Sutra Navigation: Pindniryukti ( पिंड – निर्युक्ति )
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Sr No : | 1020445 | ||
Scripture Name( English ): | Pindniryukti | Translated Scripture Name : | पिंड – निर्युक्ति |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
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Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 445 | Category : | Mool-02B |
Gatha or Sutra : | Gatha | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [गाथा] खीराहारो रोवइ मज्झ कपासाय देहि णं पिज्जे । पच्छा व मज्झ दाहिति अलं व मुज्जो व एहामि ॥ | ||
Sutra Meaning : | पूर्व परिचित घर में साधु भिक्षा के लिए गए हो, वहाँ बच्चे को रोता देखकर बच्चे की माँ को कहे कि, यह बच्चा अभी स्तनपान पर जिन्दा है, भूख लगी होगी इसलिए रो रहा है। इसलिए मुझे जल्द वहोराओ, फिर बच्चे को खिलाना या ऐसा कहे कि, पहले बच्चे को स्तनपान करवाओ फिर मुझे वहोरावो, या तो कहे कि, अभी बच्चे को खिला दो फिर मैं वहोरने के लिए आऊंगा। बच्चे को अच्छी प्रकार से रखने से बुद्धिशाली, निरोगी और दीर्घ आयुवाला होता है, जब कि बच्चे को अच्छी प्रकार से नहीं रखने से मूरख बीमार और अल्प आयुवाला बनता है। लोगों में भी कहावत है कि पुत्र की प्राप्ति होना दुर्लभ है इसलिए दूसरे सभी काम छोड़कर बच्चे को स्तनपान करवाओ, यदि तुम स्तनपान नहीं करवाओगे तो मैं बच्चे को दूध पिलाऊं या दूसरों के पास स्तनपान करवाऊं। इस प्रकार बोलकर भिक्षा लेना वो धात्रीपिंड़। इस प्रकार के वचन सुनकर, यदि वो स्त्री धर्मिष्ठ हो तो खुश हो। और साधु को अच्छा – अच्छा आहार दे, प्रसन्न हुई वो स्त्री साधु के लिए आधाकर्मादि आहार भी बनाए। वो स्त्री धर्म की भावनावाली न हो तो साधु के ऐसे वचन सुनकर साधु पर गुस्सा करे। शायद बच्चा बीमार हो जाए तो साधु की नींदा करे, शासन का ऊड्डाह करे, लोगों को कहे कि, उस दिन साधु ने बच्चे को बुलाया था या दूध पीलाया था या कहीं ओर जाकर स्तनपान करवाया था इसलिए मेरा बच्चा बीमार हो गया। या फिर कहे कि, यह साधु स्त्रीयों के आगे मीठा बोलता है या फिर अपने पति को या दूसरे लोगों को कहे कि, यह साधु बूरे आचरण वाला है, मैथुन की अभिलाषा रखता है। आदि बातें करके शासन की हीलना करे। धात्रीपिंड़ में यह दोष आते हैं। भिक्षा के लिए घूमने से किसी घर में स्त्री को फिक्रमंद देखकर पूछे कि, क्यों आज फिक्र में हो ? स्त्री ने कहा कि, जो दुःख में सहायक हो उन्हें दुःख कहा हो तो दुःख दूर हो सके। तुम्हें कहने से क्या ? साधु ने कहा कि, मैं तुम्हारे दुःख में सहायक बनूँगा, इसलिए तुम्हारा दुःख मुझे बताओ। स्त्रीने कहा कि मेरे घर धात्री थी उसे किसी शेठ अपने घर ले गए, अब बच्चे को मैं कैसे सँभाल सकूँगी ? उसकी फिक्र है। ऐसा सुनकर साधु उससे प्रतिज्ञा करे कि, तुम फिक्र मत करना, मैं ऐसा करूँगा कि उस धात्री को शेठ अनुमति देंगे और वापस तुम्हारे पास आ जाएगी। मैं थोड़े ही समय में तुम्हें धात्री वापस लाकर दूँगा। फिर साधु उस स्त्री के पास से उस धात्री की उम्र, देह का नाप, स्वभाव, हुलिया आदि पता करके, उस शेठ के वहाँ जाकर शेठ के आगे धात्री के गुण – दोष इस प्रकार बोले की शेठ उस धात्री को छोड़ दे। छोड़ देने से वो धात्री साधु के प्रति द्वेष करे, उड्डाह करे या साधु को मार भी ड़ाले आदि दोष रहे होने से साधु को धात्रीपन नहीं करना चाहिए। यह क्षीर धात्रीपन बताया। उस अनुसार बाकी के चार धात्रीपन समझ लेना। बच्चों से खेलना आदि करने से साधु को धात्रीदोष लगता है। संगम नाम के आचार्य थे। वृद्धावस्था आने से उनका जंघाबल कमझोर होने से यानि चलने की शक्ति नहीं रहने से, कोल्लकिर नाम के नगर में स्थिरवास किया था। एक बार उस प्रदेश में अकाल पड़ने से श्री संगम सूरिजीने सिंह नाम के अपने शिष्य को आचार्य पदवी दी, गच्छ के साथ अकालवाले प्रदेश में विहार करवाया और खुद अकेले ही उस नगर में ठहरे। आचार्य भगवंत ने नगर में नौ भाग कल्पे, यतनापूर्वक मासकल्प सँभालते थे। इस अनुसार विधिवत् द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावपूर्वक ममता रहित संयम का शुद्धता से पालन करते थे। एक बार श्री सिंहसूरिजीने आचार्य महाराज की खबर लेने के लिए दत्त नाम के शिष्य को भेजा। दत्तमुनि आए और जिस उपाश्रय में आचार्य महाराज को रखकर गए थे, उसी उपाश्रय में आचार्य महाराज को देखने से, मन में सोचने लगा कि, यह आचार्य भाव से भी मासकल्प नहीं सँभालते, शिथिल के साथ नहीं रहना चाहिए, ऐसा सोचकर आचार्य महाराज के साथ न ठहरा लेकिन बाहर की ओसरी में मुकाम किया। उसके बाद आचार्य महाराज को वंदना आदि करके सुख शाता के समाचार पूछे और कहा कि, आचार्य श्री सिंहसूरिजीने आपकी खबर लेने के लिए मुझे भेजा है। आचार्य महाराजने भी सुख शाता बताई और कहा कि, यहाँ किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं है आराधना अच्छी प्रकार से हो रही है। भिक्षा का समय होते ही आचार्य भगवंत दत्तमुनि को साथ लेकर गोचरी के लिए नीकले। अंतःप्रांत कुल में भिक्षा के लिए जाने से अनुकूल गोचरी प्राप्त नहीं होने से दत्तमुनि निराश हो गए। उनका भाव जानकर आचार्य भगवंत दत्त मुनि को किसी धनवान के घर भिक्षा के लिए ले गए। उस घर में शेठ के बच्चे को व्यंतरी ने झपट लिया था, बच्चा हंमेशा रोया करता था। इसलिए आचार्यने उस बच्चे के सामने देखकर ताली बजाते हुए कहा कि, ‘हे वत्स ! रो मत।’ आचार्य के प्रभाव से वो व्यंतरी चली गई। इसलिए बच्चा चूप हो गया। यह देखते ही गृहनायक खुश हो गया और भिक्षा में लड्डू आदि वहोराया। दत्तमुनि खुश हो गए, इसलिए आचार्य ने उसे उपाश्रय भेज दिया और खुद अंतप्रांत भिक्षा वहोरकर उपाश्रय में आए। प्रतिक्रमण के समय आचार्य ने दत्तमुनि को कहा कि, ‘धात्रीपिंड़ और चिकित्सापिंड़ की आलोचना करो।’ दत्तमुनि ने कहा कि, ‘मैं तो तुम्हारे साथ भिक्षा के लिए आया था। धात्रीपिंड़ आदि का परिभोग किस प्रकार लगा।’ आचार्यने कहा कि, ‘छोटे बच्चे से खेला इसलिए क्रीड़न धात्रीपिंड़ दोष और चपटी बजाने से व्यंतरी को भगाया इसलिए चिकित्सापिंड़ दोष, इसलिए उन दोष की आलोचना कर लो। आचार्य का कहा सुनकर दत्तमुनि के मन में द्वेष आया और सोचने लगा कि, ‘यह आचार्य कैसे हैं ?’ खुद भाव से मासकल्प का भी आचरण नहीं करते और फिर हंमेशा ऐसा मनोज्ञ आहार लेते हैं। जब कि मैंने एक भी दिन ऐसा आहार लिया तो उसमें मुझे आलोचना करने के लिए कहते हैं।’ गुस्सा होकर आलोचना किए बिना उपाश्रय के बाहर चला गया। एक देव आचार्यश्री के गुण से उनके प्रति काफी बहुमानवाला हुआ था। उस देवने दत्त मुनि का इस प्रकार का आचरण और दुष्ट भाव जानकर उनके प्रति कोपायमान हुआ और शिक्षा करने के लिए वसति में गहरा अंधेरा विकुर्व्या फिर पवन की आँधी और बारिस शुरू हुई। दत्तमुनि भो भयभीत हो गए। कुछ दिखे नहीं। बारिस में भीगने लगा, पवन से शरीर काँपने लगा। इसलिए चिल्लाने लगा और आचार्य को कहने लगा कि, ‘भगवन् ! मैं कहाँ जाऊं ? कुछ भी नहीं दिखता।’ क्षीरोदधि जल समान निर्मल हृदयवाले आचार्यने कहा कि, ‘वत्स ! उपाश्रय के भीतर आ जाओ।’ दत्तमुनि ने कहा कि, ‘भगवन् ! कुछ भी नहीं दिखता, कैसे भीतर आऊं ? अंधेरा होने से दरवाजा भी नहीं दिख रहा।’ अनुकंपा से आचार्यने अपनी ऊंगली थूँकवाली करके ऊपर किया, तो उसका दीए की ज्योत जैसा उजाला फैल गया। दुरात्मा दत्तमुनि सोचने लगा कि, अहो ! यह तो परिग्रह में अग्नि, दीप भी पास में रखते हैं ? आचार्य के प्रति दत्त ने ऐसा भाव किया, तब देव ने उसकी निर्भत्सना करके कहा कि, दुष्ट अधम ! ऐसे सर्वगुण रत्नाकर आचार्य भगवंत के प्रति ऐसा दुष्ट सोचते हो ? तुम्हारी प्रसन्नता के लिए कितना किया, फिर भी ऐसा दुष्ट चिन्तवन करते हो ? ऐसा कहकर गोचरी आदि की हकीकत बताई और कहा कि, यह जो उजाला है वो दीप का नहीं है, लेकिन तुम पर अनुकंपा आ जाने से अपनी ऊंगली थूँकवाली करके, उसके प्रभाव से वो उजालेवाली हुई है। श्री दत्तमुनि को अपनी गलती का उपकार हुआ, पछतावा हुआ, तुरन्त आचार्य के पाँव में गिरकर माफी माँगी। आलोचना की। इस प्रकार साधु को धात्रीपिंड़ लेना न कल्पे। सूत्र – ४४५–४६२ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [gatha] khiraharo rovai majjha kapasaya dehi nam pijje. Pachchha va majjha dahiti alam va mujjo va ehami. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Purva parichita ghara mem sadhu bhiksha ke lie gae ho, vaham bachche ko rota dekhakara bachche ki mam ko kahe ki, yaha bachcha abhi stanapana para jinda hai, bhukha lagi hogi isalie ro raha hai. Isalie mujhe jalda vahorao, phira bachche ko khilana ya aisa kahe ki, pahale bachche ko stanapana karavao phira mujhe vahoravo, ya to kahe ki, abhi bachche ko khila do phira maim vahorane ke lie aumga. Bachche ko achchhi prakara se rakhane se buddhishali, nirogi aura dirgha ayuvala hota hai, jaba ki bachche ko achchhi prakara se nahim rakhane se murakha bimara aura alpa ayuvala banata hai. Logom mem bhi kahavata hai ki putra ki prapti hona durlabha hai isalie dusare sabhi kama chhorakara bachche ko stanapana karavao, yadi tuma stanapana nahim karavaoge to maim bachche ko dudha pilaum ya dusarom ke pasa stanapana karavaum. Isa prakara bolakara bhiksha lena vo dhatripimra. Isa prakara ke vachana sunakara, yadi vo stri dharmishtha ho to khusha ho. Aura sadhu ko achchha – achchha ahara de, prasanna hui vo stri sadhu ke lie adhakarmadi ahara bhi banae. Vo stri dharma ki bhavanavali na ho to sadhu ke aise vachana sunakara sadhu para gussa kare. Shayada bachcha bimara ho jae to sadhu ki nimda kare, shasana ka uddaha kare, logom ko kahe ki, usa dina sadhu ne bachche ko bulaya tha ya dudha pilaya tha ya kahim ora jakara stanapana karavaya tha isalie mera bachcha bimara ho gaya. Ya phira kahe ki, yaha sadhu striyom ke age mitha bolata hai ya phira apane pati ko ya dusare logom ko kahe ki, yaha sadhu bure acharana vala hai, maithuna ki abhilasha rakhata hai. Adi batem karake shasana ki hilana kare. Dhatripimra mem yaha dosha ate haim. Bhiksha ke lie ghumane se kisi ghara mem stri ko phikramamda dekhakara puchhe ki, kyom aja phikra mem ho\? Stri ne kaha ki, jo duhkha mem sahayaka ho unhem duhkha kaha ho to duhkha dura ho sake. Tumhem kahane se kya\? Sadhu ne kaha ki, maim tumhare duhkha mem sahayaka banumga, isalie tumhara duhkha mujhe batao. Strine kaha ki mere ghara dhatri thi use kisi shetha apane ghara le gae, aba bachche ko maim kaise sambhala sakumgi\? Usaki phikra hai. Aisa sunakara sadhu usase pratijnya kare ki, tuma phikra mata karana, maim aisa karumga ki usa dhatri ko shetha anumati demge aura vapasa tumhare pasa a jaegi. Maim thore hi samaya mem tumhem dhatri vapasa lakara dumga. Phira sadhu usa stri ke pasa se usa dhatri ki umra, deha ka napa, svabhava, huliya adi pata karake, usa shetha ke vaham jakara shetha ke age dhatri ke guna – dosha isa prakara bole ki shetha usa dhatri ko chhora de. Chhora dene se vo dhatri sadhu ke prati dvesha kare, uddaha kare ya sadhu ko mara bhi rale adi dosha rahe hone se sadhu ko dhatripana nahim karana chahie. Yaha kshira dhatripana bataya. Usa anusara baki ke chara dhatripana samajha lena. Bachchom se khelana adi karane se sadhu ko dhatridosha lagata hai. Samgama nama ke acharya the. Vriddhavastha ane se unaka jamghabala kamajhora hone se yani chalane ki shakti nahim rahane se, kollakira nama ke nagara mem sthiravasa kiya tha. Eka bara usa pradesha mem akala parane se shri samgama surijine simha nama ke apane shishya ko acharya padavi di, gachchha ke satha akalavale pradesha mem vihara karavaya aura khuda akele hi usa nagara mem thahare. Acharya bhagavamta ne nagara mem nau bhaga kalpe, yatanapurvaka masakalpa sambhalate the. Isa anusara vidhivat dravya, kshetra, kala aura bhavapurvaka mamata rahita samyama ka shuddhata se palana karate the. Eka bara shri simhasurijine acharya maharaja ki khabara lene ke lie datta nama ke shishya ko bheja. Dattamuni ae aura jisa upashraya mem acharya maharaja ko rakhakara gae the, usi upashraya mem acharya maharaja ko dekhane se, mana mem sochane laga ki, yaha acharya bhava se bhi masakalpa nahim sambhalate, shithila ke satha nahim rahana chahie, aisa sochakara acharya maharaja ke satha na thahara lekina bahara ki osari mem mukama kiya. Usake bada acharya maharaja ko vamdana adi karake sukha shata ke samachara puchhe aura kaha ki, acharya shri simhasurijine apaki khabara lene ke lie mujhe bheja hai. Acharya maharajane bhi sukha shata batai aura kaha ki, yaham kisi bhi prakara ki takalipha nahim hai aradhana achchhi prakara se ho rahi hai. Bhiksha ka samaya hote hi acharya bhagavamta dattamuni ko satha lekara gochari ke lie nikale. Amtahpramta kula mem bhiksha ke lie jane se anukula gochari prapta nahim hone se dattamuni nirasha ho gae. Unaka bhava janakara acharya bhagavamta datta muni ko kisi dhanavana ke ghara bhiksha ke lie le gae. Usa ghara mem shetha ke bachche ko vyamtari ne jhapata liya tha, bachcha hammesha roya karata tha. Isalie acharyane usa bachche ke samane dekhakara tali bajate hue kaha ki, ‘he vatsa ! Ro mata.’ acharya ke prabhava se vo vyamtari chali gai. Isalie bachcha chupa ho gaya. Yaha dekhate hi grihanayaka khusha ho gaya aura bhiksha mem laddu adi vahoraya. Dattamuni khusha ho gae, isalie acharya ne use upashraya bheja diya aura khuda amtapramta bhiksha vahorakara upashraya mem ae. Pratikramana ke samaya acharya ne dattamuni ko kaha ki, ‘dhatripimra aura chikitsapimra ki alochana karo.’ dattamuni ne kaha ki, ‘maim to tumhare satha bhiksha ke lie aya tha. Dhatripimra adi ka paribhoga kisa prakara laga.’ acharyane kaha ki, ‘chhote bachche se khela isalie krirana dhatripimra dosha aura chapati bajane se vyamtari ko bhagaya isalie chikitsapimra dosha, isalie una dosha ki alochana kara lo. Acharya ka kaha sunakara dattamuni ke mana mem dvesha aya aura sochane laga ki, ‘yaha acharya kaise haim\?’ khuda bhava se masakalpa ka bhi acharana nahim karate aura phira hammesha aisa manojnya ahara lete haim. Jaba ki maimne eka bhi dina aisa ahara liya to usamem mujhe alochana karane ke lie kahate haim.’ gussa hokara alochana kie bina upashraya ke bahara chala gaya. Eka deva acharyashri ke guna se unake prati kaphi bahumanavala hua tha. Usa devane datta muni ka isa prakara ka acharana aura dushta bhava janakara unake prati kopayamana hua aura shiksha karane ke lie vasati mem gahara amdhera vikurvya phira pavana ki amdhi aura barisa shuru hui. Dattamuni bho bhayabhita ho gae. Kuchha dikhe nahim. Barisa mem bhigane laga, pavana se sharira kampane laga. Isalie chillane laga aura acharya ko kahane laga ki, ‘bhagavan ! Maim kaham jaum\? Kuchha bhi nahim dikhata.’ kshirodadhi jala samana nirmala hridayavale acharyane kaha ki, ‘vatsa ! Upashraya ke bhitara a jao.’ dattamuni ne kaha ki, ‘bhagavan ! Kuchha bhi nahim dikhata, kaise bhitara aum\? Amdhera hone se daravaja bhi nahim dikha raha.’ anukampa se acharyane apani umgali thumkavali karake upara kiya, to usaka die ki jyota jaisa ujala phaila gaya. Duratma dattamuni sochane laga ki, aho ! Yaha to parigraha mem agni, dipa bhi pasa mem rakhate haim\? Acharya ke prati datta ne aisa bhava kiya, taba deva ne usaki nirbhatsana karake kaha ki, dushta adhama ! Aise sarvaguna ratnakara acharya bhagavamta ke prati aisa dushta sochate ho\? Tumhari prasannata ke lie kitana kiya, phira bhi aisa dushta chintavana karate ho\? Aisa kahakara gochari adi ki hakikata batai aura kaha ki, yaha jo ujala hai vo dipa ka nahim hai, lekina tuma para anukampa a jane se apani umgali thumkavali karake, usake prabhava se vo ujalevali hui hai. Shri dattamuni ko apani galati ka upakara hua, pachhatava hua, turanta acharya ke pamva mem girakara maphi mamgi. Alochana ki. Isa prakara sadhu ko dhatripimra lena na kalpe. Sutra – 445–462 |