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Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-९ ईन्द्रिय Hindi 205 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कइविहे णं भंते! इंदियविसए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे इंदियविसए पन्नत्ते, तं जहा–सोतिंदियविसए चक्खिंदियविसए घाणिंदिय-विसए रसिंदियविसए फासिंदियविसए। जीवाभिगमे जोइसियउद्देसओ नेयव्वो अपरिसेसो।

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ श्रीगौतमस्वामी ने इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! इन्द्रियों के विषय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! इन्द्रियों के विषय पाँच प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – श्रोत्रेन्द्रिय – विषय इत्यादि। इस सम्बन्ध में जीवाभिगमसूत्र में कहा हुआ ज्योतिष्क उद्देशक सम्पूर्ण कहना चाहिए।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-१ सूर्य Hindi 218 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं अणं-तपुरक्खडे समयंसि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ? हंता गोयमा! जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तह चेव जाव पडिवज्जइ। जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं पच्चत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में वर्षाऋतु का प्रथम समय होता है, तब जम्बूद्वीप में मन्दर – पर्वत से पूर्व में वर्षाऋतु का प्रथम समय अनन्तर – पुरस्कृत समय में होता है ? हाँ, गौतम ! यह इसी तरह
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-१ सूर्य Hindi 219 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिणमागच्छंति, जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया सच्चेव सव्वा अपरिसेसिया लवणसमुद्दस्स वि भाणियव्वा, नवरं–अभिलावो इमो जाणियव्वो। जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ, तं चेव जाव तदा णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं राई भवति। एएणं अभिलावेणं नेयव्वं जाव जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि उस्सप्पिणी अवट्ठिएणं तत्थ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लवणसमुद्र में सूर्य ईशानकोण में उदय होकर क्या अग्निकोण में जाते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम! जम्बूद्वीप में सूर्यों के समान यहाँ लवणसमुद्रगत सूर्यों के सम्बन्ध में भी कहना। विशेष बात यह है कि इस वक्तव्यता में पाठ का उच्चारण इस प्रकार करना। भगवन्‌ ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है, इत्यादि
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-२ वायु Hindi 220 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी–अत्थि णं भंते! ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति? हंता अत्थि। अत्थि णं भंते! पुरत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति? हंता अत्थि। एवं पच्चत्थिमे णं, दाहिणे णं, उत्तरे णं, उत्तर-पुरत्थिमे णं, दाहिणपच्चत्थिमे णं, दाहिण-पुरत्थिमे णं उत्तर-पच्चत्थिमेणं। जया णं भंते! पुरत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति, तया णं पच्चत्थिमे ण वि ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति; जया णं पच्चत्थिमे णं ईसिं पुरेवाया पत्था वाया मंदा वाया महावाया वायंति, तया णं पुरत्थिमे ण वि? हंता

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ (श्री गौतमस्वामी ने) इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! क्या ईषत्पुरोवात (ओस आदि से कुछ स्निग्ध, या गीली हवा), पथ्यवात (वनस्पति आदि के लिए हितकर वायु), मन्दवात (धीमे – धीमे चलने वाली हवा), तथा महावात, प्रचण्ड तूफानी वायु बहती है ? हाँ, गौतम ! पूर्वोक्त वायु (हवाएं) बहती हैं। भगवन्‌ ! पूर्व दिशा से ईषत्पुरोवात,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-३ जालग्रंथिका Hindi 224 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किं साउए संकमइ? निराउए संकमइ? गोयमा! साउए संकमइ, नो निराउए संकमइ। से णं भंते! आउए कहिं कडे? कहिं समाइण्णे? गोयमा! पुरिमे भवे कडे, पुरिमे भवे समाइण्णे। एवं जाव वेमाणियाणं दंडओ। से नूनं भंते! जे जं भविए जोणिं उववज्जित्तए, से तमाउयं पकरेइ, तं जहा–नेरइयाउयं वा? तिरिक्खजोणियाउयं वा? मनुस्साउयं वा? देवाउयं वा? हंता गोयमा! जे जं भविए जोणिं उववज्जित्तए, से तमाउयं पकरेइ, तं जहा–नेरइयाउयं वा, तिरिक्खजोणियाउयं वा, मनुस्साउयं वा, देवाउयं वा। नेरइयाउयं पकरेमाणे सत्तविहं पकरेइ, तं जहा– रयणप्पभापुढविनेरइयाउयं वा, सक्करप्पभापुढविनेरइयाउयं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो जीव नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, क्या वह जीव यहीं से आयुष्य – युक्त होकर नरक में जाता है, अथवा आयुष्य रहित होकर जाता है ? गौतम ! वह यहीं से आयुष्ययुक्त होकर नरक में जाता है, परन्तु आयुष्यरहित होकर नरक में नहीं जाता। हे भगवन्‌ ! उस जीव ने वह आयुष्य कहाँ बाँधा ? और उस आयुष्य – सम्बन्धी आचरण कहाँ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 225 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनुस्से आउडिज्जमाणाइं सद्दाइं सुणेइ, तं जहा–संखसद्दाणि वा, सिंगसद्दाणि वा, संखियस-द्दाणि वा, खरमुहीसद्दाणि वा, पोयासद्दाणि वा, पिरिपिरियासद्दाणि वा, पणवसद्दाणि वा, पडहसद्दाणि वा, भंभासद्दाणि वा, होरं-भसद्दाणि वा, भेरिसद्दाणि वा, ज्झल्लरीसद्दाणि वा, दुंदुभिसद्दाणि वा, तताणि वा, वितताणि वा, धणाणि वा, ज्झुसिराणि वा? हंता गोयमा! छउमत्थे णं मनुस्से आउडिज्जमाणाइं सद्दाइं सुणेइ, तं जहा–संखसद्दाणि वा जाव ज्झुसिराणि वा। ताइं भंते! किं पुट्ठाइं सुणेइ? अपुट्ठाइं सुणेइ? गोयमा! पुट्ठाइं सुणेइ, नो अपुट्ठाइं सुणेइ। जाइ भंते! पुट्ठाइं सुणेइ ताइं किं ओगाढाइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! छद्मस्थ मनुष्य क्या बजाये जाते हुए वाद्यों (के) शब्दों को सूनता है ? यथा – शंख के शब्द, रणसींगे के शब्द, शंखिका के शब्द, खरमुही के शब्द, पोता के शब्द, परिपीरिता के शब्द, पणव के शब्द, पटह के शब्द, भंभा के शब्द, झल्लरी के शब्द, दुन्दुभि के शब्द, तत शब्द, विततशब्द, घनशब्द, शुषिरशब्द, इत्यादि बाजों के शब्दों को। हाँ,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 228 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अइमुत्ते नामं कुमार-समणे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए। तए णं से अइमुत्ते कुमार-समणे अन्नया कयाइ महावुट्ठिकायंसि निवयमाणंसि कक्ख-पडिग्गहरयहरणमायाए बहिया संपट्ठिए विहाराए। तए णं से अइमुत्ते कुमार-समणे वाहयं वहमाणं पासइ, पासित्ता मट्टियाए पालिं बंधइ, बंधित्ता नाविया मे, नाविया मे नाविओ विव णावमयं पडिग्गहगं उदगंसि पव्वाहमाणे-नव्वाहमाणे अभिरमइ। तं च थेरा अद्दक्खु। जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वदासी– एवं खलु देवानुप्पियाणं

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के अन्तेवासी अतिमुक्तक नामक कुमार श्रमण थे। वे प्रकृति से भद्र यावत्‌ विनीत थे। पश्चात्‌ वह अतिमुक्तक कुमार श्रमण किसी दिन मूसलधार वर्षा पड़ रही थी, तब कांख में अपने रजोहरण तथा पात्र लेकर बाहर स्थण्डिल भूमिका में (बड़ी शंका निवारण) के लिए रवाना हुए। तत्पश्चात्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 229 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं महासुक्काओ कप्पाओ, महासामाणाओ विमानाओ दो देवा महिड्ढिया जाव महानुभागा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउब्भूया। तए णं ते देवा समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, मनसा चेव इमं एयारूवं वागरणं पुच्छंति– कति णं भंते! देवानुप्पियाणं अंतेवासीसयाइं सिज्झिहिंति जाव अंतं करेहिंति? तए णं समणे भगवं महावीरे तेहिं देवेहिं मनसे पुट्ठे तेसिं देवाणं मनसे चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! ममं सत्त अंतेवासीसयाइं सिज्झिहिंति जाव अंतं करेहिंति। तए णं देवा समणेणं भगवया महावीरेणं मनसे पुट्ठेणं मनसे चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरिया समाणा

Translated Sutra: उस काल और उस समय में महाशुक्र कल्प से महासामान नामक महाविमान (विमान) से दो महर्द्धिक यावत्‌ महानुभाग देव श्रमण भगवान महावीर के पास प्रगट हुए। तत्पश्चात्‌ उन देवों ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके उन्होंने मन से ही इस प्रकार का ऐसा प्रश्न पूछा – भगवन्‌ ! आपके कितने सौ शिष्य सिद्ध होंगे यावत्‌ सर्व
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 236 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा इहगएणं केवलिणा सद्धिं आलावं वा, संलावं वा करेत्तए? हंता पभू। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–पभू णं अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा इहगएणं केवलिणा सद्धिं आलावं वा, संलावं वा करेत्तए? गोयमा! जण्णं अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा अट्ठं वा हेउं वा पसिणं वा कारणं वा वागरणं वा पुच्छंति, तण्णं इहगए केवली अट्ठे वा हेउं वा पसिणं वा कारणं वा वागरणं वा वागरेइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पभू णं अनुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा इहगएणं केवलिणा सद्धिं आलावं वा, संलावं वा करेत्तए। जण्णं भंते! इहगए केवली

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या अनुत्तरोपपातिक देव अपने स्थान पर रहे हुए ही, यहाँ रहे हुए केवली के साथ आलाप और संलाप करने में समर्थ हैं ? गौतम ! हाँ, हैं। भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? हे गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देव अपने स्थान पर रहे हुए ही, जो अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण अथवा व्याकरण (व्याख्या) पूछते हैं, उसका उत्तर यहाँ रहे हुए केवली
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 240 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! चोद्दसपुव्वी घडाओ घडसहस्सं, पडाओ पडसहस्सं, कडाओ कडसहस्सं, रहाओ रहसहस्सं, छत्ताओ छत्तसहस्सं, दंडाओ दंडसहस्सं अभिनिव्वट्टेत्ता उवदंसेत्तए? हंता पभू। से केणट्ठेणं पभू चोद्दसपुव्वी जाव उवदंसेत्तए? गोयमा! चोद्दसपुव्विस्स णं अनंताइं दव्वाइं उक्कारियाभेएणं भिज्जमाणाइं लद्धाइं पत्ताइं अभिसमन्नागयाइं भवंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पभू णं चोद्दसपुव्वी घडाओ घडसहस्सं, पडाओ पडसहस्सं, कडाओ कडसहस्सं, रहाओ रहसहस्सं, छत्ताओ छत्तसहस्सं, दंडाओ दंडसहस्सं अभिनिव्वट्टेत्ता उवदंसेत्तए। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या चतुर्दशपूर्वधारी (श्रुतकेवली) एक घड़े में से हजार घड़े, एक वस्त्र में से हजार वस्त्र, एक कट में से हजार कट, एक रथ में से हजार रथ, एक छत्र में से हजार छत्र और एक दण्ड में से हजार दण्ड करके दिखलाने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! वे ऐसा करके दिखलाने में समर्थ हैं। भगवन्‌ ! चतुर्दशपूर्वधारी एक घट में से हजार घट यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 245 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गाहावइस्स णं भंते! भंडं विक्किणमाणस्स केइ भंडं अवहरेज्जा, तस्स णं भंते! भंडं अनुगवेसमाणस्स किं आरंभिया किरिया कज्जइ? पारिग्गहिया किरिया कज्जइ? मायावत्तिया किरिया कज्जइ? अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ? मिच्छादंसणवत्तिया किरिया कज्जइ? गोयमा! आरंभिया किरिया कज्जइ, पारिग्गहिया किरिया कज्जइ, मायावत्तिया किरिया कज्जइ, अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ, मिच्छादंसणकिरिया सिय कज्जइ, सिय नो कज्जइ। अह से भंडे अभिसमन्नागए भवइ, तओ से पच्छा सव्वाओ ताओ पयणुईभवंति। गाहावइस्स णं भंते! भंडं विक्किणमाणस्स कइए भंडं साइज्जेजा, भंडे य से अनुवणीए सिया। गाहावइस्स णं भंते! ताओ भंडाओ किं आरंभिया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! भाण्ड बेचते हुए किसी गृहस्थ का वह किराने का माल कोई अपहरण कर ले, फिर उस किराने के सामान की खोज करते हुए उस गृहस्थ को, हे भगवन्‌ ! क्या आरम्भिकी क्रिया लगती है, या पारिग्रहिकी क्रिया लगती है ? अथवा मायाप्रत्ययिकी, अप्रत्याख्यानिकी या मिथ्यादर्शन – प्रत्ययिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! उनको आरम्भिकी क्रिया
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 246 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! धणुं परामुसइ, परामुसित्ता उसुं परामुसइ, परामुसित्ता ठाणं ठाइ, ठिच्चा आयत-कण्णातयं उसुं करेति, उड्ढं वेहासं उसुं उव्विहइ। तए णं से उसूं उड्ढं वेहासं उव्विहिए समाणे जाइं तत्थ पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं अभिहणइ वत्तेति लेसेति संघाएइ संघट्टेति परितावेइ किलामेइ, ठाणाओ ठाणं संकामेइ, जीवियाओ ववरोवेइ। तए णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए? गोयमा! जावं च णं से पुरिसे धनुं परामुसइ, उसुं परामुसइ, ठाणं ठाइ, आयतकण्णातयं उसुं करेंति, उड्ढं वेहासं उसुं उव्विहइ, तावं च णं से पुरिसे काइयाए अहिगरणियाए, पाओसियाए, पारिया-वणियाए, पाणाइवायकिरियाए–पंचहिं किरियाहिं पुट्ठे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कोई पुरुष धनुष को स्पर्श करता है, धनुष का स्पर्श करके वह बाण का स्पर्श (ग्रहण) करता है, बाण का स्पर्श करके स्थान पर से आसनपूर्वक बैठता है, उस स्थिति में बैठकर फैंके जाने वाले बाण को कान तक आयात करे – खींचे, खींचकर ऊंचे आकाश में बाण फैंकता है। ऊंचे आकाश में फैंका हुआ वह बाण, वहाँ आकाश में जिन प्राण, भूत, जीव
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 248 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमातिक्खंति जाव परूवेंति– से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाइं बहुसमाइण्णे मनुयलोए मनुस्सेहिं। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमातिक्खंति जाव बहुसमाइण्णे मनुयलोए मनुस्सेहिं। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि– से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एमामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाइं बहुसमाइण्णे निरयलोए नेरइएहिं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि जैसे कोई युवक अपने हाथ से युवती का हाथ पकड़े हुए हो, अथवा जैसे आरों से एकदम सटी (जकड़ी) हुई चक्र की नाभि हो, इसी प्रकार यावत्‌ चार सौ – पाँच सौ योजन तक यह मनुष्यलोक मनुष्यों से ठसाठस भरा हुआ है। भगवन्‌ ! यह सिद्धान्त प्ररूपण कैसे है ? हे गौतम ! अन्यतीर्थियों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 249 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं एगत्तं पभू विउव्वित्तए? पुहत्तं पभू विउव्वित्तए? गोयमा! एगत्तं पि पहू विउव्वित्तए, पुहत्तंपि पहू विउव्वित्तए। जहा जीवाभिगमे आलावगो तहा नेयव्वो जाव विउव्वित्ता अन्नमन्नस्स कायं अभिहणमाणा-अभिहणमाणा वेयणं उदीरेंति– उज्जलं विउलं पगाढं कक्कसं कडुयं फरुसं निट्ठुरं चंडं तिव्वं दुक्खं दुग्गं दुरहियासं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या नैरयिक जीव, एक रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है, अथवा बहुत से रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? गौतम ! इस विषय में जीवाभिगमसूत्र के समान आलापक यहाँ भी ‘दुरहियास’ शब्द तक कहना।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 252 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे णं भंते! परं अलिएणं असब्भूएणं अब्भक्खाणेणं अब्भक्खाति, तस्स णं कहप्पगारा कम्मा कज्जंति? गोयमा! जे णं परं अलिएणं, असंतएणं अब्भक्खाणेणं अब्भक्खाति, तस्स णं तहप्पगारा चेव कम्मा कज्जंति। जत्थेव णं अभिसमागच्छति तत्थेव णं पडिसंवेदेति, तओ से पच्छा वेदेति। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो दूसरे पर सद्‌भूत का अपलाप और असद्‌भूत का आरोप करके असत्य मिथ्यादोषारोपण करता है, उसे किस प्रकार के कर्म बंधते हैं ? गौतम ! जो दूसरे पर सद्‌भूत का अपलाप और असद्‌भूत का आरोपण करके मिथ्या दोष लगाता है, उसके उसी प्रकार के कर्म बंधते हैं। वह जिस योनि में जाता है, वहीं उन कर्मों को वेदता है और वेदन करने के
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-७ पुदगल कंपन Hindi 256 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! परमाणुपोग्गलं फुसमाणे किं –१. देसेणं देसं फुसइ, २. देसेहिं देसे फुसइ, ३. देसेणं सव्वं फुसइ, ४. देसेहिं देसे फुसइ, ५. देसेहिं देसे फुसइ, ६. देसेहिं सव्वं फुसइ, ७. सव्वेणं देसं फुसइ, ८. सव्वेणं देसे फुसइ, ९. सव्वेणं सव्वं फुसइ? गोयमा! १. नो देसेणं देसं फुसइ, २. नो देसेणं देसे फुसइ, ३. नो देसेणं सव्वं फुसइ, ४. नो देसेहिं देसं फुसइ, ५. नो देसेहिं देसे फुसइ, ६. नो देसेहिं सव्वं फुसइ, ७. नो सव्वेणं देसं फुसइ, ८. नो सव्वेणं देसे फुसइ, ९. सव्वेणं सव्वं फुसइ। परमाणुपोग्गले दुप्पएसियं फुसमाणे सत्तम-नवमेहिं फुसइ। परमाणुपोग्गले तिप्पएसियं फुसमाणे निपच्छिमएहिं तिहिं फुसइ। जहा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! परमाणुपुद्‌गल, परमाणुपुद्‌गल को स्पर्श करता हुआ १ – क्या एकदेश से एकदेश को स्पर्श करता है ?, २ – एकदेश से बहुत देशों को स्पर्श करता है ?, ३ – अथवा एकदेश से सबको स्पर्श करता है ?, ४ – अथवा बहुत देशों से एकदेश को स्पर्श करता है ?, ५ – या बहुत देशों से बहुत देशों को स्पर्श करता है ?, ६ – अथवा बहुत देशों से सभी को स्पर्श
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-७ पुदगल कंपन Hindi 261 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंच हेऊ पन्नत्ता, तं जहा–हेउं जाणइ, हेउं पासइ, हेउं बुज्झइ, हेउं अभिसमागच्छइ, हेउं छउमत्थमरणं मरइ। पंच हेऊ पन्नत्ता, तं जहा–हेउणा जाणइ जाव हेउणा छउमत्थमरणं मरइ। पंच हेऊ पन्नत्ता, तं जहा–हेउं ण जाणइ जाव हेउं अन्नाणमरणं मरइ। पंच हेऊ पन्नत्ता, तं जहा–हेउणा न जाणइ जाव हेउणा अन्नाणमरणं मरइ। पंच अहेऊ पन्नत्ता, तं जहा–अहेउं जाणइ जाव अहेउं केवलिमरणं मरइ। पंच अहेऊ पन्नत्ता, तं जहा–अहेउणा जाणइ जाव अहेउणा केवलिमरणं मरइ। पंच अहेऊ पन्नत्ता, तं जहा–अहेउं न जाणइ जाव अहेउं छउमत्थमरणं मरइ। पंच अहेऊ पन्नत्ता, तं जहा–अहेउणा न जाणइ जाव अहेउणा छउमत्थमरणं मरइ। सेवं भंते! सेवं भंते!

Translated Sutra: पाँच हेतु कहे गए हैं, (१) हेतु को जानता है, (२) हेतु को देखता, (३) हेतु का बोध प्राप्त करता – (४) हेतु का अभिसमागम – अभिमुख होकर सम्यक्‌ रूप से प्राप्त – करता है, और (५) हेतुयुक्त छद्मस्थमरणपूर्वक मरता है। पाँच हेतु (प्रकारान्तर से) कहे गए हैं। वे इस प्रकार – (१) हेतु द्वारा सम्यक्‌ जानता है, (२) हेतु से देखता है; (३) हेतु द्वारा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-८ निर्ग्रंथी पुत्र Hindi 262 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी नारयपुत्ते नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विहरति। तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवओ महावीरस्स अंतेवासी नियंठिपुत्ते नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विहरति। तए णं से नियंठिपुत्ते अनगारे जेणामेव नारयपुत्ते अनगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नारयपुत्तं अनगारं एवं वयासी–सव्वपोग्गला ते अज्जो! किं सअड्ढा समज्झा सपएसा? उदाहु अनड्ढा अमज्झा अपएसा? अज्जो! त्ति नारयपुत्ते अनगारे नियंठिपुत्तं अनगारं एवं वयासी–सव्वपोग्गला मे अज्जो! सअड्ढा समज्झा सपएसा, नो अनड्ढा अमज्झा अपएसा। तए णं

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर पधारे। परीषद्‌ दर्शन के लिए गई, यावत्‌ धर्मोपदेश श्रवण कर वापस लौट गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी नारदपुत्र नाम के अनगार थे। वे प्रकृतिभद्र थे यावत्‌ आत्मा को भावित करते विचरते थे। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी निर्ग्रन्थीपुत्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-८ निर्ग्रंथी पुत्र Hindi 263 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेत्ति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जीवा णं भंते! किं वड्ढंति? हायंति? अवट्ठिया? गोयमा! जीवा नो वड्ढंति, नो हायंति, अवट्ठिया। नेरइया णं भंते! किं वड्ढंति? हायंति? अवट्ठिया? गोयमा! नेरइया वड्ढंति वि, हायंति वि, अवट्ठिया वि। जहा नेरइया एवं जाव वेमाणिया। सिद्धा णं भंते! पुच्छा। गोयमा! सिद्धा वड्ढंति, नो हायंति, अवट्ठिया वि। जीवा णं भंते! केवतियं कालं अवट्ठिया? गोयमा! सव्वद्धं। नेरइया णं भंते! केवतियं कालं वड्ढंति? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं। एवं हायंति वि। नेरइया णं भंते! केवतियं कालं अवट्ठिया? गोयमा!

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ !’ यों कहकर भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी से यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! क्या जीव बढ़ते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! जीव न बढ़ते हैं, न घटते हैं, पर अवस्थित रहते हैं भगवन्‌ ! क्या नैरयिक बढ़ते हैं, अथवा अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! नैरयिक बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-९ राजगृह Hindi 267 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवाग-च्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी– से नूनं भंते! असंखेज्जे लोए अनंता राइंदिया उपज्जिंसु वा, उप्पज्जंति वा, उप्पज्जिस्संति वा? विगच्छिंसु वा, विगच्छंति वा, विगच्छिस्संति वा? परित्ता राइंदिया उप्पज्जिंसु वा, उप्पज्जंति वा, उप्पज्जिस्संति वा? विगच्छिंसु वा, विगच्छंति वा, विगच्छिस्संति वा? हंता अज्जो! असंखेज्जे लोए अनंता राइंदिया तं चेव। से केणट्ठेणं जाव विगच्छिस्संति वा? से नूनं भे अज्जो! पासेनं अरहया पुरिसादानिएणं सासए लोए बुइए–अनादीए

Translated Sutra: उस काल और उस समय में पार्श्वापत्य स्थविर भगवंत, जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वहाँ आए। वहाँ आकर वे श्रमण भगवान महावीर से अदूरसामन्त खड़े रहकर इस प्रकार पूछने लगे – भगवन्‌ ! असंख्य लोक में क्या अनन्त रात्रि – दिवस उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे; तथा नष्ट हुए हैं, नष्ट होते हैं और नष्ट होंगे ? अथवा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१ वेदना Hindi 274 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! करणे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे करणे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे। नेरइयाणं भंते! कतिविहे करणे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे। एवं पंचिंदियाणं सव्वेसिं चउव्विहे करणे पन्नत्ते। एगिंदियाणं दुविहे–कायकरणे य, कम्मकरणे य। विगलिंदियाणं तिविहे–वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे। नेरइयाणं भंते! किं करणओ असायं वेदनं वेदेंति? अकरणओ असायं वेदनं वेदेंति? गोयमा! नेरइया णं करणओ असायं वेदनं वेदेंति, नो अकरणओ असायं वेदनं वेदेंति। से केणट्ठेणं? गोयमा! नेरइया णं चउव्विहे करणे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! करण कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! करण चार प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – मन – करण, वचन – करण, काय – करण और कर्म – करण। भगवन्‌ ! नैरयिक जीवों के कितने प्रकार के करण कहे गए हैं ? गौतम ! चार प्रकार के। मन – करण, वचन – करण, काय – करण और कर्म – करण। इसी प्रकार समस्त पंचेन्द्रिय जीवों के ये चार प्रकार के
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 280 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! महाकम्मस्स, महाकिरियस्स, महासवस्स, महावेदणस्स सव्वओ पोग्गला बज्झंति, सव्वओ पोग्गला चिज्जंति, सव्वओ पोग्गला उवचिज्जंति; सया समियं पोग्गला बज्झंति, सया समियं पोग्गला चिज्जंति, सया समियं पोग्गला उवचिज्जंति; सया समियं च णं तस्स आया दुरूवत्ताए दुवण्णत्ताए दुगंधत्ताए दुरसत्ताए दुफासत्ताए, अनिट्ठत्ताए अकंतत्ताए अप्पियत्ताए असुभत्ताए अमणुन्नत्ताए अमणामत्ताए अनिच्छियत्ताए अभिज्झियत्ताए अहत्ताए–नो उड्ढत्ताए, दुक्खत्ताए–नो सुहत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति? हंता गोयमा! महाकम्मस्स तं चेव। से केणट्ठेणं? गोयमा! से जहानामए वत्थस्स अहयस्स वा, धोयस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या निश्चय ही महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महाश्रव वाले और महावेदना वाले जीव के सर्वतः पुद्‌गलों का बन्ध होता है ? सर्वतः पुद्‌गलों का चय होता है ? सर्वतः पुद्‌गलों का उपचय होता है ? सदा सतत पुद्‌गलों का चय होता है ? सदा सतत पुद्‌गलों का उपचय होता है ? क्या सदा निरन्तर उसका आत्मा दुरूपता में, दुर्वर्णता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 284 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जं णं भंते! कम्मं किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? नपुंसओ बंधइ? नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ बंधइ? गोयमा! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ, नपुंसओ वि बंधइ। नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ सिय बंधइ सिय नो बंधइ। एवं आउगवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ। आउगं णं भंते! कम्मं किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? नपुंसओ बंधइ? नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ बंधइ? गोयमा! इत्थी सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। पुरिसो सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। नपुंसओ सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ न बंधइ। नाणावरणिज्जं णं भंते! कम्मं किं संजए बंधइ? अस्संजए बंधइ? संजयासंजए बंधइ? नोसंजए नोअसंजए नोसंजयासंजए बंधइ? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या स्त्री बाँधती है ? पुरुष बाँधता है, अथवा नपुंसक बाँधता है ? अथवा नो – स्त्री – नोपुरुष – नोनपुंसक बाँधता है ? गौतम ! ज्ञानावरणीयकर्म को स्त्री भी बाँधती है, पुरुष भी बाँधता है और नपुंसक भी बाँधता है, परन्तु नोस्त्री – नोपुरुष – नोनपुंसक होता है, वह कदाचित्‌ बाँधता है, कदाचित्‌ नहीं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-४ सप्रदेशक Hindi 286 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे? गोयमा! नियमा सपदेसे। नेरइए णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे? गोयमा! सिय सपदेसे, सिय अपदेसे। एवं जाव सिद्धे। जीवा णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा? गोयमा! नियमा सपदेसा। नेरइया णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा? गोयमा! १. सव्वे वि ताव होज्जा सपदेसा २. अहवा सपदेसा य अपदेसे य ३. अहवा सपदेसा य अपदेसा य। एवं जाव थणियकुमारा। पुढविकाइया णं भंते! किं सपदेसा? अपदेसा? गोयमा! सपदेसा वि, अपदेसा वि। एवं जाव वणप्फइकाइया। सेसा जहा नेरइया तहा जाव सिद्धा। आहारगाणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। अनाहारगाणं जीवेगिंदियवज्जा छब्भंगा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव कालादेश से सप्रदेश हैं या अप्रदेश हैं ? गौतम ! कालादेश से जीव नियमतः सप्रदेश हैं। भगवन्‌ ! क्या नैरयिक जीव कालादेश से सप्रदेश है या अप्रदेश हैं ? गौतम ! एक नैरयिक जीव कालादेश से कदाचित्‌ सप्रदेश है और कदाचित्‌ अप्रदेश है। इस प्रकार यावत्‌ एक सिद्ध – जीव – पर्यन्त कहना चाहिए। भगवन्‌ ! कालादेश की
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-४ सप्रदेशक Hindi 288 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं पच्चक्खाणी? अपच्चक्खाणी? पच्चक्खाणापच्चक्खाणी? गोयमा! जीवा पच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि, पच्चक्खाणापच्चक्खाणी वि। सव्वजीवाणं एवं पुच्छा। गोयमा! नेरइया अपच्चक्खाणी जाव चउरिंदिया [सेसा दो पडिसेहेयव्वा] । पंचिंदियतिरिक्खजोणिया नो पच्चक्खाणी, अप-च्चक्खाणी वि, पच्चक्खाणा-पच्चक्खाणी वि। मणूसा तिन्नि वि। सेसा जहा नेरइया। जीवा णं भंते! किं पच्चक्खाणं जाणंति? अपच्चक्खाणं जाणंति? पच्चक्खाणापच्चक्खाणं जाणंति? गोयमा! जे पंचिंदिया ते तिन्नि वि जाणंति, अवसेसा पच्चक्खाणं न जाणंति, अपच्चक्खाणं न जाणंति, पच्चक्खाणापच्चक्खाणं न जाणंति। जीवा णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव प्रत्याख्यानी है, अप्रत्याख्यानी है या प्रत्याख्याना – प्रत्याख्यानी है ? गौतम ! जीव प्रत्याख्यानी भी है, अप्रत्याख्यानी भी है और प्रत्याख्याना – प्रत्याख्यानी भी हैं। इसी तरह सभी जीवों के सम्बन्ध में प्रश्न है। गौतम ! नैरयिक जीव यावत्‌ चतुरिन्द्रिय जीव अप्रत्याख्यानी है, इन जीवों में शेष
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शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 291 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किमियं भंते! तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? किं पुढवी तमुक्काए त्ति पव्वच्चति? आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? गोयमा! नो पुढवि तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति, आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति। से केणट्ठेणं? गोयमा! पुढविकाए णं अत्थेगइए सुभे देसं पकासेइ, अत्थेगइए देसं नो पकासेइ। से तेणट्ठेणं। तमुक्काए णं भंते! कहिं समुट्ठिए? कहिं संनिट्ठिए? गोयमा! जंबूदीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता, अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढीए–एत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए। सत्तरस-एक्कवीसे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ‘तमस्काय’ किसे कहा जाता है ? क्या ‘तमस्काय’ पृथ्वी को कहते हैं या पानी को ? गौतम ! पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, किन्तु पानी ‘तमस्काय’ कहलाता है। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! कोई पृथ्वीकाय ऐसा शुभ है, जो देश को प्रकाशित करता है और कोई पृथ्वीकाय ऐसा है, जो देश को प्रकाशित नहीं करता इस कारण से पृथ्वी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 293 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुव्वावरा छलंसा, तंसा पुण दाहिणुत्तरा बज्झा । अब्भंतर चउरंसा, सव्वा वि य कण्हरातीओ ॥

Translated Sutra: ‘‘पूर्व और पश्चिम की कृष्णराजि षट्‌कोण हैं, तथा दक्षिण और उत्तर की बाह्य कृष्णराजि त्रिकोण हैं। शेष सभी आभ्यन्तर कृष्णराजियाँ चतुष्कोण हैं।’’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 294 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हरातीओ णं भंते! केवतियं आयामेणं? केवतियं विक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ताओ? गोयमा! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परि-क्खेवेणं पन्नत्ताओ। कण्हरातीओ णं भंते! केमहालियाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे जाव देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभावे इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबूदीवं दीवं तिहिं अच्छरानिवाएहिं तिसत्तक्खुत्तो अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छिज्जा, से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जाव एकाहं वा, दुयाहं वा, तियाहं वा, उक्कोसेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कृष्णराजियों का आयाम, विष्कम्भ और परिक्षेप कितना है ? गौतम ! कृष्णराजियों का आयाम असंख्येय हजार योजन है, विष्कम्भ संख्येय हजार योजन है और परिक्षेप असंख्येय हजार योजन कहा गया है। भगवन्‌ ! कृष्णराजियाँ कितनी बड़ी कही गई हैं ? गौतम ! तीन चुटकी बजाए, उतने समय में इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की इक्कीस बार परिक्रमा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 295 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं अट्ठण्हं कण्हराईणं अट्ठसु ओवासंतरेसु अट्ठ लोगंतिगविमाना पन्नत्ता, तं जहा–१. अच्ची २.अच्चीमाली ३. वइरोयणे ४. पभंकरे ५. चंदाभे ६. सूराभे ७. सुक्काभे ८. सुपइट्ठाभे, मज्झे रिट्ठाभे। कहि णं भंते! अच्चि-विमाने पन्नत्ते? गोयमा! उत्तर-पुरत्थिमे णं। कहि णं भंते! अच्चिमाली विमाने पन्नत्ते? गोयमा! पुरत्थिमे णं। एवं परिवाडीए नेयव्वं जाव– कहि णं भंते! रिट्ठे विमाने पन्नत्ते? गोयमा! बहुमज्झदेसभाए। एएसु णं अट्ठसु लोगंतियविमानेसु अट्ठविहा लोगंतिया देवा परिवसंति, तं जहा–

Translated Sutra: इन आठ कृष्णराजियों के आठ अवकाशान्तरों में आठ लोकान्तिक विमान हैं। यथा – अर्चि, अर्चमाली, वैरोचन, प्रभंकर, चन्द्राभ, सूर्याभ, शुक्राभ और सुप्रतिष्ठाभ। इन सबके मध्य में रिष्टाभ विमान है। भगवन्‌ ! अर्चि विमान कहाँ है ? गौतम ! अर्चि विमान उत्तर और पूर्व के बीच में हैं। भगवन्‌ ! अर्चिमाली विमान कहाँ हैं ? गौतम ! अर्चिमाली
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 299 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लोगंतिगविमाना णं भंते! किंपइट्ठिया पन्नत्ता? गोयमा! वाउपइट्ठिया पन्नत्ता। एवं नेयव्वं विमानाण पइट्ठाणं, बाहुल्लुच्चत्तमेव संठाणं, बंभलोय-वत्तव्वया नेयव्वा जाव– लोयंतियविमानेसु णं भंते! सव्वे पाणा भूया जीवा सत्ता पुढविकाइयत्ताए, आउकाइयत्ताए, तेउकाइयत्ताए, वाउकाइयत्ताए, वणप्फइकाइयत्ताए, देवत्ताए, देवित्ताए उववन्नपुव्वा? हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतक्खुत्तो, नो चेव णं देवित्ताए। लोगंतिय देवाणं भंते! केवइयं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठ सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। लोगंतियविमानेहिंतो णं भंते! केवतियं अबाहाए लोगंते पन्नत्ते? गोयमा! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोकान्तिक विमान किसके आधार पर प्रतिष्ठित है ? गौतम ! लोकान्तिक विमान वायुप्रतिष्ठित है। इस प्रकार – जिस तरह विमानों का प्रतिष्ठान, विमानों का बाहल्य, विमानों की ऊंचाई और विमानों के संस्थान आदि का वर्णन जीवाजीवाभिगमसूत्र के देव – उद्देशक में ब्रह्मलोक की वक्तव्यता में कहा है, तदनुसार यहाँ भी कहना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-६ भव्य Hindi 301 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! तत्थगए चेव आहारेज्ज वा? परिणामेज्ज वा? सरीरं वा बंधेज्जा? गोयमा! अत्थेगतिए तत्थगए चेव आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा; अत्थेगतिए तओ पडिनियत्तति, तत्तो पडिनियत्तित्ता इहमागच्छइ, आगच्छित्ता दोच्चं पि मारणंतियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावास-सयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए, तओ पच्छा आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो जीव मारणान्तिक – समुद्‌घात से समवहत हुआ है और समवहत होकर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से किसी एक नारकावास में नैरयिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य है, भगवन्‌ ! क्या वह वहाँ जाकर आहार करता है ? आहार को परिणमाता है ? और शरीर बाँधता है ? गौतम ! कोई जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है, आहार को परिणमाता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-८ पृथ्वी Hindi 316 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे किं उस्सिओदए? पत्थडोदए? खुभियजले? अक्खुभियजले? गोयमा! लवणे णं समुद्दे उस्सिओदए, नो पत्थडोदए, खुभियजले, नो अखुभियजले। जहा णं भंते! लवणसमुद्दे उस्सिओदए, नो पत्थडोदए; खुभियजले, नो अखुभियजले; तहा णं बाहिरगा समुद्दा किं उस्सिओदगा? पत्थडोदगा? खुभियजला? अखुभियजला? गोयमा! बाहिरगा समुद्दा नो उस्सिओदगा, पत्थडोदगा; नो खुभियजला, अखुभियजला पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठंति। अत्थि णं भंते! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहया संसेयंति? संमुच्छंति? वासं वासंति? हंता अत्थि। जहा णं भंते! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहया संसेयंति, संमुच्छंति,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या लवणसमुद्र, उछलते हुए जल वाला है, सम जल वाला है, क्षुब्ध जल वाला है अथवा अक्षुब्ध जल वाला है ? गौतम ! लवणसमुद्र उच्छितोदक है, किन्तु प्रस्तृतोदक नहीं है; वह क्षुब्ध जल वाला है, किन्तु अक्षुब्ध जल वाला नहीं है। यहाँ से प्रारम्भ करके जीवाभिगम सूत्र अनुसार यावत्‌ इस कारण से, हे गौतम ! बाहर के (द्वीप – ) समुद्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 320 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति जावतिया रायगिहे नयरे जीवा, एवइयाणं जीवाणं नो चक्किया केइ सुहं वा दुहं वा जाव कोलट्ठिगमायमवि, निप्फावमायमवि, कलमायमवि, मासमायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायमवि लिक्खामायमवि अभिनिवट्टेत्ता उवदंसेत्तए। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि सव्वलोए वि य णं सव्वजीवाणं नो चक्किया केइ सुहं वा दुहं वा जाव कोलट्ठिगमायमवि, निप्फावमायमवि, कलमायमवि, मास-मायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायमवि, लिक्खामायमवि अभिनिवट्टेत्ता उवदंसेत्तए। से केणट्ठेणं?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि राजगृह नगर में जितने जीव हैं, उन सबके दुःख या सुख को बेर की गुठली जितना भी, बाल (एक धान्य) जितना भी, कलाय जितना भी, उड़द जितना भी, मूँग – प्रमाण, यूका प्रमाण, लिक्षा प्रमाण भी बाहर नीकाल कर नहीं दिखा सकता। भगवन्‌ ! यह बात यों कैसे हो सकती है ? गौतम ! जो अन्यतीर्थिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 321 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जीवे? जीवे जीवे? गोयमा! जीवे ताव नियमा जीवे, जीवे वि नियमा जीवे। जीवे णं भंते! नेरइए? नेरइए जीवे? गोयमा! नेरइए ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय नेरइए, सिय अनेरइए। जीवे णं भंते! असुरकुमारे? असुरकुमारे जीवे? गोयमा! असुरकुमारे ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय असुरकुमारे, सिय नोअसुरकुमारे। एवं दंडओ भाणियव्वो जाव वेमाणियाणं। जीवति भंते! जीवे? जीवे जीवति? गोयमा! जीवति ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय जीवति, सिय नो जीवति। जीवति भंते! नेरइए? नेरइए जीवति? गोयमा! नेरइए ताव नियमा जीवति, जीवति पुण सिय नेरइए, सिय अनेरइए। एवं दंडओ नेयव्वो जाव वेमाणियाणं। भवसिद्धिए णं भंते! नेरइए? नेरइए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव चैतन्य है या चैतन्य जीव है ? गौतम ! जीव तो नियमतः चैतन्य स्वरूप है और चैतन्य भी निश्चितरूप से जीवरूप है। भगवन्‌ ! क्या जीव नैरयिक है या नैरयिक जीव है ? गौतम ! नैरयिक तो नियमतः जीव है और जीव तो कदाचित्‌ नैरयिक भी हो सकता है, कदाचित्‌ नैरयिक से भिन्न भी हो सकता है। भगवन्‌ ! क्या जीव, असुरकुमार है या असुरकुमार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 322 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति–एवं खलु सव्वे पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतदुक्खं वेदनं वेदेंति। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जं णं ते अन्नउत्थिया जाव मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि– अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतदुक्खं वेदनं वेदेंति, आहच्च सायं। अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतसायं वेदनं वेदेंति, आहच्च अस्सायं। अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता वेमायाए वेदनं वेदेंति–आहच्च सायमसायं। से केणट्ठेणं? गोयमा! नेरइया एगंतदुक्खं वेदनं वेदेंति, आहच्च सायं। भवनवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया एगंतसायं वेदनं वेदेंति, आहच्च अस्सायं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एकान्तदुःखरूप वेदना को वेदते हैं, तो भगवन्‌ ! ऐसा कैसे हो सकता है ? गौतम ! अन्यतीर्थिक जो यह कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत्‌ प्ररूपणा करता हूँ – कितने
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 332 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणोवासए णं भंते! तहारूवं समणं वा माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असनपान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणे किं लब्भइ? गोयमा! समणोवासए णं तहारूवं समणं वा माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणे तहा रूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा समाहिं उप्पाएति, समाहिकारए णं तामेव समाहिं पडिलभइ। समणोवासए णं भंते! तहारूवं समणं वा माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणे किं चयति? गोयमा! जीवियं चयति, दुच्चयं चयति, दुक्करं करेति, दुल्लहं लहइ, बोहिं बुज्झइ, तओ पच्छा सिज्झति जाव अंतं करेति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तथारूप श्रमण और माहन को प्रासुक, एषणीय, अशन, पान, खादिम और स्वादिम द्वारा प्रति – लाभित करते हुए श्रमणोपासक को क्या लाभ होता है ? गौतम ! वह श्रमणोपासक तथारूप श्रमण या माहन को समाधि उत्पन्न करता है। उन्हें समाधि प्राप्त कराने वाला श्रमणोपासक उसी समाधि को स्वयं भी प्राप्त करता है। भगवन्‌ ! तथारूप श्रमण
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 333 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! अकम्मस्स गती पण्णायति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! अकम्मस्स गती पण्णायति? गोयमा! निस्संगयाए, निरंगणयाए, गतिपरिणामेणं, बंधनछेदणयाए, निरिंधणयाए, पुव्वप्पओगेणं अकम्मस्स गती पण्णायति कहन्नं भंते! निस्संगयाए, निरंगणयाए, गतिपरिणामेणं अकम्मस्स गती पण्णायति? से जहानामए केइ पुरिसे सुक्कं तुंबं निच्छिड्डं निरूवहयं आनुपुव्वीए परिकम्मेमाणे-परिकम्मेमाणे दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढेत्ता अट्ठहिं मट्टियालेवेहिं लिंपइ, लिंपित्ता उण्हे दलयति, भूतिं-भूतिं सुक्कं समाणं अत्थाहमतारमपोरिसियंसि उदगंसि पक्खिवेज्जा से नूनं गोयमा! से तुंबे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या कर्मरहित जीव की गति होती है ? हाँ, गौतम ! अकर्म जीव की गति होती – है। भगवन्‌ ! अकर्म जीव की गति कैसे होती है ? गौतम ! निःसंगता से, नीरागता से, गतिपरिणाम से, बन्धन का छेद हो जाने से, निरिन्धता – (कर्मरूपी इन्धन से मुक्ति) होने से और पूर्वप्रयोग से कर्मरहित जीव की गति होती है। भगवन्‌ ! निःसंगता से, नीरागता से,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 339 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! सव्वपाणेहिं, सव्वभूएहिं, सव्वजीवेहिं, सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स सुपच्चक्खायं भवति? दुपच्चक्खायं भवति? गोयमा! सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स सिय सुपच्चक्खायं भवति, सिय दुपच्चक्खायं भवति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स सिय सुपच्चक्खायं भवति सिय दुपच्चक्खायं भवति? गोयमा! जस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स नो एवं अभिसमन्नागयं भवति– इमे जीवा, इमे अजीवा, इमे तसा, इमे थावरा, तस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! ‘मैंने सर्व प्राण, सर्व भूत, सर्व जीव और सभी तत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान किया है’, इस प्रकार कहने वाले के सुप्रत्याख्यान होता है या दुष्प्रत्याख्यान होता है ? गौतम ! ‘मैंने सभी प्राण यावत्‌ सभी तत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान किया है’, ऐसा कहने वाले के कदाचित्‌ सुप्रत्याख्यान होता है कदाचित्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 343 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं मूलगुणपच्चक्खाणी? उत्तरगुणपच्चक्खाणी? अपच्चक्खाणी? गोयमा! जीवा मूलगुणपच्चक्खाणी वि, उत्तरगुणपच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि। नेरइया णं भंते! किं मूलगुणपच्चक्खाणी? पुच्छा। गोयमा! नेरइया नो मूलगुणपच्चक्खाणी, नो उत्तरगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी। एवं जाव चउरिंदिया। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मनुस्सा य जहा जीवा, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया। एएसि णं भंते! जीवाणं मूलगुणपच्चक्खाणीणं, उत्तरगुणपच्चक्खाणीणं, अपच्चक्खाणीण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चक्खाणी

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं अथवा अप्रत्याख्यानी हैं ? गौतम ! जीव (समुच्चयरूप में) मूलगुणप्रत्याख्यानी भी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी भी हैं और अप्रत्याख्यानी भी हैं। नैरयिक जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं या अप्रत्याख्यानी ? गौतम ! नैरयिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-४ जीव Hindi 351 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नयरे जाव एवं वयासि– कतिविहा णं भंते! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता? गोयमा! छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया जाव तसकाइया। एवं जहा जीवाभिगमे जाव एगे जीवे एगेणं समएणं एगं किरियं पकरेइ, तं जहा–सम्मत्तकिरियं वा, मिच्छत्तकिरियं वा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ भगवान महावीर से इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! संसारसमापन्नक जीव कितने प्रकार के हैं? गौतम ! छह प्रकार के – पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एवं त्रस – कायिक। इस प्रकार यह समस्त वर्णन जीवाभिगमसूत्र में कहे अनुसार सम्यक्त्वक्रिया और मिथ्यात्वक्रिया पर्यन्त कहना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-५ पक्षी Hindi 353 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–खहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते! कतिविहे जोणीसंगहे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे जोणीसंगहे पन्नत्ते, तं जहा–अंडया, पोयया, संमुच्छिमा। एवं जहा जीवाभिगमे जाव नो चेव णं ते विमाने वीतीवएज्जा, एमहालया णं गोयमा! ते विमाना पन्नत्ता। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ भगवान महावीर स्वामी से पूछा – हे भगवन्‌ ! खेचर पंचेन्द्रियतिर्यंच जीवों का योनिसंग्रह कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का। अण्डज, पोतज और सम्मूर्च्छिम। इस प्रकार जीवा – जीवाभिगमसूत्र में कहे अनुसार यावत्‌ ‘उन विमानों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता, हे गौतम ! वे विमान इतने महान्‌ कहे
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Hindi 359 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए दुस्सम-दुस्समाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ? गोयमा! कालो भविस्सइ हाहाभूए, भंभब्भूए कोलाहलभूए। समानुभावेण य णं खर-फरुस-धूलिमइला दुव्विसहा वाउला भयंकरा वाया संवट्टगा य वाहिंति। इह अभिक्खं धूमाहिंति य दिसा समंता रउस्सला रेणुकलुस-तमपडल-निरालोगा। समयलुक्खयाए य णं अहियं चंदा सीयं मोच्छंति। अहियं सूरिया तवइस्संति। अदुत्तरं च णं अभिक्खणं बहवे अरसमेहा विरसमेहा खार-मेहा खत्तमेहा अग्गिमेहा विज्जुमेहा विसमेहा असणिमेहा–अपिवणिज्जोदगा, वाहिरोगवेदणोदीरणा-परिणामसलिला, अमणुन्नपा-णियगा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल का दुःषमदुःषम नामक छठा आरा जब अत्यन्त उत्कट अवस्था को प्राप्त होगा, तब भारतवर्ष का आकारभाव – प्रत्यवतार कैसा होगा ? गौतम ! वह काल हाहाभूत, भंभाभूत (दुःखार्त्त) तथा कोलाहलभूत होगा। काल के प्रभाव से अत्यन्त कठोर, धूल से मलिन, असह्य, व्याकुल, भयंकर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Hindi 360 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं भंते! समाए भरहे वासे मनुयाणं केरिसए आगारभाव-पडोयारे भविस्सइ? गोयमा! मनुया भविस्संति दुरूवा दुवण्णा दुग्गंधा दुरसा दुफासा अनिट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमणुन्ना अमणामा हीनस्सरा दीनस्सरा अणिट्ठस्सरा अकंतस्सरा अप्पियस्सरा असुभस्सरा अमणुन्नस्सरा अमणामस्सरा अनादेज्जवयणपच्चायाया, निल्लज्जा, कूड-कवड-कलह-वह-बंध-वेरनिरया, मज्जायातिक्कमप्पहाणा, अकज्जनिच्चुज्जता, गुरुनियोग-विनयरहिया य, विकल-रूवा, परूढनह-केस-मंसु-रोमा, काला, खर-फरुस-ज्झामवण्णा, फुट्टसिरा, कविलपलियकेसा, बहुण्हारु- संपिणद्ध-दुद्दंसणिज्जरूवा, संकुडितवलीतरंगपरिवेढियंगमंगा, जरापरिणतव्व थेरगनरा,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उस समय भारतवर्ष की भूमि का आकार और भावों का आविर्भाव किस प्रकार का होगा ? गौतम ! उस समय इस भरतक्षेत्र की भूमि अंगारभूत, मुर्मूरभूत, भस्मीभूत, तपे हुए लोहे के कड़ाह के समान, तप्तप्राय अग्नि के समान, बहुत धूल वाली, बहुत रज वाली, बहुत कीचड़ वाली, बहुत शैवाल वाली, चलने जितने बहुत कीचड़ वाली होगी, जिस पर पृथ्वीस्थित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-७ अणगार Hindi 362 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रूवी भंते! कामा? अरूवी कामा? गोयमा! रूवी कामा, नो अरूवी कामा। सचित्ता भंते! कामा? अचित्ता कामा? गोयमा! सचित्ता वि कामा, अचित्ता वि कामा। जीवा भंते! कामा? अजीवा कामा? गोयमा! जीवा वि कामा, अजीवा वि कामा। जीवाणं भंते! कामा? अजीवाणं कामा? गोयमा! जीवाणं कामा, नो अजीवाणं कामा। कतिविहा णं भंते! कामा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा कामा पन्नत्ता, तं जहा–सद्दा य, रूवा य। रूवी भंते! भोगा? अरूवी भोगा? गोयमा! रूवी भोगा, नो अरूवी भोगा। सचित्ता भंते! भोगा? अचित्ता भोगा? गोयमा! सचित्ता वि भोगा, अचित्ता वि भोगा। जीवा भंते! भोगा? अजीवा भोगा? गोयमा! जीवा वि भोगा, अजीवा वि भोगा। जीवाणं भंते! भोगा? अजीवाणं भोगा? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! काम रूपी है या अरूपी है ? आयुष्मन्‌ श्रमण ! काम रूपी है, अरूपी नहीं है। भगवन्‌ ! काम सचित्त है अथवा अचित्त है ? गौतम ! काम सचित्त भी हैं और काम अचित्त भी हैं। भगवन्‌ ! काम जीव हैं अथवा अजीव हैं ? गौतम ! काम जीव भी हैं और काम अजीव भी हैं। भगवन्‌ ! काम जीवों के होते हैं या अजीवों के होते हैं ? गौतम ! काम जीवों के होते
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-७ अणगार Hindi 363 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनूसे जे भविए अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जित्तए, से नूनं भंते! से खीणभोगी नो पभू उट्ठाणेणं, कम्मेणं, बलेणं, वीरिएणं, पुरिसकार-परक्कमेणं विउलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? से नूनं भंते! एयमट्ठं एवं वयह? गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे। पभू णं से उट्ठाणेण वि, कम्मेण वि, बलेण वि, वीरिएण वि, पुरिसक्कार-परक्कमेण वि अन्नयराइं विपुलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए, तम्हा भोगी, भोगे परिच्चयमाणे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ। आहोहिए णं भंते! मनूसे जे भविए अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जित्तए, से नूनं भंते! से खीणभोगी नो पभू उट्ठाणेणं, कम्मेणं,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ऐसा छद्मस्थ मनुष्य, जो किसी देवलोक में देव रूप में उत्पन्न होने वाला है, भगवन्‌ ! वास्तव में वह क्षीणभोगी उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार – पराक्रम के द्वारा विपुल और भोगने योग्य भोगों को भोगता हुआ विहरण करने में समर्थ नहीं है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-९ असंवृत्त Hindi 372 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नायमेयं अरहया, सुयमेयं अरहया, विन्नाणमेयं अरहया–महासिलाकंटए संगामे। महासिलाकंटए णं भंते! संगामे वट्टमाणे के जइत्था? के पराजइत्था? गोयमा! वज्जी, विदेहपुत्ते जइत्था, नव मल्लई, नव लेच्छई–कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो पराजइत्था। तए णं से कोणिए राया महासिलाकंटगं संगामं उवट्ठियं जाणित्ता कोडुंबियपुरिमे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी –खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! उदाइं हत्थिरायं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेनं सण्णाहेह, सण्णाहेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कोणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया

Translated Sutra: अर्हन्त भगवान ने यह जाना है, अर्हन्त भगवान ने यह सूना है – तथा अर्हन्त भगवान को यह विशेष रूप से ज्ञात है कि महाशिलाकण्टक संग्राम महाशिलाकण्टक संग्राम ही है। (अतः) भगवन्‌ ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम चल रहा था, तब उसमें कौन जीता और कौन हारा ? गौतम ! वज्जी विदेहपुत्र कूणिक राजा जीते, नौ मल्लकी और नौ लेच्छकी, जो कि काश
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-९ असंवृत्त Hindi 375 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजणे णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ– एवं खलु बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं से बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–एवं खलु बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु सु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं वेसाली नामं नगरी होत्था–वण्णओ। तत्थ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बहुत – से लोग परस्पर ऐसा कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि – अनेक प्रकार के छोटे – बड़े संग्रामों में से किसी भी संग्राम में सामना करते हुए आहत हुए एवं घायल हुए बहुत – से मनुष्य मृत्यु के समय मरकर किसी भी देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! ऐसा कैसे हो सकता है ? गौतम ! बहुत – से मनुष्य, जो इस
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-९ असंवृत्त Hindi 376 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वरुणे णं भंते! नागनत्तुए कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने? गोयमा! सोहम्मे कप्पे, अरुणाभे विमाने देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता तत्थ णं वरुणस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता। से णं भंते! वरुणे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिति। वरुणस्स णं भंते! नागनत्तुयस्स पियबालवयंसए कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने? गोयमा! सुकुले

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वरुण नागनप्तृक कालधर्म पाकर कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ? गौतम ! वह सौधर्मकल्प में अरुणाभ नामक विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ है। उस देवलोक में कतिपय देवों की चार पल्योपम की स्थिति कही गई है। अतः वहाँ वरुण – देव की स्थिति भी चार पल्योपम की है। भगवन्‌ ! वह वरुण देव उस देवलोक से आयु – क्षय होने पर, भव – क्षय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 377 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई। तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सन्निसन्नाणं अयमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्गलत्थिकायं। तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं,

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ गुणशीलक नामक चैत्य था यावत्‌ (एक) पृथ्वी शिलापट्टक था। उस गुणशीलक चैत्य के पास थोड़ी दूर पर बहुत से अन्यतीर्थि रहते थे, यथा – कालोदयी, शैलोदाई शैवालोदायी, उदय, नामोदय, नर्मोदय, अन्नपालक, शैलपालक, शंखपालक और सुहस्ती गृहपति। किसी समय सब अन्यतीर्थिक एक स्थान पर आए, एकत्रित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-१ पुदगल Hindi 383 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पयोगपरिणया णं भंते! पोग्गला कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदियपयोगपरिणया, बेइंदियपयोगपरिणया, तेइंदिय-पयोग-परिणया, चउरिंदियपयोगपरिणया, पंचिंदियपयोगपरिणया। एगिंदियपयोगपरिणया णं भंते! पोग्गला कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइयएगिंदियपयोगपरिणया, आउकाइयएगिंदिय-पयोगपरिणया, तेउकाइय-एगिंदियपयोगपरिणया, वाउकाइय-एगिंदियपयोगपरिणया, वणस्सइ-काइय-एगिंदियपयोगपरिणया। पुढविकाइयएगिंदियपयोगपरिणया णं भंते! पोग्गला कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– सुहुमपुढविकाइयएगिंदियपयोगपरिणया, बादरपुढवि-काइयएगिंदियपयोगपरिणया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रयोग – परिणत पुद्‌गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के कहे गए हैं, एकेन्द्रिय – प्रयोग – परिणत यावत्‌, त्रीन्द्रिय – प्रयोग – परिणत, चतुरिन्द्रिय – प्रयोग – परिणत, पंचेन्द्रिय – प्रयोग – परिणत पुद्‌गल। भगवन्‌ ! एकेन्द्रिय – प्रयोग – परिणत पुद्‌गल कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार
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