Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011111 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग) |
Translated Chapter : |
5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग) |
Section : | 13. आस्रव, संवर व निर्जरा भावना | Translated Section : | 13. आस्रव, संवर व निर्जरा भावना |
Sutra Number : | 109 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | |||
Mool Sutra : | आस्रव, संवर व निर्जरा भावना (Just Text w/o Gatha under this section) | ||
Sutra Meaning : | १. राग द्वेष व इन्द्रियों के वश होकर यह जीव सदा मन, वचन व काय से कर्म संचय करता रहता है। व्यक्ति की क्रियाएँ नहीं बल्कि मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद व कषाय आदि भाव ही वे द्वार हैं, जिनके द्वारा कर्मों का आस्रव या आगमन होता है। अनित्य व दुःखमय जानकर मैं इनसे निवृत्त होता हूँ। २. समिति गुप्ति आदि के सेवन से इस आस्रव का उसी प्रकार संवर या निरोध हो जाता है जिस प्रकार नाव का छिद्र रुक जाने पर उसमें होनेवाला जल-प्रवेश रुक जाता है। अतः घोड़े की भाँति इन्द्रिय व कषायों को बलपूर्वक लगाम लगानी चाहिए। ३. जिस प्रकार तालाब में जल-प्रवेश का द्वार रुक जाने पर सूर्यताप से उसका जल सूख जाता है, उसी प्रकार समिति, गुप्ति आदि द्वारा आस्रव का द्वार रुक जाने पर तपस्या के द्वारा पूर्व संचित कर्म निर्जीर्ण हो जाते हैं। अतः मैं यथाशक्ति तप के प्रति उद्यत होता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | आस्रव, संवर व निर्जरा भावना (jusata texta va/o gataha unadera tahisa sectiona) | ||
Sutra Meaning Transliteration : | 1. Raga dvesha va indriyom ke vasha hokara yaha jiva sada mana, vachana va kaya se karma samchaya karata rahata hai. Vyakti ki kriyaem nahim balki mithyatva, avrata, pramada va kashaya adi bhava hi ve dvara haim, jinake dvara karmom ka asrava ya agamana hota hai. Anitya va duhkhamaya janakara maim inase nivritta hota hum. 2. Samiti gupti adi ke sevana se isa asrava ka usi prakara samvara ya nirodha ho jata hai jisa prakara nava ka chhidra ruka jane para usamem honevala jala-pravesha ruka jata hai. Atah ghore ki bhamti indriya va kashayom ko balapurvaka lagama lagani chahie. 3. Jisa prakara talaba mem jala-pravesha ka dvara ruka jane para suryatapa se usaka jala sukha jata hai, usi prakara samiti, gupti adi dvara asrava ka dvara ruka jane para tapasya ke dvara purva samchita karma nirjirna ho jate haim. Atah maim yathashakti tapa ke prati udyata hota hum. |