Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2004515 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Translated Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Section : | ३०. अनुप्रेक्षासूत्र | Translated Section : | ३०. अनुप्रेक्षासूत्र |
Sutra Number : | 515 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | मरणसमाधि 587 | ||
Mool Sutra : | प्रत्येकं प्रत्येकं निजकं, कर्मफलमनुभवताम्। कः कस्य जगति स्वजनः? कः कस्य वा परजनो भणितः।।११।। | ||
Sutra Meaning : | यहाँ प्रत्येक जीव अपने-अपने कर्मफल को अकेला ही भोगता है। ऐसी स्थिति में यहाँ कौन किसका स्वजन है और कौन किसका परजन ? | ||
Mool Sutra Transliteration : | Pratyekam pratyekam nijakam, karmaphalamanubhavatam. Kah kasya jagati svajanah? Kah kasya va parajano bhanitah..11.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Yaham pratyeka jiva apane-apane karmaphala ko akela hi bhogata hai. Aisi sthiti mem yaham kauna kisaka svajana hai aura kauna kisaka parajana\? |