Sutra Navigation: Chandrapragnapati ( चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007500 | ||
Scripture Name( English ): | Chandrapragnapati | Translated Scripture Name : | चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्राभृत-१ |
Translated Chapter : |
प्राभृत-१ |
Section : | प्राभृत-प्राभृत-१ | Translated Section : | प्राभृत-प्राभृत-१ |
Sutra Number : | 200 | Category : | Upang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] ता कहं ते चंदे ससी-चंदे ससी आहितेति वदेज्जा? ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो मियंके विमाने कंता देवा कंताओ देवीओ कंताइं आसन-सयन-खंभ-भंडमत्तोवगरणाइं, अप्पणावि य णं चंदे देवे जोतिसिंदे जोतिसराया सोमे कंते सुभगे पियदंसणे सुरूवे ता एवं खलु चंदे ससी-चंदे ससी आहितेति वदेज्जा। ता कहं ते सूरे आदिच्चे-सूरे आदिच्चे आहितेति वदेज्जा? ता सूरादिया णं समयाति वा आवलियाति वा आनापानुति वा थोवेति वा जाव ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीति वा, एवं खलु सूरे आदिच्चे-सूरे आदिच्चे आहितेति वदेज्जा। | ||
Sutra Meaning : | हे भगवन् ! राहु की क्रिया कैसे प्रतिपादित की है ? इस विषय में दो प्रतिपत्तियाँ हैं – एक कहता है कि – राहु नामक देव चंद्र – सूर्य को ग्रसित करता है, दूसरा कहता है कि राहु नामक कोई देव विशेष है ही नहीं जो चंद्र – सूर्य को ग्रसित करता है। पहले मतवाला का कथन यह है कि – चंद्र या सूर्य को ग्रहण करता हुआ कभी अधोभाग को ग्रहण करके अधोभाग से ही छोड़ देता है, उपर से ग्रहण करके अधो भाग से छोड़ता है, कभी उपर से ग्रहण करके उपर से ही छोड़ देता है, दायिनी ओर से ग्रहण करके दायिनी ओर से छोड़ता है तो कभी बायीं तरफ से ग्रहण करके बांयी तरफ से छोड़ देता है इत्यादि। जो मतवादी यह कहता है कि राहु द्वारा चंद्र – सूर्य ग्रसित होते ही नहीं, उनके मतानुसार – पन्द्रह प्रकार के कृष्णवर्णवाले पुद्गल हैं – शृंगाटक, जटिलक, क्षारक, क्षत, अंजन, खंजन, शीतल, हिमशीतल, कैलास, अरुणाभ, परिज्जय, नभसूर्य, कपिल और पिंगल राहु। जब यह पन्द्रह समस्त पुद्गल सदा चंद्र या सूर्य की लेश्या को अनुबद्ध करके भ्रमण करते हैं तब मनुष्य यह कहते है कि राहु ने चंद्र या सूर्य को ग्रसित किया है। जब यह पुद्गल सूर्य या चंद्र की लेश्या को ग्रसित नहीं करते हुए भ्रमण करते हैं तब मनुष्य कहते हैं कि सूर्य या चंद्र द्वारा राहु ग्रसित हुआ है। भगवंत फरमाते हैं कि – राहुदेव महाऋद्धिवाला यावत् उत्तम आभरणधारी है, राहुदेव के नव नाम है – शृंगाटक, जटिलक, क्षतक, क्षरक, दर्दर, मगर, मत्स्य, कस्यप और कृष्णसर्प। राहुदेव का विमान पाँच वर्णवाला है – कृष्ण, नील, रक्त, पीला और श्वेत। काला राहुविमान खंजन वर्ण की आभावाला है, नीला राहुविमान लीले तुंबड़े के वर्ण का, रक्त राहुविमान मंजीठ वर्ण की आभावाला, पीला विमान हलदर की आभावाला और श्वेत राहुविमान तेजपुंज सदृश होता है जिस वक्त राहुदेव विमान आते – जाते – विकुर्वणा करते – परिचारणा करते चंद्र या सूर्य की लेश्या को पूर्व से आवरित करके पश्चिम में छोड़ता है, तब पूर्व से चंद्र या सूर्य दिखते हैं और पश्चिम में राहु दिखाई देता है, जब दक्षिण से आवरित करके उत्तर में छोड़ता है, तब दक्षिण से चंद्र – सूर्य दिखाई देते हैं और उत्तर में राहु दिखाई देता है। इसी अभिलाप से इसी प्रकार पश्चिम, उत्तर, ईशान, अग्नि, नैऋत्य और वायव्य में भी समझ लेना चाहिए। इस तरह जब राहु चंद्र या सूर्य की लेश्या को आवरीत करता है, तब मनुष्य कहते हैं कि राहुने चंद्र या सूर्य का ग्रहण किया – ग्रहण किया। जब इस तरह राहु एक पार्श्व से चंद्र या सूर्य की लेश्या को आवरीत करता है तब लोग कहते है कि राहुने चंद्र या सूर्य की कुक्षिका विदारण किया – विदारण किया। जब राहु इस तरह चंद्र या सूर्य की लेश्या को आवरीत करके छोड़ देता है, तब लोग कहते हैं कि राहुने चंद्र या सूर्य का वमन किया – वमन किया। इस तरह जब राहु चंद्र या सूर्य लेश्या को आवरीत करके बीचोबीच से नीकलता है तब लोग कहते हैं कि राहुने चंद्र या सूर्य को मध्य से विदारीत किया है। इसी तरह जब राहु चारों ओर से चंद्र या सूर्य को आवरीत करता है तब लोग कहते हैं कि राहुने चंद्र – सूर्य को ग्रसित किया। राहु दो प्रकार के हैं – ध्रुवराहु और पर्वराहु। जो ध्रुवराहु है, वह कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से आरंभ कर के अपने पन्द्रहवे भाग से चंद्र की पन्द्रहवा भाग की लेश्या को एक एक दिन के क्रम से आच्छादित करता है और पूर्णिमा एवं अमावास्या के पर्वकालमें क्रमानुसार चंद्र या सूर्य को ग्रसित करता है; जो पर्वराहु है वह जघन्य से छह मास और उत्कृष्ट से बयालीस मास में चंद्र को अडतालीस मास में सूर्य को ग्रसित करता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ta kaham te chamde sasi-chamde sasi ahiteti vadejja? Ta chamdassa nam jotisimdassa jotisaranno miyamke vimane kamta deva kamtao devio kamtaim asana-sayana-khambha-bhamdamattovagaranaim, appanavi ya nam chamde deve jotisimde jotisaraya some kamte subhage piyadamsane suruve ta evam khalu chamde sasi-chamde sasi ahiteti vadejja. Ta kaham te sure adichche-sure adichche ahiteti vadejja? Ta suradiya nam samayati va avaliyati va anapanuti va thoveti va java osappini-ussappiniti va, evam khalu sure adichche-sure adichche ahiteti vadejja. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavan ! Rahu ki kriya kaise pratipadita ki hai\? Isa vishaya mem do pratipattiyam haim – eka kahata hai ki – rahu namaka deva chamdra – surya ko grasita karata hai, dusara kahata hai ki rahu namaka koi deva vishesha hai hi nahim jo chamdra – surya ko grasita karata hai. Pahale matavala ka kathana yaha hai ki – chamdra ya surya ko grahana karata hua kabhi adhobhaga ko grahana karake adhobhaga se hi chhora deta hai, upara se grahana karake adho bhaga se chhorata hai, kabhi upara se grahana karake upara se hi chhora deta hai, dayini ora se grahana karake dayini ora se chhorata hai to kabhi bayim tarapha se grahana karake bamyi tarapha se chhora deta hai ityadi. Jo matavadi yaha kahata hai ki rahu dvara chamdra – surya grasita hote hi nahim, unake matanusara – pandraha prakara ke krishnavarnavale pudgala haim – shrimgataka, jatilaka, ksharaka, kshata, amjana, khamjana, shitala, himashitala, kailasa, arunabha, parijjaya, nabhasurya, kapila aura pimgala rahu. Jaba yaha pandraha samasta pudgala sada chamdra ya surya ki leshya ko anubaddha karake bhramana karate haim taba manushya yaha kahate hai ki rahu ne chamdra ya surya ko grasita kiya hai. Jaba yaha pudgala surya ya chamdra ki leshya ko grasita nahim karate hue bhramana karate haim taba manushya kahate haim ki surya ya chamdra dvara rahu grasita hua hai. Bhagavamta pharamate haim ki – rahudeva mahariddhivala yavat uttama abharanadhari hai, rahudeva ke nava nama hai – shrimgataka, jatilaka, kshataka, ksharaka, dardara, magara, matsya, kasyapa aura krishnasarpa. Rahudeva ka vimana pamcha varnavala hai – krishna, nila, rakta, pila aura shveta. Kala rahuvimana khamjana varna ki abhavala hai, nila rahuvimana lile tumbare ke varna ka, rakta rahuvimana mamjitha varna ki abhavala, pila vimana haladara ki abhavala aura shveta rahuvimana tejapumja sadrisha hota hai Jisa vakta rahudeva vimana ate – jate – vikurvana karate – paricharana karate chamdra ya surya ki leshya ko purva se avarita karake pashchima mem chhorata hai, taba purva se chamdra ya surya dikhate haim aura pashchima mem rahu dikhai deta hai, jaba dakshina se avarita karake uttara mem chhorata hai, taba dakshina se chamdra – surya dikhai dete haim aura uttara mem rahu dikhai deta hai. Isi abhilapa se isi prakara pashchima, uttara, ishana, agni, nairitya aura vayavya mem bhi samajha lena chahie. Isa taraha jaba rahu chamdra ya surya ki leshya ko avarita karata hai, taba manushya kahate haim ki rahune chamdra ya surya ka grahana kiya – grahana kiya. Jaba isa taraha rahu eka parshva se chamdra ya surya ki leshya ko avarita karata hai taba loga kahate hai ki rahune chamdra ya surya ki kukshika vidarana kiya – vidarana kiya. Jaba rahu isa taraha chamdra ya surya ki leshya ko avarita karake chhora deta hai, taba loga kahate haim ki rahune chamdra ya surya ka vamana kiya – vamana kiya. Isa taraha jaba rahu chamdra ya surya leshya ko avarita karake bichobicha se nikalata hai taba loga kahate haim ki rahune chamdra ya surya ko madhya se vidarita kiya hai. Isi taraha jaba rahu charom ora se chamdra ya surya ko avarita karata hai taba loga kahate haim ki rahune chamdra – surya ko grasita kiya. Rahu do prakara ke haim – dhruvarahu aura parvarahu. Jo dhruvarahu hai, vaha krishnapaksha ki pratipada se arambha kara ke apane pandrahave bhaga se chamdra ki pandrahava bhaga ki leshya ko eka eka dina ke krama se achchhadita karata hai aura purnima evam amavasya ke parvakalamem kramanusara chamdra ya surya ko grasita karata hai; jo parvarahu hai vaha jaghanya se chhaha masa aura utkrishta se bayalisa masa mem chamdra ko adatalisa masa mem surya ko grasita karata hai. |