Sutra Navigation: Antkruddashang ( अंतकृर्द्दशांगसूत्र )

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Sr No : 1005254
Scripture Name( English ): Antkruddashang Translated Scripture Name : अंतकृर्द्दशांगसूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Translated Chapter :

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Section : Translated Section :
Sutra Number : 54 Category : Ang-08
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] एवं–सुकण्हा वि, नवरं–सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। पढमे सत्तए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स। दोच्चे सत्तए दो-दो भोयणस्स दो-दो पाणयस्स पडिगाहेइ। तच्चे सत्तए तिन्नि-तिन्नि दत्तीओ भोयणस्स, तिन्नि-तिन्नि दत्तीओ पाणयस्स। चउत्थे सत्तए चत्तारि-चत्तारि दत्तीओ भोयणस्स, चत्तारि-चत्तारि दत्तीओ पाणयस्स। पंचमे सत्तए पंच-पंच दत्तीओ भोयणस्स, पंच-पंच दत्तीओ पाणयस्स। छट्ठे सत्तए छ-छ दत्तीओ भोयणस्स, छ-छ दत्तीओ पाणयस्स। सत्तमे सत्तए सत्त-सत्त दत्तीओ भोयणस्स, सत्त-सत्त दत्तीओ पाणयस्स पडिगाहेइ। एवं खलु एयं सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं एगूणपण्णाए रातिंदिएहिं एगेण य छन्नउएण भिक्खासएणं अहासुत्तं जाव आराहेत्ता जेणेव अज्जचंदना अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता अज्जचंदनं अज्जं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं अज्जाओ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणी अट्ठट्ठमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरेत्तए। अहासुहं देवाणुप्पिए! मा पडिबंधं करेहि। तए णं सा सुकण्हा अज्जा अज्जचंदनाए अज्जाए अब्भणुन्नाया समाणी अट्ठट्ठमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ– पढमे अट्ठए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स जाव अट्ठमे अट्ठए अट्ठट्ठ भोयणस्स पडिगाहेइ, अट्ठट्ठ पाणयस्स। एवं खलु एयं अट्ठट्ठमियं भिक्खुपडिमं चउसट्ठीए रातिंदिएहिं दोहि य अट्ठासीएहिं भिक्खासएहिं अहासुत्तं आराहेत्ता जाव नव-नवमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ– पढमे नवए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स जाव नवमे नवए नव-नव दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेइ, नव-नव पाणयस्स। एवं खलु एयं नवनवमियं भिक्खुपडिमं एक्कासीतिए राइंदिएहिं चउहि य पंचुत्तरेहिं भिक्खासएहिं अहासुत्तं आराहेत्ता जाव दस दसमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ– पढमे दसए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स जाव दसमे दसए दस-दस दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेइ, दस दस पाणयस्स। एवं खलु एयं दसदसमियं भिक्खुपडिमं एक्केणं राइंदियसएणं अद्धछट्ठेहि य भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव आराहेइ, आराहेत्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्ध-मासखमणेहिं विविहेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तए णं सा सुकण्हा अज्जा तेणं ओरालेणं तवोकम्मेणं जाव सिद्धा। निक्खेवओ।
Sutra Meaning : काली आर्या की तरह आर्या सुकृष्णा ने भी दीक्षा ग्रहण की। विशेष यह कि वह सप्त – सप्तमिका भिक्षु – प्रतिमा ग्रहण करके विचरने लगी, जो इस प्रकार है – प्रथम सप्तक में एक दत्ति भोजन की और एक दत्ति पानी की ग्रहण की। द्वितीय सप्तक में दो दत्ति भोजन की और दो दत्ति पानी। तृतीय सप्तक में तीन दत्ति भोजन की और तीन दत्ति पानी। चतुर्थ सप्तक में चार दत्ति भोजन की और चार दत्ति पानी। पाँचवें सप्तक में पाँच दत्ति भोजन की और पाँच दत्ति पानी। छट्ठे सप्तक में छह दत्ति भोजन की और छह दत्ति पानी। सातवें सप्तक में सात दत्ति भोजन की और सात दत्ति पानी। इस प्रकार उनचास रात – दिन में एक सौ छियानवे भिक्षा की दत्तियाँ होती हैं। सुकृष्णा आर्या ने सूत्रोक्त विधि के अनुसार इसी ‘सप्तसप्तमिका’ भिक्षुप्रतिमा तप की सम्यग्‌ आराधना की। इसमें आहार – पानी की सम्मिलित रूप से प्रथम सप्ताह में सात दत्तियाँ हुई, दूसरे सप्ताह में चौदह, तीसरे सप्ताह में इक्कीस, चौथे में अट्ठाईस, पाँचवे में पैंतीस, छट्ठे में बयालीस और सातवें सप्ताह में उनचास दत्तियाँ होती हैं। इस प्रकार सभी मिलाकर कुल एक सौ छियानवे दत्तियाँ हुई। इस तरह सूत्रानुसार इस प्रतिमा का आराधन करके सुकृष्णा आर्या आर्य चन्दना आर्या के पास आई और उन्हें वंदना – नमस्कार करके बोली – ‘‘हे आर्ये ! आपकी आज्ञा हो तो मैं ‘अष्ट – अष्टमिका’ भिक्षु – प्रतिमा तप अंगीकार करके विचरूँ।’’ हे देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो। धर्मकार्य में प्रमाद मत करो। आर्यवन्दना आर्या से आज्ञा प्राप्त होने पर आर्या सुकृष्णा देवी अष्ट – अष्टमिका नामक भिक्षुप्रतिमा को धारण करके विचरने लगी। पहले आठ दिनों में आर्या सुकृष्णा ने एक दत्ति भोजन की और एक दत्ति पानी की ग्रहण की। दूसरे अष्टक में अन्न – पानी की दो – दो दत्तियाँ लीं। इसी प्रकार क्रम से तीसरे में तीन – तीन, चौथे में चार – चार, पाँचवे में पाँच – पाँच, छट्ठे में छह – छह, सातवें में सात – सात और आठवें में आठ – आठ अन्न – जल की दत्तियाँ ग्रहण की। इस अष्ट – अष्टमिका भिक्षु – प्रतिमा की आराधना में ६४ दिन लगे और २८८ भिक्षाएं ग्रहण की गई। इस भिक्षु – प्रतिमा की सूत्रोक्त पद्धति से आराधना करने के अनन्तर आर्या सुकृष्णा ने नव – नवमिका नामक भिक्षु – प्रतिमा की आराधना आरम्भ कर दी। नव – नवमिका भिक्षु – प्रतिमा की आराधना करते समय आर्या सुकृष्णा ने प्रथम नवक में प्रतिदिन एक एक दत्ति भोजन की और एक – एक दत्ति पानी की ग्रहण की। इसी प्रकार आगे क्रमशः एक – एक दत्ति बढ़ाते हुए नौवें नवक में अन्न – जल की नौ – नौ दत्तियाँ ग्रहण की। इस प्रकार यह नव – नवमिका भिक्षु – प्रतिमा इक्यासी दिनों में पूर्ण हुई। इसमें भिक्षाओं की संख्या ४०५ तथा दिनों की संख्या ८१ होती है। सूत्रोक्त विधि के अनुसार नव – नवमिका भिक्षुप्रतिमा की आराधना करने के अनन्तर आर्या सुकृष्णा ने दश – दशमिका नामक भिक्षुप्रतिमा की आराधना आरम्भ की। दश – दशमिका भिक्षु – प्रतिमा की आराधना करते समय आर्या सुकृष्णा प्रथम दशक में एक – एक दत्ति भोजन और एक – एक दत्ति पानी की ग्रहण करती है। इसी प्रकार एक – एक दत्ति बढ़ाते हुए दसवें दशक में दस – दस दत्तियाँ भोजन की और पानी की स्वीकार करती हैं। दश – दशमिका भिक्षु – प्रतिमा में १०० रात्रि – दिन लग जाते हैं। इसमें ५५० भिक्षाएं और ११०० दत्तियाँ ग्रहण करनी होती हैं। सूत्रोक्त विधि अनुसार दश – दशमिका भिक्षुप्रतिमा की आराधना करने के अनन्तर आर्या सुकृष्णा ने उपवास, बेला, तेला, चौला, पचौला, छह, सात, आठ से लेकर पन्द्रह तथा मासखमण तक की तपस्या के अतिरिक्त अन्य अनेकविध तपों से अपनी आत्मा को भावित किया। इस कठिन तप के कारण सुकृष्णा अत्यधिक दुर्बल हो गई यावत्‌ संपूर्ण कर्मक्षय करके मोक्षगति को प्राप्त हुई।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] evam–sukanha vi, navaram–sattasattamiyam bhikkhupadimam uvasampajjitta nam viharai. Padhame sattae ekkekkam bhoyanassa dattim padigahei, ekkekkam panayassa. Dochche sattae do-do bhoyanassa do-do panayassa padigahei. Tachche sattae tinni-tinni dattio bhoyanassa, tinni-tinni dattio panayassa. Chautthe sattae chattari-chattari dattio bhoyanassa, chattari-chattari dattio panayassa. Pamchame sattae pamcha-pamcha dattio bhoyanassa, pamcha-pamcha dattio panayassa. Chhatthe sattae chha-chha dattio bhoyanassa, chha-chha dattio panayassa. Sattame sattae satta-satta dattio bhoyanassa, satta-satta dattio panayassa padigahei. Evam khalu eyam sattasattamiyam bhikkhupadimam egunapannae ratimdiehim egena ya chhannauena bhikkhasaenam ahasuttam java arahetta jeneva ajjachamdana ajja teneva uvagaya, uvagachchhitta ajjachamdanam ajjam vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–ichchhami nam ajjao! Tubbhehim abbhanunnaya samani atthatthamiyam bhikkhupadimam uvasampajjitta nam viharettae. Ahasuham devanuppie! Ma padibamdham karehi. Tae nam sa sukanha ajja ajjachamdanae ajjae abbhanunnaya samani atthatthamiyam bhikkhupadimam uvasampajjitta nam viharai– Padhame atthae ekkekkam bhoyanassa dattim padigahei, ekkekkam panayassa java atthame atthae atthattha bhoyanassa padigahei, atthattha panayassa. Evam khalu eyam atthatthamiyam bhikkhupadimam chausatthie ratimdiehim dohi ya atthasiehim bhikkhasaehim ahasuttam arahetta java nava-navamiyam bhikkhupadimam uvasampajjitta nam viharai– Padhame navae ekkekkam bhoyanassa dattim padigahei, ekkekkam panayassa java navame navae nava-nava dattio bhoyanassa padigahei, nava-nava panayassa. Evam khalu eyam navanavamiyam bhikkhupadimam ekkasitie raimdiehim chauhi ya pamchuttarehim bhikkhasaehim ahasuttam arahetta java dasa dasamiyam bhikkhupadimam uvasampajjitta nam viharai– Padhame dasae ekkekkam bhoyanassa dattim padigahei, ekkekkam panayassa java dasame dasae dasa-dasa dattio bhoyanassa padigahei, dasa dasa panayassa. Evam khalu eyam dasadasamiyam bhikkhupadimam ekkenam raimdiyasaenam addhachhatthehi ya bhikkhasaehim ahasuttam java arahei, arahetta bahuhim chauttha-chhatthatthama-dasama-duvalasehim masaddha-masakhamanehim vivihehim tavokammehim appanam bhavemani viharai. Tae nam sa sukanha ajja tenam oralenam tavokammenam java siddha. Nikkhevao.
Sutra Meaning Transliteration : Kali arya ki taraha arya sukrishna ne bhi diksha grahana ki. Vishesha yaha ki vaha sapta – saptamika bhikshu – pratima grahana karake vicharane lagi, jo isa prakara hai – prathama saptaka mem eka datti bhojana ki aura eka datti pani ki grahana ki. Dvitiya saptaka mem do datti bhojana ki aura do datti pani. Tritiya saptaka mem tina datti bhojana ki aura tina datti pani. Chaturtha saptaka mem chara datti bhojana ki aura chara datti pani. Pamchavem saptaka mem pamcha datti bhojana ki aura pamcha datti pani. Chhatthe saptaka mem chhaha datti bhojana ki aura chhaha datti pani. Satavem saptaka mem sata datti bhojana ki aura sata datti pani. Isa prakara unachasa rata – dina mem eka sau chhiyanave bhiksha ki dattiyam hoti haim. Sukrishna arya ne sutrokta vidhi ke anusara isi ‘saptasaptamika’ bhikshupratima tapa ki samyag aradhana ki. Isamem ahara – pani ki sammilita rupa se prathama saptaha mem sata dattiyam hui, dusare saptaha mem chaudaha, tisare saptaha mem ikkisa, chauthe mem atthaisa, pamchave mem paimtisa, chhatthe mem bayalisa aura satavem saptaha mem unachasa dattiyam hoti haim. Isa prakara sabhi milakara kula eka sau chhiyanave dattiyam hui. Isa taraha sutranusara isa pratima ka aradhana karake sukrishna arya arya chandana arya ke pasa ai aura unhem vamdana – namaskara karake boli – ‘‘he arye ! Apaki ajnya ho to maim ‘ashta – ashtamika’ bhikshu – pratima tapa amgikara karake vicharum.’’ he devanupriye ! Jaise tumhem sukha ho vaisa karo. Dharmakarya mem pramada mata karo. Aryavandana arya se ajnya prapta hone para arya sukrishna devi ashta – ashtamika namaka bhikshupratima ko dharana karake vicharane lagi. Pahale atha dinom mem arya sukrishna ne eka datti bhojana ki aura eka datti pani ki grahana ki. Dusare ashtaka mem anna – pani ki do – do dattiyam lim. Isi prakara krama se tisare mem tina – tina, chauthe mem chara – chara, pamchave mem pamcha – pamcha, chhatthe mem chhaha – chhaha, satavem mem sata – sata aura athavem mem atha – atha anna – jala ki dattiyam grahana ki. Isa ashta – ashtamika bhikshu – pratima ki aradhana mem 64 dina lage aura 288 bhikshaem grahana ki gai. Isa bhikshu – pratima ki sutrokta paddhati se aradhana karane ke anantara arya sukrishna ne nava – navamika namaka bhikshu – pratima ki aradhana arambha kara di. Nava – navamika bhikshu – pratima ki aradhana karate samaya arya sukrishna ne prathama navaka mem pratidina eka eka datti bhojana ki aura eka – eka datti pani ki grahana ki. Isi prakara age kramashah eka – eka datti barhate hue nauvem navaka mem anna – jala ki nau – nau dattiyam grahana ki. Isa prakara yaha nava – navamika bhikshu – pratima ikyasi dinom mem purna hui. Isamem bhikshaom ki samkhya 405 tatha dinom ki samkhya 81 hoti hai. Sutrokta vidhi ke anusara nava – navamika bhikshupratima ki aradhana karane ke anantara arya sukrishna ne dasha – dashamika namaka bhikshupratima ki aradhana arambha ki. Dasha – dashamika bhikshu – pratima ki aradhana karate samaya arya sukrishna prathama dashaka mem eka – eka datti bhojana aura eka – eka datti pani ki grahana karati hai. Isi prakara eka – eka datti barhate hue dasavem dashaka mem dasa – dasa dattiyam bhojana ki aura pani ki svikara karati haim. Dasha – dashamika bhikshu – pratima mem 100 ratri – dina laga jate haim. Isamem 550 bhikshaem aura 1100 dattiyam grahana karani hoti haim. Sutrokta vidhi anusara dasha – dashamika bhikshupratima ki aradhana karane ke anantara arya sukrishna ne upavasa, bela, tela, chaula, pachaula, chhaha, sata, atha se lekara pandraha tatha masakhamana taka ki tapasya ke atirikta anya anekavidha tapom se apani atma ko bhavita kiya. Isa kathina tapa ke karana sukrishna atyadhika durbala ho gai yavat sampurna karmakshaya karake mokshagati ko prapta hui.