Sutra Navigation: Dashvaikalik ( दशवैकालिक सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1021059 | ||
Scripture Name( English ): | Dashvaikalik | Translated Scripture Name : | दशवैकालिक सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Translated Chapter : |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 59 | Category : | Mool-03 |
Gatha or Sutra : | Gatha | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [गाथा] जो जीवे वि वियाणाइ अजीवे वि वियाणई । जीवाजीवे वियाणंतो सो हु नाहिइ संजमं ॥ | ||
Sutra Meaning : | जो जीवों को, अजीवों को और दोनों को विशेषरूप से जानने वाला हो तो संयम को जानेगा। समस्त जीवों की बहुविध गतियों को जानता है। तब पुण्य और पाप तथा बन्ध और मोक्ष को भी जानता है। तब दिव्य और मानवीय भोग से विरक्त होता है। विरक्त होकर आभ्यन्तर और बाह्य संयोग का परित्याग कर देता है। त्याग करता है तब वह मुण्ड हो कर अनगारधर्म में प्रव्रजित होता है। प्रव्रजित हो जाता है, तब उत्कृष्ट – अनुत्तरधर्म का स्पर्श करता है। स्पर्श करता है, तब अबोधिरूप पाप द्वारा किये हुए कर्मरज को झाड़ देता है। कर्मरज को झाड़ता है, तब सर्वत्र व्यापी ज्ञान और दर्शन को प्राप्त करता है। तब वह जिन और केवली होकर लोक और अलोक को जानता है। लोक – अलोक को जान लेता है; तब योगों का निरोध करके शैलेशी अवस्था को प्राप्त कर लेता है। तब वह कर्मों का क्षय करके रज – मुक्त बन, सिद्धि को प्राप्त करता है। सिद्धि को प्राप्त कर के, वह लोक के मस्तक पर स्थित होकर शाश्वत सिद्ध हो जाता है। सूत्र – ५९–७१ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [gatha] jo jive vi viyanai ajive vi viyanai. Jivajive viyanamto so hu nahii samjamam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jo jivom ko, ajivom ko aura donom ko vishesharupa se janane vala ho to samyama ko janega. Samasta jivom ki bahuvidha gatiyom ko janata hai. Taba punya aura papa tatha bandha aura moksha ko bhi janata hai. Taba divya aura manaviya bhoga se virakta hota hai. Virakta hokara abhyantara aura bahya samyoga ka parityaga kara deta hai. Tyaga karata hai taba vaha munda ho kara anagaradharma mem pravrajita hota hai. Pravrajita ho jata hai, taba utkrishta – anuttaradharma ka sparsha karata hai. Sparsha karata hai, taba abodhirupa papa dvara kiye hue karmaraja ko jhara deta hai. Karmaraja ko jharata hai, taba sarvatra vyapi jnyana aura darshana ko prapta karata hai. Taba vaha jina aura kevali hokara loka aura aloka ko janata hai. Loka – aloka ko jana leta hai; taba yogom ka nirodha karake shaileshi avastha ko prapta kara leta hai. Taba vaha karmom ka kshaya karake raja – mukta bana, siddhi ko prapta karata hai. Siddhi ko prapta kara ke, vaha loka ke mastaka para sthita hokara shashvata siddha ho jata hai. Sutra – 59–71 |