Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011845 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
13. तत्त्वार्थ अधिकार |
Translated Chapter : |
13. तत्त्वार्थ अधिकार |
Section : | 9. परमात्म तत्त्व | Translated Section : | 9. परमात्म तत्त्व |
Sutra Number : | 342 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | समाधि शतक । ३१; तुलना: ज्ञानसार । १४.८ | ||
Mool Sutra : | यः परमात्मा स एवाऽहं, योऽहं स परमस्ततः। अहमेव मयोपास्यो, नान्यः कश्चिदिति स्थितिः ।। | ||
Sutra Meaning : | (कर्म आदि की उपाधियों से अतीत त्रिकाल शुद्ध आत्मा को ग्रहण करने वाली शुद्ध तात्त्विक दृष्टि से देखने पर) जो परमात्मा है वही मैं हूँ और जो मैं हूँ वही परमात्मा है। इस तरह मैं ही स्वयं अपना उपास्य हूँ। अन्य कोई मेरा उपास्य नहीं है। ऐसी तात्त्विक स्थिति है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Yah paramatma sa evaham, yoham sa paramastatah. Ahameva mayopasyo, nanyah kashchiditi sthitih\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | (karma adi ki upadhiyom se atita trikala shuddha atma ko grahana karane vali shuddha tattvika drishti se dekhane para) jo paramatma hai vahi maim hum aura jo maim hum vahi paramatma hai. Isa taraha maim hi svayam apana upasya hum. Anya koi mera upasya nahim hai. Aisi tattvika sthiti hai. |