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Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 23 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणओ अवक्कम्म एगल्लविहारपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा।

Translated Sutra: यदि कोई साधु, गणावच्छेदक, आचार्य या उपाध्याय गण को छोड़कर एकलविहारी प्रतिमा (अभिग्रह विशेष) अंगीकार करके विचरे (बीच में किसी दोष लगाए) फिर से वो ही गण (गच्छ) को अंगीकार करके विचरना चाहे तो उन साधु, गणावच्छेदक, आचार्य या उपाध्याय को फिर से आलोचना करवाए, पड़िकमावे, उसे छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त के लिए स्थापना करे। सूत्र
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Hindi 35 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो चेव सम्मंभावियाइं चेइयाइं पासेज्जा, बहिया गामस्स वा नगरस्स वा निगमस्स वा रायहाणीए वा खेडस्स वा कब्बडस्स वा मडंबस्स वा पट्टणस्स वा दोणमुहस्स वा आसमस्स वा संवाहस्स वा संनिवेसस्स वा पाईणाभिमुहे वा उदीणाभिमुहे वा करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वएज्जा– एवइया मे अवराहा, एवइक्खुत्तो अहं अवरद्धो, अरहंताणं सिद्धाणं अंतिए आलोएज्जा पडिक्कमेज्जा निंदेज्जा गरहेज्जा विउट्टेज्जा विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जासि।

Translated Sutra: देखो सूत्र ३३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 38 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे साहम्मिया एगओ विहरंति, एगे तत्थ अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवेत्ता आलोएज्जा, ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं।

Translated Sutra: एक सामाचारी वाले कईं साधु साथ में विचरते हो और उसमें से एक दोष का सेवन करे, फिर आलोचना करे तो उसे परिहार तप के लिए स्थापित करना और दूसरे उसकी वैयावच्च करे, यदि सभी साधु ने दोष का सेवन किया हो तो एक को वडील रूप में वैयावच्च के लिए स्थापित करे और अन्य परिहार तप करे। वो पूरा होने पर वैयावच्च करनेवाले साधु परिहार तप
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 68 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं आयारपकप्पधरे कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: तीन साल का पर्याय हो ऐसे श्रमण – निर्ग्रन्थ हो और फिर आचार – संयम, प्रवचन – गच्छ की सारसंभाळादिक संग्रह और पाणेसणादि उपग्रह के लिए कुशल हो, जिसका आचार खंड़ित नहीं हुआ, भेदन नहीं हुआ, सबल दोष नहीं लगा, संक्लिष्ट आचार युक्त चित्तवाला नहीं, बहुश्रुत, कईं आगम के ज्ञाता, जघन्य से आचार प्रकल्प – निसीह सूत्रार्थ के धारक
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 70 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं दसा-कप्प-ववहारधरे कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: पाँच साल के पर्यायवाले श्रमण – निर्ग्रन्थ यदि आचार – संयम, प्रवचन – गच्छ की सर्व फिक्र की प्रज्ञा – उपधि आदि के उपग्रह में कुशल हो, जिसका आचार छेदन – भेदन न हो, क्रोधादिक से जिसका चारित्र मलिन नहीं और फिर जो बहुसूत्री आगमज्ञाता है और जघन्य से दसा – कप्प – व्यवहार सूत्र के धारक हैं उन्हें यह पद देना न कल्पे। सूत्र
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 72 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं ठाणसमवायधरे कप्पइ आयरियत्ताए उवज्झायत्ताए पवत्तित्ताए थेरत्ताए गणित्ताए गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: आठ साल के पर्यायवाले श्रमण – निर्ग्रन्थ में ऊपर के सर्व गुण और जघन्य से ठाण, समवाय ज्ञाता हो उसे आचार्य से गणावच्छेदक पर्यन्त की पदवी देना कल्पे, लेकिन जिनमें उक्त गुण नहीं है उसे पदवी देना न कल्पे। सूत्र – ७२, ७३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 74 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निरुद्धपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ तद्दिवसं आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। से किमाहु भंते? अत्थि णं थेराणं तहारूवाणि कुलाणि कडाणि पत्तियाणि थेज्जाणि वेसासियाणि संमयाणि सम्मुइकराणि अनुमयाणि बहुमयाणि भवंति, तेहिं कडेहिं तेहिं पत्तिएहिं तेहिं थेज्जेहिं तेहिं वेसासिएहिं तेहिं संमएहिं तेहिं सम्मुइकरेहिं जं से निद्धपरियाए समणे निग्गंथे, कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए तद्दिवसं।

Translated Sutra: निरुद्धवास पर्याय – (एक बार दीक्षा लेने के बाद जिसका पर्याय छेद हुआ है ऐसे) श्रमण निर्ग्रन्थ को उसी दिन आचार्य – उपाध्याय पदवी देना कल्पे, हे भगवंत ! ऐसा क्यों कहा ? उस स्थविर साधु को पूर्व के तथारूप कुल हैं। जैसे कि प्रतीतिकारक, दान देने में धीर, भरोसेमंद, गुणवंत, साधु बार – बार वहोरने पधारे उसमें खुशी हो और दान
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 88 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य बहुस्सुए बब्भागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: साधु जो किसी एक या ज्यादा, गणावच्छेदक, आचार्य, उपाध्याय या सभी बहुश्रुत हो, कईं आगम के ज्ञाता हो, कईं गाढ़ – आगाढ़ के कारण से माया – कपट सहित झूठ बोले, असत्य भाखे उस पापी जीव को जावज्जीव के लिए आचार्य – उपाध्याय – प्रवर्तक, स्थविर, गणि या गणावच्छेदक की पदवी देना या धारण करना न कल्पे। सूत्र – ८८–९४
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 112 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा तं च केइ साहम्मिए पासित्ता वएज्जा–कं अज्जो! उवसंपज्जित्ताणं विहरसि? जे तत्थ सव्वराइणिए तं वएज्जा। राइणिए तं वएज्जा–अह भंते! कस्स कप्पाए? जे तत्थ सव्वबहुसए तं वएज्जा, जं वा से भगवं वक्खइ तस्स आणा-उववाय वयणनिद्देसे चिट्ठिस्सामि।

Translated Sutra: जो साधु गच्छ को छोड़कर ज्ञान आदि कारण से अन्य गच्छ अपनाकर विचरे तब कोई साधर्मिक साधु देखकर पूछे कि हे आर्य ! किस गच्छ को अंगीकार करके विचरते हो ? तब उस गच्छ के सभी रत्नाधिक साधु के नाम दे। यदि रत्नाधिक पूछे कि किसकी निश्रा में विचरते हो ? तो वो सब बहुश्रुत के नाम दे और कहे कि जिस तरह भगवंत कहेंगे उस तरह उनकी आज्ञा
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 113 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे साहम्मिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिचारियं चारए। नो ण्हं कप्पइ थेरे अनापुच्छित्ता एगयओ अभिनिचारियं चारए, कप्पइ ण्हं थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिनिचारियं चारए। थेरा य से वियरेज्जा एव ण्हं कप्पइ एगयओ अभिनिचारियं चारए, थेरा य से नो वियरेज्जा एव ण्हं नो कप्पइ एगयओ अभिनिचारियं चारए। जं तत्थ थेरेहिं अविइण्णे अभिनिचारियं चरंति से संतरा छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: बहुत साधर्मिक एक मांड़लीवाले साधु ईकट्ठे विचरना चाहे तो स्थविर को पूछे बिना वैसे विचरना या रहना न कल्पे। स्थविर को पूछे तब भी यदि वो आज्ञा दे तो इकट्ठे विचरना – रहना कल्पे यदि आज्ञा न दे तो न कल्पे। यदि आज्ञा के बिना विचरे तो जितने दिन आज्ञा बिना विचरे उतने दिन का छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त आता है।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Hindi 137 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गामानुगामं दूइज्जमाणी निग्गंथी य जं पुरओ काउं विहरइ सा आहच्च वीसंभेज्जा अत्थियाइं त्थ काइ अण्णा उवसंपज्जणारिहा सा उवसंपज्जियव्वा। नत्थियाइं त्थ काइ अण्णा उवसंपज्जणारिहा तीसे य अप्पणो कप्पाए असमत्ते कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अन्नाओ साहम्मिणीओ विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए। तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परावएज्जा–वसाहि अज्जे! एगरायं वा दुरायं वा। एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ

Translated Sutra: एक गाँव से दूसरे गाँव विचरते हुए या वर्षावास में रहे साध्वी जिन्हें आगे करके विचरते हो तो बड़े साध्वी शायद काल करे तो उस समुदाय में रहे दूसरे किसी उचित साध्वी को वडील स्थापित करके उसकी आज्ञा में रहे, यदि वडील की तरह वैसे कोई उचित न मिले और अन्य साध्वी आचार – प्रकल्प से अज्ञान हो तो एक रात का अभिग्रह लेकर, जिन दिशा
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Hindi 152 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमण-पवेसाए नो कप्पइ बहूण वि अगडसुयाणं एगयओ वत्थए। अत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रयणिं संवसइ नत्थियाइं त्थ केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रयणिं संवसइ सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: वो गाँव यावत्‌ संनिवेश के लिए अलग वाड़ हो, दरवाजे और आने – जाने के मार्ग भी अलग हो वहाँ कईं अगीतार्थ साधु को और श्रुत अज्ञानी को ईकट्ठे होकर रहना न कल्पे। यदि वहाँ कोई एक आचार प्रकल्प – निसीह आदि को जाननेवाले हो तो उनके साथ तीन रात में आकर साथ रहना कल्पे। ऐसा करते – करते किसी छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त नहीं
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उद्देशक-६ Hindi 153 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमण-पवेसाए नो कप्पइ बहुसुयस्स बब्भागमस्स एगाणियस्स भिक्खुस्स वत्थए, किमंग पुणं अप्पागमस्स अप्पसुयस्स?

Translated Sutra: वो गाँव यावत्‌ संनिवेश के लिए कईं वाड़ – दरवाजा आने – जाने का मार्ग हो वहाँ बहुश्रुत या कईं आगम के ज्ञाता का अकेले रहना न कल्पे, यदि उन्हें न कल्पे तो अल्पश्रुतधर या अल्प आगमज्ञाता को किस तरह कल्पे ? यानि न कल्पे, लेकिन एक ही वाड़, एक दरवाजा, आने – जाने का एक ही मार्ग हो वहाँ बहुश्रुत – आगमज्ञाता साधु एकाकीपन से रहना
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उद्देशक-७ Hindi 185 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से रायपरियट्टेसु संथडेसु अव्वोगडेसु अव्वोच्छिन्नेसु अपरपरिग्गहिएसु सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुन्नवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे।

Translated Sutra: राजा मर जाए तब राज में फेरफार हुआ है ऐसा माने। लेकिन पहले राजा की दशा – प्रभाव तूटे न हो, भाई – हिस्सा बँटा न हो, अन्य वंश के राजा का विच्छेद न हुआ हो, दूसरे राजा ने अभी उस देश का राज ग्रहण न किया हो तब तक पूर्व की अनुज्ञा के मुताबिक रहना कल्पे, लेकिन यदि पूर्व के राजा का प्रभाव तूट गया हो, हिस्से का बँटवारा, राज विच्छेद,
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उद्देशक-८ Hindi 191 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थेराणं थेरभूमिपत्ताणं कप्पइ दंडए वा भंडए वा छत्तए वा मत्तए वा लट्ठिया वा चेले वा चेलचिलिमिलिया वा चम्मे वा चम्मकोसए वा चम्मपलिच्छेयणए वा अविरहिए ओवासे ठवेत्ता गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविसित्तए वा निक्खमित्तए वा। कप्पइ ण्हं संनियट्टचारीणं दोच्चं पि ओग्गहं अनुन्नवेत्ता परिहरित्तए।

Translated Sutra: जो स्थविर स्थिरवास रहे उसे दंड़ी, पात्रा, सर ढ़ँकने का वस्त्र, पात्रक, लकड़ी, वस्त्र, चर्मखंड़ रखना कल्पे। यदि स्थविर अकेले हो तब यह सभी उपकरण कहीं रखकर गृहस्थ के घर आहार ग्रहण के लिए नीकले या प्रवेश करे। उसके बाद वापस आने पर जिसके वहाँ उपकरण रखे हों उसकी आज्ञा लेकर वो उपकरण भुगते या त्याग करे।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 212 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स एगवगडाए अंतो अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र २११
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 214 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स एगवगडाए बाहिं अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र २११
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 215 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए अंतो एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: शय्यातर के ज्ञातीजन हो, एक दरवाजा हो, आने – जाने का एक ही मार्ग हो, घर अलग हो लेकिन घर में या घर के बाहर रसोई का मार्ग एक ही हो। अलग – अलग चूल्हे हो, या एक ही हो तो भी शय्यातर के आहार – पानी पर जिसकी रोजी चलती हो, उस आहार में से साधु को दे तो वो आहार लेना न कल्पे। सूत्र – २१५–२१८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 216 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए अंतो अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र २१५
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 217 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए बाहिं एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र २१५
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 218 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए बाहिं अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र २१५
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 243 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] महल्लियण्णं मोयपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पइ से पढमसरदकालसमयंसि वा चरिम-निदाहकालसमयंसि वा बहिया गामस्स वा जाव सन्निवेसस्स वा वणंसि वा वणविदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा। भोच्चा आरुभइ सोलसमेणं पारेइ। अभोच्चा आरुभइ अट्ठारसमेणं पारेइ। जाए मोए आईयव्वे, दिया आगच्छइ आईयव्वे, राइं आगच्छइ नो आईयव्वे, सपाणे आगच्छइ नो आईयव्वे, अप्पाणे आगच्छइ आईयव्वे, सबीए आगच्छइ नो आईयव्वे, अबीए आगच्छई आईयव्वे, ससणिद्धे आगच्छइ नो आईयव्वे, अससणिद्धे आगच्छइ आईयव्वे, ससरक्खे आगच्छइ नो आईयव्वे, अससरक्खे आगच्छइ आईयव्वे, जाए मोए आईयव्वे, तं जहा–अप्पे वा बहुए वा। एवं खलु

Translated Sutra: बड़ी पिशाब प्रतिमा (अभिग्रह) अपनानेवाले साधु को ऊपर बताए अनुसार विधि से प्रतिमा वहन करनी हो। फर्क इतना कि भोजन करके प्रतिमा वहे तो, ७ – उपवास और भोजन किए बिना ८ – उपवास, बाकी सभी विधि छोटी प्रतिमा अनुसार मानना।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 244 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संखादत्तियस्स णं भिक्खुस्स पडिग्गहधारिस्स जावइयं-जावइयं केइ अंतो पडिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा तावइयाओ ताओ दत्तीओ वत्तव्वं सिया, तत्थ से केइ छव्वेण वा दूसएण वा वालएण वा अंतो पडिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया। तत्थ से बहवे भुंजमाणा सव्वे ते सयं पिंडं अंतो पडिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया।

Translated Sutra: अन्न – पानी की दत्ति की अमुक संख्या लेनेवाले साधु को पात्र धारक गृहस्थ के घर आहार के लिए प्रवेश बाद यात्रा में वो गृहस्थ अन्न की जितनी दत्ति दे उतनी दत्ति कहलाए। अन्न – पानी देते हुए धारा न तूटे वो एक दत्ति, उस साधु को किसी दातार वाँस की छाब में, वस्त्र से, चालणी से, पात्र उठाकर साधु को ऊपर से दे तब धारा तूटे नहीं
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 245 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संखादत्तियस्स णं भिक्खुस्स पाणिपडिग्गहियस्स जावइयं-जावइयं केइ अंतो पाणिंसि उवित्ता दलएज्जा तावइयाओ ताओ दत्तीओ वत्तव्वं सिया। तत्थ से केइ छव्वेण वा दूसएण वा वालएण वा अंतो पाणिंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया। तत्थ से बहवे भुंजमाणा सव्वे ते सयं पिंडं अंतो पाणिंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया।

Translated Sutra: जिस साधु ने पानी की दत्ति का अभिग्रह किया है वो गृहस्थ के वहाँ पानी लेने जाए तब एक पात्र ऊपर से पानी देने के लिए उठाया है उन सबको धारा न तूटे तब तक एक दत्ति कहते हैं। (आदि सर्व हकीकत ऊपर के सूत्र २४४ की आहार की दत्ति मुताबिक जानना।)
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 246 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहे उवहडे पन्नत्ते, तं जहा–सुद्धोवहडे फलिओवहडे संसट्ठोवहडे।

Translated Sutra: अभिग्रह तीन प्रकार के बताए, सफेद अन्न लेना, काष्ठ पात्र में सामने से लाकर दे वो हाथ से या बरतन से दे तो जो कोई ग्रहे, जो कोई दे, यदि कोई चीज को मुख में रखे वो चीज ही लेनी चाहिए। वो दूसरे प्रकार से तीन अभिग्रह। सूत्र – २४६, २४७
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 248 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगे पुण एवमाहंसु दुविहे ओग्गहिए पन्नत्ते, तं जहा–जं च ओगिण्हइ, जं च आसगंसि पक्खिवइ।

Translated Sutra: दो प्रकार से (भी) अभिग्रह बताए हैं। (१) जो हाथ में ले वो चीज लेना (२) जो मुख में रखे वो चीज लेना – ईस प्रकार मैं (तुम्हें) कहता हूँ।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१० Hindi 249 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो पडिमाओ पन्नत्ताओ तं जहा–जवमज्झा य चंदपडिमा, वइरमज्झा य चंदपडिमा। जवमज्झण्णं चंदपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स मासं निच्चं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति तं जहा –दिव्वा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा, अनुलोमा वा पडिलोमा वा–तत्थ अनुलोमा ताव वंदेज्जा वा नमंसेज्जा वा सक्कारेज्जा वा सम्माणेज्जा वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्जा, तत्थ पडिलोमा अन्नयरेणं दंडेण वा, अट्ठीण वा, जोत्तेण वा, वेत्तेण वा कसेण वा काए आउडेज्जा–ते सव्वे उप्पण्णे सम्मं सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा। जवमज्झण्णं चंदपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स सुक्कपक्खस्स

Translated Sutra: दो प्रतिमा (अभिग्रह) बताए हैं। वो इस प्रकार – जव मध्य चन्द्र प्रतिमा और वज्र मध्य चन्द्र प्रतिमा। जव मध्य चन्द्र प्रतिमाधारी साधु एक महिने तक काया की ममता का त्याग करते हैं। जो कोई देव या तिर्यंच सम्बन्धी अनुकूलया प्रतिकूल उपसर्ग उत्पन्न हो जिसमें वंदन – नमस्कार, सत्कार – सन्मान, कल्याण – मंगल, देवसर्दश आदि
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१० Hindi 250 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वइरमज्झण्णं चंदपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स मासं निच्चं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा –दिव्वा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा अनुलोमा वा पडिलोमा वा–तत्थ अनुलोमा ताव वंदेज्जा वा नमंसेज्जा वा सक्कारेज्जा वा सम्माणेज्जा वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्जा, तत्थ पडिलोमा अन्नयरेणं दंडेण वा, अट्ठीण वा, जोत्तेण वा, वेत्तेण वा, कसेण वा, काए आउडेज्जा–ते सव्वे उप्पन्ने सम्मं सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा। वइरमज्झण्णं चंदपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स बहुलपक्खस्स पाडिवए कप्पइ पण्णरस दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, पण्णरस पाणणस्स।

Translated Sutra: व्रज मध्य प्रतिमा (यानि अभिग्रह विशेष) धारण करनेवाले को काया की ममता का त्याग, उपसर्ग सहना आदि सब ऊपर के सूत्र २४९ में कहने के मुताबिक जानना। विशेष यह की प्रतिमा का आरम्भ कृष्ण पक्ष से होता है। एकम को पंद्रह दत्ति अन्न की और पंद्रह दत्ति पानी की लेकर तप का आरम्भ हो यावत्‌ अमावास तक एक – एक दत्ति कम होने से अमावास
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-१० Hindi 268 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा अवंजणजायस्स आयारपकप्पं नामं अज्झयणं उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: साधु – साध्वी को बाल साधु या बाल साध्वी जिन्हें अभी बगल में बाल भी नहीं आए यानि वैसी छोटी वयवाले को आचार प्रकल्प नामक अध्ययन पढ़ाना न कल्पे, बगल में बाल उगे उतनी वय के होने के बाद कल्पे। सूत्र – २६८, २६९
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Gujarati 113 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे साहम्मिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिचारियं चारए। नो ण्हं कप्पइ थेरे अनापुच्छित्ता एगयओ अभिनिचारियं चारए, कप्पइ ण्हं थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिनिचारियं चारए। थेरा य से वियरेज्जा एव ण्हं कप्पइ एगयओ अभिनिचारियं चारए, थेरा य से नो वियरेज्जा एव ण्हं नो कप्पइ एगयओ अभिनिचारियं चारए। जं तत्थ थेरेहिं अविइण्णे अभिनिचारियं चरंति से संतरा छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: ઘણા સાધર્મિક સાધુ એક સાથે ‘અભિનિચારિકા’(અર્થાત વિશિષ્ટ કારણથી અલ્પ સમય માટે સાથે મળીને વિચારવું તે). કરવા ઇચ્છે તો સ્થવિર સાધુને પૂછ્યા વિના તેમ કરવું ન કલ્પે. પરંતુ સ્થવિર સાધુને પૂછીને તેમ કરવું કલ્પે. જો સ્થવિર સાધુ આજ્ઞા આપે તો તેમને ‘અભિનિચારિકા’ કરવી કલ્પે. જો સ્થવિર આજ્ઞા ન આપે તો ન કલ્પે. જો સ્થવિરોની
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Gujarati 19 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे पारिहारिया बहवे अपारिहारिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए। नो से कप्पइ थेरे अनापुच्छित्ता एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए, कप्पइ ण्हं थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए। थेरा य ण्हं से नो वियरेज्जा एव ण्हं कप्पइ एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए। थेरा य ण्हं से नो वियरेज्जा एव ण्हं नो कप्पइ एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए, जो णं थेरेहिं अविइण्णे अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: અનેક પારિહારિક સાધુ અને અનેક અપારિહારિક સાધુ જે એક સાથે રહેવા કે બેસવા ઇચ્છે તો તેમને સ્થવિરોને પૂછ્યા વિના એક સાથે રહેવું કે બેસવું ન કલ્પે. સ્થવિરને પૂછીને જ બેસી કે રહી શકે. જો સ્થવિર આજ્ઞા આપે તો એક સાથે રહી કે બેસી શકે, આજ્ઞા ન આપે તો નહીં. સ્થવિરની આજ્ઞા વિના જો સાથે રહે કે બેસે તો તેમને મર્યાદાના ઉલ્લંઘન
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-१ Gujarati 35 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो चेव सम्मंभावियाइं चेइयाइं पासेज्जा, बहिया गामस्स वा नगरस्स वा निगमस्स वा रायहाणीए वा खेडस्स वा कब्बडस्स वा मडंबस्स वा पट्टणस्स वा दोणमुहस्स वा आसमस्स वा संवाहस्स वा संनिवेसस्स वा पाईणाभिमुहे वा उदीणाभिमुहे वा करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वएज्जा– एवइया मे अवराहा, एवइक्खुत्तो अहं अवरद्धो, अरहंताणं सिद्धाणं अंतिए आलोएज्जा पडिक्कमेज्जा निंदेज्जा गरहेज्जा विउट्टेज्जा विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जासि।

Translated Sutra: જો સમ્યક્‌ ભાવિત જ્ઞાનીપુરુષ ન મળે તો ગામ યાવત્‌ રાજધાનીની બહાર પૂર્વ કે ઉત્તર દિશા તરફ અભિમુખ થઈ બે હાથ જોડી, મસ્તકે આવર્તન કરી, મસ્તકે અંજલી કરી આમ બોલે – આટલા મારા દોષ છે અને આટલીવાર મેં આ દોષોનું સેવન કરેલ છે. એમ બોલી અરિહંત અને સિદ્ધો સમક્ષ આલોચના કરે યાવત્‌ યથાયોગ્ય પ્રાયશ્ચિત્તરૂપ તપ સ્વીકારે.
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उद्देशक-३ Gujarati 68 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं आयारपकप्पधरे कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: ત્રણ વર્ષના દીક્ષાપર્યાય વાળા સાધુ જો આચાર, સંયમ, પ્રવચન, પ્રજ્ઞપ્તિ, સંગ્રહ અને ઉપગ્રહ કરવામાં કુશળ હોય તથા અક્ષત, અભિન્ન, અશબલ અને અસંક્લિષ્ટ આચારવાળા હોય, બહુશ્રુત અને બહુઆગમજ્ઞ હોય, ઓછામાં ઓછું આચારપ્રકલ્પધર હોય તો તેને ઉપાધ્યાય પદ દેવું કલ્પે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Gujarati 70 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं दसा-कप्प-ववहारधरे कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: પાંચ વર્ષના દીક્ષાપર્યાયવાળા શ્રમણ જો ઉક્ત આચાર – સંયમાદિમાં કુશળ હોય, અક્ષતાદિ આચાર – વાળા હોય, બહુશ્રુત અને બહુઆગમજ્ઞ હોય તથા ઓછામાં ઓછા દશાશ્રુતસ્કંધ, બૃહત્કલ્પ અને વ્યવહારસૂત્રના ધારક હોય તો તેને આચાર્ય કે ઉપાધ્યાય પદ દેવું કલ્પે છે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Gujarati 72 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं ठाणसमवायधरे कप्पइ आयरियत्ताए उवज्झायत्ताए पवत्तित्ताए थेरत्ताए गणित्ताए गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: આઠ વર્ષના દીક્ષાપર્યાય વાળા સાધુ જો આચાર, સંયમ, પ્રવચન, પ્રજ્ઞપ્તિ, સંગ્રહ, ઉપગ્રહમાં કુશળ હોય તથા અક્ષત, અભિન્ન, અશબલ અને અસંક્લિષ્ટ આચારી હોય, બહુશ્રુત અને બહુઆગમજ્ઞ હોય અને ઓછામાં ઓછું સ્થાનાંગ – સમવાયાંગ સૂત્રના ધારક હોય તો તેને આચાર્ય, ઉપાધ્યાય, ગણાવચ્છેદક પદ દેવું કલ્પે છે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Gujarati 152 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमण-पवेसाए नो कप्पइ बहूण वि अगडसुयाणं एगयओ वत्थए। अत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रयणिं संवसइ नत्थियाइं त्थ केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थियाइं त्थ केइ आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रयणिं संवसइ सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: ગામ યાવત્‌ રાજધાનીમાં અનેક પ્રાકારવાળા અનેક દ્વારવાળા અનેક નિષ્ક્રમણ – પ્રવેશવાળા ઉપાશ્રયમાં અનેક અનેક અકૃતશ્રુત (અર્થાત અલ્પ શ્રુતવાળા) કે અલ્પજ્ઞ અથવા તો અગીતાર્થ સાધુઓને સાથે રહેવું કલ્પતું નથી. જો કોઈ આચારપ્રકલ્પધર (અર્થાત ગીતાર્થ) સાધુની નિશ્રા ત્રીજે દિવસે પણ મળી જાય એટલે કે તેમની સાથે ગીતાર્થ
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Gujarati 153 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमण-पवेसाए नो कप्पइ बहुसुयस्स बब्भागमस्स एगाणियस्स भिक्खुस्स वत्थए, किमंग पुणं अप्पागमस्स अप्पसुयस्स?

Translated Sutra: ગામ યાવત્‌ રાજધાનીમાં અનેક વાડવાળા અનેક નિષ્ક્રમણ પ્રવેશવાળા ઉપાશ્રયમાં એકલા રહેવું બહુશ્રુત અને બહુ આગમજ્ઞ સાધુને ન કલ્પે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Gujarati 185 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से रायपरियट्टेसु संथडेसु अव्वोगडेसु अव्वोच्छिन्नेसु अपरपरिग्गहिएसु सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुन्नवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे।

Translated Sutra: રાજાના મૃત્યુ પછી નવા રાજાનો અભિષેક હોય પરંતુ અવિભક્ત અને શત્રુઓ દ્વારા અનાક્રાંત રહે, રાજવંશ અવિચ્છિન્ન રહે અને રાજ્ય વ્યવસ્થા પૂર્વવત રહે તો સાધુ – સાધ્વીઓને માટે પૂર્વગ્રહીત આજ્ઞા જ અવસ્થિત રહે છે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Gujarati 186 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से रज्जपरियट्टेसु असंथडेसु वोगडेसु वोच्छिन्नेसु परपरिग्गहिएसु भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अनुण्णवेयव्वे।

Translated Sutra: રાજાના મૃત્યુ પછી નવા રાજાનો અભિષેક હોય અને તે સમયે રાજ્ય વિભક્ત થઈ જાય, કે શત્રુ દ્વારા આક્રાંત થઈ જાય, રાજવંશ વિચ્છિન્ન થઈ જાય કે રાજ્ય વ્યવસ્થા પરિવર્તિત થઈ જાય તો સાધુ – સાધ્વીને સંયમ – મર્યાદાની રક્ષા માટે ફરીવાર આજ્ઞા લેવી જોઈએ.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Gujarati 212 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स एगवगडाए अंतो अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: શય્યાતરના સ્વજન, શય્યાતરના ઘરમાં, શય્યાતરના. ... જુદા ચુલ્લા ઉપર સાગારિકની જ સામગ્રીથી આહારાદિ બનાવીને જમતો હોય અને તે આહાર આપે તો પણ લેવો ન કલ્પે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Gujarati 214 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स एगवगडाए बाहिं अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: સાગારિકનો સ્વજન સાગારિકના ઘરના બાહ્ય ભાગમાં સાગારિકના ચુલ્લાથી જુદા ચુલ્લા ઉપર. ... સાગારિકની જ સામગ્રીથી આહાર બનાવી જીવન નિર્વાહ કરતો હોય, જો તે આહારમાંથી તે સાધુ – સાધ્વીને આપે તો તેઓને લેવું ન કલ્પે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Gujarati 215 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए अंतो एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: સાગારિકનો સ્વજન સાગારિકના ઘરના જુદા ગૃહવિભાગમાં તથા એક નિષ્ક્રમણ – પ્રવેશદ્વાર વાળા ગૃહના બાહ્ય ભાગમાં સાગારિકના ચુલ્લા ઉપર સાગારિકની જ સામગ્રીથી આહાર બનાવીને જીવનનિર્વાહ કરતો હોય જો તે એ આહારમાંથી સાધુ – સાધ્વીને આપે તો તેને લેવો ન કલ્પે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Gujarati 216 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए अंतो अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: સાગારિકનો સ્વજન સાગારિકના ઘરના જુદા ગૃહવિભાગમાં તથા એક નિષ્ક્રમણ – પ્રવેશદ્વાર વાળા ગૃહના બાહ્ય ભાગમાં સાગારિકના ચુલ્લાથી ભિન્ન ચુલ્લા ઉપર સાગારિકની જ સામગ્રીથી આહાર બનાવીને જીવનનિર્વાહ કરતો હોય. જો તે એ આહારમાંથી સાધુ – સાધ્વીને આપે તો તેને લેવો ન કલ્પે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Gujarati 217 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए बाहिं एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: સાગારિકનો સ્વજન સાગારિકના ઘરના જુદા ગૃહવિભાગમાં તથા એક નિષ્ક્રમણ – પ્રવેશદ્વાર વાળા ગૃહના બાહ્ય વિભાગમાં ૧. સાગારિકના ચુલ્લા ઉપર સાગારિકની જ સામગ્રીથી આહાર બનાવીને જીવનનિર્વાહ કરતો હોય. તેમાંથી સાધુ – સાધ્વીને આપે તો લેવું ન કલ્પે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Gujarati 218 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए बाहिं अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए।

Translated Sutra: સાગારિકનો સ્વજન સાગારિકના ઘરના જુદા ગૃહવિભાગમાં તથા એક નિષ્ક્રમણ – પ્રવેશદ્વાર વાળા ગૃહના બાહ્ય વિભાગમાં સાગારિકના ચુલ્લાથી ભિન્ન ચુલ્લા ઉપર સાગારિકની જ સામગ્રીથી આહાર બનાવીને જીવનનિર્વાહ કરતો હોય. તેમાંથી સાધુ – સાધ્વીને આપે તો લેવું ન કલ્પે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Gujarati 244 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संखादत्तियस्स णं भिक्खुस्स पडिग्गहधारिस्स जावइयं-जावइयं केइ अंतो पडिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा तावइयाओ ताओ दत्तीओ वत्तव्वं सिया, तत्थ से केइ छव्वेण वा दूसएण वा वालएण वा अंतो पडिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया। तत्थ से बहवे भुंजमाणा सव्वे ते सयं पिंडं अंतो पडिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया।

Translated Sutra: દત્તીઓની સંખ્યાનો અભિગ્રહ કરનારો પાત્રધારી સાધુ ગૃહસ્થના ઘેર આહાર માટે પ્રવેશ કરે ત્યારે ૧. આહાર દેનાર ગૃહસ્થ પાત્રમાં જેટલી વાર ઝુકાવીને આહાર આપે, તેટલી જ દત્તીઓ કહેવી જોઈએ, ૨. આહાર દેનારો જો છાબડી, પાત્ર, ચાલણીથી રોકાયા વિના પાત્રમાં ઝુકાવીને આપે, તે બધી એકદત્તી કહેવાય છે. ૩. આહાર દેનાર ગૃહસ્થ જ્યાં અનેક
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Gujarati 245 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संखादत्तियस्स णं भिक्खुस्स पाणिपडिग्गहियस्स जावइयं-जावइयं केइ अंतो पाणिंसि उवित्ता दलएज्जा तावइयाओ ताओ दत्तीओ वत्तव्वं सिया। तत्थ से केइ छव्वेण वा दूसएण वा वालएण वा अंतो पाणिंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया। तत्थ से बहवे भुंजमाणा सव्वे ते सयं पिंडं अंतो पाणिंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया।

Translated Sutra: દત્તી સંખ્યા અભિગ્રહધારી કરપાત્રભોજી નિર્ગ્રન્થ ગૃહસ્થના ઘરમાં આહાર માટે પ્રવેશે ત્યારે – ૧. આહાર દેનાર ગૃહસ્થ જેટલી વાર ઝુકાવીને સાધુના હાથમાં આહાર આપે, તેટલી દત્તીઓ કહેવાય. ૨. આહાર દેનારો જો છાબડી, પાત્ર, ચાલણીથી રોકાયા વિના પાત્રમાં ઝુકાવીને આપે, તે બધી એકદત્તી કહેવાય છે. ૩. આહાર દેનાર ગૃહસ્થ જ્યાં અનેક
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