Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2004595 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
Translated Chapter : |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
Section : | ३४. तत्त्वसूत्र | Translated Section : | ३४. तत्त्वसूत्र |
Sutra Number : | 595 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | उत्तराध्ययन 14/19 | ||
Mool Sutra : | नो इन्द्रियग्राह्योऽमूर्तभावात्, अमूर्त्तभावादपि च भवति नित्यः। अध्यात्महेतुर्नियतः अस्य बन्धः, संसारहेतुं च वदन्ति बन्धम्।।८।। | ||
Sutra Meaning : | आत्मा (जीव) अमूर्त है, अतः वह इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य नहीं है। तथा अमूर्त पदार्थ नित्य होता है। आत्मा के आन्तरिक रागादि भाव ही निश्चयतः बन्ध के कारण हैं और बन्ध को संसार का हेतु कहा गया है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | No indriyagrahyomurtabhavat, amurttabhavadapi cha bhavati nityah. Adhyatmaheturniyatah asya bandhah, samsarahetum cha vadanti bandham..8.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Atma (jiva) amurta hai, atah vaha indriyom dvara grahya nahim hai. Tatha amurta padartha nitya hota hai. Atma ke antarika ragadi bhava hi nishchayatah bandha ke karana haim aura bandha ko samsara ka hetu kaha gaya hai. |