Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2004188 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
Translated Chapter : |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
Section : | १५. आत्मसूत्र | Translated Section : | १५. आत्मसूत्र |
Sutra Number : | 188 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | समयसार 6 | ||
Mool Sutra : | नापि भवत्यप्रमत्तो, न प्रमत्तो ज्ञायकस्तु यो भावः। एवं भणन्ति शुद्धं, ज्ञातो यः स तु स चैव।।१२।। | ||
Sutra Meaning : | आत्मा ज्ञायक है। जो ज्ञायक होता है, वह न अप्रमत्त होता है और न प्रमत्त। जो अप्रमत्त और प्रमत्त नहीं होता वह शुद्ध होता है। आत्मा ज्ञायकरूप में ही ज्ञात है और वह शुद्ध अर्थ में ज्ञायक ही है। उसमें ज्ञेयकृत अशुद्धता नहीं है।[1] | ||
Mool Sutra Transliteration : | Napi bhavatyapramatto, na pramatto jnyayakastu yo bhavah. Evam bhananti shuddham, jnyato yah sa tu sa chaiva..12.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Atma jnyayaka hai. Jo jnyayaka hota hai, vaha na apramatta hota hai aura na pramatta. Jo apramatta aura pramatta nahim hota vaha shuddha hota hai. Atma jnyayakarupa mem hi jnyata hai aura vaha shuddha artha mem jnyayaka hi hai. Usamem jnyeyakrita ashuddhata nahim hai.[1] |