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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-३ अक्रिया | Hindi | 130 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] का अरई? के आनंदे? एत्थंपि अग्गहे चरे। सव्वं हासं परिच्चज्ज, आलीण-गुतो परिव्वए ॥
पुरिसा! तुममेव तुमं मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसि? Translated Sutra: उस (धूत – कल्प)योगी के लिए भला क्या अरति है और क्या आनन्द है? वह इस विषय में बिलकुल ग्रहण रहित होकर विचरण करे। वह सभी प्रकार के हास्य आदि त्याग करके इन्द्रियनिग्रह तथा मन – वचन – काया को तीन गुप्तियों से गुप्त करते हुए विचरण करे। हे पुरुष ! तू ही मेरा मित्र है, फिर बाहर अपने से भिन्न मित्र क्यों ढूँढ़ रहा है ? | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-३ अक्रिया | Gujarati | 130 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] का अरई? के आनंदे? एत्थंपि अग्गहे चरे। सव्वं हासं परिच्चज्ज, आलीण-गुतो परिव्वए ॥
पुरिसा! तुममेव तुमं मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसि? Translated Sutra: તે વિધુતકલ્પીને અરતિ શું? અને આનંદ શું ? તે આવા હર્ષ અને શોકના પ્રસંગોમાં અનાસક્ત થઈ વિચરે. સર્વ હાસ્યાદિ પ્રમાદનો ત્યાગ કરે, અને કાચબાની જેમ અંગો સંકોચીને સદા સંયમ – પાલન કરતાં વિચરે. હે જીવ ! તું સ્વયં જ તારો મિત્ર છે, તો બહારના અન્ય મિત્રને તું કેમ ઇચ્છે છે ? | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक | Hindi | 133 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं तीसे महइमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं परिकहेंति, तं जहा–
सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं,
सव्वाओ अदिन्नादानाओ वेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं।
तए णं ते समणोवासया थेराणं भगवंताणं अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता एवं वयासी– संजमेणं भंते! किंफले? तवे किंफले?
तए णं ते थेरा भगवंतो ते समणोवासए एवं वयासी–संजमे णं अज्जो! अणण्हयफले, तवे वोदाणफले।
तए णं ते समणोवासया थेरे भगवंते एवं वयासी–जइ णं भंते! संजमे अणण्हयफले, तवे वोदाणफले। Translated Sutra: तत्पश्चात् उन स्थविर भगवंतों ने उन श्रमणोपासकों तथा उस महती परीषद् (धर्मसभा) को केशीश्रमण की तरह चातुर्याम – धर्म का उपदेश दिया। यावत् वे श्रमणोपासक अपनी श्रमणोपासकता द्वारा आज्ञा के आराधक हुए। यावत् धर्म – कथा पूर्ण हुई। तदनन्तर वे श्रमणोपासक स्थविर भगवंतों से धर्मोपदेश सूनकर एवं हृदयंगम करके बड़े | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Hindi | 639 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा! तीसं वासाइं अगारवासमज्झावसित्ता अम्मापिईहिं देवत्तगएहिं समत्तपइण्णे एवं जहा भावणाए जाव एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए।
तए णं अहं गोयमा! पढमं वासं अद्धमासं अद्धमासेनं खममाणे अट्ठियगामं निस्साए पढमं अंतरवासं वासावासं उवागए। दोच्चं वासं मासं मासेनं खममाणे पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे जेणेव रायगिहे नगरे, जेणेव नालंदा बाहिरिया, जेणेव तंतुवायसाला, तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हामि, ओगिण्हित्ता तंतुवायसालाए एगदेसंसि वासावासं उवागए।
तए णं अहं गोयमा! पढमं Translated Sutra: उस काल उस समय में, हे गौतम ! मैं तीस वर्ष तक गृहवास में रहकर, माता – पिता के दिवंगत हो जाने पर भावना नामक अध्ययन के अनुसार यावत् एक देवदूष्य वस्त्र ग्रहण करके मुण्डित हुआ और गृहस्थावास को त्याग कर अनगार धर्म में प्रव्रजित हुआ। हे गौतम ! मैं प्रथम वर्ष में अर्द्धमास – अर्द्धमास क्षमण करते हुए अस्थिक ग्राम की निश्रा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Hindi | 645 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आनंदे नामं थेरे पगइभद्दए जाव विनीए छट्ठं-छट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से आनंदे थेरे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए एवं जहा गोयमसामी तहेव आपुच्छइ, तहेव जाव उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंते वीइ-वयइ।
तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते आनंदं थेरं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकरावणस्स अदूर-सामंतेणं वीइवयमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–एहि ताव आनंदा! इओ एगं महं उवमियं निसामेहि।
तए णं से आनंदे थेरे Translated Sutra: उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर का अन्तेवासी आनन्द नामक स्थविर था। वह प्रकृति से भद्र यावत् विनीत था और निरन्तर छठ – छठ का तपश्चरण करता हुआ और संयम एवं तप से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरता था। उस दिन आनन्द स्थविर ने अपने छठक्षमण के पारणे के दिन प्रथम पौरुषी में स्वाध्याय किया, यावत् – गौतमस्वामी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Hindi | 646 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं पभू णं भंते! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए? विसए णं भंते! गोसा-लस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए? समत्थे णं भंते! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगा-हच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए?
पभू णं आनंदा! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए। विसए णं आनंदा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए। समत्थे णं आनंदा! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए, नो चेव णं अरहंते भगवंते, पारियावणियं पुण करेज्जा। Translated Sutra: (आनन्द स्थविर – ) [प्र.] ‘भगवन् ! क्या मंखलिपुत्र गोशालक अपने तप – तेज से एक ही प्रहार में कूटाघात के समान जलाकर भस्मराशि करने में समर्थ हैं ? भगवन् ! मंखलिपुत्र गोशालक का यह यावत् विषयमात्र है अथवा वह ऐसा करने में समर्थ भी हैं ?’ ‘हे आनन्द ! मंखलिपुत्र गोशालक अपने तप – तेज से यावत् भस्म करने में समर्थ हैं। हे | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Hindi | 647 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं गच्छ णं तुमं आनंदा! गोयमाईणं समणाणं निग्गंथाणं एयमट्ठं परिकहेहि–मा णं अज्जो! तुब्भं केई गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएउ, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेउ, धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेउ, गोसाले णं मंखलिपुत्ते समणेहिं निग्गंथेहिं मिच्छं विप्पडिवन्ने।
तए णं से आनंदे थेरे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव गोयमादी समणा निग्गंथा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोयमादी समणे निग्गंथे आमंतेति, आमंतेत्ता एवं वयासी–एवं खलु अज्जो! छट्ठक्खमणपारणगंसि समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे Translated Sutra: (भगवन् – ) ‘इसलिए हे आनन्द ! तू जा और गौतम आदि श्रमण – निर्ग्रन्थों को यह बात कही कि – हे आर्यो! मंखलिपुत्र गोशालक के साथ कोई भी धार्मिक चर्चा न करे, धर्मसम्बन्धी प्रतिसारणा न करावे तथा धर्मसम्बन्धी प्रत्युपचार पूर्वक कोई प्रत्युपचार (तिरस्कार) न करे। क्योंकि (अब) मंखलिपुत्र गोशालक ने श्रमण – निर्ग्रन्थों के | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Hindi | 648 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जावं च णं आनंदे थेरे गोयमाईणं समणाणं निग्गंथाणं एयमट्ठं परिकहेइ, तावं च णं से गोसाले मंखलिपुत्ते हाला हलाए कुंभकारीए कुंभकारावणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता आजीविय-संघसंपरिवुडे महया अमरिसं वहमाणे सिग्घं तुरियं सावत्थिं नगरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवाग-च्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वदासी–सुट्ठु णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी, साहू णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी–गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी, गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी।
जे णं Translated Sutra: जब आनन्द स्थविर, गौतम आदि श्रमणनिर्ग्रन्थों को भगवान का आदेश कह रहे थे, तभी मंखलिपुत्र गोशालक आजीवकसंघ से परिवृत्त होकर हालाहला कुम्भकारी की दुकान से नीकलकर अत्यन्त रोष धारण किए शीघ्र एवं त्वरित गति से श्रावस्ती नगरी के मध्य में होकर कोष्ठक उद्यान में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास आया। फिर श्रमण भगवान | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक | Gujarati | 133 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं तीसे महइमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं परिकहेंति, तं जहा–
सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं,
सव्वाओ अदिन्नादानाओ वेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं।
तए णं ते समणोवासया थेराणं भगवंताणं अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता एवं वयासी– संजमेणं भंते! किंफले? तवे किंफले?
तए णं ते थेरा भगवंतो ते समणोवासए एवं वयासी–संजमे णं अज्जो! अणण्हयफले, तवे वोदाणफले।
तए णं ते समणोवासया थेरे भगवंते एवं वयासी–जइ णं भंते! संजमे अणण्हयफले, तवे वोदाणफले। Translated Sutra: ત્યારે તે સ્થવિર ભગવંતોએ, તે શ્રાવકોને અને તે મહા – મોટી પર્ષદાને ચતુર્યામ ધર્મ કહ્યો. કેશીસ્વામીની માફક યાવત્ તે શ્રાવકોએ પોતાના શ્રાવકપણાથી તે સ્થવિરોની આજ્ઞાનું આરાધન કર્યું – યાવત્ – ધર્મકથા પૂર્ણ થઈ ત્યારે તે શ્રાવકો સ્થવિર ભગવંતો પાસે ધર્મ સાંભળીને, અવધારીને હૃષ્ટ – તુષ્ટ યાવત્ વિકસિતહૃદયી થયા. | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Gujarati | 639 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा! तीसं वासाइं अगारवासमज्झावसित्ता अम्मापिईहिं देवत्तगएहिं समत्तपइण्णे एवं जहा भावणाए जाव एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए।
तए णं अहं गोयमा! पढमं वासं अद्धमासं अद्धमासेनं खममाणे अट्ठियगामं निस्साए पढमं अंतरवासं वासावासं उवागए। दोच्चं वासं मासं मासेनं खममाणे पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे जेणेव रायगिहे नगरे, जेणेव नालंदा बाहिरिया, जेणेव तंतुवायसाला, तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हामि, ओगिण्हित्ता तंतुवायसालाए एगदेसंसि वासावासं उवागए।
तए णं अहं गोयमा! पढमं Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે હે ગૌતમ ! હું ૩૦ – વર્ષ સુધી ગૃહવાસમાં રહીને, માતા – પિતા દેવગત થયા પછી. એ પ્રમાણે જેમ ‘ભાવના’ અધ્યયનમાં કહ્યું તેમ યાવત્ એક દેવદૂષ્ય ગ્રહણ કરીને મુંડ થઈને, ઘરથી નીકળીને અણગારપણે પ્રવ્રજિત થયો. ત્યારે હે ગૌતમ ! હું પહેલા વર્ષાવાસમાં પંદર – પંદર દિવસના તપ કરતો અસ્થિગ્રામની નિશ્રાએ પહેલું ચોમાસું | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Gujarati | 645 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आनंदे नामं थेरे पगइभद्दए जाव विनीए छट्ठं-छट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से आनंदे थेरे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए एवं जहा गोयमसामी तहेव आपुच्छइ, तहेव जाव उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंते वीइ-वयइ।
तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते आनंदं थेरं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकरावणस्स अदूर-सामंतेणं वीइवयमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–एहि ताव आनंदा! इओ एगं महं उवमियं निसामेहि।
तए णं से आनंदे थेरे Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૪૫. તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરના શિષ્ય, આનંદ નામે સ્થવિર, જે પ્રકૃતિભદ્રક યાવત્ વિનીત હતા, નિરંતર છઠ્ઠ – છઠ્ઠના તપોકર્મ વડે સંયમ અને તપથી આત્માને ભાવિત કરતા વિચરતા હતા. ત્યારે તે આનંદ સ્થવિર છઠ્ઠ તપના પારણે પ્રથમ પોરિસિમાં જેમ ગૌતમસ્વામીમાં કહેલું તેમ પૂછે છે, તે રીતે યાવત્ ઉચ્ચ – નીચ – મધ્યમ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Gujarati | 646 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं पभू णं भंते! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए? विसए णं भंते! गोसा-लस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए? समत्थे णं भंते! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगा-हच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए?
पभू णं आनंदा! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए। विसए णं आनंदा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए। समत्थे णं आनंदा! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए, नो चेव णं अरहंते भगवंते, पारियावणियं पुण करेज्जा। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૪૫ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Gujarati | 647 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं गच्छ णं तुमं आनंदा! गोयमाईणं समणाणं निग्गंथाणं एयमट्ठं परिकहेहि–मा णं अज्जो! तुब्भं केई गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएउ, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेउ, धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेउ, गोसाले णं मंखलिपुत्ते समणेहिं निग्गंथेहिं मिच्छं विप्पडिवन्ने।
तए णं से आनंदे थेरे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव गोयमादी समणा निग्गंथा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोयमादी समणे निग्गंथे आमंतेति, आमंतेत्ता एवं वयासी–एवं खलु अज्जो! छट्ठक्खमणपारणगंसि समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૪૫ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Gujarati | 648 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जावं च णं आनंदे थेरे गोयमाईणं समणाणं निग्गंथाणं एयमट्ठं परिकहेइ, तावं च णं से गोसाले मंखलिपुत्ते हाला हलाए कुंभकारीए कुंभकारावणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता आजीविय-संघसंपरिवुडे महया अमरिसं वहमाणे सिग्घं तुरियं सावत्थिं नगरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवाग-च्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वदासी–सुट्ठु णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी, साहू णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी–गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी, गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी।
जे णं Translated Sutra: જ્યારે આનંદ સ્થવિર ગૌતમાદિ શ્રમણનિર્ગ્રન્થને આ વાત કહેતા હતા, તેટલામાં તે ગોશાલક મંખલિપુત્ર હાલાહલા કુંભારણની કુંભકારાપણથી નીકળીને, આજીવિક સંઘથી પરીવરીને મહા રોષને ધારણ કરેલો શીઘ્ર, ત્વરિત યાવત્ શ્રાવસ્તીનગરીની મધ્યેથી નીકળ્યો. નીકળીને કોષ્ઠક ચૈત્યમાં ભગવંત મહાવીર પાસે આવ્યો, આવીને ભગવંતની સમીપ | |||||||||
Chandrapragnapati | चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
प्राभृत-प्राभृत-१ | Hindi | 61 | Sutra | Upang-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते मुहुत्ताणं नामधेज्जा आहिताति वदेज्जा? ता एगमेगस्स णं अहोरत्तस्स तीसं मुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहा– Translated Sutra: हे भगवन् ! मुहूर्त्त के नाम किस प्रकार हैं ? एक अहोरात्र के तीस मुहूर्त्त बताये हैं – यथानुक्रम से – इस प्रकार से हैं। रौद्र, श्रेयान्, मित्रा, वायु, सुग्रीव, अभिचन्द्र, माहेन्द्र, बलवान्, ब्रह्मा, बहुसत्य, ईशान तथा – त्वष्ट्रा, भावितात्मा, वैश्रवण, वरुण, आनंद, विजया, विश्वसेन, प्रजापति, उपशम तथा – गंधर्व, अग्निवेश, | |||||||||
Chandrapragnapati | चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
प्राभृत-प्राभृत-१ | Hindi | 63 | Gatha | Upang-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तट्ठे य भावियप्पा, वेसमणे वारुणे य आनंदे ।
विजए य वीससेणे, पायावच्चे चेव उवसमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६१ | |||||||||
Chandrapragnapati | ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
प्राभृत-प्राभृत-१ | Gujarati | 63 | Gatha | Upang-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तट्ठे य भावियप्पा, वेसमणे वारुणे य आनंदे ।
विजए य वीससेणे, पायावच्चे चेव उवसमे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૧ | |||||||||
Ganividya | गणिविद्या | Ardha-Magadhi |
षष्ठंद्वारं मुहूर्तं |
Hindi | 56 | Gatha | Painna-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मित्ते नंदे तह सुट्ठिए य अभिई चंदे तहेव य ।
वरुणऽग्गिवेस ईसाने आनंदे विजए इ य ॥ Translated Sutra: मित्र, नन्द, सुस्थित, अभिजित, चन्द्र, वारुण, अग्नि, वेश्य, ईशान, आनन्द, विजय। इस मुहूर्त्त योग में शिष्य – दीक्षा, व्रत – उपस्थापना और गणि वाचक की अनुज्ञा करना। बम्भ, वलय, वायु, वृषभ और वरुण मुहूर्त्त – योग में उत्तमार्थ (मोक्ष) के लिए पादपोपगमन अनशन करना। सूत्र – ५६–५८ | |||||||||
Ganividya | ગણિવિદ્યા | Ardha-Magadhi |
षष्ठंद्वारं मुहूर्तं |
Gujarati | 56 | Gatha | Painna-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मित्ते नंदे तह सुट्ठिए य अभिई चंदे तहेव य ।
वरुणऽग्गिवेस ईसाने आनंदे विजए इ य ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૬. મિત્ર, નંદ, સુસ્થિત, અભિજિત, ચંદ્ર, વારુણ, અગ્નિવેશ્ય, ઇશાન, આનંદ અને વિજય. સૂત્ર– ૫૭. આ મુહૂર્ત્ત યોગમાં શિષ્ય દીક્ષા, વ્રત ઉપસ્થાપના અને ગણિવાચકની અનુજ્ઞા કરવી. સૂત્ર– ૫૮. બંભ, વલય, વાયુ, વૃષભ અને વરુણ મુહૂર્ત્ત – યોગમાં મોક્ષ – ઉત્તમાર્થને માટે પાદપોપગમન અનશન કરવું. સૂત્ર સંદર્ભ– ૫૬–૫૮ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 297 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तट्ठे य भावियप्पा, वेसमणे वारुणे य आनंदे ।
विजए य वीससेने, पायावच्चे उवसमे य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८९ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 141 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! महाविदेहे वासे गंधमायणे नामं वक्खारपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! निलवंतस्स वासहर-पव्वयस्स दाहिणेणं, मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपच्चत्थिमेणं, गंधिलावइस्स विजयस्स पुरत्थिमेणं, उत्तरकुराए पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे गंधमायणे नामं वक्खारपव्वए पन्नत्ते–
उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिन्नेतीसं जोयणसहस्साइं दुन्नि य नउत्तरे जोयणसए छच्च य एगूनवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं, निलवंतवासहरव्वयंतेणं चत्तारि जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाइं उव्वेहेणं, पंच जोयणसयाइं विक्खंभेणं, तयनंतरं च णं मायाए-मायाए उस्सेहुव्वेह परिवुड्ढीए परिवड्ढमाणे-परिवड्ढमाणे Translated Sutra: भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में गन्धमादन नामक वक्षस्कारपर्वत कहाँ है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, मन्दरपर्वत – वायव्य कोण में, गन्धिलावती विजय के पूर्व में तथा उत्तरकुरु के पश्चिम में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत है। वह उत्तर – दक्षिण लम्बा और पूर्व – पश्चिम चौड़ा है। उसकी लम्बाई ३०२०९ – ६/१९ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 219 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नंदुत्तरा य नंदा, आनंदा नंदिवद्धणा ।
विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २१८ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 227 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के नामं देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मघवं पागसासने दाहिणड्ढलोगाहिवई बत्तीसविमाणावाससयसहस्साहिवई एरावणवाहने सुरिंदे अरयंबर-वत्थधरे आलइयमालमउडे णवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगल्ले भासुरबोंदी पलंबवन-माले महिड्ढीए महज्जुईए महाबले महायसे महानुभागे महासोक्खे सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाने समाए सुहम्माए सक्कंसि सीहासनंसि निसन्ने।
से णं तत्थ बत्तीसाए विमानावाससयसाहस्सीणं, चउरासीए सामानियसाहस्सीणं, तायत्ती-साए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, Translated Sutra: उस काल, उस समय शक्र नामक देवेन्द्र, देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर, शतक्रतु, सहस्राक्ष, मघवा, पाक – शासन, दक्षिणार्धलोकाधिपति, बत्तीस लाख विमानों के स्वामी, ऐरावत हाथी पर सवारी करनेवाले, सुरेन्द्र, निर्मल वस्त्रधारी, मालायुक्त मुकुट धारण किये हुए, उज्ज्वल स्वर्ण के सुन्दर, चित्रित चंचल – कुण्डलों से जिसके कपोल सुशोभित | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Gujarati | 141 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! महाविदेहे वासे गंधमायणे नामं वक्खारपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! निलवंतस्स वासहर-पव्वयस्स दाहिणेणं, मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपच्चत्थिमेणं, गंधिलावइस्स विजयस्स पुरत्थिमेणं, उत्तरकुराए पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे गंधमायणे नामं वक्खारपव्वए पन्नत्ते–
उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिन्नेतीसं जोयणसहस्साइं दुन्नि य नउत्तरे जोयणसए छच्च य एगूनवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं, निलवंतवासहरव्वयंतेणं चत्तारि जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाइं उव्वेहेणं, पंच जोयणसयाइं विक्खंभेणं, तयनंतरं च णं मायाए-मायाए उस्सेहुव्वेह परिवुड्ढीए परिवड्ढमाणे-परिवड्ढमाणे Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૪૧. ભગવન્ ! મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં ગંધમાદન વક્ષસ્કાર પર્વત ક્યાં કહેલ છે ? ગૌતમ ! નીલવંત વર્ષધર પર્વતની દક્ષિણે, મેરુ પર્વતની ઉત્તર – પશ્ચિમે, ગંધીલાવતી વિજયની પૂર્વે, ઉત્તરકુરુની પશ્ચિમે – અહીં મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં ગંધમાદન નામે વક્ષસ્કાર પર્વત છે. તે ઉત્તર – દક્ષિણ લાંબો, પૂર્વ – પશ્ચિમ પહોળો, ૩૦,૨૦૯ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Gujarati | 219 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नंदुत्तरा य नंदा, आनंदा नंदिवद्धणा ।
विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૧૮ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Gujarati | 227 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के नामं देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मघवं पागसासने दाहिणड्ढलोगाहिवई बत्तीसविमाणावाससयसहस्साहिवई एरावणवाहने सुरिंदे अरयंबर-वत्थधरे आलइयमालमउडे णवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगल्ले भासुरबोंदी पलंबवन-माले महिड्ढीए महज्जुईए महाबले महायसे महानुभागे महासोक्खे सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाने समाए सुहम्माए सक्कंसि सीहासनंसि निसन्ने।
से णं तत्थ बत्तीसाए विमानावाससयसाहस्सीणं, चउरासीए सामानियसाहस्सीणं, तायत्ती-साए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે શક્ર નામે દેવેન્દ્ર દેવરાજ, વજ્રપાણી, પુરંદર, શતક્રતુ, સહસ્રાક્ષ, મઘવા, પાકશાસન, દાક્ષિણાર્દ્ધ લોકાધિપતિ, બત્રીશ લાખ વિમાનાધિપતિ, ઐરાવણ વાહન, સુરેન્દ્ર, નિર્મળ વસ્ત્રધારી, માળા – મુગટ ધારણ કરેલ, ઉજ્જવલ સુવર્ણના સુંદર – ચિત્રિત – ચંચલ કુંડલોથી જેનું કપોલ સુશોભિત છે, દેદીપ્યમાન શરીરધારી, લાંબી | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Gujarati | 297 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तट्ठे य भावियप्पा, वेसमणे वारुणे य आनंदे ।
विजए य वीससेने, पायावच्चे उवसमे य ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૮૬ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 294 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] खोदोदण्णं समुद्दं नंदिस्सरवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। पुव्वक्कमेणं जाव जीवोववातो।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नंदिस्सरवरे दीवे? नंदिस्सरवरे दीवे? गोयमा! नंदिस्सरवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ जाव विहरंति, नवरं–खोदोदग-पडिहत्थाओ पव्वतगादी पुव्वभणिता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा।
अदुत्तरं च णं गोयमा! नंदिस्सरवरे दीवे चउद्दिसिं चक्कवालविक्खंभेणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि अंजनगपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं। ते णं अंजनग-पव्वता Translated Sutra: क्षोदोदकसमुद्र को नंदीश्वर नाम का द्वीप चारों ओर से घेर कर स्थित है। यह गोल और वलयाकार है। यह नन्दीश्वरद्वीप समचक्रवाल विष्कम्भ से युक्त है। परिधि से लेकर जीवोपपाद तक पूर्ववत्। भगवन् ! नंदीश्वरद्वीप के नाम का क्या कारण है ? गौतम ! नंदीश्वरद्वीप में स्थान – स्थान पर बहुत – सी छोटी – छोटी बावड़ियाँ यावत् | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Gujarati | 294 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] खोदोदण्णं समुद्दं नंदिस्सरवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। पुव्वक्कमेणं जाव जीवोववातो।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नंदिस्सरवरे दीवे? नंदिस्सरवरे दीवे? गोयमा! नंदिस्सरवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ जाव विहरंति, नवरं–खोदोदग-पडिहत्थाओ पव्वतगादी पुव्वभणिता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा।
अदुत्तरं च णं गोयमा! नंदिस्सरवरे दीवे चउद्दिसिं चक्कवालविक्खंभेणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि अंजनगपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं। ते णं अंजनग-पव्वता Translated Sutra: નંદીશ્વર નામક દ્વીપ વૃત્ત – વલયાકાર સંસ્થિત છે. આદિ પૂર્વવત્, તે ક્ષોદોદ સમુદ્રને ચોતરફથી ઘેરીને રહેલ છે. પરિધિ, પદ્મવરવેદિકા, વનખંડ, દ્વાર, દ્વારાંતર, પ્રદેશ, જીવ પૂર્વવત્. ભગવન્ ! નંદીશ્વરદ્વીપના નામનું કારણ શું છે ? ગૌતમ! સ્થાને સ્થાને ઘણી નાની – નની વાવડી યાવત્ બિલપંક્તિઓ છે, જેમાં ઇક્ષુરસ જેવું જળ ભરેલું | |||||||||
Kalpavatansika | कल्पावतंसिका | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ पद्म |
Hindi | 1 | Sutra | Upang-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पढमस्स वग्गस्स निरयावलियाणं अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स कप्पवडिंसियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पन्नत्ता?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–
पउमे महापउमे, भद्दे सुभद्दे पउमभद्दे ।
पउमसेने पउमगुम्मे, नलिनिगुम्मे आनंदे नंदने ॥
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स कप्पवडिंसियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे Translated Sutra: भदन्त ! यदि श्रमण यावत् निर्वाण – संप्राप्त भगवान् महावीर ने निरयावलिका नामक उपांग के प्रथम वर्ग का यह अर्थ कहा तो हे भदन्त ! दूसरे वर्ग कल्पवतंसिका का क्या अर्थ कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! कल्पवतंसिका के दस अध्ययन कहे हैं। – पद्म, महापद्म, भद्र, सुभद्र, पद्मप्रभ, पद्मसेन, पद्मगुल्म, नलिनगुल्म, आनन्द और नन्दन भगवन् | |||||||||
Kalpavatansika | કલ્પાવતંસિકા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ पद्म |
Gujarati | 1 | Sutra | Upang-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पढमस्स वग्गस्स निरयावलियाणं अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स कप्पवडिंसियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पन्नत्ता?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–
पउमे महापउमे, भद्दे सुभद्दे पउमभद्दे ।
पउमसेने पउमगुम्मे, नलिनिगुम्मे आनंदे नंदने ॥
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स कप्पवडिंसियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे Translated Sutra: ભગવન્ ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે ઉપાંગના પહેલા વર્ગમાં નિરયાવલિકાનો આ અર્થ કહેલ છે, તો ભગવન્ ! કલ્પવતંસિકા નામે બીજા વર્ગના ભગવંત મહાવીરે કેટલા અધ્યયનો કહ્યા છે ? હે જંબૂ ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે કલ્પવતંસિકાના દશ અધ્યયનો કહ્યા છે. તે આ પ્રમાણે – પદ્મ, મહાપદ્મ, ભદ્ર, સુભદ્ર, પદ્મભદ્ર, પદ્મસેન, પદ્મગુલ્મ, નલિનિગુલ્મ, | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 1412 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] बाढं ति भाणिऊणं एवं णे मंगलं ति जंपंता ।
आनंदअंसुपादं मुंचंति गुणे सरंता से ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 1412 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] बाढं ति भाणिऊणं एवं णे मंगलं ति जंपंता ।
आनंदअंसुपादं मुंचंति गुणे सरंता से ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ अब्रह्म |
Hindi | 19 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण निसेवंति सुरगणा सअच्छरा मोह मोहिय मती, असुर भयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिस पवण थणिया। अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवादिय भूयवादियकंदिय महाकंदिय कूहंड पतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्व तिरिय जोइस विमाणवासि मणुयगणा, जलयर थलयर खहयराय मोहपडिबद्धचित्ता अवितण्हा कामभोग-तिसिया, तण्हाए बलवईए महईए समभिभूया गढिया य अतिमुच्छिया य, अबंभे ओसण्णा, तामसेन भावेण अणुम्मुक्का, दंसण-चरित्तमोहस्स पंजरं पिव करेंतिअन्नोन्नं सेवमाणा।
भुज्जो असुर सुर तिरिय मणुय भोगरत्ति विहार संपउत्ता य चक्कवट्टी सुरनरवतिसक्कया सुरवरव्व देवलोए भरह नग नगर नियम Translated Sutra: उस अब्रह्म नामक पापास्रव को अप्सराओं के साथ सुरगण सेवन करते हैं। कौन – से देव सेवन करते हैं ? जिनकी मति मोह के उदय से मूढ़ बन गई है तथा असुरकुमार, भुजगकुमार, गरुड़कुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार तथा स्तनितकुमार, ये भवनवासी, अणपन्निक, पणपण्णिक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, | |||||||||
Prashnavyakaran | પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ अब्रह्म |
Gujarati | 19 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण निसेवंति सुरगणा सअच्छरा मोह मोहिय मती, असुर भयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिस पवण थणिया। अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवादिय भूयवादियकंदिय महाकंदिय कूहंड पतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्व तिरिय जोइस विमाणवासि मणुयगणा, जलयर थलयर खहयराय मोहपडिबद्धचित्ता अवितण्हा कामभोग-तिसिया, तण्हाए बलवईए महईए समभिभूया गढिया य अतिमुच्छिया य, अबंभे ओसण्णा, तामसेन भावेण अणुम्मुक्का, दंसण-चरित्तमोहस्स पंजरं पिव करेंतिअन्नोन्नं सेवमाणा।
भुज्जो असुर सुर तिरिय मणुय भोगरत्ति विहार संपउत्ता य चक्कवट्टी सुरनरवतिसक्कया सुरवरव्व देवलोए भरह नग नगर नियम Translated Sutra: [૧] આ અબ્રહ્મને અપ્સરાઓ, દેવાંગનાઓ સહિત સુરગણ પણ સેવે છે. કયા દેવો તે સેવે છે?. મોહથી મોહિત મતિવાળા, અસુર, નાગ, ગરુડ, સુવર્ણ, વિદ્યુત, અગ્નિ, દ્વીપ, ઉદધિ, દિશિ, વાયુ, સ્તનિતકુમાર દેવો અબ્રહ્મનું સેવન કરે છે. અણપન્ની, પણપન્ની, ઋષિવાદિક, ભૂતવાદિક, ક્રંદિત, મહાક્રંદિત, કૂષ્માંડ અને પતંગદેવો તથા પિશાચ, ભૂત, યક્ષ, રાક્ષસ, | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 5 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरियाभे देवे सोहम्मे कप्पे सूरियाभे विमाने सभाए सुहम्माए सूरियाभंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं, चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अनिएहिं, सत्तहिं अनियाहिवईहिं, सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अन्नेहिं बहूहिं सूरियाभ-विमानवासीहिं वेमानिएहिं देवेहिं देवीहिं य सद्धिं संपरिवुडे महयाहयनट्ट गीय वाइय तंती तल ताल तुडिय घन मुइंग पडुप्पवादियरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति, इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासति।
तत्थ समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे (दीवे?) भारहे Translated Sutra: उस काल उस समय में सूर्याभ नामक देव सौधर्म स्वर्ग में सूर्याभ नामक विमान की सुधर्मा सभा में सूर्याभ सिंहासन पर बैठकर चार हजार सामानिक देवों, सपरिवार चार अग्रमहिषियों, तीन परिषदाओं, सात अनीकों, सात अनीकाधिपतियों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा और बहुत से सूर्याभ विमानवासी वैमानिक देवदेवियों सहित अव्याहत निरन्तर | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 54 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जनसद्दे इ वा जनवूहे इ वा जनबोले इ वा जनकलकले इ वा जनउम्मी इ वा जनसन्निवाए इ वा बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ–
एवं खलु देवानुप्पिया! पासावच्चिज्जे केसी नामं कुमारसमणे जातिसंपन्ने पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए नगरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तं महप्फलं खलु भो! देवानुप्पिया! तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमन Translated Sutra: तत्पश्चात् श्रावस्ती नगरी के शृंगाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, चतुर्मुखों, राजमार्गों और मार्गों में लोग आपस में चर्चा करने लगे, लोगों के झुंड इकट्ठे होने लगे, लोगों के बोलने की घोंघाट सूनाई पड़ने लगी, जन – कोलाहल होने लगा, भीड़ के कारण लोग आपस में टकराने लगे, एक के बाद एक लोगों के टोले आते दिखाई देने लगे, इधर | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 59 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से केसी कुमारसमणे अन्नया कयाइ पाडिहारियं पीढ फलग सेज्जा संथारगं पच्चप्पिणइ, सावत्थीओ नगरीओ कोट्ठगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव केयइ-अद्धे जनवए जेणेव सेयविया नगरी जेणेव मियवने उज्जानेतेणेव उवागच्छइ, अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति।
तए णं सेयवियाए नगरीए सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जणसद्दे इ वा जणवूहे इ वा जणबोले इ वा जणकलकले इ वा जणउम्मी इ वा जणसन्निवाए इ वा जाव परिसा निग्गच्छइ।
तए णं ते उज्जानपालगा Translated Sutra: तत्पश्चात् किसी समय प्रातिहारिक पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक आदि उन – उनके स्वामियों को सौंपकर केशी कुमारश्रमण श्रावस्ती नगरी और कोष्ठक चैत्य से बाहर नीकले। पाँच सौ अन्तेवासी अनगारों के साथ यावत् विहार करते हुए जहाँ केकयधर्म जनपद था, जहाँ सेयविया नगरी थी और उस नगरी का मृगवन नामक उद्यान था, वहाँ आए। यथाप्रतिरूप | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 60 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चित्ते सारही केसिस्स कुमारसमणस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता केसिं कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
एवं खलु भंते! अम्हं पएसी राया अधम्मिए जाव सयस्स वि जनवयस्स नो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेइ, तं जइ णं देवानुप्पिया! पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खेज्जा। बहुगुणतरं खलु होज्जा पएसिस्स रन्नो, तेसिं च बहूणं दुपय चउप्पय मिय पसु पक्खी सिरीसवाणं, तेसिं च बहूणं समण माहण भिक्खुयाणं, तं जइ णं देवानुप्पिया! पएसिस्स रन्नो Translated Sutra: तत्पश्चात् धर्म श्रवण कर और हृदय में धारण कर हर्षित, सन्तुष्ट, चित्त में आनंदित, अनुरागी, परम सौम्य – भाव युक्त एवं हर्षातिरेक से विकसितहृदय होकर चित्त सारथी ने केशी कुमारश्रमण से निवेदन किया – हे भदन्त ! हमारा प्रदेशी राजा अधार्मिक है, यावत् राजकर लेकर भी समीचीन रूप से अपने जनपद का पालन एवं रक्षण नहीं करता | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१७. रत्नत्रयसूत्र | Hindi | 211 | View Detail | ||
Mool Sutra: नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा।
अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं।।४।। Translated Sutra: सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता। ज्ञान के बिना चारित्रगुण नहीं होता। चारित्रगुण के बिना मोक्ष (कर्मक्षय) नहीं होता और मोक्ष के बिना निर्वाण (अनंतआनंद) नहीं होता। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१७. रत्नत्रयसूत्र | Hindi | 211 | View Detail | ||
Mool Sutra: नादर्शनिनो ज्ञानं, ज्ञानेन विना न भवन्ति चरणगुणाः।
अगुणिनो नास्ति मोक्षः, नास्त्यमोक्षस्य निर्वाणम्।।४।। Translated Sutra: सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता। ज्ञान के बिना चारित्रगुण नहीं होता। चारित्रगुण के बिना मोक्ष (कर्मक्षय) नहीं होता और मोक्ष के बिना निर्वाण (अनंतआनंद) नहीं होता। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 99 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] थेरे णं मंडियपुत्ते तीसं वासाइं सामण्णपरियायं पाउणित्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
एगमेगे णं अहोरत्ते तीसं मुहुत्ता मुहुत्तग्गेणं पन्नत्ता एएसि णं तीसाए मुहुत्ताणं तीसं नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा– रोद्दे सेते मित्ते वाऊ सुपीए अभियंदे माहिंदे पलंबे बंभे सच्चे आनंदे विजए वीससेने वायावच्चे उवसमे ईसाने तिट्ठे भावियप्पा वेसमणे वरुणे सतरिसभे गंधव्वे अग्गिवेसायणे आतवं आवधं तट्ठवे भूमहे रिसभे सव्वट्ठसिद्धे रक्खसे।
अरे णं अरहा तीसं धणुइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
सहस्सारस्स णं देविंदस्स देवरन्नो तीसं सामानियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ।
पासे Translated Sutra: स्थविर मण्डितपुत्र तीस वर्ष श्रमण – पर्याय का पालन करके सिद्ध, बुद्ध हुए, यावत् सर्व दुःखों से रहित हुए। एक – एक अहोरात्र (दिन – रात) मुहूर्त्त – गणना की अपेक्षा तीस मुहूर्त्त का कहा गया है। इन तीस मुहूर्त्तों के तीस नाम हैं। जैसे – रौद्र, शक्त, मित्र, वायु, सुपीत, अभिचन्द्र, माहेन्द्र, प्रलम्ब, ब्रह्म, सत्य, आनन्द, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 306 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दिन्ने वाराहे पुन, आनंदे गोथुभे सुहम्मे य मंदर जसे अरिट्ठे ।
चक्काउह सयंभु कुंभे य भिसए य इंद कुंभे, वरदत्ते दिन्न इंदभूती य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३०४ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 328 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिविट्ठू य दुविट्ठू य, सयंभू पुरिसुत्तमे ।
पुरिससीहे तह पुरिसपुंडरीए दत्ते नारायणे कण्हे ॥
अयले विजए भद्दे, सुप्पभे य सुदंसणे ।
आनंदे णंदणे पउमे, रामे यावि अपच्छिमे ॥ Translated Sutra: उनमें वासुदेवों के नाम इस प्रकार हैं – १. त्रिपृष्ठ, २. द्विपृष्ठ, ३. स्वयम्भू, ४. पुरुषोत्तम, ५. पुरुषसिंह, ६. पुरुषपुंडरीक, ७. दत्त, ८. नारायण (लक्ष्मण) और ९. कृष्ण। बलदेवों के नाम इस प्रकार हैं – १. अचल, २. विजय, ३. भद्र, ४. सुप्रभ, ५. सुदर्शन, ६. आनन्द, ७. नन्दन, ८. पद्म और ९. अन्तिम बलदेव राम। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 370 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दुविट्ठू य तिविट्ठू य, आगमेसाण वण्हिणो जयंते विजए भद्दे ।
सुप्पभे य सुदंसणे आनंदे नंदने पउमे, संकरिसणे य अपच्छिमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३६९ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 370 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दुविट्ठू य तिविट्ठू य, आगमेसाण वण्हिणो जयंते विजए भद्दे ।
सुप्पभे य सुदंसणे आनंदे नंदने पउमे, संकरिसणे य अपच्छिमे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Gujarati | 99 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] थेरे णं मंडियपुत्ते तीसं वासाइं सामण्णपरियायं पाउणित्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
एगमेगे णं अहोरत्ते तीसं मुहुत्ता मुहुत्तग्गेणं पन्नत्ता एएसि णं तीसाए मुहुत्ताणं तीसं नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा– रोद्दे सेते मित्ते वाऊ सुपीए अभियंदे माहिंदे पलंबे बंभे सच्चे आनंदे विजए वीससेने वायावच्चे उवसमे ईसाने तिट्ठे भावियप्पा वेसमणे वरुणे सतरिसभे गंधव्वे अग्गिवेसायणे आतवं आवधं तट्ठवे भूमहे रिसभे सव्वट्ठसिद्धे रक्खसे।
अरे णं अरहा तीसं धणुइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
सहस्सारस्स णं देविंदस्स देवरन्नो तीसं सामानियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ।
पासे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૪ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 306 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दिन्ने वाराहे पुन, आनंदे गोथुभे सुहम्मे य मंदर जसे अरिट्ठे ।
चक्काउह सयंभु कुंभे य भिसए य इंद कुंभे, वरदत्ते दिन्न इंदभूती य ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 328 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिविट्ठू य दुविट्ठू य, सयंभू पुरिसुत्तमे ।
पुरिससीहे तह पुरिसपुंडरीए दत्ते नारायणे कण्हे ॥
अयले विजए भद्दे, सुप्पभे य सुदंसणे ।
आनंदे णंदणे पउमे, रामे यावि अपच्छिमे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-२ | Hindi | 329 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जे से पुरत्थिमिल्ले अंजनगपव्वते, तस्स णं चउद्दिसिं चत्तारि नंदाओ पुक्खरिणीओ पन्नत्ताओ, तं जहा –णंदुत्तरा, नंदा, आनंदा, नंदिवद्धणा। ताओ णं नंदाओ पुक्खरिणीओ एगं जोयणसयसहस्सं आयामेणं, पण्णासं जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, दसजोयणसत्ताइं उव्वेहेणं।
तासि णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पन्नत्ता।
तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरतो चत्तारि तोरणा पन्नत्ता, तं जहा– पुरत्थिमे णं, दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, उत्तरे णं।
तासि णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि वनसंडा पन्नत्ता, तं जहा–पुरतो, दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, Translated Sutra: पूर्व दिशावर्ती अंजनक पर्वत की चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करणियाँ हैं। उनके नाम इस प्रकार है – नंदुत्तरा, नंदा, आनंदा और नंदिवर्धना। उन पुष्करणियों की लम्बाई एक लाख योजन है। चौड़ाई पचास हजार योजन है और गहराई एक हजार योजन है। प्रत्येक पुष्करिणी की चारों दिशाओं में त्रिसोपान प्रतिरुपक हैं। उन त्रिसोपान |