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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-६ Hindi 369 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–बिलं वा लोणं, उब्भियं वा लोणं, अस्संजए भिक्खु-पडियाए चित्तमंताए सिलाए, चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए, सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग-पणगदग-मट्टिय-मक्कडा संताणाए भिंदिसु वा, भिंदंति वा, भिंदिस्संति वा, रुचिंसु वा, रुचिंति वा, रुचिस्संति वा–बिल वा लोणं, उब्भियं वा लोणं– अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में आहारार्थ प्रविष्ट साधु – साध्वी यदि यह जाने कि असंयमी गृहस्थ किसी विशिष्ट खान में उत्पन्न नमक या समुद्र के किनारे खार और पानी के संयोग से उत्पन्न उद्‌भिज्ज लवण के सचित्त शिला, सचित्त मिट्टी के ढेले पर, घुन लगे लक्कड़ पर या जीवाधिष्ठित पदार्थ पर अण्डे, प्राण, हरियाली, बीज या मकड़ी के जाले सहित शिला
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१० Hindi 393 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सिया से परो अभिहट्टु अंतोपडिग्गहए बिलं वा लोणं, उब्भियं वा लोणं परिभाएत्ता नीहट्टु दलएज्जा, तहप्पगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा, परपायंसि वा–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से आहच्च पडिग्गाहिए सिया, तं च नाइदूरगए जाणेज्जा, से त्तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छेत्ता पुव्वामेव आलोएज्जा–आउसो! त्ति वा भइणि! त्ति वा ‘इमं ते किं जाणया दिन्नं? उदाहु अजाणया’? सो य भणेज्जा– नो खलु मे जाणया दिन्नं, अजाणया। कामं खलु आउसो! इदाणिं णिसिरामि। तं भुंजह च णं परिभाएह च णं। तं परेहिं समणुण्णायं

Translated Sutra: साधु या साध्वी को यदि गृहस्थ बीमार साधु के लिए खांड आदि की याचना करने पर अपने घर के भीतर रखे हुए बर्तन में से बिड़ – लवण या उद्‌भिज – लवण को विभक्त करके उसमें से कुछ अंश नीकालकर, देने लगे तो वैसे लवण को जब वह गृहस्थ के पात्र में या हाथ में हो तभी उसे अप्रासुक, अनैषणीय समझकर लेने से मना कर दे। कदाचित्‌ सहसा उस नमक को
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 427 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा अन्नमन्नमक्कोसंति वा, बंधंति वा, रुंभंति वा, उद्दवेंति वा, नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओगचिंताए। सेवं नच्चा तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: यदि साधु या साध्वी ऐसे उपाश्रय को जाने कि इस उपाश्रय – बस्ती में गृह – स्वामी, उसकी पत्नी, पुत्र – पुत्रियाँ पुत्रवधूएं, दास – दासियाँ आदि परस्पर एक दूसरे को कोसती हैं – झिड़कती हैं, मारती – पीटती, यावत्‌ उपद्रव करती हैं, प्रज्ञावान साधु को इस प्रकार के उपाश्रय में न तो निर्गमन – प्रवेश ही करना योग्य है, और न ही वाचनादि
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Gujarati 427 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा अन्नमन्नमक्कोसंति वा, बंधंति वा, रुंभंति वा, उद्दवेंति वा, नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओगचिंताए। सेवं नच्चा तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વી જે ઉપાશ્રય વિશે એમ જાણે કે અહીં ગૃહસ્થ યાવત્‌ નોકરાણી આદિ તેઓ પરસ્પર ઝઘડા યાવત્‌ મારપીટ કરે છે અને ધર્મચિંતનમાં વિઘ્ન થાય છે. તો બુદ્ધિમાન સાધુ ત્યાં નિવાસ આદિ ન કરે.
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 302 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] माता पुत्तं जहा नट्ठं, जुवाणं पुणरागतं । काई पच्चभिजाणेज्जा, पुव्वलिंगेण केणई ॥

Translated Sutra: माता बाल्यकाल से गुम हुए और युवा होकर वापस आये हुए पुत्र को किसी पूर्वनिश्र्चित चिह्न से पहचानती है कि यह मेरा ही पुत्र है। जैसे – देह में हुए क्षत, व्रण, लांछन, डाम आदि से बने चिह्नविशेष, मष, तिल आदि से जो अनुमान किया जाता है, वह पूर्ववत्‌ – अनुमान है। शेषवत्‌ – अनुमान किसे कहते हैं ? पाँच प्रकार का है। कार्येण,
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Hindi 44 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कनग पुलग निघस पम्ह गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोऊहले

Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, जिनकी देह की ऊंचाई सात हाथ थी, जो समचतुरस्र – संस्थान संस्थित थे – जो वज्र – ऋषभ – नाराच – संहनन थे, कसौटी पर खचित स्वर्ण – रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान जो गौर वर्ण थे, जो उग्र तपस्वी थे, दीप्त तपस्वी थे, तप्त तपस्वी, जो कठोर
Bhaktaparigna भक्तपरिज्ञा Ardha-Magadhi

आचरण, क्षमापना आदि

Hindi 85 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा स उट्ठिउमणो मनमक्कडओ जिनोवएसेणं । काउं सुत्तनिबद्धो रामेयव्वो सुहज्झाणे ॥

Translated Sutra: उस के लिए वो उठनेवाले मन समान बन्दर को जिनेश्वर के उपदेश द्वारा दोर से बाँधकर शुभ ध्यान के लिए रमण करना चाहिए।
Bhaktaparigna ભક્તપરિજ્ઞા Ardha-Magadhi

आचरण, क्षमापना आदि

Gujarati 85 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा स उट्ठिउमणो मनमक्कडओ जिनोवएसेणं । काउं सुत्तनिबद्धो रामेयव्वो सुहज्झाणे ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૨
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा

Hindi 24 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोवच्चले सिंधवे लोणे रोमालोणे य आमए । सामुद्दे पंसुखारे य कालालोणे य आमए ॥

Translated Sutra: आमक सौवर्चल – अपक्व सेंवलनमक, सैन्धव – लवण, रुमा लवण, अपक्व समुद्री नमक, पांशु – क्षार, काल – लवण लेना व खाना।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 108 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं उदओल्ले ससिणिद्धे ससरक्खे मट्टिया ऊसे । हरियाले हिंगलए मणोसिला अंजणे लोणे ॥

Translated Sutra: यदि हाथ या कडछी भीगे हुए हो, सचित्त जल से स्निग्ध हो, सचित्त रज, मिट्टी, खार, हरताल, हिंगलोक, मनःशील, अंजन, नमक तथा –
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

9. तप व ध्यान अधिकार - (राज योग)

2. अनशन आदि तप Hindi 209 View Detail
Mool Sutra: छट्ठट्ठमदसमदुवालसेहिं, अबहुसुयस्स जो सोही। तत्तो बहुतरगुणिया, हविज्ज जिमियस्स नाणिस्स ।।

Translated Sutra: [यद्यपि आत्मबल की वृद्धि के अर्थ योगी जन अनशन तप अवश्य करते हैं, परन्तु इसमें भोजन-त्याग का अधिक महत्त्व नहीं है, क्योंकि] दो-तीन-चार व छह छह दिन के अनशन से भी अज्ञानी को जितनी शुद्धि होती है, उससे अनेक गुणा शुद्धि तो नित्याहारी ज्ञानी को सहज ही होती है। (एक दो आदि ग्रासों के क्रम से आहार को धीरे धीरे घटाना ऊनोदरी
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

9. तप व ध्यान अधिकार - (राज योग)

2. अनशन आदि तप Hindi 209 View Detail
Mool Sutra: षष्ठाष्टमदशमद्वादशैरबहुश्रुतस्य या शुद्धिः। ततो बहुतरगुणिता, भवेत् जिमितस्य ज्ञानिनः ।।

Translated Sutra: [यद्यपि आत्मबल की वृद्धि के अर्थ योगी जन अनशन तप अवश्य करते हैं, परन्तु इसमें भोजन-त्याग का अधिक महत्त्व नहीं है, क्योंकि] दो-तीन-चार व छह छह दिन के अनशन से भी अज्ञानी को जितनी शुद्धि होती है, उससे अनेक गुणा शुद्धि तो नित्याहारी ज्ञानी को सहज ही होती है। (एक दो आदि ग्रासों के क्रम से आहार को धीरे धीरे घटाना ऊनोदरी
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

लवण समुद्र वर्णन Hindi 200 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणस्स णं भंते! समुद्दस्स पएसा धायइसंडं दीवं पुट्ठा? हंता पुट्ठा। ते णं भंते! किं लवणे समुद्दे? धायइसंडे दीवे? गोयमा! ते लवणे समुद्दे, नो खलु ते धायइसंडे दीवे। धायइसंडस्स णं भंते! दीवस्स पदेसा लवणं समुद्दं पुट्ठा? हंता पुट्ठा। ते णं भंते! किं धायइसंडे दीवे? लवणे समुद्दे? गोयमा! धायइसंडे णं ते दीवे, नो खलु ते लवणे समुद्दे। लवणे णं भंते समुद्दे जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता धायइसंडे दीवे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थे गतिया नो पच्चायंति। धायइसंडे णं भंते! जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायंति। से

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! लवणसमुद्र के प्रदेश धातकीखण्डद्वीप से छुए हुए हैं क्या ? हाँ, गौतम ! धातकीखण्ड के प्रदेश लवणसमुद्र से स्पृष्ट हैं, आदि। लवणसमुद्र से मरकर जीव धातकीखण्ड में पैदा होते हैं क्या ? आदि पूर्ववत्‌। धातकीखण्ड से मरकर लवणसमुद्र में पैदा होने के विषय में भी पूर्ववत्‌ कहना। हे भगवन्‌ ! लवणसमुद्र, लवण – समुद्र
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 164 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अप्पणो दंते आघंसेज्ज वा पघंसेज्ज वा, आघंसंतं वा पघंसंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अपने दाँत एक या अनेकबार (नमक – क्षार आदि से) घिसे, धुए, मुँह के वायु से फूँक मारकर या रंगने के द्रव्य से रंग दे यह काम खुद करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र – १६४–१६६
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 234 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं एक्कवीसं हत्था भाणियव्वा। जे भिक्खू ससिणिद्धेण वा ससरक्खेण वा मट्टिया संसट्ठेण वा ऊससंट्ठेण वा लोणसंसट्ठेण वा हरियालसंसट्ठेण वा गेरुयसंसट्ठेण वा सेढियसंसट्ठेण वा हिंगुलुसंसट्ठेण वा अंजणसंसट्ठेण वा लोद्ध-संसट्ठेण वा कुक्कससंसट्ठेण वा पिट्ठसंसट्ठेण वा कंदसंसट्ठेण वा मूलसंसट्ठेण वा सिंगबेरसंसट्ठेण वा पुप्फकसंसट्ठेणवा उकुट्ठसंसट्ठेण हत्थेण वा मत्तेण वा दव्वीए वा भायणेण वा असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गहेति पडिग्गहेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: उपरोक्त सूत्र २३३ में बताने के अनुसार उस तरह कुल २१ भेद जानने चाहिए, वो इस प्रकार – स्निग्ध यानि कि कम मात्रा में भी सचित्त पानी का गीलापन हो, सचित्त ऐसी – रज, मिट्टी, तुषार, नमक, हरिताल, मन – शिल, पिली मिट्टी, गैरिक धातु, सफेद मिट्टी, हिंगलोक, अंजन, लोघ्रद्रव्य कुक्कुसद्रव्य, गोधूम आदि चूर्ण, कंद, मूल, शृंगबेर (अदरख),
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-११ Hindi 745 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू पारियासियं पिप्पलिं वा पिप्पलिचुण्णं वा सिंगबेरं वा सिंगबेरचुण्णं वा बिलं वा लोणं उब्भियं वा लोणं आहारेति, आहारेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी रात को स्थापित, पिपर, पिपर चूर्ण, सूँठ, सूँठचूर्ण, मिट्टी, नमक, सींधालु आदि चीज का आहार करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त।
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

पिण्ड

Hindi 16 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुढवी आउक्काओ तेऊ वाऊ वणस्सई चेव । बेइंदिय तेइंदिय चउरो पंचेंदिया चेव ॥

Translated Sutra: पृथ्वीकाय पिंड़ – सचित्त, मिश्र, अचित्त। सचित्त दो प्रकार से – निश्चय से सचित्त और व्यवहार से सचित्त। निश्चय से सचित्त – रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा आदि पृथ्वी, हिमवंत आदि महापर्वत का मध्य हिस्सा आदि। व्यवहार से सचित्त – जहाँ गोमय, गोबर आदि न पड़े हो, सूर्य की गर्मी या मनुष्य आदि का आना – जाना न हो ऐसे जंगल आदि। मिश्र
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

एषणा

Hindi 614 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बाले वुड्ढे मत्ते उम्मत्ते वेविए य जरिए य । अंधिल्लए पगलिए आरूढे पाउयाहिं च ॥

Translated Sutra: नीचे बताए गए चालीस प्रकार के दाता के पास से उत्सर्ग मार्ग से साधु को भिक्षा लेना न कल्पे। बच्चा – आठ साल से कम उम्र का हो उससे भिक्षा लेना न कल्पे। बुजुर्ग हाजिर न हो तो भिक्षा आदि लेने में कईं प्रकार के दोष रहे हैं। एक स्त्री नई – नई श्राविका बनी थी। एक दिन खेत में जाने से उस स्त्री ने अपनी छोटी बेटी को कहा कि,
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-५ अपरिग्रह

Hindi 45 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जो सो वीरवरवयणविरतिपवित्थर-बहुविहप्पकारो सम्मत्तविसुद्धमूलो धितिकंदो विणयवेइओ निग्गततिलोक्कविपुल-जसनिचियपीणपीवरसुजातखंधो पंचमहव्वयविसालसालो भावणतयंत ज्झाण सुभजोग नाण पल्लववरंकुरधरो बहुगुणकुसुमसमिद्धो सीलसुगंधो अणण्हयफलो पुणो य मोक्खवरबीजसारो मंदरगिरि सिहरचूलिका इव इमस्स मोक्खर मोत्तिमग्गस्स सिहरभूओ संवर-वरपायवो। चरिमं संवरदारं। जत्थ न कप्पइ गामागर नगर खेड कब्बड मडंब दोणमुह पट्टणासमगयं च किंचि अप्पं व बहुं व अणुं व थूलं व तस थावरकाय दव्वजायं मणसा वि परिघेत्तुं। न हिरण्ण सुवण्ण खेत्त वत्थुं, न दासी दास भयक पेस हय गय गवेलगं व, न जाण जुग्ग सयणासणाइं,

Translated Sutra: श्रीवीरवर – महावीर के वचन से की गई परिग्रहनिवृत्ति के विस्तार से यह संवरवर – पादप बहुत प्रकार का है। सम्यग्दर्शन इसका विशुद्ध मूल है। धृति इसका कन्द है। विनय इसकी वेदिका है। तीनों लोकों में फैला हुआ विपुल यश इसका सघन, महान और सुनिर्मित स्कन्ध है। पाँच महाव्रत इसकी विशाल शाखाएं हैं। भावनाएं इस संवरवृक्ष
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२९. ध्यानसूत्र Hindi 486 View Detail
Mool Sutra: लवण व्व सलिलजोए, झाणे चित्तं विलीयए जस्स। तस्स सुहासुहडहणो, अप्पाअणलो पयासेइ।।३।।

Translated Sutra: जैसे पानी का योग पाकर नमक विलीन हो जाता है, वैसे ही जिसका चित्त निर्विकल्प समाधि में लीन हो जाता है, उसकी चिर संचित शुभाशुभ कर्मों को भस्म करनेवाली, आत्मरूप अग्नि प्रकट होती है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२९. ध्यानसूत्र Hindi 486 View Detail
Mool Sutra: लवणमिव सलिलयोगे, ध्याने चित्तं विलीयते यस्य। तस्य शुभाशुभदहनो, आत्मानलः प्रकाशयति।।३।।

Translated Sutra: जैसे पानी का योग पाकर नमक विलीन हो जाता है, वैसे ही जिसका चित्त निर्विकल्प समाधि में लीन हो जाता है, उसकी चिर संचित शुभाशुभ कर्मों को भस्म करनेवाली, आत्मरूप अग्नि प्रकट होती है।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-७ कुशील परिभाषित

Hindi 392 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इहेगे मूढा पवदंति मोक्खं आहारसंपज्जणवज्जणेणं । एगे य सीतोदगसेवणेणं हुतेन एगे पवदंति मोक्खं ॥

Translated Sutra: इस संसार में कईं मूढ़ आहार में नमकवर्जन से मोक्ष कहते हैं। कुछ शीतल जल – सेवन से और कुछ हवन से मोक्षप्राप्ति कहते हैं।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Hindi 667 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जइ–इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति– महिच्छा महारंभा महापरिग्गहा अधम्मिया ‘अधम्माणुया अधम्मिट्ठा’ अधम्मक्खाई अधम्मपायजीविणो अधम्मपलोइणो अधम्मपलज्जणा अधम्मसील-समुदाचारा अधम्मेन चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, ‘हण’ ‘छिंद’ ‘भिंद’ विगत्तगा लोहियपाणी चंडा रुद्दा खुद्दा साहस्सिया उक्कंचण-वंचण-माया-णियडि-कूड-कवड-साइ-संपओगबहुला दुस्सीला दुव्वया दुप्पडियाणंदा असाहू सव्वाओ पानाइवायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मुसावायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ प्रथम स्थान जो अधर्मपक्ष है, उसका विश्लेषणपूर्वक विचार किया जाता है – इस मनुष्यलोक में पूर्व आदि दिशाओं में कईं मनुष्य ऐसे होते हैं, जो गृहस्थ होते हैं, जिनकी बड़ी – बड़ी इच्छाएं होती हैं, जो महारम्भी एवं महापरिग्रही होते हैं। वे अधार्मिक, अधर्म का अनुसरण करने या अधर्म की अनुज्ञा देने वाले, अधर्मिष्ठ,
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-३ आहार परिज्ञा

Hindi 693 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं पुरक्खायं–इहेगइया सत्ता नानाविहजोणिया नानाविहसंभवा नानाविहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा नानाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा वाउकायत्ताए विउट्टंति। ते जीवा तेसिं नानाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेंति– ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं। नानाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति?] । अवरे वि य णं तेसिं तसथावरजोणियाणं

Translated Sutra: इस संसार में कितने ही जीव नाना प्रकार की योनियों में उत्पन्न होकर उनमें अपने किये हुए कर्म के प्रभाव से पृथ्वीकाय में आकर अनेक प्रकार के त्रस – स्थावर प्राणियों के सचित्त या अचित्त शरीरों में पृथ्वी, शर्करा या बालू के रूप में उत्पन्न होते हैं। इस विषय में निम्न गाथाओं के अनुसार जानना: – पृथ्वी, शर्करा, बालू,
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-६ आर्द्रकीय

Hindi 774 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] थूलं उरब्भं इह मारियाणं उद्दिट्ठभत्तं च पगप्पएत्ता । तं लोणतेल्लेन उवक्खडेत्ता सपिप्पलीयं पगरंति मंसं ॥

Translated Sutra: आपके मत में बुद्धानुयायी जन एक बड़े स्थूल भेड़े को मारकर उसे बौद्ध भिक्षुओं के भोजन के उद्देश्य से कल्पित कर उसको नमक और तेल के साथ पकाते हैं, फिर पिप्पली आदि द्रव्यों से बघार कर तैयार करते हैं।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

देहसंहननं आहारादि

Hindi 73 Sutra Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं एवं अद्धत्तेवीसं तंदुलवाहे भुंजंतो अद्धछट्ठे मुग्गकुंभे भुंजइ, अद्धछट्ठे मुग्गकुंभे भुंजंतो चउवीसं णेहाढगसयाइं भुंजइ, चउवीसं णेहाढगसयाइं भुंजंतो छत्तीसं लवणपलसहस्साइं भुंजइ, छत्तीसं लवणपलसहस्साइं भुंजंतो छप्पडसाडगसयाइं नियंसेइ, दोमासिएणं परिअट्टएणं मासिएण वा परियट्टएणं बारस पडसाडगसयाइं नियंसेइ। एवामेव आउसो! वाससयाउयस्स सव्वं गणियं तुलियं मवियं नेह लवण भोयणऽच्छायणं पि एयं गणियपमाणं दुविहं भणियं महरिसीहिं जस्सऽत्थि तस्स गणिज्जइ, जस्स नत्थि तस्स किं गणिज्जइ?

Translated Sutra: इस तरह साड़े बाईस वाह तांदुल खानेवाला वह साड़े पाँच कुम्भ मुँग खाता है। मतलब २४०० आढक घी और तेल या ३६ हजार पल नमक खाता है। वो दो महिने के बाद कपड़े बदलता है, ६०० धोती पहनता है। एक महिने पर बदलने से १२०० धोती पहनता है। इस तरह हे आयुष्मन्‌ ! १०० साल की आयुवाले मानव के तेल, घी, नमक, खाना और कपड़े की गिनती या तोल – नाप है, यह
Vipakasutra विपाकश्रुतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-२ उज्झितक

Hindi 14 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया। तए णं तेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया-महया [चिच्ची?] सद्देणं विघुट्ठे विस्सरे आरसिए। तए णं तस्स दारगस्स आरसियसद्दं सोच्चा निसम्म हत्थिणाउरे नयरे बहवे नगरगोरूवा सणाहा य अणाहा य नगरगावीओ य नगरबलीवद्दा य नगरपड्डियाओ य नगरवसभा य भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया सव्वओ समंता विपलाइत्था। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं नामधेज्जं करेंति–जम्हा णं अम्हं इमेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया-महया चिच्चीसद्देणं विघुट्ठे विस्सरे आरसिए, तए णं एयस्स दारगस्स आरसियसद्दं सोच्चा

Translated Sutra: तदनन्तर उस उत्पला नामक कूटग्राहिणी ने किसी समय नव – मास परिपूर्ण हो जाने पर पुत्र को जन्म दिया। जन्म के साथ ही उस बालक ने अत्यन्त कर्णकटु तथा चीत्कारपूर्ण भयंकर आवाज की। उस बालक के कठोर, चीत्कारपूर्ण शब्दों को सूनकर तथा अवधारण कर हस्तिनापुर नगर के बहुत से नागरिक पशु यावत्‌ वृषभ आदि भयभीत व उद्वेग को प्राप्त
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