Sutra Navigation: Pragnapana ( प्रज्ञापना उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1006837 | ||
Scripture Name( English ): | Pragnapana | Translated Scripture Name : | प्रज्ञापना उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
Translated Chapter : |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
Section : | उद्देशक-१ | Translated Section : | उद्देशक-१ |
Sutra Number : | 537 | Category : | Upang-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं कतिहिं ठाणेहिं बंधति? गोयमा! दोहिं ठाणेहिं, तं जहा–रागेण य दोसेण य। रागे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–माया य लोभे य। दोसे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–कोहे य माने य। इच्चेतेहिं चउहिं ठाणेहिं वीरिओवग्गहिएहिं एवं खलु जीवे नाणावरणिज्जं कम्मं बंधति। एवं नेरइए जाव वेमाणिए। जीवा णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं कतिहिं ठाणेहिं बंधंति? गोयमा! दोहिं ठाणेहिं, एवं चेव। एवं नेरइया जाव वेमानिया। एवं दंसणावरणिज्जं जाव अंतराइयं। एवं एते एगत्तपोहत्तिया सोलस दंडगा। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! जीव कितने स्थानों से ज्ञानावरणीयकर्म बाँधता है ? गौतम ! दो स्थानों से, यथा – राग से और द्वेष से। राग दो प्रकार का है, माया और लोभ। द्वेष भी दो प्रकार का है, क्रोध और मान। इस प्रकार वीर्य से उपार्जित चार स्थानों से जीव ज्ञानावरणीयकर्म बाँधता है। नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना। बहुत जीव कितने कारणों से ज्ञानावरणीयकर्म बाँधते हैं ? गौतम ! पूर्वोक्त दो कारणों से। इसी प्रकार बहुत से नैरयिकों से वैमानिकों तक समझना। इसी प्रकार दर्शनावरणीय से अन्तरायकर्म तक समझना। इस प्रकार एकत्व और बहुत्व की विवक्षा से ये सोलह दण्डक होते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jive nam bhamte! Nanavaranijjam kammam katihim thanehim bamdhati? Goyama! Dohim thanehim, tam jaha–ragena ya dosena ya. Rage duvihe pannatte, tam jaha–maya ya lobhe ya. Dose duvihe pannatte, tam jaha–kohe ya mane ya. Ichchetehim chauhim thanehim viriovaggahiehim evam khalu jive nanavaranijjam kammam bamdhati. Evam neraie java vemanie. Jiva nam bhamte! Nanavaranijjam kammam katihim thanehim bamdhamti? Goyama! Dohim thanehim, evam cheva. Evam neraiya java vemaniya. Evam damsanavaranijjam java amtaraiyam. Evam ete egattapohattiya solasa damdaga. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Jiva kitane sthanom se jnyanavaraniyakarma bamdhata hai\? Gautama ! Do sthanom se, yatha – raga se aura dvesha se. Raga do prakara ka hai, maya aura lobha. Dvesha bhi do prakara ka hai, krodha aura mana. Isa prakara virya se uparjita chara sthanom se jiva jnyanavaraniyakarma bamdhata hai. Nairayika se vaimanika paryanta isi prakara kahana. Bahuta jiva kitane karanom se jnyanavaraniyakarma bamdhate haim\? Gautama ! Purvokta do karanom se. Isi prakara bahuta se nairayikom se vaimanikom taka samajhana. Isi prakara darshanavaraniya se antarayakarma taka samajhana. Isa prakara ekatva aura bahutva ki vivaksha se ye solaha dandaka hote haim. |