Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 2011819 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
13. तत्त्वार्थ अधिकार |
Translated Chapter : |
13. तत्त्वार्थ अधिकार |
Section : | 3. आस्रव तत्त्व (क्रियमाण कर्म) | Translated Section : | 3. आस्रव तत्त्व (क्रियमाण कर्म) |
Sutra Number : | 316 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | मरण समाधि। ६१२; तुलना: तत्वार्थ-सूत्र । ६.१-२ | ||
Mool Sutra : | रागद्वेषप्रमत्तं, इंद्रियवशगः करोति कर्माणि। आस्रवद्वारैरविगूहि - तैस्त्रिविधेन करणेन ।। | ||
Sutra Meaning : | राग-द्वेष से प्रमत्त जीव इन्द्रियों के वश होकर मन, वचन व काय इन तीन करणों के द्वारा सदा कर्म करता रहता है। कर्मों का यह आगमन ही `आस्रव' शब्द का वाच्य है, जिसके अनेक द्वार हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Ragadveshapramattam, imdriyavashagah karoti karmani. Asravadvarairaviguhi - taistrividhena karanena\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Raga-dvesha se pramatta jiva indriyom ke vasha hokara mana, vachana va kaya ina tina karanom ke dvara sada karma karata rahata hai. Karmom ka yaha agamana hi `asrava shabda ka vachya hai, jisake aneka dvara haim. |