Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011622 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग) |
Translated Chapter : |
6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग) |
Section : | 2. महारोग रागद्वेष | Translated Section : | 2. महारोग रागद्वेष |
Sutra Number : | 120 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | समयसार । २०१; तुलना: मरण समाधि प्रकीर्णक । ४०७ | ||
Mool Sutra : | परमाणुमात्रमपि खलु, रागादीनां तु विद्यते यस्य। नापि स जानात्यात्मानं, सर्वागमधरोऽपि ।। | ||
Sutra Meaning : | जिस व्यक्ति के हृदय में परमाणु मात्र भी राग व द्वेष का वास है, वह सर्व शास्त्रों का ज्ञाता भी क्यों न हो, आत्मा को नहीं जानता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Paramanumatramapi khalu, ragadinam tu vidyate yasya. Napi sa janatyatmanam, sarvagamadharopi\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jisa vyakti ke hridaya mem paramanu matra bhi raga va dvesha ka vasa hai, vaha sarva shastrom ka jnyata bhi kyom na ho, atma ko nahim janata hai. |