[सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म ओहायइ तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।
Sutra Meaning :
यदि कोई साधु गच्छ में से नीकलकर विषय सेवन के लिए द्रव्यलिंग छोड़ देने के लिए देशान्तर जाए, मैथुन सेवन करके फिर से दीक्षा ले। तीन साल तक उसे आचार्य आदि छ पदवी देना या धारण करना न कल्पे, तीन साल पूरे होने से चौथा साल बैठे तब यदि वो साधु स्थिर – उपशान्त – विषय – कषाय से निवर्तित हो तो उन्हें पदवी देना – धारण करना कल्पे, यदि गणावच्छेदक, आचार्य या उपाध्याय अपनी पदवी छोड़े बिना द्रव्यलिंग छोड़कर असंयमी हो जाए तो जावज्जीव आचार्य – उपाध्याय पदवी देना या धारण करना न कल्पे, यदि पदवी छोड़कर जाए और पुनः दीक्षा ग्रहण करे तो तीन साल पदवी देना न कल्पे आदि सर्व पूर्ववत् जानना।
सूत्र – ८३–८७
Mool Sutra Transliteration :
[sutra] bhikkhu ya ganao avakkamma ohayai tinni samvachchharani tassa tappattiyam no kappai ayariyattam va java ganavachchheiyattam va uddisittae va dharettae va.
Tihim samvachchharehim viikkamtehim chautthagamsi samvachchharamsi patthiyamsi thiyassa uvasamtassa uvarayassa padivirayassa nivvigarassa, evam se kappai ayariyattam va java ganavachchheiyattam va uddisittae va dharettae va.
Sutra Meaning Transliteration :
Yadi koi sadhu gachchha mem se nikalakara vishaya sevana ke lie dravyalimga chhora dene ke lie deshantara jae, maithuna sevana karake phira se diksha le. Tina sala taka use acharya adi chha padavi dena ya dharana karana na kalpe, tina sala pure hone se chautha sala baithe taba yadi vo sadhu sthira – upashanta – vishaya – kashaya se nivartita ho to unhem padavi dena – dharana karana kalpe, yadi ganavachchhedaka, acharya ya upadhyaya apani padavi chhore bina dravyalimga chhorakara asamyami ho jae to javajjiva acharya – upadhyaya padavi dena ya dharana karana na kalpe, yadi padavi chhorakara jae aura punah diksha grahana kare to tina sala padavi dena na kalpe adi sarva purvavat janana.
Sutra – 83–87