[सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अप्पणो पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति।
Sutra Meaning :
जो साधु – साध्वी मैथुन सेवन की ईच्छा से एक बार या कईं बार अपने पाँव प्रमार्जन करे, करवाए या अनुमोदना करे (यह कार्य आरम्भ करके) एक गाँव से दूसरे गाँव जाते हुए अपने मस्तक को आच्छादन करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त।
(यहाँ ४१६ से ४६८ में कुल ५३ सूत्र हैं। उसका विवरण उद्देशक – ३ के सूत्र १३३ से १८५ अनुसार जान लेना। विशेष से केवल इतना की ‘पाँव प्रमार्जन से मस्तक आच्छादन’ तक की सर्व क्रिया मैथुन सेवन की ईच्छा से की गई हो तब ‘गुरु चौमासी’ प्रायश्चित्त आता है ऐसा जानना।)
सूत्र – ४१६–४६८
Mool Sutra Transliteration :
[sutra] je bhikkhu mauggamassa mehuna-vadiyae appano pae amajjejja va pamajjejja va, amajjamtam va pamajjamtam va satijjati.
Sutra Meaning Transliteration :
Jo sadhu – sadhvi maithuna sevana ki ichchha se eka bara ya kaim bara apane pamva pramarjana kare, karavae ya anumodana kare (yaha karya arambha karake) eka gamva se dusare gamva jate hue apane mastaka ko achchhadana kare, karavae ya anumodana kare to prayashchitta.
(yaham 416 se 468 mem kula 53 sutra haim. Usaka vivarana uddeshaka – 3 ke sutra 133 se 185 anusara jana lena. Vishesha se kevala itana ki ‘pamva pramarjana se mastaka achchhadana’ taka ki sarva kriya maithuna sevana ki ichchha se ki gai ho taba ‘guru chaumasi’ prayashchitta ata hai aisa janana.)
Sutra – 416–468