Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011641 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग] |
Translated Chapter : |
7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग] |
Section : | 1. व्यवहार-चारित्र निर्देश | Translated Section : | 1. व्यवहार-चारित्र निर्देश |
Sutra Number : | 139 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | द्रव्य संग्रह । ४५; तुलना: उत्तराध्ययन । ३१.२ | ||
Mool Sutra : | अशुभात् विनिवृत्तिः, शुभे प्रवृत्तिः च जानीहि चारित्रम्। व्रतसमितिगुप्तिरूपं, व्यवहारनयात् तु जिनभणितम् ।। | ||
Sutra Meaning : | अशुभ कार्यों से निवृत्ति तथा शुभ कार्यों में प्रवृत्ति, यह व्यवहार नय से चारित्र का लक्षण है। वह पाँच व्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति, ऐसे तेरह प्रकार का है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Ashubhat vinivrittih, shubhe pravrittih cha janihi charitram. Vratasamitiguptirupam, vyavaharanayat tu jinabhanitam\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Ashubha karyom se nivritti tatha shubha karyom mem pravritti, yaha vyavahara naya se charitra ka lakshana hai. Vaha pamcha vrata, pamcha samiti aura tina gupti, aise teraha prakara ka hai. |