Sutra Navigation: Pushpika ( पूष्पिका )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1008203 | ||
Scripture Name( English ): | Pushpika | Translated Scripture Name : | पूष्पिका |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-१ चंद्र |
Translated Chapter : |
अध्ययन-१ चंद्र |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 3 | Category : | Upang-10 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडिंसए विमाने सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जाव विहरइ। इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासइ, पच्छा समणं भगवं महावीरं जहा सूरियाभे आभियोगं देवं सद्दावेत्ता जाव सुरिंदाभिगमणजोग्गं करेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। सूसरा घंटा जाव विउव्वणा, नवरं–जानविमानं जोयणसहस्सविच्छिण्णं अद्धतेवट्ठिजोयणमूसियं महिंदज्झओ पणुवीसं जोयणमूसिओ सेसं जहा सूरियाभस्स जाव आगओ नट्टविही तहेव पडिगओ। भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं पुच्छा। कूडागारसाला दिट्ठंतो सरीरं अनुपविट्ठा। पुव्वभवो–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नामं नयरी होत्था। कोट्ठए चेइए। तत्थ णं सावत्थीए नयरीए अंगई नामं गाहावई होत्था–अड्ढे जाव अपरिभूए। तए णं से अंगई गाहावई सावत्थीए नयरीए बहूणं राईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाहाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी पमाणं आहारे आलंबनं चक्खू मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए आलंबणभूए चक्खुभूए सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था। तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे णं अरहा पुरिसादानीए आइगरे जहा महावीरो नवुस्सेहे सोलसहिं समणसाहस्सीहिं अट्ठतीसाए अज्जियासहस्सेहिं जाव कोट्ठए समोसढे। परिसा निग्गया। तए णं से अंगई गाहावई इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठतुट्ठे जहा कत्तिओ सेट्ठी निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ धम्मं सोच्चा निसम्म जं, नवरं–देवानुप्पिया! जेट्ठपुत्तं कुडुंबे ठावेमि, तए णं अहं देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वयामि, जहा गंगदत्ते तहा पव्वइए। अनगारे जाए– इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी। तए णं से अंगई अनगारे पासस्स अरहओ तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ छट्ठट्ठम दसम दुवालसेहिं मासद्धमास-खमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए तीसं भत्ताइं अनसनाए छेदित्ता विराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा चंदवडिंसए विमाने उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिए चंदजोइसिंदत्ताए उववन्ने। तए णं से चंदे जोइसिंदे जोइसराया अहुणोववन्ने समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए– आहार-पज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आनपानपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए पज्जत्तभावं गए। चंदस्स णं भंते! जोइसिंदस्स जोइसरण्णो केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! पलिओवमं वाससय-सहस्समब्भहियं। एवं खलु गोयमा! चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो सा दिव्वा देविड्ढी। चंदे णं भंते! जोइसिंदे जोइसराया ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं पुप्फियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। | ||
Sutra Meaning : | हे भदन्त ! श्रमण भगवान ने प्रथम अध्ययन का क्या आशय कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! उस काल और समय में राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य था। श्रेणिक राजा राज्य करता था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे। दर्शनार्थ परिषद नीकली। उस काल और उस समय में ज्योतिष्कराज ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान की सुधर्मा सभा में चन्द्र नामक सिंहासन पर बैठकर ४००० सामानिक देवों यावत् सपरिवार चार अग्रमहिषियों, तीन परिषदाओं, सात प्रकार की सेनाओं, सात उनके सेनापतियों, १६००० आत्मरक्षक देवों तथा अन्य दूसरे भी बहुत से उस विमानवासी देव – देवियों सहित निरंतर महान गंभीर ध्वनिपूर्वक निपुण पुरुषों द्वारा वादित – वीणा, हस्तताल, कांस्यताल, त्रुटित, घन मृदंग आदि वाद्यों एवं नाट्यों के साथ दिव्य भोगोपभोगों को भोगता हुआ विचर रहा था। उसने अपने विपुल अवधिज्ञान से अवलोकन करते हुए इस केवल – कल्प जम्बूद्वीप को और श्रमण भगवान महावीर को देखा। तब भगवान के दर्शनार्थ जाने का विचार करके सूर्याभदेव के समान अपने आभियोगिक देवों को बुलाया यावत् उन्हें देव – देवेन्द्रों के अभिगमन करने योग्य कार्य करने की आज्ञा दी फिर अपने पदाति सेनानायक को आज्ञा दी – सुस्वरा घंटा बजाकर सब देव – देवियों को भगवान के दर्शनार्थ चलने के लिए सूचित करो। यावत् सूर्याभदेव के समान नाट्यविधि आदि प्रदर्शित करने की विकुर्वणा की। इतना अंतर है कि उसका यान – विमान १००० योजन विस्तीर्ण और ६२॥ योजन ऊंचा था। माहेन्द्रध्वज की ऊंचाई २५ योजन की थी। भगवन् गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वंदन – नमस्कार करके निवेदन किया – भन्ते ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चंद्र द्वारा विकुर्वित वह सब दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवद्युति, दिव्य दैविक प्रभाव कहाँ चले गये ? कहाँ समा गये ? गौतम ! चन्द्र द्वारा विकुर्वित वह सब दिव्य ऋद्धि आदि उसके शरीर में चली गई, शरीर में प्रविष्ट हो गई – पूर्वभव सम्बन्धी प्रश्न – श्रमण भगवान महावीर ने कहा – गौतम ! उस काल और उस समय में श्रावस्ती नगरी थी। कोष्ठक चैत्य था। अंगति गाथापति – था, जो धनाढ्य यावत् लोगों द्वारा अपरिभूत था – वह अंगजित गाथापति श्रावस्ती नगरी के बहुत से नगरनिवासी व्यापारी, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, दूत, संधिपालक, आदि के अनेक कार्यों में, कारणों में, मंत्रणाओं में, पारिवारिक समस्याओं में, गोपनीय बातों में, निर्णयों में, सामाजिक व्यवहारों पूछने योग्य एवं विचार – करने योग्य था एवं अपने कुटुम्ब परिवार का मेढि – प्रमाण, आधार, आलंबन, चक्षु, मेढिभूत यावत् तथा सब कार्यों में अग्रेसर था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के समान धर्म की आदि करनेवाले इत्यादि, नौ हाथ की अवगाहना वाले पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्वप्रभु १६००० श्रमणों एवं ३८००० आर्याओं के समुदाय के साथ गमन करते हुए यावत् कोष्ठक चैत्य में पधारे। परिषद् दर्शनार्थ नीकली। तब वह अंगजित गाथापति इस संवाद को सूनकर हर्षित एवं संतुष्ट होता हुआ कार्तिक श्रेष्ठी के समान नीकला यावत् पर्युपासना की। धर्म को श्रवण कर और अवधारित कर उसने प्रभु से निवेदन किया – देवानुप्रिय ! ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब में स्थापित करूँगा। तत्पश्चात् मैं यावत् प्रव्रजित होऊंगा। गंगदत्त के समान वह प्रव्रजित हुआ यावत् गुप्त ब्रह्मचारी अनगार हो गया। अंगजित अनगार ने अर्हत् पार्श्व के तथारूप स्थविरों से सामायिक आदि ले लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। चतुर्थभक्त यावत् आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमण – पर्याय का पालन करके अर्धमासिक संलेखना पूर्वक अनशन द्वारा तीस भक्तों का छेदन कर – मरण करके संयम – विराधना के कारण चन्द्रावतंसक विमान की उपपात – शैया में ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ। तब सद्यः उत्पन्न ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र पाँच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्तभाव को प्राप्त हुआ – आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति, श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति और भाषामनःपर्याप्ति। भदन्त ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र की कितने काल की आयु – है ? गौतम ! एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की है। आयुष्मन् जम्बू ! इस प्रकार से यावत् मोक्षप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने पुष्पिका के प्रथम अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है, ऐसा मैं कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam pupphiyanam dasa ajjhayana pannatta, padhamassa nam bhamte! Ajjhayanassa pupphiyanam samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam ke atthe pannatte? Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam rayagihe namam nayare. Gunasilae cheie. Senie raya. Tenam kalenam tenam samaenam sami samosadhe. Parisa niggaya. Tenam kalenam tenam samaenam chamde joisimde joisaraya chamdavadimsae vimane sabhae suhammae chamdamsi sihasanamsi chauhim samaniyasahassihim java viharai. Imam cha nam kevalakappam jambuddivam divam viulenam ohina abhoemane-abhoemane pasai, pachchha samanam bhagavam mahaviram jaha suriyabhe abhiyogam devam saddavetta java surimdabhigamanajoggam karetta tamanattiyam pachchappinamti. Susara ghamta java viuvvana, navaram–janavimanam joyanasahassavichchhinnam addhatevatthijoyanamusiyam mahimdajjhao panuvisam joyanamusio sesam jaha suriyabhassa java agao nattavihi taheva padigao. Bhamte! Tti bhagavam goyame samanam bhagavam mahaviram puchchha. Kudagarasala ditthamto sariram anupavittha. Puvvabhavo–evam khalu goyama! Tenam kalenam tenam samaenam savatthi namam nayari hottha. Kotthae cheie. Tattha nam savatthie nayarie amgai namam gahavai hottha–addhe java aparibhue. Tae nam se amgai gahavai savatthie nayarie bahunam raisara talavara madambiya kodumbiya ibbha setthi senavai satthavahanam bahusu kajjesu ya karanesu ya kudumbesu ya mamtesu ya gujjhesu ya rahassesu ya nichchhaesu ya vavaharesu ya apuchchhanijje padipuchchhanijje, sayassa vi ya nam kudumbassa medhi pamanam ahare alambanam chakkhu medhibhue pamanabhue aharabhue alambanabhue chakkhubhue savvakajjavaddhavae yavi hottha. Tenam kalenam tenam samaenam pase nam araha purisadanie aigare jaha mahaviro navussehe solasahim samanasahassihim atthatisae ajjiyasahassehim java kotthae samosadhe. Parisa niggaya. Tae nam se amgai gahavai imise kahae laddhatthe samane hatthatutthe jaha kattio setthi niggachchhai java pajjuvasai dhammam sochcha nisamma jam, navaram–devanuppiya! Jetthaputtam kudumbe thavemi, tae nam aham devanuppiyanam amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvayami, jaha gamgadatte taha pavvaie. Anagare jae– iriyasamie java guttabambhayari. Tae nam se amgai anagare pasassa arahao taharuvanam theranam amtie samaiyamaiyaim ekkarasa amgaim ahijjai, ahijjitta bahuhim chauttha chhatthatthama dasama duvalasehim masaddhamasa-khamanehim vichittehim tavokammehim appanam bhavemane bahuim vasaim samannapariyagam paunai, paunitta addhamasiyae samlehanae tisam bhattaim anasanae chheditta virahiyasamanne kalamase kalam kichcha chamdavadimsae vimane uvavatasabhae devasayanijjamsi devadusamtarie chamdajoisimdattae uvavanne. Tae nam se chamde joisimde joisaraya ahunovavanne samane pamchavihae pajjattie– ahara-pajjattie sarirapajjattie imdiyapajjattie anapanapajjattie bhasamanapajjattie pajjattabhavam gae. Chamdassa nam bhamte! Joisimdassa joisaranno kevaiyam kalam thii pannatta? Goyama! Paliovamam vasasaya-sahassamabbhahiyam. Evam khalu goyama! Chamdassa joisimdassa joisaranno sa divva deviddhi. Chamde nam bhamte! Joisimde joisaraya tao devalogao aukkhaenam bhavakkhaenam thiikkhaenam chayam chaitta kahim gachchhihii? Kahim uvavajjihii? Goyama! Mahavidehe vase sijjhihii. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam pupphiyanam padhamassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhadanta ! Shramana bhagavana ne prathama adhyayana ka kya ashaya kaha hai\? Ayushman jambu ! Usa kala aura samaya mem rajagriha nagara tha. Gunashilaka chaitya tha. Shrenika raja rajya karata tha. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira svami padhare. Darshanartha parishada nikali. Usa kala aura usa samaya mem jyotishkaraja jyotishkendra chandra chandravatamsaka vimana ki sudharma sabha mem chandra namaka simhasana para baithakara 4000 samanika devom yavat saparivara chara agramahishiyom, tina parishadaom, sata prakara ki senaom, sata unake senapatiyom, 16000 atmarakshaka devom tatha anya dusare bhi bahuta se usa vimanavasi deva – deviyom sahita niramtara mahana gambhira dhvanipurvaka nipuna purushom dvara vadita – vina, hastatala, kamsyatala, trutita, ghana mridamga adi vadyom evam natyom ke satha divya bhogopabhogom ko bhogata hua vichara raha tha. Usane apane vipula avadhijnyana se avalokana karate hue isa kevala – kalpa jambudvipa ko aura shramana bhagavana mahavira ko dekha. Taba bhagavana ke darshanartha jane ka vichara karake suryabhadeva ke samana apane abhiyogika devom ko bulaya yavat unhem deva – devendrom ke abhigamana karane yogya karya karane ki ajnya di phira apane padati senanayaka ko ajnya di – susvara ghamta bajakara saba deva – deviyom ko bhagavana ke darshanartha chalane ke lie suchita karo. Yavat suryabhadeva ke samana natyavidhi adi pradarshita karane ki vikurvana ki. Itana amtara hai ki usaka yana – vimana 1000 yojana vistirna aura 62.. Yojana umcha tha. Mahendradhvaja ki umchai 25 yojana ki thi. Bhagavan gautama ne shramana bhagavana mahavira ko vamdana – namaskara karake nivedana kiya – bhante ! Jyotishkendra jyotishkaraja chamdra dvara vikurvita vaha saba divya devariddhi, divya devadyuti, divya daivika prabhava kaham chale gaye\? Kaham sama gaye\? Gautama ! Chandra dvara vikurvita vaha saba divya riddhi adi usake sharira mem chali gai, sharira mem pravishta ho gai – purvabhava sambandhi prashna – shramana bhagavana mahavira ne kaha – Gautama ! Usa kala aura usa samaya mem shravasti nagari thi. Koshthaka chaitya tha. Amgati gathapati – tha, jo dhanadhya yavat logom dvara aparibhuta tha – vaha amgajita gathapati shravasti nagari ke bahuta se nagaranivasi vyapari, shreshthi, senapati, sarthavaha, duta, samdhipalaka, adi ke aneka karyom mem, karanom mem, mamtranaom mem, parivarika samasyaom mem, gopaniya batom mem, nirnayom mem, samajika vyavaharom puchhane yogya evam vichara – karane yogya tha evam apane kutumba parivara ka medhi – pramana, adhara, alambana, chakshu, medhibhuta yavat tatha saba karyom mem agresara tha. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira ke samana dharma ki adi karanevale ityadi, nau hatha ki avagahana vale purushadaniya arhat parshvaprabhu 16000 shramanom evam 38000 aryaom ke samudaya ke satha gamana karate hue yavat koshthaka chaitya mem padhare. Parishad darshanartha nikali. Taba vaha amgajita gathapati isa samvada ko sunakara harshita evam samtushta hota hua kartika shreshthi ke samana nikala yavat paryupasana ki. Dharma ko shravana kara aura avadharita kara usane prabhu se nivedana kiya – devanupriya ! Jyeshtha putra ko kutumba mem sthapita karumga. Tatpashchat maim yavat pravrajita houmga. Gamgadatta ke samana vaha pravrajita hua yavat gupta brahmachari anagara ho gaya. Amgajita anagara ne arhat parshva ke tatharupa sthavirom se samayika adi le lekara gyaraha amgom ka adhyayana kiya. Chaturthabhakta yavat atma ko bhavita karate hue bahuta varshom taka shramana – paryaya ka palana karake ardhamasika samlekhana purvaka anashana dvara tisa bhaktom ka chhedana kara – marana karake samyama – viradhana ke karana chandravatamsaka vimana ki upapata – shaiya mem jyotishkendra chandra ke rupa mem utpanna hua. Taba sadyah utpanna jyotishkendra jyotishkaraja chandra pamcha prakara ki paryaptiyom se paryaptabhava ko prapta hua – aharaparyapti, shariraparyapti, indriyaparyapti, shvasochchhvasaparyapti aura bhashamanahparyapti. Bhadanta ! Jyotishkendra jyotishkaraja chandra ki kitane kala ki ayu – hai\? Gautama ! Eka lakha varsha adhika eka palyopama ki hai. Ayushman jambu ! Isa prakara se yavat mokshaprapta shramana bhagavana mahavira ne pushpika ke prathama adhyayana ka yaha bhava nirupana kiya hai, aisa maim kahata hum. |