Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 2004164 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
Translated Chapter : |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
Section : | १३. अप्रमादसूत्र | Translated Section : | १३. अप्रमादसूत्र |
Sutra Number : | 164 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | सूत्रकृतांग 1/8/3 | ||
Mool Sutra : | प्रमादं कर्म आहु-रप्रमादं तथाऽपरम्। तद्भावादेशतो वापि, बालं पण्डितमेव वा।।५।। | ||
Sutra Meaning : | प्रमाद को कर्म (आस्रव) और अप्रमाद को अकर्म (संवर) कहा है। प्रमाद के होने से मनुष्य बाल (अज्ञानी) होता है। प्रमाद के न होने से मनुष्य पंडित (ज्ञानी) होता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Pramadam karma ahu-rapramadam tathaparam. Tadbhavadeshato vapi, balam panditameva va..5.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Pramada ko karma (asrava) aura apramada ko akarma (samvara) kaha hai. Pramada ke hone se manushya bala (ajnyani) hota hai. Pramada ke na hone se manushya pamdita (jnyani) hota hai. |