Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures
Search :

Search Results (291)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Hindi 172 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तं दोवइं रायवरकण्णं अंतेउरियाओ सव्वालंकारविभूसियं करेंति। किं ते? वरपायपत्तनेउरा जाव चेडिया-चक्कवाल-महयरग-विंद-परिक्खित्ता अंतेउराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ। तए णं से धट्ठज्जुणे कुमारे दोवईए रायवरकन्नाए सारत्थं करेइ। तए णं सा दोवई रायवरकन्ना कंपिल्लपुरं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं सयंवरामडबं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ अन्तःपुर की स्त्रियों ने राजवरकन्या द्रौपदी को सब अलंकारों से विभूषित किया। किस प्रकार ? पैरों में श्रेष्ठ नूपुर पहनाए यावत्‌ वह दासियों के समूह से परिवृत्त होकर अन्तःपुर से बाहर नीकलकर जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी और जहाँ चार घंटाओं वाला अश्वरथ था, वहाँ आई। आकर क्रीड़ा करने वाली धाय और लेखिका
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Gujarati 172 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तं दोवइं रायवरकण्णं अंतेउरियाओ सव्वालंकारविभूसियं करेंति। किं ते? वरपायपत्तनेउरा जाव चेडिया-चक्कवाल-महयरग-विंद-परिक्खित्ता अंतेउराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ। तए णं से धट्ठज्जुणे कुमारे दोवईए रायवरकन्नाए सारत्थं करेइ। तए णं सा दोवई रायवरकन्ना कंपिल्लपुरं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं सयंवरामडबं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૭૨. ત્યારપછી ઉત્તમ રાજકન્યા દ્રૌપદીને અંતઃપુરની સ્ત્રીઓએ સર્વાલંકારથી વિભૂષિત કરે છે. તે શું ? પગમાં શ્રેષ્ઠ ઝાંઝર પહેરાવ્યા યાવત્‌ દાસીઓના સમૂહથી પરીવરીને, બધા અંગોમાં વિભિન્ન આભૂષણ પહેરેલી તેણી અંતઃપુરથી બહાર નીકળી. બાહ્ય ઉપસ્થાનશાળામાં ચાતુર્ઘંટ અશ્વરથ પાસે આવી. ક્રીડા કરાવનારી અને લેખિકા
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 103 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्कम्मि वि जम्मि पए संवेगं कुणइ वीयरायमए । तं तस्स होइ नाणं जेण विरागत्तणमुवेइ ॥

Translated Sutra: वीतरागशासनमें एक भी पद के लिए जो संवेग किया जाता है, वो उस का ज्ञान है, जिस से वैराग्य पा सकते हैं। वीतराग के शासन में एक भी पद के लिए जो संवेग किया जाता है, उस से वह मानव मोहजाल का अध्यात्मयोग द्वारा छेदन करते हैं। वीतराग के शासन में एक भी पद के लिए जो संवेग करता है, वह पुरुष हंमेशा वैराग पाता है। इसलिए समाधि मरण
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 104 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्कम्मि वि जम्मि पए संवेगं कुणइ वीयरायमए । सो तेण मोहजालं छिंदइ अज्झप्पयोगेणं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १०३
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 105 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्कम्मि वि जम्मि पए संवेगं कुणइ वीयरायमए । वच्चइ नरो अभिक्खं तं मरणं तेण मरियव्वं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १०३
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 106 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जेण विरागो जायइ तं तं सव्वायरेण कायव्वं । मुच्चइ हु ससंवेगी, अनंतओ ओहसंवेगी ॥

Translated Sutra: जिस से वैराग हो वो, वह कार्य सर्व आदर के साथ करना चाहिए। जिस से संवेगी जीव संसार से मुक्त होता है और असंवेगी जीव को अनन्त संसार का परिभ्रमण करना पड़ता है।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 107 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धम्मं जिनपन्नत्तं सम्ममिणं सद्दहामि तिविहेणं । तस-थावरभूयहियं पंथं नेव्वाणगमणस्स ॥

Translated Sutra: जिनेश्वर भगवानने प्रकाशित किया यह धर्म मैं सम्यक्‌ तरीके से त्रिविधे श्रद्धा करता हूँ। (क्योंकि) यह त्रस और स्थावर जीव के हित में है और मोक्ष रूपी नगर का सीधा रास्ता है।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 108 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समणो मि त्ति य पढमं, बीयं सव्वत्थ संजओ मि त्ति । सव्वं च वोसिरामि जिनेहिं जं जं च पडिकुट्ठं ॥

Translated Sutra: मैं श्रमण हूँ, सर्व अर्थ का संयमी हूँ, जिनेश्वर भगवान ने जो जो निषेध किया है वो सर्व एवं – उपधि, शरीर और चतुर्विध आहार को मन, वचन और काया द्वारा मैं भाव से वोसिराता (त्याग करता) हूँ। सूत्र – १०८, १०९
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 109 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवही सरीरगं चेव आहारं च चउव्विहं । मनसा वय काएणं वोसिरामि त्ति भावओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १०८
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 110 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मनसा अचिंतणिज्जं सव्वं भासायऽभासणिज्जं च । काएण अकरणिज्जं सव्वं तिविहेण वोसिरे ॥

Translated Sutra: मन द्वारा जो चिन्तवन के लायक नहीं है वह सर्व मैं त्रिविध से वोसिराता (त्याग करता) हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 111 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अस्संजमवोगसणं उवहि विवेगकरणं उवसमो य । पडिरूयजोगविरओ खंती मुत्ती विवेगो य ॥

Translated Sutra: असंयम से विरमना, उपधि का विवेक करण, (त्याग करना) उपशम, अयोग्य व्यापार से विरमना, क्षमा, निर्लोभता और विवेक – इस पच्चक्खाण को बीमारी से पीड़ित मानव आपत्तिमें भाव द्वारा अंगीकार करता हुआ और बोलते हुए समाधि पाता है। सूत्र – १११, ११२
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 112 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयं पच्चक्खाणं आउरजणआवईसु भावेण । अन्नयरं पडिवण्णो जंपंतो पावइ समाहिं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १११
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 113 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयंसि निमित्तम्मी पच्चक्खाऊण जइ करे कालं । तो पच्चखाइयव्वं इमेण एक्केण वि पएणं ॥

Translated Sutra: उस निमित्त के लिए यदि कोइ मानव पच्चक्खाण कर के काल करे तो यह एक पद द्वारा भी पच्चक्खाण करवाना चाहिए।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 114 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मम मंगलमरिहंता सिद्धा साहू सुयं च धम्मो य । तेसिं सरणोवगओ सावज्जं वोसिरामि त्ति ॥

Translated Sutra: मुझे अरिहंत, सिद्ध, साधु, श्रुत और धर्म मंगलरूप हैं, उस का शरण पाया हुआ मैं सावद्य (पापकर्म) को वोसिराता हूँ। अरिहंत – सिद्ध – आचार्य – उपाध्याय और साधु मेरे लिए मंगलरूप हैं और अरिहंतादि पाँचों मेरे देव स्वरूप हैं, उन अरिहंतादि पाँचों की स्तुति कर के मैं मेरे अपने पाप को वोसिराता हूँ। सूत्र – ११४–११९
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 115 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अरहंता मंगलं मज्झ, अरहंता मज्झ देवया । अरहंते कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ११४
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 116 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धा य मंगलं मज्झ, सिद्धा य मज्झ देवया । सिद्धे य कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ११४
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 117 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आयरिया मंगलं मज्झ, आयरिया मज्झ देवया । आयरिए कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ११४
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 118 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उज्झाया मंगलं मज्झ, उज्झाया मज्झ देवया । उज्झाए कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ११४
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 119 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] साहू य मंगलं मज्झ, साहू य मज्झ देवया । साहू य कित्तइत्ताणं वोसिरामि त्ति पावगं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ११४
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 120 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धे उवसंपन्नो अरहंते केवलि त्ति भावेणं । एत्तो एगयरेण वि पएण आराहओ होइ ॥

Translated Sutra: सिद्धों का, अरिहंतों का और केवली का भाव से सहारा ले कर या फिर मध्य के किसी भी एक पद द्वारा आराधक हो सकते हैं।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मङ्गलं

Hindi 1 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एस करेमि पणामं तित्थयराणं अनुत्तरगईणं । सव्वेसिं च जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च ॥

Translated Sutra: अब मैं उत्कृष्ट गतिवाले तीर्थंकर को, सर्व जिन को, सिद्ध को और संयत (साधु) को नमस्कार करता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मङ्गलं

Hindi 2 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वदुक्खप्पहीणाणं सिद्धाणं अरहओ नमो । सद्दहे जिनपन्नत्तं पच्चक्खामि य पावगं ॥

Translated Sutra: सर्व दुःख रहित ऐसे सिद्ध को और अरिहंत को नमस्कार हो, जिनेश्वर भगवान ने प्ररूपित किए हुए तत्त्वों, सभी की मैं श्रद्धा करता हूँ और पाप के योग का पच्चक्खाण करता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

व्युत्सर्जन, क्षमापनादि

Hindi 3 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जं किंचि वि दुच्चरियं तमहं निंदामि सव्वभावेणं । सामाइयं च तिविहं करेमि सव्वं निरागारं ॥

Translated Sutra: जो कुछ भी बूरा आचरण मुझ से हुआ हो उन सब की मैं सच्चे भाव से निन्दा करता हूँ, और मन, वचन, काया इन तीन प्रकार से सर्व आगार रहित सामायिक अब मैं करता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

व्युत्सर्जन, क्षमापनादि

Hindi 4 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बाहिरऽब्भंतरं उवहिं सरीरादि सभोयणं । मनसा वय काएणं सव्वं तिविहेण वोसिरे ॥

Translated Sutra: बाह्य उपधि (वस्त्रादिक), अभ्यंतर उपधि (क्रोधादिक), शरीर आदि, भोजन सहित सभी को मन, वचन, काया से त्याग करता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

व्युत्सर्जन, क्षमापनादि

Hindi 5 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रागं बंधं पओसं च हरिसं दीनभावयं । उस्सुगत्तं भयं सोगं रइमरइं च वोसिरे ॥

Translated Sutra: राग का बंध, द्वेष, हर्ष, दीनता, आकुलपन, भय, शोक, रति और मद को मैं वोसिराता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

व्युत्सर्जन, क्षमापनादि

Hindi 6 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रोसेण पडिनिवेसेण अकयण्णुयया तहेव सढयाए । जो मे किंचि वि भणिओ तमहं तिविहेण खामेमि ॥

Translated Sutra: रोष द्वारा, कदाग्रह द्वारा, अकृतघ्नता द्वारा और असत्‌ ध्यान द्वारा जो कुछ भी मैं अविनयपन से बोला हूँ तो त्रिविधे त्रिविधे मैं उसको खमाता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

व्युत्सर्जन, क्षमापनादि

Hindi 7 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खामेमि सव्वजीवे सव्वे जीवा खमंतु मे । आसवे वोसिरित्ताणं समाहिं पडिसंधए ॥

Translated Sutra: सर्व जीव को खमाता हूँ। सर्व जीव मुझे क्षमा करो, आश्रव को वोसिराते हुए मैं समाधि (शुभ) ध्यान को मैं आरंभ करता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

निन्दा गर्हा आदि

Hindi 8 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निंदामि निंदणिज्जं गरहामि य जं च मे गरहणिज्जं । आलोएमि य सव्वं जिणेहिं जं जं च पडिकुट्ठं ॥

Translated Sutra: जो निन्दने योग्य हो उसे मैं निन्दता हूँ, जो गुरु की साक्षी से निन्दने को योग्य हो उसकी मैं गर्हा करता हूँ और जिनेश्वरने जो निषेध किया है उस सर्व की मैं आलोचना करता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

निन्दा गर्हा आदि

Hindi 9 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवही सरीरगं चेव आहारं च चउव्विहं । ममत्तं सव्वदव्वेसु परिजाणामि केवलं ॥

Translated Sutra: उपधी, शरीर, चतुर्विध आहार और सर्व द्रव्य के बारेमें ममता इन सभी को जान कर मैं त्याग करता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

निन्दा गर्हा आदि

Hindi 10 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ममत्तं परिजाणामि निम्ममत्ते उवट्ठिओ । आलंबणं च मे आया अवसेसं च वोसिरे ॥

Translated Sutra: निर्ममत्व के लिए उद्यमवंत हुआ मैं ममता का समस्त तरह से त्याग करता हूँ। एक मुझे आत्मा का ही आलम्बन है; शेष सभी को मैं वोसिराता (त्याग करता) हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

निन्दा गर्हा आदि

Hindi 11 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आया मज्झं नाणे आया मे दंसणे चरित्ते य । आया पच्चक्खाणे आया मे संजमे जोगे ॥

Translated Sutra: मेरा जो ज्ञान है वो मेरा आत्मा है, आत्मा ही मेरा दर्शन और चारित्र है, आत्मा ही पच्चक्खाण है। आत्मा ही मेरा संयम और आत्मा ही मेरा योग है।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

निन्दा गर्हा आदि

Hindi 12 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मूलगुणे उत्तरगुणे जे मे नाऽऽराहिया पमाएणं । ते सव्वे निंदामिं पडिक्कमे आगमिस्साणं ॥

Translated Sutra: मूलगुण और उत्तरगुण की मैंने प्रमाद से आराधन न कि हो तो उन सब अनाराधक भाव की अब मैं निन्दा करता हूँ और आगामी काल के लिए होनेवाले उन अनाराधन भाव से मैं वापस लौटता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 13 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्को हं नत्थि मे कोई, न चाहमवि कस्सई । एवं अदीनमनसो अप्पाणमणुसासए ॥

Translated Sutra: मैं अकेला हूँ, मेरा कोई नहीं है, और मैं भी किसी का नहीं हूँ ऐसे अदीन चित्तवाला आत्मा को शिक्षीत करें
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 14 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्को उप्पज्जए जीवो, एक्को चेव विवज्जई । एक्कस्स होइ मरणं एक्को सिज्झइ नीरओ ॥

Translated Sutra: जीव अकेला उत्पन्न होता है और अकेला ही नष्ट होता है। अकेले को ही मृत्यु को प्राप्त करता है और अकेला ही जीव कर्मरज रहित होकर मोक्ष पाता है (मुक्त होता है।)
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 15 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्को करेइ कम्मं, फलमवि तस्सेक्कओ समनुहवइ । एक्को जायइ मरइ य, परलोयं एक्कओ जाइ ॥

Translated Sutra: अकेला ही कर्म करता है, उस के फल को भी अकेले ही भुगतान करता है, अकेला ही उत्पन्न होता है और अकेला ही मरता है और परलोक में उत्पन्न भी अकेला ही होता है।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 16 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्को मे सासओ अप्पा नाण-दंसणलक्खणो । सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा ॥

Translated Sutra: ज्ञान, दर्शन, लक्षणवंत अकेला ही मेरा आत्मा शाश्वत है; बाकी के मेरे बाह्य भाव सर्व संयोगरूप हैं।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 17 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संजोगमूला जीवेणं पत्ता दुक्खपरंपरा । तम्हा संजोगसंबंधं सव्वं तिविहेण वोसिरे ॥

Translated Sutra: जिस की जड़ संयोग है ऐसे दुःख की परम्परा जीव पाता है उन के लिए सर्व संयोग सम्बन्ध को त्रिविधे वोसिराता (त्याग करता) हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मिथ्यात्वत्याग

Hindi 18 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अस्संजममण्णाणं मिच्छत्तं सव्वओ वि य ममत्तं । जीवेसु अजीवेसु य तं निंदे तं च गरिहामि ॥

Translated Sutra: असंयम, अज्ञान, मिथ्यात्व और जीव एवं अजीव के लिए जो ममत्व है उसकी मैं निन्दा करता हूँ और गुरु की साक्षी से गर्हा करता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मिथ्यात्वत्याग

Hindi 19 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मिच्छत्तं परिजाणामि सव्वं अस्संजमं अलीयं च । सव्वत्तो य ममत्तं चयामि सव्वं च खामेमि ॥

Translated Sutra: मिथ्यात्व को अच्छे तरीके से पहचानता हूँ। इसलिए सर्व असत्य वचन को और सर्वथा से ममता का मैं त्याग करता हूँ और सर्व को खमाता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मिथ्यात्वत्याग

Hindi 20 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु । ते हं आलोएमी उवट्ठिओ सव्वभावेणं ॥

Translated Sutra: जो – जो स्थान पर मेरे किए गए अपराध को जिनेश्वर भगवान जानते हैं, सभी तरह से उपस्थित हुआ मैं उस अपराध की आलोचना करता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मिथ्यात्वत्याग

Hindi 21 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उप्पन्नाऽनुप्पन्ना माया अनुमग्गओ निहंतव्वा । आलोयण-निंदण-गरिहणाहिं न पुण त्ति या बीयं ॥

Translated Sutra: उत्पन्न यानि वर्तमानकाल की, अनुत्पन्न यानि भावि की माया, दूसरी बार न करूँ, इस तरह से आलोचन, निंदन और गर्हा द्वारा उन का मैं त्याग करता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मिथ्यात्वत्याग

Hindi 22 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जह बालो जंपंतो कज्जमकज्जं च उज्जुयं भणइ । तं तह आलोइज्जा माया-मयविप्पमुक्को उ ॥

Translated Sutra: जैसे बोलता हुआ बच्चा कार्य और अकार्य सबकुछ सरलता से कह दे वैसे माया और मद द्वारा रहित पुरुष सर्व पाप की आलोचना करता है।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मिथ्यात्वत्याग

Hindi 23 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोही उज्जुयभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई । निव्वाणं परमं जाइ घयसित्ते व पावए ॥

Translated Sutra: जिस तरह घी द्वारा सिंचन किया गया अग्नि जलता है वैसे सरल होनेवाले मानव को आलोचना शुद्ध होती है और शुद्ध होनेवाले में धर्म स्थिर रहता है और फिर परम निर्वाण यानि मोक्ष पाता है।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मिथ्यात्वत्याग

Hindi 24 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न हु सिज्झई ससल्लो जह भणियं सासणे धुयरयाणं । उद्धरियसव्वसल्लो सिज्झइ जीवो धुयकिलेसो ॥

Translated Sutra: शल्य रहित मानव सिद्धि नहीं पा सकता, उसी तरह पापरूप मैल रखनेवाले (वीतराग) के शासन में कहा है; इसलिए सर्व शल्य उद्धरण कर के क्लेश रहित हुआ ऐसा जीव सिद्धि पाता है।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मिथ्यात्वत्याग

Hindi 25 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुबहुं पि भावसल्लं जे आलोयंति गुरुसगासम्मि । निस्सल्ला संथारगमुवेंति आराहगा होंति ॥

Translated Sutra: बहुत कुछ भी भाव शल्य गुरु के पास आलोचना कर के निःशल्य हो कर संथारा (अनशन) का आदर करे तो वो आराधक होता है।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मिथ्यात्वत्याग

Hindi 26 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अप्पं पि भावसल्लं जे णाऽऽलोयंति गुरुसगासम्मि । धंतं पि सुयसमिद्धा न हु ते आराहगा होंति ॥

Translated Sutra: वो थोड़ा भी भावशल्य गुरु पास आलोचन न करे तो अतिज्ञानवंत होने के बावजूद भी आराधक नहीं होता
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मिथ्यात्वत्याग

Hindi 27 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न वि तं सत्थं व विसं व दुप्पउत्तो व कुणइ वेयालो । जंतं व दुप्पउत्तं सप्पो व पमायओ कुद्धो ॥

Translated Sutra: बूरी तरह इस्तमाल किया गया शस्त्र, विष, दुष्प्रयुक्त वैताल, दुष्प्रयुक्त यंत्र और प्रमाद से कोपित साँप वैसा काम नहीं करता। (जैसा काम भाव शल्य से युक्त होनेवाला करता है।)
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मिथ्यात्वत्याग

Hindi 28 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तिमट्ठकालम्मि । दुल्लंभबोहियत्तं अणंतसंसारियत्तं च ॥

Translated Sutra: जिस वजह से अंतकाल में नहीं उद्धरेल भावशल्य दुर्लभ बोधीपन और अनन्त संसारीपन कहता है – उस वजह से गारव रहित जीव पुनर्भव समान लता की जड़ समान एक जैसे मिथ्यादर्शन शल्य, माया शल्य और नियाण शल्य का उद्धरण करना चाहिए। सूत्र – २८, २९
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मिथ्यात्वत्याग

Hindi 29 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुनब्भवलयाणं । मिच्छादंसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २८
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मिथ्यात्वत्याग

Hindi 30 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कयपावो वि मनूसो आलोइय निंदिउं गुरुसगासे । होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरु व्व भारवहो ॥

Translated Sutra: जिस तरह बोज का वहन करनेवाला मानव बोज उतारकर हलका होता है वैसे पाप करनेवाला मानव आलोचना और निन्दा करके बहोत हलका होता है।
Showing 1 to 50 of 291 Results