Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011651 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग] |
Translated Chapter : |
7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग] |
Section : | 4. कर्मयोग-रहस्य | Translated Section : | 4. कर्मयोग-रहस्य |
Sutra Number : | 149 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | अध्यात्मसार । १५.३२; तुलना: देखो पीछे गाथा १४७। | ||
Mool Sutra : | कर्माप्याचरतो ज्ञातुर्मुक्तिभावो न हीयते। तत्र संकल्पजो बन्धो गीयते यत्परैरपि ।। | ||
Sutra Meaning : | (यद्यपि ज्ञानी को कर्म करने की आवश्यकता नहीं, परन्तु) यदि वह शास्त्रोक्त कर्मों का आचरण करे तो भी उसके मुक्तिभाव में कोई हानि नहीं होती है। क्योंकि संकल्प ही बन्ध का कारण है, क्रिया नहीं। गीताकार ने भी यही कहा है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Karmapyacharato jnyaturmuktibhavo na hiyate. Tatra samkalpajo bandho giyate yatparairapi\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | (yadyapi jnyani ko karma karane ki avashyakata nahim, parantu) yadi vaha shastrokta karmom ka acharana kare to bhi usake muktibhava mem koi hani nahim hoti hai. Kyomki samkalpa hi bandha ka karana hai, kriya nahim. Gitakara ne bhi yahi kaha hai. |