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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 309 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गेयं वा वायव्वं वा अन्नयरं वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–कुवुट्ठी भविस्सइ। से तं अनागयकालगहणं। से तं अनुमाणे।
से किं तं ओवम्मे? ओवम्मे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साहम्मोवणीए य वेहम्मोवणीए य।
से किं तं साहम्मोवणीए? साहम्मोवणीए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे।
से किं तं किंचिसाहम्मे? किंचिसाहम्मे–जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो। जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो। जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो। जहा चंदो तहा कुंदो, जहा कुंदो तहा चंदो। से तं किंचिसाहम्मे।
से किं तं पायसाहम्मे? Translated Sutra: आग्नेय मंडल के नक्षत्र, वायव्य मंडल के नक्षत्र या अन्य कोई उत्पात देखकर अनुमान किया जाना कि कुवृष्टि होगी, ठीक वर्षा नहीं होगी। यह अनागतकालग्रहण अनुमान है। उपमान प्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, जैसे – साधर्म्योपनीत और वैधर्म्योपनीत। जिन पदार्थों की सदृशत उपमा द्वारा सिद्ध की जाए उसे साधर्म्योपनीत कहते | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 20 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अब्भिंतरए तवे? अब्भिंतरए तवे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पायच्छित्तं विनओ वेयावच्चं सज्झाओ ज्झाणं विउस्सग्गो।
से किं तं पायच्छित्ते? पायच्छित्ते दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–आलोयणारिहे पडिक्कमणारिहे तदुभयारिहे विवेगारिहे विउस्सग्गारिहे तवारिहे छेदारिहे मूलारिहे अणवट्ठप्पारिहे पारंचियारिहे। से तं पायच्छित्ते।
से किं तं विनए? विनए सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणविनए दंसणविनए चरित्तविनए मनविनए वइविनए कायविनए लोगोवयारविनए।
से किं तं नाणविनए? नाणविनए पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभिणिबोहियनाणविनए सुयनाणविनए ओहिनाणविनए मनपज्जवनाणविनए केवलनाणविनए। Translated Sutra: आभ्यन्तर तप क्या है ? आभ्यन्तर तप छह प्रकार का कहा गया है – १. प्रायश्चित्त, २. विनय, ३. वैयावृत्य, ४. स्वाध्याय, ५. ध्यान तथा ६. व्युत्सर्ग। प्रायश्चित्त क्या है ? प्रायश्चित्त दस प्रकार का कहा गया है – १. आलोचनार्ह, २. प्रतिक्रमणार्ह, ३. तदुभयार्ह, ४. विवेकार्ह, ५. व्युत्सर्गार्ह, ६. तपोऽर्ह, ७. छेदार्ह, ८. मूलार्ह, ९. अनवस्थाप्यार्ह, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-२ आशिविष | Hindi | 393 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते लद्धी पन्नत्ता?
गोयमा! दसविहा लद्धी पन्नत्ता, तं जहा–१. नाणलद्धी २. दंसणलद्धी ३. चरित्तलद्धी ४. चरित्ताचरित्तलद्धी ५. दानलद्धी ६. लाभलद्धी ७. भोगलद्धी ८. उवभोगलद्धी ९. वीरियलद्धी १. इंदियलद्धी।
नाणलद्धी णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–आभिनिबोहियनाणलद्धी जाव केवलनाणलद्धी।
अन्नाणलद्धी णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–मइअन्नाणलद्धी, सुयअन्नाणलद्धी, विभंगनाणलद्धी।
दंसणलद्धी णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–सम्मदंसणलद्धी, मिच्छादंसणलद्धी, सम्मामिच्छा-दंसणलद्धी।
चरित्तलद्धी Translated Sutra: भगवन् ! लब्धि कितने प्रकार की कही है ? गौतम ! लब्धि दस प्रकार की कही गई है – ज्ञानलब्धि, दर्शनलब्धि, चारित्रलब्धि, चारित्राचारित्रलब्धि, दानलब्धि, लाभलब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि, वीर्यलब्धि और इन्द्रियलब्धि। भगवन् ! ज्ञानलब्धि कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! पाँच प्रकार की, यथा – आभिनिबोधिकज्ञान – लब्धि यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 904 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं सामाइयसंजमे होज्जा? छेओवट्ठावणियसंजमे होज्जा? परिहारविसुद्धियसंजमे होज्जा? सुहुमसंपरागसंजमे होज्जा? अहक्खायसंजमे होज्जा?
गोयमा! सामाइयसंजमे वा होज्जा, छेओवट्ठावणियसंजमे वा होज्जा, नो परिहारविसुद्धियसंजमे होज्जा, नो सुहुमसंपरागसंजमे होज्जा, नो अहक्खायसंजमे होज्जा। एवं बउसे वि। एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
कसायकुसीले णं–पुच्छा।
गोयमा! सामाइयसंजमे वा होज्जा जाव सुहुमसंपरागसंजमे वा होज्जा, नो अहक्खायसंजमे होज्जा।
नियंठे णं–पुच्छा।
गोयमा! नो सामाइयसंजमे होज्जा जाव नो सुहुमसंपरागसंजमे होज्जा, अहक्खायसंजमे होज्जा। एवं सिणाए वि। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक सामायिकसंयम से, छेदोपस्थापनिकसंयम, परिहारविशुद्धिसंयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम में अथवा यथाख्यातसंयम में होता है ? गौतम ! वह सामायिकसंयम में या छेदोपस्थापनिकसंयम में होता है, किन्तु परिहारविशुद्धि संयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम या यथाख्यातसंयम में नहीं होता। बकुश और प्रतिसेवना कुशील के सम्बन्ध | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 936 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! संजया पन्नत्ता?
गोयमा! पंच संजया पन्नत्ता, तं जहा–सामाइयसंजए, छेदोवट्ठावणियसंजए, परिहारविसुद्धियसंजए, सुहुमसंपरायसंजए, अहक्खायसंजए।
सामाइयसंजए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–इत्तरिए य, आवकहिए य।
छेदोवट्ठावणियसंजए णं–पुच्छा।
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सातियारे य, निरतियारे य।
परिहारविसुद्धियसंजए–पुच्छा।
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–निव्विसमाणए य, निव्विट्ठकाइए य।
सुहुमसंपरायसंजए–पुच्छा।
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–संकिलिस्समाणए य, विसुज्झमाणए य।
अहक्खायसंजए–पुच्छा।
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–छउमत्थे Translated Sutra: भगवन् ! संयत कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच, सामायिक – संयत, छेदोपस्थापनिक – संयत, परिहार – विशुद्धि – संयत, सूक्ष्मसम्पराय – संयत और यथाख्यात – संयत। भगवन् ! सामायिक – संयत कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो, इत्वरिक और यावत्कथिक। भगवन् ! छेदोपस्थापनिक – संयत ? गौतम ! दो, सातिचार और निरतिचार भगवन् ! परिहारविशुद्धिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 940 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] लोभाणू वेदेंतो, जो खलु उवसमाओ व खवओ वा ।
सो सुहुमसंपराओ, अहखाया ऊणओ किंचि ॥ Translated Sutra: जो सूक्ष्म लोभ का वेदन करता हुआ उपशमक होता है, अथवा क्षपक होता है, वह सूक्ष्मसम्पराय – संयत होता है। यह यथाख्यात – संयत से कुछ हीन होता है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 941 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] उवसंते खीणम्मि व, जो खलु कम्मम्मि मोहणिज्जम्मि ।
छउमत्थो व जिणो वा, अहखाओ संजओ स खलु ॥ Translated Sutra: मोहनीयकर्म उपशान्त या क्षीण हो जाने पर जो छद्मस्थ या जिन होता है, वह यथाख्यात – संयत कहलाता है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 942 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! किं सवेदए होज्जा? अवेदए होज्जा?
गोयमा! सवेदए वा होज्जा, अवेदए वा होज्जा। जइ सवेदए–एवं जहा कसायकुसीले तहेव निरवसेसं। एवं छेदोवट्ठावणियसंजए वि। परिहारविसुद्धियसंजओ जहा पुलाओ। सुहुमसंपराय-संजओ अहक्खायसंजओ य तहा नियंठो।
सामाइयसंजए णं भंते! किं सरागे होज्जा? वीयरागे होज्जा?
गोयमा! सरागे होज्जा, नो वीयरागे होज्जा। एवं जाव सुहुमसंपरायसंजए। अहक्खायसंजए। जहा नियंठे।
सामाइयसंजए णं भंते! किं ठियकप्पे होज्जा? अट्ठियकप्पे होज्जा?
गोयमा! ठियकप्पे वा होज्जा, अट्ठियकप्पे वा होज्जा।
छेदोवट्ठावणियसंजए–पुच्छा।
गोयमा! ठियकप्पे होज्जा, नो अट्ठियकप्पे Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत सवेदी होता है या अवेदी ? गौतम ! वह सवेदी भी होता है और अवेदी भी। यदि वह सवेदी होता है, आदि सभी कथन कषायकुशील के अनुसार कहना। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत में भी जानना। परिहारविशुद्धिकसंयत का कथन पुलाक समान। सूक्ष्मसम्परायसंयत और यथाख्यातसंयत का कथन निर्ग्रन्थ समान है। भगवन् ! सामायिकसंयत | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 943 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! किं पुलाए होज्जा? बउसे जाव सिणाए होज्जा?
गोयमा! पुलाए वा होज्जा, बउसे जाव कसायकुसीले वा होज्जा, नो नियंठे होज्जा, नो सिणाए होज्जा। एवं छेदोवट्ठावणिए वि।
परिहारविसुद्धियसंजए णं–पुच्छा।
गोयमा! नो पुलाए, नो बउसे, नो पडिसेवणाकुसीले होज्जा; कसायकुसीले होज्जा, नो नियंठे होज्जा, नो सिणाए होज्जा। एवं सुहुमसंपराए वि।
अहक्खायसंजए–पुच्छा।
गोयमा! नो पुलाए होज्जा जाव नो कसायकुसीले होज्जा, नियंठे वा होज्जा, सिणाए वा होज्जा।
सामाइयसंजए णं भंते! किं पडिसेवए होज्जा? अपडिसेवए होज्जा?
गोयमा! पडिसेवए वा होज्जा, अपडिसेवए वा होज्जा। जइ पडिसेवए होज्जा–किं मूलगुणपडिसेवए Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत पुलाक होता है, अथवा बकुश, यावत् स्नातक होता है ? गौतम ! वह पुलाक, बकुश यावत् कषायकुशील होता है, किन्तु ‘निर्ग्रन्थ’ और स्नातक नहीं होता है। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय जानना। भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत ? गौतम ! वह केवल कषायकुशील होता हे। इसी प्रकार सूक्ष्मसम्पराय संयत में भी समझना। भगवन् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 944 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! किं ओसप्पिणिकाले होज्जा? उस्सप्पिणिकाले होज्जा? नोओसप्पिणि-नोउस्सप्पिणि-काले होज्जा?
गोयमा! ओसप्पिणिकाले जहा बउसे। एवं छेदोवट्ठावणिए वि, नवरं–जम्मण-संतिभावं पडुच्च चउसु वि पलिभागेसु नत्थि, साहरणं पडुच्च अन्नयरेसु पडिभागे होज्जा, सेसं तं चेव।
परिहारविसुद्धिए–पुच्छा।
गोयमा! ओसप्पिणिकाले वा होज्जा, उस्सप्पिणिकाले वा होज्जा, नोओसप्पिणि-नोउस्सप्पिणि-काले नो होज्जा। जइ ओसप्पिणिकाले होज्जा–जहा पुलाओ। उस्सप्पिणिकाले वि जहा पुलाओ। सुहुमसंपराइओ जहा नियंठो। एवं अहक्खाओ वि। Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत अवसर्पिणीकाल में होता है, उत्सर्पिणीकाल में होता है, या नोअवसर्पिणी – नोउत्सर्पिणीकाल में होता है ? गौतम ! वह अवसर्पिणीकाल में होता है, इत्यादि सब कथन बकुश के समान है। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में भी समझना। विशेष यह कि जन्म और सद्भाव की अपेक्षा चारों पलिभागों में नहीं होता, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 945 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! कालगए समाणे कं गतिं गच्छति?
गोयमा! देवगतिं गच्छति।
देवगतिं गच्छमाणे किं भवनवासीसु उववज्जेज्जा? वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा? जोइसिएसु उववज्जेज्जा? वेमाणिएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! नो भवनवासीसु उववज्जेज्जा– जहा कसायकुसीले। एवं छेदोवट्ठावणिए वि। परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए। सुहुमसंपराए जहा नियंठे।
अहक्खाए–पुच्छा।
गोयमा! एवं अहक्खायसंजए वि जाव अजहन्नमणुक्कोसेनं अनुत्तरविमानेसु उववज्जेज्जा; अत्थेगतिए सिज्झति जाव सव्व दुक्खाणं अंत करेति।
सामाइयसंजए णं भंते! देवलोगेसु उववज्जमाणे किं इंदत्ताए उववज्जति–पुच्छा।
गोयमा! अविराहणं पडुच्च एवं जहा Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत काल कर किस गति में जाता है ? गौतम ! देवगति में। भगवन् ! वह देवगति में जाता हुआ भवनवासी यावत् वैमानिकों में से किन देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह कषायकुशील के समान भवनपति में उत्पन्न नहीं होता, इत्यादि सब कहना। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को भी समझना। परिहार – विशुद्धिकसंयत की गति | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 946 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजयस्स णं भंते! देवलोगेसु उववज्जमाणस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं दो पलिओवमाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। एवं छेदोवट्ठावणिए वि।
परिहारविसुद्धियस्स–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं दो पलिओवमाइं, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाइं, सेसाणं जहा नियंठस्स।
सामाइयसंजयस्स णं भंते! केवतिया संजमट्ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! असंखेज्जा संजमट्ठाणा पन्नत्ता। एवं जाव परिहारविसुद्धियस्स।
सुहुमसंपरायसंजयस्स–पुच्छा।
गोयमा! असंखेज्जा अंतोमुहुत्तिया संजमट्ठाणा पन्नत्ता।
अहक्खायसंजयस्स–पुच्छा।
गोयमा! एगे अजहन्नमणुक्कोसए संजमट्ठाणे पन्नत्ते।
एएसि णं Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत के कितने संयमस्थान कहे हैं ? गौतम ! असंख्येय संयमस्थान हैं। इसी प्रकार यावत् परिहारविशुद्धिकसंयत के संयमस्थान होते हैं। भगवन् ! सूक्ष्मसम्परायसंयम के कितने संयमस्थान कहे हैं ? गौतम ! असंख्येय अन्तर्मुहूर्त्त के समय बराबर। भगवन् ! यथाख्यातसंयत के ? गौतम ! अजघन्य – अनुत्कृष्ट एक ही संयमस्थान | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 947 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजयस्स णं भंते! केवइया चरित्तपज्जवा पन्नत्ता?
गोयमा! अनंता चरित्तपज्जवा पन्नत्ता। एवं जाव अहक्खायसंजयस्स।
सामाइयसंजए णं भंते! सामाइयसंजयस्स सट्ठाणसण्णिगासेनं चरित्तपज्जवेहिं किं हीने? तुल्ले? अब्भहिए?
गोयमा! सिय हीने–छट्ठाणवडिए।
सामाइयसंजए णं भंते! छेदोवट्ठावणियसंजयस्स परट्ठाणसण्णिगासेनं चरित्तपज्जवेहिं–पुच्छा।
गोयमा! सिय हीने–छट्ठाणवडिए। एवं परिहारविसुद्धियस्स वि।
सामाइयसंजए णं भंते! सुहुमसंपरागसंजयस्स परट्ठाणसण्णिगासेनं चरित्तपज्जवेहिं–पुच्छा।
गोयमा! हीने, नो तुल्ले, नो अब्भहिए, अनंतगुणहीने। एवं अहक्खायसंजयस्स वि। एवं छेदोवट्ठावणिए Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत के चारित्रपर्यव कितने कहे हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। इसी प्रकार यथाख्यातसंयत तक के चारित्रपर्यव के विषय में जानना चाहिए। भगवन् ! एक सामायिकसंयत, दूसरे सामायिकसंयत के स्वस्थानसन्निकर्ष की अपेक्षा क्या हीन होता है, तुल्य होता है अथवा अधिक होता है ? गौतम ! वह कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 948 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! किं वड्ढमाणपरिणामे होज्जा? हायमाणपरिणामे? अवट्ठियपरिणामे?
गोयमा! वड्ढमाणपरिणामे जहा पुलाए। एवं जाव परिहारविसुद्धिए।
सुहुमसंपराए–पुच्छा।
गोयमा! वड्ढमाणपरिणामे वा होज्जा, हायमाणपरिणामे वा होज्जा, नो अवट्ठियपरिणामे होज्जा। अहक्खाए जहा नियंठे।
सामाइयसंजए णं भंते! केवइयं कालं वड्ढमाणपरिणामे होज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं जहा पुलाए। एवं जाव परिहारविसुद्धिए।
सुहुमसंपरागसंजए णं भंते! केवतियं कालं वड्ढमाणपरिणामे होज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं।
केवतियं कालं हायमाणपरिणामे होज्जा? एवं चेव।
अहक्खायसंजए णं Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत वर्द्धमान परिणाम वाला होता है, हीयमान परिणाम वाला होता है, अथवा अवस्थित परिणाम वाला होता है ? गौतम ! वह वर्द्धमान परिणाम वाला होता है; इत्यादि पुलाक के समान जानना। इसी प्रकार परिहारविशुद्धिकसंयत पर्यन्त कहना। भगवन् ! सूक्ष्मसम्पराय संयत ? गौतम ! वह वर्द्धमान परिणाम वाला होता है या हीयमान | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 949 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! कइ कम्मप्पगडीओ बंधइ?
गोयमा! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, एवं जहा बउसे। एवं जाव परिहारविसुद्धिए।
सुहुमसंपरागसंजए–पुच्छा।
गोयमा! आउय-मोहणिज्जवज्जाओ छ कम्मप्पगडीओ बंधति। अहक्खायसंजए जहा सिणाए।
सामाइयसंजए णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ वेदेति?
गोयमा! नियमं अट्ठ कम्मप्पगडीओ वेदेति। एवं जाव सुहुमसंपराए।
अहक्खाए–पुच्छा।
गोयमा! सत्तविहवेदए वा, चउव्विहवेदए वा। सत्त वेदेमाणे मोहणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ वेदेति, चत्तारि वेदेमाणे वेयणिज्जाउय-नामगोयाओ चत्तारि कम्मप्पगडीओ वेदेति।
सामाइयसंजए णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ उदीरेति?
गोयमा! सत्तविहउदीरए Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? गौतम ! सात या आठ; इत्यादि बकुश के समान जानना। इसी प्रकार परिहारविशुद्धिकसंयत पर्यन्त कहना। भगवन् ! सूक्ष्मसम्परायसंयत कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? गौतम ! आयुष्य और मोहनय कर्म को छोड़कर शेष छह। यथाख्यातसंयत स्नातक के समान हैं। भगवन् ! सामायिकसंयत | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 950 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! सामाइयसंजयत्तं जहमाणे किं जहति? किं उवसंपज्जति?
गोयमा! सामाइयसंजयत्तं जहति। छेदोवट्ठावणियसंजयं वा, सुहुमसंपरागसंजयं वा, असंजमं वा, संजमासंजमं वा उवसंप-ज्जति।
छेओवट्ठावणिए–पुच्छा।
गोयमा! छेओवट्ठावणियसंजयत्तं जहति। सामाइयसंजयं वा, परिहारविसुद्धियसंजयं वा, सुहुम-संपरागसंजयं वा असंजमं वा, संजमासंजमं वा उवसंपज्जति।
परिहारविसुद्धिए–पुच्छा।
गोयमा! परिहारविसुद्धियसंजयत्तं जहति। छेदोवट्ठावणियसंजयं वा असंजमं वा उवसंपज्जति।
सुहुमसंपराए–पुच्छा।
गोयमा! सुहुमसंपरायसंजयत्तं जहति। सामाइयसंजयं वा, छेओवट्ठावणिय-संजयं वा, अहक्खायसंजयं वा, Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत, सामायिकसंयतत्व त्यागते हुए किसको छोड़ता है और किसे ग्रहण करता है ? गौतम ! वह सामायिकसंयतत्व को छोड़ता है और छेदोपस्थापनीयसंयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम, असंयम अथवा संयमासंयम को ग्रहण करता है। भगवन् ! छेदोपस्थापनीयसंयत ? गौतम ! वह छेदोपस्थापनीयसंयतत्व का त्याग करता है और सामायिकसंयम, परिहारविशुद्धिकसंयम, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 951 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! किं सण्णोवउत्ते होज्जा? नो सण्णोवउत्ते होज्जा?
गोयमा! सण्णोवउत्ते जहा बउसो। एवं जाव परिहारविसुद्धिए। सुहुमसंपराए अहक्खाए य जहा पुलाए।
सामाइयसंजए णं भंते! किं आहारए होज्जा? अनाहारए होज्जा? जहा पुलाए। एवं जाव सुहुम-संपराए। अहक्खायसंजए जहा सिणाए।
सामाइयसंजए णं भंते! कति भवग्गहणाइं होज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं, उक्कोसेणं अट्ठ। एवं छेदोवट्ठावणिए वि।
परिहारविसुद्धिए–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं, उक्कोसेणं तिन्नि। एवं छेदोवट्ठावणिए वि। Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत संज्ञोपयुक्त होता है या नोसंज्ञोपयुक्त होता है ? गौतम ! वह संज्ञोपयुक्त होता है, इत्यादि बकुश के समान जानना। इसी प्रकार का कथन परिहारविशुद्धिकसंयत पर्यन्त जानना। सूक्ष्मसम्पराय – संयत और यथाख्यातसंयत का कथन पुलाक के समान जानना। भगवन् ! सामायिकसंयत आहारक होता है या अनाहारक होता है | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 952 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजयस्स णं भंते! एगभवग्गहणिया केवतिया आगरिसा पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं जहा बउसस्स।
छेदोवट्ठावणियस्स–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं वीसपुहत्तं।
परिहारविसुद्धियस्स–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं तिन्नि।
सुहुमसंपरायस्स–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं चत्तारि।
अहक्खायस्स–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं दोण्णि।
सामाइयसंजयस्स णं भंते! नाणाभवग्गहणिया केवतिया आगरिसा पन्नत्ता?
गोयमा! जहा बउसे।
छेदोवट्ठावणियस्स–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं दोण्णि, उक्कोसेणं उवरिं नवण्हं सयाणं अंतो सहस्सस्स। परिहारविसुद्धियस्स Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत के एक भव में कितने आकर्ष होते हैं ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट शतपृथ – क्त्व। भगवन् ! छेदोपस्थापनीयसंयत का एक भव में कितने आकर्ष होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट बीस – पृथक्त्व। भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत के ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन। भगवन् ! सूक्ष्म – सम्परायसंयत के ? गौतम ! जघन्य | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 953 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणएहिं नवहिं वासेहिं ऊणिया पुव्वकोडी। एवं छेदोवट्ठावणिए वि।
परिहारविसुद्धिए जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणएहिं एकूणतीसाए वासेहिं ऊणिया पुव्वकोडी। सुहुमसंपराए जहा नियंठे। अहक्खाए जहा सामाइयसंजए।
सामाइयसंजया णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! सव्वद्धं।
छेदोवट्ठावणियसंजया–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं अड्ढाइज्जाइं वाससयाइं, उक्कोसेणं पण्णासं सागरोवमकोडिसयसहस्साइं।
परिहारविसुद्धीयसंजया–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं देसूणाइं दो वाससयाइं, उक्कोसेणं देसूणाओ दो पुव्वकोडीओ।
सुहुमसंपरागसंजया–पुच्छा।
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन नौ वर्ष कम पूर्वकोटिवर्ष। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को भी कहना। परिहारविशुद्धिसंयत जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन २९ वर्ष कम पूर्वकोटिवर्ष पर्यन्त रहता है। सूक्ष्मसम्परायसंयत निर्ग्रन्थ के अनुसार कहना। यथाख्यातसंयत | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 965 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनसने? अनसने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–इत्तरिए य, आवकहिए य।
से किं तं इत्तरिए? इत्तरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–चउत्थे भत्ते, छट्ठे भत्ते, अट्ठमे भत्ते, दसमे भत्ते, दुवाल-समे भत्ते, चोद्दसमे भत्ते, अद्धमासिए भत्ते, मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते जाव छम्मासिए भत्ते। सेत्तं इत्तरिए।
से किं तं आवकहिए? आवकहिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पाओवगमणे य, भत्तपच्चक्खाणे य।
से किं तं पाओवगमणे? पाओवगमणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–नीहारिमे य, अणीहारिमे य। नियमं अपडिकम्मे सेत्तं पाओवगमणे।
से किं तं भत्तपच्चक्खाणे? भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–नीहारिमे Translated Sutra: भगवन् ! अनशन कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का – इत्वरिक और यावत्कथिक। भगवन् ! इत्वरिक अनशन कितने प्रकार का कहा है ? अनेक प्रकार का यथा – चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त, अष्टम – भक्त, दशम – भक्त, द्वादशभक्त, चतुर्दशभक्त, अर्द्धमासिक, मासिकभक्त, द्विमासिकभक्त, त्रिमासिकभक्त यावत् षाण्मासिक – भक्त। यह इत्वरिक अनशन | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 190 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से त्तं सरागदंसणारिया।
से किं तं वीयरागदंसणारिया? वीयरागदंसणारिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–उवसंतकसाय-वीयरागदंसणारिया खीणकसायवीयरागदंसणारिया।
से किं तं उवसंतकसायवीयरागदंसणारिया? उवसंतकसायवीयरागदंसणारिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– पढमसमय-उवसंतकसाय-वीयरागदंसणारिया अपढमसमय-उवसंतकसाय-वीयराग-दंसणारिया, अहवा चरिमसमयउवसंतकसायवीयरागदंसणारिया य अचरिमसमयउवसंतकसाय-वीयरागदंसणारिया य।
से किं तं खीणकसायवीयरागदंसणारिया? खीणकसायवीयरागदंसणारिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– छउमत्थखीणकसायवीयरागदंसणारिया य केवलिखीणकसायवीयरागदंसणारिया य।
से किं तं छउमत्थखीणकसायवीयरागदंसणारिया? Translated Sutra: वीतरागदर्शनार्य दो प्रकार के हैं। उपशान्तकषाय – वीतरागदर्शनार्य और क्षीणकषाय – वीतरागदर्शनार्य। उपशान्तकषाय – वीतरागदर्शनार्य दो प्रकार के हैं। प्रथमसमय और अप्रथमसमय – उपशान्तकषाय – वीतरागदर्शनार्य अथवा चरमसमय और अचरमसमय – उपशान्तकषाय – वीतरागदर्शनार्य। क्षीणकषाय – वीतरागदर्शनार्य दो प्रकार | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१३ परिणाम |
Hindi | 407 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गतिपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–निरयगतिपरिणामे तिरियगतिपरिणामे मनुयगतिपरिणामे देवगतिपरिणामे।
इंदियपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–सोइंदियपरिणामे चक्खिंदियपरिणामे घाणिंदियपरिणामे जिब्भिंदियपरिणामे फासिंदियपरिणामे।
कसायपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–कोहकसाय-परिणामे मानकसायपरिणामे मायाकसायपरिणामे लोभकसायपरिणामे।
लेस्सापरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–कण्हलेस्सा-परिणामे नीललेस्सापरिणामे काउलेस्सापरिणामे Translated Sutra: भगवन् ! गतिपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का – निरयगतिपरिणाम, तिर्यग्गति – परिणाम, मनुष्यगतिपरिणाम और देवगतिपरिणाम। इन्द्रियपरिणाम पाँच प्रकार का है – श्रोत्रेन्द्रियपरिणाम, चक्षुरि – न्द्रियपरिणाम, घ्राणेन्द्रियपरिणाम, जिह्वेन्द्रियपरिणाम और स्पर्शेन्द्रियपरिणाम। कषायपरिणाम चार प्रकार | |||||||||
Sanstarak | संस्तारक | Ardha-Magadhi |
मङ्गलं, संस्तारकगुणा |
Hindi | 10 | Gatha | Painna-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] झाणाण परमसुक्कं, नाणाणं केवलं जहा नाणं ।
परिनिव्वाणं च जहा कमेण भणियं जिनवरेहिं ॥ Translated Sutra: सर्व तरह के ध्यान में जैसे परमशुक्लध्यान, मत्यादि ज्ञान में केवलज्ञान और सर्व तरह के चारित्र में जैसे कषाय आदि के उपशम से प्राप्त यथाख्यात चारित्र क्रमशः मोक्ष का कारण बनता है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Hindi | 466 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचविधे संजमे पन्नत्ते, तं जहा–सामाइयसंजमे, छेदोवट्ठावणियसंजमे, परिहारविसुद्धियसंजमे, सुहुमसंपरागसंजमे, अहक्खायचरित्तसंजमे। Translated Sutra: संयम पाँच प्रकार का है, यथा – सामायिक संयम, छेदोपस्थापनीय संयम, परिहार विशुद्धि संयम, सूक्ष्म सम्पराय संयम, यथाख्यात चारित्र संयम। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम |
Hindi | 1171 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कायसमाहारणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
कायसमाहारणयाए णं चरित्तपज्जवे विसोहेइ, विसोहेत्ता अहक्खायचरित्तं विसोहेइ, विसोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ। तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ। Translated Sutra: भन्ते ! काय समाधारणा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? काय समाधारणा से जीव चारित्र के पर्यवों को विशुद्ध करता है। चारित्र के पर्यवों को विशुद्ध करके यथाख्यात चारित्र को विशुद्ध करता है। यथाख्यात चारित्र को विशुद्ध करके केवलिसत्क वेदनीय आदि चार कर्मों का क्षय करता है। उसके बाद सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1107 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सामाइयत्थ पढमं छेओवट्ठावणं भवे बीयं ।
परिहारविसुद्धीयं सुहुमं तह संपरायं च ॥ Translated Sutra: चारित्र के पाँच प्रकार हैं – सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय और – पाँचवाँ यथाख्यात चारित्र है, जो सर्वथा कषायरहित होता है। वह छद्मस्थ और केवली – दोनों को होता है। ये चारित्र कर्म के चय को रिक्त करते हैं, अतः इन्हें चारित्र कहते हैं। सूत्र – ११०७, ११०८ |