Sutra Navigation: Pushpika ( पूष्पिका )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1008207 | ||
Scripture Name( English ): | Pushpika | Translated Scripture Name : | पूष्पिका |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-३ शुक्र |
Translated Chapter : |
अध्ययन-३ शुक्र |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 7 | Category : | Upang-10 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] महुणा य घएण य तंदुलेहि य अग्गिं हुणइ, चरुं साहेइ, साहेत्ता बलिं वइस्सदेवं करेइ, करेत्ता अतिहिपूयं करेइ, करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारं आहारेइ। तए णं से सोमिले माहणरिसी दोच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से सोमिले माहणरिसी दोच्चछट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयं गेण्हइ, गेण्हित्ता दाहिणं दिसिं पोक्खेइ, दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सानिलमाहणरिसिंअभिरक्खउ सोमिलमाहणरिसिं, जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य ताणि अणुजाणउ त्तिकट्टु दाहिणं दिसिं पसरइ जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारं आहारेइ। एवं तच्चछट्ठक्खमणपारणगंसि पच्चत्थिमेणं वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिक्खउ सोमिलमाहणरिसिं जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारं आहारेइ। एवं चउत्थछट्ठक्खमणपारणगंसि उत्तरेणं वेसमणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सोमिलमाहणरिसिं जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारं आहारेइ। तए णं तस्स सोमिलमाहणरिसिस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अनिच्च-जागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए सोमिले नामं माहणरिसी अच्चंतमाहणकुलप्पसूए, तए णं मए वयाइं चिण्णाइं जाव जूवा निक्खित्ता, तए णं मए वाणारसीए नयरीए बहिया बहवे अंबारामा य माउलिंगारामा य बिल्लारामा य कविट्ठारामा य चिंचारामा य पुप्फारामा य रोवाविया, तए णं मए सुबहुं लोहकडाह-कडुच्छुयं तंबियं तावसभंडं घडावेत्ता, विउलं असनं पानं खाइमं साइमं उवक्ख-डावेत्ता जाव जेट्ठपुत्तं कुडुंबे ठवेत्ता जाव जेट्ठपुत्तं आपुच्छित्ता, सुबहुं लोहकडाहकडुच्छुयं तंबियं तावसभंडं गहाय तत्थ णं जेते दिसापोक्खिया तावसा तेसिं दिसापोक्खियतावसत्ताए पव्वइए, ... ... पव्वइए वि य णं समाणे छट्ठंछट्ठेणं जाव विहरिए, तं सेयं खलु ममं इयाणिं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते बहवे तावसे दिट्ठाभट्ठे य पुव्वसंगइए य परियायसंगइए य आपुच्छित्ता आसमसंसियाणि य बहूइं सत्तसयाइं अनुमानइत्ता वागलवत्थनियत्थस्स किढिण-संकाइय साहतग्गिहोत्तसभंडोवगरणस्स कट्ठमुद्दाए मुहं बंधित्ता उत्तरदिसाए उत्तराभिमुहस्स महप्पत्थाणं पत्थाइत्तए– एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणाए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्स रस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते बहवे तावसे य दिट्ठभिट्ठे य पुव्वसंगइए य परियायसंगइए य आपुच्छित्ता आसमसंसियाणि य बहूइं सत्तसयाइं अणुमाणइत्ता वागलवत्थनियत्थे किढिण-संकाइय-गहित-ग्गिहोत्त-सभंडोवगरणे कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ–जत्थेव णं अहं जलंसि वा थलंसि वा दुग्गंसि वा निन्नंसि वा पव्वयंसि वा विसमंसि वा गड्डाए वा दरीए वा पक्खलेज्ज वा पवडेज्ज वा, नो खलु मे कप्पइ पच्चुट्ठित्तएत्तिकट्टु अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ, उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहे महप्पत्थाणं पत्थिए। तए णं से सोमिले माहणरिसी पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवा-गए, असोगवरपायवस्स अहे किढिण-संकाइयं ठवेइ, ठवेत्ता वेदिं वड्ढेइ, वड्ढेत्ता उवलेवण-संमज्जणं करेइ, करेत्ता दब्भकलसहत्थगए जेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गंगं महानइं ओगाहइ, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता जलकिड्डं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए देवपिउकयकज्जे दब्भकलसहत्थगए गंगाओ महानईओ पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दब्भेहि य कुसेहि य वालुयाए य वेदिं रएइ, रएत्ता सरगं करेइ, करेत्ता जाव बलिं वइस्सदेवं करेइ, करेत्ता कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं तस्स सोमिलमाहणरिसिस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भूए। तए णं से देवे सोमिलं माहणं एवं वयासी–हंभो सोमिलमाहणा! पव्वइया! दुप्पव्वइयं ते। तए णं से सोमिले तस्स देवस्स एयमट्ठं नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। ततेणं से देवे सोमिलं माहणं दोच्चंपि तच्चंपि एवं वयासी–हंभो सोमिलमाहणा! पव्वइया! दुप्पव्वइयं ते। तए णं से सोमिले तस्स देवस्स दोच्चंपि तच्चंपि एयमट्ठं नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणे परिजाणमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं से देवे सोमिलि यं माहणरिसिणा अणाढाइज्जमाणे जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। तए णं से सोमिले कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते वागलवत्थनियत्थे किढिण-संकाइय-गहियग्गिहोत्त-भंडोवगरणे कट्ठमुहाए मुहं बंधइ, बंधित्ता उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थिए। तए णं से सोमिले बिइयदिवसम्मि पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव सत्तिवन्ने तेणेव उवागए, सत्तिवन्नस्स अहे किढिण-संकाइयं ठवेइ, ठवेत्ता वेदिं वड्ढेइ जहा असोगवरपायवे जाव अग्गिं हुणइ, चरुं साहेइ, बलिं वइस्सदेवं करेइ, कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं तस्स सोमिलस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउब्भूए। तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवन्ने जहा असोगवरपायवे जाव पडिगए। तए णं से सोमिले कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते वागलवत्थनियत्थे किढिण-संकाइयं गेण्हइ, गेण्हित्ता कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थिए। तए णं से सोमिले तइयदिवसम्मि पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे किढिणसंकाइयं ठवेइ, ठवेत्ता वेदिं वड्ढेइ जाव गंगाओ महानईओ पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेदिं रएइ, रएत्ता कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं तस्स सोमिलस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउब्भूए, तं चेव भणइ जाव पडिगए। तए णं से सोमिले कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते वागलवत्थनियत्थे किढिणसंकाइय-गहियग्गिहोत्तभंडोवगरणे कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थिए। तए णं से सोमिले चउत्थदिवसम्मि पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव वडपायवे तेणेव उवागए, वडपायवस्स अहे किढिणसंकाइयं ठवेइ, ठवेत्ता वेदीं वड्ढेइ, उवलेवणसंमज्जणं करेइ जाव कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं तस्स सोमिलस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउब्भूए, तं चेव भणइ जाव पडिगए। तए णं से सोमिले कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते वागलवत्थनियत्थे किढिणसंकाइय-गहियग्गिहोत्तभंडोवगरणे कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थिए। तए णं से सोमिले पंचमदिवसम्मि पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव उंबरपायवे तेणेव उवा-गच्छइ, उंबरपायवस्स अहे किढिणसंकाइठं ठवेइ, ठवेत्ता वेदिं वड्ढेइ जाव कट्ठमुद्दाए मुहं बंधइ, बंधित्ता तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं तस्स सोमिलमाहणस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउब्भूए। तए णं से देवे सोमिलं माहणं एवं वयासी–हंभो सोमिला! पव्वइया! दुप्पव्वइयं ते। तए णं से सोमिले तस्स देवस्स एयमट्ठं नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणे अपरिजाण-माणे तुसिणीए संचिट्ठइ। देवो दोच्चंपि तच्चंपि वदइ–सोमिला! पव्वइया! दुप्पव्वइयं ते। तए णं से सोमिले तेणं देवेणं दोच्चंपि तच्चंपि एवं वुत्ते समाणे तं देवं एवं वयासी–कहं णं देवानुप्पिया! मम दुप्पव्वइयं? तए णं से देवे सोमिलं माहणं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! तुमं पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अंतियं पंचाणुव्वइए सत्तसिक्खावइए दुवालसविहे सावगधम्मे पडिवन्ने, तए णं तव अन्नया कयाइ असाहुदंसणेण पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणस्स जाव पुव्व-चिंतियं देवो उच्चारेइ जाव जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयं जाव तुसिणीए संचिट्ठसि। तए णं अहं पुव्वरत्तावरत्तकाले तव अंतियं पाउब्भवामि, हंभो सोमिला! पव्वइया! दुप्पव्वइयं ते। तह च्चेय देवो निरवयवं भणइ जाव पंचमदिवसम्मि पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव उंबरपायवे तेणेव उवागए किढिण-संकाइयं ठवेसि वेदिं वड्ढेसि उवलेवण-संमज्जणं करेसि, करेत्ता कट्ठमुद्दाए मुहं बंधेसि, बंधेत्ता तुसिणीए संचिट्ठसि, तं एवं खलु देवानुप्पिया! तव दुप्पव्वइयं। तए णं से सोमिले तं देवं एवं वयासी–कहं णं देवानुप्पिया! मम सुपव्वइयं? तए णं से देवे सोमिलं एवं वयासी–जइ णं तुमं देवानुप्पिया! इयाणिं पुव्वपडिवण्णाइं पंच अणुव्वयाइं सयमेव उवसंपज्जित्ता णं विहरसि तो णं तुब्भं इयाणिं सुपव्वइयं भवेज्जा। तए णं से देवे सोमिलं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। तए णं से सोमिले माहणरिसी तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे पुव्वपडिवण्णाइं पंच अणुव्वयाइं सयमेव उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं से सोमिले बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोवहाणेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहूइं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासि-याए संलेहणाए अत्ताणं झूसेइ, झूसेत्ता तीसं भत्ताइं अनसनाए छेदेइ, छेदेत्ता तस्स ठाणस्स अनालो-इयपडिक्कंते विराहियसम्मत्ते कालमासे कालं किच्चा सुक्कवडिंसए विमाने उववायसभाए देव-सयणिज्जंसि देवदूसंतरिए अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्ताए ओगाहणाए सुक्कमहग्गहत्ताए उववन्ने तए णं से सुक्के महग्गहे अहुणोववन्ने समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणपानपज्जत्तीए भासमणपज्जत्तीए पज्जत्तभावं गए। एवं खलु गोयमा! सुक्केणं महग्गहेणं सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवजुती दिव्वे देवानुभावे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए। एगं पलिओवमं ठिई। सुक्के णं भंते! महग्गहे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं कहिं गच्छिहिइ? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं पुप्फियाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् उन सोमिल ब्रह्मर्षी ने दूसरा षष्ठक्षपण अंगीकार किया। पारणे के दिन भी आतापनाभूमि से नीचे ऊतरे, वल्कल वस्त्र पहने यावत् आहार किया, इतना विशेष है कि इस बार वे दक्षिण दिशा में गए और कहा – ‘हे दक्षिण दिशा के यम महाराज ! प्रस्थान के लिए प्रवृत्त सोमिल ब्रह्मर्षी की रक्षा करें और यहाँ जो कन्द, मूल आदि हैं, उन्हें लेने की आज्ञा दें, ऐसा कहकर दक्षिण में गमन किया। तदनन्तर उन सोमिल ब्रह्मर्षी ने तृतीय बेला किया। पारणे के दिन भी पूर्वोक्त सब विधि की। किन्तु पश्चिम दिशा की पूजा की। कहा – ‘हे पश्चिम दिशा के लोकपाल वरुण महाराज ! परलोक – साधना में प्रवृत्त मुझ सोमिल ब्रह्मर्षी की रक्षा करें।’ इत्यादि इसके बाद चतुर्थ बेला तप किया। पारणा के दिन पूर्ववत् सारी विधि की। विशेष यह है कि इस बार उत्तर दिशा की पूजा की और इस प्रकार प्रार्थना की – ‘हे उत्तर दिशा के लोकपाल वैश्रमण महाराज ! परलोकसाधना में प्रवृत्त मुझ सोमिल ब्रह्मर्षी की रक्षा करें।’ इत्यादि यावत् उत्तर दिशा का अवलोकन किया आदि। इस चारों दिशाओं का वर्णन, आहार किया तक का वृत्तान्त पूर्ववत् जानना। इसके बाद किसी समय मध्यरात्रि में अनित्य जागरण करते हुए उन सोमिल ब्रह्मर्षी के मन में इस प्रकार का यह आन्तरिक विचार उत्पन्न हुआ – ‘मैं वाराणसी नगरी का रहने वाला, अत्यन्त उच्चकुल में उत्पन्न सोमिल ब्रह्मर्षी हूँ। मैंने गृहस्थाश्रम में रहते हुए व्रत पालन किया है, यावत् यूप – गड़वाए। इसके बाद आम के यावत् फूलों के बगीचे लगवाए। तत्पश्चात् प्रव्रजित हुआ। प्रव्रजित होने पर षष्ठ – षष्ठभक्त तपःकर्म अंगीकार करके दिक्चक्रवाल साधना करता हुआ विचरण कर रहा हूँ। लेकिन अब मुझे उचित है कि कल सूर्योदय होते ही बहुत से दृष्ट – भाषित, पूर्व संगतिक, और पर्यायसंगतिक, तापसों से पूछकर और आश्रमसंश्रित अनेक शत जनों को वचन आदि से संतुष्ट कर और उनसे अनुमति लेकर वल्कल वस्त्र पहनकर, कावड़ की छबड़ी में अपने भाण्डोपकरणों को लेकर तथा काष्ठमुद्रा से मुख को बाँधकर उत्तराभिमुख होकर उत्तर दिशा में महाप्रस्थान करूँ।’ इस प्रकार विचार करने के पश्चात् कल यावत् सूर्य के प्रकाशित होने पर उन्होंने सभी दृष्ट, भाषित, पूर्वसंगतिक और तापस पर्याय के साथियों आदि से पूछकर तथा आश्रमस्थ अनेक शत – प्राणियों को संतुष्ट कर अंत में काष्ठमुद्रा से मुख को बाँधा। इस प्रकार का अभिग्रह लिया – चाहे वह जल हो या स्थल हो अथवा नीचा प्रदेश, पर्वत हो अथवा विषम भूमि, गड्ढा हो या गुफा, इन सब में से जहाँ कहीं भी प्रस्खलित होऊं या गिर जाऊं वहाँ से मुझे उठना नहीं कल्पता है। तत्पश्चात् उत्तराभिमुख होकर महाप्रस्थान के लिए प्रस्थित वह सोमिल ब्रह्मर्षी उत्तर दिशा की ओर गमन करते हुए अपराह्न काल में जहाँ सुन्दर अशोक वृक्ष था, वहाँ आए। अपना कावड़ रखा। अनन्तर वेदिका साफ की, उसे लीप – पोत कर स्वच्छ किया, फिर डाभ सहित कलश को हाथ में लेकर जहाँ गंगा महानदी थी, वहाँ आए और शिवराजर्षि के समान उस गंगा महानदी में स्नान आदि कृत्य कर वहाँ से बाहर आए। फिर शर और अरणि बनाई, अग्नि पैदा की इत्यादि। अग्नियज्ञ करके काष्ठमुद्रा से मुख को बाँधकर मौन होकर बैठ गये। तदनन्तर मध्यरात्रि के समय सोमिल ब्रह्मर्षी के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। उस देव ने सोमिल ब्रह्मर्षी से कहा – ‘प्रव्रजित सोमिल ब्राह्मण ! तेरी यह प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है।’ उस देव ने दूसरी और तीसरी बार भी ऐसा ही कहा। किन्तु सोमिल ब्राह्मण ने उस देव की बात का आदर नहीं किया – यावत् मौन ही रहे। इसके बाद उस सोमिल ब्रह्मर्षि द्वारा अनादृत वह देव वापिस लौट गया। तत्पश्चात् कल यावत् सूर्य के प्रकाशित होने पर वल्कल वस्त्रधारी सोमिल ने कावड़, भाण्डोपकरण आदि लेकर काष्ठमुद्रा से मुख को बाँधा। बाँधकर उत्तराभिमुख हो उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान कर दिया। इसके बाद दूसरे अपराह्न काल के अंतिम प्रहर में सोमिल ब्रह्मर्षी जहाँ सप्तपर्ण वृक्ष था, वहाँ आये। कावड़ को रखा वेदिका – को साफ किया, इत्यादि पूर्ववत्। तब मध्यरात्रि में सोमिल ब्रह्मर्षी के समक्ष पुनः देव प्रकट हुआ और आकाश में स्थित होकर पूर्ववत् कहा परन्तु सोमिल ने उस देव की बात पर कुछ ध्यान नहीं दिया। यावत् वह देव पुनः वापिस लौट गया। इसके बाद वल्कल वस्त्रधारी सोमिल ने सूर्य के प्रकाशित होने पर अपने कावड़ उपकरण आदि लिए। काष्ठमुद्रा से मुख को बाँधा और मुख बाँधकर उत्तर की ओर मुख करके उत्तर दिशा में चल दिये। तदनन्तर वह सोमिल ब्रह्मर्षी तीसरे दिन अपराह्न काल में जहाँ उत्तम अशोक वृक्ष था, वहाँ आए। कावड़ रखी। बैठने के लिए वेदी बनाई और दर्भयुक्त कलश को लेकर गंगा महानदी में अवगाहन किया। अग्नि – हवन आदि किया फिर काष्ठमुद्रा से मुख को बाँधकर मौन बैठ गए। तत्पश्चात् मध्यरात्रि में सोमिल के समक्ष पुनः एक देव प्रकट हुआ और उसने उसी प्रकार कहा – ‘हे प्रव्रजित सोमिल ! तेरी यह प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है।’ यावत् वह देव वापिस लौट गया। इसके बाद सूर्योदय होने पर वह वल्कल वस्त्रधारी सोमिल कावड़ और पात्रोपकरण लेकर यावत् काष्ठमुद्रा से मुख को बाँधकर उत्तराभिमुख होकर उत्तर दिशा की ओर चल दिया। तदनन्तर चलते – चलते सोमिल ब्रह्मर्षी चौथे दिवस के अपराह्न काल में जहाँ वट वृक्ष था, वहाँ आए। नीचे कावड़ रखी। इत्यादि पूर्ववत्। मध्यरात्रि के समय पुनः सोमिल के समक्ष वह देव प्रकट हुआ और उसने कहा – ‘सोमिल ! तुम्हारी प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है।’ ऐसा कहकर वह अन्तर्धान हो गया। रात्रि के बीतने के बाद और जाज्वल्यमान तेजयुक्त सूर्य के प्रकाशित होने पर वह वल्कल वस्त्रधारी वह यावत् उत्तर दिशा में चल दिए। तत्पश्चात् वह सोमिल ब्रह्मर्षी पाँचवे दिन के चौथे प्रहर में जहाँ उदुम्बर का वृक्ष था, वहाँ आए। कावड़ रखी। यावत् मौन होकर बैठ गए। मध्यरात्रि में पुनः सोमिल ब्राह्मण के समीप एक देव प्रकट हुआ और कहा – ‘हे सोमिल! तुम्हारी यह प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है।’ इसके बाद देव ने दूसरी और तीसरी बार भी इसी प्रकार कहा – तब सोमिल ने देव से पूछा – ‘देवानुप्रिय ! मेरी प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या क्यों है ?’ देव ने कहा – तुमने पहले पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् से पंच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार का श्रावकधर्म अंगीकार किया था। किन्तु इसके बाद सुसाधुओं के दर्शन उपदेश आदि का संयोग न मिलने और मिथ्यात्व पर्यायों के बढ़ने से अंगीकृत श्रावकधर्म को त्याग दिया। यावत् तुमने दिशाप्रोक्षिक प्रव्रज्या धारण की। यावत् जहाँ अशोक वृक्ष था, वहाँ आए और कावड़ रख वेदी आदि बनाई। यावत् मध्यरात्रि के समय मैं तुम्हारे समीप आया और तुम्हें प्रतिबोधित किया – ‘हे सोमिल ! तुम्हारी यह प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है।’ किन्तु तुमने उस पर ध्यान नहीं दिया और मौन ही रहे। इस प्रकार चार दिन तक समझाया, आज पाँचवे दिवस चौथे प्रहर में इस उदुम्बर वृक्ष के नीचे आकर तुमने अपन कावड़ रखा। यावत् तुम मौन होकर बैठ गए। इस प्रकार से हे देवानुप्रिय! तुम्हारी यह प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है। यह सब सूनकर सोमिल ने देव से कहा – ‘अब आप ही बताइए कि मैं कैसे सुप्रव्रजित बनूँ ?’ देव ने सोमिल ब्राह्मण से कहा – ‘देवानुप्रिय ! यदि तुम पूर्व में ग्रहण किए हुए पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप श्रावकधर्म को स्वयमेव स्वीकार करके विचरण करो तो तुम्हारी यह प्रव्रज्या सुप्रव्रज्या होगी। इसके बाद देव ने सोमिल ब्राह्मण को वन्दन – नमस्कार किया और अन्तर्धान हो गया। पश्चात् सोमिल ब्रह्मर्षी देव के कथनानुसार पूर्व में स्वीकृत पंच अणुव्रतों को अंगीकार करके विचरण करने लगे। तत्पश्चात् सोमिल ने बहुत से चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त, अष्टमभक्त, यावत् अर्धमासक्षपण, मासक्षपण रूप विचित्र तपःकर्म से अपनी आत्मा को भावित करते हुए – श्रमणोपासक पर्याय का पालन किया। अंत में अर्ध – मासिक संलेखना द्वारा आत्मा की आराधना कर और तीस भोजनों का अनशन द्वारा त्याग कर किन्तु पूर्वकृत उस पापस्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण न करके सम्यक्त्व की विराधना के कारण कालमास में काल किया। शुक्रावतंसक विमान की उपपातसभा में स्थित देवशैया पर यावत् अंगुल के असंख्यातवें भाग की जघन्य अवगाहना से शुक्रमहाग्रह देव के रूप में जन्म लिया। वह शुक्रमहाग्रह देव यावत् पाँचों पर्याप्तियों से पर्याप्त भाव को प्राप्त हुआ। – हे गौतम ! इस प्रकार से उस शुक्रमहाग्रह देव ने वह दिव्य देवऋद्धि, द्युति यावत् दिव्य प्रभाव प्राप्त किया है। उसकी वहाँ एक पल्योपम की स्थिति है। भदन्त ! वह शुक्रमहाग्रह देव आयु, भव और स्थिति का क्षय होने के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन कर कहाँ जाएगा ? वह शुक्रमहाग्रह देव आयुक्षय, भवक्षय और स्थिति क्षय के अनन्तर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा। आयुष्मन् जम्बू ! इस प्रकार श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त महावीर ने पुष्पिका के तृतीय अध्ययन में इस भाव का निरूपण किया है, ऐसा मैं कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] mahuna ya ghaena ya tamdulehi ya aggim hunai, charum sahei, sahetta balim vaissadevam karei, karetta atihipuyam karei, karetta tao pachchha appana aharam aharei. Tae nam se somile mahanarisi dochcham chhatthakkhamanam uvasampajjittanam viharai. Tae nam se somile mahanarisi dochchachhatthakkhamanaparanagamsi ayavanabhumio pachchoruhai, pachchoruhitta vagalavatthaniyatthe jeneva sae udae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kidhinasamkaiyam genhai, genhitta dahinam disim pokkhei, dahinae disae jame maharaya patthane patthiyam abhirakkhau sanilamahanarisimabhirakkhau somilamahanarisim, jani ya tattha kamdani ya mulani ya tayani ya pattani ya pupphani ya phalani ya biyani ya hariyani ya tani anujanau ttikattu dahinam disim pasarai java tao pachchha appana aharam aharei. Evam tachchachhatthakkhamanaparanagamsi pachchatthimenam varune maharaya patthane patthiyam abhikkhau somilamahanarisim java tao pachchha appana aharam aharei. Evam chautthachhatthakkhamanaparanagamsi uttarenam vesamane maharaya patthane patthiyam abhirakkhau somilamahanarisim java tao pachchha appana aharam aharei. Tae nam tassa somilamahanarisissa annaya kayai puvvarattavarattakalasamayamsi anichcha-jagariyam jagaramanassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu aham vanarasie nayarie somile namam mahanarisi achchamtamahanakulappasue, tae nam mae vayaim chinnaim java juva nikkhitta, tae nam mae vanarasie nayarie bahiya bahave ambarama ya maulimgarama ya billarama ya kavittharama ya chimcharama ya puppharama ya rovaviya, tae nam mae subahum lohakadaha-kaduchchhuyam tambiyam tavasabhamdam ghadavetta, viulam asanam panam khaimam saimam uvakkha-davetta java jetthaputtam kudumbe thavetta java jetthaputtam apuchchhitta, subahum lohakadahakaduchchhuyam tambiyam tavasabhamdam gahaya tattha nam jete disapokkhiya tavasa tesim disapokkhiyatavasattae pavvaie,.. .. Pavvaie vi ya nam samane chhatthamchhatthenam java viharie, tam seyam khalu mamam iyanim kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte bahave tavase ditthabhatthe ya puvvasamgaie ya pariyayasamgaie ya apuchchhitta asamasamsiyani ya bahuim sattasayaim anumanaitta vagalavatthaniyatthassa kidhina-samkaiya sahataggihottasabhamdovagaranassa katthamuddae muham bamdhitta uttaradisae uttarabhimuhassa mahappatthanam patthaittae– Evam sampehei, sampehetta kallam pauppabhayae rayanae java utthiyammi sure sahassa rassimmi dinayare teyasa jalamte bahave tavase ya ditthabhitthe ya puvvasamgaie ya pariyayasamgaie ya apuchchhitta asamasamsiyani ya bahuim sattasayaim anumanaitta vagalavatthaniyatthe kidhina-samkaiya-gahita-ggihotta-sabhamdovagarane katthamuddae muham bamdhai, bamdhitta ayameyaruvam abhiggaham abhiginhai–jattheva nam aham jalamsi va thalamsi va duggamsi va ninnamsi va pavvayamsi va visamamsi va gaddae va darie va pakkhalejja va pavadejja va, no khalu me kappai pachchutthittaettikattu ayameyaruvam abhiggaham abhiginhai, uttarae disae uttarabhimuhe mahappatthanam patthie. Tae nam se somile mahanarisi pachchavaranhakalasamayamsi jeneva asogavarapayave teneva uva-gae, asogavarapayavassa ahe kidhina-samkaiyam thavei, thavetta vedim vaddhei, vaddhetta uvalevana-sammajjanam karei, karetta dabbhakalasahatthagae jeneva gamga mahanai teneva uvagachchhai, uvagachchhitta gamgam mahanaim ogahai, ogahitta jalamajjanam karei, karetta jalabhiseyam karei, karetta jalakiddam karei, karetta ayamte chokkhe paramasuibhue devapiukayakajje dabbhakalasahatthagae gamgao mahanaio pachchuttarai, pachchuttaritta jeneva asogavarapayave teneva uvagachchhai, uvagachchhitta dabbhehi ya kusehi ya valuyae ya vedim raei, raetta saragam karei, karetta java balim vaissadevam karei, karetta katthamuddae muham bamdhai, bamdhitta tusinie samchitthai. Tae nam tassa somilamahanarisissa puvvarattavarattakalasamayamsi ege deve amtiyam paubbhue. Tae nam se deve somilam mahanam evam vayasi–hambho somilamahana! Pavvaiya! Duppavvaiyam te. Tae nam se somile tassa devassa eyamattham no adhai no parijanai, anadhayamane aparijanamane tusinie samchitthai. Tatenam se deve somilam mahanam dochchampi tachchampi evam vayasi–hambho somilamahana! Pavvaiya! Duppavvaiyam te. Tae nam se somile tassa devassa dochchampi tachchampi eyamattham no adhai no parijanai, anadhayamane parijanamane tusinie samchitthai. Tae nam se deve somili yam mahanarisina anadhaijjamane jameva disim paubbhue tameva disim padigae. Tae nam se somile kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte vagalavatthaniyatthe kidhina-samkaiya-gahiyaggihotta-bhamdovagarane katthamuhae muham bamdhai, bamdhitta uttarae disae uttarabhimuhe sampatthie. Tae nam se somile biiyadivasammi pachchavaranhakalasamayamsi jeneva sattivanne teneva uvagae, sattivannassa ahe kidhina-samkaiyam thavei, thavetta vedim vaddhei jaha asogavarapayave java aggim hunai, charum sahei, balim vaissadevam karei, katthamuddae muham bamdhai, tusinie samchitthai. Tae nam tassa somilassa puvvarattavarattakale ege deve amtiyam paubbhue. Tae nam se deve amtalikkhapadivanne jaha asogavarapayave java padigae. Tae nam se somile kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte vagalavatthaniyatthe kidhina-samkaiyam genhai, genhitta katthamuddae muham bamdhai, bamdhitta uttarae disae uttarabhimuhe sampatthie. Tae nam se somile taiyadivasammi pachchavaranhakalasamayamsi jeneva asogavarapayave teneva uvagachchhai, uvagachchhitta asogavarapayavassa ahe kidhinasamkaiyam thavei, thavetta vedim vaddhei java gamgao mahanaio pachchuttarai, pachchuttaritta jeneva asogavarapayave teneva uvagachchhai, uvagachchhitta vedim raei, raetta katthamuddae muham bamdhai, bamdhitta tusinie samchitthai. Tae nam tassa somilassa puvvarattavarattakale ege deve amtiyam paubbhue, tam cheva bhanai java padigae. Tae nam se somile kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte vagalavatthaniyatthe kidhinasamkaiya-gahiyaggihottabhamdovagarane katthamuddae muham bamdhai, bamdhitta uttarae disae uttarabhimuhe sampatthie. Tae nam se somile chautthadivasammi pachchavaranhakalasamayamsi jeneva vadapayave teneva uvagae, vadapayavassa ahe kidhinasamkaiyam thavei, thavetta vedim vaddhei, uvalevanasammajjanam karei java katthamuddae muham bamdhai, tusinie samchitthai. Tae nam tassa somilassa puvvarattavarattakale ege deve amtiyam paubbhue, tam cheva bhanai java padigae. Tae nam se somile kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte vagalavatthaniyatthe kidhinasamkaiya-gahiyaggihottabhamdovagarane katthamuddae muham bamdhai, bamdhitta uttarae disae uttarabhimuhe sampatthie. Tae nam se somile pamchamadivasammi pachchavaranhakalasamayamsi jeneva umbarapayave teneva uva-gachchhai, umbarapayavassa ahe kidhinasamkaitham thavei, thavetta vedim vaddhei java katthamuddae muham bamdhai, bamdhitta tusinie samchitthai. Tae nam tassa somilamahanassa puvvarattavarattakale ege deve amtiyam paubbhue. Tae nam se deve somilam mahanam evam vayasi–hambho somila! Pavvaiya! Duppavvaiyam te. Tae nam se somile tassa devassa eyamattham no adhai no parijanai, anadhayamane aparijana-mane tusinie samchitthai. Devo dochchampi tachchampi vadai–somila! Pavvaiya! Duppavvaiyam te. Tae nam se somile tenam devenam dochchampi tachchampi evam vutte samane tam devam evam vayasi–kaham nam devanuppiya! Mama duppavvaiyam? Tae nam se deve somilam mahanam evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Tumam pasassa arahao purisadaniyassa amtiyam pamchanuvvaie sattasikkhavaie duvalasavihe savagadhamme padivanne, tae nam tava annaya kayai asahudamsanena puvvarattavarattakalasamayamsi kudumbajagariyam jagaramanassa java puvva-chimtiyam devo uchcharei java jeneva asogavarapayave teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kidhina-samkaiyam java tusinie samchitthasi. Tae nam aham puvvarattavarattakale tava amtiyam paubbhavami, hambho somila! Pavvaiya! Duppavvaiyam te. Taha chcheya devo niravayavam bhanai java pamchamadivasammi pachchavaranhakalasamayamsi jeneva umbarapayave teneva uvagae kidhina-samkaiyam thavesi vedim vaddhesi uvalevana-sammajjanam karesi, karetta katthamuddae muham bamdhesi, bamdhetta tusinie samchitthasi, tam evam khalu devanuppiya! Tava duppavvaiyam. Tae nam se somile tam devam evam vayasi–kaham nam devanuppiya! Mama supavvaiyam? Tae nam se deve somilam evam vayasi–jai nam tumam devanuppiya! Iyanim puvvapadivannaim pamcha anuvvayaim sayameva uvasampajjitta nam viharasi to nam tubbham iyanim supavvaiyam bhavejja. Tae nam se deve somilam vamdai namamsai, vamditta namamsitta jameva disim paubbhue tameva disim padigae. Tae nam se somile mahanarisi tenam devenam evam vutte samane puvvapadivannaim pamcha anuvvayaim sayameva uvasampajjitta nam viharai. Tae nam se somile bahuhim chauttha-chhatthatthama-dasama-duvalasehim masaddhamasakhamanehim vichittehim tavovahanehim appanam bhavemane bahuim vasaim samanovasagapariyagam paunai, paunitta addhamasi-yae samlehanae attanam jhusei, jhusetta tisam bhattaim anasanae chhedei, chhedetta tassa thanassa analo-iyapadikkamte virahiyasammatte kalamase kalam kichcha sukkavadimsae vimane uvavayasabhae deva-sayanijjamsi devadusamtarie amgulassa asamkhejjaibhagamettae ogahanae sukkamahaggahattae uvavanne Tae nam se sukke mahaggahe ahunovavanne samane pamchavihae pajjattie–aharapajjattie sarirapajjattie imdiyapajjattie anapanapajjattie bhasamanapajjattie pajjattabhavam gae. Evam khalu goyama! Sukkenam mahaggahenam sa divva deviddhi divva devajuti divve devanubhave laddhe patte abhisamannagae. Egam paliovamam thii. Sukke nam bhamte! Mahaggahe tao devalogao aukkhaenam kahim gachchhihii? Goyama! Mahavidehe vase sijjhihii bujjhihii muchchihii parinivvahii savvadukkhanamamtam kahii. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam pupphiyanam tachchassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat una somila brahmarshi ne dusara shashthakshapana amgikara kiya. Parane ke dina bhi atapanabhumi se niche utare, valkala vastra pahane yavat ahara kiya, itana vishesha hai ki isa bara ve dakshina disha mem gae aura kaha – ‘he dakshina disha ke yama maharaja ! Prasthana ke lie pravritta somila brahmarshi ki raksha karem aura yaham jo kanda, mula adi haim, unhem lene ki ajnya dem, aisa kahakara dakshina mem gamana kiya. Tadanantara una somila brahmarshi ne tritiya bela kiya. Parane ke dina bhi purvokta saba vidhi ki. Kintu pashchima disha ki puja ki. Kaha – ‘he pashchima disha ke lokapala varuna maharaja ! Paraloka – sadhana mem pravritta mujha somila brahmarshi ki raksha karem.’ ityadi isake bada chaturtha bela tapa kiya. Parana ke dina purvavat sari vidhi ki. Vishesha yaha hai ki isa bara uttara disha ki puja ki aura isa prakara prarthana ki – ‘he uttara disha ke lokapala vaishramana maharaja ! Paralokasadhana mem pravritta mujha somila brahmarshi ki raksha karem.’ ityadi yavat uttara disha ka avalokana kiya adi. Isa charom dishaom ka varnana, ahara kiya taka ka vrittanta purvavat janana. Isake bada kisi samaya madhyaratri mem anitya jagarana karate hue una somila brahmarshi ke mana mem isa prakara ka yaha antarika vichara utpanna hua – ‘maim varanasi nagari ka rahane vala, atyanta uchchakula mem utpanna somila brahmarshi hum. Maimne grihasthashrama mem rahate hue vrata palana kiya hai, yavat yupa – garavae. Isake bada ama ke yavat phulom ke bagiche lagavae. Tatpashchat pravrajita hua. Pravrajita hone para shashtha – shashthabhakta tapahkarma amgikara karake dikchakravala sadhana karata hua vicharana kara raha hum. Lekina aba mujhe uchita hai ki kala suryodaya hote hi bahuta se drishta – bhashita, purva samgatika, aura paryayasamgatika, tapasom se puchhakara aura ashramasamshrita aneka shata janom ko vachana adi se samtushta kara aura unase anumati lekara valkala vastra pahanakara, kavara ki chhabari mem apane bhandopakaranom ko lekara tatha kashthamudra se mukha ko bamdhakara uttarabhimukha hokara uttara disha mem mahaprasthana karum.’ Isa prakara vichara karane ke pashchat kala yavat surya ke prakashita hone para unhomne sabhi drishta, bhashita, purvasamgatika aura tapasa paryaya ke sathiyom adi se puchhakara tatha ashramastha aneka shata – praniyom ko samtushta kara amta mem kashthamudra se mukha ko bamdha. Isa prakara ka abhigraha liya – chahe vaha jala ho ya sthala ho athava nicha pradesha, parvata ho athava vishama bhumi, gaddha ho ya gupha, ina saba mem se jaham kahim bhi praskhalita houm ya gira jaum vaham se mujhe uthana nahim kalpata hai. Tatpashchat uttarabhimukha hokara mahaprasthana ke lie prasthita vaha somila brahmarshi uttara disha ki ora gamana karate hue aparahna kala mem jaham sundara ashoka vriksha tha, vaham ae. Apana kavara rakha. Anantara vedika sapha ki, use lipa – pota kara svachchha kiya, phira dabha sahita kalasha ko hatha mem lekara jaham gamga mahanadi thi, vaham ae aura shivarajarshi ke samana usa gamga mahanadi mem snana adi kritya kara vaham se bahara ae. Phira shara aura arani banai, agni paida ki ityadi. Agniyajnya karake kashthamudra se mukha ko bamdhakara mauna hokara baitha gaye. Tadanantara madhyaratri ke samaya somila brahmarshi ke samaksha eka deva prakata hua. Usa deva ne somila brahmarshi se kaha – ‘pravrajita somila brahmana ! Teri yaha pravrajya dushpravrajya hai.’ usa deva ne dusari aura tisari bara bhi aisa hi kaha. Kintu somila brahmana ne usa deva ki bata ka adara nahim kiya – yavat mauna hi rahe. Isake bada usa somila brahmarshi dvara anadrita vaha deva vapisa lauta gaya. Tatpashchat kala yavat surya ke prakashita hone para valkala vastradhari somila ne kavara, bhandopakarana adi lekara kashthamudra se mukha ko bamdha. Bamdhakara uttarabhimukha ho uttara disha ki ora prasthana kara diya. Isake bada dusare aparahna kala ke amtima prahara mem somila brahmarshi jaham saptaparna vriksha tha, vaham aye. Kavara ko rakha vedika – ko sapha kiya, ityadi purvavat. Taba madhyaratri mem somila brahmarshi ke samaksha punah deva prakata hua aura akasha mem sthita hokara purvavat kaha parantu somila ne usa deva ki bata para kuchha dhyana nahim diya. Yavat vaha deva punah vapisa lauta gaya. Isake bada valkala vastradhari somila ne surya ke prakashita hone para apane kavara upakarana adi lie. Kashthamudra se mukha ko bamdha aura mukha bamdhakara uttara ki ora mukha karake uttara disha mem chala diye. Tadanantara vaha somila brahmarshi tisare dina aparahna kala mem jaham uttama ashoka vriksha tha, vaham ae. Kavara rakhi. Baithane ke lie vedi banai aura darbhayukta kalasha ko lekara gamga mahanadi mem avagahana kiya. Agni – havana adi kiya phira kashthamudra se mukha ko bamdhakara mauna baitha gae. Tatpashchat madhyaratri mem somila ke samaksha punah eka deva prakata hua aura usane usi prakara kaha – ‘he pravrajita somila ! Teri yaha pravrajya dushpravrajya hai.’ yavat vaha deva vapisa lauta gaya. Isake bada suryodaya hone para vaha valkala vastradhari somila kavara aura patropakarana lekara yavat kashthamudra se mukha ko bamdhakara uttarabhimukha hokara uttara disha ki ora chala diya. Tadanantara chalate – chalate somila brahmarshi chauthe divasa ke aparahna kala mem jaham vata vriksha tha, vaham ae. Niche kavara rakhi. Ityadi purvavat. Madhyaratri ke samaya punah somila ke samaksha vaha deva prakata hua aura usane kaha – ‘somila ! Tumhari pravrajya dushpravrajya hai.’ aisa kahakara vaha antardhana ho gaya. Ratri ke bitane ke bada aura jajvalyamana tejayukta surya ke prakashita hone para vaha valkala vastradhari vaha yavat uttara disha mem chala die. Tatpashchat vaha somila brahmarshi pamchave dina ke chauthe prahara mem jaham udumbara ka vriksha tha, vaham ae. Kavara rakhi. Yavat mauna hokara baitha gae. Madhyaratri mem punah somila brahmana ke samipa eka deva prakata hua aura kaha – ‘he somila! Tumhari yaha pravrajya dushpravrajya hai.’ isake bada deva ne dusari aura tisari bara bhi isi prakara kaha – taba somila ne deva se puchha – ‘devanupriya ! Meri pravrajya dushpravrajya kyom hai\?’ Deva ne kaha – tumane pahale purushadaniya parshva arhat se pamcha anuvrata aura sata shikshavrata rupa baraha prakara ka shravakadharma amgikara kiya tha. Kintu isake bada susadhuom ke darshana upadesha adi ka samyoga na milane aura mithyatva paryayom ke barhane se amgikrita shravakadharma ko tyaga diya. Yavat tumane dishaprokshika pravrajya dharana ki. Yavat jaham ashoka vriksha tha, vaham ae aura kavara rakha vedi adi banai. Yavat madhyaratri ke samaya maim tumhare samipa aya aura tumhem pratibodhita kiya – ‘he somila ! Tumhari yaha pravrajya dushpravrajya hai.’ kintu tumane usa para dhyana nahim diya aura mauna hi rahe. Isa prakara chara dina taka samajhaya, aja pamchave divasa chauthe prahara mem isa udumbara vriksha ke niche akara tumane apana kavara rakha. Yavat tuma mauna hokara baitha gae. Isa prakara se he devanupriya! Tumhari yaha pravrajya dushpravrajya hai. Yaha saba sunakara somila ne deva se kaha – ‘aba apa hi bataie ki maim kaise supravrajita banum\?’ deva ne somila brahmana se kaha – ‘devanupriya ! Yadi tuma purva mem grahana kie hue pamcha anuvrata aura sata shikshavrata rupa shravakadharma ko svayameva svikara karake vicharana karo to tumhari yaha pravrajya supravrajya hogi. Isake bada deva ne somila brahmana ko vandana – namaskara kiya aura antardhana ho gaya. Pashchat somila brahmarshi deva ke kathananusara purva mem svikrita pamcha anuvratom ko amgikara karake vicharana karane lage. Tatpashchat somila ne bahuta se chaturthabhakta, shashthabhakta, ashtamabhakta, yavat ardhamasakshapana, masakshapana rupa vichitra tapahkarma se apani atma ko bhavita karate hue – shramanopasaka paryaya ka palana kiya. Amta mem ardha – masika samlekhana dvara atma ki aradhana kara aura tisa bhojanom ka anashana dvara tyaga kara kintu purvakrita usa papasthana ki alochana aura pratikramana na karake samyaktva ki viradhana ke karana kalamasa mem kala kiya. Shukravatamsaka vimana ki upapatasabha mem sthita devashaiya para yavat amgula ke asamkhyatavem bhaga ki jaghanya avagahana se shukramahagraha deva ke rupa mem janma liya. Vaha shukramahagraha deva yavat pamchom paryaptiyom se paryapta bhava ko prapta hua. – he gautama ! Isa prakara se usa shukramahagraha deva ne vaha divya devariddhi, dyuti yavat divya prabhava prapta kiya hai. Usaki vaham eka palyopama ki sthiti hai. Bhadanta ! Vaha shukramahagraha deva ayu, bhava aura sthiti ka kshaya hone ke anantara usa devaloka se chyavana kara kaham jaega\? Vaha shukramahagraha deva ayukshaya, bhavakshaya aura sthiti kshaya ke anantara mahavideha kshetra mem janma lekara siddha hoga, yavat sarva duhkhom ka anta karega. Ayushman jambu ! Isa prakara shramana yavat muktiprapta mahavira ne pushpika ke tritiya adhyayana mem isa bhava ka nirupana kiya hai, aisa maim kahata hum. |