Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (3444)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-८ अनगार क्रिया Hindi 751 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनुस्से परमाणुपोग्गलं किं जाणति-पासति? उदाहु न जाणति न पासति? गोयमा! अत्थेगतिए जाणति न पासति, अत्थेगतिए न जाणति न पासति। छउमत्थे णं भंते! मनुस्से दुपएसियं खंधं किं जाणति-पासति? उदाहु न जाणति न पासति? गोयमा! अत्थेगतिए जाणति न पासति, अत्थेगतिए न जाणति न पासति। एवं जाव असंखेज्ज-पएसियं। छउमत्थे णं भंते! मनुस्से अनंतपएसियं खंधं किं जाणति-पासति? उदाहु न जाणति न पासति? गोयमा! अत्थेगतिए जाणति-पासति, अत्थेगतिए जाणति न पासति, अत्थेगतिए न जाणति पासति, अत्थेगतिए न जाणति न पासति। आहोहिए णं भंते! मनुस्से परमाणुपोग्गलं किं जाणति-पासति? उदाहु न जाणति न पासति? जहा छउमत्थे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या छद्मस्थ मनुष्य परमाणु – पुद्‌गल को जानता – देखता है अथवा नहीं जानता – नहीं देखता है ? गौतम ! कोई जानता है, किन्तु देखता नहीं, और कोई जानता भी नहीं और देखता भी नहीं। भगवन्‌ ! क्या छद्मस्थ मनुष्य द्वीप्रदेशी स्कन्ध को जानता – देखता है, अथवा नहीं जानता, नहीं देखता है ? गौतम ! पूर्ववत्‌। इसी प्रकार यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-९ भव्यद्रव्य Hindi 752 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–अत्थि णं भंते! भवियदव्वनेरइया-भवियदव्वनेरइया? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–भवियदव्वनेरइया-भवियदव्वनेरइया? गोयमा! जे भविए पंचिंदिए तिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा नेरइएसु उववज्जित्तए। से तेणट्ठेणं। एवं जाव थणियकुमाराणं। अत्थि णं भंते! भवियदव्वपुढविकाइया-भवियदव्वपुढविकाइया? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं? गोयमा! जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा देवे वा पुढविकाइएसु उववज्जित्तए। से तेणट्ठेणं। आउक्काइय-वणस्सइ-काइयाणं एवं चेव। तेउ-वाउ-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाण य जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा तेउ-वाउ-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदिएसु

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! क्या भव्य – द्रव्य – नैरयिक – ‘भव्य – द्रव्य – नैरयिक’ हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि भव्य – द्रव्य – नैरयिक – ‘भव्य – द्रव्य – नैरयिक’ हैं ? गौतम ! जो कोई पंचेन्द्रिय – तिर्यञ्चयोनिक या मनुष्य नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, वह भव्य – द्रव्य –
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१० सोमिल Hindi 753 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–अनगारे णं भंते! भावियप्पा असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा? हंता ओगाहेज्जा। से णं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा? नो इणट्ठे समट्ठे। नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। अनगारे णं भंते! भावियप्पा अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा। से णं भंते! तत्थ ज्झियाएज्जा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। अनगारे णं भंते! भावियप्पा पुक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा। से णं भंते! तत्थ उल्ले सिया? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। अनगारे णं भंते! भावियप्पा गंगाए महानदीए पडिसोयं हव्वमागच्छेज्जा?

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! क्या भावितात्मा अनगार तलवार की धार पर अथवा उस्तरे की धार पर रह सकता है ? हाँ, गौतम ! रह सकता है। (भगवन्‌ !) क्या वह वहाँ छिन्न या भिन्न होता है ? (गौतम !) यह अर्थ समर्थ नहीं। क्योंकि उस पर शस्त्र संक्रमण नहीं करता। इत्यादि सब पंचम शतक में कही हुई परमाणु – पुद्‌गल की वक्तव्यता, यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१० सोमिल Hindi 754 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! वाउयाएणं फुडे? वाउयाए वा परमाणुपोग्गलेणं फुडे? गोयमा! परमाणुपोग्गले वाउयाएणं फुडे, नो वाउयाए परमाणुपोग्गलेणं फुडे। दुप्पएसिए णं भंते! खंधे वाउयाएणं फुडे? वाउयाए वा दुप्पएसिएणं खंधेणं फुडे? एवं चेव। एवं जाव असंखेज्जपएसिए। अनंतपएसिए णं भंते! खंधे वाउयाएणं फुडे–पुच्छा। गोयमा! अनंतपएसिए खंधे वाउयाएणं फुडे, वाउयाए अनंतपएसिएणं खंधेणं सिय फुडे, सिय नो फुडे। वत्थी भंते! वाउयाएणं फुडे? वाउयाए वा वत्थिणा फुडे? गोयमा! वत्थी वाउयाएणं फुडे, नो वाउयाए वत्थिणा फुडे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! परमाणु – पुद्‌गल, वायुकाय से स्पृष्ट है, अथवा वायुकाय परमाणु – पुद्‌गल से स्पृष्ट है ? गौतम ! परमाणु – पुद्‌गल वायुकाय से स्पृष्ट है, किन्तु वायुकाय परमाणु – पुद्‌गल से स्पृष्ट नहीं है। भगवन्‌ ! द्विप्रदेशिक – स्कन्ध वायुकाय से स्पृष्ट है या वायुकाय द्विप्रदेशिक – स्कन्ध से स्पृष्ट है ? गौतम ! पूर्ववत्‌।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१० सोमिल Hindi 755 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे वर्ण से – काला, नीला, पीला, लाल और श्वेत, गन्ध से – सुगन्धित और दुर्गन्धित; रस से – तिक्त, कटुक कसैला, अम्ल और मधुर; तथा स्पर्श से – कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष – इन बीस बोलों से युक्त द्रव्य क्या अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट, यावत्‌ अन्योन्य सम्बद्ध हैं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१० सोमिल Hindi 757 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगे भवं? दुवे भवं? अक्खए भवं? अव्वए भवं? अवट्ठिए भवं? अनेगभूयभाव-भविए भवं? सोमिला! एगे वि अहं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–एगे वि अहं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं? सोमिला! दव्वट्ठयाए एगे अहं, नाणदंसणट्ठयाए दुविहे अहं, पएसट्ठयाए अक्खए वि अहं, अव्वए वि अहं, अवट्ठिए वि अहं, उवयोगट्ठयाए अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं। से तेणट्ठेणं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं। एत्थ णं से सोमिले माहणे संबुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा खंदओ जाव से जहेयं तुब्भे वदह। जहा णं देवानुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भसेट्ठि-सेनावइ-सत्थ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आप एक हैं, या दो हैं, अथवा अक्षय हैं, अव्यय हैं, अवस्थित हैं अथवा अनेक – भूत – भाव – भाविक हैं? सोमिल ! मैं एक भी हूँ, यावत्‌ अनेक – भूत – भाव – भाविक भी हूँ। भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? सोमिल ! मैं द्रव्यरूप से एक हूँ, ज्ञान और दर्शन की दृष्टि से दो हूँ। आत्म – प्रदेशों की अपेक्षा से मैं अक्षय हूँ, अव्यय हूँ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१९

उद्देशक-१ लेश्या Hindi 759 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कति णं भंते! लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! छल्लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–एवं जहा पन्नवणाए चउत्थो लेसुद्देसओ भाणियव्वो निरवसेसो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! लेश्याएं कितनी हैं ? गौतम ! छह, प्रज्ञापनासूत्र का लेश्योद्देशक सम्पूर्ण कहना, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१९

उद्देशक-१० व्यंतर Hindi 778 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सभी वाणव्यन्तर देव समान आहार वाले होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। (गौतम !) सोलहवें शतक के द्वीपकुमारोद्देशक के अनुसार अल्पर्द्धिक – पर्यन्त जानना चाहिए। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-१ बेईन्द्रिय Hindi 780 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–सिय भंते! जाव चत्तारि पंच बेंदिया एगयओ साहरणसरीर बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति? नो इणट्ठे समट्ठे। बेंदिया णं पत्तेयाहारा पत्तेयपरिणामा पत्तेयसरीरं बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति। तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तओ लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा। एवं जहा एगूण-वीसतिमे सए तेउक्काइयाणं जाव उव्वट्टंति, नवरं–सम्मदिट्ठी वि मिच्छदिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छदिट्ठी, दो नाणा दो अन्नाणा नियमं, नो मणजोगी, वइजोगी वि कायजोगी वि, आहारो

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ !’ राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! क्या कदाचित्‌ दो, तीन, चार या पाँच द्वीन्द्रिय जीव मिलकर एक साधारण शरीर बाँधते हैं, इसके पश्चात्‌ आहार करते हैं ? अथवा आहार को परिणमाते हैं, फिर विशिष्ट शरीर को बाँधते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि द्वीन्द्रिय जीव पृथक्‌ – पृथक्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-६ अंतर Hindi 791 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वाउक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए? एवं जहा सत्तरसमसए वाउक्काइयउद्देसए तहा इह वि, नवरं–अंतरेसु समोहणा नेयव्वा, सेसं तं चेव जाव अनुत्तरविमानाणं ईसीपब्भाराए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए घनवाय-तनुवाए घनवाय-तनुवायवलएसु वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, सेसं तं चेव जाव से तेणट्ठेणं जाव उववज्जेज्जा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो वायुकायिक जीव, इस रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा पृथ्वी के मध्य में मरणसमुद्‌घात करके सौधर्मकल्प में वायुकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हैं; इत्यादि पूर्ववत्‌ प्रश्न। गौतम ! सत्तरहवे शतक के दसवे उद्देशक समान यहाँ भी कहना। विशेष यह है कि रत्नप्रभा आदि पृथ्वीयों के अन्तरालों में मरणसमुद्‌घातपूर्वक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-७ बंध Hindi 792 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! बंधे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा–जीवप्पयोगबंधे, अनंतरबंधे, परंपरबंधे। नेरइयाणं भंते! कतिविहे बंधे पन्नत्ते? एवं चेव। एवं जाव वेमाणियाणं। नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स कतिविहे बंधे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा–जीवप्पयोगबंधे, अनंतरबंधे, परंपरबंधे। नेरइयाणं भंते! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स कतिविहे बंधे पन्नत्ते? एवं चेव। एवं जाव वेमाणियाणं। एवं जाव अंतराइयस्स। नाणावरणिज्जोदयस्स णं भंते! कम्मस कतिविहे बंधे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे बंधे पन्नत्ते एवं चेव। एवं नेरइयाण वि। एवं जाव वेमाणियाणं। एवं जाव अंतराइओदयस्स। इत्थीवेदस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! तीन प्रकार का, यथा – जीवप्रयोगबन्ध, अनन्तर – बन्ध और परम्परबन्ध। भगवन्‌ ! नैरयिक जीवों के बन्ध कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पूर्ववत्‌। इसी प्रकार वैमानिकों तक भगवन्‌ ! ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का। यथा जीवप्रयोगबन्ध अनन्तरबन्ध
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 793 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मभूमीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! पन्नरस कम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–पंच भरहाइं, पंच एरवयाइं, पंच महा-विदेहाइं। कति णं भंते! अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तीसं अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–पंच हेमवयाइं, पंच हेरण्णवयाइं, पंच हरिवासाइं, पंच रम्मगवासाइं, पंच देवकुराओ, पंच उत्तरकुराओ। एयासु णं भंते! तीसासु अकम्मभूमीसु अत्थि ओसप्पिणीति वा उस्सप्पिणीति वा? नो इणट्ठे समट्ठे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कर्मभूमियाँ कितनी हैं ? गौतम ! पन्द्रह हैं। पाँच भरत, पाँच ऐरवत और पाँच महाविदेह। भगवन्‌ ! अकर्मभूमियाँ कितनी हैं ? गौतम ! तीस हैं। पाँच हैमवत, पाँच हैरण्यवत, पाँच हरिवर्ष, पाँच रम्यकवर्ष, पाँच देवकुरु और पाँच उत्तरकुरु। भगवन्‌ ! अकर्मभूमियों मे क्या उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीरूप काल है ? (गौतम !) यह अर्थ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 794 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसु णं भंते! पंचसु भरहेसु, पंचसु एरवएसु अत्थि ओसप्पिणीति वा उस्सप्पिणीति वा? हंता अत्थि। एएसु णं पंचसु महाविदेहेसु नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि उस्सप्पिणी, अवट्ठिए णं तत्थ काले पन्नत्ते समणाउसो एएसु णं भंते! पंचसु महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं पन्नवयंति? नो इणट्ठे समट्ठे। एएसु णं पंचसु भरहेसु, पंचसु एरवएसु, पुरिम-पच्छिमगा दुवे अरहंता भगवंतो पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं पण्णवयंति, अवसेसा णं अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पन्नवयंति। एएसु णं पंचसु महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पन्नवयंति। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! महाविदेह क्षेत्रों में अरहन्त भगवान सप्रतिक्रमण पंच – महाव्रत वाले धर्म का उपदेश करते हैं ? (गौतम !) यह अर्थ समर्थ नहीं है। भरत तथा ऐरवत क्षेत्रों में प्रथम और अन्तिम ये दो अरहन्त भगवंत सप्रतिक्रमण पाँच महाव्रतोंवाले और शेष अरहन्त भगवंत चातुर्याम धर्म का उपदेश करते हैं और पाँच महाविदेह क्षेत्रों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 795 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! चउवीसाए तित्थगराणं कति जिणंतरा पन्नत्ता? गोयमा! तेवीसं जिणंतरा पन्नत्ता। एएसि णं भंते! तेवीसाए जिणंतरेसु कस्स कहिं कालियसुयस्स वीच्छेदे पन्नत्ते? गोयमा! एएसु णं तेवीसाए जिणंतरेसु पुरिम-पच्छिमएसु अट्ठसु-अट्ठसु जिनंतरेसु एत्थ णं कालियसुयस्स अव्वोच्छेये पन्नत्ते, मज्झिमएसु सत्तसु जिनंतरेसु एत्थ णं कालियसुयस्स वोच्छेदे पन्नत्ते, सव्वत्थ वि णं वोच्छिण्णे दिट्ठिवाए।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन चौबीस तीर्थंकरों के कितने जिनान्तर कहे हैं ? गौतम ! इनके तेईस अन्तर कहे गए हैं। भगवन्‌ ! इन तेईस जिनान्तरों में जिनके अन्तर में कब कालिकश्रुत का विच्छेद कहा गया है ? गौतम ! पहले और पीछे के आठ – आठ जिनान्तरों में कालिकश्रुत का अव्यवच्छेद कहा गया है और मध्य के आठ जिनान्तरों में कालिकश्रुत का व्यवच्छेद
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 796 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं केवतियं कालं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति? गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए ममं एगं वाससहस्सं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति। जहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं एगं वाससहस्सं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति, तहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए अवसेसाणं तित्थगराणं केवतियं कालं पुव्वगए अनुसज्जित्था? गोयमा! अत्थेगतियाणं संखेज्जं कालं, अत्थेगतियाणं असंखेज्जं कालं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में इस अवसर्पिणीकाल में आप देवानुप्रिय का पूर्वगतश्रुत कितने काल तक रहेगा ? गौतम ! इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में मेरा पूर्वश्रुतगत एक हजार वर्ष तक रहेगा। भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में, इस अवसर्पिणीकाल में अवशिष्ट अन्य तीर्थंकरों का पूर्वगतश्रुत
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 797 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं केवतियं कालं तित्थे अनुसज्जिस्सति? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए ममं एगवीसं वाससहस्साइं तित्थे अनुसज्जिस्सति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में आप देवानुप्रिय का तीर्थ कितने काल तक रहेगा ? गौतम ! इक्कीस हजार वर्ष तक रहेगा।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 798 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे वासे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं एक्कवीसं वाससहस्साइं तित्थे अनुसज्जिस्सति, तहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमेस्साणं चरिमतित्थगरस्स केवतिलं कालं तित्थे अनुसज्जिस्सति? गोयमा! जावतिए णं उसभस्स अरहओ कोसलियस्स जिणपरियाए एवइयाइं संखेज्जाइं आगमे-स्साणं चरिमतित्थगरस्स तित्थे अनुसज्जिस्सति।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! भावी तीर्थंकरोंमें से अन्तिम तीर्थंकर का तीर्थ कितने काल तक अविच्छिन्न रहेगा ? गौतम ! कौशलिक ऋषभदेव, अरहन्त का जितना जिनपर्याय है, उतने वर्ष भावी तीर्थंकरोंमें अन्तिम तीर्थंकर का तीर्थ रहेगा।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 799 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तित्थं भंते! तित्थं? तित्थगरे तित्थं? गोयमा! अरहा ताव नियमं तित्थकरे, तित्थं पुण चाउवण्णे समणसंघे, तं जहा–समणा, समणीओ, सावया, सावियाओ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तीर्थ को तीर्थ कहते हैं अथवा तीर्थंकर को तीर्थ कहते हैं ? गौतम ! अर्हन्‌ तो अवश्य तीर्थंकर हैं, किन्तु तीर्थ चार प्रकार के वर्णों से युक्त श्रमणसंघ है। यथा – श्रमण, श्रमणियाँ, श्रावक और श्राविकाएं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 800 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पवयणं भंते! पवयणं? पावयणी पवयणं? गोयमा! अरहा ताव नियमं पावयणी, पवयणं पुण दुवालसंगे गणिपिडगे, तं जहा–आयारो सूयगडो ठाणं समवाओ विआहपन्नत्ती णायाधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अनुत्तरोववाइय-दसाओ पण्हावागरणाइं विवागसुयं दिट्ठिवाओ। जे इमे भंते! उग्गा, भोगा, राइण्णा, इक्खागा, नाया, कोरव्वा– एए णं अस्सि धम्मे ओगाहंति, ओगाहित्ता अट्ठविहं कम्मरयमलं पवाहेंति, पवाहेत्ता तओ पच्छा सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति? हंता गोयमा! जे इमे उग्गा, भोगा, राइण्णा, इक्खागा, नाया, कोरव्वा– एए णं अस्सि धम्मे ओगाहंति, ओगाहित्ता अट्ठविहं कम्मरयमलं पवाहेंति, पवाहेत्ता तओ पच्छा सिज्झंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रवचन को ही प्रवचन कहते हैं, अथवा प्रवचनी को प्रवचन कहते हैं ? गौतम ! अरिहन्त तो अवश्य प्रवचनी हैं, किन्तु द्वादशांग गणिपिटक प्रवचन हैं, यथा – आचारांग यावत्‌ दृष्टिवाद। भगवन्‌ ! जो ये उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल, इक्ष्वाकुकुल, ज्ञातकुल और कौरव्यकुल हैं, वे यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त करते हैं ? हाँ, गौतम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-९ चारण Hindi 801 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! चारणा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा चारणा पन्नत्ता, तं जहा–विज्जाचारणा य, जंघाचारणा य। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–विज्जाचारणे-विज्जाचारणे? गोयमा! तस्स णं छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं विज्जाए उत्तरगुणलद्धिं खममाणस्स विज्जाचारणलद्धी नामं लद्धी समुप्पज्जइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– विज्जाचारणे-विज्जाचारणे। विज्जाचारणस्स णं भंते! कहं सीहा गतो, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते? गोयम! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे जाव किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। देवे णं महिड्ढीए जाव महेसक्खे जाव इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्यरानिवाएहिं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! चारण कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, यथा – विद्याचारण और जंघाचारण। भगवन्‌ विद्याचारण मुनि को ‘विद्याचारण’ क्यों कहते हैं ? अन्तर – रहित छट्ठ – छट्ठ के तपश्चरणपूर्वक पूर्वश्रुतरूप विद्या द्वारा तपोलब्धि को प्राप्त मुनि को विद्याचारणलब्धि नामकी लब्धि उत्पन्न होती है। इस कारण से यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-९ चारण Hindi 802 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जंघाचारणे-जंघाचारणे? गोयमा! तस्स णं अट्ठमंअट्ठमेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणस्स जंघाचारणलद्धी नाम लद्धी समुप्पज्जति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जंघाचारणे-जंघाचारणे। जंघाचारणस्स णं भंते! कहं सीहा गती, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते? गोयमा! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे जाव किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। देवे णं महिड्ढीए जाव महेसक्खे जाव इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहि अच्छरानिवाएहिं तिसत्तखुत्तो अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छेज्जा, जंघाचारणस्स णं गोयमा! तहा सीहा गती, तहा सीहे गतिविसए पन्नत्ते। जंघाचारणस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जंघाचारण को जंघाचारण क्यों कहते हैं ? गौतम ! अन्तररहित अट्ठम – अट्ठम के तपश्चरण – पूर्वक आत्मा को भावित करते हुए मुनि को ‘जंघाचारण’ नामक लब्धि उत्पन्न होती है, इस कारण उसे ‘जंघाचारण’ कहते हैं भगवन्‌ ! जंघाचारण की शीघ्र गति कैसी होती है और उसकी शीघ्रगति का विषय कितना होता है ? गौतम ! समग्र वर्णन विद्याचारणवत्‌।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-१० सोपक्रमजीव Hindi 803 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सोवक्कमाउया? निरुवक्कमाउया? गोयमा! जीवा सोवक्कमाउया वि, निरुवक्कमाउया वि। नेरइयाणं–पुच्छा। गोयमा! नेरइया नो सोवक्कमाउया, निरुवक्कमाउया। एवं जाव थणियकुमारा। पुढविक्काइया जहा जीवा। एवं जाव मनुस्सा। वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव सोपक्रम – आयुष्य वाले होते हैं या निरुपक्रम – आयुष्य वाले होते हैं ? गौतम ! दोनों। भगवन्‌ नैरयिक सोपक्रम – आयुष्य वाले होते हैं, अथवा निरुपक्रम – आयुष्य वाले ? गौतम ! वे निरुपक्रम – आयुष्य वाले होते हैं। इसी प्रकार स्तनितकुमारों – पर्यन्त (जानना)। पृथ्वीकायिकों का आयुष्य जीवों के समान जानना। इसी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-१० सोपक्रमजीव Hindi 804 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं आतोवक्कमेणं उववज्जंति? परोवक्कमेणं उववज्जंति? निरुवक्कमेणं उववज्जंति? गोयमा! आतोवक्कमेण वि उववज्जंति, परोवक्कमेण वि उववज्जंति, निरुवक्कमेण वि उववज्जंति। एवं जाव वेमाणिया। नेरइया णं भंते! किं आतोवक्कमेणं उव्वट्टंति? परोवक्कमेणं उव्वट्टंति? निरुवक्कमेणं उव्वट्टंति? गोयमा! नो आतोवक्कमेणं उव्वट्टंति, नो परोवक्कमेणं उव्वट्टंति, निरुवक्कमेणं उव्वट्टंति। एवं जाव थणियकुमारा। पुढविकाइया जाव मनुस्सा तिसु उव्वट्टंति। सेसा जहा नेरइया, नवरं–जोइसिय-वेमाणिया चयंति। नेरइया णं भंते! किं आइड्ढीए उववज्जंति? परिड्ढीए उववज्जंति? गोयमा! आइड्ढीए उववज्जंति,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक जीव, आत्मोपक्रम से, परोक्रम से या निरुपक्रम से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! तीनों से। इसी प्रकार यावत्‌ वैमानिक तक कहना। भगवन्‌ ! नैरयिक आत्मोपक्रम से उद्वर्त्तते हैं अथवा परोपक्रम से या निरुपक्रम से उद्वर्त्तते हैं ? गौतम ! वे निरुपक्रम से उद्वर्त्तित होते हैं। इसी प्रकार यावत्‌ स्तनितकुमारों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-१० सोपक्रमजीव Hindi 805 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! किं कतिसंचिया? अकतिसंचिया? अवत्तव्वगसंचिया? गोयमा! नेरइया कतिसंचिया वि, अकतिसंचिया वि, अवत्तव्वगसंचिया वि। से केणट्ठेणं जाव अवत्तव्वगसंचिया वि? गोयमा! जे णं नेरइया संखेज्जएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया कतिसंचिया, जे णं नेरइया असंखेज्जएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया अकतिसंचिया, जे णं नेरइया एक्कएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया अवत्तव्वगसंचिया। से तेणट्ठेणं गोयमा! जाव अवत्तव्वगसंचिया वि। एवं जाव थणियकुमारा। पुढविक्काइयाणं–पुच्छा। गोयमा! पुढविकाइया नो कतिसंचिया, अकतिसंचिया, नो अवत्तव्वगसंचिया। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जाव नो

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक कतिसंचित हैं, अकतिसंचित हैं अथवा अवक्तव्यसंचित ? गौतम ! तीनों हैं। भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहा गया है ? गौतम ! जो नैरयिक संख्यात प्रवेश करते हैं, वे कतिसंचित हैं, जो नैरयिक असंख्यात प्रवेश करते हैं, वे अकतिसंचित हैं और जो नैरयिक एक – एक (करके) प्रवेश करते हैं, वे अवक्तव्यसंचित हैं। इसी प्रकार स्तनितकुमारों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-१

उद्देशक-१ शाल्यादि Hindi 807 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी– अह भंते! साली-वीही-गोधूम-जव-जवजवाणं–एएसि णं भंते! जीवा मूलत्ताए वक्कमंति ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उववज्जंति– किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति? जहा वक्कंतीए तहेव उववाओ, नवरं–देववज्जं। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। अवहारो जहा उप्पलुद्देसे। तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं। ते णं भंते! जीवा

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! अब शालि, व्रीहि, गोधूम – (यावत्‌) जौ, जवजव, इन सब धान्यों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों से आकर अथवा तिर्यंचों, मनुष्यों या देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! व्युत्क्रान्ति – पद के अनुसार उपपात समझना चाहिए। विशेष यह
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-१

उद्देशक-२ थी १० लसी, वंश, इक्षु, सेडिय, अम्ररुह, तुलसी Hindi 808 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! साली-बीही-गोधूम-जव-जवजवाणं–एएसि णं जे जीवा कंदत्ताए वक्कमंति ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उववज्जंति? एवं कंदाहिगारेण सच्चेव मूलुद्देसो अपरिसेसो भाणियव्वो जाव असतिं अदुवा अनंतखुत्तो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! शालि, व्रीहि, यावत्‌ जवजव, इन सबके ‘कन्द’ रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) ‘कन्द’ के विषयमें, वही मूल का समग्र उद्देशक, कहना। भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है इसी प्रकार स्कन्ध का उद्देशक भी कहना चाहिए। इसी प्रकार ‘त्वचा’ का उद्देशक भी कहना चाहिए। शाखा के विषय में भी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-२ थी ८

Hindi 815 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! कल-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-निप्फाव-कुलत्थ-आलिसंदग-सतीण-पलिमंथगाणं–एएसिं णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उववज्जंति? एवं मूलादीय दस उद्देसगा भाणियव्वा जहेव सालीणं निरवसेसं तहेव।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कलाय, मसूर, तिल, मूँग, उड़द, निष्पाव, कुलथ, आलिसंदक, सटिन और पलिमंथक; इन सबके मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! शालि आदि के अनुसार यहाँ भी मूल आदि दस उद्देशक कहना।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-२ थी ८

Hindi 816 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! अयसि-कुसुंभ-कोद्दव-कंगु-रालग-वरा-कोदूसा-सण-सरिसव-मूलग-बीयाणं एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उववज्जंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा जहेव सालीणं निरवसेसं तहेव भाणियव्वा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अलसी, कुसुम्ब, कोद्रव, कांग, राल, तूअर, कोदूसा, सण, सर्षप तथा मूलक बीज, इन वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) ‘शालि’ वर्ग के समान कहना।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-२ थी ८

Hindi 817 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! वंस-वेणु-कणक-कक्कावंस-चारुवंस-दंडा-कुडा-विमा-कंडा-वेलुया-कल्लाणाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा जहेव सालीणं, नवरं–देवी सव्वत्थ वि न उववज्जति। तिन्नि लेसाओ। सव्वत्थ वि छव्वीसं भंगा, सेसं तं चेव।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बाँस, वेणु, कनक, कर्कावंश, चारुवंश, उड़ा, कुड़ा, विमा, कण्डा, वेणुका और कल्याणी, इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) शालि – वर्ग के समान मूल आदि दश उद्देशक कहना चाहिए। विशेष यह है कि देव यहाँ किसी स्थान में उत्पन्न नहीं होते। सर्वत्र तीन लेश्याएं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-२ थी ८

Hindi 819 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सेडिय-भंतिय-कोंतिय-दब्भ-कुस-पव्वग-पोदइल अज्जुण-आसाढग-रोहियंस-सुय-क्खीर-भुस-एरंड-कुरु कुंद-करकर सुंठ विभंगु महुरतण थुरग-सिप्पिय-सुंकलितणाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं जहेव वंसवग्गो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सेडिय, भंतिय, कौन्तिय, दर्भ – कुश, पर्वक, पोदेइल, अर्जुन, आषाढ़क, रोहितक, मुतअ, खीर, भुस, एरण्ड, कुरुकुन्द, करकर, सूँठ, विभंगु, मधुरयण, थुरग, शिल्पिक और सुंकलितृण, इन सब वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! चतुर्थ वंशवर्ग के समान कहना चाहिए। शतक – २१ – वर्ग –
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-२ थी ८

Hindi 820 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! अब्भरुह-बीयाण-हरितग-तंदुलेज्जग-तण-वत्थुल-पोरग-मज्जारपाइ-विल्लि-पालक्क-दगपिप्पलिय-दव्वि-सोत्थिक-सायमंडुक्कि-मूलग-सरिसव-अंबिलसाग-जियंतगाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं जहेव वंसवग्गो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अभ्ररुह, वायाण, हरीतक, तंदुलेय्यक, तृण, वत्थुल, बोरक, मार्जाणक, पाई, बिल्ली, पालक, दगपिप्पली, दर्वी, स्वस्तिक, शाकमण्डुकी, मूलक, सर्षप, अम्बिलशाक, जीयन्तक, इन सब वनस्पतियों के मूल रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! चतुर्थ वंशवर्ग के समान मूलादि दश उद्देशक कहना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-२ थी ८

Hindi 821 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! कुलसी-कण्ह-दराल-फणेज्जा-अज्जा-भूयणा-चोरा-जीरा-दमणा-मरुया-इंदीवर-सय-पुप्फाणं –एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं जहा वंसाणं। एवं एएसु अट्ठसु वग्गेसु असीतिं उद्देसगा भवति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तुलसी, कृष्णदराल, फणेज्जा, अज्जा, भूयणा, चोरा, जीरा, दमणा, मरुया, इन्दीवर और शतपुष्प इन सबके मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) चौथे वंशवर्ग के समान यहाँ भी मूलादि दश उद्देशक कहने चाहिए। इस प्रकार आठ वर्गों में अस्सी उद्देशक होते हैं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक...

वर्ग-१

Hindi 823 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–अह भंते! ताल-तमाल-तक्कलि-तेतलि-साल-सरला-सारकल्लाण-जावति-केयइ-कदलि-कंदलि-चम्मरुक्ख-भुयरुक्ख-हिंगुरुक्ख-लवंगरुक्ख-पूयफलि-खज्जूरि-नालिएरीणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति, ते णं भंते! जीव कओहिंतो उववज्जंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा कायव्वा जहेव सालीणं, नवरं–इमं नाणत्तं–मूले कंदे खंधे तयाए साले य एएसु पंचसु उद्देसगेसु देवो न उववज्जति। तिन्नि लेसाओ। ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दसवासस-हस्साइं। उवरिल्लेसु पंचसु उद्देसएसु देवो उववज्जति। चत्तारि लेसाओ। ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वासपुहत्तं। ओगाहणा मूले

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! ताल, तमाल, तक्कली, तेतली, शाल, सरल, सारगल्ल, यावत्‌ – केतकी, कदली, चर्मवृक्ष, गुन्दवृक्ष, हिंगवृक्ष, लवंगवृक्ष, पूगफल, खजूर और नारियल, इन सबके मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) शालिवर्ग के दश उद्देशक के समान यहाँ भी समझना। विशेष
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक...

वर्ग-२ थी ६

Hindi 824 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! निंबंब जंबु-कोसंब-साल-अंकोल्ल-पीलु-सेलु-सल्लइ-मोयइ-मालुय-बउल-पलास-करंज-पुत्तंजीवग-अरिट्ठ-विहेलग-हरित्तग-भल्लाय-उंबभरिय-खीरणि-धायइ-पियाल-पूइयणिंबारग सेण्हय पासिय सीसव असन पुण्णाग नागरुक्ख-सीवण्णि-असोगाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं मूलादीया दस उद्देसगा कायव्वा निरवसेसं जहा तालवग्गो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नीम, आम्र, जम्बू, कोशम्ब, ताल, अंकोल्ल, पीलु, सेलु, सल्लकी, मोचकी, मालुक, बकुल, पलाश, करंज, पुत्रंजीवक, अरिष्ट, बहेड़ा, हरितक, भिल्लामा, उम्बरिय, क्षीरणी, धातकी, प्रियाल, पूतिक, निवाग, सेण्हक, पासिय, शीशम, अतसी, पुन्नाग, नागवृक्ष, श्रीपर्णी और अशोक, इन सब वृक्षों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक...

वर्ग-२ थी ६

Hindi 825 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! अत्थिय-तिंदुय-बोर-कविट्ठ–अंबाडग-माउलिंग-बिल्ल-आमलग-फणस-दाडिम-आसोत्थ-उंबर- वड- नग्गोह- नंदिरुक्ख-पिप्पलि- सत्तरि- पिलक्खुरुक्ख- काउंबरिय- कुत्थुंभरिय- देवदालि-तिलग- लउय- छत्तोह- सिरीस- सत्तिवण्ण- दहिवण्ण- लोद्ध- धव- चंदन- अज्जुण- नीम- कुडग-कलंबाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति, ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उववज्जंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा तालवग्गसरिसा नेयव्वा जाव बीयं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अगस्तिक, तिन्दुक, बोर, कवीठ, अम्बाडक, बिजौरा, बिल्व, आमलक, फणस, दाड़िम, अश्वत्थ, उंबर, बड़, न्यग्रोध, नन्दिवृक्ष, पिप्पली, सतर, प्लक्षवृक्ष, काकोदुम्बरी, कुस्तुम्भरी, देवदालि, तिलक, लकुच, छत्रोघ, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध्रक, धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कुटज और कदम्ब, इन सब वृक्षों के मूलरूप से जो जीव उत्पन्न होते
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक...

वर्ग-२ थी ६

Hindi 826 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! वाइंगणि-अल्लइ-पोंडइ, एवं जहा पन्नवणाए गाहानुसारेणं नेयव्वं जाव गंज-पाडला-दासि-अंकोल्लाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा नेयव्वा जाव बीयं ति निरवसेसं जहा वंसवग्गो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बैंगन, अल्लइ, बोंडइ इत्यादि वृक्षों के नाम प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद की गाथा के अनुसार जानना चाहिए, यावत्‌ गंजपाटला, दासि अंकोल्ल तक, इन सभी वृक्षों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ मूलादि दस उद्देशक वंशवर्ग के समान जानने चाहिए।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक...

वर्ग-२ थी ६

Hindi 827 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सेरियक-नवमालिय-कोरेंटग-बंधुजीवग-मणोज्जा, जहा पन्नवणाए पढमपदे गाहाणु-सारेणं जाव नवनीतिय-कुंद-महाजाईणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा निरवसेसं जहा सालीणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सिरियक, नवमालिक, कोरंटक, बन्धुजीवक, मणोज्ज, इत्यादि सब नाम प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद की गाथा के अनुसार नलिनी, कुन्द और महाजाति (तक) इन सब पौधों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ भी मूलादि समग्र दश उद्देशक शालिवर्ग के समान (जानने चाहिए)।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक...

वर्ग-२ थी ६

Hindi 828 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! पूसफलि-कालिंगी-तुंबी-तउसी-एलावालुंकी, एवं पदाणि छिंदियव्वाणि पन्नवणा-गाहाणुसारेणं जहा तालवग्गे जाव दधिफोल्लइ-काकलि-मोकलि-अक्कबोंदीणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा कायव्वा जहा तालवग्गो, नवरं–फलउद्देसे ओगाहणाए जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं। ठिती सव्वत्थ जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वासपुहत्तं, सेसं तं चेव। एवं छसु वि वग्गेसु सट्ठिं उद्देसगा भवंति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पूसफलिका, कालिंगी, तुम्बी, त्रपुषी, ऐला, वालुंकी, इत्यादि वल्लीवाचक नाम प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद की गाथा के अनुसार अलग कर लेने चाहिए, फिर तालवर्ग के समान, यावत्‌ दधिफोल्लइ, काकली, सोक्कली और अर्कबोन्दी, इन सब वल्लियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२३ आलु, लोही, आय, पाठा

वर्ग-१ थी ५ – 830

Hindi 830 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–अह भंते! आलुय-मूलग-सिंगबेर-हलिद्दा-रुरु-कंडरिय-जारु-छीरबिरालि-किट्ठि-कुंदु-कण्हाकडभु-मधु-पुयलइ-महुसिंगि-निरुहा-सप्पसुगंधा-छिण्णरुह-बीयरुहाणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा कायव्वा वंसवग्गसरिसा, नवरं–परिमाणं जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा उववज्जंति। अवहारो–गोयमा! ते णं अनंता समये-समये अवहीरमाणा-अवहीरमाणा अनंताहिं ओसप्पिणीहिं उस्सप्पिणीहिं एवतिकालेणं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया सिया। ठिती जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं, सेसं तं चेव

Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! आलू, मूला, अदरक, हल्दी, रुरु, कंडरिक, जीरु, क्षीरविराली, किट्ठि, कुन्दु, कृष्णकडसु, मधु, पयलइ, मधुशृंगी, निरुहा, सर्पसुगन्धा, छिन्नरुहा और बीजरुहा, इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ वंशवर्ग
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२३ आलु, लोही, आय, पाठा

वर्ग-१ थी ५ – 830

Hindi 831 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! लोही-णीहू-थीहू-थिभगा-अस्सकण्णी-सीहकण्णी-सिउंढी-मुसुंढीणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि दस उद्देसगा जहेव आलुवग्गो, नवरं–ओगाहणा तालवग्गसरिसा, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोही, नीहू, थीहू, थीभगा, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सींउंढी और मुसुंढी इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! आलुकवर्ग के समान मूलादि दस उद्देशक (कहने चाहिए)। विशेष यह है कि इनकी अवगाहना तालवर्ग के समान है। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२३ आलु, लोही, आय, पाठा

वर्ग-१ थी ५ – 830

Hindi 832 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! आय-काय-कुहुण-कंदुरुक्क-उब्बेहलिया-सका-सज्जा-छत्ता-वंसाणिय-कुराणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा निरवसेसं जहा आलुवग्गो, नवरं–ओगाहणा तालवग्गसरिसा, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आय, काय, कुहणा, कुन्दुक्क, उव्वेहलिय, सफा, सज्झा, छत्ता, वंशानिका और कुरा; इन वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! आलूवर्ग के मूलादि समग्र दस उद्देशक कहने चाहिए। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२३ आलु, लोही, आय, पाठा

वर्ग-१ थी ५ – 830

Hindi 833 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! पाढा-मियवालंकि-मधुररसा-रायवल्लि-पउमा-मोढरि-दंति-चंडीणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्क-मंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा आलुयवग्गसरिसा, नवरं–ओगाहणा जहा वल्लीणं, सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पाठा, मृगवालुंकी, मधुररसा, राजवल्ली, पद्मा, मोढरी, दन्ती और चण्डी, इन वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आते हैं ? गौतम ! आलूवर्ग के समान मूलादि दश उद्देशक कहने चाहिए। विशेष यह है कि इनकी अवगाहना वल्लीवर्ग के समान समझनी चाहिए। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’ शतक – २३ – वर्ग –
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२३ आलु, लोही, आय, पाठा

वर्ग-१ थी ५ – 830

Hindi 834 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! मासपण्णी-मुग्गपण्णी- जीवग-सरिसव- करेणुय-काओलि- खीरकाकोलि-भंगि-णहि-किमिरासि-भद्दमुत्थ-णंगलइ-पयुय-किण्हा-पउल-हढ-हरेणुया-लोहीणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं आलुयवग्गसरिसा। एवं एत्थ पंचसु वि वग्गेसु पन्नासं उद्देसगा भाणियव्वा। सव्वत्थ देवा न उववज्जंति। तिन्नि लेसाओ। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! माषपर्णी, मुद्‌गपर्णी, जीवक, सरसव, करेणुका, काकोली, क्षीरकाकोली, भंगी, णही, कृमिराशि, भद्रमुस्ता, लाँगली, पयोदकिण्णा, पयोदलता, हरेणुका और लोही, इन सब वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) आलुकवर्ग के समान मूलादि दश उद्देशक कहना। इस प्रकार इन पाँचों वर्गों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 838 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नेरइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति। जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिए-हिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो बेंदिय, नो तेइंदिय, नो चउरिंदिय, पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति। जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं

Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! नैरयिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, यावत्‌ देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं, देवों में आकर उत्पन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 839 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्ख- जोणिएहिंतो उववज्जंति? असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउय सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणि-एहिंतो उववज्जंति। जइ संखेज्जवासाउय-सण्णिपंचिंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं जलचरेहिंतो उववज्जंति–पुच्छा। गोयमा! जलचरेहिंतो उववज्जंति, जहा असण्णी जाव पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, नो अपज्जत्त-एहिंतो उववज्जंति। पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि नैरयिक संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से ? गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 840 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तिसागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं जहेव रयणप्पभाए उववज्जंतगस्स लद्धी सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा जाव भवादेसो त्ति। कालादेसं जहन्नेणं सागरोवमं अंतोमुहुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं बारस सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवत्तियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं रयणप्पभपुढविगमसरिसा नव वि गमगा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, जो शर्कराप्रभा पृथ्वी में नैरयिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हो, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य एक सागरोपम और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वालों में। भगवन्‌ ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 841 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं सण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति। जइ सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउयसण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति। जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि वह नैरयिक मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह संज्ञी – मनुष्यों में से या असंज्ञी – मनुष्यों में से उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह संज्ञी – मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, असंज्ञी मनुष्यों में से उत्पन्न नहीं होता है। भगवन्‌ ! यदि वह संज्ञी – मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है तो क्या संख्येय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 842 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तिसागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? सो चेव रयणप्पभपुढविगमओ नेयव्वो, नवरं–सरीरोगाहणा जहन्नेणं रयणिपुहत्तं, उक्कोसेणं पंचधनुसयाइं। ठिती जहन्नेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एवं अनुबंधो वि। सेसं तं चेव जाव भवादेसो त्ति। कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं वासपुहत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं बारस सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भ-हियाइं,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – मनुष्य, जो शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो; वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य एक सागरोपम की और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वाले शर्कराप्रभा नैरयिकों में उत्पन्न होता है। भगवन्‌ ! वे जीव वहाँ एक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-२ परिमाण Hindi 843 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–असुरकुमारा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति। एवं जहेव नेरइयउद्देसए जाव– पज्जत्ताअसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवत्तिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभाग-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं रयणप्पभागमगसरिसा

Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! असुरकुमार कहाँ से – किस गति से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं। यावत्‌ देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों से आकर उत्पन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-३ थी ११ नागादि कुमारा Hindi 844 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नागकुमाराणं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति। जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो? एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तव्वया तहा एतेसिं पि जाव असण्णित्ति। जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय? गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय जाव उववज्जंति। असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते!

Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! नागकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? वे नैरयिकों से यावत्‌ उत्पन्न होते हैं, देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे न तो नैरयिकों से और न देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, वे तिर्यंचयोनिकों से या मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। (भगवन्‌ !) यदि वे (नागकुमार)
Showing 651 to 700 of 3444 Results