Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011904 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
17. स्याद्वाद अधिकार - (सर्वधर्म-समभाव) |
Translated Chapter : |
17. स्याद्वाद अधिकार - (सर्वधर्म-समभाव) |
Section : | 1. सर्वधर्म-समभाव | Translated Section : | 1. सर्वधर्म-समभाव |
Sutra Number : | 401 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | सन्मति तर्क। ३.५८ | ||
Mool Sutra : | हेतुविषयोपनीतं, यथा वचनीयं परो निवर्तयति। यदि तत्तथाऽपरोऽदर्शयिष्यत्, केन अजेष्यत ।। | ||
Sutra Meaning : | वादी यदि साध्य को ही हेतु के रूप में प्रयोग करता है तो प्रतिवादी उसे असिद्ध साधन दोष देकर हरा देता है। परन्तु यदि वादी उस साध्य को पहले से स्वीकार कर चुका हो, तब वह किससे पराजित होगा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Hetuvishayopanitam, yatha vachaniyam paro nivartayati. Yadi tattathaparodarshayishyat, kena ajeshyata\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vadi yadi sadhya ko hi hetu ke rupa mem prayoga karata hai to prativadi use asiddha sadhana dosha dekara hara deta hai. Parantu yadi vadi usa sadhya ko pahale se svikara kara chuka ho, taba vaha kisase parajita hoga. |