Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005772 | ||
Scripture Name( English ): | Rajprashniya | Translated Scripture Name : | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Translated Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 72 | Category : | Upang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–जुत्तए णं भंते! तुब्भं इय छेयाणं दक्खाणं पत्तट्ठाणं कुसलाणं महामईणं विणीयाणं विण्णाणपत्ताणं उवएसलद्धाणं अहं इमीसे महालियाए महच्चपरिसाए मज्झे उच्चावएहिं आओसेहिं आओसित्तए, उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसित्तए, उच्चावयाहिं निब्भंछणाहिं निब्भंछित्तए, उच्चावयाहिं निच्छोडणाहिं निच्छोडित्तए? तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–जाणासि णं तुमं पएसी! कति परिसाओ पन्नत्ताओ? भंते! जाणामि चत्तारि परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–खत्तियपरिसा, गाहावइपरिसा, माहणपरिसा, इसिपरिसा। जाणासि णं तुमं पएसी! एयासिं चउण्हं परिसाणं कस्स का दंडणीई पन्नत्ता? हंता! जाणामि–जे णं खत्तियपरिसाए अवरज्झइ, से णं हत्थच्छिन्नए वा पायच्छिन्नए वा सीसच्छिन्नए वा सूलाइए वा एगाहच्चे कूडाहच्चे जीवियाओ ववरोविज्जइ। जे णं गाहावइपरिसाए अवरज्झइ, से णं तणेण वा वेढेण वा पलालेण वा वेढित्ता अगनिकाएणं झामिज्जइ। जे णं माहणपरिसाए अवरज्झइ, से णं अनिट्ठाहिं अकंताहिं अप्पियाहिं अमनुन्नाहिं अमणामाहिं वग्गूहिं उवालभित्ता कुंडियालंछणए वा सूणगलंछणए वा कीरइ, निव्विसए वा आणविज्जइ। जे णं इसिपरिसाए अवरज्झइ, से णं नाइअनिट्ठाहिं नाइअकंताहिंना नाइअमणुन्नाहिं नाइअमणामाहिं वग्गूहिं उवालब्भइ। एवं च ताव पएसी! तुमं जाणासि तहावि णं तुमं ममं वामं वामेणं दंडं दंडेणं पडिकूलं पडिकूलेणं पडिलोमं पडिलोमेणं विवच्चासं विवच्चासेणं वट्टसि। तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–एवं खलु अहं देवाणुप्पिएहिं पढमिल्लुएणं चेव वागरणेणं संलद्धे, तए णं ममं इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुपज्जित्था–जहा-जहा णं एयस्स पुरिसस्स वामं वामेणं दंडं दंडेणं पडिकूलं पडिकूलेणं पडिलोमं पडिलोमेणं विवच्चासं विवच्चासेणं वट्टिस्सामि, तहा-तहा णं अहं नाणं च नाणो-वलंभं च, दंसणं च दंसणोवलंभं च, जीवं च जीवोवलंभं च उवलभिस्सामि। तं एएणं कारणेणं अहं देवानुप्पियाणं वामं वामेणं दंडं दंडेणं पडिकूलं पडिकूलेणं पडिलोमं पडिलोमेणं विवच्चासं विवच्चासेणं वट्टिए। तए णं केसी कुमार-समणे पएसिं रायं एवं वयासी–जाणासि णं तुमं पएसी! कइ ववहारगा पन्नत्ता? हंता जाणामि, चत्तारि ववहारगा पन्नत्ता–देइ नामेगे नो सन्नवेइ। सन्नवेइ नामेगे नो देइ। एगे देइ वि सन्नवेइ वि। एगे नो देइ नो सन्नवेइ। जाणासि णं तुमं पएसी! एएसिं चउण्हं पुरिसाणं के ववहारी? के अव्ववहारी? हंता जाणामि–तत्थ णं जेसे पुरिसे देइ नो सन्नवेइ, से णं पुरिसे ववहारी। तत्थ णं जेसे पुरिसे नो देइ सन्नवेइ, से णं पुरिसे ववहारी। तत्थ णं जेसे पुरिसे देइ वि सन्नवेइ वि, से एवामेव तुमं पि ववहारी, नो चेव णं तुमं पएसी! अववहारी। | ||
Sutra Meaning : | प्रदेशी राजा ने कहा – भन्ते ! आप जैसे छेक, दक्ष, बुद्ध, कुशल, बुद्धिमान्, विनीत, विशिष्ट ज्ञानी, विवेक संपन्न, उपदेशलब्ध पुरुष का इस अति विशाल परिषद् के बीच मेरे लिए इस प्रकार के निष्ठुर शब्दों का प्रयोग करना, मेरी भर्त्सना करना, मुझे प्रताड़ित करना, धमकाना क्या उचित है ? केशी कुमारश्रमण ने कहा – हे प्रदेशी ! जानते हो कि कितनी परिषदायें कही गई हैं ? प्रदेशी – जी हाँ, जानता हूँ चार परिषदायें हैं – क्षत्रिय, गाथापति, ब्राह्मण और ऋषि परिषदा। प्रदेशी ! तुम यह भी जानते हो कि इन चार परिषदाओं के अपराधियों के लिए क्या दण्डनीति बताई गई है ? प्रदेशी – हाँ, जानता हूँ। जो क्षत्रिय – परिषद् का अपराध करता है, उसके या तो हाथ, पैर या शिर काट दिया जाता है, अथवा उसे शूली पर चढ़ा देते हैं या एक ही प्रहार से या कूचलकर प्राणरिहत कर दिया जाता है – जो गाथापति – परिषद् का अपराध करता है, उसे घास से अथवा पेड़ के पत्तों से अथवा पलाल – पुआल से लपेट कर अग्नि में झोंक दिया जाता है। जो ब्राह्मण – परिषद् का अपराध करता है, उसे अनिष्ट, रोषपूर्ण, अप्रिय या अमणाम शब्दों से उपालम्भ देकर अग्नितप्त लोहे से कुंडिका चिह्न अथवा कुत्ते के चिह्न से लांछित कर दिया जाता है अथवा निर्वासित कर दिया जाता है। जो ऋषि – परिषद् का अपमान करता है, उसे न अति अनिष्ट यावत् न अति अमनोज्ञ शब्दों द्वारा उपालम्भ दिया जाता है। केशी कुमार – श्रमण – इस प्रकार की दण्डनीति को जानते हुए भी हे प्रदेशी ! तुम मेरे प्रति विपरीत, परितापजनक, प्रतिकूल, विरुद्ध, सर्वथा विपरीत व्यवहार कर रहे हो। तब प्रदेशी राजा ने कहा – भदन्त ! मेरा आप देवानुप्रिय से जब प्रथम ही वार्तालाप हुआ तभी मेरे मन में इस प्रकार का विचार यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ कि जितना – जितना और जैसे – जैसे मैं इस पुरुष के विपरीत यावत् सर्वथा विपरीत व्यवहार करूँगा, उतना – उतना और वैसे – वैसे मैं अधिक तत्त्व को जानूँगा, ज्ञान प्राप्त करूँगा, चारित्र को, चारित्रलाभ को, सम्यक्त्व को, सम्यक्त्व लाभ को, जीव को, जीव के स्वरूप को समझ सकूँगा। इसी कारण आप देवानुप्रिय के प्रति मैंने विपरीत यावत् अत्यन्त विरुद्ध व्यवहार किया है। केशी कुमारश्रमण ने कहा – हे प्रदेशी! जानते हो तुम कि व्यवहारकर्ता कितने प्रकार के बतलाए गए हैं ? हाँ, भदन्त ! जानता हूँ कि व्यवहार – कारकों के चार प्रकार हैं – १. कोई किसी को दान देता है, किन्तु उसके साथ प्रीतिजनक वाणी नहीं बोलता। २. कोई संतोषप्रद बातें तो करता है, किन्तु देता नहीं है। ३. कोई देता भी है और लेने वाले के साथ संतोषप्रद वार्तालाप भी करता है और ४. कोई देता भी कुछ नहीं और न संतोषप्रद बात करता है। हे प्रदेशी ! जानते हो तुम कि इन चार प्रकार के व्यक्तियों में से कौन व्यवहारकुशल है और कौन व्यवहारशून्य है ? प्रदेशी – हाँ, जानता हूँ। इनमें से जो पुरुष देता है, किन्तु संभाषण नहीं करता, वह व्यवहारी है। जो पुरुष देता नहीं किन्तु सम्यग् आलाप से संतोष उत्पन्न करता है, वह व्यवहारी है। जो पुरुष देता भी है और शिष्ट वचन भी कहता है, वह व्यवहारी है, किन्तु जो न देता है और न मधुर वाणी बोलता है, वह अव्यवहारी है। उसी प्रकार हे प्रदेशी ! तुम भी व्यवहारी हो, अव्यवहारी नहीं हो। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam paesi raya kesim kumarasamanam evam vayasi–juttae nam bhamte! Tubbham iya chheyanam dakkhanam pattatthanam kusalanam mahamainam viniyanam vinnanapattanam uvaesaladdhanam aham imise mahaliyae mahachchaparisae majjhe uchchavaehim aosehim aosittae, uchchavayahim uddhamsanahim uddhamsittae, uchchavayahim nibbhamchhanahim nibbhamchhittae, uchchavayahim nichchhodanahim nichchhodittae? Tae nam kesi kumarasamane paesim rayam evam vayasi–janasi nam tumam paesi! Kati parisao pannattao? Bhamte! Janami chattari parisao pannattao, tam jaha–khattiyaparisa, gahavaiparisa, mahanaparisa, isiparisa. Janasi nam tumam paesi! Eyasim chaunham parisanam kassa ka damdanii pannatta? Hamta! Janami–je nam khattiyaparisae avarajjhai, se nam hatthachchhinnae va payachchhinnae va sisachchhinnae va sulaie va egahachche kudahachche jiviyao vavarovijjai. Je nam gahavaiparisae avarajjhai, se nam tanena va vedhena va palalena va vedhitta aganikaenam jhamijjai. Je nam mahanaparisae avarajjhai, se nam anitthahim akamtahim appiyahim amanunnahim amanamahim vagguhim uvalabhitta kumdiyalamchhanae va sunagalamchhanae va kirai, nivvisae va anavijjai. Je nam isiparisae avarajjhai, se nam naianitthahim naiakamtahimna naiamanunnahim naiamanamahim vagguhim uvalabbhai. Evam cha tava paesi! Tumam janasi tahavi nam tumam mamam vamam vamenam damdam damdenam padikulam padikulenam padilomam padilomenam vivachchasam vivachchasenam vattasi. Tae nam paesi raya kesim kumarasamanam evam vayasi–evam khalu aham devanuppiehim padhamilluenam cheva vagaranenam samladdhe, tae nam mamam imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samupajjittha–jaha-jaha nam eyassa purisassa vamam vamenam damdam damdenam padikulam padikulenam padilomam padilomenam vivachchasam vivachchasenam vattissami, taha-taha nam aham nanam cha nano-valambham cha, damsanam cha damsanovalambham cha, jivam cha jivovalambham cha uvalabhissami. Tam eenam karanenam aham devanuppiyanam vamam vamenam damdam damdenam padikulam padikulenam padilomam padilomenam vivachchasam vivachchasenam vattie. Tae nam kesi kumara-samane paesim rayam evam vayasi–janasi nam tumam paesi! Kai vavaharaga pannatta? Hamta janami, chattari vavaharaga pannatta–dei namege no sannavei. Sannavei namege no dei. Ege dei vi sannavei vi. Ege no dei no sannavei. Janasi nam tumam paesi! Eesim chaunham purisanam ke vavahari? Ke avvavahari? Hamta janami–tattha nam jese purise dei no sannavei, se nam purise vavahari. Tattha nam jese purise no dei sannavei, se nam purise vavahari. Tattha nam jese purise dei vi sannavei vi, se evameva tumam pi vavahari, no cheva nam tumam paesi! Avavahari. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Pradeshi raja ne kaha – bhante ! Apa jaise chheka, daksha, buddha, kushala, buddhiman, vinita, vishishta jnyani, viveka sampanna, upadeshalabdha purusha ka isa ati vishala parishad ke bicha mere lie isa prakara ke nishthura shabdom ka prayoga karana, meri bhartsana karana, mujhe pratarita karana, dhamakana kya uchita hai\? Keshi kumarashramana ne kaha – he pradeshi ! Janate ho ki kitani parishadayem kahi gai haim\? Pradeshi – ji ham, janata hum chara parishadayem haim – kshatriya, gathapati, brahmana aura rishi parishada. Pradeshi ! Tuma yaha bhi janate ho ki ina chara parishadaom ke aparadhiyom ke lie kya dandaniti batai gai hai\? Pradeshi – ham, janata hum. Jo kshatriya – parishad ka aparadha karata hai, usake ya to hatha, paira ya shira kata diya jata hai, athava use shuli para charha dete haim ya eka hi prahara se ya kuchalakara pranarihata kara diya jata hai – jo gathapati – parishad ka aparadha karata hai, use ghasa se athava pera ke pattom se athava palala – puala se lapeta kara agni mem jhomka diya jata hai. Jo brahmana – parishad ka aparadha karata hai, use anishta, roshapurna, apriya ya amanama shabdom se upalambha dekara agnitapta lohe se kumdika chihna athava kutte ke chihna se lamchhita kara diya jata hai athava nirvasita kara diya jata hai. Jo rishi – parishad ka apamana karata hai, use na ati anishta yavat na ati amanojnya shabdom dvara upalambha diya jata hai. Keshi kumara – shramana – isa prakara ki dandaniti ko janate hue bhi he pradeshi ! Tuma mere prati viparita, paritapajanaka, pratikula, viruddha, sarvatha viparita vyavahara kara rahe ho. Taba pradeshi raja ne kaha – bhadanta ! Mera apa devanupriya se jaba prathama hi vartalapa hua tabhi mere mana mem isa prakara ka vichara yavat samkalpa utpanna hua ki jitana – jitana aura jaise – jaise maim isa purusha ke viparita yavat sarvatha viparita vyavahara karumga, utana – utana aura vaise – vaise maim adhika tattva ko janumga, jnyana prapta karumga, charitra ko, charitralabha ko, samyaktva ko, samyaktva labha ko, jiva ko, jiva ke svarupa ko samajha sakumga. Isi karana apa devanupriya ke prati maimne viparita yavat atyanta viruddha vyavahara kiya hai. Keshi kumarashramana ne kaha – he pradeshi! Janate ho tuma ki vyavaharakarta kitane prakara ke batalae gae haim\? Ham, bhadanta ! Janata hum ki vyavahara – karakom ke chara prakara haim – 1. Koi kisi ko dana deta hai, kintu usake satha pritijanaka vani nahim bolata. 2. Koi samtoshaprada batem to karata hai, kintu deta nahim hai. 3. Koi deta bhi hai aura lene vale ke satha samtoshaprada vartalapa bhi karata hai aura 4. Koi deta bhi kuchha nahim aura na samtoshaprada bata karata hai. He pradeshi ! Janate ho tuma ki ina chara prakara ke vyaktiyom mem se kauna vyavaharakushala hai aura kauna vyavaharashunya hai\? Pradeshi – ham, janata hum. Inamem se jo purusha deta hai, kintu sambhashana nahim karata, vaha vyavahari hai. Jo purusha deta nahim kintu samyag alapa se samtosha utpanna karata hai, vaha vyavahari hai. Jo purusha deta bhi hai aura shishta vachana bhi kahata hai, vaha vyavahari hai, kintu jo na deta hai aura na madhura vani bolata hai, vaha avyavahari hai. Usi prakara he pradeshi ! Tuma bhi vyavahari ho, avyavahari nahim ho. |