Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011905 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
17. स्याद्वाद अधिकार - (सर्वधर्म-समभाव) |
Translated Chapter : |
17. स्याद्वाद अधिकार - (सर्वधर्म-समभाव) |
Section : | 2. स्याद्वाद-न्याय | Translated Section : | 2. स्याद्वाद-न्याय |
Sutra Number : | 402 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | आप्त मीमांसा । १०३ | ||
Mool Sutra : | वाक्येष्वनेकान्तद्योतिगम्यं-प्रतिविशेषणम्। स्यान्निपातोऽर्थयोगित्वात्-तत्केवलिनामपि ।। | ||
Sutra Meaning : | `स्यात्' यह निपात या अव्यय अनेकान्त का द्योतक है और पदार्थ अनेकान्त का द्योत्य है। इस प्रकार अर्थयोगी होने के कारण यह शब्द केवलियों के भी वाक्यों में अनेकान्त के विशेषण रूप में प्रयुक्त होता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Vakyeshvanekantadyotigamyam-prativisheshanam. Syannipatorthayogitvat-tatkevalinamapi\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | `syat yaha nipata ya avyaya anekanta ka dyotaka hai aura padartha anekanta ka dyotya hai. Isa prakara arthayogi hone ke karana yaha shabda kevaliyom ke bhi vakyom mem anekanta ke visheshana rupa mem prayukta hota hai. |