूत होता है। तीसरे महिनेमें वो माता को ईच्छा उत्पन्न करवाता है। चौथे महिनेमें माता के स्तन को पुष्ट करता है। पाँचवे महिनेमें हाथ, पाँव, सर यह पाँच अंग तैयार होते हैं। छठ्ठे महिनेमें पित्त और लहू का निर्माण होता है। और फिर बाकी अंग
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

काल प्रमाणं

Hindi 89 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तेत्तीस सयसहस्सा पंचाणउई भवे सहस्साइं । सत्त य सया अनूना हवंति मासेण ऊसासा ॥

Translated Sutra: एक महिने में ३३५५७०० उच्छ्‌वास होते हैं।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 102 Sutra Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आउसो! जं पि य इमं सरीरं इट्ठं पियं कंतं मणुन्नं मणामं मणाभिरामं थेज्जं वेसासियं सम्मयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं, रयणकरंडओ विव सुसंगोवियं, चेलपेडा विव सुसंपरिवुडं, तेल्लपेडा विव सुसंगोवियं ‘मा णं उण्हं मा णं सीयं मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं वाला मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वाइय-पित्तिय-सिंभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका फुसंतु’ त्ति कट्टु। एवं पि याइं अधुवं अनिययं असासयं चओवचइयं विप्पणासधम्मं, पच्छा व पुरा व अवस्स विप्पचइयव्वं। एयस्स वि याइं आउसो! अणुपुव्वेणं अट्ठारस य पिट्ठकरंडगसंधीओ, बारस पंसुलिकरंडया, छप्पंसुलिए कडाहे, बिहत्थिया कुच्छी, चउरंगुलिआ गीवा,

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ ! यह शरीर इष्ट, प्रिय, कांत, मनोज्ञ, मनोहर, मनाभिराम, दृढ, विश्वासनीय, संमत, अभीष्ट, प्रशंसनीय, आभूषण और रत्न करंडक समान अच्छी तरह से गोपनीय, कपड़े की पेटी और तेलपात्र की तरह अच्छी तरह से रक्षित, शर्दी, गर्मी, भूख, प्यास, चोर, दंश, मशक, वात, पित्त, कफ, सन्निपात, आदि बीमारी के संस्पर्श से बचाने के योग्य माना
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय

Hindi 700 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं सो अम्मापियरो अनुमाणित्ताण बहुविहं । ममत्तं छिंदई ताहे महानागो व्व कंचुयं ॥

Translated Sutra: इस प्रकार वह अनेक तरह से माता – पिता को अनुमति के लिए समझा कर ममत्त्व का त्याग करता है, जैसे कि महानाग कैंचुल को छोड़ता है। कपड़े पर लगी हुई धूल की तरह ऋद्धि, धन, मित्र, पुत्र, कलत्र और ज्ञातिजनों को झटककर वह संयमयात्रा के लिए निकल पड़ा। सूत्र – ७००, ७०१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय

Hindi 701 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इड्ढिं वित्तं च मित्ते य पुत्तदारं च नायओ । रेणुयं व पडे लग्गं निद्धूणित्ताण निग्गओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ७००
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1551 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥

Translated Sutra: अप्कायिक जीव प्रवाह की अपेक्षा से अनादि – अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि – सान्त हैं। उनकी ७००० वर्ष की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त्त की जघन्य आयुस्थिति है। उनकी असंख्यात काल की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त्त की जघन्य कायस्थिति है। अप्काय को छोड़कर निरन्तर अप्काय में ही पैदा होना, काय स्थिति है। अप्काय
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