Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2004193 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Translated Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Section : | १६. मोक्षमार्गसूत्र | Translated Section : | १६. मोक्षमार्गसूत्र |
Sutra Number : | 193 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | पंचास्तिकाय 164/172 | ||
Mool Sutra : | दर्शनज्ञानचारित्राणि, मोक्षमार्ग इति सेवितव्यानि। साधुभिरिदं भणितं, तैस्तु बन्धो वा मोक्षो वा।।२।। | ||
Sutra Meaning : | जिनेन्द्रदेव ने कहा है कि (सम्यक्) दर्शन, ज्ञान, चारित्र मोक्ष का मार्ग है। साधुओं को इनका आचरण करना चाहिए। यदि वे स्वाश्रित होते हैं तो इनसे मोक्ष होता है और पराश्रित होने से बन्ध होता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Darshanajnyanacharitrani, mokshamarga iti sevitavyani. Sadhubhiridam bhanitam, taistu bandho va moksho va..2.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jinendradeva ne kaha hai ki (samyak) darshana, jnyana, charitra moksha ka marga hai. Sadhuom ko inaka acharana karana chahie. Yadi ve svashrita hote haim to inase moksha hota hai aura parashrita hone se bandha hota hai. |