Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1006189 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
सर्व जीव प्रतिपत्ति |
Section : | ४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव | Translated Section : | ४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव |
Sutra Number : | 389 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु छव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी मनपज्जवनाणी केवलनाणी अन्नाणी। आभिनिबोहियनाणी णं भंते! आभिनिबोहियणाणित्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं साइरेगाइं। एवं सुयनाणीवि। ओहिनाणी णं भंते! ओहिनाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागारोवमाइं साइरेगाइं। मनपज्जवनाणी णं भंते! मनपज्जवनाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। केवलनाणी णं भंते! केवलनाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! सादीए अपज्जवसिए। अन्नाणिणो तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–अनाइए वा अपज्जवसिए, अनाइए वा सपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ साइए सपज्जवसिए जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं। अंतरं–आभिनिबोहियनाणिस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं अवड्ढं पोग्गल-परियट्टं देसूणं। एवं सुयनाणिस्सवि ओहिनाणिस्सवि मनपज्जवनाणिस्सवि, केवलनाणिणो नत्थि अंतरं। अन्नाणिस्स साइयसपज्जवसियस्स जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं साइरेगाइं। अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा मणपज्जवनाणी, ओहिनाणी असंखेज्जगुणा, आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी सट्ठाणे दोवि तुल्ला विसेसाहिया, केवलनाणी अनंतगुणा, अन्नाणी अनंतगुणा। | ||
Sutra Meaning : | जो ऐसा कहते हैं कि सब जीव छह प्रकार के हैं, उनके अनुसार – आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधि – ज्ञानी, मनःपर्यायज्ञानी, केवलज्ञानी और अज्ञानी यह छ हैं। आभिनिबोधिकज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से साधिक छियासठ सागरोपम तक रह सकता है। श्रुतज्ञानी का भी यहीं काल है। अवधिज्ञानी उसी रूप में जघन्य एक समय और उत्कर्ष से साधिक छियासठ सागरोपम तक रह सकता है। मनःपर्यायज्ञानी उसी रूप में जघन्य एक समय और उत्कर्ष से देशोन पूर्वकोटि तक रह सकता है। केवलज्ञानी सादि – अपर्यवसित है। अज्ञानी तीन तरह के हैं – १. अनादि – अपर्यवसित, २. अनादि – सपर्यवसित और ३. सादि – सपर्यवसित। इनमें जो सादि – सपर्यवसित हैं, वह जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से अनन्तकाल तक, जो देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त रूप हैं। आभिनिबोधिकज्ञानी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से अनन्तकाल, जो देशोन अपार्धपुद्गल – परावर्त रूप हैं। इसी प्रकार श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्यायज्ञानी का अन्तर कहना चाहिए। केवलज्ञानी का अन्तर नहीं है। सादि – सपर्यवसित अज्ञानी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट साधिक छियासठ सागरोपम है। अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े मनःपर्यायज्ञानी हैं, उनसे अवधिज्ञानी असंख्येयगुण हैं, उनसे आभिनिबोधिकज्ञानी और श्रुतज्ञानी विशेषाधिक हैं और दोनों स्वस्थान में तुल्य हैं। उनसे केवलज्ञानी अनन्तगुण हैं और उनसे अज्ञानी अनन्तगुण हैं। अथवा सर्व जीव छह प्रकार के हैं – एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय। इनकी कायस्थिति और अन्तर पूर्वकथनानुसार कहना। अल्पबहुत्व में – सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय, उनसे चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे त्रीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे द्वीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अनिन्द्रिय अनन्तगुण और उनसे एकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tattha nam jete evamahamsu chhavviha savvajiva pannatta te evamahamsu, tam jaha–abhinibohiyanani suyanani ohinani manapajjavanani kevalanani annani. Abhinibohiyanani nam bhamte! Abhinibohiyananitti kalao kevachiram hoi? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam chhavatthim sagarovamaim sairegaim. Evam suyananivi. Ohinani nam bhamte! Ohinanitti kalao kevachiram hoi? Goyama! Jahannenam ekkam samayam, ukkosenam chhavatthim sagarovamaim sairegaim. Manapajjavanani nam bhamte! Manapajjavananitti kalao kevachiram hoi? Goyama! Jahannenam ekkam samayam, ukkosenam desuna puvvakodi. Kevalanani nam bhamte! Kevalananitti kalao kevachiram hoi? Goyama! Sadie apajjavasie. Annanino tiviha pannatta, tam jaha–anaie va apajjavasie, anaie va sapajjavasie, saie va sapajjavasie. Tattha saie sapajjavasie jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam anamtam kalam avaddham poggalapariyattam desunam. Amtaram–abhinibohiyananissa jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam anamtam kalam avaddham poggala-pariyattam desunam. Evam suyananissavi ohinanissavi manapajjavananissavi, kevalananino natthi amtaram. Annanissa saiyasapajjavasiyassa jahannenam amtomuhattam, ukkosenam chhavatthim sagarovamaim sairegaim. Appabahuyam–savvatthova manapajjavanani, ohinani asamkhejjaguna, abhinibohiyanani suyanani satthane dovi tulla visesahiya, kevalanani anamtaguna, annani anamtaguna. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jo aisa kahate haim ki saba jiva chhaha prakara ke haim, unake anusara – abhinibodhikajnyani, shrutajnyani, avadhi – jnyani, manahparyayajnyani, kevalajnyani aura ajnyani yaha chha haim. Abhinibodhikajnyani, abhinibodhikajnyani ke rupa mem jaghanya se antarmuhurtta aura utkrishta se sadhika chhiyasatha sagaropama taka raha sakata hai. Shrutajnyani ka bhi yahim kala hai. Avadhijnyani usi rupa mem jaghanya eka samaya aura utkarsha se sadhika chhiyasatha sagaropama taka raha sakata hai. Manahparyayajnyani usi rupa mem jaghanya eka samaya aura utkarsha se deshona purvakoti taka raha sakata hai. Kevalajnyani sadi – aparyavasita hai. Ajnyani tina taraha ke haim – 1. Anadi – aparyavasita, 2. Anadi – saparyavasita aura 3. Sadi – saparyavasita. Inamem jo sadi – saparyavasita haim, vaha jaghanya se antarmuhurtta aura utkarsha se anantakala taka, jo deshona apardhapudgalaparavarta rupa haim. Abhinibodhikajnyani ka antara jaghanya antarmuhurtta aura utkarsha se anantakala, jo deshona apardhapudgala – paravarta rupa haim. Isi prakara shrutajnyani, avadhijnyani aura manahparyayajnyani ka antara kahana chahie. Kevalajnyani ka antara nahim hai. Sadi – saparyavasita ajnyani ka antara jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta sadhika chhiyasatha sagaropama hai. Alpabahutva mem sabase thore manahparyayajnyani haim, unase avadhijnyani asamkhyeyaguna haim, unase abhinibodhikajnyani aura shrutajnyani visheshadhika haim aura donom svasthana mem tulya haim. Unase kevalajnyani anantaguna haim aura unase ajnyani anantaguna haim. Athava sarva jiva chhaha prakara ke haim – ekendriya, dvindriya, trindriya, chaturindriya, pamchendriya aura anindriya. Inaki kayasthiti aura antara purvakathananusara kahana. Alpabahutva mem – sabase thore pamchendriya, unase chaturindriya visheshadhika, unase trindriya visheshadhika, unase dvindriya visheshadhika, unase anindriya anantaguna aura unase ekendriya anantaguna haim. |