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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 81 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जइ ताव ते सुपुरिसा गिरिकंदर-कडग-विसम-दुग्गेसु ।
धिइधणियबद्धकच्छा साहिंती अप्पणो अट्ठं ॥ Translated Sutra: यदि पहाड़ की गुफा, पहाड़ की कराड़ और विषम स्थानकमें रहे, धीरज द्वारा अति सज्जित रहे वो सुपुरुष अपने अर्थ को साधते हैं। – तो किस लिए साधु को सहाय देनेवाले ऐसे अन्योअन्य संग्रह के बल द्वारा यानि वैयावच्च करने के द्वारा परलोक के अर्थ से अपने अर्थ की साधना नहीं कर सकते क्या ? सूत्र – ८१, ८२ | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 82 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] किं पुन अनगारसहायगेण अन्नोन्नसंगहबलेणं ।
परलोएणं सक्का साहेउं अप्पणो अट्ठं? ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ८१ | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 83 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जिनवयणमप्पमेयं महुरं कण्णाहुइं सुणंतेणं ।
सक्का हु साहुमज्झे साहेउं अप्पणो अट्ठं ॥ Translated Sutra: अल्प, मधुर और कान को अच्छा लगनेवाला, इस वीतराग का वचन सूनते हुए जीव साधु के बीच अपना अर्थ साधने के लिए वाकई समर्थ हो सकते हैं। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 84 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धीरपुरिसपण्णत्तं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं ।
धन्ना सिलायलगया साहिंती अप्पणो अट्ठं ॥ Translated Sutra: धीर पुरुष ने प्ररूपित किया हुआ, सत्पुरुष ने सेवन किया हुआ और अति मुश्किल ऐसे अपने अर्थ को शीलातल उपर रहा हुआ जो पुरुष साधना करता है वह धन्य है। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 85 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बाहिंति इंदियाइं पुव्वमकारियपइण्णचारीणं ।
अकयपरिकम्म कीवा मरणे सुयसंपयायम्मि ॥ Translated Sutra: पहले जिसने अपने आत्मा का निग्रह नहीं किया हो, उसको इन्द्रियाँ पीड़ा देती है, परीषह न सहने के कारण मृत्युकाल में सुख का त्याग करते हुए भयभीत होते हैं। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 86 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुव्वमकारियजोगो समाहिकामो य मरणकालम्मि ।
न भवइ परीसहसहो विसयसुहसमुइओ अप्पा ॥ Translated Sutra: पहले जिसने संयम योग का पालन न किया हो, मरणकाल के लिए समाधि की ईच्छा रखता हो और विषय में लीन रहा हुआ आत्मा परीषह सहन करने को समर्थ नहीं हो सकता। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 87 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विं कारियजोगो सामाहिकामो य मरणकालम्मि ।
स भवइ परीसहसहो विसयसुहनिवारिओ अप्पा ॥ Translated Sutra: पहले जिसने संयम योग का पालन किया हो, मरण के काल में समाधि की ईच्छा रखता हो और विषय सुख से आत्मा को विरमीत किया हो वो पुरुष परीषह को सहन करने को समर्थ हो सकता है। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 88 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विं कारियजोगो अनियाणो ईहिऊण मइपुव्वं ।
ताहे मलियकसाओ सज्जो मरणं पडिच्छेज्जा ॥ Translated Sutra: पहले संयम योग की आराधना की हो, उसे नियाणा रहित बुद्धि से सोचकर, कषाय त्याग कर के, सज्ज हो कर मरण को अंगीकार करता है। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 89 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पावाणं पावाणं कम्माणं अप्पणो सकम्माणं ।
सक्का पलाइउं जे तवेण सम्मं पउत्तेणं ॥ Translated Sutra: जिन जीव ने सम्यक् प्रकार से तप किया हो वह जीव अपने क्लिष्ट पापकर्मों को जलाने समर्थ हो सकते हैं | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 90 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एक्कं पंडियमरणं पडिवज्जिय सुपुरिसो असंभंतो ।
खिप्पं सो मरणाणं काही अंतं अनंताणं ॥ Translated Sutra: एक पंड़ित मरण का आदर कर के वो असंभ्रांत सुपुरुष जल्द से अनन्त मरण का अन्त करेंगे। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 91 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] किं तं पंडियमरणं? काणि व आलंबणाणि भणियाणि? ।
एयाइं नाऊणं किं आयरिया पसंसंति? ॥ Translated Sutra: एक पंड़ित मरण! और उस के कैसे आलम्बन कहे हैं ? उन सब को जान कर आचार्य दूसरे किस की प्रशंसा करेगा ? | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 92 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनसन पाओवगमं आलंबण झाण भावणाओ य ।
एयाइं नाऊणं पंडियमरणं पसंसंति ॥ Translated Sutra: पादपोपगम अनशन, ध्यान, भावनाएं आलम्बन हैं, वह जान कर (आचार्य) पंड़ितमरण की प्रशंसा करते हैं | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 93 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इंदियसुहसाउलओ घोरपरीसहपराइयपरज्झो ।
अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले ॥ Translated Sutra: इन्द्रिय की सुख शाता में आकुल, विषम परीषह को सहने के लिए परवश हुआ हो और जिसने संयम का पालन नहीं किया ऐसा क्लिब (कायर) मानव आराधना के समय घबरा जाता है। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 94 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लज्जाइ गारवेण य बहुस्सुयमएण वा वि दुच्चरियं ।
जे न कहिंति गुरूणं न हु ते आराहगा होंति ॥ Translated Sutra: लज्जा, गारव और बहुश्रुत के मद द्वारा जो लोग अपना पाप गुरु को नहीं कहते वो आराधक नहीं बनते। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 95 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुज्झइ दुक्करकारी, जाणइ मग्गं ति पावए कित्तिं ।
विनिगूहिंतो निंदइ, तम्हा आराहणा सेया ॥ Translated Sutra: दुष्कर क्रिया करनेवाला हो, मार्ग को पहचाने, कीर्ति पाए और अपने पाप छिपाए बिना उस की निन्दा करे इस के लिए आराधना श्रेय – कल्याणकारक कही है। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 96 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न वि कारणं तणमओ संथारो, न वि य फासुया भूमी ।
अप्पा खलु संथारो होइ विसुद्धो मनो जस्स ॥ Translated Sutra: तृण का संथारा या प्राशुक भूमि उस की (विशुद्धि की) वजह नहीं है लेकिन जो मनुष्य की आत्मा विशुद्ध हो वही सच्चा संथारा कहा जाता है। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 97 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जिनवयणअनुगया मे होउ मई झाणजोगमल्लीणा ।
जह तम्मि देसकाले अमूढसन्नो चयइ देहं ॥ Translated Sutra: जिनवचन का अनुसरण करनेवाली शुभध्यान और शुभयोग में लीन ऐसी मेरी मति हो; जैसे वह देश काल में पंड़ित हुई आत्मा देह त्याग करता है। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 98 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जाहे होइ पमत्तो जिनवरवयणरहिओ अनाउत्तो ।
ताहे इंदियचोरा करिंति तव-संजमविलोमं ॥ Translated Sutra: जिनवर वचन से रहित और क्रिया के लिए आलसी कोइ मुनि जब प्रमादी बन जाए तब इन्द्रिय समान चोर (उस के) तप संयम को नष्ट करते हैं। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 99 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जिनवयणमनुगयमई जं वेलं होइ संवरपविट्ठो ।
अग्गी व वाउसहिओ समूलडालं डहइ कम्मं ॥ Translated Sutra: जिन वचन का अनुसरण करनेवाली मतिवाला पुरुष जिस समय संवर में लीन हो कर उस समय वंटोल के सहित अग्नि के समान मूल और डाली सहित कर्म को जलाने में समर्थ होते हैं। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 100 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जह डहइ वाउसहिओ अग्गी रुक्खे वि हरियवणसंडे ।
तह पुरिसकारसहिओ नाणी कम्मं खयं णेई ॥ Translated Sutra: जैसे वायु सहित अग्नि हरे वनखंड के पेड़ को जला देती है, वैसे पुरुषाकार (उद्यम) सहित मानव ज्ञान द्वारा कर्म का क्षय करते हैं। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 101 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं अन्नाणी कम्मं खवेइ बहुयाहिं वासकोडीहिं ।
तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं ॥ Translated Sutra: अज्ञानी कईं करोड़ सालमें जो कर्मक्षय करते हैं वे कर्म को तीन गुप्तिमें गुप्त ज्ञानी पुरुष एक श्वासमें क्षय कर देता है। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 102 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न हु मरणम्मि उवग्गे सक्का बारसविहो सुयक्खंधो ।
सव्वो अनुचिंतेउं धंतं पि समत्थचित्तेणं ॥ Translated Sutra: वाकई में मरण नीकट आने के बावजूद बारह प्रकार का श्रुतस्कंध (द्वादशांगी) सब तरह से दृढ एवं समर्थ ऐसे चित्तवाले मानव से भी चिन्तवन नहीं किया जा सकता है। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 121 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] समुइण्णवेयणो पुण समणो हियएण किं पि चिंतिज्जा ।
आलंबणाइं काइं काऊण मुणी दुहं सहइ? ॥ Translated Sutra: और फिर जिन्हें वेदना उत्पन्न हुई है ऐसे साधु हृदय से कुछ चिन्तवन करे और कुछ आलम्बन करके वो मुनि दुःख को सह ले। वेदना पैदा हो तब यह कैसी वेदना? ऐसा मान कर सहन करे, और कुछ आलम्बन कर के उस दुःख के बारे में सोचे सूत्र – १२१, १२२ | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 122 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वेयणासु उइन्नासु किं मे सत्तं निवेयए ।
किंचाऽऽलंबणं किच्चा तं दुक्खमहियासए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२१ | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 123 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनुत्तरेसु नरएसु वेयणाओ अनुत्तरा ।
पमाए वट्टमाणेणं मए पत्ता अनंतसो ॥ Translated Sutra: प्रमाद में रहनेवाले मैंने नरक में उत्कृष्ट पीड़ा अनन्त बार पाई है। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 124 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मए कयं इमं कम्मं समासज्ज अबोहियं ।
पोराणगं इमं कम्मं मए पत्तं अनंतसो ॥ Translated Sutra: अबोधिपन पाकर मैंने यह काम किया और यह पुराना कर्म मैंने अनन्तीबार पाया है। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 125 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ताहिं दुक्खविवागाहिं उवचिण्णाहिं तहिं तहिं ।
न य जीवो अजीवो उ कयपुव्वो उ चिंतए ॥ Translated Sutra: उस दुःख के विपाक द्वारा वहाँ वहाँ वेदना पाते हुए फिर भी अचिंत्य जीव कभी पहेले अजीव नहीं हुआ है | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 126 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अब्भुज्जयं विहारं इत्थं जिनएसियं विउपसत्थं ।
नाउं महापुरिससेवियं च अब्भुज्जयं मरणं ॥ Translated Sutra: अप्रतिबद्ध विहार, विद्वान मनुष्य द्वारा प्रशंसा प्राप्त और महापुरुष ने सेवन किया हुआ वैसा जिनभाषित जान कर अप्रतिबद्ध मरण अंगीकार कर ले। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 127 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जह पच्छिमम्मि काले पच्छिमतित्थयरदेसियमुयारं ।
पच्छा निच्छयपत्थं उवेमि अब्भुज्जयं मरणं ॥ Translated Sutra: जैसे अंतिम काल में अंतिम तीर्थंकर भगवान ने उदार उपदेश दिया वैसे मैं निश्चय मार्गवाला अप्रतिबद्ध मरण अंगीकार करता हूँ। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 128 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बत्तीसमंडियाहिं कडजोगी जोगसंगहबलेणं ।
उज्जमिऊण य बारसविहेण तवनेहपाणेणं ॥ Translated Sutra: बत्तीस भेद से योग संग्रह के बल द्वारा संयम व्यापार स्थिर कर के और बारह भेद से तप समान स्नेहपान करके – संसार रूपी रंग भूमिका में धीरज समान बल और उद्यम समान बख्तर को पहनकर सज्ज हुआ तू मोह समान मल का वध कर के आराधना समान जय पताका का हरण कर ले (प्राप्त कर)। और फिर संथारा में रहे साधु पुराने कर्म का क्षय करते हैं। नए | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 129 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संसाररंगमज्झे धिइबलववसायबद्धकच्छाओ ।
हंतूण मोहमल्लं हराहि आराहणपडागं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२८ | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 130 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पोराणगं च कम्मं खवेइ अन्नं नवं च न चिणाइ ।
कम्मकलंकलवल्लिं छिंदइ संथारमारूढो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२८ | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 131 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आराहणोवउत्तो सम्मं काऊण सुविहिओ कालं ।
उक्कोसं तिन्नि भवे गंतूण लभेज्ज नेव्वाणं ॥ Translated Sutra: आराधना के लिए सावधान ऐसा सुविहित साधु सम्यक् प्रकार से काल करके उत्कृष्ट तीन भव का अतिक्रमण करके निर्वाण को (मोक्ष) प्राप्त करे। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 132 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धीरपुरिसपन्नत्तं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं ।
ओइण्णो हु सि रंगं हरसु पडायं अविग्घेणं ॥ Translated Sutra: उत्तम पुरुष ने कहा हुआ, सत्पुरुष ने सेवन किया हुआ, बहोत कठीन अनशन कर के निर्विघ्नरूप से जय पताका प्राप्त करे। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 133 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धीर! पडागाहरणं करेह जह तम्मि देसकालम्मि ।
सुत्त-ऽत्थमनुगुणंतो धिइनिच्चलबद्धकच्छाओ ॥ Translated Sutra: हे धीर ! जिस तरह वो देश काल के लिए सुभट जयपताका का हरण करता है उसी तरह से सूत्रार्थ का अनुसरण करते हुए और संतोष रूपी निश्चल सन्नाह पहनकर सज्ज होनेवाला तुम जयपताका को हर ले। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 134 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चत्तारि कसाए तिन्नि गारवे पंच इंदियग्गामे ।
हंता परीसहचमूं हराहि आराहणपडागं ॥ Translated Sutra: चार कषाय, तीन गारव, पाँच इन्द्रिय का समूह और परिसह समान फौज का वध कर के आराधना समान जय पताका को हर ले। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 135 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मा य बहुं चिंतिज्जा ‘जीवामि चिरं मरामि व लहुं’ ति ।
जइ इच्छसि तरिउं जे संसारमहोयहिमपारं ॥ Translated Sutra: हे आत्मा ! यदि तू अपार संसार समान महोदधि के पार होने की ईच्छा को रखता हो तो मैं दीर्घकाल तक जिन्दा रहूँ या शीघ्र मर जाऊं ऐसा निश्चय करके कुछ भी मत सोचना। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 136 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जइ इच्छसि नित्थरिउं सव्वेसिं चेव पावकम्माणं ।
जिनवयण-नाण-दंसण-चरित्तभावुज्जुओ जग्ग ॥ Translated Sutra: यदि सर्व पापकर्म को वाकई में निस्तार के लिए ईच्छता है तो जिनवचन, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और भाव के लिए उद्यमवंत होने के लिए जागृत हो जा। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 137 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दंसण-नाण-चरित्ते तवे य आराहणा चउक्खंधा ।
सा चेव होइ तिविहा उक्कोसा१ मज्झिम२ जहन्ना३ ॥ Translated Sutra: दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप ऐसे आराधना चार भेद से होती है, और फिर वो आराधना उत्कृष्ट, मध्यम, जघन्य ऐसे तीन भेद से होती है। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 138 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आराहेऊण विऊ उक्कोसाराहणं चउक्खंधं ।
कम्मरयविप्पमुक्को तेणेव भवेण सिज्झेज्जा ॥ Translated Sutra: पंड़ित पुरुष चार भेदवाली उत्कृष्ट आराधना का आराधन कर के कर्म रज रहित होकर उसी भव में सिद्धि प्राप्त करता है, तथा – | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 139 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आराहेऊण विऊ जहन्नमाराहणं चउक्खंधं ।
सत्तऽट्ठभवग्गहणे परिणामेऊण सिज्झेज्जा ॥ Translated Sutra: चार भेद युक्त जघन्य आराधना का आराधन करके सात या आठ भव संसार में भ्रमण करके मुक्ति पाता है | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 140 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सम्मं मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झ न केणइ ।
खामेमि सव्वजीवे, खमामऽहं सव्वजीवाणं ॥ Translated Sutra: मुझे सर्व जीव के लिए समता है, मुझे किसी के साथ वैर नहीं है। मैं सर्व जीवों को क्षमा करता हूँ और सर्व जीवों से क्षमा चाहता हूँ। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 141 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धीरेण वि मरियव्वं काउरिसेण वि अवस्स मरियव्वं ।
दोण्हं पि य मरणाणं वरं खु धीरत्तणे मरिउं ॥ Translated Sutra: धीर को भी मरना है और कायर को भी यकीनन मरना है। दोनों को मरना तो है फिर धीररूप से मरना ज्यादा उत्तम है। | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 142 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एयं पच्चक्खाणं अनुपालेऊण सुविहिओ सम्मं ।
वेमानिओ व देवो हविज्ज अहवा वि सिज्झेज्जा ॥ Translated Sutra: सुविहित साधु यह पच्चक्खाण सम्यक् प्रकार से पालन करके वैमानिक देव होता है या – फिर सिद्धि प्राप्त करता है। | |||||||||
Mahapratyakhyan | મહાપ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Gujarati | 51 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भवसंसारे सव्वे चउव्विहा पोग्गला मए बद्धा ।
परिणामपसंगेणं अट्ठविहे कम्मसंघाए ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૧. સંસારચક્રમાં મેં સર્વે પુદ્ગલો મેં ઘણી વાર આહારપણે લઇ પરિણમાવ્યા, તો પણ તૃપ્તિ ન થઇ. સૂત્ર– ૫૨. આહાર નિમિત્તે હું બધા નરલોકમાં ઉપન્યો તેમજ સર્વે મ્લેચ્છ જાતિમાં પણ ઉપન્યો. સૂત્ર– ૫૩. આહાર નિમિત્તે મત્સ્ય દારુણ નર્કમાં જાય છે, સૂત્ર– ૫૪. તેથી સચિત્ત આહાર મન વડે પણ પ્રાર્થવાને યોગ્ય નથી. સૂત્ર સંદર્ભ– | |||||||||
Mahapratyakhyan | મહાપ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Gujarati | 52 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संसारचक्कवाले सव्वे ते पोग्गला मए बहुसो ।
आहारिया य परिणामिया य न य हं गओ तित्तिं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૧ | |||||||||
Mahapratyakhyan | મહાપ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Gujarati | 53 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आहारनिमित्तागं अहयं सव्वेसु नरयलोएसु ।
उववण्णो मि सुबहुसो सव्वासु य मिच्छजाईसु ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૧ | |||||||||
Mahapratyakhyan | મહાપ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Gujarati | 54 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आहारनिमित्तागं मच्छा गच्छंति दारुणे नरए ।
सच्चित्तो आहारो न खमो मनसा वि पत्थेउं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૧ | |||||||||
Mahapratyakhyan | મહાપ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Gujarati | 55 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तण-कट्ठेण व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहिं ।
न इमो जीवो सक्को तिप्पेउं काम-भोगेहिं ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૫. તૃણ અને કાષ્ઠથી જેમ અગ્નિ, હજારો નદીઓથી જેમ લવણસમુદ્ર જેમ તૃપ્ત ન થાય, સૂત્ર– ૫૬. તેમ આ જીવ કામભોગથી તૃપ્ત થતો નથી. સૂત્ર– ૫૭. તેમ આ જીવ દ્રવ્યથી તૃપ્ત થતો નથી. ભોજનવિધિથી તૃપ્ત ન થાય. સૂત્ર સંદર્ભ– ૫૫–૫૭ | |||||||||
Mahapratyakhyan | મહાપ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Gujarati | 56 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तण-कट्ठेण व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहिं ।
न इमो जीवो सक्को तिप्पेउं अत्थसारेणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૫ |