श्रमणधर्म का आचरण करनेवाले साधु को यदि कषाय उच्च कोटि के हो तो उनका श्रमणत्व शेलड़ी के फूल की तरह निष्फल है, ऐसा मेरा मानना है।
कुछ न्यून पूर्व कोटि साल तक पालन किया गया निर्मल चारित्र भी कषाय से कलूषित चित्तवाला पुरुष एक मुहूर्त्त में हार जाता है।
सूत्र – १४२, १४३
Shramanadharma ka acharana karanevale sadhu ko yadi kashaya uchcha koti ke ho to unaka shramanatva shelari ke phula ki taraha nishphala hai, aisa mera manana hai.
Kuchha nyuna purva koti sala taka palana kiya gaya nirmala charitra bhi kashaya se kalushita chittavala purusha eka muhurtta mem hara jata hai.
Sutra – 142, 143